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सेहत / शौर्यपथ / कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के खिलाफ लड़ाई में अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे डॉक्टरों और नर्सों में से कई तनाव को कम करने के लिए योग, संगीत और धार्मिक किताबों का सहारा ले रहे हैं। दिल्ली के सरकारी बाबू जगजीवन राम अस्पताल में सेवा देने वाले वरिष्ठ डॉक्टर वी के वर्मा अपने दिन की शुरुआत प्रणायाम से करते हैं और इसके साथ ही वह योग के कई दूसरे आसन भी करते हैं और फिर काम पर जाते हैं।
वहीं मैक्स अस्पताल की नर्स डॉली मस्से का कहना है कि इस संक्रमण से पैदा हुए 'तूफान' में शांति तलाशने के लिए वह बाइबल का सहारा लेती हैं। उनका कहना है कि वह अपने थैले में हर समय इस धार्मिक किताब को रखती हैं, यहां तक कि उनके मोबाइल फोन में भी ई-बाइबल है। यह किताब उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बने रहने में मदद करता है।
उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण के शुरुआती दौर में वह बिल्कुल भी नहीं डरीं और जब बंद के दौरान मामले बढ़ने शुरू हुए तब भी उन्हें डर नहीं लगा लेकिन 27 वर्षीय नर्स का कहना है कि अब उन्हें थोड़ा सा डर लगने लगा है कि वह भी संक्रमित हो सकती हैं।
एलएनजेपी अस्पताल की सीनियर डाक्टर कुमुद भारती ने कहा कि स्वास्थ्य कर्मियों के संक्रमित होने का काफी खतरा है क्योंकि वह इस लड़ाई में अग्रिम मोर्चे पर हैं। उन्होंने कहा कि डॉक्टर बचाव के लिए पीपीई किट, दस्ताने और अन्य चीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
भारती ने कहा कि डॉक्टरों को पता है कि मानवता की सेवा करना उनका कर्तव्य है लेकिन आखिर में डॉक्टर भी तो इंसान ही हैं। फॉर्टिस अस्पताल के डॉक्टर विकास मौर्य ने कहा कि ज्यादा संख्या में पीपीई किट होने से उनकी चिंता कम हुई है। उनका कहना है कि वह छह-छह घंटे तक लगातार पीपीई सूट पहने रहते हैं इसलिए उनकी स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। वह इस स्थिति में भी खुद को शांत रखने के लिए वह टीवी पर आनेवाले कार्यक्रमों को देखते हैं। किताब पढ़ते हैं और संगीत सुनते हैं।
लाइफस्टाइल /शौर्यपथ / बेदाग त्वचा और सेहतमंद रहने के लिए अच्छी इम्यूनिटी हर व्यक्ति की पहली ख्वाहिश होती है। व्यक्ति की ये दोनों ही ख्वाहिशें शरीर में पर्याप्त मात्रा में मौजूद विटामिन सी पूरा करता है। जी हां, शरीर में मौजूद विटामिन-सी व्यक्ति को कई गंभीर बीमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करके उसे स्वस्थ रहने में मदद करता है। विटामिन सी की कमी की वजह से व्यक्ति में खून की कमी, हड्डियों का कमजोर होना जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं। दरअसल, विटामिन सी हीमोग्लोबिन के लिए आवश्यक आयरन के अवशोषण में सहायता करता है। विटामिन सी सबसे ज्यादा खट्टे फल जैसे संतरा, मौसमी, किन्नू में पाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं इन फलों के अलावा 5 दूसरी चीजें भी हैं जो व्यक्ति के शरीर में विटामिन सी कमी इन फलों से भी जल्दी पूरी करती हैं।आइए जानते हैं आखिर क्या हैं वो 5 चीजें।
ब्रोकली-
ब्रोकली का सेवन करने से व्यक्ति को लगभग 132 मिलीग्राम विटामिन-C मिलता है। नियमित रूप से ब्रोकली का सेवन करने से व्यक्ति की इम्यूनिटी अच्छी होती है। जिसकी वजह से वो कैंसर जैसी कई जानलेवा बीमारी से भी दूर रहता है।
स्ट्रॉबेरीज-
स्ट्रॉबेरीज ना सिर्फ खाने में स्वादिष्ट होती हैं बल्कि सेहत के लिए भी उतना ही फायदेमंद हैं। स्ट्रॉबेरीज से भरे एक कप में लगभग 84.7 मिलीग्राम विटामिन सी, फोलेट की खुराक होती है। जिसकी वजह से व्यक्ति लंबे समय तक स्वस्थ रह सकता है।
अनानास-
अनानस भले ही एक फल हो लेकिन इसमें कई पोषक तत्व एकसाथ पाए जाते हैं। इस फल में 78.9 मिलीग्राम विटामिन सी के अलावा, ब्रोमेलैन भी मौजूद होता है। ब्रोमेलैन एक पाचन एंजाइम होता है जो भोजन को तोड़ने और सूजन को कम करके स्वस्थ रखता है।
लाल शिमला मिर्च-
जो लाल शिमला मिर्च आप अक्सर अपने घरों में बनाते या खाते हैं वो भी विटामिन-सी से भरपूर होती है। एक कप कटी हुई लाल शिमला मिर्च में 190 मिलीग्राम तक विटामिन सी पाया जाता है। इसके अलावा लाल मिर्च में मौजूद विटामिन ए आंखों की सेहत का भी ध्यान रखता है।
हरी शिमला मिर्च-
लाल शिमला मिर्च की तरह ही हरी शिमला मिर्च भी विटामिन-सी से भरपूर होती है। एक कप कटी हुई हरी शिमला मिर्च में 120 मिलीग्राम विटामिन सी होता है। इसके अलावा हरी शिमला मिर्च फाइबर का भी अच्छा स्रोत है। यह पाचन क्रिया और सेहत को बनाए रखने में मदद करता है।
धर्म संसार /शौर्यपथ / तब विदुर बताते हैं कि किस तरह आपका पुत्र आपकी राजनीतिक का शिकार हो गया। विदुर और धृतराष्ट्र के बीच धर्म और अधर्म को लेकर चर्चा होती है। विदुर हर तरह से धृतराष्ट्र को इस युद्ध के लिए दोषी ठहराते हैं। बाद में धृतराष्ट्र कहते हैं कि मेरे 100 पुत्रों के वीरगति को प्राप्त करने के पश्चात युधिष्ठिर शोक प्रकट करने नहीं आए।
फिर विदुर समझाते हैं कि अब भी आप धर्म को मान लीजिए राजन। मेरी विनती है कि विजयी पांडु पुत्र हस्तिनापुर आ चुके हैं। उन्हें आशीर्वाद दीजिए और वन की ओर प्रस्थान कीजिए भ्राताश्री। यह सुनकर धृतराष्ट्र मन-मसोककर रह जाते हैं।
श्रीकृष्ण सहित पांचों पांडवों का हस्तिनापुर के राजमहल में स्वागत होता है। सबसे पहले विदुर उनका स्वागत करते हैं। फिर भीतर सभी राजा धृतराष्ट्र के पास जाते हैं। तब धृतराष्ट्र खड़े होकर कहते हैं कि एक-एक करने आओ ताकि मैं तुम लोगों को पहचान सकूं।
यह सुनकर सबसे पहले श्रीकृष्ण आगे बढ़कर पास जाते हैं तो धृतराष्ट्र कहते हैं वासुदेव? फिर वासुदेव उन्हें नमस्कार करते हुए कहते हैं कि हस्तिनापुर नरेश के चरणों में सादर प्रणाम करता हूं। तब धृतराष्ट्र कहते हैं कि मैं तो समझा था कि पहले तुम शोक संवेदना प्रकट करोगे। तब श्रीकृष्ण और धृतराष्ट्र दोनों में के बीच वाद-विवाद होता है।
फिर युधिष्ठिर आगे बढ़कर धृतराष्ट्र के चरण स्पर्श करते हैं। धृतराष्ट्र कहते हैं आयुष्यमान भव। हे हस्तिनापुर नरेश आपके राजभवन में आपका स्वागत है। युधिष्ठिर कहता है कि महाराज तो आप ही हैं ज्येष्ठ पिताश्री। तब धृतराष्ट्र कहते हैं कि मुझे दान में राज देकर मेरा अपमान न करो युधिष्ठिर। यह कहकर वे कहते हैं कि अपने अनुजों को बुलाओ। भीम को बुलाओ।भीम मेरे निकट आओ पुत्र।
जब खुला दुर्योधन और पांडवों के समक्ष कर्ण का राज
भीम धीरे-धीरे धृतराष्ट्र के पास पहुंचने ही वाले रहते हैं तभी श्रीकृष्ण संकेत से उन्हें रोक देते हैं और एक मूर्ति को उनके समक्ष रखने का संकेत करते हैं। विदुर और पांडव यह समझ नहीं पाते हैं। भीम समझ जाता है और वह उसकी आदमकद मूर्ति को धीरे से उठाकर धृतराष्ट्र के सामने रख देता है।
फिर भीम धृतराष्ट्र के चरण स्पर्श करता है तो धृतराष्ट्र कहते हैं चरण स्पर्श नहीं पुत्र, आलिंगन करो। फिर श्रीकृष्ण इशारे से भीम को मना करके कहते हैं कि उस मूर्ति को आगे बढ़ाओ। भीम उस मूर्ति को आगे बढ़ा देते हैं।
तब धृतराष्ट्र क्रोध में उस मूर्ति को भीम समझकर उसका आलिंगन करते हैं और दुर्योधन का नाम लेते हुए उस मूर्ति को कस के पकड़ कर तोड़ देते हैं। यह देखकर श्रीकृष्ण मुस्कुरा रहे होते हैं। फिर धृतराष्ट्र रोते हुए अपने सिंहासन पर बैठ जाते हैं। रोते हुए कहते हैं, मेरे प्रिय अनुज पांडु, मुझे क्षमा कर देना। मैंने तुम्हारे पुत्र भीम की हत्या कर दी।
तब श्रीकृष्ण कहते हैं नहीं राजन। मैं जानता था कि आप कितने क्रोध में हैं। इसीलिए भीम को तो मैंने आपके निकट ही नहीं आने दिया। तब धृतराष्ट्र कहते हैं क्या भीम जिंदा है? यह सुनकर भीम कहता है, मैं आपके आशीर्वाद की प्रतिक्षा कर रहा हूं ज्येष्ठ पिताश्री। यदि अब भी आपके क्रोध की अग्नि शांत नहीं हुई हो तो मैं स्वयं आपकी बाहों में आ जाता हूं।
यह सुनकर रोते हुए धृतराष्ट्र कहते हैं नहीं, पुत्र नहीं। ऐसा मत कहो। अपने 100 पुत्रों को खो देने वाला ये पिता अब अपने अनुज पुत्रों को नहीं खोना चाहता।...तब भीम कहते हैं कि आज्ञा हो तो मैं आपकी छाती से ये बहता लहू पोंछ दूं। यह सुनकर धृतराष्ट्र कहते हैं आयुष्यमान भव पुत्र, आयुष्यमान भव।..फिर ऋषि वेदव्यास गांधारी को उपदेश देते हैं।
जब कर्ण करने ही वाला था अर्जुन का वध, दु:शासन वध
शाम के एपिसोड में गांधारी से मिलने के लिए कुंती के साथ पांचों पांडव उनके कक्ष में जाते हैं। तभी वहां पर विदुर के साथ धृतराष्ट्र पहुंच जाते हैं और वे अपने वन में जाने की बात करते हैं। कुंती भी उनके साथ वन में जाने की बात करती हैं। तब श्रीकृष्ण भी इस बात का समर्थन करते हैं। विदुर भी वन जाने की बात करते हैं। पांचों पांडव यह सुनकर दुखी हो जाते हैं। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि बड़े भैया के राज्याभिषेक तक तो आपको रुकना होगा।
