July 22, 2025
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शौर्यपथ / आज हम आपको चांदी की 4 ऐसी वस्तुओं के बारे में बताएंगे जो घर की सुख और शांति को हमेशा बरकरार रखती है। घर में अमन-चमन हो जाता है। आइए जानते हैं...
1. घर में चांदी का गिलास जरूर रखना चाहिए और इसी से पानी भी पीना चाहिए। चांदी के गिलास से पानी पीने से और इसे घर में रखने से राहु और केतु का प्रकोप कभी नहीं आता।
2. वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में चांदी के हाथी रखने से व्यापार में काफी लाभ होता है और व्यापार कभी घाटे में नहीं जाता।
3. चांदी की चैन या अंगूठी पहनने से विवाह में हो रहा विलंब दूर हो जाता है।
4. चांदी का चौकोर टुकड़ा जेब में रखने से नौकरी में आ रही समस्या हल हो जाती है और जल्द से जल्द नौकरी मिल जाती है।

धर्म संसार /शौर्यपथ /प्रयागे माघ पर्यन्त त्रिवेणी संगमे शुभे।
निवासः पुण्यशीलानां कल्पवासो हि कश्यते॥- (पद्‌मपुराण)
कुंभ में सभी लोग नहीं जा पाते हैं, लेकिन जाने का सोचते जरूर हैं। यह समय दान, जप, ध्यान और संयम का समय रहता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कुंभ में जाए बगैर ही कैसे पुण्य लाभ कमाया जा सकता है?
कुंभ में इस वक्त कल्पवास चल रहा है। कुंभ में जहां स्नान करने का महत्व है वहीं कल्पवास में नियम-धरम का पालन करने का महत्व है। दूसरी ओर कुंभ में प्रवचन सुन कर, दान करके और पितरों के लिए तर्पण करके भी लोग पुण्य लाभ कमाते हैं। आप चाहें तो ये सब कुछ करके भी पुण्य लाभ कमा सकते हैं-
1.प्रतिदिन हल्दी मिले बेसन से स्नान करने के पश्चात्य सुबह-शाम संध्यावंदन करते समय भगवान विष्णु का ध्यान करें और निम्न मंत्र-क्रिया से स्वयं को पवित्र करें।

संध्यावंदन का मंत्र :
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा।
यः स्मरेत पुण्डरीकांक्ष से बाह्याभ्यंतरः शुचि।
इस मंत्र से आचमन करें-
ॐ केशवायनमः ॐ माधवाय नमः ॐ नाराणाय नमः का जाप करें।
हाथ में नारियल, पुष्प व द्रव्य लेकर यह मंत्र पढ़ें। इसके बाद आचमन करते हुए गणेश, गंगा, यमुना, सरस्वती, त्रिवेणी, माधव, वेणीमाधव और अक्षयवट की स्तुति करें।
2.जब तक कुंभ चल रहा हैं तब तक प्रतिदिन एक वक्त का सादा भोजन करें और मौन रहें।
2.आप किसी योग्य व्यक्ति को दान दे सकते हैं। दान में अन्यदान, वस्त्रदान, तुलादान, फलदान, तिल या तेलदान कर सकते हैं।
3.गाय, कुत्ते, पक्षी, कव्वा, चींटी और मछली को भोजन खिलाएं। गाय को खिलाने से घर की पीड़ा दूर होगी। कुत्ते को खिलाने से दुश्मन आपसे दूर रहेंगे। कव्वे को खिलाने से आपके पितृ प्रसंन्न रहेंगे। पक्षी को खिलाने से व्यापार-नौकरी में लाभ होगा। चींटी को खिलाने से कर्ज समाप्त होगा और मछली को खिलाने से समृद्धि बढ़ेंगी।
4.आप संकल्प लें- किसी किसी भी तरह के व्यवसन का सेवन नहीं करूंगा, क्रोध और द्वेष वश कोई कार्य नहीं करूंगा, बुरी संगत और कुवचनों का त्याग करूंगा और सदा माता-पिता व गुरु की सेवा करूंगा।

शौर्यपथ / आधुनिक विज्ञान के अनुसार अमीबा से लेकर मानव तक की यात्रा में लगभग 1 करोड़ 04 लाख योनियां मानी गई हैं। ब्रिटिश वैज्ञानिक राबर्ट एम.मे. के अनुसार दुनिया में 87 लाख प्रजातियां हैं। उनका अनुमान है कि कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, पौधा-पादप, जलचर-थलचर सब मिलाकर जीव की 87 लाख प्रजातियां हैं। हिन्दू मान्यता अनुसार 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मानव शरीर मिलता है। परंतु क्या यह सही है या कल्पित है?
