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सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ /कोरोना से लड़ाई में न्यूजीलैंड की कामयाबी जितनी सुखद है, उससे कहीं ज्यादा अनुकरणीय है। लगभग एक महीने से वहां संक्रमण का एक भी नया मामला सामने नहीं आना और एकमात्र सक्रिय मरीज का ठीक हो जाना पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है, तो कोई आश्चर्य नहीं। न्यूजीलैंड और उसकी प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न की तारीफ करते हुए दुनिया के तमाम देशों को देखना चाहिए कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई कैसे सफलतापूर्वक लड़ी जा सकती है। जैसे ही न्यूजीलैंड में कोरोना के मामले 100 तक पहुंचे थे, वहां पूरी कड़ाई से लॉकडाउन लगाया गया था। लोगों ने भी घर से निकलना उचित नहीं समझा, सरकार की अपील और दिशा-निर्देशों की पालना में सबने खुद को समर्पित कर दिया। प्रधानमंत्री जेसिंडा ने शुरू में ही कह दिया था, ‘हमारे पास कुछ करने का मौका है। आइए, वायरस के खिलाफ कुछ ऐसा करें, जो कोई देश नहीं कर पाया है’। जेसिंडा पहले ही अपने लोगों का विश्वास जीत चुकी हैं, तो लोगों ने भी पूरे प्रयास से उस विश्वास को मजबूती दी। जब कोरोना का आखिरी मरीज भी ठीक हो गया, तब प्रधानमंत्री ने अनायास नृत्य किया और देश से भी अपनी खुशी साझा की। यह उस देश के लिए वाकई उत्सव का समय है। यदि अब कोरोना संक्रमण बाहर से नहीं आता है, तो न्यूजीलैंड को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। जाहिर है, वहां लॉकडाउन मजबूरी में नहीं, बल्कि खुशी-खुशी खुला है।
दुनिया के लिए यह अध्ययन का विषय है कि न्यूजीलैंड ने ऐसा कैसे कर दिखाया। अव्वल तो कड़ाई से लागू किया गया लॉकडाउन पहला कारण है, जिसकी हम चर्चा कर चुके हैं। दूसरा सबसे बड़ा कारण है, कोरोना की जांंच में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना। औसतन प्रति एक लाख व्यक्तियों में से करीब 2,200 की कोरोना जांच की गई है। इतनी जांच तो अमेरिका भी नहीं कर रहा है। अमेरिका में जांच दर प्रति लाख पर 1,420 के करीब है। भारत की बात करें, तो प्रति दस लाख पर करीब 2,000 जांच की दर है। मोटे तौर पर न्यूजीलैंड में भारत की तुलना में 11 गुना ज्यादा जांच दर रही है। नतीजा सामने है। न्यूजीलैंड अपने यहां कुल मामलों को 1,504 पर रोक पाया और यदि वहां केवल 22 लोगों की मौत हुई, तो इसका सबसे ज्यादा श्रेय वहां हुई अधिकतम कोरोना जांच को ही दिया जाएगा। फैले संक्रमण की पूरी चौकसी करते हुए जांच की गई, मरीजों को आशंका के आधार पर क्वारंटीन किया गया और वायरस की कड़ी जगह-जगह पूरी कड़ाई से तोड़ दी गई। लोगों ने भी सच्चे नागरिक होने का कर्तव्य निभाया और वहां सात सप्ताह के कडे़ लॉकडाउन में ही कोरोना से मुक्ति मिल गई। वह आज मिसाल है।
क्या बडे़ या बड़ी आबादी वाले देश अपने यहां छोटे-छोटे न्यूजीलैंड बनाकर कोरोना को मात दे सकते हैं? इस पर विचार और व्यवहार की जरूरत है। कोरोना को लेकर कुछ प्रचलित धारणाएं भी टूटी हैं। एक धारणा यह है कि संक्रमण जब एक निश्चित मुकाम पर पहुंचेगा, तभी उसमें गिरावट आएगी, लेकिन न्यूजीलैंड ने इस धारणा को धता बता दिया है। न्यूजीलैंड ने इस भ्रम को भी तोड़ दिया कि किसी लोकतांत्रिक देश में कोरोना से लड़ाई आसान नहीं है। वाम-शासित चीन ही नहीं, अब लोकतांत्रिक न्यूजीलैंड भी है, जो चौतरफा लड़ती दुनिया के लिए तब तक प्रेरणास्रोत रहेगा, जब तक कोरोना है।
मेलबॉक्स / शौर्यपथ/ अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड नामक अश्वेत नागरिक की मौत के बाद हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही, लेकिन सच यह भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अश्वेतों के प्रति रवैया सहानुभूतिपूर्ण नहीं रहा है। इसी कारण जॉर्ज फ्लॉयड की मौत का आक्रोश समूचे अमेरिका में देखा जा रहा है। आज अमेरिका नस्लवाद और कोरोना के चलते दोहरी मार झेलने को विवश है। न केवल अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया को इस घटना से सबक सीखना चाहिए कि बहुसंख्यकों के साथ-साथ अल्पसंख्यकों का ख्याल रखना भी निहायत जरूरी है। यदि लोकतांत्रिक देश का एक भी नागरिक भय और असंतोषपूर्ण जीवन जी रहा है, तो उसका असंतोष कभी भी फट सकता है। अगर हम भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें, तो पिछले कुछ वर्षों से यहां भी अल्पसंख्यकों के प्रति माहौल ठीक नहीं रहा है। अमेरिका की घटना से हम भी सबक ले सकते हैं।
अली खान, जैसलमेर, राजस्थान
एनसीआर शामिल करें
अब दिल्ली सरकार के अस्पतालों में कोरोना के उन्हीं मरीजों का इलाज होगा, जो दिल्ली से हैं। दिल्ली सरकार ने ऐसा फैसला क्यों लिया, यह तो दिल्ली के मुख्यमंत्री जानें, लेकिन जिस तरह से दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, उसे देखकर केजरीवाल का यह फैसला कुछ हद तक सही जान पड़ता है, क्योंकि दिल्ली में आबादी के मुताबिक स्वास्थ्य-केंद्रों और डॉक्टरों की कमी हो सकती है। बेशक केंद्र सरकार के अस्पतालों को इस फैसले से बाहर रखा गया है, लेकिन मुख्यमंत्री को चाहिए कि वह दिल्ली से कुछ किलोमीटर सटे क्षेत्र के लोगों को, जो दूसरे राज्य के नागरिक हैं, दिल्ली में कोरोना इलाज की इजाजत दें, ताकि कोई भी उनके इस फैसले पर राजनीति करने को कोशिश न कर सके। क्या मुख्यमंत्री ऐसा करेंगे?
