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शौर्यपथ / प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर अखाड़ों का अमृत स्नान बुधवार को दोपहर में शुरू हुआ. तड़के संगम नोज पर भगदड़ मचने की घटना के कारण महाकुंभ का यह दूसरा अमृत स्नान देर से शुरू हुआ है. हालांकि अखाड़ों के साधुओं ने परम्परा के विपरीत कोई खास लाव—लश्कर के बिना संगम पर पहुंचकर स्नान शुरू किया. भगदड़ की वजह से अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने अमृत स्नान को सुबह टाल दिया था. यह तय किया गया था कि भीड़ कम होने पर अखाड़ों के संत स्नान करेंगे.
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने बुधवार को कहा था कि महाकुंभ में भगदड़ को देखते हुए संतों ने मौनी अमावस्या का अमृत स्नान सुबह टाल दिया था, लेकिन भीड़ कम होने पर अखाड़े अमृत स्नान करेंगे.
बुधवार को तड़के संगम नोज पर बैरियर टूटने से भगदड़ मच गई थी, जिसमें कुछ लोग घायल हो गए और उनका इलाज मेला क्षेत्र में बने अस्पताल में चल रहा है.
इसके पूर्व, सुबह सभी संत महात्माओं के लिए सिंहासन लगा था और नागा सन्यासियों सहित सभी संत महात्मा स्नान के लिए तैयार थे लेकिन भगदड़ की घटना के बारे में सुनकर अखाड़ा परिषद ने जनहित में अमृत स्नान टालने का निर्णय किया था.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भगदड़ के बाद अखाड़ों द्वारा मौनी अमावस्या का अमृत स्नान किए जाने के बारे में लखनऊ में कहा, ''अखाड़ा परिषद से जुड़े हुए पदाधिकारियों के साथ मैंने खुद भी बातचीत की है. आचार्य, महामंडलेश्वरों और पूज्य संतों के साथ भी बातचीत हुई है और उन्होंने बड़ी ही विनम्रता के साथ कहा है कि श्रद्धालु जन पहले स्नान करेंगे और फिर जब उनका दबाव कुछ कम होगा और वे सकुशल वहां से निकल जाएंगे तब हम लोग स्नान करने के लिए संगम की तरफ जाएंगे.''
हर 12 वर्ष पर आयोजित होने वाला महाकुंभ संगम नगरी प्रयागराज में पिछली 13 जनवरी को शुरू हुआ था, जो 26 फरवरी तक चलेगा. मेले की मेजबानी कर रही उत्तर प्रदेश सरकार को उम्मीद है कि दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागम में कुल 40 करोड़ तीर्थयात्री आएंगे.
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ / बसंत पंचमी हिंदू धर्म में पवित्र त्योहार में से एक माना जाता है, जो हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर मनाया जाता है. कहते हैं कि इस दिन मां सरस्वती प्रकट हुई थीं. उन्हें विद्या की देवी कहा जाता हैं. मां सरस्वती की पूजा अर्चना करने से बुद्धि का विकास होता है और वैभव-ज्ञान की प्राप्ति होती है. इतना ही नहीं जिस घर में सरस्वती मां की पूजा अर्चना की जाती है, वहां पर सफलता, सुख, समृद्धि आती है. ऐसे में बसंत पंचमी पर सरस्वती मां की पूजा करने के साथ ही उन्हें कुछ विशेष चीजों का भोग लगाने का भी महत्व होता है. तो चलिए आपको बताते हैं कि बसंत पंचमी पर आपको किन चीजों का भोग लगाना चाहिए.
बसंत पंचमी 2025 शुभ मुहूर्त और पूजा विधि -
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का शुभारंभ 2 फरवरी को सुबह 9:14 पर होगा. वहीं, इसका समापन 3 फरवरी को सुबह 6:52 पर होगा, ऐसे में 2 फरवरी को ही उदया तिथि के अनुसार बसंत पंचमी मनाई जाएगी. इस दिन प्रातः काल में सबसे पहले उठकर स्नान करें, एक साफ चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर सरस्वती मां की प्रतिमा या चित्र की स्थापना करें. इसके बाद कलश रखें, भगवान गणेश और नवग्रह की पूजा कर सरस्वती मां की पूजा अर्चना करें और उन्हें यह नीचे दिए गए भोग जरूर लगाएं.
बसंत पंचमी पर मां सरस्वती को लगाएं ये भोग -
बेसन के लड्डू -
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को पीले रंग के मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए. ये अति उत्तम माना जाता है. ऐसे में आप उन्हें बसंत पंचमी के दिन बेसन के लड्डू भोग स्वरूप अर्पित कर सकते हैं. कहते हैं बेसन के लड्डू भोग में लगाने से मां सरस्वती प्रसन्न होती हैं और करियर के क्षेत्र में सफलता हासिल करने वालों को शुभ फल देती हैं. आप घर पर ही बेसन को घी में भूनकर इसमें चीनी, ड्राई फ्रूट्स डालकर लड्डू तैयार कर सकते हैं.
केसर रबड़ी -
बसंत पंचमी के दिन पूजा की थाली में मां सरस्वती को केसर रबड़ी का रखकर आप भोग लगा सकते हैं. इसे घर में बनाने के लिए आप एक लीटर दूध को अच्छी तरह से उबालकर एक चौथाई तक कर लीजिए, इसमें केसर के धागे डालें, काजू, बादाम, पिस्ता जैसे ड्राई फ्रूट्स डालकर ऊपर से चीनी डालें और मलाईदार केसर रबड़ी बनाएं. कहते हैं सरस्वती मां को रबड़ी का भोग लगाने से वह प्रसन्न होती हैं और ज्ञान का वरदान देती हैं.
पीले चावल बनाएं -
बसंत पंचमी के दिन आप पीले मीठे चावल का भोग भी मां सरस्वती को लगा सकते हैं. इसके लिए एक कप बासमती चावल को आधा घंटा भिगोकर रखें, फिर इसमें केसर या फिर पीले रंग का फूड कलर डालें. इसे ड्राई फ्रूट्स और चीनी की चाशनी के साथ पकाएं और मां सरस्वती को भोग लगाएं.
बूंदी या बूंदी के लड्डू का भोग -
बसंत पंचमी के मौके पर मां सरस्वती को बूंदी या बूंदी के लड्डू का भोग भी आप लगा सकते हैं. कहते हैं कि बूंदी का भोग लगाने से पढ़ाई में सफलता मिलती है और मनचाहा करियर आपको मिलता है. बूंदी, घर में ही बनाने के लिए बेसन का पतला बैटर तैयार करे. एक करछी की मदद से पतली-पतली बूंदी निकालें और गोल्डन ब्राउन होने तक तलें. इसे चाशनी में भिगोकर कुछ समय के लिए रख लें. इससे आप लड्डू भी बना सकते हैं या ऐसे ही मां सरस्वती को भोग लगा सकते हैं.
