December 07, 2025
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        धर्म संसार / शौर्यपथ / हिंदू धर्म में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए कई व्रत रखती हैं। ऐसे ही व्रतों में से एक है वट सावित्रि व्रत। विवाहित महिलाएं इस दिन अपने सुहाग के दीर्घायु होने के लिए व्रत-उपासना करती हैं। यह व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो स्त्री उस व्रत को सच्ची निष्ठा से रखती है उसे न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है बल्कि उसके पति पर आई सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं।

वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त-
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – मई 21, 2020 को रात 09:35 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – मई 22, 2020 को रात 11:08 बजे

वट सावित्री व्रत का महत्व-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थी। अतः इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।

वट सावित्री व्रत पूजा विधि-
-इस दिन प्रातःकाल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।
- इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें।
-बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।
- ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
- इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें।
- इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।
- अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें।
-पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
-जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें।
-बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें।
-भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें।
-यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।
-पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
-इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण करना न भूलें। यह कथा पूजा करते समय दूसरों को भी सुनाएं।

 

          खेल / शौर्यपथ / भारतीय ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या ने काफी कम वक्त में क्रिकेट जगत में अपना प्रभाव छोड़ा है। उन्होंने 2016 में न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे इंटरनेशनल में डेब्यू किया था। इसके बाद उन्होंने लगातार अपने ऑलराउंड परफॉर्मेंस से इंप्रेस किया और टीम इंडिया का जरूरी हिस्सा बन गए। भारतीय कप्तान विराट कोहली ने कई मौकों पर कहा भी है कि टीम को बैलेंस करने लिए हार्दिक पांड्या कितने जरूरी हैं। हार्दिक पांड्या ने जब इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखा तब वह 228 नंबर वाली जर्सी पहना करते थे। उनके जर्सी नंबर ने सबका ध्यान खींचा था, लेकिन कुछ वक्त बाद उन्होंने अपनी जर्सी का नंबर बदल कर 33 कर लिया। क्या आप जानते हैं कि पांड्या जर्सी नंबर 228 क्यों पहनते थे? अब इस राज से पर्दा उठ चुका है।

दरअसल, हाल ही में आईसीसी ने हार्दिक पांड्या की जर्सी नंबर 228 की तस्वीर शेयर करते हुए फैन्स से इस बारे में पूछा। आईसीसी ने ऑलराउंडर की जर्सी की फोटो ट्वीट करते हुए पूछा, 'क्या आप बता सकते हैं कि हार्दिक पांड्या जर्सी नंबर 228 क्यों पहनते थे?'

आईसीसी के इस सवाल पर कुछ फैन्स ने इस राज से पर्दा उठाया और बताया कि हार्दिक क्यों इस नंबर वाली जर्सी पहना करते थे। फैन्स ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा, ''अंडर-16 के दौरान हार्दिक बड़ौदा के लिए खेलते थे। वह अंडर-16 में बड़ौदा के कप्तान थे और टीम के कप्तान रहते हुए उन्होंने शानदार दोहरा शतक जड़ा था। इस दौरान उन्होंने 391 गेंदों में शानदार 228 रन की पारी खेली थी। हार्दिक ने यह पारी 2009 में आठ घंटे में मुंबई अंडर-16 के खिलाफ रिलायंस क्रिकेट स्टेडियम में खेली थी।''

अंडर-16 में खेलते हुए जड़ा यह दोहरा शतक उनके पूरे करियर का इकलौता दोहरा शतक है। 2009 में खेले गए इस मैच में एक समय बड़ौदा ने महज 60 रनों पर चार विकेट गंवा दिए थे। इसके बाद हार्दिक पांड्या मैदान पर उतरे और दोहरा शतक जड़कर स्टार बन गए थे। हार्दिक ने उस मैच में पहली पारी में मुंबई के 5 बल्लेबाजों को भी आउट किया था।

 

           शौर्यपथ / मनोरंजन / शौर्यपथ /‘ससुराल सिमर का’ एक्टर आशीष रॉय अस्पताल में भर्ती हैं। हाल ही में उन्होंने फेसबुक के जरिए लोगों को जानकारी दी थी कि वह आईसीयू में हैं और इलाज कराने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत है। अब आशीष ने हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करने की अपील की है। उनका कहना है कि पैसे नहीं बचे हैं और वह अब बिल नहीं भर पाएंगे।
टाइम्स ऑफ इंडिया को इंटरव्यू देते हुए आशीष ने बताया कि मैं पहले से ही पैसे की तंगी देख रहा हूं। मेरी हालत लॉकडाउन की वजह से ज्यादा खराब हुई है। दो लाख की सेविंग थी, जो कि मैंने दो दिन के हॉस्पिटल बिल भरने में इस्तेमाल कर लिए। पहले मुझे कोविड-19 हुआ, जिसमें 11 हजार लगे और बाकी की दवाइयां अलग। 90 हजार रुपये एक बार के डायलेसिस में लगते हैं। मेरे ट्रीटमेंट के लिए चार लाख की जरूरत है, लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं। इसलिए मैं अब घर जाना चाहता हूं। मैं इस ट्रीटमेंट को अफॉर्ड नहीं कर सकता। मेरी कुछ लोग मदद कर रहे हैं जिससे मैं हॉस्पिटल का बकाया भरकर डिस्चार्ज हो सकूं। मैं अब यहां नहीं रुक सकता फिर कल चाहे मुझे मरना ही क्यों न पड़े।

