November 21, 2024
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शौर्य की बाते ( सम्पादकीय )

शौर्य की बाते ( सम्पादकीय ) (160)

शौर्यपथ लेख । फेसबुक वॉल में एक विचार दिखा जिसे एक महिला द्वारा पोस्ट किया गया था । पोस्ट में लिखी बाते सोंचने पर मजबूर कर देती है कहने को तो भारत मे अभिव्यक्ति की आजादी है महिलाओं का सम्मान भी है किंतु ऐसे कई क्षेत्र है जहां महिलाओं का सिर्फ उपयोग ही किया जाता है उन्ही क्षेत्री में एक क्षेत्र है विज्ञपन कि दुनिया का । विज्ञपन की दुनिया मे शायद ही कोई विज्ञपन का निर्माण हुआ हो जिसमें महिलाओं की भागीदारी ना हो किन्तु इसमे से कई विज्ञपन ऐसे है जो महिलाओं की उपयोग की वस्तु ना होने के बाद भी उनमें भागीदारी दिखती है । मेंस शेविंग क्रीम , मेंस वियर , मेंस ऑटो , मेंस ड्रिंक्स जैसे कई प्रोडूक्त है जिनका महिलाओं से कोई परोक्ष सम्बन्ध नही होता किन्तु बावजूद इसके ऐसे विज्ञापनों में इनकी भागीदारी एक विशेष ड्रेसिंग सेंस के साथ दिखाई जाती है ऐसे ही कुछ विज्ञापनों के बारे में एक महिला ने अपने विचार प्रकट किए है जो सोंचने पर मजबूर कर देते है कि क्या ये सही है ... पोस्ट के अंश आप सम्मानित पाठकों को समर्पित यह एक ऐड है जिसमें स्कूटर दिख रहा है.. स्कूटर बिक रहा हैसच कहूँ तो पहली नजर में स्कूटर दिखा ही नहीं..क्योंकि सबकी नजर स्कूटर पर गयी ही नही होगी ...? क्यों सच छिपाऊं,, मैं सोच रही हूँ ,, आखिर ये हो क्या रहा है..?? नारी क्यों देख औेर समझ नहीं पा रही कि बाजार ने उसे एक वस्तु बना दिया है,, वो क्यों विरोध नही करती..?? अगरबत्ती के ऐड में महिला,, शेविंग क्रीम के ऐड में महिला,, डिओ के ऐड में महिला की अमुक डिओ लगाओगे तो,, खिंची चली आंती है ,, पुरुषों के इनर वियर में महिला.. 18-20 साल के लड़के ओर लड़कियों पर इसका क्या असर हो रहा है? उसका समाज पर क्या असर होगा..?? एक परफ्यूम का विज्ञापन है जिसमें लड़की अपने पुरूष मित्र का परिचय माता पिता से कराती है। जब लड़का लड़की की माँ को आण्टी कहकर संबोधित करता है तो प्रौढ़ महिला उसे उसका नाम लेकर पुकारने को कहती है। उधर उसके पति के हाथ में पकड़े हुये पॉपकार्न के पैकेट भिंच जाते हैं, यह विज्ञापन क्या संदेश दे रहा है, समाज को..?? क्या परफ्यूम इतना प्रभाव कारी है कि एक अधेड़ महिला उससे प्रभावित होकर पति और बेटी के सामने इतनी निर्लज्ज हो जाती है..?? कुछ लड़कियां कहती है कि हम क्या पहनेंगे ये हम तय करेंगे, पुरुष नहीं..मैं आपकी बात से सहमत हो सकती हूँ लेकिन वुमन empowerment के नाम जो समाज के सामने जो अश्लीलता परोसी जा रही है उसके कारण देश के युवाओं और समाज पर जो इफेक्ट आ रहा है उसका जिम्मेदार कौन है..?? वह जो जिसे दिखाया जा रहा है या वह जो यह दिखा कर फायदा अपना फायदा उठा रहा। किसी भी प्रोडक्ट को बेचने के लिए किसी औरत या लड़की को अश्लील तरीके से दिखाना कहाँ तक वुमन इंपावरमेंट के अंदर आता है..?? समय बदल रहा है ...कहकर अंग प्रदर्शन करना कहा तक उचित है .. हा मानती हूँ समय अनुसार चलना चाहिए ..पर किस किताब मे लिखा है की ..अंग प्रदर्शन करो .. आज लड़के और लड़कियों मे कोई भेद नही बल्कि मे तो कहूँगी लड़कियां हर फिल्ड मे आगे है आज समाज मे .. आधुनिकता को इतना मत ओढ़ लो की अपनी सभ्यता ही भूल जाओ .. मे भी एक पढ़ी लिखी डॉक्टर हूँ .. पर पैसा कमाने के लिए देह प्रदर्शन का विरोध करती हूँ . सत्य ये है की अश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधों की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान है।ऊंचा उठने के लिए अंग प्रदर्शन नही ...बल्कि अपने अंग को ढककर ऊंचा बनकर दिखाओ आपकी पहचान आपके कम कपड़ों के फोटो से नही ..बल्कि नाम से होनी चाहिए .असल मे वहीं आपकी सच्ची सफलता है