शौर्यपथ /क्या आप भी घूमने के शौकीन हैं और हर बार किसी नई जगह की तलाश में रहते हैं, तो हम यहां पर आपको भारत की 5 ऐसी जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर आपको अपने जीवन में एक बार जरूर घूमकर आना चाहिए. जो लोग प्रकृति प्रेमी हैं उनके लिए तो ये जगहें किसी स्वर्ग से कम नहीं है, तो बिना देर किए आइए जानते हैं.
भारत की 5 जगहें जिसे जरूर घूमना चाहिए
1 - धरती का स्वर्ग कश्मीर
अपने जीवन में एकबार कश्मीर जरूर घूमकर आना चाहिए. इसे 'धरती का स्वर्ग' भी कहा जाता है. आप यहां पर गुलमर्ग,सोनमर्ग,श्रीनगर घूम सकते हैं. ये सारी जगहें बेहद खूबसूरत हैं.
क्या घूमें
डल झील
ट्यूलिप गार्डन
शालीमार बाग
शंकराचार्य मंदिर
निशात बाग
निगीन झील
घूमने का सही समय क्या है - 'कश्मीर' में घूमने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से अक्टूबर तक है.
2- लक्षद्वीप
लक्षद्वीप भी भारत की सबसे खूबसूरत जगह है. अगर आपको बीच पसंद है, तो ये जगह बेस्ट है. यह कपल्स के लिए बेस्ट हनीमून प्लेस हो सकता है.
क्या घूमें
बांगरम द्वीप
कावारत्ती द्वीप
कलपेनी द्वीप
मरीन संग्रहालय
कदमत आयलैंड
घूमने का सही समय - अक्टूबर से मई के बीच है.
पहाड़ों की रानी 'हिमाचल'
हिमाचल को 'पहाड़ों की रानी' के नाम से भी जाना जाता है. यहां के पहाड़ और हरी भरी वादियां देखकर मन प्रफुल्लित हो जाएगा.
कहां घूमें
कसौल
मैक्लोड़गंज
लाहुल-स्पिति
धर्मशाला
शिमला
मनाली
कुल्लु
बीर-बिलिंग
मलाना
कांगड़ा
डलहौजी
खज्जियार
मशोबरा
पालमपुर
किन्नौर
कुफरी
घूमने का सही समय - हिमाचल प्रदेश में घूमने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मई तक का होता है.
4- केरल
मानसून में आप केरल भी घूम सकते हैं. यहां की हरियाली और नजारे आपके दिल में उतर जाएंगे. यहां से फिर आपका जाने का मन नहीं करेगा.
कहां घूमें
अल्लेप्पी
मुन्नार
वायनाड
थेक्कड़ी
श्री पद्मनाभास्वामी मंदिर
घूमने का सही समय - अक्टूबर से फरवरी तक
5- दार्जिलिंग
अगर आपको चाय के बगाने देखने हैं तो फिर आपके लिए दार्जिलिंग बेस्ट साबित हो सकता है. आप यहां पर अप्रैल से जून तक घूम सकते हैं.
कहां घूमें
नाइटेंगल पार्क
घूम रॉक
बतासिया लूप
विक्टोरिया वॉटरफॉल
टाइगर हिल
सेंथल झील दार्जिलिंग
घूमने का सही समय - दार्जिलिंग घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से जून और सितंबर से नवंबर तक.
ब्यूटी टिप्स /शौर्यपथ / सोने से पहले अपनी नाइट स्किन केयर रूटीन फॉलो करना बहुत जरूरी होता है. क्योंकि रात में त्वचा को 8 घंटे मिलता है जिसमें वो अपने आपको रिपेयर करती है. ऐसे में अगर आप विटामिन ई कैप्सूल को किसी अच्छे इंग्रीडियंट के साथ मिलाकर चेहरे पर लगाती हैं, तो यह आपकी त्वचा को कई फायदे पहुंचा सकता है. आप इसमें एलोवेरा जैल मिक्स कर लेते हैं, तो फिर इसके फायदे कई गुना बढ़ सकते हैं. इन दोनों को मिक्स करके फेस पर लगाने से स्किन से जुड़ी कई दिक्कतें दूर हो सकती हैं. इसी के बारे में हम आज आर्टिकल में आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं...
त्वचा की नमी बनाए रखता है
विटामिन ई और एलोवेरा जेल दोनों में ही मॉइश्चराइजिंग गुण होते हैं. एलोवेरा जैल त्वचा को गहरी नमी प्रदान करता है और विटामिन ई आपकी त्वचा को हाइड्रेटेड और मुलायम बनाता है.
रिंकल्स को कम करता है
विटामिन ई में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो त्वचा के सेल्स को रिपेयर करने में मदद करते हैं और झुर्रियों को कम करने में सहायक होते हैं.
त्वचा को शांत करता है
एलोवेरा जेल में मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण त्वचा को शांत करते हैं और सूजन को कम करते हैं. विटामिन-ई त्वचा को सूर्य की किरणों से होने वाली डैमेज को रिपेयर करता है और जलन कम करता है.
आंख के काले घेरे को कम करे
आंखों के नीचे पड़े काले घेरे को कम करने के लिए रात को सोने से पहले आंखों के नीचे विटामिन-ई का तेल और एलोवेरा जेल मिक्स करके लगाएं.
काले धब्बे हल्के पड़ सकते हैं
विटामिन ई कैप्सूल के नियमित उपयोग से मुंहासे के काले धब्बे हल्के पड़ सकते हैं. विटामिन ई त्वचा को साफ करता है और दाग-धब्बों को धीरे-धीरे हल्का करने में मदद करता है.
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ / हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. यह व्रत कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है. वैसे तो हर महीने 2 एकादशी का व्रत रखा आता है, लेकिन ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर पड़ने वाली निर्जला एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है. मान्यता है यह व्रत करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और पाप भी धुल जाते हैं. साथ ही, इससे मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. ऐसे में आइए जानते हैं इस साल कब है निर्जला एकादशी, पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि.
निर्जला एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त -
ज्येष्ठ माह का शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरूआत 06 जून को रात 02 बजकर 15 मिनट पर होगी जिसका समापन अगले दिन यानी 7 जून को सुबह 4 बजकर 47 मिनट पर होगा. उदयातिथि पड़ने के कारण यह व्रत 6 जून को रखा जाएगा. एकादशी का पारण द्वादशी के दिन यानी 7 जून को किया जाएगा.
