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सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / अमेरिका में श्वेत-अश्वेत के बीच तनाव की वापसी दुखद और चिंताजनक है। अमेरिका अपनी रंगभेदी नीतियों को करीब आधी सदी पीछे छोड़ आया था, मगर वास्तव में बदलाव एक हद तक कागजी ही बना हुआ है। रंगभेद की जमीनी हकीकत न केवल निराश करती है, बल्कि अमेरिका के लोकतांत्रिक समाज पर सवालिया निशान भी लगाती है। अमेरिका में अश्वेतों की आबादी 13 प्रतिशत ही है, लेकिन पुलिस के हाथों मारे जाने वालों में उनकी संख्या श्वेतों के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा है। अमेरिका की इस स्याह हकीकत की चर्चा लगातार होती रही है, लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि तमाम अमेरिकी राज्यों में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। और एक सुखद पक्ष यह कि इन प्रदर्शनों में श्वेत भी समान रूप से शामिल हैं।
जॉर्ज का दोष ऐसा नहीं था कि पुलिस के हाथों उसकी मौत होती। वह गिरफ्तारी का विरोध कर रहा था, लेकिन तीन पुलिस वाले उसे जमीन पर गिराकर उस पर सवार हो गए। एक पुलिस अफसर ने तो इतनी निर्ममता दिखाई कि लगभग नौ मिनट तक वह जॉर्ज की गरदन पर अपने घुटने के बल सवार रहा। जॉर्ज गुहार लगाता रहा कि उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही है, लेकिन उसकी गुहार बेकार गई। इस मौत के वीडियो को लोगों ने वायरल कर दिया और अब अमेरिकी पुलिस बल अपने लोगों के रोष के निशाने पर है। अमेरिका के 70 से ज्यादा शहरों में प्रदर्शन या कहीं-कहीं उपद्रव भी हुुए हैं। वैसे लोगों का यह रोष नया नहीं है। अमेरिका में अनेक लोगों के मन में श्वेत वर्चस्व या रंग को लेकर श्रेष्ठता भाव बना हुआ है। घृणा का यह भाव न केवल अतार्किक, बल्कि अमानवीय भी है। इससे अमेरिकी समाज की बदनामी होती है। अमेरिकी समाज में रंगभेद दूर करने की तमाम जमीनी और किताबी कोशिशों के बावजूद वहां जो स्थिति है, उसकी प्रशंसा नहीं हो सकती। जब भी अश्वेतों के प्रति घृणा की बात उठती है, तो अमेरिका की चर्चा जरूर होती है। इस प्रदर्शन व उपद्रव के प्रति अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बहुत चिंतित हैं और उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि निर्दोष लोगों के जीवन और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया, तो सरकार सेना भी तैनात कर सकती है। अमेरिका के लिए यह दोहरी मुसीबत का समय है। एक तरफ वह कोरोना जैसी महामारी से बड़े पैमाने पर जूझ रहा है, वहीं रंगभेद विवाद अमेरिकी प्रशासन के गले की नई हड्डी बन गया है।
अब पूरी दुनिया की नजर अमेरिका पर है। अमेरिका को महामारी और मानवीयता, दोनों ही मोर्चों पर परीक्षा से गुजरना होगा। जब महामारी ने मौत का जाल फैला रखा हो, तब तो लोगों के प्रति उदारता और मानवीयता का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। इस बीच अमेरिकी प्रशासन के लिए यह जरूरी है कि वह रंगभेद समर्थकों के साथ पूरी कड़ाई से पेश आए। रंगभेद को रोकने के लिए अमेरिकी सरकार को पहले से कहीं ज्यादा चौकस होना चाहिए। वहां पुलिस बल को भी शिक्षित-प्रशिक्षित करने की जरूरत है। पुलिस पर भी यह जिम्मेदारी है कि वह लोगों को आश्वस्त करे। अमेरिका में शांति और एकजुटता की जल्द से जल्द वापसी होनी चाहिए। सबके प्रति उदारता से ही अमेरिकी समाज में सभ्यता और अनुशासन की रौनक लौटेगी और दुनिया के दूसरे देश उससे अच्छे सबक लेंगे।
यह किसकी जिम्मेदारी
मेलबॉक्स /शौर्यपथ /जिस देश में अनाज का भंडारण खपत से तीन गुना ज्यादा हो, वहां कोई मां भूख से क्यों मर रही है? यह सवाल इसलिए, क्योंकि देश में अन्न का बफर स्टॉक रहने के बाद भी मजदूरों की मौत हुई है। ऐसा ही एक दर्दनाक वीडियो बिहार से आया, जहां एक महिला के शव पर पड़ी चादर से उसका अबोध बच्चा खेल रहा था। कहा गया है कि श्रमिक स्पेशल टे्रन में भूख-प्यास से इस महिला ने दम तोड़ दिया था। उसका शव मुजफ्फरपुर स्टेशन पर पड़ा था। इसके लिए किसे दोषी माना जाए? खबर है कि कुछ रियायतों के साथ ‘लॉकडाउन’ की अवधि अब 30 जून तक बढ़ाई जा रही है। ऐसी स्थिति में मजदूूरों को, जो पिछले दो महीने से भी अधिक समय से अपने घर जाने के लिए यहां-वहां धक्के खा रहे हैं, उनको उनके घर पहुंचाने के लिए सरकारें फौरन समुचित प्रबंध करें, इसके साथ ही उनके खाने और पानी का भी इंतजाम हो।
निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद
फिर खुली कलई
दुनिया का सबसे शक्तिशाली और सभ्य कहा जाने वाला धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र अमेरिका इन दिनों श्वेत-अश्वेत संघर्ष से जूझ रहा है। वहां जनता और प्रशासन का संघर्ष रुकने की बजाय और बढ़ता जा रहा है, जो एक गंभीर बात है। अमेरिका में पहले ही एक लाख से अधिक लोग कोरोना महामारी में अब तक मारे जा चुके हैं। दूसरी तरफ, चीन के साथ भी उसका वाक्-युद्ध लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अमेरिका में जल्द ही राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। इस चुनाव पर श्वेत-अश्वेत संघर्ष, कोरोना संघर्ष और चीन से तनातनी का असर पड़ना स्वाभाविक ही है और अब तो यही प्रमुख चुनावी मुद्दे भी होने वाले हैं। आखिर चालीस शहरों में कफ्र्यू लगाने की स्थिति कोई मामूली बात नहीं। अश्वेतों के प्रति नस्लवादी नफरत ने अमेरिका के भद्र लोक की कलई खोल दी है।
शकुंतला महेश नेनावा
गिरधर नगर, इंदौर
मास्क बना हथियार