शौर्यपथ लेख / वर्तमान हालत में देश की राजनीति दो भागो में बंट गयी है देशभक्त और देश द्रोही . दो भागो में देश के कद्दावर नेता नहीं अपितु सोशल मिडिया के धुरंधर इस बात को प्रमाणित कर रहे है . सोशल मिडिया में अगर नजर डाले तो देश में जो भाजपा को मानता है वो देश भक्त की श्रेणी में आता है और जो भाजपा व मोदी सरकार का विरोध करता है वो देश द्रोही की श्रेणी में आता है . ७० साल हो गए देश को आजाद हुए किन्तु वर्तमान में देश की जो हालत है अगर अच्छा कार्य होता है तो मोदी सरकार की देन है ऐसा उनके समर्थक ( जो अब भक्त की श्रेणी में गिने जाते है सोशल मिडिया में ) कहते हुए मैदान में उतर जाते है अगर कुछ गलत हुआ तो कांग्रेस राज के कारणों को गिनाते हुए मैदान में जम जाते है . सोशल मिडिया में कांग्रेस का पडला हल्का ही है सोशल मिडिया में ऐसे कई पोस्ट ये दर्शाते है कि कांग्रेस को चमचो की नजर से उपाधि से अलंकृत किया जाता है और मोदी समर्थक भक्त की श्रेणी में आते है .
कुछ वर्ष पूर्व देश के तात्कालिक प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने संसद में अपने वक्तव्य में कहा था कि लोकतंत्र में आज़ादी के लगभग ५० साल में देश जिस तरह आगे बढा उसमे कांग्रेस सरकार का अहम् योगदान है . स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भी माना था कि देश तरक्की के रास्ते पर है और इसमें कांग्रेस का अहम् योगदान है . लोकतंत्र में पक्ष विपक्ष का खेल तो चलता ही रहेगा किन्तु पूर्व की सरकार को और उनके कार्यो को नकारा नहीं जा सकता . कुछ ऐसे ही उद्बोधन दिए थे भाजपा के जन्मदाता और कद्दावर , निर्विवाद नेता स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने . यही कारण है कि कांग्रेस हो या भाजपा या अन्य दल कोई भी स्व, अटल बिहारी वाजपेयी के सोंच का कभी विरोधी नहीं रहा सत्ता रही या ना रही स्व. अटल बिहारी वाजपेयी का सम्मान सभी राजनितिक दलों ने किया किन्तु क्या ऐसी स्थिति वर्तमान में है .
वर्तमान स्थिति में अगर एक आम नागरिक जिसे लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी की निति गलत है ऐसी आशंका भी व्यक्त कर देता है तो सोशल मिडिया के योद्धा जब तक उसे देश द्रोही घोषित ना कर दे तब तक चैन से नहीं बैठते चाहे इसके लिए किसी भी स्तर तक जाना पड़े . गाली गलौच आम बात हो गयी . प्रधानमंत्री दैविक पुरुष हो सकते है कई लोगो की नजर में किन्तु ये भी सत्य है कि जिसके जीवन की सुबह होती है उसके जीवन की रात भी होती है . हम सब इस दुनिया में एक निश्चित समय के लिए ही आये है परमेश्वर ने सबके लिए नियति निश्चित की है किसी की कम तो किसी की जायद . दुनिया में ऐसे कई राजनेता हुए है जो जब तक सत्ता प्रमुख रहे भगवान् की तरह पूजे गए किन्तु सत्ता के हाँथ से जाते ही स्थिति बाद से बदत्तर हो गयी .
भारत में एक समय महात्मा गाँधी को पूजने वालो की कोई कमी न थी किन्तु वर्तमान में उनके पुतले को गोली मारने की भी आजादी है . इंदिरा गांधी की ताकत और नेत्रित्व का लोहा विदेशो में भी माना जाता था किन्तु हत्या हुई उनके अंगरक्षक द्वारा ही कोई ना कोई ऐसी निति तो रही होगी जिसे आम जनता पसंद ना करती हो सत्ता का सूरज ना तो सिकंदर का हमेशा चमकता रहा ना ही सम्राट अशोक का , मुगलों की सत्ता भी अजर अमर ना रही और ना ही आधी से ज्यादा दुनिया में राज करने वाले ब्रिटेन का शासन ही सलामत रहा . सत्ता का खेल है आज जो ज्यादा रोशन करता है वही ज्यादा अंधकार का भी अहसास कराता है .
आज जिस तरह से ७० साल के भ्रष्टाचार की बात चल रही है और एक दैविक पुरुष के अवतरित की बात चल रही है क्या ये अति से अंत की और अग्रसर का नजारा तो नहीं .
भारत एक ऐसा लोकतंत्र है जिसकी जनता अति होने तक अंत का इंतजार करती है जिस तरह पश्चिम बंगाल में २५ सालो तक कम्युनिस्ट का शासन था और जब शासन गया तब अस्तित्व की लड़ाई चल रही है , दिल्ली में सालो तक भाजपा और कांग्रेस दोनों ने राज किया किन्तु आम आदमी पार्टी की आंधी में दोनों ही दल देश की राजधानी में भी अपनी पहचान बनाने की कवायद में लगे हुए ही , छत्तीसगढ़ में १५ साल रमन सरकार का ऐसा जलवा था कि कांग्रेस के पास कार्यकर्त्ता भी नहीं दिख रहे थे किन्तु भूपेश की अंधी में भाजपा ऐसी बही , जोगी कांग्रेस ऐसे उडी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी किन्तु लोकतंत्र में सूरज उगता भी तेजी से है और डूबने पर अन्धकार भी गहरा होता है .
वर्तमान में भाजपा के मुखिया और देश के प्रधानमंत्री मोदी का जादू जोरो पर है किन्तु प्रदेश स्तर पर देखे तो भाजपा अधिकतर प्रदेश में कमजोर है चाहे वो महाराष्ट्र की बात कर ले , राजस्थान की बात कर ले , पंजाब की बात कर ले , हरियाणा की बात कर ले , बंगाल की बात कर ले , उड़ीसा की बात कर ले , कर्णाटक की बात कर ले , छत्तीसगढ़ की बात कर ले , उत्तर प्रदेश की बात कर ले या अन्य राज्यों की . इन सब प्रदेशो में बिहार , मध्यप्रदेश , गोवा , कर्णाटक आदि राज्यों में भाजपा की सरकार किन परिस्थितियों में बनी ये भी बहस का मुद्दा रहा किन्तु सरकार की जो छवि है वो विरोधाभास से परिपूर्ण है किन्तु सत्ता है तो सब है कि कहावत पर सब चल रहा है .
आज अगर देश की जो हालत है उसके लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया जाता है तो साथ यह भी कहना चाहिए कि स्व. अटल बिहारी जी ने गलत ब्यान दिया था संसद में किन्तु चित भी मेरी पट भी मेरी आखिर कब तक चलेगी क्या आम जनता अपने विचार स्वतंत्रता पूर्वक भी नहीं रख सकेगी लोकतंत्र में या भारत लोकतंत्र से राजतन्त्र की ओर अग्रसर हो रहा है ?