फिर युधिष्ठिर का राज्याभिषेक होता है। राज्याभिषेक के समय द्रौपदी उनके साथ रानी बनकर बैठती है। फिर युधिष्ठिर की जय-जयकार होने लगती है। अंत में युधिष्ठिर सभी को प्रणाम करके अपना उद्भोधन देते हैं। अपने उद्भोधन में वह भीष्म, द्रोणाचार्य, दुर्योधन और कर्ण के रिक्त स्थान को प्रणाम करके कहते हैं कि यह स्थान हमेशा रिक्त रहेंगे। विदुर हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री होंगे। भीम युवराज होंगे। अनुज अर्जुन सीमाओं की रक्षा का दायित्व संभालेंगे। प्रिय नकुल और सहदेव मेरे प्रधान अंगरक्षक होंगे। अंत में वे धृतराष्ट्र का चरण स्पर्श करते हैं।
फिर धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती वन में जाने के लिए निकलते हैं तब द्रौपदी और गांधारी के बीच संवाद होता है। गांधारी कहती है जो हुआ उसे भूल जाओ पुत्री और एक नवीन युग का शुभारंभ करो। द्रौपदी सभी को रोकने का प्रयास करती हैं।
जब किया श्रीकृष्ण ने चमत्कार, घटोत्कच का बलिदान
उधर, भीष्म पितामह अपनी माता से कहते हैं कि मैं जानता हूं कि अब मेरे जाने का समय आ गया है। तब श्रीकृष्ण के साथ सभी पांडव भीष्म पितामह के पास पहुंचते हैं। भीष्म कहते हैं कि हे वासुदेव मुझे तो तुम्हारे दर्शन करके जीते जी मोक्ष मिल गया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि यही तो मैं चाहता था पितामह। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि आप युधिष्ठिर को अपनी अंतिम शिक्षा देकर उसे धन्य करें पितामह। भीष्म कहते हैं कि आपके होते मैं शिक्षा देने वाला कौन? तब श्रीकृष्ण कहते हैं मेरे पास ज्ञान है लेकिन आपके पास अनुभव। इन्हें अनुभव देने वाला कोई नहीं हैं पितामह।
फिर युधिष्ठि को भीष्म पितामह राजधर्म की, राजनीति आदि की शिक्षा देते हैं। फिर ओम का उच्चारण करते हुए भीष्म पितामह अपना शरीर छोड़ देते हैं। अर्जुन रोने लगता हैं। फिर श्रीकृष्ण खड़े होकर कहते हैं, धन्य है वे आंखें जो नश्वर को अनश्वर होने का दृश्य देख रही है।
आसमान से देवतागण भीष्म पितामह के शव पर फूलों की वर्षा करते हैं। महर्षि वेदव्यास का जय काव्य आज समाप्त हुआ। महाभारत आज समाप्त हुई। जय श्रीकृष्णा।
मेरी कहानी / शौर्यपथ / यह 90 के दशक की बात है, मुझे मैहर से ‘इन्विटेशन’ आया कि वहां गाना है। मैं मुंबई में गाकर ट्रेन से मैहर पहुंची। वह फ्लाइट का जमाना नहीं था। मैं एक रात पहले ही वहां पहुंची थी। हालांकि मैंने तार-चिट्ठी सब भेज दी थी कि फलां ट्रेन से पहुंच रही हूं, लेकिन कोई सूचना नहीं पहुंची। आयोजकों ने सोचा कि मेरा पता तो दिल्ली का है, सो मैं दिल्ली से ही आ रही हूं। रात के करीब सवा नौ बजे मैं वहां पहुंची। छोटा सा स्टेशन। ट्रेन से उस स्टेशन पर इकलौती मैं ही उतरी थी। वहां कोई नहीं था आयोजकों की तरफ से। उन दिनों मोबाइल नहीं था। मैं अकेली थी, तो थोड़ा डर भी लग रहा था। देखा, तो झाड़ू लगाने वाले एक व्यक्ति वहां से कुछ दूरी पर घूम रहे थे। वह आए, नमस्कार किया और उन्होंने पूछा कि आप कार्यक्रम के लिए आई हैं? मैंने कहा- जी। उन्होंने कहा कि आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। मैं अभी स्टेशन मास्टर के कमरे में जाकर उन लोगों को खबर भेजता हूं। तब तक आप आराम से बैठिए। 10-15 मिनट में कोई आ जाएगा। मुझे समझ में नहीं आया कि यह सज्जन जो इतनी मदद कर रहे हैं, आतिथ्य दिखा रहे हैं, मैं उसे स्वीकार करूं भी या नहीं? उन्होंने स्टेशन मास्टर का कमरा खोला, मुझे वहां बिठाया। थोड़ी देर में चाय आ गई। कुछ ही मिनट के भीतर आयोजकों की तरफ से भी कुछ लोग आ गए। उन लोगों ने कहा- अरे आप मुंबई से आ गईं, हम लोग तो सोच रहे थे कि आप दिल्ली से आएंगी। हम लोग वहां से सामान लेकर निकलने लगे, तो वह सज्जन वहीं खड़े थे। मैंने उनके पास जाकर कहा कि मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं कैसे आपका धन्यवाद करूं? उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं, ऐसा कोई धन्यवाद नहीं, आप यहां आईं, यही बड़ी बात है। बस एक गुजारिश है कि ‘परज’ बहुत दिनों से नहीं सुना है। वह सुना दीजिएगा कल। मैं हक्की-बक्की रह गई।
लेकिन मैं सड़क पर निकलूं और लोग पहचान जाएं, वह समय अली मोरे अंगना और अबकी सावन गाने के बाद आया। 1996 में अली मोरे अंगना गाया और 1999 में अबकी सावन । इसमें कोई दो राय नहीं है कि इसके बाद मुझे अलग ही पहचान मिली। दिल्ली में एक स्टूडियो है, जो जवाहर वत्तल चलाते थे। उन दिनों वह बहुत काम कर रहे थे। उस समय के जो इंडी पॉप के स्टार थे- बाबा सहगल हों, दलेर मेहंदी हों, बडे़-बड़े स्टार्स हों, उनके बहुत हिट एल्बम हुए। उनके स्टूडियो में मैं मल्हार की रिकॉर्डिंग कर रही थी। रिकॉर्डिंग के बीच कभी-कभार जब वह आते, तो उनसे ‘हाय-हैलो’ हो जाती थी। एक दिन वह ‘रिकॉर्डिंग’ के दौरान आए और कहने लगे कि आज जब आपकी ‘रिकॉर्डिंग’ खत्म हो जाए, तो एक कप चाय पीएं मेरे साथ। उन्होंने चाय पीते-पीते ही कहा कि मेरे दिमाग में एक विचार आया है कि शास्त्रीय संगीत के बेस पर कोई गीत बनाया जाए। उसमें आप तानपुरा वगैरह रखिए, लेकिन मैं उसमें ‘ड्रम्स’ और ‘की बोर्ड’ भी डालूंगा। मैंने कहा कि मैंने ऐसा कभी किया नहीं है और यह भी नहीं जानती कि मैं कर पाऊंगी या नहीं। मैंने उन्हें यह भी बताया कि ‘मल्टी ट्रैक रिकॉर्डिंग’ क्या है, मुझे पता तक नहीं है। मैं तो हमेशा साज-संगत साथ लेकर गाती हूं। खैर, झिझकते-झिझकते ‘फाइनली’ एक रोज उन्होंने एक गाना गवाया मुझसे- अली मोरे अंगना। मुझे ‘चैलेंजिंग’ भी लगा कि गाना याद किया और झट से गा दिया। साथ में कोई नहीं, बस हेडफोन से सब सुनाई दे रहा है। इस तरह से वह एलबम तैयार हुआ।
इसके बाद मेरी गायकी से ऐसे श्रोता भी जुड़े, जो शायद पहले शास्त्रीय संगीत नहीं सुनते थे। कुछ लोग ऐसे जरूर होंगे, जिनको शायद यह बात पसंद न आई हो कि मैंने ‘पॉपुलर’ गाना क्यों गाया? या हो सकता है कि उन्हें मेरा गाना ही पसंद न होे। मेरे ख्याल से शास्त्रीय संगीत के जानकारों को एक चिंता यह रही होगी कि जब मैं राग यमन गाने बैठूंगी, तो कहीं कुछ उलटा-सीधा न कर दूं। यह फिक्र जायज है। मैं ऐसे लोगों को सम्मान देती हूं। मैं खुद इस बात को लेकर बेहद सजग रहती हूं कि मैं पंडित रामाश्रय झा, विनय मुद्गल, वसंत ठकार, जितेंद्र अभिषेकी, पंडित कुमार गंधर्व और नैना देवी की शिष्या हूं। मैं जब शास्त्रीय संगीत गा रही होती हूं, तो उसमें कोई हल्की चीज गाने की कोशिश नहीं करती। मैं ‘पॉपुलर म्यूजिक’ गा रही हूं, तो उसमें जबर्दस्ती ‘राग दरबारी’ नहीं थोपती। मैंने कभी इस ‘आइडिया’ से ‘पॉपुलर म्यूजिक’ नहीं गाया कि मैं इससे शास्त्रीय संगीत को आम लोगों के बीच लेकर जाऊंगी। मुझे लगता है कि मुझसे कहीं ज्यादा सशक्त संगीत है। वह किस तरह से, किसके हृदय पर, किसके कानों पर, कब चढ़कर बोलेगा, मुझे नहीं पता। अगर मेरी आवाज से हो जाए, तो मैं धन्य हूं। संगीत के अलावा मुझे तकनीक का बड़ा शौक है, इसीलिए अनीश और मैंने 2003 में गुरुजी की 75वीं वर्षगांठ पर ‘अंडरस्कोर रिकॉड्र्स’ शुरू किया, जिसमें भारतीय संगीत के तमाम रूपों, साहित्य, आर्टिकल, सामग्री का वितरण होता है।
शुभा मुद्गल, गायिका
जीना इसी का नाम है / शौर्यपथ / जिस दिन तामांग विधवा हुईं, उस दिन उन्होंने सिर्फ अपना पति नहीं खोया, बल्कि सब कुछ गंवा दिया। ससुराल वालों का रवैया दिन-ब-दिन खराब होता गया। बात-बेबात उनके साथ मार-पीट की जाने लगी। उनका घर, बचत, सब कुछ हथिया लिया गया।नेपाल के एक रूढ़िवादी हिंदू परिवार में जन्मी राम देवी तामांग 20 साल की थीं, जब उनका विवाह प्रेम लामा के साथ हुआ। प्रेम एक गैर-सरकारी संगठन में काम करते थे और तामांग टेलरिंग का छोटा-मोटा कारोबार चलाती थीं। नेपाल जैसे देश में, जहां औरतों के लिए काम-काज के मौके बहुत सीमित हैं, तामांग के कारोबार की वजह से घर में खुशियों की भरपूर आमद थी। जिंदगी खुशगवार थी और पति-पत्नी, दोनों एक-दूसरे का दामन थामे बेहतर कल के सपने बुनने में जुटे थे।
शादी के एक साल बाद ही एक बेटी ने जन्म लेकर तामांग और प्रेम को मां-बाप के एहसास से आबाद कर दिया था। वे दोनों लगभग रोज इसके लिए अपने ईष्टदेव का धन्यवाद करते। जिंदगी रफ्ता-रफ्ता अपना सफर तय करती रही। इस बीच उन्हें एक और बेटी की खुशी नसीब हुई। मगर एक अनहोनी ने उनकी तमाम खुशियों को ग्रहण लगा दिया। प्रेम एक मोटरसाइकिल दुर्घटना में मारे गए। तामांग की पूरी दुनिया उजड़ गई। इस विपदा में जिन लोगों से उन्हें साथ और सहारे की सबसे अधिक उम्मीद थी, वहीं से उन्हें तोहमत और जिल्लत मिली। ससुराल वाले प्रेम की मौत के लिए उन्हें कमनसीब ठहराने लगे। तामांग कहती हैं, ‘उन्होंने मुझे अपने पति को खा जाने वाली कहा। वे यहीं तक नहीं रुके। मुझे लगातार कोसते रहे कि अगर मैं गांव में रही, तो सभी पुरुषों को खा जाऊंगी।’