'सृष्टि के आदिकाल में न सत् था न असत्, न वायु थी न आकाश, न मृत्यु थी न अमरता, न रात थी न दिन, उस समय केवल वही था जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से साँस ले रहा था। उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।'- ऋग्वेद
वैदिक ज्ञान के अनुसार यह जगत, आत्मा वा ब्रह्म का ही दूसरा रूप है। इसका विकासक्रम आत्मा से प्रारंभ होकर ही आत्मा पर ही समाप्त होता है। मतलब आत्मा पहले सुप्त होकर पूर्व जागृत की ओर कदम बढ़ाती है। आत्मा जब खुद को आत्मस्वरूप में जान लेती है तब वह ब्रह्म में लीन हो जाती है।
वैदिक ज्ञान के अनुसार यह संपूर्ण ब्रह्मांड पंच कोषों और पंच तत्वों वाला है।
ब्रह्म की जगह हम समझने के लिए अत्मा को रख देते हैं। आप पांच तत्वों को तो जानते ही हैं- आकाश, वायु, अग्नि, जल और ग्रह (धरती या सूर्य)। सब सोचते हैं कि सबसे पहले ग्रहों की रचना हुई फिर उसमें जल, अग्नि और वायु की, लेकिन यह सच नहीं है।
ग्रह या कहें की जड़ जगत की रचना सबसे अंतिम रचना है। तब सबसे पहले क्या उत्पन्न हुआ? जैसे आप सबसे पहले हैं फिर आपका शरीर सबसे अंत में। आपके और शरीर के बीच जो है आप उसे जानें। अग्नि जल, प्राण और मन। प्राण तो वायु है और मन तो आकाश है। शरीर तो जड़ जगत का हिस्सा है। अर्थात धरती का। जो भी दिखाई दे रहा है वह सब जड़ जगत है।
नीचे गिरने का अर्थ है जड़ हो जाना और ऊपर उठने का अर्थ है ब्रह्माकाश हो जाना। अब इन पांच तत्वों से बड़कर भी कुछ है क्योंकि सृष्टि रचना में उन्हीं का सबसे बड़ा योगदान रहा है।
पंच कोष : जड़, प्राण, मन, बुद्धि और आनंद/ अवस्था: जाग्रत, स्वप्न, सु‍षुप्ति और तुरीय।
'एक आत्मा है जो अन्नरसमय है (जड़), एक अन्य आंतर आत्मा है, प्राणमय (वायु) जो कि उसे पूर्ण करता है- एक अन्य आंतर आत्मा है, मनोमय (मन)- एक अन्य आंतर आत्मा है, विज्ञानमय (सत्यज्ञानमय)- एक अन्य आंतर आत्मा है, आनंदमय (ब्रह्माकाश)। '-तैत्तिरीयोपनिषद
भावार्थ : जड़ में प्राण; प्राण में मन; मन में विज्ञान और विज्ञान में आनंद। यह चेतना या आत्मा के रहने के पांच स्तर हैं। आत्मा इनमें एक साथ रहती है। यह अलग बात है कि किसे किस स्तर का अनुभव होता है। ऐसा कह सकते हैं कि यह पांच स्तर आत्मा का आवरण है। कोई भी आत्मा अपने कर्म प्रयास से इन पांचों स्तरों में से किसी भी एक स्तर का अनुभव कर उसी के प्रति आसक्त रहती है। सर्वोच्च स्तर आनंदमय है और निम्न स्तर जड़।
अंतत: जड़ या अन्नरसमय कोष दृष्टिगोचर होता है। प्राण और मन का अनुभव होता है किंतु जाग्रत मनुष्य को ही विज्ञानमय कोष समझ में आता है। जो विज्ञानमय कोष को समझ लेता है वही उसके स्तर को भी समझता है।