कोरोना वायरस दिन-प्रतिदिन भयानक रूप धारण करता जा रहा है। देश में अब इस वायरस से ग्रस्त लोगों की संख्या दो लाख से ऊपर जा रही है। इस महामारी के साथ मनुष्य का जो युद्ध चल रहा है, उसमें जीत के लिए फेस मास्क एक अहम हथियार बन गया है। अब लोग किसी भी कारण से घर से निकल रहे हैं, तो मास्क पहनकर ही बाहर आ रहे हैं। सरकार का भी निर्देश है कि अगर कोई नागरिक बिना मास्क पहने घर से बाहर निकलता है, तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी। देश-विदेश में फेस मास्क अब एक अहम उत्पाद बन गया है और अब तो बजार में रंग-बिरंगे मास्क बिकने शुरू हो गए हैं। चीन में जब जिंदगी पटरी पर लौटने लगी, तब वहां की कंपनियां तेजी से फेस मास्क बनाने लगीं। वहां रोजाना हजारों की संख्या में अब मास्क की मांग आने लगी है। भारत ने भी फेस मास्क बनाकर निर्यात का काम शुरू कर दिया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि अब लोगों को अपनी जान बचाने के लिए फेस मास्क जैसे हथियार को हमेशा अपने साथ रखना होगा।
निशा, दिल्ली विश्वविद्यालय
सरकार की उदारता
देश जिस संकट के दौर से अभी गुजर रहा है, इसमें सरकार की सबसे अहम भूमिका है। उसके द्वारा अब तक लिए गए निर्णय अत्यधिक महत्वपूर्ण रहे हैं। कोरोना के प्रसार पर रोक लगाने के लिए सरकार द्वारा अनेक तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। उसने कृषि और कुटीर उद्योगों में आ रही मुश्किलों पर गौर करते हुए उचित हल निकाला है। लेकिन सवाल अब भी यही उठता है कि क्या परिस्थितियां पहले की तरह सामान्य हो पाएंगी? आम जनता की सारी उम्मीदें सरकार से ही लगी हुई हैं। सरकार का यह कर्तव्य ही नहीं, जिम्मेदारी भी है कि वह लोगों को आ रही समस्याओं के समाधान निकाले और आम जनता को चिंता-मुक्त करे
मिताली, नई दिल्ली
ओपिनियन / शौर्यपथ / पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं में तनातनी जारी है। दोनों पक्ष अपनी-अपनी स्थिति को मजबूत बनाने में जुटे हुए हैं। हालांकि पिछले कई वर्षों में जिस तरह बातचीत से तनाव कम किए गए, इस बार भी सफलता मिल सकती है, लेकिन इस वक्त अहम सवाल यह है कि क्या चीन के सैनिक उस जमीन को खाली करने पर राजी हो जाएंगे, जो उन्होंने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का उल्लंघन करके अपने कब्जे में ले ली है?
चीन तभी संतुष्ट होगा, जब जमीनी हकीकत बदल जाए। इसके लिए कुछ मीटर पीछे तक दोनों सेना को लौटने के लिए कहा जाए और कब्जाई गई ज्यादातर जमीन बीजिंग को सौंप दी जाए। चीन कब्जे वाले क्षेत्र को खाली करने पर भी सहमत हो सकता है, लेकिन बदले में वह कई रियायतों की उम्मीद करेगा, जिनमें वास्तविक नियंत्रण रेखा के भारतीय हिस्से में सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी ढांचागत विकास कार्यों को रोकना भी शामिल हो सकता है। संभव है, बनाए गए ढांचों को तोड़ने की मांग भी करे। 2017 में जब डोका ला विवाद हुआ था, तब भी दोनों तरफ की सेनाएं पीछे हटी थीं। चीन ने सड़क-निर्माण की अतिरिक्त गतिविधियां तो रोक दी थीं, लेकिन कब्जे वाले इलाके में अपनी स्थिति को मजबूत बनाने का काम उसने जारी रखा। कुल मिलाकर, जमीनी सच्चाई चीन के हित में बदल गई थी, हालांकि आगे किसी दखल को लेकर भारत ने पहले ही अपनी कार्रवाई रोक दी थी। इसीलिए चीन के इस व्यवहार का जब तक भारत कोई प्रभावी काट नहीं ढूंढ़ लेता, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इस तरह की घटनाओं के होने की न सिर्फ आशंका बनी रहेगी, बल्कि ऐसी घटनाएं ज्यादा तीव्रता से हो सकती हैं।
चीन के इस खेल का एक और पहलू है। भारत-चीन सीमा पर ही नहीं, दक्षिण चीन सागर, ताइवान जलडमरूमध्य और पीत सागर पर भी ऐसा ही कुछ चल रहा है। चीन की हर कार्रवाई, जब तक कि वह किसी दूसरी कार्रवाई से जुड़ी हुई न हो, एक मजबूत व जवाबी सैन्य प्रतिक्रिया के लिए आवश्यक धमकी नहीं मानी जा सकती। हालांकि, बदलते वक्त में इसी तरह की ‘एकल कार्रवाई’ की शृंखला इलाके में शक्ति-संतुलन में उल्लेखनीय बदलाव का वाहक बनती है। इसी कारण दक्षिण चीन सागर और कई विदेशी द्वीपों पर चीन का कब्जा व सैन्यीकरण उस स्थिति में पहुंच गया है कि सिर्फ सैन्य प्रतिक्रिया (संभवत: युद्ध) से ही बीजिंग को रोका जा सकता है। जाहिर है, जोखिम भरा यह कदम शायद ही कोई उठाए। हां, ताकतवर मुल्कों से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे चीन के आगामी अतिक्रमण को रोकने के प्रयास करें।
चीन के इस खेल को हमने वर्षों से भारत-चीन सीमा पर देखा है। यहां छोटी-छोटी गतिविधियां लगातार होती रही हैं, जिनका भारतीय पक्ष विरोध करते रहे हैं, मगर वे चीन द्वारा हड़पी जा रही जमीन को फिर से वापस पाने के लिए किसी सैन्य आक्रमण का रास्ता अपनाने को तैयार नहीं हैं। हमें कब्जा जमाने की चीन की इस नीति को समझना होगा और इसके खिलाफ एक प्रभावी रणनीति बनानी होगी। उन इलाकों में, जहां हमें सामरिक लाभ हासिल है, वहां वास्तविक नियंत्रण रेखा की अस्पष्टता का अपने हित में उपयोग करना होगा। इसके बाद ही यथास्थिति बहाल करने के लिए सौदेबाजी करते समय हम कुछ दबाव बनाने की स्थिति में होंगे।
चीन के इस खेल के तीसरे पक्ष पर भी ध्यान देने की जरूरत है। दरअसल, चीन किसी भी देश की आर्थिक और सैन्य क्षमताओं को सावधानीपूर्वक आंकने के बाद ही अपना रुख तय करता है। यह कभी-कभी गलत भी हो सकता है, क्योंकि चीन के नेता अपनी सोच को लेकर आत्म-केंद्रित होते हैं। दूसरे देशों के साथ आपसी संबंधों में सामरिक चपलता, यहां तक कि विश्वासघात के प्रति भी, वहां सांस्कृतिक पूर्वाग्रह है। इसी कारण, 1962 के युद्ध के बाद सीमा पर पुरानी स्थिति बहाल करने संबंधी चीन का दावा ऐसा कथित राहत-पैकेज था, जो प्रचलित यथास्थिति को ही औपचारिक जामा पहनाता रहा। 1985-86 में पूर्वी क्षेत्र में वांडुंग की घटना के बाद भी पैकेज प्रस्ताव को इस तरह फिर से परिभाषित किया गया कि पूर्व में, जो सबसे बड़ा विवादित क्षेत्र है, सार्थक छूट हासिल करने के लिए भारत को एक समझौते की दरकार है, जिसके बदले में चीन पश्चिमी क्षेत्र में उचित, हालांकि अपरिभाषित छूट हासिल करेगा। फिर इसके बाद यह संदेश दिया गया कि किसी भी समझौते में चीन को तवांग सौंपना होगा।
