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शौर्यपथ /उम्र बढ़ने पर शरीर में कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। इनमें से एक है मेमोरी लॉस। आपके घर-परिवार में भी किसी न किसी बुजुर्ग सदस्य को यह परेशानी होती होगी। वे किसी सामान को कहीं रखकर भूल जाते होंगे। मेमोरी लॉस दैनिक जीवन को बाधित करती है। यदि उनके साथ ऐसा लगातार हो रहा है, तो यह अल्जाइमर या डीमेंशिया का लक्षण हो सकता है। परिवार के किसी सदस्य को अल्जाइमर है, इसकी पहचान करना जरूरी है। इसके लिए हमने बात की नॉएडा इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज के डीन और सर्जन डॉ. आशुतोष निरंजन से। उन्होंने कई ऐसे संकेत बताये, जिनके आधार पर अल्जाइमर होने की पहचान की जा सकती है।
मेमोरी, थिंकिंग पॉवर, रीजनिंग स्किल को प्रभावित करता है अल्जाइमर
डॉ. आशुतोष निरंजन बताते हैं, ‘अल्जाइमर एक ब्रेन डिजीज है। इस डीजेनरेटिव न्यूरोलॉजिकल कंडीशन में मस्तिष्क की कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है और मस्तिष्क सिकुड़ जाता है। डीमेंशिया के कारण मानसिक, व्यवहारिक और सामाजिक क्षमताओं में लगातार गिरावट होती जाती है। व्यक्ति स्वतंत्र रूप से कार्य करने की व्यक्ति की क्षमता को खोने लगता है।
अल्जाइमर मेमोरी, थिंकिंग पॉवर, रीजनिंग स्किल यानी तर्क करने की क्षमता को प्रभावित करती है। इन प्रक्रियाओं में धीमी गति से गिरावट आती जाती है। यदि आप इनमें से किसी एक लक्षण को भी नोटिस करती हैं, तो उन्हें अनदेखा करने की कोशिश नहीं करें। उन्हें तुरंत किसी डॉक्टर के पास ले जाएं।
यहां हैं वे 5 लक्षण, जिनसे अल्जाइमर होने का संकेत मिलता है
1 सबसे पहले मिलता है मेमोरी लॉस का संकेत
प्रारंभिक अवस्था में व्यक्ति जिस चीज़ की तुरंत जानकारी हासिल करता है, उसे ही भूलने लगता है। यह अल्जाइमर रोग के सबसे विशिष्ट लक्षणों में से एक है। अन्य स्थिति में महत्वपूर्ण तिथियों या घटनाओं को याद रखना, एक ही प्रश्न को बार-बार पूछना और किसी आवश्यक चीज़ को याद रखने के लिए परिवार के सदस्यों से अधिक से अधिक सहायता की जरूरत महसूस करना अल्जाइमर के प्रारंभिक संकेतों में से एक है।
2 समस्या को हल करने या ध्यान केंद्रित करने में परेशानी
कुछ अल्जाइमर के मरीज में किसी समस्या को हल करने की योजना बनाने या संख्याओं के साथ काम करने की क्षमता में परिवर्तन आ जाता है। वे एक साधारण सी बात या किसी रेमेडी को याद रखने या उसका पालन करने के लिए संघर्ष करने लग जा सकते हैं। उन्हें समय पर अपने बिल का भुगतान करना याद नहीं रहता है या भुगतान करने के बावजूद भूल जा सकते हैं। उन्हें ध्यान केंद्रित करने में भी परेशानी हो सकती है।
3 आसान या जाने-पहचाने काम को पूरा करने में कठिनाई महसूस करना (Difficulty in completing easy or familiar task)
अल्जाइमर रोग वाले लोगों के लिए रोजमर्रा के काम को पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। उनके लिए किसी ख़ास अवसर को याद रखना, ग्रोसरी लिस्ट को देखने-व्यवस्थित करने, किसी प्रसिद्ध स्थान तक ड्राइव कर जाने या पसंदीदा गेम के नियमों को याद करना भी संघर्ष वाला साबित हो सकता है।
4 समय, मौसम और तारीखें भूलना (forgetting times, weather and dates in Alzheimer’s disease)
अल्जाइमर के मरीज समय, मौसम और तारीखें भी भूलने लग जाते हैं। अगर तुरंत उनकी मदद नहीं की जाए, तो उन्हें चीज़ों को समझने में भी परेशानी हो सकती है। वे कभी-कभी अपने गन्तव्य तक जाने वाले ट्रैक को भी भूल सकते हैं। उनके लिए वहां तक पहुंचना एक बड़ी समस्या हो सकती है।
5 रखे हुए सामान को ढूंढने में असमर्थ होना( being unable to locate the stored goods in Alzheimer’s disease)
अल्जाइमर रोग से ग्रस्त व्यक्ति चीजों को ऐसे स्थान पर रख देते हैं, जिन्हें ढूँढना उनके लिए मुश्किल भरा हो सकता है। वे सामान को गलत जगह पर रख सकते हैं और उन्हें खोजने में वे खुद को सक्षम नहीं पा सकते हैं। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, अल्जाइमर रोग से ग्रस्त व्यक्ति अपनी गलती के लिए दूसरों को दोष देना शुरू कर सकते हैं।
ऊपर बताये गये सभी लक्षण व्यक्ति के अल्जाइमर रुग से पीड़ित होने की ओर इशारा करते हैं। इसलिए जितना जल्दी संभव हो पीड़ित को डॉक्टर के पास ले जाएं। इससे उनका इलाज सही समय पर शुरू हो जायेगा ।
सफलता /शौर्यपथ / महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत बहुत से ऐसे कार्य हैं जिनकी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लाभ स्पष्ट परिलक्षित होता है योजना के महत्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जिला बेमेतरा में महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत विभिन्न प्रकार के कार्य कराए जा रहे हैं। इसी क्रम में जनपद पंचायत साजा क्षेत्र के ग्राम पंचायत करमू के आश्रित ग्राम तोरण में हितग्राही रज्जू पिता रामजी द्वारा अपने व्यक्तिगत भूमि पर वित्तीय वर्ष 2020-21 में फलदार पौधे का रोपण किया गया था। जिसका स्पष्ट परिणाम वर्तमान में परिलक्षित हो रहा है। हितग्राही के लगभग एक एकड़ भूमि में 500 अमरूद के पौधे रोपित किए गए थे, जो कि लगभग 2 साल में फलों से लदा हुआ है। हितग्राही श्री रज्जू द्वारा बताया गया कि इस वर्ष फलों से लगभग एक से डेढ़ लाख रुपये का सीधे तौर पर लाभ उनको होगा। योजना का उद्देश्य ना केवल लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना है वरन उससे लोगों को आर्थिक रूप से सशक्त करना है जिससे ना केवल वह खुद की आर्थिक स्थिति मजबूत कर सके और अन्य लोगों को भी रोजगार दे सके। किसान रज्जू द्वारा उक्त भूमि पर पूर्व में सब्जी आदि की खेती की जा रही थी, परंतु महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अंतर्गत जनपद पंचायत साजा से पौधरोपण कराये जाने की जानकारी प्राप्त होने पर उनके द्वारा परंपरागत खेती से हटकर कुछ नया प्रयोग करने के लिए मन बनाया, जिसका लाभ उनको अब होने लगा है। इस कार्य से ना केवल हितग्राही को सीधे तौर पर लाभ हो रहा है बल्कि गांव के कुछ अन्य श्रमिकों को भी इससे रोजगार उपलब्ध हो रहे हैं। जनपद पंचायत साजा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं कार्यक्रम अधिकारी द्वारा बताया गया कि लोग ऐसे कार्यों का अनुसरण जरूर करें एवं परंपरागत