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
दुर्भाग्यपूर्ण फैसला
दिल्ली सरकार ने फैसला किया है कि जब तक कोरोना महामारी है, तब तक दिल्ली सरकार के अस्पताल सिर्फ दिल्ली वालों का इलाज करेंगे। दिल्ली सरकार का यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। देश इस समय बड़े संकट में है। हमें अभी एक देश होकर सोचना चाहिए, न कि एक राज्य होकर। दिल्ली सरकार के इस फैसले से क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिलेगा, जो हमारे देश की अखंडता के लिए घातक हो सकता है। क्या डॉक्टर सिर्फ इसलिए रोगी का इलाज न करें, क्योंकि वह किसी और राज्य का है? यह उनके भगवान रूपी पेशे को क्या शोभा देता है? यह आदेश हमारे देश के नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों का भी हनन है। यदि सभी राज्य ऐसे ही करने लगे, तो भारत राज्यों का संघ नहीं, सिर्फ राज्य बनकर रह जाएगा। दिल्ली सरकार को अपने इस राजनीतिक फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए, क्योंकि दिल्ली सिर्फ राज्य की ही नहीं, देश की राजधानी है।
प्रमेंद्र कुमार, पटना
साजिश या मजाक
पिछले कुछ दिनों में बेजुबान जानवरों को बारूद खिलाने के दो मामलों सामने आए। इन्होंने सभ्य कहे जाने वाले मानव-समाज को शर्मसार किया है। एक घटना केरल की है, तो दूसरी हिमाचल प्रदेश की। इस तरह के कृत्यों से जहां हर शांतिप्रिय लोगों में रोष है, तो दूसरी तरफ किसी साजिश की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा रहा है। बिल्कुल एक ही तरीके से जानवरों को बारूद खिलाकर उनको चोटिल करने के पीछे कोई साजिश या प्रयोग तो नहीं? पूरा विश्व अभी कोरोना महामारी से जूझ रहा है, लेकिन पशुओं के प्रति ऐसे क्रूर रवैये देखने को मिल रहे हैं। ये मानव समाज के लिए नए खतरे की शुरुआत हो सकते हैं। इसकी जांच गंभीरता से करने की जरूरत है। दोषी कोई भी हो, उसे सख्त सजा मिलनी चाहिए।
अभिषेक मिश्र, किदवई नगर, कानपुर
ओपिनियन /शौर्यपथ / केरल का एकमात्र मुस्लिम बहुल जिला मलप्पुरम पिछले दिनों गलत वजहों से सुर्खियों में आ गया। 70.2 फीसदी मुस्लिम और 27.6 प्रतिशत हिंदू आबादी वाला यह जिला अक्सर विवाद में घसीट लिया जाता है। हालांकि, स्थानीय बाशिंदे इसे सिरे से नकारते हैं और कहते हैं कि ‘जो लोग इस जिले या राज्य को अच्छी तरह से नहीं समझते, वही ऐसी बातें करते हैं’।
अभी यह जिला इसलिए चर्चा में आया, क्योंकि यहां एक गर्भवती जंगली हथिनी दुखद हालात में मृत पाई गई। उसने पास के पालक्काड जिले में पटाखों से भरा एक अनानास खा लिया था। ये पटाखे किसानों द्वारा उन जंगली सूअरों को मारने के लिए लगाए गए थे, जो उनकी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसा माना जाता है कि वह हथिनी विस्फोट से घायल होने के बाद साइलेंट वैली के जंगलों से कई किलोमीटर दूर चली गई। मन्नारकाड वन क्षेत्र के अंतर्गत कोट्टप्पडाम पंचायत के अंबलप्पारा में उसे घायल पाया गया। यह इलाका मलप्पुरम नहीं, पालक्काड जिले का हिस्सा है। फिलहाल, वन्य-जीव संरक्षण कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। जांच और कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
इस घटना ने राज्य में सत्तासीन वाम मोर्चा सरकार के विरोधियों को हमलावर होने का मौका दे दिया। सोशल मीडिया पर बड़ा अभियान छेड़ते हुए राज्य सरकार पर हमला बोला गया और मलप्पुरम को निशाना बनाया गया, जबकि इस घटना से उसका कोई रिश्ता नहीं था। वास्तव में, न तो मलप्पुरम देश का सबसे हिंसक जिला है और न ही इस राज्य में हाथियों को निशाना बनाया जाता है। असलियत में हाथी तो देश भर में, विशेषकर दक्षिणी राज्यों में सबसे अधिक प्यारे और पूजनीय जानवरों में शामिल हैं। अनुमान है कि भारत में 28,000 हाथी हैं, जो किसी भी एशियाई देश से ज्यादा हैं।
केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में तो आमतौर पर ये मंदिरों का हिस्सा होते हैं। प्रशिक्षित मंदिर हाथी केरल में आम तौर पर देखे जाते हैं। सभी प्रमुख त्योहारों में यह राजसी जानवर आकर्षण का केंद्र होता है। इस सूबे में एक सालाना कैंप भी लगता है, जहां कुछ पालतू हाथियों को मानव-पशु संघर्ष कम करने के लिए ‘कुमकी’ के रूप में प्रशिक्षित किया जाता है। प्रशिक्षित किए गए ‘कुमकी’ हाथी की मदद से इंसान जंगली हाथियों को वापस जंगलों में भेजता है।
तमिलनाडु में राज्य सरकार हाथियों के लिए सालाना रिट्रीट रखती है, जहां राज्य भर के पालतू हाथियों को ट्रकों में लाया जाता है और उन्हें स्वस्थ माहौल में रखा जाता है। इस कैंप के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद उनका वजन मापा जाता है और पशु चिकित्सक उनकी सेहत की पड़ताल करते हैं। उन्हें अगले चार सप्ताह तक दवाइयां और पौष्टिक आहार दिए जाते हैं। उन्हें सुबह की सैर कराई जाती है और विशेष रूप से तैयार जंबो सॉवर में नहलाया जाता है। कैंप खत्म होने के बाद हाथी बेमन से अपने घर लौटते हैं।
मगर इंसान और जंगल में रहने वाले हाथियों के बीच संघर्ष भी लगातार जारी रहता है। जंगली हाथियों के लिए खास तौर पर जंगल संरक्षित किए गए हैं, फिर भी वे अमूमन खाने और पानी की तलाश में जंगल से बाहर निकल आते हैं। इसी का नतीजा इंसान-हाथी संघर्ष के रूप में सामने आता है। कोई भी किसान कई तरह के उपाय अपनाकर अपनी फसल को बचाने की कोशिश करता है। उसका उद्देश्य हाथियों को मारना कतई नहीं होता। अनुमान है कि हाथियों की वजह से हर वर्ष 600 इंसान मारे जाते हैं, जबकि 100 से अधिक हाथी भी सालाना अकाल मौत पाते हैं। हाथियों पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स के प्रमुख महेश रंगराजन कहते हैं कि किसानों और हाथियों, दोनों के लिए माहौल को सुरक्षित बनाना जरूरी है, क्योंकि दोनों पीड़ित हैं। किसान की जरूरत अपनी फसल बचाना है, तो हाथी को उसके माहौल के मुताबिक निवास-स्थान मिलना चाहिए। वह कहते हैं, विभिन्न प्रशासनिक उपायों से दोनों का साथ-साथ अस्तित्व संभव है।