जिस दिन तामांग विधवा हुईं, उस दिन उन्होंने सिर्फ अपना पति नहीं खोया, बल्कि अपना सब कुछ गंवा दिया। ससुराल वालों का रवैया दिन-ब-दिन खराब होता गया। सबसे पहले उन्होंने तामांग से उनका टेेलरिंग का कारोबार छीना। फिर बात-बेबात उनके साथ गाली-गलौज और मार-पीट की जाने लगी। उनका घर, बचत, सब कुछ हथिया लिया गया। सामाजिक रूढ़ि के कारण उनका अपना परिवार भी उनके साथ खड़ा नहीं हुआ, क्योंकि यह रवायत भी थी कि विधवा होने के बाद कोई लड़की अपने पिता के घर नहीं लौट सकती थी।
नेपाल के पारंपरिक हिंदू समाज में आज भी एक विधवा स्त्री पर तरह-तरह की बंदिशें लागू हैं। मसलन, वे पुनर्विवाह नहीं कर सकतीं, लाल कपडे़ नहीं पहन सकतीं और न ही कोई आभूषण धारण कर सकती हैं। उन्हें शाकाहारी भोजन ही करना पड़ता है और वे किसी धार्मिक-मांगलिक कार्य में भी हिस्सा नहीं ले सकतीं। एक तरह से वे बहिष्कृत जीवन जीने को बाध्य हैं। तामांग को जल्द ही एहसास हो गया कि इस घुटन भरी जिंदगी से मुक्ति के लिए उन्हें अपने पति का गांव छोड़ कहीं और ठिकाना ढूंढ़ना होगा।
वे नेपाल के उथल-पुथल भरे दिन थे। देश आंतरिक संघर्ष के चक्रव्यूह में फंसा था। तामांग को अपनी दो बच्चियों के भविष्य की चिंता खाए जा रही थी। वह उन्हें पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाना चाहती थीं। अंतत: उन्होंने अपनी दोनों बच्चियों के साथ पति का गांव छोड़ दिया और काठमांडू से करीब 25 किलोमीटर पूरब स्थित बनेपा गांव में आ गईं। वह अपने साथ सिर्फ तीन सिलाई मशीन लेकर आईं। उनके लिए वे बेहद मुश्किल भरे दिन थे। दो छोटी बच्चियों की देखभाल के साथ उन्हें अपनी आजीविका का आधार तलाशना था। तामांग को अपने हुनर पर यकीन था। उन्होंने सिलाई का काम शुरू किया। साथ ही, वह घर में अचार बनाकर बेचने लगीं। आहिस्ता-आहिस्ता जिंदगी पटरी पर लौट आई। बेटियां स्कूल जाने लगीं।
लेकिन विधवा होने के बाद तामांग के भीतर कुछ दरक गया था। एक टीस थी, जो मुसलसल उन्हें बेधती रही। आखिर पति के रहते जिस परिवार और समाज से उन्हें मान-सम्मान मिलता रहा, वह एकाएक नफरत में क्यों बदला? वह भी तब, जब पति की मौत में उनकी कोई गलती न थी। उन्होंने बेवा औरतों को बदनसीब समझने वाली सोच से टकराने का फैसला किया। पूरे नेपाल में लाखों की संख्या में विधवाएं अभिशप्त जिंदगी जीने को मजबूर थीं।
तामांग अब विधवाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाने लगीं, उनके सशक्तीकरण के लिए उन्हें दस्तकारी और दूसरे तमाम तरह के हुनर सीखने को प्रेरित करने लगीं। वह कहती हैं, ‘औरतों ने ही बुरे वक्त में मेरा साथ दिया। मैं जिस तकलीफ से गुजर चुकी हूं, उससे उन्हें उबारना चाहती हूं। इसलिए मैं उन्हें प्रोत्साहित करती हूं कि वे हुनरमंद बनें। पैसे तो आते-जाते रहते हैं, मगर हुनर हमेशा आपके साथ रहता है।’
सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए तामांग ने लाल लिबास और आभूषण पहनने शुरू कर दिए। समुदाय के लोग उनसे बार-बार कहते रहते थे कि वह सियासत में उतरें, क्योंकि उनकी बातों का असर लोगों पर होता है। तामांग को भी एहसास हुआ कि शायद इस तरह वह विधवाओं की बेहतर खिदमत कर सकेंगी। साल 2017 में नामोबुद्धा म्युनिसिपैलिटी के डिप्टी मेयर का चुनाव उन्होंने सीपीएन (यूएमएल) के टिकट पर लड़ा और चुनाव में फतह हासिल की। जिस महिला को कभी उनके समाज ने अभागिन कहकर अपमानित किया था, आज वह उनकी किस्मत से रश्क करता है।
प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह राम देवी तामांग, नेपाली सामाजिक कार्यकर्ता
नजरिया / शौर्यपथ /कोरोना के इस संक्रमण काल में कई महान कलाकार हमसे विदा हो गए। इरफान खान और ऋषि कपूर के बाद गीतकार योगेश भी इस दुनिया को छोड़ गए। पिछली सदी के साठ और सत्तर के दशक में यागेश जी ने कई बेहतरीन गीत लिखे, जिनमें से कुछ तो कालजयी सिद्ध हुए। कोई भी संगीत-प्रेमी आनंद का मशहूर गीत जिंदगी कैसी है पहेली हाय... भला कैसे भूल पाएगा? उनके लिखे दर्जनों गीत ऐसे हैं, जिन्हें रसिक श्रोताओं से लेकर आम आदमी तक गुनगुनाता रहा है।
लखनऊ के गणेश गंज मुहल्ले में 1943 में जन्मे योगेश की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा एक साहित्यिक-सांस्कृतिक माहौल में हुई थी, क्योंकि उनके पिता इंजीनियर होते हुए भी साहित्यिक अभिरुचि से संपन्न व्यक्ति थे। मगर पिता की असामयिक मृत्यु हो गई और घर में अभाव का यह हाल था कि पिता के अंतिम कर्म के लिए योगेश को चंदा एकत्रित करना पड़ा था। गरीबी सामने मुंह खोले खड़ी थी, और जिंदगी का लंबा सफर बाकी था। योगेश को पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। जीवन-यापन के लिए उन्होंने टाइपिंग सीखी। और काम तलाशने के सिलसिले में 1961 में वह मुंबई आ गए। मुंबई इसलिए, क्योंकि यहां उनके चचेरे भाई पहले से फिल्मों में लेखन का काम कर रहे थे। एक भरोसा था कि मुंबई में कोई तो जानने वाला होगा। मुंबई आने पर योगेश को दुनिया की कटु हकीकतों से दो-चार होना पड़ा। जिस उम्मीद के सहारे वह आए थे, वहां से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल सका। फिर उन्होंने एक ‘चाल’ किराए पर ली। खुद खाना बनाते और जिंदगी को एक राह मिले, इसकी तलाश करते। इसी दौरान गुलशन बावरा से उनका संपर्क हुआ। उन्होंने ही योगेश को गीत लिखने की सलाह दी। शुरुआत तो योगेश ने कहानी लेखन से की, बाद में उन्होंने पटकथा व संवाद लिखने का भी काम किया। लंबे संघर्ष के बाद उन्हें एक गीतकार के रूप में काम मिला।
बतौर गीतकार सखी रौबिन से उनका पदार्पण हुआ। इस फिल्म में योगेश जी ने छह गीत लिखे। मगर तुम जो आओ तो प्यार आ जाए, जिंदगी में बाहर आ जाए तराने ने लोगों का ध्यान खींचा। इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों के लिए अनुबंध किया। 1968 में आई एक रात के गीत सौ बार बनाकर मालिक ने सौ बार मिटाया होगा, ये हुस्न मुजस्सिम तब तेरा इस रंग पे आया होगा को मोहम्मद रफी ने बडे़ ही दिलकश अंदाज में गाया है। इस गीत को सुनकर लोग चौंक उठे। इस गाने ने बतौर गीतकार योगेश जी की पहचान स्थापित कर दी।
गीतकार के रूप में उनकी मुख्तलिफ पहचान का आधार थीं- उनकी प्रवाहमय भाषा और बोलों की दार्शनिकता। योगेश जी ने फिल्मों के लिए गीत लिखते हुए अपनी साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत को हमेशा जीवित रखा। आनंद, रजनीगंधा और मिली जैसी कामयाब फिल्मों के गीतों में इसका प्रभाव देखा जा सकता है। इन फिल्मों के गीतों ने अपने समय में धूम मचा दी थी। योगेश ने ऐसे समय में अपने गीतों में शुद्ध हिंदी शब्दों का इस्तेमाल करना शुरू किया, जब उर्दू लफ्जों से सराबोर गाने इंडस्ट्री में छाए हुए थे। फिल्म आनंद से उनकी सलिल चौधरी के साथ जोड़ी बन गई। इस जोड़ी ने कई फिल्मों में साथ काम किया। उस दौर के श्रेष्ठ संगीतकार एस डी बर्मन के साथ भी उन्होंने काम किया। योगेश जी ने आर डी बर्मन, बप्पी लाहिड़ी, राजेश रोशन के साथ भी काम किया और कई अविस्मरणीय गीत रचे। जिंदगी के तमाम थपेड़ों के बीच एक सकारात्मकता उनमें हमेशा बनी रही और यह उनके गीतों में भी दिखती रही।
योगेश को इस बात का बहुत मलाल रहा कि वह कपूर परिवार के लिए कोई गीत न लिख सके। एक साक्षात्कार में उन्होंने स्वीकार किया था कि एक बार राज कपूर ने उनको बुलाया था और वह आरके स्टूडियो पहुंचे भी, लेकिन उनके गार्ड ने उन्हें गीतकार मानने से मना कर दिया। दो-तीन प्रयास के बाद भी वह राज कपूर से नहीं मिल सके। दूसरी तरफ, राज साहब को शायद यह महसूस हुआ कि योगेश उनसे मिलने आए ही नहीं।
योगेश जी के देहांत पर लता मंगेशकर का शोक संदेश ही उनके कद की ऊंचाई को उजागर कर देता है। मगर सच का एक पहलू संगीतकार निखिल का वह ट्वीट है, जिसमें उन्होंने लिखा है, हम योगेश जी को वह सम्मान न दे सके, जिसके वह वाकई हकदार थे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) पवन कुमार, प्रशासनिक अधिकारी
सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / लॉकडाउन लगाना और चलाना जितना कठिन था, उससे कहीं अधिक कठिन है लॉकडाउन हटाना व सामान्य स्थिति में लौटना। लॉकडाउन खुलते समय जिस तरह का तनाव या विवाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में हुआ है, वह अभूतपूर्व ही नहीं, चिंताजनक भी है। दिल्ली से लोग नोएडा या गाजियाबाद में काम करने निकले, तो उन्हें सीमा पर ही उत्तर प्रदेश की पुलिस ने रोक लिया। ठीक ऐसा ही विवाद हरियाणा-दिल्ली सीमा पर एकाधिक बार देखने में आया है। गुरुग्राम की सीमा पर पिछले सप्ताह एक समय पथराव की स्थिति बन गई थी। स्वाभाविक है, अब दफ्तर खुल रहे हैं, तो किसी को दिल्ली जाना है, किसी को दिल्ली से बाहर जाना है। जहां दिल्ली लॉकडाउन 4 के समय से ही कमोबेश खुल चुकी है, वहीं गुरुग्राम, नोएडा और गाजियाबाद में स्थिति अभी सामान्य नहीं है। 1 जून को जब दिल्ली के लोगों को सीमाओं पर रोका गया, तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का रोष स्वाभाविक था, उन्होंने भी दिल्ली की सीमाओं को 8 जून तक बंद रखने का आदेश दे दिया।
आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? दिल्ली के पड़ोसी राज्यों की दुविधा को कोरोना संक्रमण के आंकड़ों से समझा जा सकता है। जहां दिल्ली में 18,550 लोग संक्रमित हो चुके हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में 7,750 और हरियाणा में महज 1,923 मामले हैं। जहां दिल्ली में 31 मई तक 416 मौतें हो चुकी हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में 201 और हरियाणा में 20 लोगों की जान गई है। आंकड़े गवाह हैं कि संक्रमण की स्थिति दिल्ली में गंभीर है। ऐसे में, दिल्ली से आ रहे लोग उत्तर प्रदेश व हरियाणा, दोनों के लिए चिंता की बात हों, तो कोई आश्चर्य नहीं। दिल्ली अपनी अर्थव्यवस्था से और समझौता करने की मुद्रा में नहीं है, तो इसे समझा जा सकता है, पर ध्यान रहे, यह समय रोष का नहीं, बल्कि होश से कदम आगे बढ़ाने का है।
पूरे एनसीआर क्षेत्र के तमाम प्रशासन को कुछ अलग ढंग से मिलकर सोचना होगा। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें लोगों का परस्पर जुड़ाव व्यापक है, लोगों के व्यावसायिक,सामाजिक, पारिवारिक हित जुडे़ हुए हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को एक इकाई मानकर चलने की जरूरत है। इस वृहद क्षेत्र की जब रूपरेखा तैयार की गई थी, तब पूरे क्षेत्र के सुख-दुख को एक माना गया था, हालांकि राज्य सरकारों की अपनी-अपनी गुणवत्ता के अनुसार ही ये क्षेत्र कुछ-कुछ बंटे रहे हैं। इसलिए यह क्षेत्र कल भी आदर्श नहीं था और आज भी नहीं है। उदाहरण के लिए, सोमवार को ही दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक एप की घोषणा की है, जिससे कोविड-19 के मामलों की निगरानी की जाएगी, लेकिन क्या राष्ट्रीय राजधानी के पूरे क्षेत्र के लोगों को इसमें शामिल किए बिना कोविड-19 की निगरानी में कामयाबी मिल सकेगी? इस एप के जरिए या किसी विशेष स्वास्थ्य जांच तंत्र के जरिए दिल्ली सरकार को आगे बढ़कर नई लकीर खींचनी चाहिए। साथ ही, जो क्षेत्र दिल्ली से जुड़े हुए हैं, उन्हें भी खास दिल्ली और उसके लोगों के रोजगार के बारे में सोचना चाहिए। यह क्षेत्र उत्तर भारत का व्यावसायिक इंजन है, इसके विभिन्न चालक-संचालक तभी कारगर व कामयाब होंगे, जब उनके बीच समन्वय होगा। काम पर निकले लोगों की जगह-जगह पुख्ता निगरानी हो, लेकिन किसी को काम पर जाने से रोका न जाए, तभी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र देश के सामने एक मिसाल पेश कर पाएगा।
मेलबॉक्स / शौर्यपथ / कोरोना वायरस से जहां सभी देशों की अर्थव्यवस्था डगमगा रही है, वहीं भारत के सामने नए अवसर भी पैदा हो रहे हैं। अपनी कमियों को पहचानने के साथ-साथ यह हमें आत्मनिर्भर बनने का मौका भी दे रहा है। हालांकि, यह आत्मनिर्भरता केवल औद्योगिक क्षेत्रों से नहीं आ सकती, इसकी बुनियाद बेहतर शिक्षा में छिपी है। आज हमारे देश में युवा और शिक्षित लोगों की कमी नहीं है, फिर भी वे इतने योग्य नहीं कि देश को आत्मनिर्भर बना सकें। लिहाजा आत्मनिर्भर बनने के लिए सबसे पहले हमें गुणवत्तापूर्ण और व्यावहारिक शिक्षा की ओर बढ़ना होगा। शोध के क्षेत्र में प्रोत्साहन ज्यादा जरूरी है। देश के सभी शिक्षण संस्थानों में निरंतर प्रायोगिक कक्षाएं होनी चाहिए। आज हमारे देश में विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ज्यादा उत्साहित रहते हैं, वे शोध के क्षेत्र में जाने से कतराते हैं। इस सोच को बदलने की दिशा में सरकार को काम करना चाहिए। शोध-कार्यों को बढ़ावा देकर ही आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा जा सकता है।
प्रतीक राज, झांसी
और सजगता जरूरी
कोविड-19 से निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन को सरकार ने चरणबद्ध तरीके से खोलने का एलान कर दिया है। लॉकडाउन की वास्तविक पाबंदियां अब सिर्फ कंटेनमेंट जोन में ही लगेंगी। मगर अब हम सबकी जिम्मेदारी कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। हमें ठीक ढंग से दो गज की दूरी का पालन करना होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि पिछले कुछ दिनों से देश में संक्रमण और मौत के आंकडे़ जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं, वे चिंताजनक हैं। चूंकि अर्थव्यवस्था को खोलना भी जरूरी है, इसलिए सुरक्षा के लिहाज से जरूरी है कि लोग खुद पर अनुशासन रखें। खतरा अभी टला नहीं है।
काव्यांशी मिश्रा, मैनपुरी
साल एक, काम अनेक
मोदी सरकार 2.0 के एक साल पूरे हो चुके हैं। बीते एक वर्ष में सरकार कई मुद्दों पर विपक्ष के निशाने पर रही, लेकिन उसने कई ऐसे काम भी किए, जो आम जनता के हित में रहे। मोदी सरकार की सबसे खास बात यह है कि उसके मंत्री भ्रष्टाचार से दूर हैं। इसके अलावा, बरसों से चले आ रहे तीन तलाक को खत्म करके सरकार ने मुस्लिम वर्ग की महिलाओं को बड़ी राहत दी। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 रद्द करके अलगाववादियों द्वारा देश को विभाजित करने के प्रयासों को भी उसने एक झटके में नाकाम कर दिया। देश की अर्थव्यवस्था को प्रगति-पथ पर आगे बढ़ाना, सभी वर्गों के लोगों को साथ लेकर चलना और उनके हित में काम करना, गरीबों के लिए अपने ही क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं तलाशना, देश में चल रहे आंतरिक विवादों को निष्पक्ष होकर सुलझाना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सफल कूटनीति द्वारा ताकतवर राष्ट्रों के बीच अच्छे संबंध बनाना सरकार के ऐसे कार्य हैं, जो बहुत ही प्रशंसनीय हैं।
अभिषेक सिंह, जौनपुर
दुव्र्यवहार दुखद
महानगरों से लौटने वाले प्रवासियों के साथ कई गांवों में दुव्र्यवहार की खबरें आ रही हैं। ऐसा देखा जा रहा है कि ग्रामीणों के साथ-साथ जन-प्रतिनिधि भी उन्हें गांवों में प्रवेश से रोक रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की जांच के उपरांत, जिन्हें होम क्वारंटीन की सलाह दी गई है, उन्हें भी गांवों से बाहर रहने को कहा जा रहा है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? घर लौटे प्रवासियों के साथ इस तरह की बदसुलूकी क्यों की जा रही है? जागरूकता के अभाव में वे ऐसा कर रहे हैं। सरकारी अधिकारी गण ऐसे ग्रामीणों और जन-प्रतिनिधियों को बताएं कि संदिग्ध मात्र से कोई कोरोना का मरीज नहीं हो जाता, और फिर, कोरोना के कई मरीज तो घर में भी ठीक हो सकते हैं। घर लौटे प्रवासियों के साथ ऐसा रूखा व्यवहार बंद होना चाहिए।
भूपेंद्र सिंह रंगा, हरियाणा
ओपिनियन / शौर्यपथ / सन् 1972 की गरमियों की एक शाम। लू के थपेडे़ अभी नरम पड़े ही थे कि हम कुछ लड़के छात्रावास से निकले और पीछे बैंक रोड पर स्थित फिराक गोरखपुरी के बंगले की तरफ बढ़ चले। उस गरमी में यह हमारा रोज का कार्यक्रम था। उन दिनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गरमियों की छुट्टियों में सभी हॉस्टल खाली करा दिए जाते थे और केवल उन छात्रों को, जिन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं का फॉर्म भरा हो, समर हॉस्टल में रुककर अपनी तैयारी का मौका मिलता था। इस बार समर हॉस्टल गंगा नाथ झा छात्रावास था, जिसके ठीक पीछे फिराक का निवास था। अपने जीवन में ही किंवदंती बन चुके उनका बैठका साहित्य, संस्कृति, भाषा और समाज जैसे विषयों पर खुद को समृद्ध करने का सबसे बड़ा अड्डा था।
फिराक साहब की महफिल अभी सजी नहीं थी और हम छात्र वहां पहुंचने वाले पहले ही थे। उस दिन बात भारतीय गांवों पर छिड़ गई। जाहिर है, इन सत्रों में ज्यादातर बोलते फिराक ही थे और हमारी भूमिका श्रोता की अधिक होती थी, पर उस दिन कुछ ऐसा हुआ कि हम भड़क गए। अपने हाथ का जाम स्टूल पर रखते हुए, उंगलियों में फंसे सिगरेट की राख खास अंदाज में झाड़कर और कंचों-सी आंखें अंदर तक धंसे कोटरों में घुमाते हुए उन्होंने जो कहा, वह किसी बम विस्फोट से कम नहीं था। उनके अनुसार, भारत के गांवों को नष्ट कर देना चाहिए। इनके बने रहने तक देश जहालत, गंदगी और पिछडे़पन से मुक्त नहीं हो सकता। इनकी जगह पचास हजार से एक लाख की आबादी वाले छोटे नगर बसने चाहिए, जिनमें मुख्य गतिविधियां कृषि आधारित उद्योगों के इर्द-गिर्द घूमती हों। हम सभी शहरों में आ तो गए थे, पर हमारी जड़ें गांवों में थीं। हम उन पर टूट पडे़, पर फिराक तो फिराक ही थे।