अब जो हम देख रहे हैं, वह बताता है कि चीन अपने उसी लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। उसके व्यवहार से पता चलता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा के सटीक सीमांकन पर अस्पष्टता से उसे यह अवसर मिला है कि वह स्थानीय व सामरिक लाभ हासिल करने के लिए कुछ जगहों पर विवाद को हवा दे, साथ-साथ ऐसा माहौल भी बनाया जाए कि भारत के साथ किसी समझौते में उसका हाथ मजबूत है।
कुछ विश्लेषकों का सुझाव है कि चीन को उकसाने वाला ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए कि भारत मजबूर होकर अमेरिका के करीब जाए। इसका निहितार्थ यह भी है कि चीन जिन देशों को अपना विरोधी मानता है, उनसे उसकी दूरी भारत पर दबाव घटा सकती है। हालांकि यह अजीब तर्क है। यह संकेत करता है कि भारत की विदेश नीति पर फैसला तो वाशिंगटन में हो रहा है, लेकिन उसे चीन की प्राथमिकताओं के मुताबिक बदल दिया जाना चाहिए? भारत की विदेश नीति को नई दिल्ली में बनाया जाना चाहिए, जो देश के सर्वोत्तम हित में है। यह नई दिल्ली का अनुभव रहा है कि अन्य तमाम ताकतवर मुल्कों के साथ-साथ भारत और अमेरिका के आपसी मजबूत रिश्तों से चीन की चुनौती का बेहतर प्रबंधन करने की क्षमता और कुशलता बढ़ती है। भारत दुनिया से जितना अलग-थलग होगा, चीन का उस पर उतना ही ज्यादा दबाव पड़ने का खतरा बढ़ेगा।
बेशक अभी अमेरिका के साथ किसी तरह के सैन्य समझौते की संभावना नहीं है, लेकिन दुनिया के ताकतवर राष्ट्रों का एक मजबूत व विश्वसनीय जवाबी प्रतिक्रिया-तंत्र बनाना एक विवेकपूर्ण रणनीति है, जो चीन की परभक्षी नीतियों के प्रति भारत की चिंताओं को समझे। हालांकि, चीन के साथ शक्ति-संतुलन बनाने के लिए भारत को अपनी क्षमता भी दुरुस्त करनी होगी, जो कि मौजूदा विवाद के मूल में है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) श्याम सरन, पूर्व विदेश सचिव
// सर्वाधिक परिवारों को 100 दिनों का रोजगार देने में देश में दूसरे स्थान पर
// इस साल अब तक 25.97 लाख ग्रामीणों को काम, 1114 करोड़ का मजदूरी भुगतान
// मुख्यमंत्री और पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री ने लॉक-डाउन के दौरान उत्कृष्ट कार्य के लिए पंचायत प्रतिनिधियों और मैदानी अधिकारियों की पीठ थपथपाई
रायपुर / शौर्यपथ / मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के विभिन्न मानकों पर लॉक-डाउन के बावजूद छत्तीसगढ़ का उत्कृष्ट प्रदर्शन जारी है। मुख्यमंत्री बघेल के निर्देश पर चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 के शुरूआती दो महीनों में ही प्रदेश ने साल भर के लक्ष्य का 37 फीसदी काम पूरा कर लिया है। इस वर्ष अप्रैल और मई माह के लिए निर्धारित लक्ष्य के विरूद्ध प्रदेश में 175 प्रतिशत काम हुआ है। इन दोनों मामलों में छत्तीसगढ़ देश में सर्वोच्च स्थान पर है। दो माह के भीतर सर्वाधिक परिवारों को 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराने में छत्तीसगढ़ दूसरे स्थान पर है। यहां 1996 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार दिया जा चुका है।
चालू वित्तीय वर्ष में अब तक पांच करोड़ तीन लाख 37 हजार मानव दिवस रोजगार का सृजन कर 25 लाख 97 हजार ग्रामीण श्रमिकों को काम उपलब्ध कराया गया है। इस दौरान 1114 करोड़ 27 लाख रूपए का मजदूरी भुगतान भी किया गया है। कोविड-19 का संक्रमण रोकने लागू देशव्यापी लॉक-डाउन के बावजूद प्रदेश में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाए रखने में मनरेगा के अंतर्गत व्यापक स्तर पर शुरू किए कार्यों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विपरीत परिस्थितियों में इसने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को रोजी-रोटी की चिंता से मुक्त करने के साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दी है।
मुख्यमंत्री बघेल और पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने लॉक-डाउन के दौरान मनरेगा में उत्कृष्ट कार्यों के लिए पंचायत प्रतिनिधियों और मैदानी अधिकारियों की पीठ थपथपाई है। उन्होंने प्रदेश भर में सक्रियता एवं तत्परता से किए गए कार्यों की सराहना करते हुए सरपंचों, मनरेगा की राज्य इकाई तथा जिला एवं जनपद पंचायतों की टीम को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बीच यह बड़ी उपलब्धि है। उनकी कोशिशों से कोविड-19 से बचाव और लाखों लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही बड़ी संख्या में आजीविकामूलक सामुदायिक एवं निजी परिसंपत्तियों का निर्माण हुआ है।
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा मनरेगा के अंतर्गत चालू वित्तीय वर्ष के प्रथम दो महीनों अप्रैल और मई के लिए दो करोड़ 88 लाख 14 हजार मानव दिवस रोजगार सृजन का लक्ष्य रखा गया था। इसके विरूद्ध प्रदेश ने पांच करोड़ तीन लाख 37 हजार मानव दिवस रोजगार का सृजन कर 175 प्रतिशत उपलब्धि हासिल की है। यह इस वर्ष के लिए निर्धारित कुल लेबर बजट साढ़े तेरह करोड़ मानव दिवस का 37 प्रतिशत है। चालू वित्तीय वर्ष में अब तक 1996 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया गया है। मनरेगा में प्रदेश में प्रति परिवार औसत 23 दिनों का रोजगार प्रदान किया गया है, जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 16 दिन है। इस मामले में छत्तीसगढ़ पूरे देश में शीर्ष पर है।