ऐसा अनुमान है कि भारत में हाथियों के लिए 80 गलियारे हैं। ये वे रास्ते हैं, जिनसे जंगली हाथी अपने प्राकृतिक वास के लिए गुजरते हैं, लेकिन विभिन्न निर्माण गतिविधियों को अंजाम देकर इंसान इन स्थानों या गलियारों पर कब्जा कर रहा है। नतीजतन, हाथियों के प्राकृतिक मार्ग खत्म हो रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें, तो हाथी ‘भोजन’ के लिए इंसानों को नहीं मारते। वे तब आक्रामक हो जाते हैं, जब उन्हें अपनी जान पर खतरा महसूस होता है। माना जाता है, जंगली जानवरों की वजह से हर साल पांच लाख से अधिक किसानों को फसलों का नुकसान उठाना पड़ता है। उनका स्वाभाविक प्रयास अपने खेतों की रक्षा करना होता है। इसके लिए कुछ जगहों पर वे बिजली वाले तार लगाते हैं, जिनमें हल्का करंट होता है, तो कुछ स्थानों पर जानवरों को फंसाने के लिए गड्ढा खोद देते हैं। वन्य-जीव संरक्षणवादी जानवर को फंसाने के इन तरीकों की भी मुखालफत करते हैं। हाथियों को किसी भी तरीके से मारना स्वीकार्य नहीं हो सकता। टास्क फोर्स ने किसानों को नुकसान से बचाने के लिए अतिरिक्त फसल बीमा का सुझाव दिया है।
अनुमान यह भी है कि हर साल कम से कम 40 हाथी अपने दांत के लिए शिकारियों के हत्थे चढ़ते हैं। केंद्र और राज्य, दोनों के वन्य-जीव विभागों ने इन घटनाओं को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं। मगर अब भी इनके निवास-स्थान को सुरक्षित बनाने के लिए बहुत कुछ करने की दरकार है।
पौराणिक कथाओं में खूब उल्लेख के कारण हाथी हिंदुओं द्वारा पूजनीय है। लेकिन आमतौर पर अपने कद और चाल के लिए यह सभी का दुलारा है। बच्चों को तो खासतौर से हाथी पसंद है और वे उसकी तस्वीर भी खूब बनाते हैं। यह बताता है कि हाथी कितना लोकप्रिय है। इसीलिए जब उसकी दुखद मौत की खबर आई, तो यह किसी झटके से कम नहीं था। मगर इससे भी बड़ी त्रासदी थी, उसकी मौत को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश। मलप्पुरम ऐसा अद्भुत जिला है, जहां कई हिंदुओं की बारात मस्जिदों से निकलती है। मेरी नजर में यहां कम से कम एक हिंदू मंदिर ऐसा जरूर है, जिसका पुजारी मुस्लिम है और वह उस वंश का है, जिनके पूर्वज यहां पूजा-पाठ कराते आए हैं। जाहिर है, इंसानों को ही एक-दूसरे के संग और जानवरों के साथ भी सद्भाव से रहना सीखना होगा। हथिनी की मौत की जांच कर रहे रेंज ऑफिसर भी यही संकेत करते हैं, जब वह कहते हैं कि ‘यह मानव-पशु संघर्ष का नतीजा है, सांप्रदायिक संघर्ष का नहीं’।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) एस श्रीनिवासन, वरिष्ठ पत्रकार
रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज यहां अपने निवास कार्यालय में आयोजित बैठक में कोरोना संक्रमण से बचाव, नियंत्रण के उपायों और मरीजों के इलाज की व्यवस्थाओं की समीक्षा की साथ ही आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श किया। उन्होंने क्वारेंटीन सेंटर्स की व्यवस्था, अस्पतालों में उपलब्ध बिस्तरों की जानकारी ली। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि संक्रमित व्यक्ति से अस्पताल आने वाले अन्य मरीजों में संक्रमण नहीं फैले। चिकित्सक और मेडिकल स्टाफ के लोग संक्रमण से बचाव के लिए गाइड लाईन का पालन करें। मुख्यमंत्री बघेल ने वीडियो क्रांफ्रेंसिंग के माध्यम से एम्स रायपुर के निदेशक और बिलासपुर सिम्स के अधिकारियों से भी वहां की व्यवस्थाओं और आगे की रणनीति पर चर्चा की। बैठक में अधिकारियों ने बताया कि जिलों में 141 कोविड केयर सेंटरों और कोविड के मरीजों के लिए 21 हजार 230 बिस्तर उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जा रही है।
स्वास्थ्य सचिव श्रीमती निहारिका बारिक सिंह ने मुख्यमंत्री को विभिन्न अस्पतालों में उपचार की व्यवस्था के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कोविड-19 नियंत्रण के लिए प्रदेश स्तर पर किए जा रहे उपायों की भी जानकारी दी। मुख्यमंत्री बघेल ने बैठक में शामिल अधिकारियों से क्वारेंटाइन सेंटर्स की संख्या, वहां की व्यवस्था और रह रहे लोगों के बारे में जानकारी ली। मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस में प्रदेश में पहुंच चुके प्रवासी मजदूरों के लिए संचालित क्वारेंटाइन सेंटर्स एवं वहां की व्यवस्था के बारे में चर्चा की और अगले कुछ दिनों में पहुंचने वाले मजदूरों को क्वारेंटाइन सेंटर्स में रखने की व्यवस्था के संबंध में आवश्यक निर्देश दिए।
मुख्यमंत्री ने कोविड-19 के इलाज के लिए विभिन्न अस्पतालों में उपलब्ध बिस्तरों एवं वहां भर्ती मरीजों के बारे में जानकारी ली। इस पर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि राज्य में क्षेत्रीय स्तर पर डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल में 1770 बेड हैं, वहीं जिले स्तर पर डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल में 3470 बिस्तर की व्यवस्था है। इन सभी अस्पतालों में आईसीयू की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त बिना लक्षण वाले और कम लक्षण वाले मरीजों हेतु 141 कोविड केयर सेंटर जिलों में स्थापित किये जा रहे हैं, जहाँ 7234 बिस्तर उपलब्ध होंगे व 6500 बिस्तर के अतिरिक्त कोविड केयर यूनिट की स्थापना प्रक्रियाधीन है।
अधिकारियों ने बताया क्वारेंटीन सेंटर में पूर्व से उपलब्ध 4026 बिस्तरों को भी आवश्यकता पडऩे पर कोविड केयर सेंटर में परिवर्तित किया जायेगा। इस प्रकार प्रदेश में कोविड-19 मरीजों हेतु 21 हजार 230 बिस्तर उपलब्ध होंगे। उन्होंने कोरोना वायरस संक्रमितों के स्वास्थ्य की गंभीरता, लाक्षणिक और गैर-लाक्षणिक मरीजों की जांच व स्वास्थ्य की स्थिति एवं उपचार की व्यवस्था के बारे में जानकारी ली। मुख्यमंत्री बघेल ने आने वाले दिनों में कोविड-19 पर नियंत्रण के प्रभावी उपायों और इसका सामुदायिक प्रसार रोकने के संबंध में एम्स के निदेशक डॉ. नितिन एम. नागरकर से सुझाव मांगे। उन्होंने ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच करने और इलाज के बारे में आगामी कार्ययोजना एवं रणनीति पर भी चर्चा की। मुख्यमंत्री ने सिम्स बिलासपुर के डीन और अधीक्षक से वहां कोरोना वायरस संक्रमित डॉक्टर एवं मेडिकल स्टॉफ के बारे में जानकारी ली।
डीन डॉ. पात्रा ने मुख्यमंत्री को डॉक्टरों के संक्रमण के कारणों की जानकारी दी। उन्होंने इससे बचने के लिए वहां की जा रही सावधानियों के बारे में भी बताया। मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू ने सभी मेडिकल कॉलेजों को जरूरी सावधानी बरतने तथा इलाज के लिए आने वाले गंभीर मरीजों का गंभीरतापूर्वक उपचार करने के निर्देश दिए। उन्होंने इलाज और देखभाल के दौरान व्यक्तिगत सुरक्षा उपायों को अपनाने और सभी को इनका अनिवार्यत: पालन करने के निर्देश दिए।