उन्होंने हमें उन ऐतिहासिक बहसों के बारे में बताया, जो भारतीय गांवों को लेकर चली थीं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण थी महात्मा गांधी की पुस्तक ‘हिंद स्वराज्य’ या ‘ग्राम स्वराज्य’ और गांव को लेकर उनके प्रेम पगे अव्यावहारिक आग्रहों पर डॉ आंबेडकर की तीखी और जमीनी यथार्थ से जुड़ी प्रतिक्रिया। गांधी के लिए गांव स्वर्ग थे और जो कुछ कुरूप तत्कालीन भारतीय समाज में था, वह सिर्फ आधुनिक तकनीक की वजह से था। उनका सपना था कि गांव आत्मनिर्भर हों। वे अपनी जरूरत की सारी चीजें खुद पैदा करें, उनका स्थापत्य व अदालती निजाम भी स्थानीय हो और खेती-किसानी में उन्हीं यंत्रों का प्रयोग हो, जिन्हें गांव के बढ़ई या लोहार बनाते हों। उनके अनुसार, रेलवे को इसलिए बंद कर देना चाहिए, क्योंकि उससे हैजा फैलता है।
अब इस पर बहस करने की जरूरत नहीं है कि यदि गांधी के आदर्श गांव की परिकल्पना मान ली गई होती, तो हमारी खाद्य सुरक्षा का क्या होता, पर हमारे लिए आंबेडकर की प्रतिक्रिया आज भी प्रासंगिक है। गांधी के स्वर्ग को सिरे से खारिज करते हुए आंबेडकर ने भारतीय गांवों को साक्षात नरक बताया। कलेजा चीर देने वाली तड़प के साथ उन्होंने लिखा कि गांधी अगर ‘अछूत’ परिवार में पैदा हुए होते, तब उन्हें इस स्वर्ग की असलियत पता चलती। जिनका गांवों से जीवित संबंध है, वे आज भी महसूस करते हैं कि आंबेडकर के समय का ‘अछूत’, ‘हरिजन’ की यात्रा करते हुए ‘दलित’ जरूर हो गया है, पर गांव अभी भी उसके लिए नरक ही है।
फिराक गोरखपुरी के साथ बिताई वह शाम आज एक खास वजह से याद आ रही है। हमारी समकालीन स्मृति में कोरोना के मारे महानगरों से अपने गांव क्षत-विक्षत लौटते लाखों मजदूरों के विजुअल्स हमेशा के लिए टंक गए हैं। उनकी यातना और पीड़ा पर मैं पहले ही लिख चुका हूं, यहां मकसद उस विमर्श को रेखांकित करना है, जो उत्तर प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी घोषणा से शुरू हुआ है। ज्यादातर लौटने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश के हैं और जिन राज्यों के विकास के लिए उन्होंने अपना खून-पसीना बहाया था, विदाई के समय उनका व्यवहार काफी हद तक अमानवीय था, इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि यूपी सरकार ऐसी स्थिति से दुखी और नाराज होती, पर ऐसे में उसकी योजना को देखना जरूरी होगा।
पहले तो यह समझना होगा कि शहरों की ओर पलायन सिर्फ आर्थिक कारणों से नहीं होता। शहर और बाजार दलितों व पिछड़ों को मनुष्य की पहचान देते हैं। गांवों में अभी भी दक्षिण टोला मौजूद है। आज भी किसी दलित को उसकी जाति के तोडे़-मरोड़े नाम से ही पुकारा जाता है, मां-बाप का दिया नाम तो उसे शहर में आकर याद आता है। दक्षिण टोला से निकलकर वे शहरों में किसी गंदे नाले या रेल लाइन के किनारे झुग्गी-झोपड़ी के नरक में सिर्फ इसलिए नहीं रहते कि वहां उन्हें आर्थिक सुरक्षा मिलती है, बल्कि इससे अधिक उन्हें मनुष्य जैसी पहचान भी मिलती है। कोरोना शुरुआत में तो हवाई जहाजों से उतरा, पर संक्रमण की आदर्श स्थितियों के कारण जल्द ही महानगरों के स्लम उसके प्रसार स्थल बन गए। अनियोजित और अमानवीय शहरी विकास के कारण हमारे नगरों में गगनचुंबी इमारतें, साफ-सुथरी सड़कें और हरे-भरे पार्क हैं, और उनके ठीक बगल में बजबजाते नालों पर किसी तरह से सिर छिपाने भर की जगह वाली कच्ची बस्तियां। आजादी के बाद कभी नहीं हुआ कि मनुष्यों के रहने लायक शहर बसाने के प्रयास किए जाएं। स्लमों को हटाकर वहां साफ-सुथरी रिहाइशें बसाने की कोशिशें नहीं की गईं। इसकी जगह स्लम में बिजली, पानी जैसी सुविधाएं देने की बातें राजनीतिक-आर्थिक रूप से ज्यादा फायदेमंद थीं, इसलिए उसी की बातें होती रहीं।
ऐसे में, किसी सरकार का यह सोचना कि वह चालीस लाख से अधिक श्रमिकों को गांवों में ही रोक लेगी और उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार दे देगी, यह देखने वाली बात होगी। पूरी दुनिया में शहरीकरण बढ़ रहा है और भारत में भी अब लगभग आधी आबादी शहरों में रहती है। भविष्य अंतत: शहरों का ही है। गांव में रोककर इन लाखों लोगों को रोजगार देने की जगह उन्हें फिराक गोरखपुरी की सलाह पर गौर करना चाहिए और गांवों का मोह त्यागकर छोटे-छोटे नगर बसाने की सोचना चाहिए। ये नगर साफ-सुथरे मकानों, सड़कों, सीवर, ड्रेनेज, पेयजल और हरियाली वाले रिहाइशी इलाके होंगे, जो वर्ण-व्यवस्था की गलाजत से मुक्ति दिलाकर उन्हें मानवीय बनाएंगे। इनमें छोटे-छोटे उद्योग-धंधे होने चाहिए, जो रोजगार भी दें व पर्यावरण भी बचाएं। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे पर ही कई मिनी नोएडा बसाए जा सकते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)विभूति नारायण राय, पूर्व आईपीएस अधिकारी
खाना खजाना / शौर्यपथ /1. एप्पल-एग केक
सामग्री :
2 सेब कटे हुए, 1 चम्मच दालचीनी पावडर, 3 अंडे, आधा कप किशमिश, आधा कप शक्कर, आधा चम्मच नमक, 4 मटजो शीट्स, पाव कप वनस्पति तेल।
विधि :
सबसे पहले ओवन को 350 डिग्री फेरनहाइट पर गरम करें और 8 बाय 8 की बेकिंग डिश में तेल लगाकर रख लें। मटजो शीट्स को टुकड़ों में तोड़ लें और पानी में नरम होने तक भिगोकर रखें। बाद में पानी से निकाल लें।
एक बाउल में अंडा, शक्कर, नमक, तेल और दालचीनी को एक साथ फेंट लें। इसमें भिगोया हुआ मटजो डालकर अच्छी तरह मिला लें। अब इसमें सेब और इलायची डालें। अब इस मिश्रण को तैयार बेकिंग डिश में डालें और 45 मिनट तक बेक करें। एप्पल एग केक तैयार है।
2 . एग-लेमन केक
सामग्री :
2 नींबू का रस, 4 अंडे, तीन पाव मैदा, 2 चम्मच बेकिंग पावडर, 1 चम्मच नमक, 1 कप मक्खन, 3 चम्मच आइसिंग शुगर, 1 कप शक्कर।
विधि :
सबसे पहले आइसिंग शुगर को मक्खन में अच्छी तरह मिला लें। अब इसमें मैदा, बेकिंग पावडर, नमक और अंडे को फोड़कर मिलाएं। अब इसे ओवन में 50 मिनट तक 400 डिग्री फेरनहाइट पर बेक करें। शक्कर और नींबू को उबाल लें। केक को ओवन से निकालने के बाद उस पर उबला हुआ नींबू का रस डाल दें और ठंडा करके परोसें।
3. डिलीशियस ओट्स केक
सामग्री :
1 प्याला ओट्स, 1 प्याला मैदा, 1 बड़ा चम्मच क्रीम, पाव प्याला ब्राउन शुगर, 1 गिलास दही की छाछ, आधा प्याला मक्खन पिघला हुआ, 1 छोटा चम्मच बेकिंग पावडर।
विधि :
सर्वप्रथम ओट्स को एक घंटा छाछ में भिगो दें। अब उपरोक्त सारी सामग्री को अच्छी तरह फेंटकर भिगोए हुए ओट्स में मिला दें।
फिर चिकनाई वाली मफिंग ट्रे में सारी सामग्री डाल दें और ओवन को 180 डिग्री सेंटीग्रेड पर गरम करके ट्रे उसमें रख दें। अब 15 मिनट बेक कर ओट्स केक पेश करें।
4. फेस्टिव कोको केक
सामग्री :
मिल्क मेड 1 टिन, मैदा 250 ग्राम, मक्खन 100 ग्राम, कोको पावडर 3 चम्मच, सिरका 1 बड़ा चम्मच, सोड़ा 1 चम्मच, क्रीम 1 कप, चेरी 1 कप, मेवे (कटे हुए) 1 कप।
विधि :
सबसे पहले मिल्क मेड को चम्मच से फेंटकर झागदार कर लें, फिर मक्खन मिलाकर दो मिनट और फेंटें। धीरे-धीरे मैदा डालें और मिलाते हुए सारे मिश्रण को एकसार कर दें। सोड़ा और सिरका डालकर मिला दें।
कोको मिला दें और ओवन में बेक कर लें। अब क्रीम को खूब फेंटकर केक के ऊपर तह जमा दें। चेरी और मेवे से सजाकर सर्व करें।
5. ऑमण्ड पैशन केक
सामग्री :
100 ग्राम (कटे हुए) बादाम, 275 ग्राम मैदा, 275 ग्राम शक्कर, मक्खन (पिघला हुआ) 125 ग्राम, पानी 35 मिली., बैंकिंग पावडर 1 चम्मच, बैकिंग सोडा 1/4 चम्मच, क्रीम 1 बड़ा चम्मच।
विधि :
पहले शक्कर व पानी को एक सॉस पैन में डालें। धीमी आंच पर चढ़ाएं और तीन तार की चाशनी बना लें। चाशनी में मक्खन डालें व अच्छी तरह मिला दें।
मैदा, बैकिंग पावडर व सोड़े को छान कर चाशनी में मिलाकर एकसार कर दें। क्रीम भी फेंट कर मिला दें। अब बादाम डालकर घी चुपड़ें, केक टिन में डाल दें और 180 सेंटीग्रेड पर 30 मिनट बेक कर लें। ठंडा होने पर ऑमण्ड पैशन केक क्रीम से सजा कर सर्व करें।
6. लाजवाब स्पंजी केक
सामग्री :
125 ग्राम मैदा, 75 ग्राम बटर, 200 ग्राम मिल्क मेड (आधा टीन), 100 मिली सोटा वाटर/ कोल्ड ड्रिंक, आधा टी स्पून मीठा सोडा, आधा टी स्पून बेकिंग पावडर, एक टी स्पून एसेंस।
विधि :
सबसे पहले माइक्रो को कन्वेक्शन मोड (180 डिग्री से.) पर 4 मिनट तक गर्म करें। अब मैदा, बेकिंग पावडर व सोडा छान लें। मक्खन और मिल्क मेड 4 से 5 मिनट तक फेटें। धीरे-धीरे सूखी सामग्री मिलाएं और सोडा की सहायता से घोल तैयार करें।