निर्जला एकादशी 2025 अन्य शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 2 मिनट से 4 बजकर 42 मिनट तक रहेगा. वहीं, विजया मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 39 मिनट से 03 बजकर 35 मिनट तक, जबकि गोधूलि मुहूर्त शाम 07 बजकर 16 मिनट से 07 बजकर 36 मिनट तक
और निशिता मुहूर्त रात 12 बजे से 07 जून को रात 12 बजकर 40 मिनट तक रहेगा.
निर्जला एकादशी को ऐसे करें पूजा -
सबसे पहले प्रात: काल उठकर भगवान विष्णु का स्मरण कर निर्जला एकादशी के व्रत संकल्प करें.
फिर मंदिर व पूजा घर की अच्छे से सफाई करें पूजा की चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं
अब भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को स्थापित करें और विधि-विधान से पूजा करें. भगवान विष्णु के पीले रंग का वस्त्र और फूल चढ़ाएं.
इसके बाद फल, हल्दी, चंदन, अक्षत चढ़ाएं और खीर को भोग लगाएं.
विष्णु चालीसा का पाठ करें.
व्रत करने वालों को भोजन और वस्त्र का दान करना चाहिए.
निर्जला एकादशी के व्रत लाभ -
मान्यता है कि निर्जला एकादशी के दिन श्रीहरि की उपासना और व्रत करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति की होती है. सच्चे मन से यह व्रत करने से शरीर शुद्ध होता है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है. इससे व्यक्ति के अंदर आध्यत्मिकता का संचार होता है.
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ / बसंत पंचमी का दिन विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होता है. हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है और विधि-विधान से माता सरस्वती की पूजा की जाती है. माता सरस्वती को विद्या, बुद्धि, ज्ञान और विवेक की देवी माना जाता है. इस वर्ष प्रयागराज में महाकुंभ भी चल रहा है और बसंत पंचमी के दिन अमृत स्नान भी किया जाएगा. ऐसे में बसंत पंचमी का दिन और अधिक फलदायी बन गया है. इस वर्ष अद्भुत योग में महाकुंभ का आयोजन किया गया है और यह योग 144 वर्ष साल में एक बार ही बनते हैं. इसी के साथ बसंत पंचमी पर भी 144 वर्ष बाद विशेष शुभ योग बन रहे हैं. आइए जानते हैं कब है बसंत पंचमी और 144 वर्ष बाद बन रहे विशेष योग में क्या करना चाहिए.
बसंत पंचमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
माघ माह में शुक्ल पंचमी तिथि 2 फरवरी, रविवार को सुबह 9 बजकर 14 मिनट से शुरू होकर 3 फरवरी सोमवार को सुबह 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगी. देशभर में बसंत पंचमी का त्योहार 2 फरवरी रविवार को मनाया जाएगा.
बसंत पंचमी 2025 शुभ योग
पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पंचमी तिथि पर शनि देव सुबह 8 बजकर 51 मिनट पर पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में गोचर करेंगे. पंचमी तिथि को शिव योग, सिद्ध साध्य योग और रवि योग भी बन रहे हैं.
बसंत पंचमी के दिन करें अमृत स्नान
इस वर्ष प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है और महाकुंभ का आयोजन 12 वर्ष के बाद किया जाता है. हालांकि इस बार महाकुंभ के अवसर पर बन रहे योग पूरे 144 वर्ष के बाद बने हैं. महाकुंभ में अमृत स्नान का बहुत महत्व होता है और बसंत पंचमी के दिन भी अमृत स्नान होगा. बसंत पंचमी को संगम नगरी में गंगा यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान करने से अमृत स्नान के लाभ के साथ-साथ विद्या की देवी मां सरस्वती की कृपा भी प्राप्त होगी और विद्या, बुद्धि और विवेक बढ़ेगा.
कब करें स्नान
बसंत पंचमी की तिथि 2 फरवरी रविवार को सुबह 9 बजकर 14 मिनट से शुरू होकर 3 फरवरी सोमवार को सुबह 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगी. 2 फरवरी को बसंत पंचमी का व्रत रखें और 3 फरवरी को संगम स्नान का लाभ लें. 3 फरवरी को ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5 बजकर 33 मिनट से 6 बजकर 21 मिनट तक स्नान का सबसे अच्छा मुहूर्त है. इस समय बन रहे खास योग कई वर्षों बाद ही बनते हैं. इस शुभ मुहूर्त में स्नान से कई गुणा लाभ प्राप्त होगा.
बसंत पंचमी की पूजा का समय
बसंत पंचमी के दिन शुभ मुहूर्त में पूजा से माता सरस्वती की कृपा प्राप्त की जा सकती है. 2 फरवरी को सुबह 7 बजकर 9 मिनट से शुरू होकर देर रात तक पूजा के लिए शुभ समय है. इसके साथ ही सुबह 9 बजकर 14 मिनट तक शिव योग रहेगा. इस समय पूजा करने से शिक्षा के क्षेत्र में शुभ परिणाम प्राप्त हो सकते हैं. इसके बाद सिद्ध योग लग जाएगा. इस दिन सुबह पहले उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र रहेगा और उसके बाद रेवती नक्षत्र लग जाएगा. बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा में बच्चों और पढ़ाई कर रहे लोगों को जरूर शामिल होना चाहिए. इससे माता की कृपा प्राप्त होती है और बुद्धि विवेक बढ़ता है. सरस्वती पूजा के दिन बच्चों से पढ़ाई लिखाई से जुड़ी चीजों का दान करवाना भी उत्तम होता है.
आस्था /शौर्यपथ /भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला का अद्भुत मार्गदर्शन प्रदान करती है. यह ग्रंथ मानसिक शांति, आत्म-संयम और आध्यात्मिक ज्ञान का अनमोल स्रोत है. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के हर पहलू में संतुलन बनाए रखने और मन को शांत रखने के लिए अनेक उपदेश दिए हैं. भगवद गीता जीवन की चुनौतियों से निपटने और आंतरिक शांति पाने के लिए कालातीत ज्ञान प्रदान करती है.
भगवद गीता, एक शाश्वत आध्यात्मिक मार्गदर्शक, एक शास्त्र से कहीं ज्यादा है; यह जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए एक मैनुअल है. कुछ श्लोक बेचैन मन को शांत करने और आंतरिक शांति पाने में मदद करते हैं. यहां गीता के कुछ सबसे गहन श्लोक दिए गए हैं जो आंतरिक शांति प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं.