खेती के अलावा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के माध्यम से अन्य प्रकार की खेती को भी बढ़ावा दे सकते हैं। जिसमें प्रमुख रूप से मूनगा, नींबू, आम, जामुन, अमरूद आदि का वृक्षारोपण एवं मत्स्य पालन के साथ-साथ पशुपालन प्रमुख रूप से शामिल है। परियोजना अधिकारी द्वारा अधिक से अधिक ग्रामीण परिवारों को इन कार्यों से जुड़ने के लिए अपील की गई, साथ ही जल संरक्षण के कार्यों को प्राथमिकता से कराए जाने के लिए व्यक्तिगत जमीन पर निजी डबरी का निर्माण कर संरक्षित जल से सिंचाई के साथ-साथ मत्स्य पालन कर दोहरे लाभ लेने की समझाइश दी गई। योजनांतर्गत उक्त सभी कार्य निःशुल्क रूप से पात्र ग्रामीण हितग्राहियों को प्रदाय किया जा रहा है। योजना की विस्तृत जानकारी के लिए हितग्राही संबंधित ग्राम पंचायत अथवा जनपद पंचायत साजा में संपर्क कर सकते हैं। वर्तमान में जहां किसान परंपरागत खेती से हटकर दूसरी प्रकार की खेती करने से घबराते हैं वहीं श्री रज्जू द्वारा अपने जमीन पर पौधरोपण का कार्य कराया जाना एक सकारात्मक उदाहरण है।
सम्पादकीय लेख /शौर्यपथ /भारत एक विशाल देश है। यहां विभिन्न समुदाय के लोग निवास करते हैं। उनकी भिन्न-भिन्न संस्कृतियां हैं, परन्तु सबकी नागरिकता एक ही है। सब भारतीय हैं। कोई भी देश तभी उन्नति के शिखर पर पहुंचता है जब उसके निवासी उन्नति करते हैं। यदि कोई समुदाय मुख्यधारा के अन्य समुदायों से पिछड़ जाए, तो वह देश संपूर्ण रूप से उन्नति नहीं कर सकता। इसलिए आवश्यक है कि देश के सभी समुदाय उन्नति करें। आज देश में एक बार फिर से अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का विषय चर्चा में है।
उल्लेखनीय है कि ‘अल्पसंख्यक’ का तात्पर्य केवल मुस्लिम समुदाय से नहीं है। देश के संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की परिकल्पना धार्मिक, भाषाई एवं सांस्कृतिक रूप से भिन्न वर्गों के लिए की गई है। यह दुखद है कि कांग्रेस द्वारा इसका उपयोग अपने स्वार्थ के लिए किया गया, ताकि उसका वोट बैंक बना रहे। कांग्रेस द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम -1992 बनाया गया। इसमें देश की मुख्यधारा से पृथक वंचित धार्मिक समुदायों की स्थिति के कारणों के मूल्यांकन की आवश्यकता पर बल दिया गया। इस अधिनियम के आधार पर मई 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया।किन्तु राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम-1992 में ‘धार्मिक अल्पसंख्यक’ की परिभाषा नहीं दी गई है। कौन सा समुदाय अल्पसंख्यक है, इसका निर्णय करने का सारा दायित्व केंद्र सरकार को सौंप दिया गया। इसके पश्चात कांग्रेस सरकार ने अक्टूबर 1993 में पांच धार्मिक समुदायों को अल्पसंख्यकों के रूप में अधिसूचित किया, जिसमें मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध एवं पारसी सम्मिलित हैं। इसके पश्चात जैन समुदाय द्वारा उसे भी अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने की मांग की जाने लगी। तब सरकार ने राष्ट्रीय धार्मिक अधिनियम- 2014 में एक संशोधन करके जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यकों की सूची में सम्मिलित कर दिया।
भारतीय जनता पार्टी का सदैव से यह कहना रहा है कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों के नाम पर ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ की राजनीति करती आई है। भाजपा ने अपने घोषणा पत्रों में भी यह प्रश्न उठाते हुए संकल्प लिया था कि वह ‘अल्पसंख्यक आयोग को समाप्त करके इसका दायित्व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सौंपेगी। अब चूंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है, तो यह विषय चर्चा में आ गया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1998 में भाजपा सत्ता में आई, उस समय इस संबंध में कुछ नहीं हुआ।
कांग्रेस द्वारा गठित द्वितीय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को भी समाप्त करने की दिशा में कोई कार्य नहीं किया गया। वास्तव में वर्ष 2004 के पश्चात से भाजपा ने इस विषय पर ध्यान नहीं दिया, अपितु भाजपा ने 2014 के अपने घोषणा पत्र में कहा कि ‘स्वतंत्रता के इतने दशकों के पश्चात भी अल्पसंख्यकों का एक बड़ा वर्ग, विशेषकर मुस्लिम समुदाय निर्धनता में जकड़ा हुआ है। भाजपा की इस बात के कई अर्थ निकाले जा सकते हैं।
प्रथम यह कि भाजपा स्वीकार करती है कि देश की स्वतंत्रता के इतने वर्षों पश्चात भी मुसलमानों की स्थिति दयनीय है, जैसा कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कहती है। द्वितीय यह है कि स्वतंत्रता के पश्चात देश में कांग्रेस का ही शासन रहा है तथा उसने मुसलमानों की दशा सुधारने के लिए कुछ नहीं किया तथा मुसलमान इस दयनीय स्थिति में पहुंच गए। इसका एक अर्थ यह भी है कि मुसलमानों की इस दयनीय स्थिति के लिए कांग्रेस उत्तरदायी है।
देश और राज्यों में अल्पसंख्यकों को लेकर बड़ी विडंबना की स्थिति है। कोई समुदाय राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक है, तो किसी राज्य में अल्पसंख्यक है। इसी प्रकार कोई समुदाय राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक है, तो किसी राज्य में बहुसंख्यक है। इसी प्रकार कोई समुदाय एक राज्य में अल्पसंख्यक है तो किसी दूसरे राज्य में बहुसंख्यक है। उल्लेखनीय बात यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट में राज्य स्तर पर हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग वाली याचिकाएं भी दायर की गई हैं। इस संदर्भ में केंद्र सरकार ने अपनी राय देने के लिए समय मांगा है। इस संबंध में 14 राज्यों ने अपनी राय दे दी है, जबकि 19 राज्यों और केंद्र सरकार ने अभी तक अपनी राय नहीं दी है।
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का क्या निर्णय आता है, यह तो समय के गर्भ में छिपा है, किन्तु इतना निश्चित है कि यह एक ज्वलंत विषय है। इससे देश का सामाजिक वातावरण प्रभावित होगा। इससे निपटने का एक सरल उपाय यह है कि देश को अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक की राजनीति से मुक्ति दिलाई जाए। संविधान की दृष्टि में देश के सब नागरिक एक समान हैं। संविधान ने सबको समान रूप से अधिकार दिए हैं। संविधान ने किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया है। इसलिए देश में समान नागरिक संहिता लगाई जाए।