अब एसेंस डालें। मोल्ड (ग्लास या एल्यूमिनियम का बर्तन) के भीतर तेल लगाएं और डस्ट करें। घोल डालें। मोल्ड को लोवर रेक पर रखें और 180 डिग्री पर 25 से 30 मिनट तक बेक करें। ठंडा होने पर बाहर निकालें।
7. कोको केक
सामग्री :
250 ग्राम मैदा, 100 ग्राम ब्राउन शुगर, 120 ग्राम मारगीन, 1 टी स्पून कोको पावडर, 1/2 टी-स्पून मीठा सोडा, 1/2 टी-स्पून सिरका, 1/4 टी-स्पून जायफल पावडर, 2 कप दूध, नींबू का छिलका किसा हुआ, 1 नींबू का रस।
ब्राउन शुगर ऐसे बनाएं :
100 ग्राम शक्कर में 1/2 टेबल-स्पून जली शक्कर का रंग मिला दें।
विधि :
सबसे पहले शक्कर व मारगीन हल्का होने तक फेटें। तत्पश्चात मैदे में बेकिंग पावडर, जायफल पावडर, कोको पावडर मिलाकर छानें। अब इस छने हुए मैदे को मारगीन में हल्के हाथ से मिलाएं। इसमें दूध व मैदा डालकर मिलाते जाएं।
अब इसमें सिरका नींबू का रस, वनीला एसेंस मिलाकर 45 मिनट तक मध्यम से कम आंच पर व 15 मिनट तक एकदम कम आंच पर बेक करें। इलेक्ट्रिक ओवन में भी करीबन 50 से 55 मिनट तक बेक करें। तैयार कोको केक से फेस्टिवल का आनंद लें।
8. फ्रूट आइसक्रीम केक
सामग्री :
1 स्पंज केक (1 पाउंड का), 1/2 पैकेट लाल जैली, 1 फैमिली पैक वेनिला आइसक्रीम, 3/4 कप ताजा गाढ़ा दही, 5 बड़ा चम्मच पिसी चीनी, 1 छोटा डिब्बा अनारस के स्लाइस, 100 ग्राम क्रीम, 1 पैकेट जिलेटिन।
विधि :
केक को बीच से काटकर दो भागों में कर लें। अनारस के महीन टुकड़े कर लें। इसके रस को फेंके नहीं। केक के 1 भाग को रस से गीला कर लें। 3/4 कप रस में जिलेटिन मिलाकर धीमी आंच पर गलने तक पका लें।
1 1/2 कप उबलते पानी में जेली गलाकर उतार लें। ठंडा कर इसे केक के माप के जितने बड़े डिब्बे में जमने के लिए रख दें। आइसक्रीम गला लें। इसमें अनारस के टुकड़े, दही, 2 बड़ा चम्मच चीनी व पिघली जिलेटिन अच्छी तरह मिला लें।
इस घोल के बर्तन को गर्म पानी के बड़े बर्तन में रख गाढ़ा होने तक चम्मच से चलाएं । इस घोल को जेली के ऊपर डाल दें। फिर इसे फ्रिज में जमने रख दें। जब यह जम जाए तब गीला किया हुआ केक का 1 हिस्सा इसके ऊपर रख दें।
परोसने के पहले जेली के बर्तन को गर्म पानी में 2-4 मिनट रख दें। इससे आसानी से निकल आएगी। परोसने की प्लेट पर इसे उलटाकर दें। क्रीम में 3 बड़ा चम्मच चीनी मिला गाढ़ा होने तक फेंटें। इसे केक के चारों ओर लगा दें। इच्छा हो तो चेरी से सजाकर परोसें।
9. स्पेशल रोज केक
सामग्री :
2 कप मैदा, आधा कप मक्खन, एक चम्मच मलाई, एक कप पिसी चीनी, एक कप दही, एक चम्मच बेकिंग पावडर, आधा चम्मच मीठा सोडा, एक चम्मच स्ट्रॉबेरी एसेंस, 500 ग्राम ताजा क्रीम, डेढ़ कप आइसिंग शुगर, हरा, पीला और गुलाबी खाने का मीठा रंग कुछ बूँदे, सजावट के लिए एक चम्मच कटे बादाम- पिस्ता, एक कप बारीक कटे अखरोट, गुलाब जल।
विधि :
सबसे पहले मैदा, सोड़ा और बेकिंग पावडर छान लें। मलाई, मक्खन और चीनी को एक किनारी वाली थाली में इतना फेंटें कि वह एकदम हल्की क्रीम बन जाए। इसमें मैदा, दही और एसेंस मिलाकर मिश्रण को एकसार कर लें।
अब केक टीन में चिकनाई लगाकर थोड़ा-सा सूखा मैदा बुरक दें और फेंटे हुए मिश्रण को पॉट में डाल दें। ओवन को पहले से अच्छा गरम कर लें। केक टीन को रखकर करीब चालीस मिनट तक बेक करें। अब सलाई डालकर देखें यदि उस पर मिश्रण नहीं चिपक रहा है तो केक तैयार है। क्रीम में आइसिंग शुगर मिलाएं। इसे गाढ़ा और मुलायम होने तक फेंटें। रोज एसेंस मिलाएं। केक की ऊपरी सतह को किनारों को छोड़ते हुए बीच से गोलाई में काट कर निकाल दें। तैयार क्रीम के दो हिस्से कर लें। एक हिस्से को केक के बीच के हिस्से में फैला दें। किनारों पर भी अंदर की तरफ अच्छी तरह लगाएं।
दूसरे हिस्से में तीन भाग करके अलग-अलग कलर मिला दें। कोन में भरकर केक पर रंगीन गुलाब और हरी पत्तियां बना दें। हर फूल के बीच में बादाम, पिस्ता, अखरोट को चिपकाते हुए सुंदर डिजाइन बना दें। तैयार स्पेशल रोज केक अपनों को खिलाएं।
10. सोया वेनीला केक
सामग्री :
सोयाबीन (भीगे हुए) 1 कप, मैदा 1 कप, मक्खन या घी 2 कप, कैस्टर शुगर 2 कप, बेकिंग पावडर 1 चुटकी, काजू, बादाम, किशमिश 1 कप, वेनीला एसेंस।
विधि :
सबसे पहले सोयाबीन को चिकना पीसें। अब घी और शक्कर को फेंटें। इसमें सोया पेस्ट मिलाकर फेंटते हुए हल्का करें। वेनीला एसेंस, कटा सूखा मेवा और मैदा डालकर मिलाएं।
अब केक प्लेट में चिकनाई लगाकर हल्का-सा मैदा बुरकें। इसमें फेंटी हुई सामग्री डालें। पहले से गर्म किए ओवन में 180 डिग्री पर बेक करें। काजू से सजाकर मनचाहे आकार में काटें और इस खास पर्व पर पेश करें।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / लॉक डाउन के दौरान सोशल मीडिया पर ही पूरा घर-बंद देश उमड़ पड़ा... क्योंकि बाकि बचे हुए तो जीने मरने, अपने देश-गांव की मिटटी में लौटने की, जान की परवाह किए बिना, भूखे-प्यासे
अपने परिवारों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। देश इन्हीं दो वर्गों में बंट गया। साथ ही एक वो हिस्सा जो संक्रमित हो चुका है कोरोना से, उसकी अपनी एक अलग दुनिया है।
आज सर्वशक्तिमान कौन है? जो बनाता है, बिगाड़ता है, जोड़ता है, तोड़ता है, मिलाता है, बिछुड़ाता है, दोस्त और दुश्मन भी बना देता है। आपकी जिंदगी में कई मनमानियां भी ये पूरी करता है। अलादीन का चिराग है। सारे सपने घर बैठे ही पूरे कर सकता है। और तो और सरकारें बना देता है, सरकारें गिरा देता है।ये वो बला है जो न कराए वो थोड़ा है।रातों रात स्टार बना दे, क्षण भर
में मुंह काला करा दे। नाम बना दे-बदनाम कर दे...अब भी याद आया कि नहीं????
अरे भाई वही सरल सा तो जवाब है- सोशल मीडिया।
कोरोना ग्रासितों की दुनिया भी इससे आबाद है, उनका भी यही सोशल मीडिया सहारा बना हुआ है। यदि उनके पास इसकी सुविधा है तो।
अनहोनी को होनी कर दे, होनी को अनहोनी ऐसी शक्ति से संपन्न, दिल की गिरह खोल दो, चुप न बैठो मतलब
पूरी भड़ास निकालने का साधन, ये सोशल मीडिया का जादू है मितवा जिसमें अपने प्यारे हबी, शोना, बाबू, बेबी,
से, जो दिल ना कह सका वो भी इसी पर ढेर सारे किस्सी/पप्पी, दिलों के और भी उपलब्ध इमोजिस के साथ इठलाते
बलखाते फोटो, विडिओ, रोमांटिक गानों के साथ दिली तमन्ना पूरी करने का श्रेष्ठ माध्यम बना हुआ है ये आपकी मुट्ठी में भींचा हुआ यंत्र। तो बस अब खाली, चौबीसों घंटे घर में बैठा इंसान क्या करे ?
अब रोज परिवार कोरोना उत्सव मनाने लगे। पकवान/ व्यंजन बनने लगे। उनकी बाकायदा थाली/प्लेटें सजाई जातीं और पोस्ट की जातीं। महिलाएं सुंदर-सुंदर कपड़े पहनतीं तैयार होतीं, साड़ी चेलेंज निभातीं। त्यौहारों पर, जन्मदिन-शादी की सालगिरह पर घरों में ही कार्यक्रम/पार्टियां होतीं। जो उपलब्ध होता उसी में आनंद लेते और आज भी ले ही रहे हैं।
अब इन सभी गतिविधियों ने आनंद तो दिया पर इसका
फिर एक वर्ग ने घोर विरोध किया।। इनका कहना था कि देश ऐसी आपदा से घिरा हुआ है, लोग भूखे मर रहे, हैं और इन्हें ऐसी भरी हुई व्यंजनों की थाली पोस्ट करते लज्जा नहीं आ रही … और भर्त्सना कर-कर के ऊधम मचा दी। एक गुट तैयार हुआ शुरू हुई टांग खिंचाई।
देश गया...राष्ट्र-भक्ति गई बस उसने पोस्ट डाली का युद्ध बिगुल बज गया। कमेन्ट बॉक्स भर गए, लाइक और इमोजी की बाढ़ आ गई। कोसने-दुलराने का, पक्ष-विपक्ष, कटाक्ष-व्यंग का घमासान हो चला। आह-वाह और कराह हो गई भाई।।।
अब कुछ ने दूर दराज लोगों बसे अपने परिजनों में गीत-गजल, नृत्य-मनोरंजन और भी कुछ खेलों के ताजातरीन तरीके आजमाए। अपनी उपलब्धियां, सृजन-कार्य, सेवा- सहयोग कार्य सभी का विवरण फिर से उसमें पोस्ट किया। पुनः दो वर्गों में सोशलिये बंटे और फिर से कुश्ती शुरू। ज्ञान-गंगा बहना शुरू।
ऐसे समय ये शोभा देता है ? विपत्ति काल है। जरा तो शर्म करें। यहां हम पुरुषों का मुद्दा छोड़ देते हैं।
केवल महिलाओं की बात करते हैं। इन हरकतों ने कईयों के बीच झगडे करवा दिए, दूसरों की वाल पर जा कर रोईं। एक दूसरे की बुराई की, भरपूर कोसा, उसको नीच, खुद को महान बताया। स्क्रीन शॉट ब्रह्मास्त्र की तरह चले। रिश्ते बिगड़े, इज्जत उतरी, पंगे हुए। इन सबमें केवल और केवल आपकी छवि बिगड़ी,
बिना कारण तनाव हुआ, समय बिगड़ा, संबंध खराब हुए सो अलग।
सबसे पहले यह समझिए की ये एक छद्म दुनिया है। इससे कोई पुरस्कार नहीं मिलने वाला। पर आश्चर्य यह है कि यही विरोधी गुट खुद की किसी भी आत्मप्रशंसा का कोई मौका नहीं छोड़ रहा। खुद मियां मिट्ठू बने कोई बात नहीं, पर किसी दूसरे ने यदि कर दिया तो वो देश-द्रोही हो गया।
इस माया नगरी का यही जाल है। जो इसमें उलझता है उसे ये नगरी अपनी मिल्कियत लगने लगती है। यहां की दुनिया ने कई रिश्ते बना दिए, कई उजाड़ दिए। जानिए तो इसकी शुरुवात हुई कैसे ?