भगवद गीता के ये 5 श्लोक देते हैं मानसिक शांति |
1. "चंचलं हि मनः कृष्ण, प्रमथि बलवद दृढम्" (अध्याय 6, श्लोक 34)
अनुवाद: "मन चंचल, अशांत, मजबूत और जिद्दी है; इसे कंट्रोल करना हवा को कंट्रोल करने जैसा कठिन है." यह श्लोक व्यक्ति के विचारों को मैनेज करने की चुनौती को स्वीकार करता है, हमें आश्वस्त करता है कि हम इस संघर्ष में अकेले नहीं हैं. यह श्लोक आंतरिक शांति की तलाश करते हुए सेल्फ-डिसिप्लिन और धैर्य का अभ्यास करने की याद दिलाता है.
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2. "उद्धारेद आत्मनात्मानं, न आत्मनं अवसादयेत्" (अध्याय 6, श्लोक 5)
अनुवाद: “मन के माध्यम से ही स्वयं को ऊपर उठाना चाहिए और स्वयं को नीचा नहीं करना चाहिए. मन मित्र और शत्रु दोनों हो सकता है."
यह श्लोक मानसिक उथल-पुथल पर काबू पाने में आत्म-जागरूकता और सकारात्मक सोच की शक्ति पर प्रकाश डालता है. अपने विचारों पर नियंत्रण करके, हम मन को संकट के बजाय सहारे के स्रोत में बदल सकते हैं.
3. "श्रेयं स्वधर्मो विगुणः, परधर्मात स्वनुष्ठितत्" (अध्याय 3, श्लोक 35)
अनुवाद: “किसी दूसरे के कर्तव्य को पूरा करने की अपेक्षा, अपना कर्तव्य निभाना बेहतर है." यह शिक्षा तुलना और ईर्ष्या को दूर करने में मदद करती है, जो मानसिक अशांति के मुख्य कारण हैं. अपने अद्वितीय उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करने से शांति और संतुष्टि मिलती है.
4. "योग-स्थः कुरु कर्माणि, संगम त्यक्त्वा धनंजय." (अध्याय 2, श्लोक 48)
अनुवाद: "योग में दृढ़ रहते हुए, आसक्ति का त्याग करते हुए और सफलता और असफलता में समभाव रखते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करें."
यह श्लोक हमें कर्म योग की कला सिखाता है, परिणामों से आसक्त हुए बिना अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना. यह हमें जीवन के उतार-चढ़ाव के बीच मन को शांत करने के लिए एक शक्तिशाली साधन, समभाव अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है.
5. "मनमना भव मद्भक्तो, मद्यजि मम नमस्कुरु" (अध्याय 9, श्लोक 34)
अनुवाद:“अपना मन मुझ पर केन्द्रित करो, मुझमें समर्पित रहो, मेरी पूजा करो और मुझे प्रणाम करो.”
इस श्लोक से शक्ति के प्रति समर्पण करने से मानसिक बोझ से मुक्ति मिलती है. यह श्लोक भक्ति और एकाग्र ध्यान पर जोर देता है, जो विचलित मन को शांत करने में मदद करते हैं.
क्या कहती है रिसर्च?
संस्कृत के कई पहलुओं पर खोज की गई है और अभी भी जारी है. इसी कड़ी में सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च की नई स्टडी से पता चलता है कि कुछ श्लोक सुनने और उनका अनुसरण करने से ब्रेन के कई पार्ट एक्टिव होते हैं. गीता, रामायण और वैदिक मंत्रों के श्लोक न केवल दिमाग को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं, बल्कि डिप्रेशन और एंग्जाइटी में धकेलने वाले विचारों को भी दूर रखते हैं. एमआरआई स्कैन से पता चला कि श्लोक सुनने से मस्तिष्क का डिफॉल्ट मोड नेटवर्क कम सक्रिय होता है और अटेंशन मोड नेटवर्क मजबूत होता है. इससे चिंता और तनाव कम होता है.
ब्यूटी टिप्स /शौर्यपथ / आजकल के समय में बालों की देखभाल करना एक बड़ी चुनौती बन गया है. प्रदूषण, गलत खानपान, तनाव और केमिकल वाले प्रोडक्ट्स के कारण बालों की क्वालिटी खराब हो जाती है. ऐसे में प्राकृतिक उपायों का सहारा लेना सबसे बेहतर होता है. एलोवेरा जेल जिसे सदियों से औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है, बालों के लिए एक अद्भुत उपचार साबित हो सकता है. आइए जानें कि बालों पर एलोवेरा जेल लगाने से क्या फायदे होते हैं और इसे कैसे इस्तेमाल किया जाए.
बालों के लिए एलोवेरा के फायदे |
एलोवेरा में विटामिन, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट्स की भरपूर मात्रा होती है. यह न सिर्फ बालों को पोषण देता है, बल्कि उन्हें मजबूत और चमकदार भी बनाता है.
1. डैंड्रफ को कम करता है
एलोवेरा में एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो स्कैल्प की सफाई करके डैंड्रफ को कम करने में मदद करते हैं. यह सिर की खुजली और जलन को भी शांत करता है.
2. बालों का टूटना रोकता है
एलोवेरा में मौजूद एंजाइम और अमीनो एसिड बालों की जड़ों को मजबूत करते हैं. यह बालों के झड़ने को रोकता है और उन्हें घना बनाता है.
3. बालों में प्राकृतिक चमक लाता है
एलोवेरा जेल बालों को डीप कंडीशनिंग प्रदान करता है. यह बालों को मॉइश्चराइज करके उन्हें रेशमी और चमकदार बनाता है.
4. बालों की ग्रोथ को बढ़ावा देता है
एलोवेरा में मौजूद प्रोटियोलिटिक एंजाइम डेड स्किन सेल्स को हटाकर स्कैल्प को स्वस्थ बनाते हैं. यह बालों के विकास में मदद करता है.
5. फ्रिज़ी बालों को कंट्रोल करता है
अगर आपके बाल रूखे और उलझे हुए हैं, तो एलोवेरा जेल का उपयोग आपके बालों को मैनेजेबल बनाने में मदद करता है.
एलोवेरा जेल लगाने का सही तरीका |
शुद्ध एलोवेरा जेल का इस्तेमाल करें: आप बाजार से एलोवेरा जेल खरीद सकते हैं या ताजे एलोवेरा पत्तों से जेल निकाल सकते हैं. ध्यान रखें कि यह शुद्ध और केमिकल-फ्री हो.
स्कैल्प पर मसाज करें: एलोवेरा जेल को हल्के हाथों से स्कैल्प पर लगाएं और 5-10 मिनट तक मसाज करें. यह स्कैल्प में ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ावा देता है.
बालों की लंबाई पर लगाएं: स्कैल्प के साथ-साथ बालों की पूरी लंबाई पर जेल लगाएं. यह बालों को कंडीशनिंग प्रदान करेगा.