अभ्यास और जाग्रति द्वारा ही उच्च स्तर में गति होती है। अकर्मण्यता से नीचे के स्तर में चेतना गिरती जाती है। इस प्रकृति में ही उक्त पंच कोषों में आत्मा विचरण करती है किंतु जो आत्मा इन पाँचों कोष से मुक्त हो जाती है ऐसी मुक्तात्मा को ही ब्रह्मलीन कहा जाता है। यही मोक्ष की अवस्था है।
इस तरह वेदों में जीवात्मा के पांच शरीर बताए गए हैं- जड़, प्राण, मन, विज्ञान और आनंद। इस पांच शरीर या कोष के अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग नाम हैं जिसे वेद ब्रह्म कहते हैं उस ईश्वर की अनुभूति सिर्फ वही आत्मा कर सकती है जो आनंदमय शरीर में स्थित है। देवता, दानव, पितर और मानव इस हेतु सक्षम नहीं।
आज जो मनुष्य रूप में कोई आत्मा है वह अरबों वर्ष पूर्व...जड़ होने से पहले अंधकार में सुप्तावस्था में मौजूद थी। जड़ से ही क्रमश: आगे बढ़ते हुए वह पत्थर, पौधे, जीव और अन्य प्राणियों में खुद को अभिव्यक्त करते हुए मनुष्य रूप में प्रकट हुई। अरबों वर्ष का सफर तब मिट्टी में मिल जाता है जब कोई मनुष्य पाप कर्मों से अपनी चेतना का स्तर गिराकर नीचे की योनियों में जन्म ले लेता है।

खाना खजाना /शौर्यपथ / नाश्ते में पोहा खाना बेहद फायदेमंद है लेकिन अगर आप पोहे की कोई चटपटी रेसिपी ट्राई करना चाहते हैं, तो पोहा कटलेट ट्राई कर सकते हैं। आइए, जानते हैं रेसिपी-
सामग्री
पोहा- 2 कप
उबले आलू- 3
कद्दूकस किया पनीर- 1/4 कप
कद्दूकस किया गाजर- 1/4 कप
गरम मसाला पाउडर- 1/2 चम्मच
काली मिर्च पाउडर- 1/2 चम्मच
चाट मसाला पाउडर- 1 चम्मच
लाल मिर्च पाउडर- 1/2 चम्मच
बारीक कटा अदरक- 1 टुकड़ा
बारीक कटी मिर्च- 2
नीबू का रस- 1 चम्मच
मैदा- 2 चम्मच
धनिया पत्ती- 4 चम्मच
ब्रेड क्रम्ब्स- 1/2 कप
तेल-आवश्यकतानुसार
नमक- स्वादानुसार
विधि
पोहा को पानी से कुछ सेकेंड के लिए धो लें और 10 मिनट के लिए सूखने छोड़ दें। उबले आलू का छिलका छीलकर उसे अच्छी तरह से मैश कर लें। एक बरतन में मैश्ड आलू, गाजर, पनीर, नमक, काली मिर्च पाउडर, गरम मसाला पाउडर, चाट मसाला पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, अदरक, धनिया पत्ती, हरी मिर्च और नीबू का रस डालें। मिश्रण को अच्छी तरह से मिलाएं। अब इस मिश्रण से कटलेट तैयार कर लें। एक बाउल में मैदा डालें और उसमें पानी मिलाकर पतला पेस्ट तैयार कर लें। इस पेस्ट में थोड़ा-सा नमक और काली मिर्च पाउडर भी डालें। हर कटलेट को पहले मैदा वाले इस पेस्ट में डुबोएं और उसके बाद ब्रेड क्रम्ब्स पर रोल करें। पैन गर्म करें और उसमें हल्का-सा तेल डालकर कटलेट को दोनों ओर से सुनहरा होने तक फ्राई करें। इसे धनिया-पुदीने की चटनी के साथ सर्व करें।