इस अवसर पर चिकित्सा शिक्षा विभाग की अपर मुख्य सचिव श्रीमती रेणु जी. पिल्ले, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू, स्वास्थ्य विभाग की सचिव श्रीमती निहारिका बारिक सिंह, खाद्य एवं परिवहन विभाग के सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह, संचालक स्वास्थ्य सेवाएं नीरज बंसोड़, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की संचालक डॉ. प्रियंका शुक्ला, संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. एस.एल. आदिले और सिम्स बिलासपुर के डीन डॉ. पात्रा शामिल हुए । एम्स रायपुर के निदेशक डॉ. नितिन एम. नागरकर तथा सिम्स बिलासपुर के अधीक्षक डॉ. पुनीत भारद्वाज अपने-अपने कार्यालय से वीडियो कॉन्फ्रेस में जुड़े।
दुर्ग / शौर्यपथ / विद्युत कंपनी ने परिवादी संस्थान के प्लॉट से 33 के.व्ही. विद्युत पोल हटाने के लिए बड़ी राशि जमा कराई और पूरी राशि मिलने बाद भी ना तो पोल हटाया और ना ही परिवादी संस्था को उसकी राशि वापस की। इस आचरण को व्यवसायिक कदाचरण और सेवा में निम्नता ठहराते हुए जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष लवकेश प्रताप सिंह बघेल, सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ राज्य पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड एवं छत्तीसगढ़ राज्य पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड के पद्मनाभपुर दुर्ग कार्यालय के कार्यपालन यंत्री एवं सहायक अभियंता पर 6 लाख 5 हजार रुपये हर्जाना लगाया।
परिवादी संस्था की शिकायत
परिवादी संस्था जुग महादेव एजुकेशनल सोसायटी के सचिव सुशील चंद्राकर ने उपभोक्ता फोरम के समक्ष ये परिवाद दायर किया कि पुलगांव चौक पर उनके संस्थान द्वारा निर्माण कराए जा रहे कालेज के प्लॉट से 33 के.वी. पोल लगा हुआ है, जिसके ऊपर से हाईवोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन गुजरती है। पत्र व्यवहार करने पर छत्तीसगढ़ स्टेट पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड ने कहा कि 554076 रुपये भुगतान करने पर उक्त पोल को परिवादी के प्लॉट से हटा दिया जाएगा, जिस पर सहमत होते हुए परिवादी ने दिनांक 31 मार्च 2008 को 554076 रुपये भुगतान कर दिया परंतु संपूर्ण राशि प्राप्त होने के बाद भी अनावेदकों द्वारा ना तो 33 के.वी. पोल को हटाया गया और ना ही राशि वापस की गई। इस बाबत लगातार पत्राचार किया गया परंतु अनावेदकगण ने कोई जवाब नहीं दिया।
अनावेदकगण का जवाब
अनावेदकगण ने लिखित जवाब प्रस्तुत करते हुए कहा कि परिवादी के प्लाट में लगे विद्युत पोलों को हटाने हेतु दिनांक 28 अप्रैल 2008 को वर्क आर्डर जारी किया गया था और विद्युत पोल हटा दिया गया है। परिवादी ने समयसीमा के बाद प्रकरण पेश किया है इसीलिए प्रकरण खारिज किया जाए।
फोरम का फैसला
प्रकरण में पेश दस्तावेजों एवं प्रमाणों तथा दोनों पक्षों के तर्को के आधार पर जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष लवकेश प्रताप सिंह बघेल, सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने यह निष्कर्षित किया कि अनावेदकगण ने पोल हटाने संबंधी कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है, पोल शिफ्टिंग का जो कार्य हुआ है वह पूर्व में किए गए शिफ्टिंग के संबंध में है ना कि वर्तमान शिफ्टिंग के संबंध में है। दिनांक 28 अप्रैल 2008 को वर्क आर्डर जारी करने के पश्चात शिफ्टिंग का कोई कार्य किया गया था यह प्रमाणित नहीं होता है। अनावेदकगण ने 554076 रुपये जमा करवाने के बावजूद परिवादी के परिसर से 33 के.वी. विद्युत पोल नहीं हटाया, जो व्यवसायिक कदाचार एवं सेवा में कमी की श्रेणी में आता है।
जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष लवकेश प्रताप सिंह बघेल, सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ राज्य पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड एवं छत्तीसगढ़ राज्य पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड के पद्मनाभपुर दुर्ग कार्यालय के कार्यपालन यंत्री एवं सहायक अभियंता पर 6 लाख 5 हजार 76 रुपये हर्जाना अधिरोपित किया, जिसके तहत अनावेदकगण को परिवादी की जमा राशि 554076 रुपये, मानसिक परेशानी की क्षतिपूर्ति स्वरूप 50000 रुपये तथा वाद व्यय 1000 रुपये का भुगतान करना होगा, साथ ही जमा राशि पर 31 मार्च 2008 से 6 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी देना होगा।
भिलाईनगर / शौर्यपथ / भिलाई निगम क्षेत्र में पीलिया एवं जलजनित बीमारियों से बचाव हेतु निगम कर्मी घर-घर जाकर क्लोरीन टैबलेट वितरण कर रहे, स्वास्थ्य विभाग का अमला निगम क्षेत्र के वार्डों के गली-मोहल्लों के नाली सफाई कार्य में जुटे हुए हैं, ताकि पीलिया जैसी जल जल जनित बीमारी न हो ! निगम प्रशासन 674030 नग क्लोरीन टैबलेट घर घर में वितरण कर चुकी है। निगम की टीम एवं मितानीनें घरों में जाकर सर्दी, खांसी व बुखार से पीडि़त मरीजों को तत्काल चिकित्सकीय परामर्श लेने की सलाह दे रही है। भिलाई निगम के सभी जोन के स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों द्वारा पीलिया जैसी जलजनित बीमारियों से बचाव के लिए वार्डों में घर घर जाकर पानी की शुद्धता के लिए क्लोरीन टैबलेट बांटने के साथ ही बताया जा रहा है कि उबला हुआ एवं साफ छना हुआ पानी ही पीने हेतु उपयोग करे ताकि किसी प्रकार से जलजनित बीमार न हो।
जोन स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि नलकूल, बोरिंग एवं अन्य जल स्रोत से नमूना लेकर लैब में परीक्षण कराया जा रहा है और प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर अग्रिम कार्यवाही की जा रही है! नगर निगम का अमला पीलिया जैसे जलजनित बीमारियों से बचाव के लिए घरों में क्लोरीन टैबलेट का वितरण कर रही है, जोन 01 के 19323 घरों में 186030 नग टैबलेट, जोन 02 के 18500 घरों में 186000 नग क्लोरीन टैबलेट, जोन 03 के 19000 घरों में 110000 नग क्लोरीन टैबलेट तथा जोन 04 के 19137 घरों में 192000 नग क्लोरीन टैबलेट वितरण किया जा चुका है!
अब तक सभी जोन कार्यालयों के स्वास्थ्य विभाग द्वारा 674030 नग क्लोरीन टैबलेट वितरण किया जा चुका है। जलजनित बीमारयों से बचाव के लिए निगम के स्वास्थ्य विभाग के साथ मितानीनें व आंगनबाड़ी सहायिकाएं भी सहयोग कर रहीं हैं! विभिन्न जल स्रोतों से नमूना लेकर परीक्षण किया जा रहा है!
