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ओपिनियन /शौर्यपथ / भारत और चीन का आपसी रिश्ता एक नाजुक, गंभीर और खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है। केंद्र सरकार और देश के सामने बड़ा सवाल यही है कि गलवान घाटी में जो ताजा हिंसक झड़प हुई है, जिसमें हमारे 20 अफसर और जवान शहीद हुए, उसका किस तरह से जवाब दिया जाए? आगे की हमारी चीन-नीति क्या हो? इन सवालों का जवाब तलाशने के लिए हमें भारत-चीन संबंधों की हकीकत और पृष्ठभूमि पर गौर करना होगा।
सच्चाई यही है कि आजादी मिलने के बाद से ही चीन हमारे लिए सबसे बड़ी सामरिक चुनौती रहा है। इस सच की अनदेखी 1950 के दशक में भारत सरकार ने की। तब हमारा मानना था कि दोनों देश विकासशील हैं, इसलिए उनके हितों में समन्वय बनाया जा सकता है। मगर भारत जहां शांति के पथ पर चल रहा था, वहीं चीन ने अक्साई चिन को अपने कब्जे में ले लिया। जानकारों की मानें, तो उस वक्त बीजिंग सीमाओं को लेकर भारत से समझौता करना चाहता था, लेकिन भारतीय हुकूमत का अपनी भूमि से कोई समझौता न करना एक स्वाभाविक कदम था। सन 1962 में चीन ने भारत पर हमला बोल दिया, जिसमें हमें भारी नुकसान उठाना पड़ा। इस युद्ध के बाद भारत और चीन के संबंध सीमित हो गए। इस बीच चीन ने पाकिस्तान से अपने रिश्ते सुधारने शुरू कर दिए, ताकि इस्लामाबाद की नई दिल्ली के प्रति पारंपरिक दुश्मनी का वह फायदा उठा सके। उसने पाकिस्तान की आर्थिक-सामरिक ताकत को मजबूत किया, यहां तक कि उसके परमाणु हथियार कार्यक्रम को भी बुनियादी तौर पर सहायता पहुंचाई। आज भारत को चीन-पाकिस्तान के इसी गठजोड़ का मुकाबला करना है।
चीन-भारत युद्ध के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दो बड़ी हिंसक घटनाएं हुई हैं। पहली वारदात साल 1967 में सिक्किम में हुई, जिसमें हमारे 88 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों की जान गई। दूसरी झड़प 1975 में अरुणाचल प्रदेश में हुई थी। उसमें असम राइफल्स के जवानों पर हमला किया गया था। इसके बाद बीते 45 वर्षों में गलवान घाटी की घटना से पहले भारत और चीन के सैन्य ‘गश्ती’ दल में आपसी टकराव तो हुए, लेकिन किसी सैनिक ने जान नहीं गंवाई।
दरअसल, वर्ष 1988 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री-काल में भारत ने अपनी चीन-नीति बदली। यह तय किया गया कि बीजिंग के साथ सीमा-विवाद सुलझाने की कोशिश तो होगी, लेकिन साथ-साथ तमाम क्षेत्रों में उसके साथ आपसी सहयोग भी बढ़ाया जाएगा। तब से अब तक हर भारतीय हुकूमत ने कमोबेश इसी नीति का पालन किया है। यही कारण है कि आज भारत और चीन के आर्थिक व व्यापारिक रिश्ते काफी मजबूत व व्यापक हो गए हैं। दिक्कत यह रही कि 1988 की नीति में सीमा-विवाद सुलझाने की बात तो कही गई, लेकिन चीन ने कभी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। हालांकि, 1993 के बाद दोनों देशों ने यह तय किया था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति के लिए वे आपस में विश्वास बहाली के ठोस उपाय करेंगे। फिर भी, समय-समय पर चीन का रवैया बदलता रहा। यहां तक कि नियंत्रण रेखा को लेकर उसने अपना रुख अब तक स्पष्ट नहीं किया है। इसी वजह से वास्तविक नियंत्रण रेखा के कई स्थानों पर दोनों देशों की सोच एक-दूसरे से अलग है, और दोनों के सैन्य दल आपस में गुत्थमगुत्था हो जाते हैं।
तो क्या 1988 से चल रही हमारी चीन-नीति पर अब पुनर्विचार करने की जरूरत है? यह तभी हो सकता है, जब भारत सरकार ही नहीं, पूरी सामरिक और राजनीतिक बिरादरी में चीन की चुनौती का सामना करने के लिए दृढ़ एकजुटता बने। बेशक 1978 में अपनी अर्थव्यवस्था को खोलने के बाद चीन ने बहुत तरक्की कर ली है। उसने मैन्युफैक्चरिंग के मामले में इतनी ताकत हासिल कर ली है कि उसे ‘दुनिया की फैक्टरी’ कहा जाने लगा है। वहां न सिर्फ हर तरह के उत्पाद बनने लगे हैं, बल्कि उनकी दुनिया भर में आपूर्ति भी होने लगी है। मगर यह भी सच है कि चीन के बढ़ते दबाव के कारण और अंतरराष्ट्रीय नियमों की उसके द्वारा की जा रही अनदेखी को देखते हुए पूरी दुनिया चिंतित है और कई देशों ने आपसी सहयोग बनाना शुरू कर दिया है।
हाल के वर्षों में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने जिस तरह से आपस में रिश्ते बढ़ाए हैं, उससे भी चीन को ऐतराज है। इन चारों देशों का यह सहयोग अब सामरिक स्तर पर पहुंच गया है। हालांकि, इस चतुष्कोणीय संबंध, यानी क्वाड के साथ-साथ रूस और चीन के साथ मिलकर भारत त्रिपक्षीय बातचीत भी कर रहा है, जिसका स्पष्ट संदेश है कि नई दिल्ली अपने हितों की रक्षा के लिए हर देश से संबंध बढ़ाना चाहती है। भारत बेशक अमेरिका के करीब जाता दिख रहा है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम वाशिंगटन के पिछलग्गू बनकर बीजिंग का विरोध करने को तैयार हैं। हरेक स्वतंत्र राष्ट्र की तरह हम भी अपनी कूटनीति खुद तैयार कर रहे हैं, जिसमें अपने हितों का पूरा ध्यान रखने का प्रयास किया जा रहा है।
जाहिर है, चीन की ताजा हिंसक कार्रवाई का हमें पूरी दृढ़ता के साथ मुकाबला करना होगा। हाल की घटनाओं को देखकर यही लगता है कि चीन हर हाल में भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को कम करना चाहता है। लेकिन हमें हर तरीके से अपने मान-सम्मान की हिफाजत करनी है। इसके साथ-साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा में बदलाव लाने की बीजिंग की हरेक कोशिश को भी नाकाम करना होगा, और हमें ऐसे उपाय भी करने पड़ेंगे कि वह मई, 2020 से पहले की स्थिति में लौटने को मजबूर हो। अपनी अर्थव्यवस्था की रक्षा करते हुए हमें चीन के साथ अपने आर्थिक और व्यापारिक संबंधों की भी समीक्षा करनी होगी। इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के आह्वान पर संजीदगी से आगे बढ़ना होगा, और मैन्युफैक्र्चंरग के मामले में देश को आगे ले जाना ही होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) विवेक काटजू, पूर्व राजदूत