प्रदेश में मनरेगा श्रमिकों को समयबद्ध मजदूरी भुगतान के लिए मस्टर रोल बंद होने के आठ दिनों के भीतर द्वितीय हस्ताक्षर कर 98 प्रतिशत फण्ड ट्रांसफर ऑर्डर जारी कर दिए गए हैं। बीते अप्रैल और मई महीने के दौरान कुल 1114 करोड़ 27 लाख रुपए का मजदूरी भुगतान श्रमिकों के खातों में किया गया है। कोविड-19 के चलते विपरीत परिस्थितियों में श्रमिकों के हाथों में राशि पहुँचने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अच्छा असर पड़ा है। इसने रोजगार की चिंता से मुक्त करने के साथ ही ग्रामीणों की क्रय-क्षमता भी बढ़ाई है। प्रदेश भर में काम कर रहे मजदूरों की संख्या मई महीने के आखिरी में 25 लाख 27 हजार पहुंच गई है। अप्रैल के आखिरी में यह संख्या 15 लाख 74 हजार तथा मार्च के आखिरी में 57 हजार 536 थी। अभी प्रदेश की 10 हजार 155 ग्राम पंचायतों में कुल 44 हजार 964 कार्य चल रहे हैं। इनसे मौजूदा लॉक-डाउन में ग्रामीण जन-जीवन में आया ठहराव दूर हो गया है।
दुर्ग / शौर्यपथ / कलेक्टर डा. सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे ने आज पुलगांव नाका स्थित वृद्धाश्रम का निरीक्षण किया। यहां उन्होंने व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया और बुजुर्गों से बातचीत की। वहां पर उपलब्ध सुविधाओं से उन्होंने संतोष जताया। उन्होंने कहा कि अभी सफाई व्यवस्था पूरी तरह मुकम्मल नहीं है। अभी मानसून आने से पूर्व पूरे कैंपस की अच्छे से सफाई कराइये और हर दिन बेहतर सफाई होनी चाहिए। अधिकारी इसकी लगातार मानिटरिंग करें।
कलेक्टर ने बुजुर्गों से पूछा कि आप लोगों को यहां सभी सुविधाएं मिल रही हैं न। बुजुर्गों ने सुविधाओं से संतोष जताया। कलेक्टर ने पूछा कि नाश्ता और खाना किस समय पर मिलता है और इसकी गुणवत्ता कैसी रहती है। बुजुर्गों ने बताया कि खाना समय पर मिल जाता है और अच्छा रहता है। इस संबंध में हम लोग संतुष्ट हैं। विभागीय अधिकारी समय-समय पर आते रहते हैं और व्यवस्था के बारे में पूछते रहते हैं। यहां हमारी देखभाल करने वाला स्टाफ भी काफी अच्छा है। स्वास्थ्यगत परेशानी हो तो यहां कार्यरत नर्स से कह देते हैं।
कलेक्टर ने बुजुर्गों से कहा कि आप सभी कोरोना संक्रमण के संबंध में भी सजग रहें। बीच-बीच में हाथों को सैनिटाइज करते रहें। मास्क हमेशा लगाए रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का हमेशा ध्यान रखें रहें। कलेक्टर ने अधिकारियों से आश्रम में रह रहे बुजुर्ग जनों के स्वास्थ्य जांच के बारे में जानकारी ली। अधिकारियों ने बताया कि महीने में तीन बार स्वास्थ्य परीक्षण कराया जाता है। इसके अतिरिक्त यहां एक नर्स भी रहती हैं जो हमेशा बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर नजर रखती है। किसी तरह की दिक्कत आने पर तुरंत अस्पताल भेजे जाने की कार्रवाई की जाती है।
कलेक्टर ने समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों से कहा कि वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्ग नागरिक अच्छा समय बिताएं। हम उनका पूरा ख्याल रख पाए, इस बाबत जिस तरह से प्रयास किए जा सकते हैं। वे सुनिश्चित कराएं। इसके अतिरिक्त कैंपस काफी सुंदर हो, साफ सुथरा हो। इसके अतिरिक्त बुजुर्गों के आराम से बैठने के लिए एक बहुत छोटा सा गार्डन भी बनाने के निर्देश उन्होंने दिए। समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों ने बताया कि वे नियमित रूप से संस्था की मानिटरिंग करते हैं और बुजुर्गों से पूछकर उनकी सुविधा का पूरा ध्यान रखते हैं। कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर आश्रम में सैनिटाइजेशन के साथ ही इस संबंध में लगातार जागरूकता फैलाने की दिशा में हम काम कर रहे हैं। इस दौरान एसडीएम खेमलाल वर्मा, नजूल अधिकारी एवं डिप्टी कलेक्टर अरुण वर्मा सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
दुर्ग / शौर्यपथ / नीलामी में अधिक ऑफर मूल्य होने के बाद भी दुर्ग नगर पालिका निगम द्वारा परिवादियों को दुकान का आवंटन नहीं किया गया और जमा की गई अमानत राशि की मांग करने पर अमानत राशि का भुगतान भी नहीं किया। इसे आचरण को व्यवसायिक कदाचार ठहराते हुए जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष लवकेश प्रताप सिंह बघेल, सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने दो अलग-अलग मामलों में नगर पालिक निगम दुर्ग के आयुक्त पर 6 लाख 43 हजार रुपये हर्जाना लगाया।
अनावेदक का जवाब
नगर पालिक निगम दुर्ग ने सिर्फ परिवादिनी डॉ. प्राची मिश्रा के मामले में ही अपना जवाब प्रस्तुत किया जिसमें उसने कहा कि परिवादिनी ने अपनी जमा राशि जानबूझकर वापस नहीं ली है और वह किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति राशि पाने की हकदार नहीं है।
फोरम का फैसला
प्रकरण में पेश दस्तावेजों एवं प्रमाणों तथा दोनों पक्षों के तर्को के आधार पर जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष लवकेश प्रताप सिंह बघेल, सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने यह सिद्ध पाया कि परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत निविदा को मेयर इन काउंसिल द्वारा दिनांक 20 जून 2012 को निरस्त करके इसकी सूचना परिवादिनी को दी गई तब परिवादिनी ने छत्तीसगढ़ नगर पालिका निगम अधिनियम 1956 के तहत अपील प्रस्तुत की जिसका निराकरण दिनांक 30 अक्टूबर 2015 को किया गया और परिवादिनी ने इसके बाद 27 अगस्त 2016 को आयुक्त नगर निगम दुर्ग के समक्ष पुनर्विचार आवेदन दायर किया और दिनांक 3 नवंबर 2017 को अपनी अमानत राशि की मांग की। मांगे जाने पर भी अमानत राशि का भुगतान ना कर अनावेदक ने व्यवसायिक कदाचार किया है और परिवादिनी को क्षति पहुंचाई गई है।
जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष लवकेश प्रताप सिंह बघेल, सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने नगर निगम दुर्ग आयुक्त पर 6 लाख 43 हजार रुपये हर्जाना अधिरोपित किया, जिसके तहत पहले मामले में अमानत राशि 486350 रुपये, मानसिक क्षतिपूर्ति स्वरूप 20000 रुपये, वाद व्यय के रूप में 1000 रुपये देना होगा और दूसरे मामले में अमानत राशि 125000 रुपये, मानसिक कष्ट के एवज में 10000 रुपये एवं वाद व्यय के रुप में 1000 देना होगा। साथ ही अमानत राशि पर 6 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी भुगतान करना होगा।
पहला मामला
कादंबरी नगर दुर्ग निवासी नेत्र चिकित्सक डॉ. श्रीमती प्राची अरोरा ने दिनांक 13 सितंबर 2011 को दुर्ग नगर निगम द्वारा आमंत्रित निविदा में भाग लेते हुए दो दुकानों के लिए निविदा भरकर प्रति दुकान 243175 रुपये के हिसाब से कुल रकम 486350 रुपये अमानत राशि के रूप में जमा कराई। निविदा खोलने पर परिवादिनी का ऑफर मूल्य सबसे अधिक था और उसे दुकान पाने की पात्रता थी। परिवादिनी द्वारा बार-बार दुर्ग नगर निगम से संपर्क करने पर भी मात्र आश्वासन दिया जाता रहा लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई और दिनांक 28 मई 2012 को दुकानों की दर कम होने के आधार पर निविदा अस्वीकार कर दी गई। इसके बाद दिनांक 06 जून 2012 को परिवादिनी को यह जानकारी दी गई कि लिपिकीय त्रुटिवश निविदा निरस्त होने की सूचना जारी हो गई थी, अब दुकान आवंटन का निर्णय एवं विचार एमआईसी में किया जाएगा।
दिनांक 25 जून 2012 को परिवादिनी की निविदा अस्वीकार कर दी गई। परिवादिनी ने 12 सितंबर 2012 को नगर निगम की अपील समिति के समक्ष अपील प्रस्तुत की जिसका निराकरण लंबे समय तक नहीं किए जाने के कारण परिवादी ने उच्च न्यायालय बिलासपुर में रिट याचिका प्रस्तुत की जिसमें माननीय उच्च न्यायालय ने अपील कमेटी के समक्ष मामले का निराकरण कराने के निर्देश दिए। दिनांक 30 अक्टूबर 2015 को परिवादिनी की अपील को नगर निगम की अपील समिति ने निरस्त कर दिया किंतु परिवादिनी द्वारा जमा कराई गई अमानत राशि 486350 को वापस नहीं किया।
दूसरा मामला
इसी प्रकार दूसरा मामला परिवादिनी अनीता अरोरा का है जिसने सुभाष नगर प्राथमिक शाला दुर्ग स्थित दुकान क्रमांक 9 के संबंध में अमानत राशि 125000 जमा करके दिनांक 22 जून 2011 को नगर निगम द्वारा आमंत्रित निविदा में भाग लिया था। इस मामले में भी पहले मामले की तरह ही नगर निगम द्वारा व्यवहार किया गया।
राजनांदगांव / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ सरकार पूरे प्रदेश में एक जुलाई से स्कूलों को संचालित करने की अनुमति दे सकती है जिसको लेकर राज्य स्तर पर लगातार जिम्मेदार उच्च अधिकारीयों व जनप्रतिनिधीयों की मिटिंग भी हो रही है।
लेकिन वंही छत्तीसगढ़ पैरेंटस एसोसियेशन सरकार के इस निर्णय को लेकर हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है। प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल का कहना है कि प्राईवेट स्कूलों के द्वारा बसों और अन्य वाहनों में जिस प्रकार बच्चों को ठूंस-ठूंस कर कई किलोमीटर दूर -दूर से स्कूल लाया व ले जाया जाता है और क्लास रूम में भी जरूरत से ज्यादा बच्चों को बैठाया जाता है ऐसे स्थिति में स्कूल खोलने की जल्दबाजी किया जाना उचित नही होगा क्योंकि कोरोना का कोई वैक्सिन देश में नही है और बच्चे इस महामारी से जल्द संक्रमित हो सकते है। इसलिये सरकार को पूरी तैयारी और पूरी जिम्मेदारी के साथ कोई निर्णय लिया जाना चाहिए सिर्फ प्राईवेट स्कूलों के दबाव में आकर यदि सरकार कोई निर्णय लेगी तो एसोसियेशन के द्वारा इस निर्णय को हाईकोर्ट में चैलेंज किया जाएगा।
फीस और टीचरों के वेतन को लेकर पहले ही प्रदेश में हहाकार मचा हुआ है और मामला हाईकोर्ट तक पंहुच चूका है और अब स्कूल आरंभ करने को लेकर भी मामला गर्म होते जा रहा है। कब क्या खुलेगा, कितने समय क्या बंद होगा, ई-पास लेना पड़ेगा, कि नही लेना पड़ेगा, सरकार के हर एक दिन नये-नये फरमान से जनता पहले ही परेशान है।
दुर्ग / शौर्यपथ / रजिस्ट्री ऑफिस का प्रस्तावित नया भवन पूरी तरह से हाईटेक होगा। इसके लिए भूमि चिन्हांकन की कार्रवाई की जा रही है। आज इस सिलसिले में कलेक्टर डाक्टर सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे कातुलबोड़ एवं पुलगांव पहुंचे। वहां अधिकारियों ने इन्हें प्रस्तावित साइट दिखाये। इनमें से किसी एक का चयन रजिस्ट्री ऑफिस के लिए होगा। कलेक्टर ने वहां मौजूद एसडीएम खेमलाल वर्मा, नजूल अधिकारी अरुण वर्मा एवं जिला पंजीयक भूआर्य से प्रस्तावित भवन के संबंध में विस्तृत चर्चा की।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सरकारी कार्यालयों में लोगों को सभी जरूरी सुविधाएं देने निर्देशित किया है तथा नवीनतम तकनीक से अधिकतम अपडेट करने निर्देशित किया है, इसी क्रम में रजिस्ट्री आफिस का नया भवन भी बनाया जाएगा जो पूरी तरह हाइटेक होगा। कलेक्टर ने कहा कि प्रस्तावित भवन में ऐसी सभी सुविधाएं रखी जाएं जिससे रजिस्ट्री कराने आए नागरिकों को किसी तरह की असुविधा का सामना न करना पड़े। रजिस्ट्री आफिस में काफी संख्या में रोज रजिस्ट्री होते हैं इसलिए थोड़ा समय तो सभी को इंतजार करना ही पड़ता है। ऐसे में इंतजार करने में, प्रक्रिया के दौरान इंतजार करने में किसी तरह की दिक्कत न हो, इसके लिए सीटिंग अरेंजमेंट बेहतर तरीके से करने के निर्देश दिए। इसके अतिरिक्त हाइटेक आफिस की जरूरतों के मुताबिक तकनीकी सुविधा से पूरी तरह दक्ष आफिस बनाये जाने को भी सुनिश्चित करने के निर्देश उन्होंने दिए।