भारत सरकार ने भी इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आयुर्वेद पर जोर दिया है। आयुर्वेदिक विभाग ने 'हर हर पहल' की मुहीम चलाई है, जहां लोग अपने घर में गिलोय का पौधा लगाने के लिए नगर निगम से संपर्क कर सकते हैं। दिल के आकार की यह जड़ी-बूटी गुडूची के नाम से भी पहचानी जाती है। अपने औषधीय गुणों के कारण यह कई बीमारियों के उपचार में काम आती है।
ऐसे बढ़ाती है रोगों से लड़ने की क्षमता
कि गिलोय का पहला और सबसे महत्वपूर्ण लाभ है रोगों से लड़ने की क्षमता देना। इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो सेहत में सुधार लाते हैं और खतरनाक रोगों से लड़ते हैं। गिलोय किडनी और लिवर से विषाक्त पदार्थों को दूर करता है और मुक्त कणों को भी बाहर निकालता है।
इसके अलावा गिलोय बैक्टीरिया, मूत्र मार्ग में संक्रमण और लिवर की बीमारियों से भी लड़ता है जो कई रोगों की वजह बनते हैं। गिलोय का जूस नियमित रूप से पीने से रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
घर पर उगाएं
स्टेम कटिंग विधि द्वारा गिलोय को घर के गार्डन में भी उगा सकते हैं। यह जड़ी बूटी बहुत तेजी से फैलती है और यहां तक कि एक छोटा-सा तना एक दो साल में पूरी तरह से विकसित हो जाती है। इसके लिए या तो तने का उपयोग कर सकते हैं या आयुर्वेदिक स्टोर से बीज खरीद सकते हैं। 24 घंटे के लिए ठंडे पानी में भिगोएं और मिट्टी में लगाएं। इसे नियमित रूप से पानी दें।
इन तरीकों से करें सेवन
गिलोय की पत्तियों को कई तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं। जूस बनाने के लिए एलोवेरा और गिलोय का रस निकाल लें। उसमें थोड़ा शहद मिला सकते हैं। सुबह खाली पेट इसे पी सकते हैं। वैकल्पिक रूप से गिलोय के रस को पानी में घोलकर भी सुबह ले सकते हैं। गिलोय और नीम के पत्तों का काढ़ा भी बुखार से लड़ने में मदद कर सकता है। हल्दी और गिलोय का मिश्रण भी खांसी से राहत देने में मदद कर सकता है।
गिलोय के ये भी हैं फायदे
इम्यूनिटी बढ़ाने के अलावा गिलोज का सेवन पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है।
डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए यह निश्चित रूप से प्रभावी होता है। यह हाइपोग्लाइसीमिक एजेंट के रूप में काम करता है। लेकिन डायबिटीज की दवाई ले रहे हैं तो बिना डॉक्टर की सलाह के इसे न लें।
इसका सेवन मस्तिष्क के टॉनिक के रूप में भी कर सकते हैं। यह मानसिक तनाव और चिंता को कम करता है।
दमा के इलाज में भी प्रभावी है।
गिलोय में गठिया विरोधी गुण होते हैं जो गठिया और जोड़ों के दर्द के लक्षणों को कम करते हैं।
आंखों के लिए गिलोय का जूस कारगर साबित हो सकता है।
त्वचा में निखार लाने के लिए भी नियमित रूप से इसका सेवन करें।
ये न करें गिलोय का सेवन
गिलोय की खुराक पांच साल की उम्र या इससे ऊपर के बच्चों के लिए ही सुरक्षित है। हालांकि, इसे देने से पहले आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। डायबिटीज के मरीज, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसके इस्तेमाल से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / आप जोर से छींकते हैं या फिर धीरे से। छींकने से पहले ‘सॉरी’ या ‘एक्सक्यूज मी’ बोलते हैं या फिर हाथ से छींक दबाने की कोशिश करते हैं। ये सभी चीजें आपके व्यक्ति के राज खोलती हैं। ब्रिटेन के जाने-माने हावभाव विशेषज्ञ रॉबिन करमोड ने अपनी किताब ‘स्पीक सो योर ऑडियंस विल लिसेन’ में यह खुलासा किया है।
‘सॉरी’ या ‘एक्सक्यूज मी’ बोलना-
-छींकने से पहले या बाद में ‘सॉरी’ या ‘एक्सक्यूज मी’ बोलने वाले अमूमन शांत, शालीन और अंतर्मुखी होते हैं। उन्हें दूसरों की जिंदगी में दखल देने बिल्कुल पसंद नहीं होता।
तेज आवाज निकालना-
-रॉबिन के मुताबिक छींक के दौरान तेज आवाज निकालने वाले हमेशा आकर्षण का केंद्र बने रहना चाहते हैं। उन्हें दूसरों के बीच अपनी अहमियत जताने और बातें मनवाने में मजा आता है।
रोकने की कोशिश करना-
-छींक दबाने की कोशिश करने वाले भी अंतर्मुखी होते हैं। वे भीड़भाड़ से दूर रहना पसंद करते हैं। लोग उनकी बातों को तवज्जों दें या न दें, वे मस्तमौला होकर अपनी जिंदगी जीते रहते हैं।
धीमे से छींकना-
-ऐसे लोग समाज में घुल-मिलकर रहने में यकीन करते हैं। वे आत्मनियंत्रण की कला में माहिर होते हैं। उन्हें यह बात बिल्कुल भी गंवारा नहीं होती कि लोगों को उनकी वजह से असुविधा हो।
नाक पर हाथ रखने वाले-
-छींकते समय नाक-मुंह को रुमाल या हाथ से ढंकने वाले लोग दूसरों की खुशी को भी तवज्जो देते हैं। उन्हें नियम-कायदों का पालन करना और मिल-जुलकर रहना ज्यादा रास आता है।
बार-बार छींकते रहना-
-एक के बाद एक कई बार छींकने वालों को भी लोगों का ध्यान खींचने में मजा आता है। लोग अगर उनकी बातों पर ध्यान न दें या उन्हें नजरअंदाज करें तो ये लोग बेहद उदास हो जाते हैं।
वायरस की वाहक
-1 लाख से अधिक कीटाणु निकलते हैं नाक से एक बार छींकने पर
-100 मील प्रति घंटे की रफ्तार से 27 फीट के दायरे में फैल जाते हैं
खाना खजाना / शौर्यपथ / सामग्री :1/2 कटोरी आम पने का बचा हुआ गुदा, 1/4 कटोरी पुदीना, 1/2 कटोरी हरा धनिया, 2 हरी मिर्च, 3-4 लहसुन की कली, 1/2 छोटा चम्मच लाल मिर्च, 1/2 चम्मच नमक, 1/2 छोटा चम्मच जीरा, स्वाद के अनुसार चीनी, चुटकी भर हींग, 1/2 काला नमक।
विधि :
सबसे पहले हरी मिर्च को छोटे टुकड़ों में काट लें और लहसुन छीलकर रख लें। अब हरा धनिया, पुदीना, लहसुन और हरी मिर्च डालकर मिक्सी में पीस लें। यह मिश्रण थोड़ा दरदरा रहने पर इसमें आम पना का बचा हुआ गुदा और उपरोक्त बची हुई सारी सामग्री डालें और मिक्सी में महीन पीस लें। लीजिए आपके लिए तैयार है खास तौर पर बनाई गई यह स्वादिष्ट आम पना चटनी। अब इस चटनी को रोटी के पेश करें।
फायदे :-
* यह चटनी पेट और पाचन संबंधी समस्याओं में यह फायदेमंद है।
* इस चटनी का सेवन जहां खाने का स्वाद बढ़ाएगा वहीं गर्मी के दुष्प्रभावों से भी बचाए रखेगा।