आशीष के को-स्टार सूरज थापर का कहना है कि आशीष अपने दो बीएचके फ्लैट को बेचने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते वह भी जल्दी होना नामुमकिन है।
आशीष ने इससे पहले बताया था कि 18 मई से मैं हॉस्पिटल में भर्ती हूं। हालत काफी गंभीर है। दो दिन में दो लाख रुपये का बिल आ चुका है। और आगे वह इलाज नहीं करा पाएंगे क्योंकि उनके पास पैसे नहीं बचे हैं।
आशीष आगे कहते हैं कि मेरे पास पैसे नहीं है। दो लाख थे वह मैंने हॉस्पिटल में दे दिए क्योंकि दो दिन का बिल इतना बनाकर दिया था। अब एक रुपए भी नहीं बचा है। कई लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं। वह फोन कर रहे हैं और पूछ रहे हैं। देखते हैं आगे क्या होता है। वायरस के चलते मुझे एक अलग वॉर्ड में रखा गया है। जो कि काफी महंगा है। मेरा डायलेसिस होता है। और चार घंटे तक चलता है। दवाइयां और इंजेक्शन भी काफी महंगे हैं।

बता दें कि इस साल के शुरुआत में भी आशीष बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती हुए थे। उनके शरीर में करीब 9 लीटर पानी जमा हो गया था। डॉक्टर्स ने कड़ी मशक्कत के बाद उनके शरीर से पानी निकाला था। गौरतलब है कि आशीष ने 'ससुराल सिमर का', 'बनेगी अपनी बात', 'ब्योमकेश बख्शी', 'यस बॉस', 'बा बहू और बेबी', 'मेरे अंगने में', 'कुछ रंग प्यार के ऐसे भी' और 'आरंभ' जैसे कई टीवी शोज में काम किया है।

 

            शौर्यपथ / मानव जाति के इतिहास में छठी शताब्दी में जस्टिनियन प्लेग से लेकर 1918 में स्पेनिश फ्लू तक कई महामारियां देखी गई हैं। 21वीं सदी में खासकर तीन कोरोना वायरस प्रकोप देखे गए हैं। मर्स, सार्स के बाद हम कोविड-19 का प्रकोप देख रहे हैं। चिकित्सा विज्ञान की तरक्की के बावजूद यह अनुमान लगाना नामुमकिन है कि अगली संक्रामक बीमारी का प्रकोप कब होगा, इसलिए हमें पूरी तरह सचेत रहने की जरूरत है।
संक्रमण के कुल मामलों में जब भारत चीन को पार कर चुका है, तब दोनों की तुलना दिलचस्प होगी। मध्य मार्च के बाद से भारत में जहां संक्रमण के मामलों में क्रमिक वृद्धि देखी गई, वहीं चीन में जनवरी-फरवरी में ही बहुत तेजी देखी गई थी। वहां का प्रशासन मजबूर हो गया था और भारत से करीब दो महीने पहले 23 जनवरी को ही वुहान में सख्त लॉकडाउन लागू हो गया था। वहां 70 दिन चले लॉकडाउन से संक्रमण काबू में आया और अब स्थिर है। चीन जैसी ही तेज बढ़त अमेरिका और यूरोप में देखी गई, इस मामले में भारत कुछ अलग है।
गौरतलब है, भारत में चीन की तुलना में 45 प्रतिशत कम मौतें हुई हैं, हालांकि कुल संक्रमित लोगों में सक्रिय संक्रमित 60 प्रतिशत से ज्यादा रहे हैं, जबकि चीन में सक्रिय संक्रमितों की संख्या शून्य के करीब पहुंच गई है। भारत में 38 प्रतिशत लोग स्वस्थ हो रहे हैं। ठीक होने वालों की संख्या भारत में ज्यादा है। वैसे अभी भी भारत में जर्मनी, स्पेन और इटली इत्यादि हॉटस्पॉट बने देशों की तुलना में ठीक होने की दर कम है।
इसके अलावा, यह बीमारी चीन में मुख्य रूप से हुबेई प्रांत में सीमित थी और वहां भी विशेष रूप से वुहान में, जबकि भारत में चार राज्यों- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और दिल्ली में संक्रमण के ज्यादा मामले देखे जा रहे हैं। इन चार राज्यों में भारत के कुल दो-तिहाई मामले मिले हैं। कुल मिलाकर, भारत में ठीक होने की उच्च दर इशारा करती है कि कोरोना के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास यहां कारगर रहा है। आज अहम सवाल यह है कि जो लोग सार्स और कोविड-19 के संक्रमण को हरा सकते हैं, क्या वे भावी वायरस हमलों को भी धता बता पाएंगे? जब हम इसका जवाब खोजेंगे, तब हमें कोविड-19 की वैक्सीन खोजने में मदद मिलेगी।
हमारे शरीर में दो चीजें हैं, एचएलए सिस्टम और केआईआर जींस, दोनों ही कोरोना बीमारी के माइक्रोब्स के खिलाफ रोग प्रतिरोध की दीवार खड़ी कर रही हैं। एचआईवी सहित अन्य संक्रामक रोगों और स्वत:रोग प्रतिरोधी क्षमता के संबंध में एचएलए और केआईआर की जेनेटिक प्रवृत्ति के पर्याप्त डाटा मौजूद हैं। ये दोनों जेनेटिक सिस्टम शरीर के दो रोग-प्रतिरोधी योद्धाओं को चलाते हैं- एक, साइटोक्सिक टी-सेल्स और दूसरा, नेचुरल किलर सेल्स, ये दोनों ही मिलकर वायरस को निशाना बनाते हैं और ठिकाने लगाने में मदद करते हैं। इनका गहन अध्ययन जरूरी है, ताकि कोविड-19 की जांच के कारगर उपकरण बनाए जा सकें। इससे अलग-अलग लोगों में अलग-अलग उपचार रणनीति बनाने में भी मदद मिलेगी। संक्रमित लोगों में एचएलए विविधता की पहचान करने से संक्रमण की गंभीरता का अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है और यह तय किया जा सकता है कि आखिरकार टीके से किसको फायदा होगा। भारतीय संदर्भ में वैज्ञानिकों को दो अहम अवलोकनों के जवाब खोजने होंगे। पहला, मुख्य रूप से स्पर्श से हो रही बीमारी के क्लिनिकल कोर्स को देखना होगा और दूसरा, भारत में अभी तक गंभीर और अति-गंभीर मामलों की सीमित संख्या पर भी गौर करना होगा।
एक सवाल यह भी है कि किसी संक्रामक का कारगर उपचार विकसित करने में कितना समय लगता है? ऐतिहासिक रूप से चेचक और पोलियो का प्रभावी टीका खोजने में हजारों साल लगे हैं। इन दिनों विश्व वैज्ञानिक समुदाय ने जिस एकजुटता के साथ कोरोना वायरस को हराने के विलक्षण कार्य में ज्ञान और जानकारी साझा की है, यह वास्तव में अभूतपूर्व है। अकेले विज्ञान ही भविष्य में स्वास्थ्य रक्षकों को अपनी पूरी क्षमता से काम करने, भविष्य के संक्रामकों को रोकने और उनका इलाज करने के लिए जीवन रक्षक उपकरण बनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। बेशक, वैश्विक आपात स्थितियों से निपटने के लिए नई प्रौद्योगिकियों की तत्काल जरूरत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