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / कोरोना महामारी की वजह से हुए लॉकडाउन के बाद लाखों लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। किसी को रोजगार खोने का डर तो किसी को सेहत बिगड़ने की चिंता। इस माहौल में लोगों के मन में निराशा घर करने लगी है और वो अपने जीवन के लक्ष्य और सपनों को पूरा करने में खुद को असफल महसूस कर रहे हैं। अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है तो निराशा के इस दौर में सफल होने के लिए याद रखें बस ये 5 मंत्र।
कड़ी मेहनत-
सफलता हासिल करने का पहला मंत्र है कड़ी मेहनत। याद रखें मेहनत का कभी कोई शॉर्टकर्ट नहीं होता है। अगर आप पहले ही हर कठिनाई से निपटने के लिए खुद को तैयार रखेंगे तो आपको भविष्य में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।
खुश रहें-
जीवन में वही व्यक्ति अपने सपनों को हासिल करता है जो खुद को नकारात्मक विचारों से दूर रखता है। हमेशा पॉजीटिव थिकिंग रखें। आपका खुश रहने का स्वभाव आपको जीवन में सही फैसला लेना में मदद करेगा।
फोकस बनाए रखें-
जीवन में वही व्यक्ति सफलता का स्वाद चखता है जो अपने लक्ष्य के प्रति मन को एकाग्र रखकर उसे हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करता है। असल जीवन में भी अपनी प्राथमिकताओं को फोकस रखकर उन पर काम करें।
संघर्ष करें-
जीवन में हमेशा बड़े सपने देखें और उन्हें हासिल करने के लिए एक गोल बनाएं। जब भी आपको लगे कि आप असफल हो रहे हैं तो अपने सपनों को याद करें। खुद को यह अहसास करवाएं कि आपके लिए आपके सपने पूरे करना कितना जरूरी है।
अपनी कमी को न करें नजरअंदाज-
जीवन में कभी भी कोई व्यक्ति परफेक्ट नहीं होता है। हर किसी में कोई न कोई कमी जरूर होती है। लेकिन जो व्यक्ति अपनी कमियों को पहचानकर उन्हें ही अपनी ताकत बना लेते हैं उन्हें जीवन में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।
धर्म संसार / शौर्यपथ / निर्जला एकादशी के बाद और देवशयनी एकादशी से पहले आषाढ़ माह में कृष्ण पक्ष के दौरान योगिनी एकादशी आती है। इस एकादशी पर भगवान श्री हरि की श्रद्धापूर्वक आराधना करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। इस एकादशी के व्रत का उतना ही महत्व है जितना 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने का होता है। इस व्रत के प्रभाव से किसी के दिए हुए श्राप का निवारण हो जाता है। यह एकादशी रोगों को दूर कर सुंदर रूप, गुण और यश प्रदान करती है।
यह एकादशी प्रायश्चित के लिए विशेष मानी जाती है। इस दिन श्री हरि का ध्यान करें। प्रातः काल स्नान कर सूर्य देवता को जल अर्पित करें। भगवान विष्णु को पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें। इस व्रत में जौ, गेहूं और मूंग की दाल से बना भोजन ग्रहण न करें। नमक युक्त भोजन न करें। दशमी तिथि की रात्रि में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। यह व्रत दशमी तिथि की रात्रि से शुरू होकर द्वादशी तिथि में प्रात: काल में दान कर्म के बाद संपन्न होता है। इस व्रत में रात्रि में जागरण अवश्य करना चाहिए। योगिनी एकादशी का व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत में पीपल के वृक्ष की पूजा अवश्य करें।
नजरिया /शौर्यपथ /भारत-चीन सीमा पर जो हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद नया नहीं है। तनाव पचास के दशक में ही शुरू हो गया था। जब पंचशील की बात पंडित नेहरू ने शुरू की थी, तब भी विवाद थे। तभी चीन ने 38,000 वर्ग किलोमीटर जमीन हथिया ली थी। तभी से तनातनी है। यह स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं कि यह हमारी कूटनीति और राजनीतिक विफलता है, जिसका नतीजा हम भुगत रहे हैं। जब 1950 के दशक में चीनी प्रधानमंत्री चाउ एन लाई आए थे, उनका भारत में सम्मान किया गया था। उन्होंने तब कहा था, सीमा विवाद सुलझा लेते हैं, लेकिन इस दिशा में भारत की ओर से कार्रवाई नहीं हुई। चाउ एन लाई निराश लौट गए। दोनों देशों के बीच केवल तनाव ही नहीं रहा है, 1962 में युद्ध भी हो चुका है। हम उस लड़ाई के लिए तैयार नहीं थे। उसके बाद चीन ज्यादा आक्रामक हुआ। उसके बाद से ही उसकी नीति भारत को दबाकर रखने की रही। उसने जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में भी अपनी जमीन होने का दावा किया है।
हम चीन के साथ अपनी सीमा को सुलझाने में कामयाब नहीं हो रहे हैं। जहां अभी विवाद हुआ है, वहां चीन के साथ हमारी अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं है। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को लेकर अपने-अपने दावे हैं, इसलिए आपस में तनाव घटता-बढ़ता रहता है। ताजा हिंसा पीछे हटते और कब्जा लेते हुए हुई है। चीनी सैनिक किसी जगह पर अड़ गए होंगे, उसके बाद ही तनाव बढ़ा और हिंसा हुई है। ऐसा नहीं है कि उसके बाद दोनों ओर से फार्यंरग शुरू हो गई हो। अभी धुंध है। इसे ‘फॉग ऑफ वार’ या लड़ाई का कोहरा कहते हैं। मेरा मानना है कि चीन के छह से आठ जवान मारे गए होंगे, लेकिन वह मानेगा नहीं। बहुत संभव है, दोनों ओर, कुछ मीसिंग भी हुई हो, जिसका पता कुछ समय बाद ही चलेगा। अब जिस स्तर पर तनाव चला गया है, वह जल्दी नीचे नहीं आएगा। दोनों देशों को उच्च स्तर पर रणनीतिक बातचीत बढ़ाने की पहल करनी पड़ सकती है। समाधान राजनीतिक व कूटनीतिक स्तर पर ही होगा।