* यह चटनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / अनियमित दिनचर्या और खान-पान के कारण कब्ज की समस्या होना आम बात है। भोजन के बाद बैठे रहने और रात के खाने के बाद सीधे सो जाने जैसी आदतें कब्ज के लिए जिम्मेदार होती हैं। अगर आपको भी होती है यह समस्या, तो हम बता रहे हैं, इससे निपटने के 10 घरेलू उपाय -
1 सुबह उठने के बाद पानी में नींबू का रस और काला नमक मिलाकर पिएं। इससे पेट अच्छी तरह साफ होगा, और कब्ज की समस्या नहीं होगी।
2 कब्ज के लिए शहद बहुत फायदेमंद है। रात को सोने से पहले एक चम्मच शहद को एक गिलास पानी के साथ मिलाकर पिएं। इसके नियमित सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है।
3 सुबह उठकर प्रतिदिन खाली पेट, 4 से 5 काजू, उतने ही मुनक्का के साथ मिलाकर खाने से भी, कब्ज की शिकायत समाप्त हो जाती है। इसके अलावा रात को सोने से पहले 6 से 7 मुनक्का खाने से भी कब्ज ठीक हो जाता है।
4 प्रतिदिन रात में हरड़ के चूर्ण या त्रिफला को कुनकुने पानी के साथ पिएं। इससे कब्ज दूर हेगा, साथ ही पेट में गैस बनने की समस्या से भी निजात मिलेगी।
5 कब्ज के लिए आप सोते समय अरंडी के तेल को हल्के गर्म दूध में मिलाकर पी सकते हैं। इससे पेट साफ होता है, और कब्ज की समस्या नहीं होती।
6 र्इसबगोल की भूसी कब्ज के लिए रामबाण इलाज है। आप इसका प्रयोग दूध या पानी के साथ, रात को सोते वक्त कर सकते हैं। इससे कब्ज की समस्या बिल्कुल समाप्त हो जाएगी।
7 फलों में अमरूद और पपीता, कब्ज के लि बेहद फायदेमंद होते हैं। इनका सेवन किसी भी समय किया जा सकता है। इन्हें खाने से पेट की समस्याएं तो समाप्त होती ही हैं, त्वचा भी खूबसूरत बनती है।
8 किशमिश को कुछ देर तक पानी में गलाने के बाद, इसका सेवन करने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। इसके अलावा अंजीर को भी रातभर पानी में गलाने के बाद उसका सेवन करने से कब्ज की समस्या खत्म होती है।
9 पालक भी कब्ज के मरीजों के लिए एक अच्छा विकल्प है। प्रतिदिन पालक के रस को दिनचर्या में शामिल कर, आप कब्ज से आजाादी पा सकते हैं, साथ ही इसकी सब्जी भी सेहत के लिए अच्छी होती है। लेकिन अगर आप पथरी के मरीज हैं, तो इसका इस्तेमाल न करें।
10 कब्ज से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम और योगा करना बेहद फायदेमंद होता है। इसके अलावा हमेशा गरिष्ठ भोजन करने से बचना चाहिए।
इसके अलावा कब्ज की परेशानी अत्यधिक होने पर आप डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
सेहत / शौर्यपथ / जीरे का इस्तेमाल तो हर घर में होता है लेकिन आपको शायद ये ना पता हो कि जीरा केवल खाने में तड़का लगाने के लिए ही इस्तेमाल नहीं होता है, बल्कि छोटा सा जीरा कई औषधीय गुणों से भरपूर है। जीरा पाचक और सुगंधित मसाला है। भोजन में अरुचि, पेट फूलना, अपच आदि को दूर करने में जीरा विश्वसनीय औषधि है।
भुने हुए जीरे को लगातार सूँघने से जुकाम की छीकें आना बंद हो जाती है।
प्रसूति के पश्चात जीरे के सेवन से गर्भाशय की सफाई हो जाती है।
जीरा गरम प्रकृति का होता है अत: इसके अधिक सेवन से उल्टी भी हो सकती है।
जीरा कृमिनाशक है और ज्वरनिवारक भी।
जीरे को उबाल कर उस पानी से स्नान करने से खुजली मिटती है।
बवासीर में मिश्री के साथ सेवन करने से शांति मिलती है।
जीरे व नमक को पीसकर घी व शहद में मिलाकर थोड़ा गर्म करके बिच्छू के डंक पर लगाने से विष उतर जाता है।
जीरे का चूर्ण 4 से 6 ग्राम दही में मिलाकर खाने से अतिसार मिटता है।
आइए, जानते हैं काला जीरा कैसे आपकी सेहत के लिए फायदेमंद है और किन औषधीय गुणों से भरपूर हैं -
1 वजन कम करने में कारगर -
अगर 3 महीने तक लगातार काले जीरे का सेवन किया जाए, तो शरीर में जमा अनावश्यक फैट घटाने में मदद मिलती है। काला जीरा फैट को गला कर अपशिष्ट पदार्थों (मल-मूत्र) के माध्यम से शरीर से बाहर कर देता है।
2 इम्यून विकार को करें दूर -
इसके नियमित सेवन से रोग-प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है, ये शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने में बोन मैरो, नेचुरल इंटरफेरॉन और रोग-प्रतिरोधक सेल्स की मदद करता है। साथ ही इसका सेवन शरीर में ऊर्जा का संचार करता है जिससे जल्द थकान और कमजोरी महसूस नहीं होती।
3 पेट की तकलीफ करें दूर -
काले जीरे में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते है जिसके कारण ये पेट संबंधी कई समस्याओं में लाभकारी है, जैसे पाचन संबंधी गड़बड़ी, गैस्ट्रिक, पेट फूलना, पेट-दर्द, दस्त, पेट में कीड़े होना आदि समस्याओं में यह राहत देता है। धीरे-धीरे पचने वाला खाना खाने के बाद थोड़ा-सा काला जीरा खाने से तत्काल लाभ होता है।
4 सर्दी-जुकाम, कफ में फायदेमंद -
सर्दी-जुकाम, कफ से बंद नाक के लिए काला जीरा इन्हेलर का काम भी करता है। ऐसी स्थिति में थोड़ा सा भुना जीरा रूमाल में बांध कर सूंघने से आराम मिलता है। अस्थमा, काली खांसी, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी से होने वाली सांस की बीमारियों में भी यह फायदेमंद है।
5 सिरदर्द व दांत दर्द में दे राहत -
काले जीरे का तेल सिर और माथे पर लगाने से माइग्रेन जैसे दर्द में लाभ होता है। गर्म पानी में काले जीरे के तेल की कुछ बूंदें डाल कर कुल्ला करने से दांत दर्द में काफी राहत मिलती है।
6 एंटीसेप्टिक का काम करें -
एंटी बैक्टीरियल गुणों के कारण काला जीरा संक्रमण को फैलने से रोकता है। काले जीरे के पाउडर का लेप घाव, फोड़े-फुंसियां आदि पर लगाने से वे आसानी से भर जाते हैं।
नोट :
* काला जीरा तासीर में गर्म होता है जिस कारण इसका सेवन एक दिन में तीन ग्राम से ज्यादा नहीं करना चाहिए।
* जिन्हें ज्यादा गर्मी लगती है या जो हाई ब्लडप्रेशर के मरीज है, गर्भवती महिलाएं, छोटे बच्चों के मामले में डॉक्टर से सलाह लेकर ही इसका सेवन करें।
धर्म संसार / शौर्यपथ / धन मिलना, बढ़ना और बचना बहुत जरूरी है। कई लोगों को यह शिकायत रहती है कि पैसे इस हाथ आता है और उस हाथ चला भी जाता है। कुछ को शिकायत रहती है कि पैसा आता ही नहीं तो बढ़ेगा कैसे। सांसारिक जीवन में अर्थ बिना सब व्यर्थ है। इसीलिए हम जानते हैं वे चार तरीके जिनसे धन सुरक्षित भी रहेगा।