इससे बहुत से झगड़े स्वयं समाप्त हो जाएंगे। यदि देश के सभी वर्गों की एक समान उन्नति करनी है, तो उनके धर्म, पंथ या जाति के आधार पर नहीं, अपितु उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर नीतियां बनाने की आवश्यकता है। आर्थिक आधार पर बने नीतियों से उनका समग्र विकास हो पाएगा। ऐसा न होने पर देश अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की राजनीति में उलझ कर रह जाएगा। ऐसी परिस्थियों में मूल समस्याओं से ध्यान भटक जाएगा, जिससे विकास कार्य प्रभावित होंगे।
प्रश्न है कि जब संविधान ने सबको समान अधिकार दिए हैं, तो धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक निर्धारित करने का क्या औचित्य है? वास्तव में निर्धनता का संबंध किसी धर्म, पंथ अथवा जाति से नहीं होता। इसका संबंध व्यक्ति की आर्थिक स्थिति से होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश निरंतर उन्नति के पथ पर अग्रसर है। मोदी सरकार द्वारा ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास‘ अभियान चलाया जा रहा है।
सरकार ने कमजोर आय वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए अनेक योजनाएं बनाई हैं, जिनका लाभ देश के निर्धन परिवारों को मिल रहा है। इन योजनाओं का यही उद्देश्य है कि देश के सभी निर्धन परिवारों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो। इस संबंध में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा है।
यह कहना अनुचित नहीं है कि अल्पसंख्यकवाद से देश में सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है। अल्पसंख्यकों को प्राथमिकता देने से बहुसंख्यकों को लगता है कि उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। इसी भांति अल्पसंख्यक भी स्वयं को विशेष मानकर मुख्यधारा से पृथक हो जाते हैं। वे स्वयं को पृथक रखना चाहते हैं तथा वही पृथकता उनकी पहचान बन जाती है। इस मनोवृत्ति से उन्हें हानि होती है।
वे देश की मुख्यधारा से पृथक होकर पिछड़ जाते हैं तथा उनका समान रूप से विकास नहीं हो पाता। अल्पसंख्यकवाद से भाईचारा भी प्रभावित होता है। सांप्रदायिकता देश के समग्र विकास के लिए बहुत बड़ी बाधा है। इसलिए देश को अल्पसंख्यकवाद बनाम बहुसंख्यकवाद की राजनीति से निकलना होगा। एक देश में एक ही विधान होना चाहिए। जब संविधान की दृष्टि में सब नागरिक समान हैं, तो उनके लिए सुविधाएं भी एक समान होनी चाहिए।
टिप्स /ट्रिक्स / शौर्यपथ /प्राचीन समय में गंभीर से गंभीर रोगों को ठीक करने के लिए जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जाता था. और आज भी इनकी उपयोगिता बनी हुई है आधुनिक चिकित्सा पद्धति आ जाने के बावजूद. अंग्रेजी दवाइयों के साथ-साथ लोग आयुर्वेदिक उपचार भी करते हैं. इसकी खास बात है कि ये शरीर को किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाता. आज हम जड़ी बूटियों की इतनी बात क्यों कर रहे हैं आप सोच रहे होंगे, तो बता दें कि इस लेख में चिरायता नाम की जड़ी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके फायदे जानकर उसका इस्तेमाल जरूर करेंगे आप इन रोगों में.
चिरायता के फायदे
हालांकि ये स्वाद में कड़वा होता है. लेकिन ये रोगों से लड़ने में उतना ही फायदेमंद है. इसमें अमारोगेंटिन बायोएक्टिव कंपाउंड पाया जाता है जो ब्लड शुगर को कंट्रोल करने का काम करता है.
चिरायता का काढ़ा पीने से खांसी-बुखार और जुकाम में लाभ मिलता है. इसका काढ़ा कोरोना रोगियों को जरूर पीना चाहिए. इसके इस्तेमाल के बारे में तो भारत सरकार के आयुष मंत्रालय की ओर से भी कहा गया है.
इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बूस्ट होती है. इसमें मैग्निफेरिन, बायोएक्टिव कंपाउंड पाया जाता है जो इम्यूनोमॉड्यूलेटरी को प्रदर्शित करता है जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है.
एनीमिया में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. इससे शरीर में खून की कमी नहीं होती है. अगर आपको ब्लड की कमी की शिकायत है तो इसका काढ़ा पीना शुरू कर दीजिए.
सेहत टिप्स /शौर्यपथ/ आमतौर पर लोगों को कमर दर्द की दिक्कत हो ही जाती है. बहुत ज्यादा देर एक ही पोजीशन में बैठे रहना, टेढ़े-मेढ़े सोना या फिर थकान भी कमर दर्द का कारण बन जाता है. लेकिन, शरीर में पोषक तत्वों की कमी भी इस दर्द की वजह हो सकती है. विटामिन बी12 ऐसा ही विटामिन है जिसकी कमी शरीर में दर्द की दिक्कत पैदा कर देती है. विटामिन बी12 ब्लड सेल्स को हेल्दी रखने के साथ ही शरीर में एनर्जी बनाए रखता है. इस विटामिन की कमी होने पर व्यक्ति जल्दी थकने लगता है और शरीर के कई हिस्सों खासकर कमर में दर्द होने लगता है. जानिए किस तरह इस कमी को दूर करने के लिए खानपान में बदलाव किए जा सकते हैं और कौनसे उपाय कारगर साबित होते हैं.
कमर दर्द कैसे दूर करें |
विटामिन बी12 की कमी पूरी करना
खानपान के जरिेए विटामिन बी12 की कमी पूरी करने के लिए लीवर, टूना फिश, दूध, दही, अंडे, चीज़, केले, स्ट्रॉबेरीज और विटामिन बी12 फॉर्टिफाइड चीजों को खानपान का हिस्सा बनाया जा सकता है.
हल्दी वाला दूध
घरेलू नुस्खों की बात करें तो पीठ के दर्द को दूर करने के लिए हल्दी वाला दूध बेहद फायदेमंद साबित होता है. हल्दी के एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-ऑक्सीडेंट गुण हड्डियों के दर्द को दूर करने में कारगर होते हैं. कमर के निचले हिस्से में हो रहे दर्द (Lower Back Pain) से छुटकारा पाने के लिए रात में सोने से पहले हल्दी वाला दूध पिया जा सकता है. इसके लिए एक गिलास दूध में आधा चम्मच हल्दी मिलाएं.
हर्बल टी
अदरक और ग्रीन टी को मिलाकर बनाई गई हर्बल टी (Herbal Tea) कमर दर्द से राहत देने में मददगार होती है. इसके सेवन के लिए ग्रीन टी बनाते हुए अदरक के छोटे-छोटे टुकड़ों को मिलाएं और पका लें. एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर यह चाय दर्द को सोख लेगी और आपको आराम महसूस होगा.
गर्म पानी
कमर के दर्द में गर्म पानी से नहाना या फिर बाथटब में कुछ देर गर्म पानी के अंदर बैठने पर आराम मिल सकता है. आप गर्म पानी की सिंकाई भी ले सकते हैं जिससे आराम मिले. हालांकि, ध्यान दें कि पानी का तापमान बहुत ज्यादा ना हो जिससे त्वचा जलने लगे.