30 मिनट तक छोड़ दें: जेल को कम से कम 30 मिनट तक बालों में लगा रहने दें। आप चाहें तो इसे रातभर भी लगा सकते हैं।
माइल्ड शैम्पू से धोएं: एलोवेरा जेल लगाने के बाद बालों को माइल्ड शैम्पू से धो लें। यह बालों से गंदगी हटाने के साथ उन्हें सॉफ्ट और सिल्की बनाएगा.
एलोवेरा जेल के साथ अन्य प्राकृतिक चीजों का उपयोग:
एलोवेरा और नारियल तेल
2 चम्मच एलोवेरा जेल में 1 चम्मच नारियल तेल मिलाएं.
इसे बालों और स्कैल्प पर लगाएं और 1 घंटे बाद धो लें.
एलोवेरा और दही
2 चम्मच एलोवेरा जेल में 2 चम्मच दही मिलाकर हेयर मास्क बनाएं.
इसे बालों पर लगाएं और 30 मिनट बाद धो लें.
एलोवेरा और नींबू का रस
2 चम्मच एलोवेरा जेल में 1 चम्मच नींबू का रस मिलाएं.
इसे स्कैल्प पर लगाएं। यह डैंड्रफ के लिए बहुत फायदेमंद है.
अगर आप नियमित रूप से एलोवेरा जेल का उपयोग करते हैं, तो कुछ ही हफ्तों में आपके बालों की सेहत में सुधार नजर आने लगेगा. यह बालों को न केवल पोषण देगा, बल्कि उन्हें प्राकृतिक चमक और मजबूती भी प्रदान करेगा.
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ / हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत महत्व है. इसे भगवान विष्णु की पूजा का एक जरिया माना जाता है. इन्हीं एकादशियों में से एक है षटतिला एकादशी, जो अपने विशेष महत्व के लिए जानी जाती है. षटतिला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा मिलती है. इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा भी की जाती है, जिससे जीवन में आर्थिक तरक्की मिलती है. देवी लक्ष्मी सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद देती हैं. माना जाता है कि व्रत करने वाले भक्त को इस दिन सुबह-सुबह स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. पूजा के समय विशेष रूप से तिल का उपयोग किया जाता है. पूजा में तिल इसलिए शामिल करते हैं क्योंकि ये शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माने जाते हैं. इस दिन तिल का दान करना भी विशेष फलदायी माना जाता है.
इस दिन विधिपूर्वक करनी चाहिए पूजा
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल षटतिला एकादशी 25 जनवरी, शनिवार को पड़ रही है. ये एकादशी हर हिंदू परिवार के लिए पवित्र मानी जाती है और इस दिन विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए है. कहा जाता है कि इस दिन व्रत करने से व्रती के सारे पाप नष्ट होते हैं, और उसका जीवन सुखमय होता है. उसे अन्य जन्मों में भी इसका शुभ फल मिलता है. इसलिए षटतिला एकादशी का व्रत न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्व रखता है. इस व्रत से साधक के जीवन में पॉजिटिव एनर्जी आती है और वो ईश्वर की कृपा का पात्र बनता है.
कब है षटतिला एकादशी का शुभ मुहूर्त
षटतिला एकादशी का शुभ मुहूर्त 24 जनवरी की शाम 07 बजकर 25 मिनट से शुरू हो रहा है और ये 25 जनवरी की रात 08 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगा. उदया तिथि के आधार पर व्रत 25 जनवरी को किया जाएगा. यानी षटतिला एकादशी 25 जनवरी दिन शनिवार को मनाई जाएगी. इस व्रत को करते समय ये ध्यान देना जरूरी है कि पवित्रता पूरी तरह से बनी रहे. इस दिन दान पुण्य का भी विशेष महत्व है, इसलिए जरूरतमंदों को तिल, अन्न आदि का दान कर सकते हैं.
मां तुलसी की पूजा कैसे करें ?
षटतिला एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जागना शुभ माना जाता है. इस समय उठकर सबसे पहले अपने नित्य के क्रियाकलापों को पूरा करें और फिर पवित्र जल से स्नान कर लें. स्नान के बाद साफ कपड़े पहन लें और पूजा के लिए तैयार हो जाएं. अब मां तुलसी की पूजा शुरू करें. सबसे पहले तुलसी जी के पौधे के पास एक साफ जगह पर बैठ जाएं. तुलसी माता का श्रृंगार करें, इसके लिए आप उन्हें लाल चुनरी और चूड़ियां अर्पित कर सकते हैं. साथ ही सिंदूर भी अर्पित करें. ये माना जाता है कि ऐसा करने से देवी तुलसी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं. इसके बाद तुलसी जी को हल्दी, रोली और चंदन अर्पित करें. ये पूजा की अनिवार्य विधि है, जिसे करने से पवित्रता और शुद्धता का भाव आता है. पूजा जब खत्म होने वाली हो तो तुलसी जी के पास एक घी का दीया जलाएं. ये दीया ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक होता है जो जीवन के अंधकार को दूर करता है.
मां तुलसी के लिए करें ये उपाय
एकादशी के दिन तुलसी के पौधे के चारों ओर कलावा बांधें. ये उपाय आपके जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में मदद करता है और सुख-शांति लाता है. इस दिन तुलसी पूजन में इस मंत्र का जाप करें.
एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए और जल अर्पित नहीं करें. ऐसा माना जाता है कि मां तुलसी इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त एकादशी का निर्जला व्रत करती हैं. जल अर्पित करने या पत्ते तोड़ने से उनका व्रत भंग हो सकता है, जिससे उन्हें क्रोध आ सकता है.
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ / 13 जनवरी से शुरू हुए कुंभ मेले के दो अमृत स्नान के बाद श्रद्धालुओं को तीसरे अमृत स्नान (शाही स्नान) का बेसब्री से इंतजार है, जो मौनी अमावस्या यानी 29 जनवरी को है. बीते 2 अमृत स्नान की तरह ही मौनी अमावस्या पर भी देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम नदी के किनारे एकत्रित होकर पुण्य फल की प्राप्ति करेंगे. इस बार मौनी अमावस्या कई मायनों में खास है क्योंकि शिववास सहित कई और मंगलकारी योग बन रहें हैं. इस दिन कुंभ स्नान-दान और भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा अर्चना करने से अक्षय फल की प्राप्ति होगी. ऐसे में आइए जानते हैं मौनी अमावस्या के दिन स्नान-दान का शुभ मुहूर्त और मंगलकारी योग....
मौनी अमावस्या शुभ मुहूर्त -
मौनी अमावस्या का मुहूर्त 28 जनवरी को शाम 07:35 मिनट से शुरू होगा, जो अगले दिन यानी 29 जनवरी को शाम 06:05 मिनट पर समाप्त होगा. हिन्दू धर्म में उदयातिथि की विशेष मान्यता है इसलिए साधक 29 जनवरी के दिन स्नान-ध्यान कर भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा कर सकते हैं.