सेहत /शौर्यपथ / अखरोट का नाम सबसे पसंदीदा ड्राई फ्रूट्स में लिया जाता है। सेहत से जुड़े फायदों के साथ स्किन केयर के लिए भी अखरोट बेहद फायदेमंद है। आप अगर चेहरे पर नेचुरल ग्लो पाने के लिए महंगे प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल करते हैं, तो आप इन्हें छोड़कर अखरोट को स्किन केयर रूटीन में शामिल कर सकते हैं।आइए, जानते हैं अखरोट के फायदे-
फेसपैक बनाकर करें इस्तेमाल
एक चम्मच अखरोट का पाउडर, एक चम्मच ओलिव ऑयल, दो चम्मच गुलाब जल व आधा चम्मच शहद मिलाकर पेस्ट बना लें।
इस पैक को अपने चेहरे पर 15 मिनट के लिए लगाकर छोड़ दें।
फिर सूखने पर पानी से मुंह धो लें।
बेहतर परिणाम के लिए आप यह फेसपैक सप्ताह में दो से तीन बार लगा सकते हैं।
डार्क सर्कल के लिए
अखरोट का तेल आपकी आंखों के नीचे आई सूजन को दूर करता है और डार्क सर्कल कम करने में मदद करता है।
आप थोड़ा-सा अखरोट का तेल लें। तेल को गुनगुना करके इसे आंखों के नीचे काले घेरे वाले भाग पर लगाकर सो जाएं। फिर सुबह सामान्य तरीके से चेहरा धो लें। आप इस प्रक्रिया को रोज रात को तब तक दोहराएं, जब तक असर दिखना न शुरू हो जाए।
आंखों ने नीचे की सिलवटों को दूर करें
आप नींबू का रस, शहद, ओटमील और अखरोट का पाउडर एक साथ मिलाकर पेस्ट बना लें।
इस पेस्ट को आंखों के नीचे लगाएं और 15-20 मिनट के लिए छोड़ दें।
फिर पानी से धो लें।
इस प्रक्रिया को आप सप्ताह में तीन से चार बार दोहरा सकते हैं।

शौर्यपथ /मंचूरियन और चिली पौटेटो जैसी कई डिशेज बनाने में कॉर्न स्टार्च (कॉर्न फ्लोर) का इस्तेमाल किया जाता है।वहीं, इसका इस्तेमाल ग्रेवी को गाढ़ा करने के साथ पकौड़े को क्रिस्पी बनाने के लिए भी किया जाता है। कई लोगों को कॉर्न स्टाच और मक्के के आटे में कंफ्यूजन होती है, कॉर्न फ्लोर नाम होने की वजह से वे इसे मक्के का आटा समझ लेते हैं।ऐसे में इन दोनों में अंतर समझन बहुत जरूरी है।आज हम आपको बता रहे हैं कि आप कैसे आसान तरीके से कॉर्न फ्लोर को घर पर बना सकते हैं।आइए, जानते हैं इसका तरीका-
मक्के का आटा और कॉर्न स्टार्च में अंतर :
कुछ लोग मक्के के आटे को ही कॉर्न फ्लोर समझ लेते हैं।मक्के का आटा कॉर्नमील फ्लोर होता है जबकि कॉर्न फ्लोर मक्की का स्टार्च होता है, इसलिए इसे कॉर्न स्टार्च भी कहते हैं। कॉर्न फ्लोर बनाने के लिए पहले मक्के के दाने से उसका छिलका हटाया जाता है और फिर उसे पाउडर की तरह पीसकर तैयार किया जाता है जबकि मक्की का आटा मक्के के दानों को सुखाकर पीसकर तैयार हो जाता है। यह पीले या सफेद रंग का होता है।यह दरदरा या बारीक रूप में मिलता है जबकि कार्न फ्लोर सफेद या हल्के पीले रंग के पाउडर फार्म में मिलता है।
कॉर्न स्टार्च कैसे बनाएं :
सबसे पहले मक्के को थोड़ा पानी में डाल दें और उसे 5-6 घंटे के लिए छोड़ दें।
फिर उसे छान लें और उसमे थोड़ा सा पानी डालकर अच्छे से पीस लें.