एक्सरसाइज
अपने बैठने और सोने के पोश्चर पर ध्यान दें. कंधों को पीछे सीधा रखकर बैठें और जरूरत से ज्यादा ना झुकें. इसके अलावा हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करें जिससे हड्डियां अकड़ी ना रहें. साथ ही, बहुद देर तक बैठे या खड़े ना रहें.
सेहत टिप्स /शौर्यपथ /गर्म कपड़ों और कंबलों के अलावा क्या आपका शरीर सर्दियों के लिए तैयार है? ऐसी डाइट के बिना जो आपकी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और आपको अंदर से गर्म रखती है सर्दियों में हेल्दी रहना मुश्किल है. सर्दियां कई मेडिकल इश्यूज को बदतर बना सकता है, जिसमें गठिया और त्वचा रोग जैसे सूखापन, एक्जिमा और सोरायसिस शामिल हैं. सर्दियों के दौरान आंवला, घी, बाजरा, खजूर, बाजरा, बादाम, सरसों और क्रूस वाली सब्जियां जैसे फूड्स इस तरह के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को रोकने में मदद करती है और आपकी इम्यूनिटी को बढ़ाती हैं.
विंटर सुपरफूड्स जो बढ़ाते हैं आपकी इम्यूनिटी |
1) देशी घी
सबसे आसानी से पचने योग्य वसा में से एक जो आपके शरीर को गर्म रखने के लिए तत्काल गर्मी और ऊर्जा पैदा कर सकता है, शुद्ध और जिम्मेदारी से प्राप्त A2 घी है. मॉडरेशन में घी खाने से भी त्वचा की खुश्की और फ्लैंकीनेस को रोका जा सकता है. सर्दियों के दौरान खाना पकाने के लिए घी का उपयोग करें या इसे अपनी रोटी, चावल या खिचड़ी में शामिल करें.
2) गुड़
गुड़ सर्दियों का पसंदीदा होता है. गुड़ में जिंक और सेलेनियम जैसे एंटीऑक्सीडेंट और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं. आप मसाला गुड़ के साथ अपने भोजन को मज़ेदार बना सकते हैं, यह एक विशेष व्यंजन है.
3) खजूर
इनका स्वाद लाजवाब होता है और इन्हें कई प्रकार की मिठाइयों में प्राकृतिक स्वीटनर के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इनसे सबसे ज्यादा फायदा गठिया के मरीजों को होता है. खजूर विटामिन, खनिज और फाइबर का एक अद्भुत स्रोत हैं और अपने उपचार गुणों के लिए प्रसिद्ध हैं. खजूर, जो कैल्शियम से भरपूर होते हैं मजबूत हड्डियों और दांतों का सपोर्ट करते हैं. इसके अतिरिक्त, यह हड्डियों से संबंधित स्थितियों जैसे ऑस्टियोपोरोसिस और गठिया से बचाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसे सुबह और शाम के नाश्ते में शामिल करने से सहनशक्ति बढ़ती है जिससे आपको सर्दी के दिनों में थकान और सुस्ती महसूस नहीं होती है.
4) बाजरा
इन स्वस्थ अनाजों को अपने भोजन में शामिल करने का समय आ गया है. बाजरा कई प्रकार के पोषक तत्वों, विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है और इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है. मूल रूप से आपको सर्दियों के दौरान उपलब्ध सभी बाजरा खाना चाहिए. उदाहरण के लिए, रागी, आइडियल विंटर डाइट, आपको कड़ाके की ठंड से बचने के लिए पर्याप्त गर्मी प्रदान करता है. इसकी अमीनो एसिड सामग्री भूख को रोकने में मदद करती है.
5) पत्तेदार साग
अविश्वसनीय रूप से पोषक तत्वों से भरे और कैलोरी में कम होने के अलावा, गहरे रंग की पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, केल, सरसों का साग और अन्य भी एंटीऑक्सिडेंट, बीटा कैरोटीन और प्रतिरक्षा-उत्तेजक विटामिन सी से भरपूर होती हैं.
6) ब्रोकोली और फूलगोभी
अपने हाई फाइबर सामग्री, विटामिन और खनिज सामग्री और फायदेमंद एंटीऑक्सिडेंट्स के कारण ब्रोकोली और फूलगोभी सर्दियों की बीमारियों को दूर करने में मदद करते हैं. ये दोनों सब्जियां विटामिन सी से भरपूर होती हैं और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करती हैं.
7) नट्स
अपने हाई फाइबर सामग्री, विटामिन और खनिज और फायदेमंद एंटीऑक्सिडेंट्स के कारण ब्रोकोली और फूलगोभी सर्दियों की बीमारियों को दूर करने में मदद करते हैं. ये दोनों सब्जियां विटामिन सी से भरपूर होती हैं और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करती हैं.
करेला पकौड़ा देख लोग हुए हैरान, इंटरनेट पर लोगों ने शेयर किए रिएक्शन
8) अमरूद
अमरूद स्वादिष्ट, मीठे और कुरकुरे होते हैं. उनमें विटामिन सी और कई एंटीऑक्सिडेंट से भरे होते हैं, जो मुक्त कणों से लड़ने और सेल क्षति को रोकने के लिए काम करते हैं. ये आपके दिल और ब्लड शुगर के लिए हेल्दी हैं क्योंकि इनमें फाइबर भी प्रचुर मात्रा में होता है.
आस्था /शौर्यपथ /हिंदू धर्म में बच्चों की लंबी आयु, संतान सुख, बच्चे के अच्छे स्वास्थ और उज्जवल भविष्य के लिए कई व्रत किए जाते हैं. महिलाएं संतान प्राप्ति और उसके सुथ समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं. मान्यता है कि कि ये कुछ व्रत संतान के लिए अच्छे होते हैं. यही वजह है कि उनमें से एक छठ पर्व को पूरे भारत में आस्था के महापर्व के रूप में मनाया जाता है. वहीं जितिया व्रत भी संतान की खुशहाली के लिए रखा जाता है. हालांकि यह व्रत बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के हिस्सों में रखा जाता है. आइए जानते हैं संतान से जुड़े 6 महत्वपूर्त व्रत के बारे में.
संतान से जुड़े 6 खास व्रत की लिस्ट |
छठ पूजा - आस्था का महापर्व छठ कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन ये व्रत किया जाता है. ये त्योहार चार दिन का होता है. पहले दिन नहाय खाय, दूसरा खरना, तीसरे दिन छठ पूजा यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को देकर व्रत का पारण किया जाता है. खरना के बाद शुरू हुआ ये व्रत 36 घंटे निर्जला रखा जाता है. छठी मईया और सूर्य देव के आशीर्वाद से जीवन में संतान पर कोई आंच नहीं आती और सूर्य के समान तेज और बल मिलता है.
संतान सप्तमी - भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को संतान सप्तमी का व्रत किया जाता है. मान्यता है कि इसके प्रभाव से संतान प्राप्ति, समृद्धि और खुशहाली का वरदान प्राप्त होता है. इस व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा का विधान है. देवकी और वसुदेव ने भी अपनी संतानों की रक्षा के लिए ये व्रत किया था.
जितिया व्रत - अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत रखा जाता है, इसे जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है. महिलाएं अपने बच्चों की समृद्धि और उन्नत जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. इसे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और बंगाल का प्रमुख व्रत माना जाता है.