मौनी अमावस्या को कौन से योग बन रहे हैं -
मौनी अमावस्या पर शिववास के अलावा सिद्धि योग भी बन रहा है. शिववास योग 29 जनवरी को शाम 06:05 मिनट तक है जबकि सिद्धि योग रात 09:22 मिनट तक है. मान्यता है इन योगों में भगवान शिव की पूजा करने से साधक की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
मौनी अमावस्या पर कौन से नक्षत्र बन रहे हैं -
इस दिन श्रावण एवं उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का संयोग बन रहा है.
मौनी अमावस्या महत्व -
मौनी अमावस्या के दिन स्नान-दान करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है. साथ ही सारी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं. साथ ही पापों से मुक्ति मिलती है, इसके अलावा मौनी अमावस्या के दिन भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा करने से कुंडली में अशुभ ग्रहों का प्रभाव भी कम होता है.
अन्य शाही स्नान की तारीख
चौथा अमृत स्नान 03 फरवरी 2025, बसंत पंचमी
पांचवां अमृत स्नान 12 फरवरी 2025, माघ पूर्णिमा
छठा अमृत स्नान 26 फरवरी 2025, महाशिवरात्रि
मनेन्द्रगढ़/शौर्यपथ /छत्तीसगढ़ राज्य की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं में गहरी जड़ें जमाए हुए कई पर्व और उत्सव हैं, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि समाज में सामूहिकता, भाईचारे और सामाजिक सहयोग की भावना को भी बढ़ावा देते हैं। इनमें से एक प्रमुख और विशिष्ट पर्व छेरछेरा है, जो विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्र में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति का आदर्श प्रस्तुत करता है और किसानों के जीवन से जुड़ा हुआ है। छेरछेरा पर्व कृषि पर आधारित होने के कारण यह नए कृषि मौसम और फसल कटाई के बाद मनाया जाता है, जिसे हर साल पौष पूर्णिमा के दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
समाज में सामूहिकता और सहयोग का प्रतीक है छेरछेरा
छेरछेरा पर्व की शुरुआत में ग्राम देवताओं की पूजा होती है, जिसे ग्रामीण अपने क्षेत्र की सुरक्षा के लिए तथा कृषि की उन्नति की कामना से करते हैं। यह पर्व फसल के कटाई के बाद एक सामूहिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो समाज के सभी वर्गों को एकजुट करता है। इस दिन विशेष रूप से छोटे बच्चे, युवक और युवतियां हाथ में टोकरी या बोरियां लेकर घर-घर छेरछेरा मांगने निकलते हैं। वे ष्छेर छेरता माई मोरगी मार दे, कोठे के धान ला हेर देष् जैसे पारंपरिक गीत गाते हुए घरों के सामने जाते हैं और वहां से नया चावल और नकद राशि प्राप्त करते हैं। यह सब एक सामूहिक खुशी का हिस्सा होता है, जो पूरे गांव को उत्साहित और सामूहिक रूप से एकजुट करता है।
जनजातीय समुदाय की धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं
समाज की एकता और सामूहिक सहयोग को दर्शाते हुए यह पर्व केवल एक पारंपरिक उत्सव ही नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक सहयोग का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी बन जाता है। छेरछेरा के दौरान लोगों द्वारा इकट्ठा किया गया चावल और धन गरीब और जरूरतमंद परिवारों में बांटा जाता है, जिससे ग्रामीणों के बीच सहकारिता और एकजुटता की भावना और मजबूत होती है। इस प्रक्रिया में पारंपरिक रूप से अनाज को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का काम किया जाता है, जिसे ग्रामीण बैंकिंग प्रणाली के रूप में देखा जा सकता है। यह प्रणाली सामाजिक सुरक्षा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां ग्रामीण अपनी जरूरतों को साझा करते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं।
प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान और जैव विविधता संरक्षण
सरगुजा में छेरछेरा पर्व का विशिष्ट रूप और यहां की परंपराएं विशेष महत्व रखती हैं। सरगुजा के गांवों में यह पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है, और यह स्थानीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यहां के बच्चे विशेष रूप से छेरछेरा के दिन हर घर के सामने पहुंचते हैं, और इस दिन उन्हें नया चावल और धन प्राप्त होता है। यह पर्व न केवल कृषि का उत्सव है, बल्कि यह लोकनृत्य, संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से भी अपनी अहमियत बनाए रखता है। गांवों में छेरछेरा के दौरान नृत्य और गीत की विशेष भूमिका होती है। महिलाएं जहां सुगा गीत गाती हैं, वहीं पुरुष शैला गीत गाकर नृत्य करते हैं। साथ ही युवा वर्ग भी डंडा नृत्य करते हुए घर-घर पहुंचता है। यह नृत्य और गीत स्थानीय परंपराओं और संस्कृति का हिस्सा होते हैं, जो समाज की एकता और विविधता को बढ़ावा देते हैं।
इसके अलावा छेरछेरा के दौरान होने वाले कला और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ग्रामीण अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इसमें लोकनृत्य, संगीत, नाटक और अन्य प्रदर्शन शामिल होते हैं, जिनका उद्देश्य स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करना और संस्कृति को संजोना होता है।
प्रकृति और कुल देवी देवताओं का करते है सम्मान
छेरछेरा पर्व का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह सामाजिक समरसता का प्रतीक है। इस पर्व के माध्यम से सभी लोग अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर एक साथ मिलकर खुशी मनाते हैं और एक-दूसरे से सहयोग करते हैं। यह पर्व उन सभी परंपराओं का जीवंत उदाहरण है, जो हमारे समाज में भाईचारे और प्यार की भावना को बढ़ावा देती हैं। छेरछेरा के दिन विभिन्न गांवों में खेलकूद, प्रतियोगिताएं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिनमें लोग अपनी कला और कौशल का प्रदर्शन करते हैं। ये कार्यक्रम न केवल मनोरंजन का साधन होते हैं, बल्कि यह समाज में सामूहिकता और सामूहिक सहयोग की भावना को भी सुदृढ़ करते हैं।
छेरछेरा पर्व में प्रकृति और देवताओं का सम्मान एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है। इस पर्व के दौरान लोग न केवल अपने खेतों से काटे गए धान की पूजा करते हैं, बल्कि वे पेड़-पौधों, जल, मिट्टी और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का भी सम्मान करते हैं। यह पर्व पर्यावरण के संरक्षण और जैव विविधता के प्रति जागरूकता फैलाने का एक बड़ा अवसर होता है। लोक पूजा के माध्यम से लोग यह संदेश देते हैं कि हम प्रकृति के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम पर्यावरण का संरक्षण करें।