हिन्दू धर्मग्रंथ महाभारत की विदुर नीति में लक्ष्मी का अधिकारी बनने के लिए विचार और कर्म से जुड़े 4 अहम सूत्र बताए गए हैं। जानिए, ये चार तरीके जिनको अपनाकर ज्ञानी हो या अल्प ज्ञानी दोनों ही धनवान बन सकते हैं।
श्लोक:-
श्रीर्मङ्गलात् प्रभवति प्रागल्भात् सम्प्रवर्धते।
दाक्ष्यात्तु कुरुते मूलं संयमात् प्रतितिष्ठत्ति।।
इस श्लोक का अर्थ विस्तार:-
1.पहला तरीका
अच्छे या मंगल कर्म से स्थाई रूप से लक्ष्मी आती है। इसका मतलब यह कि परिश्रम और ईमानदारी से किए गए कार्यों से धन की प्राति होती है।
1.दूसरा तरीका
प्रगल्भता अर्थात धन का सही प्रबंधन और निवेश एवं बचत से वह लगातार बढ़ता है। यदि हम धन को उचित आय बढ़ने वाले सही कार्यों में लगाएंगे तो निश्चित ही लाभ मिलेगा।
3.तीसरा तरीका
चातुर्य या चतुराई अर्थात अगर धन का सोच-समझकर उपयोग किया जाए और आय-व्यय का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए तो धन की बचत भी होगी और वह बढ़ता भी रहेगा। इससे धन का संतुलन बना रहेगा।
4.चौथा तरीका
चौथा और अंतिम सूत्र संयम अर्थात मानसिक, शारीरिक और वैचारिक संयम रखने से धन की रक्षा होती है। इसका मतलब यह कि सुख पाने और शौक पूरा करने की चाहत में धन का दुरुपयोग न करें। धन को घर और परिवार की आवश्यक जरूरतों पर ही खर्च करें।
तो यह था विदुर नीति अनुसार धन को प्राप्त करने, बढ़ाने और बचाने के चार तरीके। दरअसल, हमें धन को बचाने से ज्यादा उसे बढ़ाने की दिशा में ज्यादा सोचना चाहिए। आप यहां यह भी जान लें कि धन उस परिवार में ही टिकता हैं जहां प्रसन्नता, प्रेम, भाईचारा और स्वच्छता विद्यमान है। यह भी जरूरी है कि घर होना चाहिए वास्तु अनुसार।
धर्म संसार / शौर्यपथ / धर्म में तो हजारों बातें लिखी हैं किंतु कोई उसका अनुसरण करता है और कोई नहीं। धर्म में लिखी हजारों बातों में से मात्र 20 बातों का ही अनुसरण कर लिया जाए तो जीवन में सुख और शांति स्थापित हो सकती है।
1. ज्यादातर लोग इस खयाल में रहते हैं कि आज नहीं कल सेहत सुधार लेंगे। धर्म कहता है कि समस्या और बीमारी को मामूली समझकर शुरू में इलाज न करना घातक सिद्ध होता है। अत: जैसे ही पता चले कि कुछ समस्या या बीमारी है तो सब कार्य छोड़कर पहले उसका समाधान और इलाज करना चाहिए अन्यथा रोग बढ़ते देर नहीं लगती।
2. ज्यादातर लोग इसी ख्याल में रहते हैं कि जवानी और तंदुरुस्ती हमेशा रहेगी या वे कभी इस और ध्यान ही नहीं दे पाते हैं कि एक न एक दिन यह जवानी ढल जाएगी। आज जवानी पर इतराने वाले बहुत सारे युवक और युवतियां मिल जाएंगे।
3. देखा गया है कि अधिकतर व्यक्ति लोगों के दुखों में शामिल नहीं होते और खुद यह अपेक्षा रखते हैं कि कोई हमारे दुख-दर्द सुन ले और हमारी मदद करें। इसके लिए वे उन लोगों के पास भी चले जाते हैं जिनके दुखों में वे कभी खुद नहीं गए।
4. आज के दौर में ऐसे भी बहुत से लोग मिल जाएंगे जिन्होंने शायद ही कभी माता-पिता की सेवा की हो, लेकिन अब वे अपनी संतानों से सेवा की उम्मीद रखते हैं। माता-पिता से झगड़ा करने वाले बहुत से जवान बेटे मिल जाएंगे। उनकी बुढ़ापे में बहुत बुरी दुर्गति होती है यह गरूड़ पुराण में लिखा है।
5. खुद को दूसरों से बेहतर समझने वाले अहंकारी लोगों की भरमार है। ऐसे लोग अपनी अक्ल को सबसे बढ़कर समझते हैं। परमेश्वर ने सभी को दो हाथ, कान, नाक, दिमाग बनाकर दिया है। ज्यादा पढ़ने और सोचने या धन अर्जित करने से कोई दूसरों से बेहतर नहीं बन जाता। बड़े से बड़े ज्ञानियों के भी सुख-दुख गरीबों और अज्ञानियों के समान ही हैं।
6. ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि आज नहीं, कल यह कार्य कर लेंगे यानी किसी काम को ये सोचकर अधूरा छोड़ना कि फिर किसी दिन पूरा कर लिया जाएगा, यह लापरवाही जीवन में असफलता का कारण बन जाती है।
7. बहुत से ऐसे लोग हैं, जो खुद तो दूसरों के साथ खराब बर्ताव करते हैं और अपेक्षा यह रखते हैं कि सभी उनसे अच्छा व्यवहार करें। ऐसे लोग नकारात्मक विचारों के होते हैं और हमेशा वे दूसरों की बातों को काटते रहते हैं और अपना ही बखान करते रहते हैं।
8. कोई अच्छी राय दे तो उस पर ध्यान न देना भी कई लोगों की आदत है। ऐसे लोग न चाहने पर भी दूसरों को राय बांटते रहते हैं। ऐसे लोग कभी किसी की बात ध्यान से नहीं सुनते लेकिन अपेक्षा रखते हैं कि कोई हमारी बातें ध्यान से सुने। ऐसे में यदि कोई उनकी बातें ध्यान से नहीं सुनता हैं तो उन्हें गुस्सा आता है।
9. बहुत से लोगों में आदत होती है किसी भी मामले में दखलअंदाजी करना। उनमें भी वे लोग सबसे खराब हैं, जो बिना कारण के किसी के घरेलू मामले में दखल देते हैं और मामले को और बिगाड़ देते हैं।
10. बहुत से लोग अपने स्वार्थ के लिए या निष्प्रयोजन झूठ बोलते रहते हैं। वे हर वक्त झूठी कसम खाते रहते हैं। उनमें भी वे लोग अपराधी हैं तो कसम खाकर, झूठ बोलकर और धोखा देकर अपना माल बेचते या व्यापार करते हैं।
11. अपनी बुरी आदतों को ढंकने या उनको सही ठहराने वाले लोग भी बहुत मिल जाएंगे। यदि वे शराब पी रहे हैं तो शराब के अच्छे होने का तर्क देंगे। यदि वे अन्य कोई धर्मविरुद्ध कार्य कर रहे हैं तो उस कार्य को ढंकने के लिए कुतर्क का सहारा लेंगे।
12. पराई स्त्री से संबंध रखने वाले भी बहुत मिल जाएंगे। ऐसी स्त्रियां भी मिल जाएंगी, जो अपने पति को धोखा देकर दूसरे मर्द के साथ हैं। यह हमारे पारिवारिक समाज की नैतिकता के विरुद्ध है। इस तरह के लोगों को देखकर कुछ तो उनका विरोध करते हैं और कुछ उनके जैसा जीवन जीने की सोचते हैं। सभी तरह के अनैतिक संबंधों को सही ठहराने वाले धर्म की नजर में अपराधी हैं।
13. बहुत से लोग ऐसे हैं, जो हर एक के सामने अपना दुख-दर्द सुनाते रहते हैं और अपने घर का भेद दूसरों पर जाहिर करते हैं। इससे घर और परिवार में बिखराव होता है। ऐसे लोग कमजोर माने जाते हैं। ऐसे लोगों का बहुत से दूसरे लोग शोषण भी करते हैं।