अहोई अष्टमी - कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी व्रत बच्चों के बेहतर स्वास्थ और सुखी जीवन के लिए किया जाता है. इसमें सूर्यास्त के बाद सेह की पूजा की जाती है और फिर तारों को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न किया जाता है. अहोई अष्टमी को लेकर मान्यता है कि जिन महिलाओं के गर्भ में ही शिशु की मृत्यु हो जाती है उन्हें इस व्रत के प्रभाव से ये दुख नहीं झेलना पड़ता.
स्कंद षष्ठी - हर माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कन्द षष्ठी व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान कार्तिकेय की विधिवत पूजा की जाती है. ये दक्षिण भारत में प्रमुख व्रत में से एक है. इस व्रत के प्रभाव से संतान को सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है.
पुत्रदा एकादशी - पुत्रदा एकादशी साल में दो बार मनाई जाती है एक पौष शुक्ल पक्ष में और दूसरी श्रावण शुक्ल पक्ष में.संतान को संकट से बचाने और उसके कल्याण के लिए ये व्रत बहुत फलदायी माना गया है.
सेहत टिप्स /शौर्यपथ/ हम कितनी बार सोचते हैं या अपनी किडनियों के स्वास्थ्य के बारे में परवाह करते हैं? अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम भविष्य में किडनी की समस्याओं और बीमारियों के जोखिम को बढ़ा रहे हैं. डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर से भी किडनी की बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है. किडनियां मानव शरीर के योद्धा हैं. वे शरीर से अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को हटाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. वे हमारे खून में पानी, लवण और खनिजों का एक हेल्दी बैलेंस बनाए रखने में भी मदद करते हैं, जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है. अनहेल्दी खाने से किडनी के स्वास्थ्य और कामकाज में बाधा पैदा हो सकती है. यहां कुछ आदतों के बारे में बताया गया है जो आपकी किडनियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं.
किडनियों को हेल्दी रखने के लिए इन आदतों को आज ही छोड़ दें:
1. दर्द निवारक दवाओं का अति प्रयोग
बिना पर्ची के मिलने वाली दर्द निवारक दवाए आपके दर्द को कम कर सकती हैं, लेकिन वे किडनी को नुकसान पहुंचा सकती हैं. खासकर अगर आपको पहले से ही किडनी की बीमारी है. NSAIDs के अपने नियमित उपयोग को कम करें और कभी भी अनुशंसित खुराक से अधिक न लें.
2. नमक-शकर का दुरुपयोग
नमक में हाई डायटरी सोडियम होता है, जो ब्लड प्रेशर बढ़ा सकता है और बदले में आपकी किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है. नमक के बजाय जड़ी-बूटियों और मसालों के साथ अपने भोजन का स्वाद लें. समय के साथ आपको अपने भोजन में अतिरिक्त नमक (सोडियम) का उपयोग करने से बचना आसान हो सकता है.
3. प्रोसेस्ड फूड खाएं
प्रोसेस्ड फूड्स सोडियम और फास्फोरस के जरूरी स्रोत हैं. किडनी की बीमारी वाले बहुत से लोगों को अपने आहार में फास्फोरस को सीमित करने की जरूरत होती है. कुछ अध्ययनों से पता चला है कि बिना किडनी की बीमारी वाले लोगों में प्रोसेस्ड फूड्स से भरपूर फास्फोरस का सेवन उनकी किडनी और हड्डियों के लिए हानिकारक हो सकता है.
4. पर्याप्त पानी नहीं पीना
अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रहने से आपकी किडनी शरीर से सोडियम और विषाक्त पदार्थों को साफ करने में मदद करते हैं. बहुत सारा पानी पीना भी दर्दनाक किडनी स्टोन से बचने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है. किडनी की समस्या या किडनी की विफलता वाले लोगों को अपने तरल पदार्थ का सेवन सीमित करने की जरूरत हो सकती है.
5. अच्छी नींद न लेना
एक अच्छी रात का आराम आपके समग्र स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है और यह आपकी किडनी के लिए भी जरूरी है. किडनी के कार्य को नींद-जागने के चक्र द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो कि किडनी के कार्यभार को 24 घंटों में कॉर्डिनेट करने में मदद करता है.
6. बहुत अधिक मांस खाना
पशु प्रोटीन खून में एसिड उत्पन्न करता है जो कि किडनी के लिए हानिकारक हो सकता है और एसिडोसिस का कारण बन सकता है - एक ऐसी स्थिति जिसमें किडनी एसिड को तेजी से समाप्त नहीं कर सकते हैं. शरीर के सभी अंगों के विकास, रखरखाव और मरम्मत के लिए प्रोटीन की जरूरत होती है लेकिन आपकी डाइट फलों और सब्जियों से संतुलित होनी चाहिए.
7. बहुत अधिक शुगर वाले फूड्स खाना
शुगर मोटापे में योगदान करती है जो हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज के आपके जोखिम को बढ़ाती है, किडनी की बीमारी के दो प्रमुख कारण हैं. डेसर्ट के अलावा, शुगर को अक्सर उन फूड्स और ड्रिंक्स में मिलाया जाता है जिन्हें आप "मीठा" नहीं मान सकते. नाश्ते में व्हाइट ब्रेड से बचें, जो प्रोसेस्ड शुगर के सभी गुप्त स्रोत हैं.
8. लाइटिंग अप
धूम्रपान आपके फेफड़ों या आपके दिल के लिए अच्छा नहीं है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि धूम्रपान आपकी किडनी के लिए भी अच्छा नहीं हो सकता है. जो लोग धूम्रपान करते हैं उनके मूत्र में प्रोटीन होने की संभावना अधिक होती है, जो किडनी की क्षति का संकेत.
9. अधिक मात्रा में शराब पीना
नियमित रूप से अधिक शराब पीना दिन में चार से अधिक पेय क्रोनिक किडनी रोग के जोखिम को दोगुना करने के लिए पाया गया है. अधिक शराब पीने वाले जो धूम्रपान भी करते हैं उनमें किडनी की समस्याओं का खतरा और भी अधिक होता है.
10. स्थिर बैठना
लंबे समय तक बैठे रहने को अब किडनी की बीमारी के विकास से जोड़ा गया है. हालांकि शोधकर्ताओं को अभी तक यह नहीं पता है कि गतिहीन समय या शारीरिक गतिविधि सीधे किडनी के स्वास्थ्य को क्यों या कैसे प्रभावित करती है.
अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.