चीन जो कर रहा है, उसका सीधा संबंध शी जिनपिंग से है। इससे पाकिस्तान का भी संबंध है। नेपाल ने पिछले दिनों जो किया है, उससे भी चीन का संबंध है। भारत-चीन सीमा विवाद के समाधान के लिए देर-सबेर वार्ता की मेज पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान को भी लाना पडे़गा। जहां तक युद्ध की बात है, तो यह चीन भी नहीं चाहेगा। दोनों देशों के बीच 100 अरब डॉलर का व्यापार है। युद्ध किसी के हित में नहीं है। परस्पर व्यवसाय तभी संभव है, जब तनाव सीमित रहेंगे।
अभी भारतीय सेना के मनोबल की बात करें, तो वह बहुत मजबूत है। भारतीय सैनिक 18,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर भी लड़ने में सक्षम हैं। इतनी ऊंचाई पर मुकाबला करने की क्षमता किसी और देश के सैनिकों में नहीं है। चीन भी समझता है, इस तरह की लड़ाई में अब वह भारत से पार नहीं पा सकता। भारतीय सेना बहु-प्रशिक्षित है। इसके अलावा, चीन की पीपुल लिबरेशन आर्मी को लड़ने का अनुभव नहीं है, जबकि भारत को लगातार ही लड़ना पड़ रहा है। चीन से भयभीत होने की जरूरत नहीं है। हमारी सेनाओं का मनोबल टॉप पर है। अब समय आ गया है, सैन्य बजट कम से कम पांच प्रतिशत होना चाहिए। अभी यह तीन प्रतिशत है। सेना का आधुनिकीकरण तेज कर देना चाहिए।
हमें लगता है कि चीन हमें घेर रहा है, लेकिन वास्तव में हमने उसे घेर रखा है, जिससे वह बौखलाया हुआ है। वह सोचता है कि हम अमेरिका से गठबंधन कर चुके हैं, चीन की कंपनियों को निकालना चाहते हैं। हमने ऑस्ट्रेलिया से समझौता किया है, उसके जहाजों को हम पेट्रोल देंगे। चीन को लगता है, हम उसे दक्षिणी चीनी सागर में भी घेर रहे हैं। भारतीय संसद में जब अनुच्छेद 370 को खत्म करने का फैसला लिया गया था, तब कहा गया था कि हम पीओके और कश्मीर के अपने पूरे हिस्से को हर हाल में वापस लेंगे। अब चीन को लग रहा है कि उसने अपने कब्जे वाले इलाके में जो सड़क बनाई है, वही सड़क घूमकर पाकिस्तान जा रही है, उसका क्या होगा? वह परेशान है, लेकिन पूरे तनाव के बीच हमें अपने पक्ष में समाधान निकालना होगा। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपने पड़ोसी नहीं बदल सकते।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) मोहन भंडारी, रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल
सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / भारत-चीन सीमा पर सैनिकों का शहीद होना जितना दुखद है, उतना ही चिंताजनक है। जिसकी आशंका पिछले दिनों से लगातार बन रही थी, वही हुआ। अब दोनों ही देशों को ऐसे विवाद से बचने और तनाव को आगे बढ़ने से रोकने के हरसंभव प्रयास करने चाहिए। जो भी सैनिक इस टकराव में मारे गए हैं, उनके शव गिनने की बजाय दोनों ही देशों को अपनी उन विफलताओं को गिनना चाहिए, जिनकी वजह से सीमा पर तनाव बढ़ता जा रहा है। सन 1975 के बाद पहली बार भारत-चीन सीमा पर झड़प की वजह से सैनिक शहीद हुए हैं। 45 साल से जो सामरिक समझदारी दोनों देशों के बीच बनी हुई थी, उसे घुटने टेकते देखना कुछ ही समय की बात या एक हादसा भर होना चाहिए।
जब दोनों देश गलवान घाटी में पीछे हटने पर सहमत थे, तब ऐसा क्यों हुआ? इसकी ईमानदार पड़ताल सेना और विदेश मंत्रालय के उच्चाधिकारियों को करनी चाहिए। उच्च स्तर पर अगर पहले ही पहल होती, तो शायद सीमा विवाद इस ऐतिहासिक दाग तक नहीं पहुंचता। दोनों देश 1962 की बड़ी लड़ाई के बाद 1967 और 1975 में भी सीमित झड़पें देख चुके हैं। झड़प के उस दौर में नहीं लौटना ही समझदारी है। जाहिर है, विदेश मंत्री की जिम्मेदारी सर्वाधिक बढ़ी है। काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि चीन का रवैया कैसा रहता है? चीन में ऐसे तत्व होंगे, जो 45 साल बाद हुई हिंसा पर भड़केंगे। भारत के प्रति उनका लहजा बिगडे़गा। संभव है कि भारत की ओर से भी बयानबाजी हो, लेकिन कुल मिलाकर, दोनों की समझदारी इसी में है कि आधिकारिक स्तर पर दोनों देश संयम से काम लें। भारत सरकार की आधिकारिक नीति रही है कि हमें किसी से जमीन नहीं चाहिए, हम भलमनसाहत में जमीन छोड़ने के लिए जाने जाते हैं, जमीन हड़पने के लिए नहीं। जबकि हमारे कुछ पड़ोसियों की नीति हमसे उलट है। उनकी रणनीति भी रहती है कि भारत को उलझाए रखा जाए, निश्चिंत न होने दिया जाए। भारत में अगर पूरी शांति हो जाएगी, तो यहां संपन्नता निखर उठेगी। कभी चीन की जमीन पर भारत ने दावा नहीं किया और न चीन के मामलों में कभी पड़ा है। यह बात बेशक चुभती है कि चीन के विकास में भारत की जो परोक्ष भूमिका है, उसे चीन ने कभी नहीं माना है। अब समय आ गया है कि भारत बार-बार अपनी भूमिका का एहसास कराए।
हमें सीमा पर तनाव की जड़ों को उखाड़ फेंकने की ओर बढ़ना होगा। चीन ने लगभग हरेक पड़ोसी के साथ अपने सीमा विवाद सुलझा लिए हैं, जबकि भारत के साथ लगती विशाल सीमा को वह बिजली के तार की तरह खुली रखना चाहता है। सीमा विवाद को सुलझा लेने में उसे अपना कोई हित नहीं दिखता है। यह भारत की जिम्मेदारी है कि वह चीन को बार-बार एहसास कराए। भारत एक उदार देश है। अपनी मर्जी थोपने की बीजिंग की कोशिश 1962 में भले चल गई थी, लेकिन अब नहीं चलेगी। भारत की ताकत को लगभग पूरी दुनिया मान रही है, तो चीन को भी विचार करना चाहिए। भारत का अपना विशाल आर्थिक वजूद है, जिससे चीन विशेष रूप से लाभान्वित होता रहा है। साथ ही, चीनियों को भारत में अपनी बिगड़ती छवि की भी चिंता करनी चाहिए। गलवान घाटी की झड़प से सबक लेते हुए हमें संवाद के रास्ते सहज संबंधों की ओर बढ़ना होगा।