 मै निजी तौर पर स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यो का भी कायल हूँ साथ ही देश की जटिल समस्या को  ( राम मंदिर , कश्मीर समस्या एवं वर्तमान में कोरोना संकट से उपजे स्थिति को नियंत्रण करने के और आर्थिक मजबूती के प्रयासों से प्रधानमंत्री मोदी के कार्यो को भी स्वीकार करता हूँ . कोई भी राजनेता देश में वैमनस्य फैलाना नहीं चाहता किन्तु अति विश्वासी चंद लोगो के कारण समाज में माहौल खराब होने का पुरजोर विरोध करता हूँ . इस लेख में ऐसी कोई मंशा नहीं कि किसी को तकलीफ हो किन्तु मेरा मानना है कि वर्तमान परिवेश में सभी को मिलकर ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे परिवार , समाज , शहर , प्रदेश और देश मजबूत हो नाकि आपसी मनमुटाव से समाज में अशांति का वातावरण बने .

 शौर्यपथ लेख / मैं देख रहा हूं की आज युवा बहुत बुझा बुझा सा नजर आ रहा है। ये हताशा ठीक नहीं आक्रमकता जरुरी है। उस आक्रमकता की दिशा राजनीतिक नहीं बल्कि स्वयं से जुड़े मुद्दों के लिए होना चाहिए। आक्रमकता का हमें अपने हितों व समस्याओं के ध्यानाकर्षण के लिये उपयोग करना चाहिए।
    यह आक्रामकता हम में तभी आ पाएगी जब हम उस अवसर वादियों के संदेश वाहक की भूमिका को छोड़ देंगे। और अपने जीवन की खुशियों का आधार रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोटी, कपड़ा और मकान जैसी है जरूरी बातों के संदेश वाहक बन जाऐंगे। आपको अब जनसंवाद के हर प्लेटफार्म से सिर्फ अपनी और अपनों की बात करने का संकल्प लेना होगा। राजनैतिक, नफरत फैलाती, एक दूसरे को छोटा आंकती व गैर जरुरी बातों का कैरियर बनना बंद करना होगा। अगर आपने यह बंद नहीं किया तो अततः सिर्फ हताशा हाथ लगेगी। युवाओं में हताशा अर्थात एक पूरी पीढ़ी का हार जाना होता है। जबकि युवा प्रतीक होता है प्रतिकूल परिस्थितियों से नौका को बाहर निकाल कर लाने का। तूफान के सामने चट्टान बन खड़े हो जाने का। इस भावना को जीवित रखियेगा। संपूर्ण समाज आपको बहुत आशा भरी नजरों से देख रहा है।
   चुनौती हमेशा प्रसन्नचित्त स्फूर्तिवान युवा ही दे सकता है। हताश युवा कभी भी चुनौती नहीं बन सकता। अवसरवादी यही चाहते हैं कि उनके सामने कोई चुनौती ना हो। इसलिए वह कभी नहीं चाहेंगे कि आप हताशा से बाहर आयें। इतिहास गवाह है कि नफरत की भट्ठी के ईंधन हमेशा युवा ही रहे हैं। अवसर वादियों के एजेंडे का बोझ हमाल बनकर सदा युवा ही उठाते रहे हैं। वक्त आ गया है कि जवाबदारों को यह बात समझा दी जाये कि उनने अगर आपके जीवन को सच्चा व अच्छा करने के लिये ठोस कदम नहीं उठाये तो आपकी नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।
   जिस दिन आप व्यवस्था के जवाबदारों को यह संदेश देने में सफल हो जायेंगे की आप अब उसी के साथ खड़े होंगे जो आपकी बातों के प्रति गंभीर है। तो यकीन मानिये नफरत, दूसरे को नीचा दिखाने, भारत पाकिस्तान चीन का तुलनात्मक अध्ययन करने जैसे मुद्दों को आगे कर आपका ध्यान बांटने, आपका समर्थन लेने की उनकी रणनीति में भी सार्थक परिवर्तन आ जायेगा। अब वे रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी जरुरी बातें करने लगेंगे। हमें जवाबदारों को मजबूर करना होगा है कि वे आपके लिये रोजगार, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था करें। उस दिशा में गंभीरता से सोचना शुरू करें। अगर ये तीन बातें पूरी हो गयी तो रोटी कपड़ा और मकान की व्यवस्था करने में आप स्वयं ही सक्षम हो जायेंगे। स्वामी विवेकानंद जी का यह संदेश "उठो जागो और जब तक आप अपने अंतिम ध्येय तक नहीं पहुंच जाते हो तब तक चैन मत लो" आज हर युवा को आत्म सात करने की जरुरत है। इससे निरंतर आगे बढ़ने की व परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति मिलेगी।