सेहत टिप्स /शौर्यपथ /कुछ महिलाएं अपने बढ़े हुए वजन के लिए अपने बोन स्ट्रक्चर को दोष देती हैं, तो कुछ जीन को जिम्मेदार मानती हैं। हमारे आसपास ऐसी तमाम स्त्रियां हैं, जिनके पास मोटापे को लेकर कई बहाने हैं। जबकि हमारा खाने-पीने का तरीका कुछ ऐसा है, जो वजन बढ़ाने में मददगार है। पोषण पर हुए शोध बताते हैं कि अगर जापानी स्त्रियों की ईटिंग हैबिट्स को आजमाया जाए, तो वजन बढऩे को रोका जा सकता है।
1 बासी खाने से करें परहेज
‘जैपनीज वुमन डॉन्ट गेट ओल्ड एंड फैट..’ की सह-लेखिका नेओमी मोरियामा अपनी किताब में लिखती हैं कि जापानी महिलाएं पैक्ड फूड या फ्रिज में रखे खाने को कभी तवज्जो नहीं देती हैं। चाहे वह व्यंजन कितना भी लजीज क्यों न हो। जब भी उन्हें भूख लगती है, वे ताजे बने हुए भोजन को प्राथमिकता देती हैं।
इसके उलट भारत में अमेरिका और ब्रिटेन की नकल पर प्रीजर्व्ड फूड और फ्रिज में रखे भोजन को खाने का चलन इन दिनों बड़ी तेजी से बढ़ा है। पब्लिक हेल्थ न्यूट्रीशन जर्नल में जापानी औरतों पर हुई स्टडी के निष्कर्ष बताते हैं, ‘ बासी खाने में टॉक्सिन की मात्रा बढ़ जाती है। उसे खाने के बाद भारीपन महसूस होता है। इससे ओबेसिटी, हेपेटाइटिस, कॉन्सिटपेशन, स्किन प्रॉब्लम तो आम है।
दरअसल, पके भोजन में एक समय बाद न्यूट्रिशनल वैल्यू घटने लगती है। भोजन में मौजूद कई एंजाइम्स और विटामिंस डिग्रेड हो कर पॉयजनस हो जाते हैं। वहीं फ्रोजन मीट में सॉल्ट के अत्यधिक प्रयोग से हमें ब्लड प्रेशर जैसी समस्या भी हो जाती है। अक्सर स्त्रियां बची हुई दाल या सब्जी को फ्रिज में रख लेती हैं और उन्हें दूसरे-तीसरे दिन गर्म कर सर्व करती हैं। स्टडी बताती है कि कुछ हार्मफुल बैक्टीरिया कम तापमान में भी ग्रो कर जाते हैं और भोजन को खराब कर देते हैं।
2 पोर्शन पावर
ज्यादातर भारतीय महिलाएं काम-काज निपटाकर एक बड़ी थाली में बहुत सारे व्यंजन परोसकर खाती हैं। उनकी एक बाइट तीन बाइट के बराबर होती है। भोजन लेने के बाद उनकी अक्सर शिकायत होती है-आज मैंने ज्यादा खा लिया। ओह मेरे पेट पर से चर्बी कैसे हटेगी?
3 आंखों से खाएं
अक्सर हम अपनी प्लेट में दाल, चावल, रोटी, सब्जी, सलाद और कुछ मिठाई सामान की तरह रख लेते हैं। और जल्दी-जल्दी खाने की रस्म पूरी कर लेते हैं। इसके उलट जापानी स्त्रियां चाहे दूसरे काम जल्दी निपटा लें, लेकिन खाने के लिए वक्त जरूर निकालती हैं।
लेखिका मोरियामा कहती हैं कि जापानी स्त्रियां घर पर भोजन पकाने के दौरान खूब एक्सपेरिमेंट करती हैं। रेस्टोरेंट की बजाय वे घर के खाने को प्राथमिकता देती हैं। वे लजीज व्यंजन बनाने में भी लो कैलोरी फूड को तवज्जो देती हैं।
वे सलाद को रोचक और अलग-अलग अंदाज में सजाती हैं। इसका मतलब साफ है कि थाली में परोसा हुआ भोजन आपको आकर्षक लगेगा और आप हर बाइट देख-देख कर खाएंगी। वक्त अधिक लगने पर आप कम खाएंगी, लेकिन आपका मस्तिष्क पेट भर जाने का संकेत देगा। खाने के समय टीवी आप बिल्कुल न देखें। क्योंकि इससे अधिक भोजन लेने की संभावना बनी रहती है।
4 हेल्दी कुकिंग
वर्ष 2005 में नुट्रीशन जर्नल में प्रकाशित रुका शाकमाकी के अध्ययन आलेख बताते हैं कि जापान के लोग वेजिटेरियन फूड्स के क्रेजी होते हैं। अगर आप किसी जापानी महिला से पूछेंगी कि वह किस फूड को पकाना सबसे अधिक पसंद करती हैं, तो उनका जवाब होगा-ग्रीन बींस, गाजर, पालक, प्याज, टमाटर और दूसरी कई जापानी सब्जियों से तैयार व्यंजन।नाश्ते में उन्हें कई तरह की सब्जियों के सूप और सलाद लेना खूब भाता है। अगर उन्हें सब्जियों को फ्राई भी करना होता है, तो तेल (केनोला ऑयल) की बहुत थोड़ी मात्रा में वे ऐसा कर लेती हैं। स्टीम्ड सब्जियां खाने को वे अधिक प्राथमिकता देती हैं। रेड मीट को वे बिल्कुल मना करती हैं। इसके बजाय मछलियां (टूना, सार्डीन, मेकेरल)जिनमें ओमेगा 3 फैटी एसिड भरपूर मात्रा में उपलब्ध होते हैं, को वे खूब चाव से खाती हैं।
खाना खजाना /शौर्यपथ /प्रॉन यानी झींगा मछली हमेशा से सीफूड खाने वालों की पसंदीदा रही है। लोग स्टार्टर से लेकर मेन कोर्स तक में इसके टेस्ट को इंजॉय करते हैं। यह स्वाद में लाजवाब होने के साथ ही कई आवश्यक पोषक तत्वों का भी भंडार है। यह प्रोटीन के साथ-साथ विटामिन बी 6 और बी 12 में भी समृद्ध है। इतने सारे पोषक तत्वों का लाभ लेने के लिए ट्राई करें गार्लिक प्रॉन रेसिपी साथ ही इसके सेहत लाभ भी जान लेते हैं।
पहले जानें क्यों खास है प्रॉन
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ नेचुरल साइंस द्वारा प्रकाशित स्टडी के अनुसार प्रॉन प्रोटीन का एक बेहतरीन स्रोत है। इसके साथ ही इसमे पोटैशियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, कॉपर, विटामिन B12, विटामिन बी 6 और नायसिन की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। प्रॉन में आयरन, जिंक और ओमेगा 3 फैटी एसिड भी मौजूद होते हैं। इसलिए इसे सेहत के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। इसमें सेलेनियम की मात्रा पाई जाती है जो सेल्स को हेल्दी रखने के लिए एक सबसे प्रभावी एंटीऑक्सीडेंट होती है।
अब जानें सेहत के लिए किस तरह फायदेमंद है प्रॉन
1. हार्ट हेल्थ को बनाए रखे
रिसर्चगेट के अनुसार प्रॉन सेलेनियम का एक बेहतरीन स्रोत है और सेलेनियम हार्ट हेल्थ के लिए काफी फायदेमंद होता है। साथ ही यह विटामिन ई से भरपूर होता है, यह सॉल्युबल विटामिन एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करते हैं और हार्ट डिजीज की संभावनाओं को कम कर देते हैं। ऐसे में दिल से जुड़ी बीमारियों से बचाव के लिए प्रॉन का सेवन कर सकती हैं।
2. रेड ब्लड सेल्स को बढ़ाए
प्रॉन में विटामिन B12 और फोलेट मौजूद होते हैं। वहीं यह विटामिंस एनर्जी प्रोड्यूस करने में मदद करते हैं। साथ ही साथ रेड ब्लड सेल्स को बनाए रखते हैं। ऐसे में एनीमिया से पीड़ित व्यक्ति प्रॉन का सेवन कर सकते हैं।