कहा जाता है सृष्टि का सारा ज्ञान शिव पार्वती के संवादों की वजह से उत्पन्न व प्रसारित हुआ है। अधिकांश ग्रंथों
में इस बात का उल्लेख भी इस श्लोक में मिलता है कि ‘ कैलाश शिखरे रम्ये गौरी प्रच्छति शंकरम्।’- गौरी प्रश्न पूछती हैं और महादेव उसका जवाब देते हैं। केवल उन दोनों के बीच हुआ संवाद उस समय के मीडिया अर्थात शिव के गणों के माध्यम से या सिद्ध ऋषियों की दिव्य दृष्टियों के माध्यम से संसार में
फैलता है। तत्पश्चात प्राचीन काल में ऋषियों व गुरुकुलों के आचार्यों की स्मृति शक्ति ही सोशल मीडिया के रूप में काम करती थी।
हजारों ग्रन्थ और उनके करोड़ों श्लोक ऋषियों ने गुरुकुलों में बैठ कर अपनी स्मृति से ही बोल बोल कर शिष्यों को याद करवाए। कहा जाता है की सर्व प्रथम रामायण महादेव ने लिखी थी जिसमें सौ करोड़ श्लोक थे। राम रक्षा स्त्रोत में ‘चरितं रघुनाथस्य शत कोटि प्रविस्तरं’ के रूप में इसका उल्लेख मिलता है। स्वाभाविक है इतने बड़े बड़े ग्रन्थ जब स्मृति से अगली पीढ़ी तक पहुंचते होंगे तो उसमें कुछ बातें घट या बढ़ जाया करतीं होंगी। कहा जाता है कि महाभारत का मूल नाम “जय” था और इसमें आठ हजार श्लोक थे। जो अब बढ़ते बढ़ते एक लाख हो गए।
इसी प्रकार वाल्मिकी रामायण के बारे में भी कुछ विद्वान् मानते हैं की वाल्मिकी ने श्री राम के राज तिलक के बाद का वर्णन नहीं किया है। जो वर्णन मिलता है वह किसी अन्य के द्वारा जोड़ा गया है।अर्थात उस समय भी सोशल मीडिया या कथाओं के मध्य से मूल प्रसंग, लेखकों के नाम में परिवर्तन कर दिए जाते थे। मजे की बात यह है कि इस प्रकार की गड़बड़ियों की जानकारी उस समय के विद्वानों को भी थी।
इसीलिए देव पूजन के बाद क्षमा
प्रार्थना में आज भी कहा जाता है कि “ हे प्रभु यदि अज्ञान या विस्मृति या भ्रान्ति के कारण मैंने कुछ कम या अधिक कहा हो या कोई अक्षर मात्रा या स्वर अशुद्ध हो गया हो तो उसे क्षमा करो। अर्थात उस समय सूचना का उद्गम सदैव शुद्ध और प्रामाणिक माना
जाता था। पर बाद में विकृति की संभावनाओं को स्वीकार कर लिया गया था। उस समय संस्कृति में विकृति का भय था। आज विकृति को और विकृत कर के हम संस्कृति सुधारने का प्रयास कर रहे हैं।
सूचना देते समय पासवर्ड या कोडवर्ड पहले भी चलते थे। जब अशोक वाटिका में माता जानकी को पवन पुत्र पर विश्वास नहीं हो रहा था तो उन्होंने ‘राम दूत मैं मात जानकी ,सत्य शपथ करुणा निधान की’ इस वाक्य का प्रयोग किया था।इसमें करुणा निधान शब्द पूरी राम चरित मानस में बहुत सीमित स्थानों पर आया है। और वे स्थान केवल राम और सीता के नितांत व्यक्तिगत संवादों के समय के हैं। अर्थात् उस समय करुणा निधान शब्द पासवर्ड के रूप में प्रयोग किया गया था।
अब यही सब यहां भी है।
सत्यता की परख और गलती की माफ़ी। पर हमारे बीच यही गायब हो चूका है। महिलाओं पर इसका गहरा असर हुआ है। ऐसा ही एक और पसंद किया जाने वाला सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म है वाट्स अप। व्यक्तिगत और समूहों में चलाये जाने वाला। इसमें भी खूब विवाद, कहा सुनी, तानाकशी चलती है। परिवार के ग्रुप तक में सदस्यों के ग्रुप बन जाते हैं।
शुभकामनाएं, बधाई तक के शब्दों का हिसाब-किताब होता है। किसी की प्रसिद्धि नागवार गुजरी तो मौन धर लो, किसी पर आशीर्वादों और तारीफों की बाढ़ ला दो। इनमे भी कुछ खास लोग सक्रिय
होते हैं। खुद तो दूसरों की तारीफ़ करते नहीं खुद के लिए पलकें बिछाए बैठते हैं और इज्जत का प्रश्न बना लेते हैं। यही हाल उनका फेसबुक पर भी होता है। परिचित व परिवार जन बहिष्कार करते हैं, ये उनकी जलन निकालने का सर्वोत्तम मार्ग होता है। इसलिए आप बाकी से भी उम्मीद न रखें।
असल में इस सोशल मीडिया से आप केवल जरुरी जानकारी लेने-देने जितना संबंध रखें। इसका अर्थ ही सामाजिकता से जुड़ाव
है न कि व्यक्तिगत। जैसे हाईटेंशन इलेक्ट्रिक लाईन घर के आगे से जा रही है तो क्या उसको आप पकड़ के देखेंगे कि करंट है या
नहीं ? या बिजली से बचने के लिए एहतियात बरतेंगे ? इसमें एक अर्थिंग लाईन भी बाकी सावधानी
के साथ देनी होती है।
राजनैतिक पोस्ट से बचने में ही भलाई होती है। इसकी कुर्सी के पाये साम, दाम, दण्ड, भेद होते हैं। हम “पबलिक{पब्लिक}” है जो कई बार कुछ नहीं जानती।
तो मित्रों इन
सब मूर्खताओं से पीछा छुडाओ। सोशल मीडिया की ये टुच्ची हरकतें वास्तविक आनंद और असल मित्रों से आपको दूर करतीं हैं। अव्वल तो जो आपके साथ जीवित, साक्षात, परिजन हैं उनके साथ सुख भोगें। किसने आपको इन पर विश किया, लाईक किया, कमेन्ट किया छोड़ें। इनके चक्कर में आप उन्हें भी खो रहे हैं जो आपके अपने हैं, आपके प्यार को, आपको
प्यार करने को तरस रहे हैं और आपकी ऊंगलियां इस निर्जीव मशीन को सहला रही है। इसी मशीन में छोटों ने जान दे रखी है…। और बड़ों की जान ले रखी है।आप समझें ये केवल रिश्तों को बनाने का साधन है साधक नहीं। इसके केवल फायदों के लिए इस्तेमाल में ही समझदारी है। वर्ना घर-समाज की बर्बादी है… केवल बर्बादी....
सेहत / शौर्यपथ आपको सालों से सिर के नीचे तकिया लगाकर सोने की आदत है, और अगर आप सोचते हैं कि बगैर तकिये के सोने से गर्दन में दर्द हो सकता है, तो आप गलत हैं। बल्कि बगैर तकिये किे सोने से आपको कई तरह के शारीरिक और मानसिक लाभ हो सकते हैं। यदि आप अब तक अनजान हैं, तो जानिए बगैर तकिये के सोने से होते हैं कौन से 5 फायदे -
1 यदि आप अक्सर पीठ, कमर या आसपास की मांसपेशियों में दर्द महसूस करते हैं, तो बगैर तकिये के सोना शुरू कीजिए। दरअसल यह समस्या रीढ़ की हड्डी के कारण होती है, जिसका प्रमुख कारण आपका सोने का तरीका है। बगैर तकिये के सोने पर रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहेगी और आपकी यह समस्या कम हो जाएगी।
2 सामान्य तौर पर गर्दन और गंधों के अलावा पिछले हिस्से में दर्द आपके तकिये के कारण होता है। बगैर तकिये के सोने पर इन अंगों में रक्त संचार बेहतर होगा और आप दर्द से निजात पा सकेंगे।
3 कई बार गलत तकिये का इस्तेमाल आपको मानसिक समस्या भी दे सकता है। यदि तकिया कड़क है तो यह आपके मस्तिष्क पर बेवजह दबाव बना सकता है जिससे मानसिक विकार की संभावना बढ़ जाती है।
4 विशेषज्ञों का मानना है कि बगैर तकिये के सोना आपको निर्बाध रूप से अच्छी नींद लेने में मदद करता है, और आप बेहतर गुणवत्ता के साथ आरामदायक नींद ले पाते हैं, जिसका असर आपके मूड और स्वास्थ्य पर पड़ता है।
5 यदि आप नींद में अपना चेहरे तकिये की तरफ मोड़कर या तकिये में मुंह डालकर सोते हैं तो यह आदत आपके चेहरे पर झुर्रियां पैदा कर सकती है। इसके अलावा यह तरीका आपके चेहरे पर घंटों तक दबाव बनाए रखता है जिससे रक्त संचार प्रभावित होता है, और चेहरे की समस्याएं उभरती हैं।
धर्म संसार / शौर्यपथ / गंगा दशहरा पर्व सनातन संस्कृति का एक पवित्र त्योहार है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था।
गंगा दशहरा के दिन पवित्र नदी गंगा में स्नान करने से मनुष्य अपने पापों से मुक्त हो जाता है। स्नान के साथ-साथ इस दिन दान-पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं इस साल कब है गंगा दशहरा पर्व और हिन्दू धर्म में क्या है इस खास पर्व का महत्व।
कब है गंगा दशहरा?