व्यवस्थाएं हम से ही बनती हैं। हमारे कारण ही बिगड़ती हैं। हम ही उसके बिगड़े स्वरूप सुधार सकते हैं। इस बात को गांठ बांध लीजिए।

जय हिंद ....

राजेश बिस्सा की कलम से (लेखक राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत स्वतंत्र विचारक )

शौर्यपथ / कोरोना का संक्रमण पूरी दुनिया में आतक फैला रखा है . कोरोना इलाज का कोई वेक्सिन अभी तक तैयार नहीं हुआ है . दुनिया भर के वैज्ञानिक कोशिश में लगे हुए है . कोरोना से दुनिया के ताकतवर देश अमेरिका की स्थिति बिगड़ चुकी है लगातार मौते और संकर्मित व्यक्तियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है . कोरोना से बचने का इलाज सफाई और सोशल डिस्टेंस ही है . हो सकता है कि दुनिया को अब कोरोना के साथ ही जीना पड़ सकता है .
मानव जाति परेशानियों का सामना करते हुए जिन्दगी जीने के उपाय खोज ही लेती है और यही हो रहा है वर्तमान में .
भारत जैसा विशाल देश १३० करोड़ की जनसँख्या वाले देश में वर्तमान में कोरोना मरीजो की संख्या ८० हजार के पार तो पहुँच गयी किन्तु इन विकत परिस्थिति में भी भारत जीने के तरीके निकाल ही लेता है . कोरोना के संकट से आर्थिक हानि तो हुई ही है और बेरोजगारी का आलम भी उच्च स्तर पर है किन्तु इतने नकारात्मक स्थिति में अगर सकारात्मक दृष्टी से देखा जाए तो ऐसे कई बाते हुई है संकट के इस काल में जो एक स्वप्न की तरह प्रतीत होता था किन्तु अब यतार्थ हो गया है .
क्या कभी ऐसा सोंचा गया था कि रात की जगमगाहट और रंगीन दुनिया के बैगर कई उच्च वर्ग रह सकता है किन्तु ये सत्य हो गया लोच्ज्क डाउन के लगभग दो माह हो गए पर ऐसा कोई भी मामला सामना नहीं आया जो ये कहे कि रात की रंगीनी का आनंद नहीं लेने से जिन्दगी नरक बन गयी . बिना पिज्जा के , बिना माल जाए , बिना नाईट पार्टी किये , बिना लॉन्ग ड्राइव का आनंद लिए , बिना ग्रुप पार्टी किये , बिना सन्डे पार्टी किये भी जिन्दगी चल रही है और बहुत अच्छी चल रही है . हालाँकि कोरोना संकट में भारत की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गयी किन्तु आत्म निर्भर योजना के तहत केंद्र सरकार के लाखो हजारो करोड़ के पैकेज से जिन्दगी की पटरी पर लाने की कोशिश केंद्र सरकार राज्य सरकारों की मदद से कर रही है . जिन्दगी फिर सामान्य स्थिति पर आ जाएगी .
इस कोरोना संकट में भारत की नदिया शुद्ध और साफ़ हो गयी , प्रदूषित शहरो से प्रदुषण की मानक कम हो गयी , भारतीय संस्कृति के परिचायक राम राम ( एक दुसरे का अभिवादन ) का प्रचालन फ़ैल गया , रात्री के समय होने वाले जुर्म कम हो गए , साफ़ सफाई के विशेष ध्यान से छोटी मोटी बीमारियों में कमी आ गयी , व्यक्ति अपने परिवार को समय देने लगा , घर में स्वर्ग सार्थक होने लगा , पड़ोसियों से सम्बन्ध में नजदीकिय आयी , सुबह का वातावरण स्वकक्ष लगने लगा , इंसान अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने लगा .
सोंचिये कोरोना संकट के समय कार्य की और व्यापार की जो समय सीमा तय हुई है उस तय सीमा को अगर सर्वकालिक लागू कर दिया जाए तो भारतीय संस्कृति जो दुनिया की सबसे पुराणी संस्कृति है एक बार फिर आचरण में आ जाएगी और जीवन कितना सरल हो जाएगा ...