3. वेट लॉस में मददगार
प्रॉन में कैलोरी की मात्रा बहुत कम होती है। साथ ही यह जिंक और आयोडीन का एक बेहतरीन स्रोत है। शरीर में इन पोषक तत्वों की कमी ओवरईटिंग और वेट गेन का कारण होती हैं। वहीं इसमें प्रोटीन की भरपूर मात्रा पाई जाती है। तो यदि आप वेट लॉस डाइट पर हैं, तो इसे अपने डाइट प्लान में शामिल कर सकती हैं।
4. अल्जाइमर की समस्या से बचाती है
यदि कोई व्यक्ति अल्जाइमर जैसी समस्या से पीड़ित है तो उन्हें प्रॉन का सेवन करना चाहिए। प्रॉन में फैटी एसिड की भरपूर मात्रा पाई जाती है ऐसे में प्रॉन का सेवन अल्जाइमर जैसी समस्या को नियंत्रित रख सकता है।
5. हड्डियों की सेहत को बनाए रखे
रिसर्चगेट के अनुसार प्रॉन कैल्शियम, फॉस्फोरस, कॉपर और मैग्नीशियम का एक अच्छा स्रोत है और यह सभी पोषक तत्व स्वस्थ हड्डियों के लिए जरूरी होते हैं। इसके साथ ही आदतों को भी मजबूती देता है।
अब नोट कीजिए गार्लिग प्रॉन रेसिपी
इसे बनाने के लिए आपको चाहिए
प्रॉन
लहसुन की कलियां (बारीक कटी हुई)
बारीक कटी लहसुन की पत्तियां (वैकल्पिक)
अदरक लहसुन का पेस्ट
ऑलिव ऑयल
कॉर्न फ्लोर
नमक (स्वादानुसार)
काली मिर्च पाउडर
विनेगर
सोया सॉस
नींबू का रस
इस तरह तैयार करें गार्लिक प्रॉन
सबसे पहले प्रॉन को अच्छी तरह धो कर साइड में रख दें।
अब एक बाउल में कॉर्नफ्लोर डालें फिर इसमें अदरक और लहसुन का पेस्ट डाल दें। ऊपर से एक चम्मच सोया सॉस और काली मिर्च पाउडर डालें। इसे अच्छी तरह मिलाकर एक स्मूद पेस्ट तैयार करें।
तैयार किए गए कॉर्नफ्लोर पेस्ट में प्रॉन को डाल दें। अब इन्हें अच्छी तरह मिला लें।
अब मध्य आंच पर पैन चढ़ाएं और इसे गर्म होने दें। गर्म हो जाने पर एक से दो चम्मच ऑलिव ऑयल डालें।
जब ऑलिव ऑयल गर्म हो जाए, तो इसमें बारीक कटी लहसुन की कलियां डालें और इन्हें 30 सेकंड तक भूनें। फिर प्रॉन को कॉर्नफ्लोर पेस्ट से निकालकर पैन में डाल दें।
अब इसमें स्वादानुसार नमक और एक चम्मच विनेगर डालें। इसे अच्छी तरह फ्राई करें जब तक यह पूरी तरह न पक जाए।
सिक जाने पर इन्हें किसी प्लेट में निकाल लें और ऊपर से नींबू निचोड़ दें। प्रोटीन और आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर प्रॉन गार्लिक बनकर तैयार है।
यदि आपके पास बारीक कटी लहसुन की पत्तियां हैं, तो उनसे इनकी गार्निशिंग करें और गर्मागर्म सर्व करें।
शौर्यपथ /डायबिटीज शरीर को कमजोर कर देता है। यह बीमारी दुनिया भर के लाखों लोगों को प्रभावित करती है। यह बीमारी यदि एक बार हो जाती है, तो आजीवन बनी रहती है। यह शरीर के इंसुलिन के उपयोग करने के तरीके को बाधित करती है। टाइप 2 डायबिटीज जीवनशैली की बीमारी है। हमारे जीवन जीने के संबंध से जुडी हुई है यह बीमारी। साथ ही यदि आप गतिहीन जीवन जीती हैं, तो रोग विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। वास्तव में, शारीरिक गतिविधि की कमी, खराब खानपान और आहार, मोटापा आदि जैसे कुछ सामान्य कारक हैं, जो रोग की शुरुआत का कारण बनते हैं। यही कारण है कि यदि आपको मधुमेह है, तो फिट रहने के लिए व्यायाम करना जरूरी है। पर मधुमेह रोगियों के लिए व्यायाम कितना सुरक्षित है?
हेल्थ शॉट्स ने मधुमेह के लिए व्यायाम करने के लाभों को जानने के लिए स्पोर्ट्स मेडिसिन विशेषज्ञ और आर्थोपेडिक सर्जन डॉ मनन वोरा से संपर्क बातचीत की।
डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए व्यायाम पूरी तरह सुरक्षित (Exercise completely safe for diabetics)
डॉ वोरा कहते हैं, “डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए न केवल व्यायाम सुरक्षित है, बल्कि उन्हें रोजाना एरोबिक व्यायाम करने की भी सलाह दी जाती है। डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए व्यायाम के लाभों को कम करके नहीं आंका जा सकता है।” व्यायाम ब्लड शुगर लेवल को कम करने में मदद करता है। यह इंसुलिन रेसिस्टेंस का मुकाबला करते हुए इंसुलिन सेंसिटिविटी में भी सुधार करता है। यह हार्ट डिजीज और नयूरोंस क्षति के जोखिम को कम करने में भी मदद करता है। व्यायाम मधुमेह रोगियों के लिए सुरक्षित माना जाता है, लेकिन चोट या अन्य जटिलताओं से बचने के लिए उन्हें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
1.खाने के एक से तीन घंटे बाद उन्हें व्यायाम करना चाहिए, जब ब्लड शुगर लेवल अधिक होने की संभावना होती है।
2. यदि आप इंसुलिन का उपयोग करती हैं, तो व्यायाम करने से पहले अपने ब्लड शुगर लेवल का परीक्षण करें। यदि लेवल 100 mg/dL से कम है, तो हाइपोग्लाइसीमिया से बचने के लिए कुछ खाने से मदद मिलेगी।
मधुमेह रोगी प्रति सप्ताह कम से कम 150 मिनट व्यायाम करें
डॉ. वोरा मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रति सप्ताह कम से कम 150 मिनट व्यायाम करने की सलाह देते हैं। “सप्ताह में 5 दिन प्रतिदिन 30 मिनट व्यायाम करना सही होता है। यह अभ्यास मध्यम स्तर की तीव्रता का होना चाहिए। आपकी हार्ट रेट सही होनी चाहिए। व्यायाम से अपने-आपको बहुत अधिक थका देना सही नहीं होता है। व्यायाम करते समय यदि आप अपने ब्लड शुगर लेवल में कोई बदलाव देखती हैं, तो अपने डॉक्टर से बात करें।
डायबिटिक धीरे-धीरे करें व्यायाम की शुरुआत
डॉ. वोरा कहते हैं, ‘नियमित रूप से व्यायाम करने से ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रण में रखने में मदद मिल सकती है। अध्ययनों से पता चला है कि व्यायाम करने से प्रीडायबिटीज वाले लोगों में मधुमेह की शुरुआत से बचने में भी मदद मिलती है। व्यायाम की शुरुआत आपको धीरे-धीरे करनी चाहिए।’ अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों का निर्माण करना चाहिए। डॉ. वोरा ने जोर देकर बताया, ” जो आप सहूलियत से कर पाती हैं, जिन्हें करने में आपको मजा आता है, तो उन्हीं गतिविधियों को शामिल करें।