हिन्दू पंचांग के अनुसार, गंगा दशहरा पर्व प्रति वर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 1 जून 2020, सोमवार को है। इसलिए गंगा दशहरा इस साल 1 जून को मनाया जाएगा।
गंगा दशहरा मुहूर्त
दशमी तिथि आरंभ: 31 मई 2020 को शाम 05:36 बजे से
दशमी तिथि समापन: 1 जून 2020 को दोपहर 02:57 बजे तक
मां गंगा का शुभ मंत्र
नमो भगवते दशपापहराये गंगाये नारायण्ये रेवत्ये शिवाये दक्षाये अमृताये विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो नम:
अर्थ - हे भगवती, दसपाप हरने वाली गंगा, नारायणी, रेवती, शिव, दक्षा, अमृता, विश्वरूपिणी, नंदनी को को मेरा नमन।
गंगा दशहरा का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, गंगा मां की आराधना करने से व्यक्ति को दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल, कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है। गंगा दशहरा के दिन भक्तों को मां गंगा की पूजा-अर्चना के साथ दान-पुण्य भी करना चाहिए। गंगा दशहरा के दिन सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है।
मां गंगा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, मां गंगा को स्वर्गलोक से धरती पर राजा भागीरथ लेकर आए थे। इसके लिए उन्होंने कठोर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा ने भागीरथ की प्रार्थना स्वीकार की थी। लेकिन गंगा मैया ने भागीरथ से कहा था कि पृथ्वी पर अवतरण के समय उनके वेग को रोकने वाला कोई चाहिए अन्यथा वे धरती को चीरकर रसातल में चली जाएंगी और ऐसे में पृथ्वीवासी अपने पाप से मुक्त नहीं हो पाएंगे। तब भागीरथ ने मां गंगा की बात सुनकर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर प्रभु शिव ने गंगा मां को अपनी जटाओं में धारण किया।
धर्म संसार / शौर्यपथ / श्रीकृष्ण कहते हैं कि हम कलियुग में एक ऐसा अवतार लेंगे जिसमें शरीर तो कृष्ण का ही होगा परंतु हृदय राधा का होगा। यह सुनकर राधा कहती हैं कि अहा कितना आनंद आएगा जब राधा की भांति दरदर होकर केवल कृष्ण-कृष्ण पुकारते फिरोगे। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं हां, वही करूंगा। वही करूंगा। चैतन्य के रूप में नवद्वीप से लेकर वृंदावन तक कृष्ण कृष्ण पुकारता जाऊंगा।
इसके बाद चैतन्य महाप्रभु को अपने दो साथियों के साथ हरि कीर्तन करते हुए बताया जाता है। फिर से श्रीकृष्ण राधा से कहते हैं कृष्ण कृष्ण पुकारता जाऊंगा। ताकि तुम्हारी तरह कृष्ण प्रेम में तड़प कर देख सकूं। यह सुनकर राधा कहती हैं कि यदि उस तड़प का पूरा आनंद लेना है तो एक काम करिए। तब कृष्ण पूछते हैं, क्या? फिर राधा कहती हैं मुझे मुरली बजाना सिखा दीजिए। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं क्या करोगी? तब राधा कहती हैं कि जब आप विरह व्यथा से पीड़ीत होंगे तो आपकी तरह वृंदावन में चैन से बैठकर मुरली बजाऊंगी। जिसकी ध्वनि सुनकर आप भी मेरी तरह बैचेन हो जाएंगे।
फिर उधर, गोकुल के यमुना किनारे श्रीकृष्ण और राधा को पुन: बताया जाता है। राधा कहती हैं मुझे भी मुरली बजाना सिखाओ। तब कृष्ण कहते हैं कि मुरली नहीं है। यह सुनकर श्रीकृष्ण के हाथ से मुरली लेकर राधा कहती हैं फिर ये क्या है? इस पर कृष्ण कहते हैं ये तुम्हारे काम की नहीं, तुम्हे तो ऐसी मुरली चाहिए जो केवल कृष्ण को जगाए। कृष्ण की मुरली बजेगी तो सारे ब्रह्मांड को जगा देगी। फिर एक तुम ही नहीं और न जाने प्रेम की कितनी ही आत्माएं इस मुरली के स्वरों में बंधकर खिंची चली आएंगी। अगर ऐसा हुआ तो तुम क्या करोगी? फिर उन सबको संभालना तुम्हारे बस में नहीं होगा।
यह सुनकर राधा उठकर खड़ी हो जाती है और कहती हैं ये तुम्हारा अहंकार है कान्हा। राधा जैसा प्रेम तुमसे और कौन करेगा? जो इस प्रकार मतवाली होकर लोकलाज, रिश्ते-नाते सब छोड़-छाड़कर तुम्हारे पीछे फिरेंगी। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि अब अहंकार तुम कर रही हो राधे। याद रखो अहंकार प्रेम का शत्रु होता है।
तब राधा कहती हैं कि जिसे तुम अहंकार कह रहे हो वह प्रेम का अधिकार है और जो सबसे अधिक प्रेम करेगी वह अवश्य अपना अधिकार मांग सकती हैं। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि प्रेम में मांगना नहीं देना होता है राधे। तब राधा कहती हैं कि ये सब दार्शनिक बातें रहने दो। तुम्हें अभिमान हैं ना अपनी दूसरी प्रियतमाओं पर तो बजाओ अपनी मुरली और बुला लो उन सबको। आज हो जाए सबके प्रेम की परीक्षा।
ऐसा कहकर राधा श्रीकृष्ण के आसपास एक गोला बना देती हैं और कहती हैं कि इस वृत्त के अंदर वही पैर धर सकेंगी जो तुमसे मेरी तरह प्रेम करती हों अन्यथा यहीं भस्म हो जाएगी। तब श्रीकृष्ण राधा की ओर गौर से देखते हैं तो राधा कहती हैं कि देखते क्या हो बजाओ मुरली और बुला लो उन सबको। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि फिर सोच लो। राधा कहती हैं सोच लिया।
यह सुनकर श्रीकृष्ण अपने अधरों कर मुरली को रखकर आंखें बंद कर ऐसी मुरली बजाते हैं कि राधा कि सभी सखियां बेसुध होकर अपना स्थलू शरीर छोड़ कान्हा के पास यमुना पर पहुंच जाती हैं। यह देखकर राधा आश्चर्य से देखती हैं कि ये सखियां तो यहां आ रही हैं। वे सभी आकर उस वृत्त (गोले) के आसपास एकत्रित होकर कान्हा की मुरली सुनती रहती हैं।
राधा यह देखकर गोले के आसपास अपनी शक्ति से आग उत्पन्न कर देती हैं, लेकिन वह सभी सखियां आग को पार करके कान्हा के और नजदीक पहुंच जाती हैं। यह देखकर राधा की आंखों से आंसू झरने लगते हैं। कुछ क्षण में आग लुप्त हो जाती है। राधा कृष्ण के चरणों में हाथ जोड़कर बैठ जाती हैं और कहती हैं मुझे क्षमा कर दो कान्हा। मैंने भूल से तुम पर केवल अपना ही अधिकार समझा था। आज मेरे अहंकार टूट गया। राधा हार गई।
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि इन्हें ध्यान से देखो। ये ललीता, विशाखा, उत्तरा सभी मानती हैं कि ये तुमसे अधिक प्रेम करती हैं। ये सब मुझे अपना पति मानती हैं, लेकिन ये सभी वास्तव में तुम ही हो राधा। प्रभु अपनी माया से राधा को दिखाते हैं कि ये सभी सखियां तुम ही हो। प्रभु कहते हैं कि राधा और श्रीकृष्ण के सिवाय इस संसार में कुछ नहीं। तब राधा कहती हैं कि एक चीज है और वो है प्रेम। राधा और कृष्ण का प्रेम। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं आज हम तुमसे फिर हार गए राधा।
इसके बाद दोनों एक अंधे व्यक्ति के भजन सुने में डूब जाते हैं।
दूसरी ओर अक्रूरजी से गर्ग ऋषि हंसते हुए कहते हैं कि अच्छा देवी देवकी ने ऐसा कहा कि उसका छोटा अनपढ़ ही अच्छा। वो गय्या चराएगा और मुरली ही बजाएगा। यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं जी गुरुदेव ऐसा ही कहा उन्होंने। तब गर्ग मुनि कहते हैं कि वाह वाह वाह, कैसी गूढ़ बात कहती उन्होंने। आप इसका अर्थ समझे?
यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं कि दोनों राजकुमारों को अपने वंश और अपने देश को ध्यान में रखकर वही काम करने चाहिए जिससे राजकुमारों का उत्तरदायित्व पूरा हो। यह सुनकर गर्ग मुनि कहते हैं कि श्रीकृष्ण केवल राजकुमार ही नहीं। कुछ और भी हैं। आप उनके उत्तरदायित्व को समझ सकते हैं? अक्रूरजी जो विद्या और जो ज्ञान आप उन्हें सिखाना चाहते हैं वह सब उनकी मुरली की धुन में छुपा हुआ है।
लेकिन अक्रूरजी यह बात नहीं मानते और कहते हैं कि उनका धर्म ये आज्ञा नहीं देता है कि वो एक काल्पनिक विश्वास का सहारा लेकर इस प्रकार अकर्मण्य होकर केवल हाथ पर हाथ धरे अच्छा समय आने की प्रतीक्षा करते रहें। तब गर्ग मुनि कहते हैं कि आपकी बात भी सही है। आप जैसा कर्मयोगी केवल मनुष्य की शक्ति पर ही विश्वास रखकर अपना कर्म निर्धारित करता है। परंतु हम जैसे भक्त केवल उसकी शक्ति पर भरोसा रखकर ही कर्म करते हैं जो मनुष्य को भी शक्ति देता है।
फिर अक्रूरजी कहते हैं कि गुरुदेव मैं समझता हूं कि दोनों राजकुमार अब किशोरावस्था में हैं। अब उन्हें कंस से टक्कर लेने के लिए अपनी पूरी तैयारी शुरु कर देना चाहिए। इसलिए मैं आपकी सेवा में आया हूं कि आप ही वसुदेवजी को आदेश दे सकते हैं कि अब राजकुमारों का समय यूं गय्या चराने में बर्बाद न किया जाए। यह सुनकर गर्ग मुनि कहते हैं कि उनका समय बर्बाद नहीं हो रहा अक्रूरजी। ये समय तो उनकी प्रेम लीला का है। मानव को ये सिखना है कि प्रेम के बिना मानव का जीवन अधूरा है। गर्ग मुनि कहते हैं कि श्रीकृष्ण पूर्णावतार हैं वे समय आने पर राजनीति भी सिखाएंगे और युद्ध भी करेंगे। निर्माण और संहार करना भी सिखाएंगे।
अक्रूरजी को गर्ग मुनि की बात समझ में नहीं आती है। वे कहते हैं कि जरासंध, बाणासुर और कंस जैसे लोग मिलकर इस धरती को नरक बना दें उससे पहले उनकी शक्तियों का अंत कर देना चाहिए। तब गर्ग मुनि कहते हैं कि उसका समय तो आने दीजिए? यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं कि वह समय कब आएगा? गर्ग मुनि कहते हैं कि बस आने ही वाला है लेकिन अभी तो प्रभु की प्रेम लीला जारी है। विनाश की लीला आरंभ करने से पहले वे मनुष्य को यह संदेश देना चाहते हैं कि अंतत: प्रेम ही सृष्टि का आधार है और वहीं जगत का सार है।
फिर से उस अंधे को कीर्तन करते हुए बताया जाता है। कीर्तन सुनकर गर्ग मुनि कहते हैं कि आह कवि की परिकल्पना में उस परम सत्य की कैसी व्याख्या है। अक्रूजी जी वास्तव में कवि की दूरदृष्टि ही समय की सीमाओं को लांघकर उस परम सत्य को देख सकती हैं।...जय श्रीकृष्णा।