देवेन्द्र कुमार बघेल की ख़ास रिपोर्ट
शौर्यपथ लेख / कोरोना संक्रमण के कारण पुरे देश में लॉक डाउन की घोषणा तो हो गयी किन्तु लॉक डाउन की घोषणा के बाद सरकार अपनी जिम्मेदारी का वहां करने में कई मामलो में असफल हुई . मजदूरो की भुखमरी और हिंसक घटना के सहित भूख से मौत के कई प्रकरण सामने आते गए और मामले के सामने आते ही आरोप प्रत्यारोप का दौर चलने लगा . आरोप प्रत्यारोप में ये भी भूल गए कि ऐसी घटना उन सरकारों के राज्यों में भी घटित हो रही है . हर प्रदेश से मजदुर अपने गृह नगर पहुँच रहे है और अव्यस्था के आलम में राज्य सरकारे घरती जा रही है . सभी अपने अपने दायित्व को पूरा करने का प्रचार तो कर रहे है किन्तु मजदूरो की मौते , भूखे पेट सैकड़ो किलोमीटर की यात्रा की खबरे सामने आ रही है .
    लॉक डाउन के पहले चरण तक लोगो का विश्वास सरकार पर कायम रहा , परन्तु दूसरे और तीसरे चरण के लॉक डाउन ने लोगो को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि वे अब , क्या करे ? क्योंकि मजदूरों के पास जमापूंजी खत्म हो चुकी थी ? परिवार भूख मरने की कगार पर पहुंच चुके था ? मकान मालिक लोगो को खदेड़ रहे थे या फिर उनसे किराया मांगा जा रहा था , मजदूरों को अब इस स्थिति में सीधे मौत दिखाई देने लगी थी ? और उन्होंने अपना और अपने परिवार की जान जोखिम में डाल कर जैसे बना वैसे ही पैदल घर की तरफ निकल पड़े , उन्होंने है नहीं सोचा कि उनके घर की दूरी हजारों किलोमीटर है , रास्ते में कई परेशानियों और संकटों का सामना करना पड़ेगा ? लेकिन मजदूर इन सब कि , परवाह किए बिना तप्ती धूप में सह परिवार निकल पड़े । महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास रेलवे ट्रैक पर 16 प्रवासी मजदूरों की मालगाड़ी की चपेट में आने से मौत हो गई।सभी मजदूर मध्यप्रदेश जा रहे थे। हादसा औरंगाबाद में करमाड स्टेशन के पास हुआ। घटना उस वक्त हुई, जब मजदूर रेलवे ट्रैक पर सो रहे थे। 4 घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी घटना पर दुख जताया है। मध्य प्रदेशऔर महाराष्ट्र सरकार ने मृतकों के परिजन को 5-5 लाख रु. की सहायता देने का ऐलान किया है।

मौत कब आई मजदूरों को पता ही नहीं चला ?