     शौर्यपथ / समुद्री तूफान से हुआ नुकसान जितना दुखद है, उतना ही चिंताजनक भी। दुख इसलिए कि भारतीय राज्यों- पश्चिम बंगाल और ओडिशा सहित बांग्लादेश में न केवल 25 से ज्यादा लोग मारे गए हैं, वहां जो माली नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई में कुछ वर्ष लग जाएंगे। कोरोना की वजह से आर्थिक परेशानी झेल रही एक विशाल आबादी ने अम्फान को अपने सीने पर झेला है। इस पूरी आबादी के साथ-साथ उसे पहुंचे पूरे नुकसान का अनुमान लगाना जरूरी है। पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों को दोहरी मदद की जरूरत पड़ेगी और इसके लिए केंद्र सरकार को कमर कस लेनी चाहिए। तूफान और तेज बारिश से मची तबाही की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उस समय अपने दफ्तर में मौजूद थीं और उन्हें ‘सर्वनाश’ व ‘तांडव’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा। मुख्यमंत्री के ऐसे उद्गार से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में कुछ पीढ़ियां ऐसी हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ऐसी त्रासदी का सामना पहले कभी नहीं किया। असंख्य गरीबों और आम लोगों के आशियाने तबाह हो गए हैं। उन सभी को हरसंभव मदद और मुआवजे की जरूरत पडे़गी। इतनी बड़ी संख्या में पेड़ गिरे हैं, बिजली के खंभे टूटे हैं, टीन, छप्पर, बैनर, होर्डिंग उड़े हैं कि राज्य सरकारों ने प्रभावित इलाकों में लोगों को घर के अंदर ही रहने को कहा है। केवल तटीय इलाकों में ही नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा के भीतरी इलाकों में भी अम्फान से मची तबाही का मंजर है।
पश्चिम बंगाल के बुजुर्ग 1970 में आए उस भोला तूफान को याद कर रहे हैं, जिसमें पांच लाख से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी थी और 1991 में आए गोर्की तूफान को भी याद किया जा रहा है, जो अपने साथ 1.39 लाख लोगों को ले गया था। शुक्र है, समय पर जारी हुई चेतावनी ने लोगों की जान की रक्षा की और सौभाग्य है, यह तूफान अपनी रफ्तार थोड़ी कम करते हुए तट पर पहुंचा। एक और अच्छी बात है कि यह भारत में पश्चिम या उत्तर की ओर आगे नहीं बढ़ा और इसका दबाव क्षेत्र बांग्लादेश की ओर मुड़ते हुए लगभग प्रभावहीन हो गया।
तूफान से प्रभावित हुए लोगों के प्रति देश में संवेदनाओं का ज्वार स्वाभाविक है, लेकिन हमें इन तूफानों से स्थाई बचाव के बारे में भी सोचना होगा। अव्वल तो तटीय जिलों में छप्पर या कच्चे मकानों पर पाबंदी समय की मांग है। गरीबों के लिए पक्के मकान बनाने की जो योजनाएं हैं, उन्हें तटीय इलाकों में युद्ध स्तर पर चलाना चाहिए। केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारों के पास भी यह एक मौका है कि वे समुद्री तट से लेकर अंदर 200-300 किलोमीटर तक कच्चे घरों, भवनों, दुकानों को फिर न खड़ा होने दें। हम ऐसे दौर में हैं, जब समुद्री जल का तापमान बढ़ रहा है और हर दो या तीन वर्ष में एक बडे़ तूफान की आशंका बनेगी। ऐसे में, यह जरूरी है कि गरीबों और जरूरतमंदों तक पक्की या स्थाई सहायता पहुंचे, उन्हें फिर विस्थापित न होना पड़े। ऐसे निर्माणों, बिजली के खंभों और पेड़ों पर भी निगाह रखनी पडे़गी, जो ऐसे तूफानों के समय तबाही का सामान बनते हैं। दिल्ली, कोलकाता से सुदूर इन इलाकों तक प्रशासकों, शासकों को पहले की तुलना में और उदार हो जाना चाहिए, तभी वे पीड़ितों की पीड़ा दूर कर पाएंगे।