जैव विविधता के संरक्षण में छेरछेरा पर्व का योगदान महत्वपूर्ण है। पर्व के दौरान प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान और संरक्षण किया जाता है, और यह संदेश फैलाया जाता है कि अगर हम प्रकृति का ध्यान नहीं रखेंगे तो हमारा अस्तित्व संकट में पड़ सकता है। यह पर्व न केवल कृषि और पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह सांस्कृतिक संरक्षण का भी आदर्श प्रस्तुत करता है, जिसमें लोकगीत, नृत्य और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।
जनजातीय समुदायों के लिए छेरछेरा पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। आदिवासी लोग इसे न केवल एक कृषि पर्व के रूप में मानते हैं, बल्कि इसे अपने जीवन और संस्कृति के एक अभिन्न हिस्सा के रूप में देखते हैं। जनजातीय समुदायों में यह विश्वास है कि उनके देवता और प्रकृति की शक्तियां उनके जीवन के हर पहलू में मौजूद हैं, और छेरछेरा पर्व के माध्यम से वे इन शक्तियों का सम्मान करते हैं। जनजातीय समुदाय के लोग इस दिन विशेष रूप से प्रकृति पूजा करते हैं और अपने ग्राम देवताओं को धन्यवाद अर्पित करते हैं। उनका मानना है कि यह पर्व उन्हें उनके जीवन की कठिनाइयों से उबारने के लिए देवताओं का आशीर्वाद प्रदान करता है। साथ ही, इस दिन जनजातीय समुदाय के लोग नई फसल को देवताओं को समर्पित करते हैं, ताकि आगामी वर्ष में उनकी कृषि समृद्ध हो और परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ रहें। इस पर्व के दौरान जनजातीय समुदाय परंपरागत धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, जिसमें वे अपने देवताओं के सामने विशेष रूप से अनाज, फल और फूल चढ़ाते हैं, ताकि उन पर देवताओं की कृपा बनी रहे। वे इस दिन को एक तरह से धार्मिक आभार के रूप में मनाते हैं, जिसमें उनके समुदाय की समृद्धि, शांति और सौहार्द की कामना की जाती है।
छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व न केवल किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, बल्कि यह समाज में सामूहिकता, भाईचारे और सहयोग की भावना को भी मजबूत करता है। यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि समाज के हर वर्ग को एकजुट होकर अपने सुख-दुख साझा करने चाहिए और प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना चाहिए।
इस पर्व का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है, और यह छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। चाहे वह नृत्य और संगीत हो, लोकगीत हो या फिर समाजिक सहयोग हो, छेरछेरा पर्व ने हमेशा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और भविष्य में भी यह इसी तरह से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को संजोने का काम करेगा।
ब्यूटी टिप्स /शौर्यपथ /रसोई के मसालों में एक नहीं बल्कि कई गुण पाए जाते हैं जो ना सिर्फ त्वचा बल्कि बालों के लिए भी फायदेमंद होते हैं. इन्हीं चीजों की गिनती में आते हैं मेथी के दाने. बालों पर मेथी के दाने लगाने पर ना सिर्फ बालों का टूटना और झड़ना कम होता है बल्कि स्कैल्प की अच्छी सफाई हो जाती है, स्कैल्प पर जमी डेड स्किन सेल्स हटती हैं, बालों का बेजानपन दूर होता है और साथ ही बाल सिल्की और सॉफ्ट होने लगते हैं. मेथी के दाने विटामिन सी, आयरन, पौटेशियम, निकोटिनिक एसिड और आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर होते हैं. ऐसे में यहां जानिए बालों पर किस तरह से मेथी के दाने लगाए जा सकते हैं.
मुलायम बालों के लिए मेथी के दाने |
रात में 2 से 3 चम्मच मेथी के दाने पानी में भिगोकर रख दें. आप बालों की लंबाई के अनुसार भी मेथी के दाने ले सकते हैं. इन दानों को अगली सुबह पीसें और पेस्ट तैयार कर लें. यह पेस्ट बालों की जड़ों से लेकर सिरों तक लगाया जा सकता है. इसे बालों पर आधे से एक घंटे लगाकर रखें और फिर धोकर हटा लें. बालों में चमक आ जाती है.
सिर की खुजली के लिए
अगर डैंड्रफ या ड्राइनेस के कारण स्कैल्प पर खुजली होती है तो इसके लिए मेथी के दानों के पेस्ट में अंडे मिलाकर लगाए जा सकते हैं. आपको पूरा अंडा नहीं लेना है बल्कि अंडे के पीले हिस्से को मेथी के दानों में मिलाकर सिर पर लगाना है. इसे आधा घंटा लगाकर रखें और फिर धोकर हटा लें.
बाल बढ़ाने के लिए
मेथी के गुण बालों को बढ़ने में मदद करते हैं. ऐसे में एक कटोरी नारियल के तेल में एक चम्मच मेथी के दाने डालकर पकाएं. जब मेथी के दाने अच्छी तरह पक जाएं तो इस तेल को ठंडा होने के लिए रख दें. बालों पर हफ्ते में 2 से 3 बार इस तेल को हल्का गर्म करके लगाया जा सकता है. मेथी का यह तेल बालों को मजबूती देता है और हेयर ग्रोथ बूस्ट करता है.
हेयर फॉल रोकने के लिए
लगातार झड़ रहे बालों को मजबूत बनाने के लिए मेथी को रातभर भिगोकर रखें और अगली सुबह पीसकर पेस्ट बनाकर सिर पर लगाएं. इस पेस्ट में नींबू का रस मिलाया जा सकता है. इसे सिर पर 20-30 मिनट लगाकर रखने के बाद धोकर हटा लें. बालों को जड़ों से सिरों तक मजबूती मिलती है.
डैंड्रफ हटाने के लिए
सिर पर जमे डैंड्रफ को कम करने के लिए मेथी के पेस्ट में दही मिलाकर हेयर मास्क बना लें. इस हेयर मास्क को सिर पर आधा घंटा लगाकर रखने के बाद धोकर हटाएं. हफ्ते में 3 बार इस नुस्खे को आजमाया जाए तो सिर से डैंड्रफ पूरी तरह हट जाता है.
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ /इस वर्ष का महाकुंभ मेला संगम नगरी प्रयागराज में लगने वाला है. प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम पर महाकुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू होगा. धर्म और आस्था का सबसे बड़ा मेला महाकुंभ 12 साल के बाद लगता है और इसमें देशभर से साधु संतों के अलावा बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं. मान्यता है कि कुंभ स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन भर के पापों से मुक्ति मिल जाती है. अनुमान है कि इस साल महाकुंभ मेले में लगभग 40 करोड़ लोग आस्था की डुबकी लगाएंगे.