यह टहलना, दौड़ना, तैरना, वजन उठाना, डांस या बाइक की सवारी भी हो सकती है। गतिविधि या व्यायाम का प्रकार उतना मायने नहीं रखता, जितना वास्तव में बाहर जाना और इसे करना होता है। व्यायाम को नियमित रूप से करना बेहद जरूरी है। इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लेना चाहिए।
शौर्यपथ /बच्चों को अगर आप बचपन से ही अच्छी बातें सिखाएंगे, तो बच्चे अच्छे इंसान बनेंगे। इस दुनिया को बेहतर बनाने में आपका योगदान यह हो सकता है कि आप आने वाले कल यानी बच्चों को अच्छी एजुकेशन और आदतें सिखाएं। जैसे, बच्चों को एजुकेट करने का मतलब सिर्फ उन्हें अच्छे स्कूल, कॉलेज में भेजना ही नहीं बल्कि अच्छे बिहेवियर से भी है। इसमें जानवरों के साथ संंवेदनशीलता के साथ पेश आना भी शामिल है। आप अगर बच्चों को शुरू से ही जानवरों से प्यार और उनके प्रति दयाभाव रखना सिखाएंगे, तो इससे बच्चों का जानवरों के प्रति डर भी कम होगा और वे जानवरों के स्वभाव को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।
बच्चों को जानवरों के बारे में बताएं
सबसे पहले तो बच्चों को यह बताएं कि जानवर भी इस प्रकृति का हिस्सा हैं और उन्हें भी समान रूप से जीने का अधिकार है। ऐसे में कभी भी जानवरों के प्रति घृणा या क्रूरता जैसे भाव न रखें।
बच्चों को जानवरों के महत्व के बारे में बताएं
बच्चों को ऐसी मोरल स्टोरीज सुनाएं, जिसमें जानवरों का महत्व छुपा हो। इससे बच्चों को पता चलेगा कि जानवरों में भी हमारी तरह इमोशन्स और समझने की क्षमता होती है। इससे बच्चे उन्हें बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।
जानवरों को मारने या चिल्लाने से मना करें
कई लोग अपने बच्चों को निडर बनाने के लिए जानवरों को मारना सिखाते हैं। यह सबसे मूर्खता भरी बात है। आपको बच्चों को सिखाना चाहिए कि बच्चों को मारने से या चिल्लाने से वे डर सकते हैं। उन्हें भी इंसानों की तरह ही दर्द होता है इसलिए उन्हें कभी मारना नहीं चाहिए।
भूख का महत्व बताएं
बच्चों को बताएं कि जिस तरह से इंसानों को भूख लगती है। उसी तरह जानवरों को भी भूख लगती है। सभी की भूख बराबर होती है इसलिए बच्चों को जानवरों की मदद करना सिखाएं। इससे वे अच्छे इंसान बनेंगे।
आस्था /शौर्यपथ /हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। यूं तो हर माह दो एकादशी तिथियां आती हैं, लेकिन उत्पन्ना एकादशी का खास महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है। इस साल उत्पन्ना एकादशी व्रत 20 नवंबर 2022 को रखा जाएगा।
उत्पन्ना एकादशी 2022 शुभ मुहूर्त-
एकादशी तिथि 19 नवंबर को सुबह 10 बजकर 29 मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि 20 नवंबर को सुबह 10 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगी।
उत्पन्ना एकादशी व्रत पारण का शुभ समय-
उत्पन्ना एकादशी व्रत का पारण 21 नवंबर 2022 को किया जाएगा। व्रत पारण का शुभ समय सुबह 06 बजकर 48 मिनट से सुबह 08 बजकर 56 मिनट तक है। पारण तिथि के दिन द्वादशी तिथि समाप्त होने का समय सुबह 10 बजकर 07 मिनट है।
हरि वासर के समय न करें एकादशी व्रत पारण-
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान नहीं करना चाहिए। जो भक्त एकादशी व्रत रखते हैं उन्हें व्रत पारण के लिए हरि वासर समाप्त होने का इंतजार करना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। एकादशी व्रत को खोलने के लिए सुबह का समय उत्तम माना गया है। अगर सुबह व्रत नहीं खोल सके हैं तो मध्याह्न के बाद करना चाहिए।
लाइफस्टाइल /शौर्यपथ /प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाएं अपने जीवन के सबसे कठीन समय में होती है, हालांकि मां बनने के एहसास में वह इस परेशानी से भी जूझ लेती हैं। इस दौरान महिलाओं को तरह-तरह की परेशानियां होती हैं। जिनमें सबसे कॉमन है, उल्टी, मूड स्विंग्स और कब्ज। इनसे छुटकारे के लिए यूं तो डॉक्टर कई दवाएं देते हैं। लेकिन इन दवाइयों का बच्चे पर बुरा असर होता है। ऐसे में आप कुछ योगासन की मदद से इन परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान आप मलासन कर सकते हैं। ये कई तरह से आपको फायदे दे सकता है।
डिलीवरी होती है आसान
मालसाना योग का डीप स्क्वाट है। बहुत ज्यादा बैठने पर कूल्हों और कमर में होने वाली जकड़न से छुटकारा पाने के लिए आप इस आसन को कर सकते हैं। शुरुआत में आप सपोर्ट के लिए प्रॉप्स का इस्तेमाल कर सकते हैं ताकि आप इस तरह से इसे सकें जो दर्दनाक न हो। फिर समय के साथ धीरे-धीरे अपने आप को प्रॉप्स से दूर करें। यह एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन यह काफी काम करती है। प्रेग्नेंसी में मलासन की प्रेक्टिस की जाए तो नॉर्मल डिलीवरी में मदद मिल सकती है। ये आसान महिला की डिलीवरी काफी हद तक आसान बनाता है।
कैसे करें मलासन
- मैट पर स्क्वाट्स पॉजिशन में खड़े हो जाएं।
- फिर स्क्वाट में आने के लिए घुटनों को मोड़ें और अपने हिप्स को फर्श की ओर नीचे करें।
- आपके पैर की उंगलियों को बाहर निकालें, लेकिन इसे ज्यादा न करें। आप पैरों को समानांतर रखने की कोशिश करें।
- अपने हाथों को अपने घुटनों के पास रखें और हथेलियों को एक साथ अंजलि मुद्रा में लाने के लिए कोहनियों को मोड़ें।
- अंजलि मुद्रा में अपने हाथों को अपने हृदय केंद्र के पास रखें। अब इस मुद्र में रहते हुए हाथों से जांघों को दबाते रहें।
- अपनी रीढ़ को सीधा रखें, अपने हिप्स को फर्श की ओर ले जाएं, और अपने कंधों को अपने कानों से दूर रखें।
-पांच सांसों तक यहीं रुकें, फिर पैरों को सीधा करके बाहर आ जाएं। आप चाहें तो सीधे फॉरवर्ड फोल्ड में आ सकते हैं।
-इस मुद्रा को तीन बार दोहराने की कोशिश करें।