 

      शौर्यपथ / सोमवार से लॉकडाउन के चौथे चरण की शुरुआत होते ही राज्य सरकारों ने अपने-अपने स्तर पर रियायतें दी हैं। हालांकि, इन राहतों का लोग गलत फायदा उठाने लगे हैं और नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। अधिकतर लोग बिना मास्क लगाए बाजार और सड़कों पर घूमते नजर आ रहे हैं। वाहनों पर भी निर्धारित सवारी से अधिक लोग बिना हेलमेट के सड़कों पर निकल रहे हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा मरीजों के मामले में हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, फिर भी प्रवासी मजदूरों का जमावड़ा और लोगों का संक्रमण से डरे बिना उन्मुक्त होकर विचरण करना बंद नहीं हो रहा है। इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ सकता है। यदि हम खुद नहीं संभलेंगे, तो कोरोना का संक्रमण बढ़ता चला जाएगा। नतीजतन, सरकार को कहीं अधिक सख्त कदम उठाने पड़ सकते हैं। ऐसे में, हम सभी को जागरूक रहने की जरूरत है।
अंजली राजपूत, झांसी

निजीकरण है रुकावट
मोदी सरकार ने स्वदेशी पर जोर देने के उद्देश्य से आत्मनिर्भर भारत का आह्वान किया है। अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए यह अच्छा कदम है, लेकिन क्या लोकल होने से हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आएगी? जनता तो खाने-पीने की चीजों में स्वदेशी को प्राथमिकता देगी, लेकिन क्या सरकार और अधिकारी स्वदेशी को प्राथमिकता देंगे? भारत में स्वदेशी को लेकर अधूरी बातों को ही प्रसारित किया जाता रहा है। स्वदेशी का मतलब टूथपेस्ट, दूध, वस्त्र, साबुन आदि ही बताया गया है, जबकि असली और पूर्ण स्वदेशी का मतलब है, सुई से लेकर जहाज तक भारत में बने। स्वदेशी को सबसे बड़ा खतरा तो निजीकरण से है, क्योंकि इससे सरकार की संपत्ति घट जाती है और देश की शक्ति भी कम हो जाती है।
भूपेंद्र सिंह रंगा, हरियाणा

आर्थिक मदद अनिवार्य
वर्तमान में लगभग पूरा विश्व कोरोना वायरस की चपेट में है और तमाम देशों की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई है। उद्योग जगत से लेकर आम मजदूर तक सब इस प्रकोप से प्रभावित हुए हैं। भारत में लगातार तीन लॉकडाउन के बाद चौथे लॉकडाउन में आशाजनक राहत मिली है, जो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अनिवार्य भी है। हालांकि, केंद्र सरकार ने ठप पड़ चुके उद्योग-धंधों को फिर से शुरू करने को लेकर कोई खास कदम नहीं उठाया है। अगर भारत की तुलना अमेरिका और अन्य देशों से करें, तो अमेरिका ने उद्योगों में सुधार और रोजगार की स्थिति को बनाए रखने के लिए आर्थिक सहायता के रूप में उद्योगों को भारी राशि उपलब्ध कराई है। अन्य देश भी तकरीबन हर सेक्टर को आर्थिक सहायता प्रदान कर रहे हैं। मगर भारत में केंद्र सरकार आर्थिक सहायता एक कर्ज के रूप में दे रही है। अगर सरकार आर्थिक पैकेज बिना किसी शर्त और कर्ज के रूप में मुहैया कराती, तो स्थिति जल्द ही बेहतर हो सकती थी। चूंकि मजदूरों की स्थिति बेहद दयनीय हो चुकी है और वे अपने गांव लौट चुके हैं। ऐसे में, सरकार कर्ज नहीं, बल्कि आर्थिक सहायता दे।
विशेक, दिल्ली विश्वविद्यालय