मेलबॉक्स / शौर्यपथ / पड़ोसी देश नेपाल जिस तरह से चीन की जुबान बोल रहा है, उससे लगता है कि चीन कोई राजनीतिक चाल चलने की तैयारी कर चुका है। भारत की चेतावनी के बाद भी नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा इलाके को अपने नए नक्शे में शामिल कर लिया और उस पर राजनीतिक मुहर लगा दी। इससे लगता है कि वह पूरी तरह से भारत के साथ अपने रिश्तों को भूल चुका है। सीमा पर बेवजह का विवाद खड़ा करके वह चीन के हाथों की कठपुतली बन गया है। इस विवाद से निरंतर नेपाल और भारत के संबंध बिगड़ रहे हैं। अच्छी बात है कि भारत ने अब भी बातचीत करके मसले को सुलझाने का भरोसा दिया है। इससे नेपाल को भारत की भलमनसाहत का एहसास हो जाना चाहिए।
तनुज कुमार, मेरठ
अफवाहों को रोकें
जब हमारा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है और सरकार-प्रशासन समेत सभी संवेदनशील नागरिक अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं, तब कुछ लोग सोशल मीडिया पर अनाप-शनाप जानकारी साझा कर रहे हैं, जबकि इसके माध्यम से सरकारी अधिकारी भी आम लोगों के लिए दिशा-निर्देश जारी करते रहते हैं। दिक्कत यह है कि जागरूकता के अभाव में कई लोग इन भ्रामक जानकारियों में फंस जाते हैं। इन अराजक तत्वों पर जल्द से जल्द कार्रवाई होनी चाहिए। यह संबंधित विभाग का दायित्व है कि वह स्वत: संज्ञान लेकर उन लोगों पर कार्रवाई करे, जो गलत सूचनाएं साझा करते हैं और लोगों को भ्रमित करते हैं। आज जब देश एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है,तब सोशल मीडिया के माध्यम से हम कई अच्छे काम कर सकते हैं। एकांतवास के इस दौर में आभासी तौर पर लोगों को जोड़ना वक्त की मांग है। रिश्तों को तोड़ने की कोशिश करना अक्षम्य अपराध माना जाना चाहिए।
अभिनव त्रिपाठी
बेल्थरा रोड, बलिया
चिंता बढ़ाते हालात
अनलॉक-1 में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। माना कि अपने यहां रिकवरी रेट, यानी मरीजों के ठीक होने की दर लगातार सुधर रही है, लेकिन संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ना चिंता की बात है। यह स्थिति तब है, जब सरकार अपनी तरफ से हालात संभालने की पूरी कोशिश कर रही है। ऐसे में, नागरिकों को चाहिए कि वे कहीं ज्यादा गंभीर हो जाएं। दो गज की दूरी का हरसंभव पालन करें और बेवजह घर से बाहर न निकलें। सरकार सजग है, तो हम भी सतर्क रहें। ऐसा करने पर ही हम कोरोना-मुक्त देश बन सकते हैं।
महेश नेनावा
इंदौर, मध्य प्रदेश
खुदकुशी उपाय नहीं
बिहार के छोटे से कस्बे से ताल्लुक रखने वाले एक आम इंसान ने चांद को छू लेने जैसे सपने देखे और उसे पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। इंजीनिर्यंरग की पढ़ाई करके भारतीय फिल्म जगत में अपनी अलग पहचान बनाना और कामयाबी की बुलंदियों की ओर बढ़ना सिर्फ सुशांत सिंह राजपूत की कठिन परिश्रम का नतीजा था। अचानक उनकी खुदकुशी ने सभी को चकित कर दिया। आत्महत्या की यह खबर तथाकथित विकसित समाज की त्रासद तस्वीर को उजागर करती है। आज तमाम ऐशो-आराम होने के बाद भी मानसिक तनाव और अवसाद जैसी समस्याएं विराट हैं। यही कारण है कि आत्महत्या की खबरें अब रोजाना आने लगी हैं। मगर यह याद रखना चाहिए कि सभी के जीवन में संघर्ष का एक दौर आता है। यह कभी लंबा होता है, तो कभी छोटा। लेकिन संघर्ष के बाद ही हमें सफलता मिलती है, इसलिए जीवन के इस बदलते परिवेश में खुद को ढालना चाहिए और जीवन के हर एक पल को जीना चाहिए। यह समझना चाहिए कि हार के बाद ही जीत है।
अभिषेक सिंह, जौनपुर
शौर्यपथ / यह बेहद अफसोस की बात है कि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (चीन की सेना) की शर्मनाक हरकत में कमांडिंग अफसर सहित हमारे तीन जवान शहीद हो गए। दशकों बाद एलएसी पर ऐसी जानलेवा झड़प हुई है। हाल के वर्षों में दोनों देशों के फौजी सीमा पर धक्का-मुक्की या मारपीट ही करते रहे हैं, क्योंकि उन्हें हथियार न चलाने के निर्देश मिले हुए हैं। भारत और चीन के द्विपक्षीय समझौतों के प्रावधान भी यही हैं कि दोनों देशों के बीच बातचीत का रास्ता हमेशा खुला रहेगा और हिंसक घटनाओं पर लगाम लगाई जाएगी। मगर पिछले कुछ दिनों से लद्दाख में चीनी सेना की तरफ से हिंसक घटनाओं में तेजी आ रही थी। सोमवार-मंगलवार रात की यह घटना उसी हिंसा की अगली कड़ी है।
सवाल यह है कि हमें चीन के सैनिकों के अतिक्रमण से पीछे हटने और सीमा पर झड़प खत्म होने की गलतफहमी कैसे हो गई? साफ है, ताजा झड़पों को संभालने के निर्देश सैनिकों को अभी तक नहीं मिले हैं। पहले चीन के सैनिक कुछ मीटर तक घुसपैठ किया करते थे, लेकिन अब वे कुछ किलोमीटर तक ऐसा करने लगे हैं। इसकी बड़ी वजह यही है कि मैकमोहन रेखा पर दोनों देशों की अब तक सहमति नहीं बन सकी है। तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच बीजिंग इसे नहीं मानता, जबकि अक्साई चिन को हम अपना हिस्सा मानते हैं। फिर भी, द्विपक्षीय समझौतों के तहत सैनिक सीमा पर हर हाल में शांति बनाकर रखते रहे हैं। भारत और चीन के शीर्ष नेतृत्व यह मानते हैं कि एशिया में दोनों देशों के उभरने की पूरी संभावना है, इसलिए तनातनी से बेहतर है, आपसी रिश्तों को मधुर बनाना। लिहाजा इस जानलेवा टकराव पर चिंता करने के साथ-साथ हमें चिंतन भी करना चाहिए।