 रेल मंत्रालय ने बताया कि घटना बदनापुर और करनाड स्टेशन के बीच की है। यह इलाका रेलवे के परभणी-मनमाड़ सेक्शन में आता है। 8 मई दिन शुक्रवार तड़के मजदूर रेलवे ट्रैक पर सो रहे थे। मालगाड़ी के ड्राइवर ने उन्हें देख लिया था, बचाने की कोशिश भी की, पर हादसा हो गया। मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं।
ट्रेन से जाने कि तैयारी में थे मजदूर ?
   मजदूर जालना की एसआरजे स्टील फैक्ट्री में काम करते थे। औरंगाबाद से 7 मई दिन गुरुवार को मध्य प्रदेश के कुछ जिलों के लिए ट्रेन रवाना हुई थी। इसी वजह से जालना से ये मजदूर औरंगाबाद के लिए रवाना हुए। रेलवे ट्रैक के बगल में 40 किमी चलने के बाद वे करमाड के करीब थककर पटरी पर ही सो गए। औरंगाबाद ग्रामीण एसपी मोक्षदा पाटिल ने बताया,‘‘हादसे में 14 मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई। बाद में 2 और ने दम तोड़ दिया। एक की हालत गंभीर है। बचे 4 अन्य लोगों से बातचीत की जा रही है।’’ मृतक मध्य प्रदेश के शहडोल और उमरिया के हैं। सिंह गोंड (शहडोल) , निर्वेश सिंह गोंड (शहडोल) , बुद्धराज सिंह गोंड (शहडोल) , अच्छेलाल सिंह (उमरिया) , रबेंन्द्र सिंह गोंड (शहडोल) , सुरेश सिंह कौल (शहडोल) , राजबोहरम पारस सिंह (शहडोल) , धर्मेंद्र सिंह गोंड (शहडोल) , बिगेंद्र सिंह चैनसिंग (उमरिया) , प्रदीप सिंह गोंड (उमरिया) , संतोष नापित , बृजेश भैयादीन (शहडोल) , मुनीम सिंह शिवरतन सिंह, (उमरिया) , श्रीदयाल सिंह (शहडोल) , नेमशाह सिंह (उमरिया) , दीपक सिंह गौड़ (शहडोल) , जख्मी: सज्जन सिंह माखन सिंह धुर्वे (खजेरी)
अपने साथियों को खोने वाले मजदूर ने बताया- न पैसे मिल रहे थे, न पास बन पा रहा था, इसलिए पैदल ही निकल पड़े ?
लॉकडाउन के 45 दिन से ज्यादाबीत चुके थे। मजदूरी का काम भी बंद था। पैसा खत्म हो रहा था। ऐसे में महाराष्ट्र के जालना में रहने वाले 20 मजदूर पिछले कुछ दिन से घर जाना चाहते थे। इन्हें पता चला कि भुसावल या औरंगाबाद से मध्यप्रदेश के भोपाल के लिए ट्रेन मिल जाएगी। फिर क्या था सभी ने निकलने का फैसला लिया। सोचा था कि ट्रेन मिली तो ठीक नहीं तो पैदल ही घर तक का सफर किया जाएगा। सड़क पर पुलिस का पहरा था। इसलिए, ट्रेन की पटरियों का रास्ता चुना। यही, रास्ता उन्हें मौत तक ले गया। पैदल चलते-चलते औरंगाबाद में करमाड स्टेशन के पास पहुंच गए। इतना थक गए कि पटरियों पर ही लेट गए। सुबह मालगाड़ी की चपेट में आकर इनमें से 16 की मौत हो गई। इस हादसे में दोमजदूरवीरेंद्र सिंह औरसज्जन सिंह ने बतायाकी नींद टूटी तो उनके सामने उसके 16 साथियों की लाशें बिखरी हुई थीं।
ठेकेदार ने पैसा दिए बिना ही भाग गया 
    अपने साथी को खोने वाले मजदूर वीरेंद्र सिंह ने दिव्य मराठी को बताया, ‘‘ठेकेदार हमें पैसे दे पाने की स्थिति में नहीं था। वादा किया कि 7 मई को पैसे मिलेंगे। लेकिन 7 तारीख को भी पगार नहीं मिला। मध्यप्रदेश में हमारे परिवार को भी हमारी जरूरत थी। घर के लोग परेशान हो रहे थे। इसलिए हम एक हफ्ते से पास बनवाने की कोशिश में थे। दो-तीन बार कोशिश कर चुके थे, लेकिन मदद नहीं मिल पा रही थी।’’
मालगाड़ी के ड्राइवर ने हॉर्न बजाया था , लेकिन उसकी रफ्तार काफी तेज थी , फिर भी उसने ब्रेक मारने का प्रयास किया था ?
वीरेंद्र सिंह ने बताया,‘‘जब कोई रास्ता नहीं बचा तो हमने तय किया कि पटरियों के रास्ते हम सफर तय करते हैं। पहले औरंगाबाद पहुंचेंगे और वहां से आगे का रास्ता तय करेंगे। हम जालना से 7 मई दिन गुरुवार शाम 7 बजे रवाना हुए। कई किलोमीटर का रास्ता तय कर लिया। देर रात जब थक गए तो कुछ-कुछ दूरी पर हमारे साथी पटरियों पर बैठने लगे। मैंने कई साथियों से कहा कि पटरियों से दूर रहो। लेकिन जो साथी आगे निकल गए थे, वे पटरी पर लेट गए। उनकी नींद लग गई। हम पटरी से थोड़ा दूर थे, इसलिए बच गए। हमने मालगाड़ी को आते देखा। मालगाड़ी के ड्राइवर ने हॉर्न भी बजाया, लेकिन उसकी रफ्तार तेज थी। हमने आवाज दी, लेकिन तब तक सबकुछ खत्म हो चुका था। हम दौड़कर नजदीक पहुंचते तब तक मालगाड़ी गुजर चुकी थी।’’