छात्रों की मुश्किलें
लॉकडाउन का लगातार विस्तार हो रहा है, जिससे वे छात्र खासे चिंतित हो गए हैं, जिनकी अगले वर्ष बोर्ड की परीक्षाएं हैं। भले ही सरकार ने कुछ चैनल पर पढ़ाई की व्यवस्था की है, निजी विद्यालय भी ऑनलाइन पठन-पाठन शुरू कर चुके हैं, लेकिन ये तमाम व्यवस्थाएं समान रूप से सभी छात्रों की मदद नहीं कर पा रही हैं। जिन्हें ये सुविधाएं मिल भी रही हैं, उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में, परीक्षार्थियों में तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है, जो सही नहीं है। इस समस्या के हल के लिए संबंधित मंत्रालय को कोई न कोई व्यवस्था जरूर करनी चाहिए।
कमल नयन चौबे
करगहर, रोहतास

 

         शौर्यपथ / पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भारी तबाही मचाता हुआ अम्फान तूफान भारत से गुजर चुका है। जब हवा 195 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बढ़ रही हो और तेज बारिश का उसे साथ मिले, तो उसकी राह में आने वाली हर चीज का नुकसान स्वाभाविक है। मगर अम्फान में अच्छी बात यह रही कि इसमें मौत की संख्या थामने में हम बहुत हद तक सफल रहे। हां, सार्वजनिक और निजी संपत्ति को क्षति जरूर पहुंची है, पर कुछ जरूरी मानकों का पालन किया गया होता, तो इसे भी सीमित रखना संभव था। फिलहाल, अम्फान से हुई तबाही का ठीक-ठीक आकलन लगाया जा रहा है।
किसी भी तूफान से लड़ने के लिए पूर्व-सूचना सबसे कारगर हथियार मानी जाती है। इसका अर्थ है कि संकट के आने का अंदेशा कब लगाया गया, और इस बाबत संबंधित शासन-प्रशासन को सूचना कब जारी की गई? यह सूचना जितनी सटीक होती है, जान-माल का नुकसान कम करने में शासन-प्रशासन को उतनी ही ज्यादा मदद मिलती है। भारतीय मौसम विभाग इस पहलू पर पिछले काफी समय से गंभीरता से काम कर रहा है, जिसके अच्छे नतीजे आए हैं। अक्तूबर 2013 में ही ओडिशा में आए फैलिन तूफान की पूर्व-सूचना से हमें काफी फायदा मिला था और संकट आने से पहले ही लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाकर उनकी जान बचाई गई थी, जबकि उस वक्त अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने बड़ी संख्या में लोगों की मौत का अंदेशा जताया था।
आज भीषण तूफान जैसी आपदा से यदि लोगों की जान बचाई जा रही है, तो इसका श्रेय काफी हद तक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) को दिया जा सकता है। इसकी स्थापना से पहले कुदरती आपदाओं को सिर्फ इस रूप में देखा जाता था कि आपदा के बाद बचाव और राहत के काम किस तरह किए जाएं। अब इस सोच में बदलाव आया है। अब आपदा से पहले बचाव के तरीके, उससे निपटने की तैयारी और नुकसान कम करने संबंधी उपायों पर ध्यान दिया जाता है, साथ ही आपदा के बीत जाने के बाद राहत और पुनर्निर्माण के कामों पर। एक समग्र रणनीति का ही नतीजा है कि अब आपदा में एक पूरा तंत्र सक्रिय हो जाता है, जो न सिर्फ प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को बाहर निकालता है, बल्कि उनके ठहरने और खाने-पीने का भी पूरा इंतजाम करता है। इसी कारण अम्फान तूफान गुजर जाने के तुरंत बाद ओडिशा में जनजीवन सामान्य होने लगा।
यह सही है कि कोरोना-संक्रमण के काल में अम्फान जैसे संकट से लोगों को बचाना कम जोखिम भरा नहीं है। प्रभावित क्षेत्रों से लाखों लोगों को बाहर निकालना और उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर एक साथ रखने से कोरोना का संक्रमण फैलने का खतरा है। जब पीने का पानी ही सीमित मात्रा में हो, तब यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि लोग बार-बार साबुन से हाथ धोएंगे। मगर, पिछले दो महीने के जागरूकता अभियान ने लोगों को इतना सजग तो बना ही दिया है कि वे स्वयं सावधानी बरतने लगे हैं। संभव है, उन्हें मास्क, सैनिटाइजर वगैरह भी उपलब्ध कराए गए हों। लिहाजा, उनकी हालत उन प्रवासी मजदूरों जैसी नहीं होगी, जो बिना किसी तूफान के ही मुश्किलों से लड़ रहे हैं।