जिला पंजीयक ने बताया कि हाइटेक ऑफिस में दो बातों पर ध्यान दिया जाएगा। पहला तो आम नागरिकों की सुविधा पर, इसमें पर्याप्त संख्या में सीटिंग की सुविधा पर ध्यान दिया जाएगा। यह इस तरह होगा कि अधिकतम भीड़भाड़ वाले दिनों में भी लोगों को पर्याप्त रूप से बैठने की आरामदायक जगह मिल जाए। इसके अतिरिक्त बुनियादी सुविधाओं का भी पूरा ध्यान रखा जाएगा। हाईटेक आफिस में जिस तरह की सुविधाएं होती हैं सभी सुविधाएं यहां पर सुनिश्चित कराई जाएगी। दूसरा तकनीक में भी ध्यान दिया जाएगा। रजिस्ट्री कार्य हाईटेक हो गया है। इस हाइटेक कार्य के मुताबिक कार्यालय में टेक्नालाजी भी सुनिश्चित की जाएगी।
भिलाई स्टील प्लांट के आस-पास स्टील फैब्रिकेशन क्लस्टर विकास के रोडमैप के लिए की चर्चा
भिलाई / शौर्यपथ / इस्पात मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस्पात मंत्रालय, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, रेलवे मंत्रालय, आईएनएसडीएजी इन्सडॉग स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेड और सेल के आस-आस के स्टील फैब्रिकेटर्स के अधिकारियों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये एक बैठक की ।
इस बैठक का आयोजन भिलाई स्टील प्लांट के आस-पास स्टील फैब्रिकेशन क्लस्टर विकसित करने की विस्तृत कार्ययोजना की रूपरेखा तैयार करने और स्टील फैब्रिकेटर्स की स्टील जरूरतों को पूरा करने मेँ आ रही दिक्कतों पर बातचीत करने के लिए आयोजित किया गया। स्टील फैब्रिकेशन क्लस्टर के विकास की यह संकल्पना इस क्षेत्र मेँ माइक्रो, स्माल एवं मीडियम इंटरप्राइजेज को बढ़ावा देगी, रोजगार पैदा करने मेँ सहायक होगी और स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करेगी। यह प्रधानमंत्री की आत्मनिर्भर भारत बनाने की भावना के अनुकूल है। प्रधान ने भिलाई स्टील प्लांट के सीईओ को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि दुर्ग जिले में स्टील फैब्रिकेटर की स्टील प्लेट की जरूरतों को पूरी तरह सुनिश्चित किया जाय और इस तरह की खरीद के दौरान आने वाली किसी भी तरह की रुकावट का निदान किया जाय।
प्रधान ने रेलवे की तर्ज पर, जो कि बड़े पैमाने पर इस्पात पुलों का उपयोग कर रहा है; एमओआरटीएच मॉर्थ द्वारा निर्मित पुलों में इस्पात के उपयोग को बढ़ाने की रणनीति पर भी चर्चा की।
दुर्ग / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ शासन की नरूवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी योजना से महिलाओं का ऐसा संबल मिला है कि लाकडाउन के कठिन वक्त में भी इनकी आजीविका चलती रही और फली-फूली भी। दुर्ग में अनेक बाडिय़ों में लाकडाउन में महिला स्वसहायता समूहों ने बड़े पैमाने पर सब्जी उगाई और इसे बाजार तक ले गई। ऐसी ही कहानी है धमधा विकासखंड के ग्राम चेटुवा की। यहां महिलाओं ने बाड़ी में जिमीकंद, बरबट्टी, भिंडी, करेला, मेथी और अनेक प्रकार की भाजी लगाई। यह साधना कठिन वक्त में काम आई, इस दौरान गांव में बाहर से सब्जी मंगाने की जरूरत नहीं पड़ी। जागृति स्वसहायता समूह की महिलाओं की बाड़ी में इतनी सब्जी आई कि पूरे गांव के इस्तेमाल में आ गई। इसकी मात्रा पर नजर डालिये, जिमीकंद का उत्पादन 700 किलोग्राम हुआ, भिंडी का उत्पादन 600 किलोग्राम हुआ और 150 किलोग्राम भाजी का उत्पादन हुआ।
समूह की सदस्य राजेश्वरी ने बताया कि हम लोगों ने हर तरह की सब्जी उगाई, कई प्रकार की वैरायटी की सब्जी गांव वालों को खाने को मिली। गांव की बाड़ी की सब्जी स्वादिष्ट भी बहुत लगी। राजेश्वरी ने बताया कि शहर से आने वाली सब्जी में केमिकल बहुत मिलाते हैं स्वाद नहीं आता। जब हमारी सब्जी लोगों ने खाई, फिर तो इसकी मांग खूब बढ़ गई। अब आगे के लिए बहुत सार संभावनाएं खुल गई हैं। उन्होंने बताया कि लाकडाउन के दौरान सत्रह हजार पांच सौ रुपए की कमाई हम लोगों को हुई।
राजेश्वरी ने बताया कि हम लोगों के पास घर के काम के बाद काफी समय बच जाता था। अब हमारे समय का गुणवत्तापूर्वक उपयोग हो रहा है। हम लोगों को सब्जी भी खरीदनी नहीं पड़ रही। लोग सब्जी हमारी बाड़ी से खरीद रहे हैं और हमारी आय हो रही है। हम लोग निकट भविष्य में इसका विस्तार भी करेंगे। सभी महिलाएं बहुत खुश हैं। उल्लेखनीय है कि सब्जी के इस उत्पादन के पीछे कंपोस्ट खाद की भी भूमिका रही है। गौठानों में बने आर्गेनिक खाद बाड़ी में काम आ रहे हैं। इससे खाद का खर्च बच रहा है। इस प्रकार न्यूनतम लागत में अधिकतम उत्पादन सिद्ध हो रहा है। बड़ी बात यह है कि इससे महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा मिला है। शासन ने बाड़ी के लिए सिंचाई सुविधा उपलब्ध करा दी। हार्टिकल्चर विभाग ने उन्हें सभी तरह की तकनीकी सहायता दी। यह माडल ग्रामीण विकास के लिए बड़ी संभावनाएं पैदा करता है और आत्मनिर्भरता के लिए मिसाल है जिससे लाकडाउन जैसे कठिन समय में भी आजीविका का रास्ता बंद नहीं होता।
दुर्ग / शौर्यपथ / निगम आयुक्त इंद्रजीत बर्मन द्वारा निगम की प्रशासनिक व्यवस्था एवं शासन के अतिमहत्वपूर्ण योजनाओं के कार्यो को सुचारु रुप से सम्पदान करने के लिए कार्यो का विभाजन कर निगम कर्मचारियों को दायित्व सौंपा गया है। इसके अंतर्गत योगेश शूरे सहा0 राजस्व निरीक्षक को आईएचएसडीपी आवास योजना के समस्त दायित्वों से मुक्त करते हुये निराश्रित पेंशन शाखा का प्रभारी अधिकारी का दायित्व सौंपा गया है।