फिर उसे किसी बर्तन में छान लें और उसे 10 मिनट के छोड़ दें।
उसके कचड़े को किसी और बर्तन में निकाल लें.
10 मिनट बाद उसे किसी पतले कपड़े से फिर छान लें.
फिर उस पानी को 15-20 मिनट के लिए छोड़ दें।
इसमें से कचरे को निकाल कर अलग रख दें।
फिर धीरे-धीरे करके पानी को गिरा दें।
फिर किसी सूखे कपड़े या टिश्यू पेपर से बचे हुए पानी को निकाल दें.
फिर इसे किसी प्लेट में निकाल लें और उसे सूखने के लिए डाल दें।
सूखने के बाद इसे मिक्सी जार में पीस लें।
हमारा कॉर्न फ्लॉर बनकर तैयार है।
इस कॉर्न फ्लोर को आप किसी शीशे के डिब्बे में रखकर तीन महीने तक इस्तेमाल कर सकते है।

खाना खजाना / शौर्यपथ /अक्सर ऐसा होता है कि ऑफिस या कॉलेज की भागदौड़ के बीच नाश्ता नहीं कर पाते, वहीं वर्किंग महिला या पुरुषों के पास भी इतना टाइम नहीं होता कि सुबह कम समय में हेल्दी नाश्ता तैयार कर सकें। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं, झटपट बनने वाला सूजी से बना हेल्दी ब्रेकफास्ट रेसिपी-
सामग्री
-एक कप सूजी
-एक कप दही
-एक टमाटर बारीक कटा हुआ
-एक प्याज बारीक कटी हुई
-दो हरी मिर्च बारीक कटी हुई
-दो बड़ा चम्मच धनिया
-नमक स्वादनुसार
-तेल तलने के लिए
विधि
-सूजी उत्तपम बनाने के लिए सबसे पहले एक बर्तन में सूजी, दही और नमक डालकर अच्छे से मिक्स कर लें। बैटर गाढ़ा होने की वजह से थोड़ा-सा पानी भी मिलाएं और इसे इडली और डोसे के बैटर जैसा तैयार कर लें।
-बैटर में प्याज, टमाटर, गाजर, शिमला मिर्च, अदरक, हरी मिर्च, अदरक, धनिया पत्ती सभी थोड़ा-थोड़ा डालकर मिक्स कर लें और बाकी का बचाकर अलग रख लें। -मीडियम आंच में एक पैन में तेल गर्म करने के लिए रखें।
-तेल के गर्म होते ही पैन में बैटर डालें। एक मिनट बाद बाकी बची सब्जियां भी ऊपर से डाल दें और दो मिनट तक परांठे की तरह सेंक लें।
-आप इसे चटनी या कैचअप के साथ सर्व कर सकते हैं।

टिप्स /शौर्यपथ /हर व्यक्ति जीवन में तरक्की और नए अवसर चाहता है। जीवन में खुशियां और पैसा पाने के लिए लोग कठिन मेहनत भी करते हैं। लेकिन कई बार उन्हें उनकी मेहनत का फल नहीं मिलता है। सफलता के करीब आने के बाद भी असफल होना, नए अवसरों का न मिलना या फिर धन का नहीं टिकना यह वास्तु दोष के कारण भी हो सकता है। ऐसे में लोग वास्तु दोष के लिए कुछ खास तरह के उपाय करते हैं। जिनको अजमाने से जीवन में आर्थिक उन्नति के रास्ते खुल जाते हैं। जानिए चीनी शास्त्र फेंगशुई के इन खास उपायों के बारे में-
1. फेंगशुई शास्त्र में तीन टांगों वाले मेंढक को बेहद शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि तीन टांगों वाले मेंढक जिसके मुंह में सिक्के लगे हों, उसे घर लाने से आर्थिक उन्नति होती है। इस दौरान एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि मेंढक का मुंह घर के अंदर की ओर होना चाहिए और ना की बाहर। कहते हैं कि ऐसा करने से आपके कार्य धीरे-धीरे बनने लगते हैं।