चीन की इस नई रणनीति के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सभी के तार कहीं न कहीं कोरोना वायरस से जुड़े दिखते हैं। दरअसल, महामारी ने चीन की प्रतिष्ठा को काफी चोट पहुंचाई है। एक तरफ पश्चिमी देश कोरोना को ‘वुहान वायरस’ कहने लगे हैं, तो दूसरी तरफ उन राष्ट्रों ने चीन से राहत-पैकेज की मांग की है, जहां ‘बेल्ट रोड इनीशिएटिव’ के तहत विभिन्न परियोजनाओं पर काम चल रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि उन देशों में कोरोना संक्रमण से जान-माल का अपेक्षाकृत अधिक नुकसान हुआ है। नतीजतन, उन देशों पर चीन का कर्ज बढ़ता चला गया है, और अब वे मुआवजे के लिए चीन पर दबाव बना रहे हैं। चूंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बोर्ड (जिसके मुखिया भारत के स्वास्थ्य मंत्री हैं) ने कोरोना वायरस के जन्म का सच जानने के लिए स्वतंत्र जांच कमेटी बनाई है, इसलिए चीन सीमा-विवाद को हवा देकर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। इसी रणनीति के तहत उसने पाकिस्तान को लगातार उकसाने का काम किया है और इन दिनों नेपाल के नेताओं को अपनी तरफ मिलाने की जुगत में है।
सवाल यह है कि अब हम क्या करें? 1962 की गलतियों का एक सबक यह है कि हम चीन को उसी की भाषा में जवाब दें। हमारे सैनिकों ने लद्दाख की घटना के बाद ऐसा किया भी है। खबर है कि चीन के पांच सैनिक इस झड़प में मारे गए हैं। लेकिन अभी सैन्य टकराव की ओर बढ़ना किसी के लिए भी सुखद नहीं है। अपनी-अपनी क्षमता बढ़ाने की कोशिशें सभी राष्ट्रों की रणनीति का हिस्सा होती हैं। भारत और चीन भी ऐसा करते रहे हैं। भारत की बढ़ती हैसियत के कारण ही चीन ने हमसे कई तरह के तार जोडे़ हैं। फिर चाहे वह रूस के साथ मिलकर त्रिपक्षीय गुट आरआईसी (रूस, भारत और चीन) बनाना हो, या शंघाई सहयोग संगठन में भारत को शामिल करना, या फिर ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का संगठन) को मूर्त रूप देना। इसलिए अभी भी हमें अपनी क्षमता बढ़ाने पर ही ध्यान देना चाहिए। वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास बुनियादी ढांचे का जो निर्माण-कार्य चल रहा है, उसे जारी रखना होगा। जरूरत अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने की भी है।
चीन इसलिए भी नाराज है, क्योंकि भारत और अमेरिका हाल के वर्षों में काफी करीब आए हैं। बीजिंग को लगता है कि उसके आंतरिक उथल-पुथल और मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों का भारत फायदा उठाना चाहता है। हमें उसका यह भ्रम दूर करना होगा। उसे यह एहसास दिलाना होगा कि अमेरिका या अन्य देशों से बेहतर संबंध हमारी जरूरत हैं। अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल न करना भारत की बुनियादी रणनीति रही है, और आगे भी वह इसी नीति पर अमल करता रहेगा। मगर इसके साथ-साथ हमारी अन्य जरूरतें भी हैं। एशिया में आतंकवाद का अंत भी ऐसा ही एक काम है। चीन ने कभी मध्य-पूर्व और अफगानिस्तान के आतंकी गुटों से हाथ मिलाकर एशियाई देशों को अस्थिर करने की कोशिश की थी। आज भी वह पाकिस्तान को शह देता रहता है। इसलिए यह लाजिमी है कि हम अपनी ताकत इतनी बढ़ा लें कि चीन की ऐसी हरकतों का मुंहतोड़ जवाब दे सकें या फिर वह ऐसा कोई कदम उठाने की सोच भी न सके।
श्याम सरन कमेटी ने बताया था कि चीन कई सौ किलोमीटर तक हमारी सीमा में दाखिल हो चुका है। साफ है, शांतिप्रियता को उसने हमारी कमजोरी समझा है, जिसका एक परिणाम 1962 का युद्ध भी है। लेकिन आज का भारत उस दौर से काफी आगे निकल चुका है। हिंसक झड़प होने के बाद भी हमारी मंशा उन समझौतों पर कायम रहने की है, जो द्विपक्षीय या बहुपक्षीय हुए हैं। राजनीतिक और कूटनीतिक तरीके से ही हम ऐसा कर सकेंगे। चीन को यह समझाना होगा कि सीमा पर शांति दोनों देशों के हित में है। भारत और चीन एशिया की दो बड़ी ताकतें हैं, इसलिए अगर वे आपस में उलझेंगी, तो इससे पूरे महाद्वीप में अस्थिरता फैलेगी और इसका नुकसान जाहिर तौर पर दोनों देशों को होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) शशांक, पूर्व विदेश सचिव
दुर्ग / शौर्यपथ / माननीय कार्यपालक अध्यक्ष छ.ग. राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर के निर्देश एवं माननीय रामजीवन देवांगन कार्यवाहक जिला न्यायाधीश/अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग के मार्गदर्शन पर जिला कोर्ट में सुनवाई के दौरान सोशल डिस्टेसिं को दृष्टिगत रखते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण न्याय सदन दुर्ग में ई-फाईलिंग संपर्क कांति सहायता केन्द्र का शुभारंभ किया गया है। इस सहायता केन्द्र के माध्यम से अधिवक्ता प्रकरण के सभी दस्तावेज ऑनलाईन जमा कर सकते है। दस्तावेज संबंधित कोर्ट को उपलब्ध हो जाएगा। इसके अतिरिक्त विडियों कांफ्रेसिंग के माध्यम से प्रकरण में जिरह कर सकेंगे।
कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए अधिवक्ताओं को न्यायालयीन कार्यवाही में सहयोग के तौर पर ई-फाईलिंग संपर्क क्रांति सहायता केन्द्र की शुरूवात की गई। ऐसे अधिवक्ता जिनके द्वारा एंड्राईड मोबाईल, कम्प्यूटर, स्केनर की सुविधा उपलब्ध नही है या वे उपयोग में नही लाते होगें। उनके सुविधा के लिए यह व्यवस्था की गई है। सहायता केन्द्र में तृतीय क्षेणी कर्मचारी प्रशांत दिल्लेवार, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी अशोक यादव तथा पैरालीगल वॉलिटियर डुलेश्वर मटियारा को नामित किया गया है।