14. सिनेमा, नशा, पान आदि पर अनाप-शनाप खर्चा कर देते हैं लेकिन अपने द्वार या दुकान पर आए फकीरों और गरीबों को धक्का देकर भगा देते हैं।
15. लाखों लोग हैं, ऐसे जो अपनी जुबान बंद नहीं रख सकते। वे दूसरों को कभी बोलने का अवसर नहीं देते। हर बात में वे अपनी राय रखना चाहते हैं भले ही वे उस विषय का ज्ञान नहीं रखते हों। ऐसे लोग जरूरत से ज्यादा बातचीत करते हैं। वे बगैर सोचे-समझे करते हैं। इनमें से अधिकतर ऐसे हैं, जो हमेशा नकारात्मक बातें ही करते रहते हैं। हमेशा उनके मुंह से कटु वचन ही निकले रहते हैं। ऐसे लोगों से आप कभी भी संवाद स्थापित नहीं कर सकते।
16. पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार करना हर धर्म सिखाता है लेकिन कितने हैं, जो ऐसा करते हैं। पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार न करने का मतलब है कि आप खुद की और दूसरों की शांति भंग कर रहे हैं। आप जहां भी जाएंगे शांति भंग ही करते रहेंगे। ऐसे लोग हमेशा यदि सोचते रहते हैं कि शांति भंग करने वाला मैं नहीं पड़ोसी ही है, यह जाएगा तभी जीवन में शांति आएगी। ऐसे लोग एक दिन खुद बेघर हो जाते हैं।
17. आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपय्या यानी आमदनी से अधिक खर्च करने वाले उधार लेकर भी जिंदगी बसर करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते और एक दिन वे बुरे दौर में फंस जाते हैं। वे सोचते रहते हैं कि आज तो कर लो खर्चा कल से बचत करेंगे या ज्यादा खर्चा नहीं करेंगे। ऐसे लोगों को बुरा इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि इनकी वजह से दूसरों का जीवन भी संकट में आ जाता है।
नजरिया /शौर्यपथ / बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों के गांव लौटने के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने की चुनौती पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। इस स्थिति में मनरेगा के वार्षिक बजट को लगभग 60,000 करोड़ रुपये से लगभग एक लाख करोड़ रुपये करके सरकार ने एक सराहनीय कदम उठाया है। जिस तरह से रोजगार की मांग के समाचार मिल रहे हैं, उससे तो लगता है कि वह 40,000 करोड़ रुपये की एकमुश्त वृद्धि भी पर्याप्त नहीं है। जैसा कि मनरेगा के कानून में प्रावधान है, अधिक मांग होने पर संसाधन वृद्धि के लिए गुंजाइश बनी रहनी चाहिए। हालांकि मजदूरों को अब शहरी उद्योग और राज्य वापस भी बुलाने लगे हैं। लौटने के लिए मजदूरों को तरह-तरह से प्रलोभन देने की शुरुआत हो चुकी है। मजदूरों को वापस काम पर लाने के लिए विशेष श्रमिक रेल की भी मांग हो रही है। इसके बावजूद मोटे तौर पर अनुमान है कि करीब 30 प्रतिशत मजदूर गांव में ही रह जाएंगे, इसलिए अभी मनरेगा की बहुत मांग है।
मनरेगा के बढ़ते दायरे के इस दौर में हमें बहुत सावधान रहना चाहिए और यह देखना चाहिए कि किन कारणों से इस अच्छी योजना के बहुत अनुकूल परिणाम नहीं मिले हैं। इसका एक प्रमुख कारण तरह-तरह का भ्रष्टाचार रहा है। एक प्रचलन है कि प्रधान या सरपंच अपने नजदीकी अनेक व्यक्तियों के नाम से जॉब कार्ड बनवाकर अपने पास रख लेते हैं। मनरेगा का कार्य जल्दबाजी में मशीनों का उपयोग करके आधा-अधूरा कराते हैं व फिर इन जॉब कार्ड पर मजदूरी दर्ज कर बैंक खातों में डाल दी जाती है। फिर प्रधान साहब इस मजदूरी का बड़ा हिस्सा अपने नजदीकी व्यक्तियों से ले लेते हैं। कुछ अन्य जिम्मेदार लोगों को भी हिस्सा मिल जाता है।
इस अनियमितता का असर यह है कि सरकारी रिकॉर्ड में तो मनरेगा कार्य उत्साहवद्र्धक लगते हैं, पर गांवों में पूछने पर पता चलता है कि जरूरमंदों को रोजगार बहुत कम मिला। एक अन्य समस्या यह रही है कि मजदूरी मिलने में बहुत देर होती है। इस तरह जरूरत के समय राहत देने का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। मजदूर पहले मेहनत करे, फिर बार-बार दूर के बैंक जाकर पता करे कि उसका पैसा आया है कि नहीं, यह न्यायसंगत नहीं है।
अत: कोरोना के दौर में मनरेगा से जुड़े भ्रष्टाचार को दूर करना और भी अधिक जरूरी हो गया है। ध्यान रहे, जो असरदार लोग भ्रष्टाचार करते रहे हैं, वे आज भी हैं। अत: सरकारों की ओर से विशेष प्रयास जरूरी हैं। एक सप्ताह काम करो और उसी सप्ताह के अंत में पूरी मजदूरी मिल जाए, तो अपनी जरूरतों को पूरा करने में लोगों को बहुत मदद मिलेगी। मनरेगा कानून में मजदूरों की ओर से मांग उठने पर एक प्रक्रिया के अंतर्गत रोजगार मिलता है। इसमें कुछ देर लग सकती है, जबकि आज अनेक जगहों पर तुरंत रोजगार देने की जरूरत है। अत: कानूनी प्रक्रियाओं में कुछ ढील देकर सरकारी स्तर पर अपनी पहल से भी रोजगार की व्यवस्था हो सकती है। हां, इस बात का पूरा ध्यान रखना होगा कि जो भी कार्य हों, वे वास्तविक उपयोगिता के हों।
मनरेगा व अधिक रोजगार देने वाली सरकारी स्कीमों को बढ़ाने के साथ यह समय गांवों के सामाजिक ताने-बाने को सुधारने के लिए भी अनुकूल है। अनेक गांवों में किसान और मजदूर में दूरी आ गई है, जिससे किसान मशीनों की ओर अधिक बढ़ने लगे और मजदूर प्रवासी मजदूरी की ओर। इन बढ़ती दूरियों से किसी को लाभ नहीं हुआ। अब समय है, इन दूरियों को पाटने का, विभिन्न समुदायों की आपसी नजदीकी बढ़ाने का। इस तरह गांव में खेती-किसानी के कार्यों में मजदूरों को गरिमामय माहौल में अधिक कार्य मिल सकेगा। गांव से छुआछूत और भेदभाव जैसी बुराई को पूरी तरह दूर करने के विशेष प्रयास भी होने चाहिए। सभी मजहबों, जातियों व समुदायों के बीच एकता बढ़नी चाहिए, जिससे गांव के सामान्य हित के कार्य में सब आपसी सहयोग से योगदान कर सकें। इस तरह की एकता व समरसता के कारण लोगों को नशे से दूर रहने में भी मदद मिलेगी। इससे महिलाओं को अधिक सुरक्षित माहौल मिलेगा, शिक्षा में प्रगति होगी।
यह सकारात्मक सोच वाले ग्रामीणों के लिए भी कुछ कर दिखाने का समय है। अपने स्तर पर और सरकार के साथ मिलकर वे तमाम योजनाओं को साकार करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) भारत डोगरा, सामाजिक कार्यकर्ता