सुरे पेंशन शाखा के संपूर्ण कार्यो का निवर्हन करेगें। इसके अलावा श्री निशांत यादव राजस्व उप निरीक्षक को आईएचएसडीपी आवास योजना तथा प्रधानमंत्री आवास योजना के सर्वेक्षण कार्य का नोडल अधिकारी तथा श्री चंदन मनहरे को सहायक नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है। यह आदेश 2 जून 2020 से प्रभावशील रहेगा ।
दुर्ग / शौर्यपथ / छ0ग0 शासन के सूडा कार्यालय से नगर पालिक निगम दुर्ग में नियुक्त अभिनंदन यादव मिशन प्रेरक को मास्क नहीं लगाये जाने के कारण 100 रु0 जुर्माना भरना पड़ा। श्री यादव स्वस्थ्य विभाग द्वारा कार्यालयीन कार्य से आयुक्त महोदय के कक्ष में बिना मास्क लगाये प्रवेश कर लिया था। निगम आयुक्त इंद्रजीत बर्मन ने उनसे पूछा तुम्हारा मास्क कहॉ हैं। उन्होनें कहा पूरे शहर वासियों को मास्क लगाने की अपील व अनुरोध करने वाली निगम के कार्यालय में वहॉ काम करने वाले स्वयं मास्क का उपयोग नहीं कर रहे हैं यह गलत है और लॉकडाउन के नियमों का उलंघन हैं।
उन्होनें तत्काल उनका 100/- रु0 जुर्माना कटवाकर निगम कोष में जमा करायें। उन्होनें समस्त आम जनता से अपील कर कहा कि भारत सरकार द्वारा लॉकडाउन 5 लागू किया गया हैं इसमें कुछ गतिविधियों को और छूट प्रदान की गई है परन्तु शर्तो के साथ उसका पालन करना अनिवार्य हैं। इसमें सोशल डिस्टेंटस के साथ मास्क लगाना अनिवार्य है।
लाइफस्टाइल /शौर्यपथ / बच्चे की खाने की आदत क्या आपकी चिंता का कारण बन जाती है? उसके अंदर पोषण की कमी, भोजन को नजरअंदाज करने की आदत या फिर कभी भी कुछ भी खा लेने जैसी बातें परेशान करती हैं? ऐसे में जरूरी हो जाता है कि उनमें छुटपन से ही खाने की आदत पनपें। ये कैसे होगा? बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी।
बच्चा आगे-आगे और आप पीछे-पीछे, हाथ में कौर समेटे। मानो रोज का यही हाल हो गया है। पोषण के कुछ निवाले बच्चे के पेट तक पहुंचाने की जिस जद्दोजहद से आप गुजरती हैं, वो कभी खीज, तो कभी चिंता बन नजर आती है। आपकी शिकायत हर बार यही कि वह खाता नहीं है। इधर-उधर की चीजें खाएगा, पर खाना नहीं। माना कि आपकी प्राथमिकता पोषण है, पर बच्चे को समझ कैसे आए? इसके लिए आपको कुछ जुगत लगानी होगी, कुछ सूत्र गढ़ने होंगे, ताकि उनकी मदद से आपकी बात आपका बच्चा समझ सके और आपको ज्यादा परेशान किए बिना अपनी खानपान की आदतों में सुधार कर सके।
रंग आएंगे काम-
बहुत से बच्चे खाने की शक्ल में मीन-मेखनिकालते हैं और खाने से मना कर देते हैं। हो सकता है, आपका लाडला भी इसी जमात का हिस्सा हो। साइकोलॉजिस्ट डॉ. आराधना गुप्ता कहती हैं कि बच्चों में स्वस्थ खानपान की आदत को विकसित करने के लिए रंग-बिरंगे व्यंजन बनाइए। लक्ष्य स्थापित कीजिए कि हफ्ते के हर दिन इंद्रधनुष के रंगों में से किसी एक रंग का खाना उन्हें परोसा जाए। साथ ही उनकी थाली को आकर्षक बनाने के लिए कुछ प्रयोग भी कर सकती हैं, जैसे उसकी थाली में छोटी और पतली रोटी रखें, उसकी शेप के साथ भी प्रयोग कर सकती हैं।
समझाएं खाना है अनमोल-
बच्चों में खानपान की अच्छी आदतें विकसित करने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें खाने का मोल पता हो। अब सवाल यह उठता है कि आप इसे करेंगी कैसे? यकीनन आप बच्चे को पोषण देना चाहती हैं। अकसर ऐसा करने के चक्कर में उसके सामने कई सारी चीजें एक साथ रख देती हैं। पर इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को हर चीज एक साथ नहीं दी जा सकती। आपका ऐसा करना बच्चे को भ्रमित कर सकता है। ऐसे में वो सब कुछ छोड़ सकता है। ऐसा न हो इसलिए उसे एक टाइम पर एक ही विकल्प दें, जैसे रोटी या चावल, दाल या सब्जी। साथ ही बच्चे की थाली में थोड़ा ही भोजन परोसें, ताकि वह उसे पूरा खत्म कर सके।
सबके साथ परोसें खाना-
सबके साथ बच्चों की खुराक बढ़ जाती है। यह भी जरूरी है कि बच्चे को वही चीजें सर्व की जाएं, जो अन्य लोग खा रहे हैं।अगर आप अपने बच्चे को कुछ अलग परोसेंगी तो हो सकता है कि वह उसे खाने से परहेज करे। कोशिश कीजिए कि उसके मुताबिक, उसके स्वाद का खाना उसे दें। पर, यह ध्यान रखें कि उसकी थाली में भी वही हो, जो दूसरों की थाली में। साथ ही आपको इस बात का भी ध्यान रखना है कि बच्चे को भी सभी के साथ खाना परोसें। ऐसा करने से वह बड़ों की नकल कर टेबल मैनर सीखने की कोशिश करेगा। हो सकता है कुछ दिन वह टेबल गंदा करे, पर उसकी गलतियों को नजरअंदाज करें और उसको साफ-सफाई करने और रखने के लिए प्रेरित करें।
खुद से खाने की आदत डालें-
बच्चे में खुद से अपना खाना खाने की आदत डालें। डॉ. आराधना की मानें तो पंद्रह महीने के बच्चे में खानपान की खुद की समझ आनी शुरू हो जाती है। लिहाजा, बढ़ती उम्र के साथ उसे खुद से खाने देने की आदत डालनी चाहिए। इसकी शुरुआत आप सूखी चीजों जैसे गाजर, पापड़ आदि से कीजिए। उसके बाद गाढ़ी चीजों को चम्मच से खाने की आदत बच्चे में डालिए। धीरे-धीरे वह खुद से खाने लगेगा और उसे इसमें मजा भी आने लगेगा।
सब कुछ है जरूरी-
बच्चा जब सॉलिड खाना खाने की शुरुआत करता है, उस वक्त दलिया और सूजी जैसे विकल्प उसके लिए बहुत अच्छे साबित होते हैं। पर, कई बार माएं ऐसा लंबे समय तक करती रहती हैं। ऐसा करना सही नहीं है। चौदह या पंद्रह माह की आयु में ही बच्चों के टेस्ट बड्स सक्रिय होने लगते हैं। उन्हें ठंडा, गर्म, खट्टा, मीठा हर स्वाद समझ में आने लगता है। ऐसे में उनमें शुरुआत से ही सब कुछ खाने की आदत डालनी जरूरी है। डॉ. आराधना की मानें तो बच्चे एक ही चीज बार-बार खाकर बोर हो जाते हैं इसलिए कोशिश कीजिए कि उन्हें हर दिन कुछ अलग परोसा जाए।
जबरन खाने पर न दें जोर-