बहरहाल, किसी आपदा के दौरान दो बातों का खास ध्यान रखा जाता है। पहली बात, जान की रक्षा करना, और दूसरी, सरकारी और निजी संपत्ति का कम से कम नुकसान। चक्रवाती तूफान में इस तरह के नुकसानों को रोकना इसलिए मुश्किल होता है, क्योंकि हवा की तेज गति, समुद्र की ऊंची लहरें और मूसलाधार बारिश आपस में मिलकर संकट को भयावह बना देती हैं। हालांकि, पूर्व सूचना के साथ-साथ राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए कई कदम भी अब मददगार साबित होने लगे हैं। जैसे, वे अब आधुनिक जीपीएस का इस्तेमाल करने लगे हैं। वे हवा की गति, समुद्री लहरों की ऊंचाई और बारिश की तीव्रता का आकलन करके प्रभावित इलाकों की पहचान करने लगे हैं और वहां से लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लेते हैं। अपने यहां 2008 में ही चक्रवाती तूफान संबंधी दिशा-निर्देश तैयार कर लिए गए थे। उससे पहले 2006 से ही चक्रवाती तूफान और अन्य आपदाओं के मद्देनजर मॉक ड्रिल का काम सभी राज्यों में शुरू हो गया था। इससे भी राज्यों को काफी फायदा मिला है।
दिक्कत तब आती है, जब ऐसे दिशा-निर्देशों को नजरअंदाज किया जाता है। पश्चिम बंगाल में साल 2009 के आइला तूफान में जब काफी नुकसान हुआ था, तब प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर मैं प्रभावित इलाकों में गया था। हमारी टीम का प्रस्ताव था कि पश्चिम बंगाल में भी ओडिशा या आंध्र प्रदेश की तरह तूफान राहत केंद्र बनाए जाएं। इन वर्षों में इस पर कितना काम हुआ है, यह तो मुझे पता नहीं, लेकिन वहां इसके लिए जगह का मिलना मुश्किल था, और फिर उसके डिजाइन को बदलने की जरूरत थी, क्योंकि वहां मिट्टी भुरभुरी थी। इससे लागत भी बढ़ रही थी।
हर आपदा से हमें सीखने का मौका मिलता है। अम्फान भी हमारे लिए ऐसा ही सबक लेकर आया है। इस तूफान का डॉक्यूमेंटेशन यानी दस्तावेजीकरण होना चाहिए। आमतौर पर हम यह तो ध्यान रखते हैं कि किस काम से हमें कितना फायदा मिला, मगर यह भूल जाते हैं कि किस काम को न करने से कितना ज्यादा नुकसान हुआ। इसके साथ-साथ यह आकलन भी किया जाना चाहिए कि किसी काम को गलत तरीके से करने से हमें नुकसान तो नहीं हुआ? हमें अपनी सफलता और विफलता, सब कुछ बतौर रिकॉर्ड दर्ज करना चाहिए और अगली आपदा से निपटने की रणनीति बनाने में उसका इस्तेमाल करना चाहिए।
इसी तरह, एक अध्ययन यह भी होना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन का इन तूफानों पर कितना असर हुआ है। बेशक पिछले कुछ वर्षों में चक्रवाती तूफान की बारंबारता बढ़ गई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इसकी वजह जलवायु परिवर्तन है। हां, जलवायु परिवर्तन से कम समय में तेज बारिश की आशंका जरूर बढ़ गई है, जिससे काफी नुकसान होता है। रही बात भौतिक संपत्तियों के नुकसान की, तो इसे लेकर जो दिशा-निर्देश हैं, उनमें कहा गया है कि उसी आपदा को मानक बनाकर निर्माण-कार्य होने चाहिए, जिससे सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान हुआ है। इससे अगली बार उस तीव्रता की आपदा उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाती। परेशानी की बात यह है कि इस पर अमल नहीं हो रहा, जबकि इसमें तुलनात्मक रूप से बहुत ज्यादा खर्च भी नहीं होता।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

राजीव गांधी किसान न्याय योजना लोगों के जीवन में लाएगी बदलाव: श्रीमती सोनिया गांधी
छत्तीसगढ़ के किसानों के जीवन में खुशहाली का नया दौर शुरू: श्री भूपेश बघेल
राजीव गांधी किसान न्याय योजना की हुई शुरूआत
5750 करोड़ की राशि चार किश्तों में किसानों को मिलेगी: पहली किश्त 1500 करोड़ रूपए किसानों के खातों में ऑनलाईन अंतरित
वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए योजना का हुआ शुभारंभ