हादसे के बाद मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने स्थानीय लोगों की सहायता से शव के टुकड़ों को इकट्ठा किया
    इस हादसे में बाल-बाल बचे और हॉस्पिटल में भर्ती सज्जन सिंह ने बताया कि हमारी आंख लग गई थी। हम इतना थक गए थे कि मालगाड़ी की आवाज ही नहीं आई। हम लोग पटरी से थोड़ा दूर थे। हमने बैग पीठ पर लाद रखा था। बैग लादे ही हम उसके सहारे टिककर सो गए। जब मालगाड़ी गुजरी तो बैग खींचते हुए ले गई। जान तो बच गई, लेकिन चोटें आईं। जो साथी बैग सहित पटरी के बीच में थे, वे नहीं बच सके।
150 रोटियां और चटनी लेकर चले थे 20 मजदूर, 16 के लिए आखिरी सफर बन गया; आंख खुली तो करीब में रोटी और दूर - दूर तक लाशें दिखीं
जालना की एक सरिया फैक्ट्री। 45 दिन पहले लॉकडाउन के चलते यह बंद हो गई। रोज कमाने-खाने वाले मजदूरों को दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गए। ज्यादातर यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश के थे। नाम की जमापूंजी थी। किसी तरह महीनाभर काम चलाया। फिर सामाजिक संगठनों और सरकार के भरोसे। पेट भरने की ये मदद दो या तीन दिन में एक बार ही नसीब हो रही थी। इस बीच एक खबर आई। पता लगा कि सरकार दूसरे राज्यों के मजदूरों को घर भेजने के लिए औरंगाबाद या भुसावल से कोई ट्रेन चलाने वाली है। जालना से औरंगाबाद की दूरी 50 किमी है। मध्य प्रदेश के 20 मजदूर रेलवे ट्रैक से सफर पर निकल पड़े। पास कुछ था तो बस, 150 रोटियां और एक टिफिन चटनी। 16 के लिए यहयात्रा, अंतिम यात्रा साबित हुई। मजदूरों ने सोचा, घर पहुंच जाएंगे। गुरुवार शाम मिलकर 150 रोटियां बनाईं। एक टिफिन में चटनी भी थी। ताकि, सूखी रोटी मुंहसे पेट तक का सफर आसानी से कर सके। कुछ देर बाद सब भुसावल के लिए निकल पड़े। सभी की उम्र 21 से 45 साल के बीच थी। कुछ शहडोल के थे तो कुछ कटनी के। औरंगाबाद जिले के करमाड तक पहुंचे तो रात गहरी हो चली थी। सोचा, खाना खाकर कुछआराम कर लिया जाए। सज्जन सिंह इसी जत्थे में शामिल थे। वो बच गए। कहते हैं, “भूख लगी थी साहब। ट्रैक पर ही बैठकर खाना खाने लगे। हमें वो साफ और सुरक्षित लगा। खाना खत्म हुआ। कुछ चाहते थे कि सफर फिर शुरू किया जाए। कुछ का दिल कर रहा था कि थोड़ा सुस्ता लिया जाए। सहमति आराम करने पर बनी। भूखे पेट को रोटी मिली थी। इसलिए, पटरी का सिरहाना और गिट्टियां भी नहीं अखरीं। सो गए। नींद खुली तो भयानक मंजर था। मेरे करीब इंटरलाल सो रहा था। उसने मुझे खींच लिया। मैं जिंदा हूं।”
इसलिए हुई गलती ?
     सज्जन आगे कहते हैं, “आंख खुली तो होश आया। देखा मेरा बैग ट्रेन में उलझकर जा रहा है। हमने सोचा था कि ट्रेनें तो बंद हैं। इसलिए, ट्रैक पर कोई गाड़ी नहीं आएगी। आसपास झाड़ियां थीं। लिहाजा, ट्रैक पर ही झपकी का ख्याल आया। ट्रेन जब रुकी तब तक तो सब खत्म हो चुका था। 16 साथियों के क्षत विक्षत शव ट्रैक पर पड़े थे। किसी को पहचान पाना मुश्किल था।” सज्जन के मुुताबिक, “ पहले तो लगा कि कोई बुरा सपना देखा है। पल भर में हकीकत पर यकीन हो गया। 20 में से चार जिंदा बचे। डर को थोड़ा दूर किया।ट्रैक से कुछ दूर बने एक घर पहुंचे। मदद मांगी। उन्होंने पानी पिलाया। फिर पुलिस को जानकारी दी।” आधे घंटे बाद पुलिस पहुंची। उसने अपना काम शुरू किया। रुंधे गले को संभालकर और भीगी आंखों को पोंछकर वीरेंद्र शांत आसमान की तरफ देखते हैं। फिर कहते हैं, “जिन लोगों के साथ कुछ घंटे पहले बैठकर रोटी खाई थी। अब उनकी लाशें मेरे सामने हैं। कुछ तो मेरे बहुत करीबी दोस्त थे। अब, क्या कहूंगा उनके घरवालों से? कैसे सामना करूंगा उनका? मेरा फोन, बैग सब गायब हैं। पीठ में चोट है। ये जख्म भर जाएगा। लेकिन, दिल में जो नासूर पैदा हो गया है, वो तो लाईलाज रहेगा। ताउम्र।” मामले की गंभीरता को देखते हुए शासन प्रशासन के द्वारा सभी मृतकों की लाशों को , स्पेशल ट्रेन के माध्यम से उनके घर तक पहुंचवाया गया , और उन्हें सहायता राशि प्रदान की गई ।