2. तीन चीनी सिक्कों को फेंगशुई में आर्थिक संपन्नता का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं कि इन सिक्कों को लाल डोरी में बांधकर अपने घर या दुकान के मेनगेट में बांधना शुभ होता है। कहते हैं कि ऐसा करने आर्थिक स्थिति में धीरे-धीरे सुधार होने लगता है।
3. तरक्की पाने के लिए और जीवन में खुशियों से भरने के लिए भी फेंगशुई शास्त्र में कई उपाय बताए गए हैं। कहा जाता है कि घर में सुनहरे रंग का लॉफिंग बुद्धा रखना शुभ होता है। फेंगशुई शास्त्र के अनुसार, उत्तर-पूर्व कोण में 30 डिग्री की ऊंचाई पर स्थापित करना चाहिए। लॉफिंग बुद्धा को भूलकर भी बेडरूम में नहीं रखना चाहिए। कहते हैं कि घर में लॉफिंग बुद्धा रखने से खुशहाली आती है और करियर में तरक्की मिलती है।
4. फेंगशुई के अनुसार, घर या ऑफिस में उत्तर दिशा की ओर कछुआ रखना शुभ माना जाता है। ध्यान रहे कि इसका मुंह हमेशा अंदर की ओर होना शुभ होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से नौकरी और व्यापार संबंधी परेशानियां खत्म हो जाती हैं। इसके साथ ही शत्रुओं से भी मुक्ति मिलती है।
5. घर या ऑफिस में झाडू को हमेशा ऐसी जगह पर रखना चाहिए, जहां पर किसी दूसरे की नजर न पड़े। कहते हैं कि कहीं भी झाडू रख देने से समृद्धि में भी कमी आती है। इसलिए हमेशा झाड़ू को संभालकर रखना चाहिए।

शौर्यपथ/ मौसम और कृषि से जुड़ी कवि घाघ की कहावतें बहुत चर्चित हैं। माना जाता है कि कवि घाघ की ये कहावतें मौसम विज्ञान और कृषि पर पूरी तरह से आज भी खरी उतरती हैं। सन 1753 में जन्म कवि घाघ अकबर के राज दरबार के मौसम वैज्ञानिक थे। अभी पौष माह चल रहा है। जानिए कवि घाघ की मौसम एवं कृषि से जुड़ी ऐसी ही ज्योतिषीय भविष्यवाणियों को।
’शुक्रवार की बादरी, रही शनिश्चर छाय। कह घाघ सुन भड्डरी बिन बरसे ना जाय।।’ अर्थात शुक्रवार को आकाश में बादल हों और शनिवार तक बादल छाए रहे तो बिना बरसे नहीं जाते हैं। अर्थात बारिश होती है।
’पूस मास दशमी अधियारी। बदली घोर होय अधिकारी। सावन बदि दशमी के दिवसे। भरे मेघ चारों दिशि बरसे।।’ अर्थात पौष महीने की दशमी को बादल छाए रहे तो अगले वर्ष श्रावण कृष्ण दशमी को घनघोर वर्षा होती है।
’पानी बरसे आधे पूष, आधा गेहूं आधा फूस। अर्थात पौष मास में अमावस्या के आसपास बरसात हो तो अगले रबी के सीजन में गेहूं अधिक मात्रा में पैदा होते हैं।’ इस बार जबसे पौष मास लगा है वर्षा हो रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि गेहूं की अगली फसल बहुत अच्छी होने वाली है।
’पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी और नवमी जाज। मेघ होय तो जान लो अब शुभ होइहि काज।’ अर्थात पौष मास के शुक्ल पक्ष की भी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को यदि आसमान में बादल छाए रहे तो आगे का समय बहुत अच्छा आने वाला है, धन-धान्य की कमी नहीं रहेगी। इस पौष माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी 20, 21 और 22 जनवरी को आएगी। अब देखना यह है कि इन तिथियों में आसमान में बादल रहेंगे या नहीं।