    रायपुर /शौर्यपथ / पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्व.श्री राजीव गांधी के शहादत दिवस पर श्रीमती सोनिया गांधी और श्री राहुल गांधी की विशेष उपस्थिति में छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना - राजीव गांधी किसान न्याय योजना का शुभारंभ वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए हुआ। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने निवास कार्यालय में अपने मंत्रिमण्डल के सहयोगियों के साथ इस योजना के तहत किसानों को दी जाने वाली 5750 करोड़ रूपए की राशि में से प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए की राशि अंतरित की। इस कार्यक्रम में वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए वरिष्ठ नेता श्री मोतीलाल वोरा, सांसद श्री पी.एल. पुनिया, श्री रणदीप सिंह सुरजेवाला सहित प्रदेश के जिलों से सांसद, विधायक और हितग्राही कृषक शामिल हुए।
शुभारंभ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए लोकसभा संासद श्री राहुल गांधी ने कहा कि कोरोना संकट की स्थिति को देखते हुए मैंने प्रधानमंत्री जी से आग्रह किया था कि गरीबों को इस वक्त कर्ज की नहीं बल्कि नगद राशि की जरूरत है। इसका बढिय़ा रास्ता छत्तीसगढ़ सरकार ने निकाला है। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जिसने किसानों को मदद पहुंचाने के लिए उनके खाते में सीधे राशि दी है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ सरकार संकट के समय में, लोगों की मदद कैसे की जा सकती है, इसका देश को रास्ता दिखाया है। चाहे कोरोना संकट हो और कोई भी विपत्ति हम गरीबों का हाथ कभी नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने कहा कि हमें गरीबों की मदद करने के लिये उनके साथ खड़ा होना पड़ेगा। हमें मामूल है कि राज्य की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, इस हालत में भी छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किसानों को राहत पहुंचाने हेतु लिया गया यह निर्णय, कोई छोटा काम नहीं है। उन्होंने कहा कि किसानों एवं गरीबों की मदद करने का निर्णय हमने सोच-समझकर लिया है। यह किसी व्यक्ति विशेष का निर्णय नहीं है। यह छत्तीसगढ़ की आवाज है। यह रास्ता छत्तीसगढ़ के लोगों ने ही हमें बताया है। उन्होंने इसके लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके मंत्रिमण्डल के सभी सहयागियों और छत्तीसगढ़ की जनता को बधाई और शुभकामनाएं दी।
इस अवसर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा-राजीव जी की भावना के अनुरूप छत्तीसगढ़ सरकार ने गरीब आदिवासी किसानों की मदद के लिए बड़ा कदम उठाया है। राजीव गांधी किसान न्याय योजना के माध्यम से किसानों को सीधे उनके खाते में राशि देने की शुरूआत की गई है। इस योजना के दूसरे चरण में ग्रामीण भूमिहीन मजदूरों को शामिल करने का निर्णय अपने आप में अनोखा है। राजीव गांधी किसान न्याय योजना, गरीब किसानों को मदद पहुंचाने की अनुकरणीय योजना है। इससे आदिवासियों, ग्रामीणों एवं गरीबों के जीवन में बदलाव आएगा, खुशहाली आएगी। ऐसी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू कर जन-जन तक लाभ पहुंचाना राजीव जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने कहा कि राजीव जी का यह मानना था कि खेती विकास की पूंजी है। भारत के विकास के लिये किसानों एवं गरीबों को मदद पहुुंचाना जरूरी है। उन्होंने इस क्रांतिकारी योजना के लिये मुख्यमंत्री बघेल की सरकार के साथ ही प्रदेश के गरीबों, किसानों एवं मजदूरों को शुभकामनाएं दी।
मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि राजीव गांधी किसान न्याय योजना की मूलभावना हमारे लिये मार्गदर्शिका है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इसके माध्यम से हम किसानों एवं कमजोर वर्ग के लोगों को न सिर्फ सम्मान से जीने का अवसर उपलब्ध कराएंगे बल्कि गरीबी का कलंक मिटाने में भी सफल होंगे। राजीव गांधी किसान न्याय योजना से राज्य के किसानों के जीवन में खुशहाली का नया दौर शुरू होगा। उन्होंने कहा कि इस योजना से लाभान्वित होने वालों में 90 प्रतिशत लघु-सीमांत किसान अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं गरीब तबके के हैं। इस योजना की प्रथम किश्त की राशि 1500 करोड़ रूपये हम सीधे किसानों के खाते में अंतरित कर रहे हैं। योजना के तहत राज्य के 19 लाख किसानों को इस वर्ष 5750 करोड़ रूपये दिए जाएंगे। इसके अंतर्गत धान की खेती के लिये किसानों को प्रति एकड़ 10 हजार रूपये तथा गन्ना की खेती के लिये प्रति एकड़ 13000 रूपये आदान सहायता दी जाएगी। मुख्यमंत्री बघेल ने आगे कहा कि हमनें अब तक धान खरीदी, कर्जमाफी, फसल बीमा, सिंचाई कर की माफी और प्रोत्साहन राशि को मिलाकर किसानों को 40 हजार 700 करोड़ रूपये उनके खातों में सीधे अंतरित किए है।
उन्होंने कहा कि राज्य के किसानों के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है। आज हम पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी जी का पुण्य स्मरण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी के आधुनिक भारत निर्माण के स्वप्न दृष्टा राजीव जी यह दृष्टिकोण था कि- 'भारत में गरीबी उन्मूलन तथा आत्मनिर्भर भारत' निर्माण के लक्ष्य की प्राप्ति किसानों की आर्थिक दशा में सुधार के बिना संभव नहीं है। श्री राहुल गांधी की न्याय की वृहद अवधारणा के क्रियान्वयन की दिशा में और उनक मार्गदर्शन में प्रथम कदम है '' राजीव गांधी किसान न्याय योजना'' । मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि सोनिया जी और राहुल जी के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ देश के प्रथम राज्यों में से है जो कि स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के पालन करने में दृढ़ संकल्पित है।