ई-फाईलिंग संपर्क क्रांति सहायता केन्द्र के संबंध में प्रस्तुत किये जाने वाले प्रकरण, उनकी कार्यवधि के संबंध में जानकारी हरीश अवस्थी, विशेष न्यायाधीश दुर्ग के द्वारा उपस्थित अधिवक्ताओं को बताया कि ई कमेटी द्वारा मोबाईल एप तैयार किए गए जिनके माध्यम से भी जानकारी सुलभ है इस एप के इंस्टालेशन की जानकारी न होने या किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता होने पर उसके संबंध में भी सहायता ई सेवा केन्द्र से प्राप्त की जा सकती है एवं उपलब्ध स्टाफ आपको एप इंस्टालेशन में मदद करेंगे। अधिवक्ता द्गद्घद्बद्यद्बठ्ठद्द.द्गष्शह्वह्म्ह्लह्य.द्दश1.द्बठ्ठ/ष्द्द में जाकर रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं, प्रक्रिया एक बार की होगी इसके पश्चात् अधिवक्ता 24&7 अपने घर बैठे प्रकरण दावा जवाब दावा आवेदन दस्तावेज इत्यादि प्रस्तुत कर सकते है दावा जवाब दावा आवेदन पत्र तथा दस्तावेज पीडीएफ फॉर्मेट में ए4 साईज के होने आवश्यक होंगे रजिस्टेशन उपरांत अधिवक्ता को अपनी यूजर आईडी तथा पासवर्ड प्राप्त हो जाता है तथा लॉर्ड मेक ए स्पेस भी प्राप्त हो जाता है जहां वह अपने दस्तावेज तैयार कर सकते हैं सहेज के रख सकते हैं तथा पश्चात में भी प्रस्तुत कर सकते है साथ ही साथ प्रकरण से होने वाली तमाम जानकारियां स्वयं उनके इस क्लाउड स्पेस में उपलब्ध होती रहती है।
शुभारंभ में दुर्ग मे ंपदस्थ न्यायाधीश श्रीमती शुभ्रा पचोरी, श्रीमती गरिमा शर्मा, अजीत कुमार राजभानु, श्रीमती पी.पॉल, मोहन सिंह कोर्राम, परिवार न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वासनिकर, गुलाब सिंह पटेल अध्यक्ष जिला अधिवक्ता संघ दुर्ग, एवं राहूल शर्मा सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग, कर्मचारीगण, पैरालीगल वॉलिटियर उपस्थित रहे। शुभारंभ के समय सभी उपस्थिति लोगो के द्वारा सोशल डिस्टेसिंग का पालन किया।
दुर्ग / शौर्यपथ / माननीय कार्यपालक अध्यक्ष छ.ग. राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर के निर्देश एवं माननीय रामजीवन देवांगन कार्यवाहक जिला न्यायाधीश/अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग के मार्गदर्शन पर जिला कोर्ट में सुनवाई के दौरान सोशल डिस्टेसिं को दृष्टिगत रखते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण न्याय सदन दुर्ग में ई-फाईलिंग संपर्क कांति सहायता केन्द्र का शुभारंभ किया गया है। इस सहायता केन्द्र के माध्यम से अधिवक्ता प्रकरण के सभी दस्तावेज ऑनलाईन जमा कर सकते है। दस्तावेज संबंधित कोर्ट को उपलब्ध हो जाएगा। इसके अतिरिक्त विडियों कांफ्रेसिंग के माध्यम से प्रकरण में जिरह कर सकेंगे।
कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए अधिवक्ताओं को न्यायालयीन कार्यवाही में सहयोग के तौर पर ई-फाईलिंग संपर्क क्रांति सहायता केन्द्र की शुरूवात की गई। ऐसे अधिवक्ता जिनके द्वारा एंड्राईड मोबाईल, कम्प्यूटर, स्केनर की सुविधा उपलब्ध नही है या वे उपयोग में नही लाते होगें। उनके सुविधा के लिए यह व्यवस्था की गई है। सहायता केन्द्र में तृतीय क्षेणी कर्मचारी प्रशांत दिल्लेवार, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी अशोक यादव तथा पैरालीगल वॉलिटियर डुलेश्वर मटियारा को नामित किया गया है।
ई-फाईलिंग संपर्क क्रांति सहायता केन्द्र के संबंध में प्रस्तुत किये जाने वाले प्रकरण, उनकी कार्यवधि के संबंध में जानकारी हरीश अवस्थी, विशेष न्यायाधीश दुर्ग के द्वारा उपस्थित अधिवक्ताओं को बताया कि ई कमेटी द्वारा मोबाईल एप तैयार किए गए जिनके माध्यम से भी जानकारी सुलभ है इस एप के इंस्टालेशन की जानकारी न होने या किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता होने पर उसके संबंध में भी सहायता ई सेवा केन्द्र से प्राप्त की जा सकती है एवं उपलब्ध स्टाफ आपको एप इंस्टालेशन में मदद करेंगे। अधिवक्ता द्गद्घद्बद्यद्बठ्ठद्द.द्गष्शह्वह्म्ह्लह्य.द्दश1.द्बठ्ठ/ष्द्द में जाकर रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं, प्रक्रिया एक बार की होगी इसके पश्चात् अधिवक्ता 24&7 अपने घर बैठे प्रकरण दावा जवाब दावा आवेदन दस्तावेज इत्यादि प्रस्तुत कर सकते है दावा जवाब दावा आवेदन पत्र तथा दस्तावेज पीडीएफ फॉर्मेट में ए4 साईज के होने आवश्यक होंगे रजिस्टेशन उपरांत अधिवक्ता को अपनी यूजर आईडी तथा पासवर्ड प्राप्त हो जाता है तथा लॉर्ड मेक ए स्पेस भी प्राप्त हो जाता है जहां वह अपने दस्तावेज तैयार कर सकते हैं सहेज के रख सकते हैं तथा पश्चात में भी प्रस्तुत कर सकते है साथ ही साथ प्रकरण से होने वाली तमाम जानकारियां स्वयं उनके इस क्लाउड स्पेस में उपलब्ध होती रहती है।
शुभारंभ में दुर्ग मे ंपदस्थ न्यायाधीश श्रीमती शुभ्रा पचोरी, श्रीमती गरिमा शर्मा, अजीत कुमार राजभानु, श्रीमती पी.पॉल, मोहन सिंह कोर्राम, परिवार न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वासनिकर, गुलाब सिंह पटेल अध्यक्ष जिला अधिवक्ता संघ दुर्ग, एवं राहूल शर्मा सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग, कर्मचारीगण, पैरालीगल वॉलिटियर उपस्थित रहे। शुभारंभ के समय सभी उपस्थिति लोगो के द्वारा सोशल डिस्टेसिंग का पालन किया।
भिलाई / शौर्यपथ / रेलवे कर्मचारी बनकर कर केन फिन होम लिमिटेड प्रायोजक केनरा बैंक से 22 लाख रुपए का आवास ऋण प्राप्त करने वाले दोषियों के खिलाफ सुपेला पुलिस ने अपराधिक मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने बताया कि आरोपियों ने ऋण प्राप्ति के लिए छद्म नामों का प्रयोग किया है।