   शौर्यपथ / देशभक्ति, यह शब्द आज कल बहुत प्रचलन मे है। जिसे देखो वही देशभक्ति का गाना गा रहा है। अभी कुछ दिन पहले पूरे देश मे थाली बजा कर,दीया जलाकर देशभक्ति दिखाने की होड़ मची हुई थी। इससे खुशी भी हुई कि समस्त देशवासी देशभक्त है। लेकिन अब बारीकी से नजर डालता हूं तो देखता हूं कि एक तबका चूसी हुई हड्डियों में से भी रस निकालने में लगा हुआ है।

   कोरोना महामारी के मध्य बहुत से लोग व संगठन, गरीबो व जरूरतमंदों की अपने सामर्थ्य के अनुसार मदद कर रहे है। भूखों को खाना खिला रहे है। अनाज बांट रहे है। मास्क, दवाईयां इत्यादि बांट रहे है। एक प्रकार से देशभक्ति परिभाषित कर रहे हैं ।

    अब एक नजर डालते हैं उन काली भेड़ो व सफेदपोश लोगो पर जिन्होने आगे बढ बढ़कर खूब थाली पीटी व दीये जलाये। लेकिन अपनी मक्कारी से बाज नही आ रहे है। ये बात है उन मुनाफाखोरो, मिलावटखोरों  व भ्रष्टाचारियों की जो इस संकट की घड़ी में भी लोगो को लूटने का कोई अचसर हाथ से जाने नहीं दे रहे हैं।   मुनाफाखोर ज़रूरतमंदों की मजबूरी का फायदा उठाकर जरूरत का समान स्टाक कर कृत्रिम कमी का माहोल बनाकर बाजार में उसे कई गुना दामों पर बेच रहे है।

   यही हाल मिलावटखोरो का हैं, जो हमेशा मिलावट करते ही है, लेकिन ऐसी संकट की घड़ी मे भी मिलावट करने से बाज नहीं आ रहे है। सरकारी अधिकारी व कर्मचारी भी घूस का लोभ छोड नही पा रहे है, उन्हे हर काम मे कमीशन चाहिए। भले ही अनाज, मसालों, फल -सब्जियों,मतलब सभी आवश्यक अधिकांश वस्तुओं मे मिलावट कर रहे है। इन धन-पशुओ को हम कैसे देशभक्त कह सकते है ? जो संकट के समय भी अपने देशवासियो को लूटने से बाज नही आ रहे है।  कोरोना वायरस का खतरा हर इंसान के सर पर मंडरा रहा है। इसके बावजूद इन लोगो की पैसे की भूख समाप्त नही हो रही है। इन्हे मृत्यु का भय भी लूट-खसोट से नहीं रोक पा रहा है। 

   कोरोना ने जैसे इनको इच्छामृत्यु का वरदान दे रखा है। अब समय आ गया है इन देश द्रोहियों को बेनकाब करने का। जो देशभक्ति का चोला पहन कर अपने देशवासियो को लूटने मे कोई कसर नही छोड रहे है। आम नागरिकों की मजबूरी का फायदा उठा रहे है।  काली कमाई के यह सौदागर यह देश के घोषित दुश्मनो से भी ज्यादा घातक हैं। देश को घुन की तरह धीरे धीरे खोखला कर रहे है। रंगे सियारों को आखिर कैसे देशभक्त कहा जा सकता है। ( संजय सिंह ठाकुर  की कलम से ..)

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