   दुर्ग / शौर्यपथ / श्रमिक सेवा केंद्र दुर्ग में आधुनिक भारत के निर्माता भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 30 वी पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। पूर्व महापौर आर एन वर्मा ने कहा कि उनकी कम्प्यूटर क्रांति की वजह से आज पूरा देश डिजिटल युग में जी रहा है जिनको लाने का श्रेय राजीव गांधी को जाता है। उनकी आधुनिक सोच ने भारत को तेजी विश्व के अग्रिम देशों की पंक्ति में पहुँचा दिया। पूर्व साडा अध्यक्ष लक्ष्मण चंद्राकर ने कहा कि पंचायतीराज और नगरीय निकाय में संविधान संशोधन के द्वारा सत्ता का विकेंद्रीकरण कर लोकतंत्र को मजबूत बनाने के क्षेत्र में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति को जोड़ने के लिए उन्होंने 18 वर्ष के युवाओं को मताधिकार का अधिकार प्रदान कर भारतीय लोकतंत्र को नई दिशा प्रदान की। आज भी हजारों मजदूर साथियों को श्रमिक सेवा केंद्र से भोजन पैकेट, पानी पाउच, चना, बुस्किट, चिप्स आदि केंद से बांटा गया। उन्हें श्रद्धांजलि देने वालो में प्रतिमा चंद्रकार, आरएन वर्मा,लक्ष्मण चंद्राकर, राजेश यादव, क्षितिज चंद्राकर, नीलेश चौबे, मुकेश चंद्राकर, विशाल देशमुख, अजय गोलू गुप्ता, अशोक बघेला, विनाय गुप्ता, महेश टावरी, अजय शर्मा, दीपक चावड़ा, विमल यादव, हनुमान यादव, आर मलिक, मेहंदी भाई, सदाबहार, निखिल खिचरिया, भूपेश वर्मा, राजा विकम्र बघेल, सन्नी साहू, विजय चंद्राकर, सिध्देश्वर जैन, सिद्धार्थ चंद्राकर, दीपक जैन, आनंद देव चंद्राकर, एम पी गोयल, नासिर खोखर आदि उपस्थित थे।

       रसोई / शौर्यपथ / क्या आपको पता है कि राजमा जितना चाव से भारत में खाया जाता है, इसे मेक्सिको में भी उतना ही पसंद किया जाता है। कहीं राजमा मसाला-वड़ा खाया जाता है, तो कहीं राजमा को सलाद के रूप में परोसा जाता है। आप बनाइए नाश्ते में राजमा कटलेट्स।

1- भारत में राजमा के शौकीन बहुत लोग हैं। पर क्या आपको इसके सेहत के गुण पता हैं? राजमा में जितनी कैलोरी होती है, वो हर आयु वर्ग के लोगों की सेहत के लिए सही होती है। आप इसे सलाद और सूप के रूप में भी ले सकते हैं। वहीं इसमें उच्च मात्रा में फाइबर होता है, जो पाचन क्रिया को सही बनाए रखने में मदद करते हैं। यह ब्लड शुगर के स्तर को भी नियंत्रित करने में मददगार होता है।

2-कैल्शियम और मैग्नीशियम से भरपूर राजमा को सब्जी के तौर पर बना ही सकते हैं, राजमा कटलेट जैसी रेसिपी भी आजमा सकते हैं। आपको चाहिएराजमा 1 कप, लाल मिर्च पाउडर 1 छोटा चम्मच, बारीक कटा हुआ लहसुन आधा चम्मच, हरा धनिया, बारीक कटी अदरक आधा चम्मच, 2 मध्यम साइज के टमाटर कटे हुए, दो प्याज बारीक कटे हुए, भूना जीरा पाउडर एक छोटा चम्मच और नमक स्वादानुसार।

3-राजमा कटलेट बनाने के लिए रात में भिगोया एक कप राजमा सुबह एक चुटकी नमक और आधा या पौन कप पानी संग उबाल कर ठंडा होने पर मिक्सी में दरदरा पीसें। एक बर्तन में दरदरा पीसा राजमा और बाकी सारी सामग्री डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लीजिए। हाथ में थोड़ा सा मिश्रण लेकर इसे हल्के हाथों से दबाकर चपटा कर कटलेट का आकार दें। अब एक पैन में तेल मध्यम आंच पर गर्म करें। तेल बस सेंकने के लिए चाहिए। गर्म तेल में एक-एक करके कटलेट डालें और मध्यम आंच पर फ्राई करें। सुनहरा सिक जाने पर चटनी संग परोसें।

 

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