सुपेला थाना प्रभारी गोपाल बिष्ट ने बताया कि प्रार्थी विनायक सुखात्मे शाखा प्रबंधक केन फिन होम्स लिमिटेड ( प्रायोजक केनरा बैंक) सुपेला भिलाई ने हाउसिंग लोन के संबंध में आरोपीयों दोषपति श्रीधर, दोषपति इंदू व प्रणय साखरे के द्धारा फर्जी रजिस्ट्री दस्तावेज गलत नाम पता बता कर गृह लोन कुल राशि 22 लाख रूपये स्वीकृत कराकर आहरण कर उपयोग कर लेने के संबंध मे थाने मे एक लिखित शिकायत पत्र दिया गया है जिसकी तस्दीक जांच पर उक्त आरोपीगणों के द्धारा कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर गृह ऋण लेना पाया गया है जो अपराध धारा 419,420,467,468,471,120बी ताहि का अपराध घटित होना पाये जाने से अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना मे लिया गया है। । बैंक शाखा द्वारा माह अप्रैल वर्ष 2018 में स्वीकृत एवं वितरित एक हाउसिंग ऋण प्रकरण ((लोन खाता क्रमांक - 253201000003) में हाउसिंग ऋण नए मकान खरीदने हेतु क्रमश: एन श्रीनिवास राव एवं एन इंदु को स्वीकृत एवं वितरित किए गए एवं प्रणय साखरे द्वारा ऋण की गारंटी ली गयी। ऋण प्रकरण बैंक के सामान्य हाउसिंग ऋण योजना के तहत दिया गया है । सर्वप्रथम एन श्रीनिवास राव द्वारा हमारी शाखा में आकार खुद को रेल्वे का कर्मचारी बताया गया तथा अपने लिए हाउसिंग ऋण की बात की गई । बैंक शाखा द्वारा ऋण हेतु पात्रता होने पर स्वीकृति की बात कहने पर उन्होने अपने पात्रता संबंधी प्रमाण जैसे फोटो, सैलरी स्लिप, फार्म 16, आधार कार्ड, पैन कार्ड, रेल्वे से जारी कर्मचारी पहचान पत्र आदि प्रस्तुत किया गया। ऋण संबंधित कार्य स्थल एवं निवास स्थल का भी भौतिक परीक्षण कराया गया था। ऋण स्वीकृति से पहले बैंक द्वारा निर्धारित सूचीबद्ध वकील आशुतोष मिश्रा, मोतीबाग चौक, रायपुर से सभी प्रकरणों में विधिक रिपोर्ट 12.04.2018) तथा सूचीबद्ध मूल्यांकनकर्ता श्री मेसर्स राव एवं खान एसोसिएट, घडी चौक, रायपुर से मूल्यांकन रिपोर्ट 16.04.2018 एवं 06.07.2018 प्राप्त किया गया ।इस शाखा द्वारा बैंक के दिशा निर्देशों के अनुसार प्रक्रिया का पालन कराते हुए उपरोक्त ऋण को स्वीकृत तथा उचित दस्तावेजीकरण के उपरांत संवितरित किया गया । 07 अगस्त 2019 इसी बीच सहकर्मी मुकुंद अग्रवाल पिता किशन अग्रवाल निवासी खुर्सीपार 19/03/2020 को दैनिक हिन्दी समाचार पत्र के द्वारा यह ज्ञात हुआ कि फर्जी दस्तावेजों के द्वारा रेल्वे कर्मचारियों के नाम पर विभिन्न बैंको से धोखाधउ़ी की गई है, तथा इसमें एन श्रीनिवास राव, एन इंदु एवं प्रणय साखरे का नाम भी शामिल था । धोखाधडी की आशंका को देखते हुए शाखा प्रबन्धक द्वारा आरोपी ऋणियों के ऑफिस तथा घर के पतों पर सत्यता जानने का प्रयास किया गया । छानबीन करने पर पाया गया कि उपरोक्त ऋणी रेल्वे कर्मी का वास्तविक नाम नहीं है, उन्होने बैंक से ऋण लेने के लिए दूसरे व्यक्ति की पहचान एवं नाम पते का इस्तेमाल किया है और उनके दस्तावेजों से छेड़छाड़ कर अन्य लोगों ने बैंक ऋण प्राप्त किया है।
दुर्ग / शौर्यपथ / छत्तीसगढी संस्कृति में हर अनुष्ठान और परंपरा का उत्सवधर्मी पक्ष तो है ही, इससे भी बढकर यह अर्थतंत्र को सहेजने और बढाने के लिए प्रेरित है। ऐसे ही सबसे महत्वपूर्ण परंपरा जो ग्रामीण क्षेत्र में मनाई जाती थी, वो रोकाछेका की परंपरा है। खरीफ फसल लगाने से पूर्व सभी गौपालकों की बैठक गांव में ली जाती थी, उन्हें शपथ दिलाई जाती थी कि अपने मवेशी न छोडे, अपने गौठान में ही रखें ताकि फसल सुरक्षित रखे। यह सुंदर परंपरा धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही थी। इस परंपरा के गहरे महत्व को देखते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सभी नागरिकों से आग्रह किया कि हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सहेजें जिससे हमारे लिए आर्थिक समृद्धि का भी रास्ता खुल सके।
इस संबंध में मुख्यमंत्री की मंशानुरूप ग्रामीण क्षेत्रों में रोकाछेका की परंपरा को सहेजने एवं इसे आगे बढाने सभी सरपंचों को कहा गया है। कलेक्टर ने इस संबंध में रोकाछेका की परंपरा का जिक्र करते हुए लिखा है कि नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाडी योजना के अंतर्गत हम लोगों ने पशुधन संवर्धन के लिए गौठान बनाये हैं। चारागाह बनाये हैं। इसका उद्देश्य यह है कि मवेशी फसल खराब न करें। इस तरह सामूहिक गौठान के माध्यम से हमने ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा सिस्टम विकसित कर लिया है ताकि मवेशियों को एक ही जगह पर रखा जा सके, उनके चारे की व्यवस्था की जा सके और पशुधन संवर्धन भी हो सके। रोकाछेका इस प्रयास को दृर करने का एक अवसर हमें प्रदान करता है। कलेक्टर ने कहा कि रोकाछेका रस्म के माध्यम से सभी ग्रामीणों से शपथ दिलाएं कि वे अपने मवेशी गौठान में रखेंगे। रोकाछेका के माध्यम से अतीत में फसल की रक्षा मवेशियों से की जाती थी।
कलेक्टर का पत्र मिलने के पश्चात सभी सरपंचों ने 19 जून को आयोजित होने वाले रोकाछेका कार्यक्रम की तैयारियां शुरू कर दी हैं। ग्राम पतोरा की सरपंच श्रीमती अजिता साहू ने बताया कि रोकाछेका को बढावा देना बहुत अच्छा कार्य है। अगर हम ध्यान नहीं देंगे तो इस तरह की परंपराएं समाप्त हो जाएंगी और फसलों की सामूहिक सुरक्षा के लिए बनाया गया तंत्र भी खत्म हो जाएगा। अब एक बार सबके सामने शपथ लेने के बाद कोई भी अपने मवेशी को नहीं छोड़ पायेगा।
इसलिए दिया जा रहा है इसे बढावा