महाकुंभ मेला 45 दिन चलेगा और इस दौरान सबसे महत्वपूर्ण शाही स्नान की तिथियां होती हैं. उत्तर प्रदेश प्रशासन की ओर से मेले को लेकर पूरी तैयारियां की गई हैं. प्रशासन की ओर से मेला क्षेत्र में व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कुछ नियम बनाए गए है. आइए जानते हैं महाकुंभ मेले में उत्तर प्रदेश प्रशासन की ओर से क्या नियम बनाए गए हैं.
मेला क्षेत्र के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के नियम
इन चीजों को लेकर न जाएं
उत्तर प्रदेश सरकार के नियम के अनुसार, श्रद्धालुओं को मेला क्षेत्र में कीमती सामान, अनावश्यक भोजन सामग्री और कपड़े ले जाने की मनाही की गई है. मेले में भीड़भाड़ के कारण कीमती सामान के खोने का डर रहता है. अनावश्यक भोजन सामग्री के कारण मेला क्षेत्र में गंदगी फैलने का खतरा रहता है.
अनजान लोगों पर न करें भरोसा
सरकार ने श्रद्धालुओं से मेले में अनजान लोगों से सावधान रहने और उन पर भरोसा नहीं करने के लिए कहा है. मेले में खो जाने या कोई अन्य परेशानी आने पर प्रशासन की ओर से की गई व्यवस्था से ही मदद लेने की अपील की गई है.
नदी में प्रदूषण
मेला क्षेत्र में नदी में पूजन सामग्री फेंकने पर भी सख्त मनाही है. नदी में पूजा के दौरान उपयोग किए गए फूल पत्ती व अन्य सामग्री प्रवाहित करने पर भी रोक लगाई गई है.
रहें भीड़ से दूर
प्रशासन की ओर से ऐसे लोग जो इंफेक्शन वाली बीमारी से पीड़ित हैं उन्हें भीड़भाड़ और मेला क्षेत्र से दूर रहने को कहा गया है.
प्लास्टिक की थैलियों पर रोक
प्रयाग शहर और मेला क्षेत्र में प्लास्टिक की थैलियों के उपयोग पर रोक लगाई गई है. इसके साथ ही खुले में शौच करने की भी मनाही है.
नियमों का करें पालन
महाकुंभ मेले में किसी तरह की परेशानी से बचने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से बनाए गए इन नियमों का पालन जरूर करें. ये सभी नियम लोगों की सुविधा के लिए बनाए गए हैं. इनका पालन करने से मेले में सभी को कई तरह की परेशानियों से बचने में मदद मिलेगी.
इन दिनों को होगा शाही
13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा का शाही स्नान
14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति का शाही स्नान
29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या का शाही स्नान
3 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी का शाही स्नान
12 फरवरी को माघ पूर्णिमा का शाही स्नान
26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर्व का शाही स्नान
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ /दक्षिण भारत के प्रमुख पर्वों में से एक स्कंद षष्ठी पर्व भी है, जो भगवान कार्तिकेय को समर्पित होता हैं. इसे तमिलनाडु में कंद षष्ठी भी कहा जाता है, कहते हैं इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती केपुत्र कार्तिकेय की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने से जीवन में आने वाली सभी परेशानियों से छुटकारा मिल सकता है और भक्तों की मनोकामना भी पूरी होती हैं. तो चलिए हम आपको बताते हैं कि इस बार स्कंद षष्ठी की पूजा किस दिन की जाएगी, आपको किस तरह से भगवान कार्तिकेय की पूजा अर्चना करनी चाहिए और इसका महत्व क्या है.
स्कंद षष्ठी पर्व 2025
हिंदू पंचांग के अनुसार, स्कंद षष्ठी पर्व पौष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, जो इस बार 4 जनवरी को देर रात 10:00 बजे से शुरू होकर अगले दिन 5 जनवरी 2025 को रात 8:15 तक रहेगा, ऐसे में उदया तिथि के अनुसार 5 जनवरी 2025, रविवार के दिन ही स्कंद षष्ठी पर्व मनाया जाएगा. यह साल की पहली षष्ठी होगी, जब भगवान कार्तिकेय की पूजा अर्चना की जाएगी.
इस तरह करें भगवान कार्तिकेय की पूजा
स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिक की पूजा करने के लिए सबसे पहले स्नान करके नए या स्वच्छ वस्त्र धारण करें. घर के मंदिर की साफ सफाई करें या घर में एक साफ सुथरा स्थान चुनें. वहां पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं, ऊपर से फूलों से सजाएं, भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या चित्र को एक आसन पर स्थापित करें. पूजा के लिए जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, चंदन, अक्षत, फूल, धूप, दीप आदि चीजों को एकत्रित करें. भगवान कार्तिकेय के सामने दीपक जलाएं, इसके बाद गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से उनका अभिषेक करें. तत्पश्चात् भगवान को चंदन और अक्षत लगाकर उनका तिलक करें, भगवान को फूल अर्पित करें, खासकर कमल का फूल उन्हें जरूर चढ़ाएं. इसके अलावा भगवान को फल, मिठाई और अन्य नैवेद्य अर्पित करें. अंत में भगवान कार्तिकेय की आरती करें, स्कंद षष्ठी व्रत कथा का पाठ करें और सच्चे मन से भगवान कार्तिकेय की आराधना करें. ध्यान रखें कि पूजा के समय किसी प्रकार का वाद-विवाद झगड़ा ना करें और इस दिन मांस मदिरा का सेवन नहीं करें.
स्कंद षष्ठी पूजा में करें इन मंत्रों का जाप
ॐ षडाननाय नमः
ॐ स्कन्ददेवाय नमः
ॐ शरवणभवाय नमः
ॐ कुमाराय नमः
स्कंद षष्ठी पूजा का महत्व
हिंदू धर्म में स्कंद षष्ठी पूजा का विशेष महत्व है, जो भगवान कार्तिकेय को समर्पित होता हैं, इन्हें युद्ध का देवता कहा जाता हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान कार्तिकेय ने असुरों के राजा तारकासुर का संघार किया था, यह पर्व साहस, दृढ़ता और बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है. कहते हैं कि जो दंपति इस दिन सच्चे मन से ध्यान कर कार्तिकेय भगवान की पूजा करते हैं, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है. इस दिन व्रत और पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. मान्यताओं के अनुसार, यह भी कहा जाता है कि स्कंद षष्ठी पर पूजा करने से घर में जो भी बुरी शक्तियां होती है उनका नाश होता है और भगवान कार्तिकेय की कृपा से घर में सुख शांति और समृद्धि आती हैं.
Feb 09, 2021 Rate: 4.00