व्रत त्यौहार / शौर्यपथ /मकर संक्रांति को दक्षिण भारत में पोंगल के रूप में मनाया जाता है। यह किसानों का पर्व है। पोंगल दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है। पोंगल फसल की कटाई का उत्सव है। पोंगल का वास्तविक अर्थ होता है उबालना। इसका दूसरा अर्थ नया साल भी है। यह पर्व चार दिनों तक रहता है। प्रकृति को समर्पित यह त्योहार फसलों की कटाई के बाद आदि काल से मनाया जा रहा है।
इस त्योहार में पहले दिन वर्षा और अच्छी फसल के लिए भगवान इंद्रदेव की पूजा की जाती है। पोंगल की दूसरी पूजा सूर्य पूजा होती है। इसमें सूर्यदेव को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को सूर्य के प्रकाश में ही बनाया जाता है। तीसरे दिन भगवान शिव के बैल नंदी की पूजा की जाती है। कहते हैं शिव जी के प्रमुख गणों में से एक नंदी से एक बार कोई भूल हो गई, उस भूल के सुधार के लिए भगवान भोलेनाथ ने उन्हें बैल बनकर पृथ्वी पर मनुष्यों की सहायता करने को कहा। चौथा पोंगल कन्या पोंगल है जो काली मंदिर में धूमधाम से मनाया जाता। इसमें केवल महिलाएं ही भाग लेती हैं। इस त्योहार पर लोग भगवान से आगामी फसल के अच्छे होने की प्रार्थना करते हैं। इस त्योहार में वर्षा, धूप, सूर्य, इन्द्रदेव तथा मवेशियों की पूजा की जाती है। दक्षिण भारत में सूर्यदेव के उत्तरायण होने वाले दिन पोंगल से ही नववर्ष का आरंभ माना जाता है। इस त्योहार पर घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है। नए वस्त्र और बर्तन खरीदे जाते हैं। बैलों और गायों के सींग रंगे जाते हैं। इस त्योहार पर गाय के दूध के उफान को बहुत महत्व दिया जाता है। नए बर्तनों में दूध उबाला जाता है। इस त्योहार पर विशेष तौर पर खीर बनाई जाती है। इस दिन मिठाई और व्यंजन तैयार किए जाते हैं। चावल, दूध, घी, शकर से भोजन तैयार कर भगवान सूर्यदेव को भोग लगाया जाता है। इस त्योहार पर भूखों को भोजन कराया जाता है और जरूरतमंदों को वस्त्र वितरण किए जाते हैं। गाय की पूजा की जाती है और पशुओं को सजा कर अच्छे पकवान खिलाए जाते हैं। यह भी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने लोगों को देवराज इंद्र के सम्मान में यह त्योहार मनाने की अनुमति दी। चार दिनों के इस त्योहार के अंतिम दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है। इस दिन घर की साफ सफाई कर आम और नारियल के पत्तों से दरवाजे पर तोरण बनाया जाता है। महिलाएं इस दिन घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाती हैं। इस दिन से ही तमिल महीना चिथिरई भी आरंभ होता है।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।

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