बच्चे जब खाना नहीं खाते तो अकसर मांएं उन्हें जबरन खाना खिलाना शुरू कर देती हैं। ऐसा करने की जगह खुद से कुछ सवाल पूछिए- क्या बच्चे के खाने में पर्याप्त अंतराल है? खाना बच्चे के स्वाद के अनुसार है क्या? क्या बच्चा खाने के पहले भी स्नैक्स खाता है? आपके लाडले की उतनी फिजिकल एक्टिविटी हो रही है, जितनी उसको जरूरत है? इस बाबत सीएसजेएम यूनिवर्सिटी की ह्यूमन न्यिूट्रशन डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. भारती दीक्षित कहती हैं कि बच्चे के दो खाने के बीच में तीन से चार घंटे का अंतराल होना जरूरी है। यूं तो जंक फूड से बच्चों को दूर ही रखना चाहिए, पर फिर भी अगर बच्चा नहीं मानता है तो खाने के कम से कम आधे घंटे पहले तक स्नैक्स नहीं देना चाहिए। जंक फूड भूख कम कर देता है।
बातें जरूरी वाली-
-बच्चे थोड़े बड़े हैं तो उनके साथ ही किचन के सामान की शॉपिंग करें। इस दौरान आपको उनकी पसंद जानने का मौका मिलेगा और बच्चे पौष्टिक तत्वों के महत्व को समझेंगे।
-दूध में कटौती है जरूरी। जब बच्चा खाने लायक हो जाए तो उसे दिन में सिर्फ दो दफा दूध देना चाहिए।
-नाश्ते में पैक्ड फूड यानी जूस, ब्रेड, नूडल्स आदि बच्चों को नहीं देना चाहिए। इनमें मौजूद अधिक मात्रा शर्करा, प्रिजरवेटिव्स बच्चे की शारीरिक और मानसिक वृद्धि पर दुष्प्रभाव डालते हैं।
-प्लास्टिक के स्कूल लंच बॉक्स और बोतल प्रयोग नहीं करें।इतना ही नहीं, लंच बॉक्स में रोटी या सैंडविच को एल्यूमिनियम फॉइल, क्लिंज फिल्म में भी नहीं लपेटना चाहिए। ये तीनों ही चीजें हमारी अच्छे बैक्टीरिया पर दुष्प्रभाव डाल कर पाचन क्रिया को प्रभावित करती हैं। इनसे रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट आती है। ये विषाक्त तत्वों को पैदा करते हैं।
-रात में खाना खाने के बाद चॉकलेट और आइसक्रीम सरीखी चीजें बच्चों को खाने के लिए नहीं दें। रात का खाना सोने के पहले की आखिरी खुराक होती है। इसका स्पष्ट प्रभाव नींद पर पड़ता है। जो बच्चे के शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के विकास पर असर डालता है। इसके साथ छेड़छाड़ करने की गलती कभी नहीं करें। इन चीजों से रात में बच्चों को दूर ही रखें।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / दुनियाभर में लाखों लोग कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं। तमाम वैज्ञानिक, डॉक्टर सिर्फ यही कह रहे हैं कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता का मजबूत होना बेहद जरूरी है तभी इस महामारी से बच पाएंगे। लेकिन आपको जानकर भी ताज्जुब होगा कि जंगलों में रहने वाले आदिवासियों को अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने की आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि उनकी इम्यूनिटी पहले से ही मजबूत है, इसका कारण है उनका खानपान। आइए जानते हैं कि आदिवासी लोग ऐसा क्या खाते हैं, जिससे उनकी इम्यूनिट काफी मजबूत रहती है-
आदिवासी पीते हैं मडिया पेज
छत्तीसगढ़ के आदिवासियों में मडियापेज पीने की परंपरा है, यह एक प्रकार का कोसरा अनाज होता है, जिसके सत्व में काफी मात्रा में पोषक तत्व होते हैं, जो इम्यूनिटी को बढ़ाते हैं। आदिवासियों का यही मुख्य आहार होता है। जंगलों में रहने के कारण आदिवासी भौतिक सुखों से काफी दूर हैं और वे पूरी तरह से प्रकृति से जुड़े हुए हैं। प्रकृति से जुड़े होने के कारण ही उन्हें किसी भी प्रकार की बीमारी घेर नहीं पाती है। यदि वे कोई बीमारी से ग्रसित होते भी हैं तो उनकी इम्यूनिटी मजबूत होने के कारण वे जल्दी ठीक भी हो जाते हैं। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक आदिवासियों के खानपान के बारे में लोगों को भी जागरुक होना चाहिए। भले ही मानव सभ्यता विकास की ओर अग्रसर है, लेकिन हम जितना विकास की ओर बढ़ते जा रहे हैं, हमारे खानपान में पोषण वाली चीजें भी कम होती जा रही हैं।
शतावर भी देती है शरीर को मजबूती
जंगल में कई तरह की जड़ी-बूटियां होती है, जो कई बीमारियों को जड़ से खत्म कर सकती है। ऐसे ही शतावर नाम की एक जड़ी बूटी है, जिसका आदिवासी नियमित सेवन करते हैं। इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। आदिवासी लोग शतावर के कंद को पकाकर उसके छिलके निकालकर खाते हैं क्योंकि पेट भरने के लिए उनके पास यही विकल्प होता है।
चापड़ा चटनी है चमत्कारिक औषधी
आदिवासियों में चींटियों की चटनी बनाकर भी खाई जाती हैं, इसे चापड़ा चटनी कहा जाता है और इसे चमत्कारिक औषधि भी माना जाता है। इसके अलावा सफेद मूसली भी इम्यूनिटी को बढ़ाने में मदद करती है। सफेद मूसली के फूल को आदिवासी सब्जी की तरह बनाकर खाते हैं, लेकिन शहरी समाज में इसका चलन नहीं है। इसी प्रकार काली मूसली भी इम्यूनिटी को बढ़ाती है आदिवासी लोग इसके कंद को पेट भरने के लिए खाते हैं। यह भी चमत्कारिक औषधी मानी जाती है।
आदिवासी खूब खाते हैं गिलोय और समरकंद
गिलोय के पत्ते आयुर्वेद में औषधि के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं। आदिवासियों के बच्चे गिलोय के कच्चे टुकड़े चलते फिरते यूं ही खा जाते हैं। इसके अलावा वे समरकंद भी खाते हैं। सिमर एक औषधीय पौधा है, जिससे कंद निकाल कर खाया जाता है। इसे बाल कन्द भी कहा जाता है। इसका स्वाद मीठा होता है और बीमारियों के लिए यह अच्छी औषधि के रूप में उपयोग में लाया जाता है।
तेंदू पत्ता फल व बकुल सोडा
आदिवासी जंगल में मिलने वाले तेंदूपत्ता और बकुल सोडा का भी भरपूर सेवन करते है। बकुल सोडा पेट साफ करने में उपयोग में लाया जाता है। इसके अलावा आदिवासी अपने खेत की मेड़ पर हल्दी जरूर लगाते हैं। हल्दी आयुर्वेद में भी एक अचूक औषधि है, जो घावों को जल्द भरने में सहायक होती है। आदिवासी देशी हल्दी को उबालकर खाते हैं, हल्दी कैंसर से भी बचाती है।