अगर एनजीजीबी योजना का सार देखें तो यह पशुधन संवर्धन और इसके माध्यम से कृषि के विकास से जुड़ा है। गौठानों में पशुओं को रखकर उनका संवर्धन तो कर ही पाते हैं इससे खडी फसल की रक्षा भी होती है। अगर रोकाछेका की बात करें तो यह एनजीजीबी के विचार को आगे बढाने का सबसे प्रमुख जरिया है। पशुधन को गौठान में सहेज लें, तो वो खडी फसल को नष्ट नहीं करेगा। पशुधन के लिए यदि चारागाह में चारा मिल जाए तो वो खडी फसल की ओर नहीं जाएगा। रोकाछेका में जो सामूहिक शपथ ली जाती है उससे सामुदायिक भावना भी दृर होती है और गांव के लोग मिलकर यह निर्णय करते हैं कि हमारे लिए फसल की सुरक्षा सबसे अहम है।
रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गड़करी को पत्र लिखकर उनसे छत्तीसगढ़ राज्य में निर्माणाधीन राष्ट्रीय राजमार्गों में निर्माण कार्यों की गति बढ़ाने और अंबिकापुर-भैसामुड़ा-वाड्रफनगर-धनगांव-बम्हनी-रेनुकुट मार्ग (छत्तीसगढ़ में लम्बाई 110 किलोमीटर) और रायगढ़-धरमजयगढ़ मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करने का आग्रह किया है। मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 149बी चांपा-कोरबा-कटघोरा मार्ग के उन्नयन एवं चौड़ीकरण कार्य की एन.एच.ए.आई. से शीघ्र स्वीकृति जारी करने का अनुरोध भी किया है। इस मार्ग के संबंध में मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा है कि इस मार्ग के लिए आपके द्वारा स्वीकृति का आश्वासन दिया गया था। यह मार्ग छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगरी कोरबा को जोड़ता है एवं इस मार्ग पर यातायात घनत्व बहुत अधिक है। मुख्यमंत्री ने इसके लिए एन.एच.ए.आई. से शीघ्र स्वीकृति जारी कराने का अनुरोध किया है।
राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 रायपुर से धमतरी मार्ग का निर्माण कार्य एन.एच.ए.आई के माध्यम से कराया जा रहा है। कार्य लगभग 2 वर्ष बंद रहने के बाद प्रारंभ किया गया है, परंतु कार्य की प्रगति अत्यंत धीमी है। उन्होंने कार्य की प्रगति बढ़ाने के लिए एन.एच.ए.आई को निर्देशित करने का आग्रह किया है। मुख्यमंत्री ने पत्र में जानकारी दी है कि राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 43 पत्थलगांव से कुनकुरी मार्ग की स्थिति बहुत ही खराब है। यह कार्य 4 वर्ष पूर्व प्रारंभ किया गया था, परंतु 2 वर्ष से अधिक समय से 25 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग का यह भाग अत्यंत खराब एवं अधूरा है। अक्टूबर माह में इस संबंध में आग्रह किया गया था, परंतु अक्टूबर से अभी तक सड़क निर्माण की प्रगति अत्यंत धीमी है एवं माह मार्च 2020 से कार्य लगभग बंद है। यह मार्ग छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासी बाहुल्य जिला जशपुर से गुजरता है एवं झारखण्ड राज्य को जोड़ता है। श्री बघेल ने इस कार्य को शीघ्र पूर्ण कराने के लिए निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है।
मुख्यमंत्री ने लिखा है कि राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 111 बिलासपुर-पतरापाली-कटघोरा मार्ग एन.एच.डी.पी. फेस-4 योजना में अनुमोदित है। बिलासपुर से पतरापाली के मध्य कार्य प्रगति पर है। परंतु पतरापाली से कटघोरा के मध्य मार्ग की हालत अत्यधिक खराब है एवं मुनगाडीह पुल निर्माणाधीन है। मुनगाडीह नाले पर क्षतिग्रस्त पुल के स्थान पर नये पुल का निर्माण एवं पतरापाली से कटघोरा मार्ग का संधारण कार्य वर्षाऋतु के पूर्व कराना अत्यंत आवश्यक है। श्री बघेल ने केन्द्रीय मंत्री से इसके लिए संबंधितों को निर्देश जारी करने का आग्रह किया है।
मुख्यमंत्री बघेल ने पत्र में उल्लेख किया है कि राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 216 रायगढ़-सारंगढ़-सरायपाली मार्ग का निर्माण कार्य मार्च 2015 में प्रारंभ किया गया था। कार्य की प्रगति प्रारंभ से ही धीमी थी। यह कार्य पांच वर्ष के बाद भी अधूरा है। इस परियोजना के अंतर्गत महानदी पर 1.50 किलोमीटर लम्बा सेतु निर्माण एवं 22 किलोमीटर कांक्रीट रोड बनाया जाना शेष है, परंतु अक्टूबर 2019 से कार्य लगभग बंद है एवं पूर्व में किए गए कार्य में आई खामियों को सुधार भी किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने उपरोक्त कार्य को शीघ्र पूर्ण कराने हेतु संबंधितों को निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है।
मुख्यमंत्री ने अंबिकापुर-वाड्रफनगर उत्तरप्रदेश सीमा तक मार्ग के संबंध में पत्र में लिखा है कि छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासी बाहुल्य जिले में अंबिकापुर-वाड्रफनगर मार्ग की लम्बाई 110 किलोमीटर है। यह मार्ग छत्तीसगढ़ राज्य के अंबिकापुर से बनारस (उत्तर प्रदेश) को जोडऩे वाला अंतर्राज्यीय महत्व का है। अंबिकापुर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 43 पर स्थित है एवं रेनुकुट राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 39 पर स्थित है एवं प्रस्तावित मार्ग पर यातायात घनत्व अधिक है। यह अंतर्राज्यीय मार्ग यातायात की दृष्टि से राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करने योग्य है। अत: अंबिकापुर-भैसामुड़ा-वाड्रफनगर-धनगांव-बम्हनी-रेनुकुट (छत्तीसगढ़ में लम्बाई 110 किलोमीटर) को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किए जाना चाहिए। इसी तरह उन्होंने रायगढ़-धरमजयगढ़ मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करने की मांग करते हुए पत्र में लिखा है कि रायगढ़-धरमजयगढ़ मार्ग की लम्बाई 72 किलोमीटर है। रायगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 200 पर स्थित है एवं धरमजयगढ़ भारतमाला योजना में सम्मिलित मार्ग बिलासपुर-उरगा-धरमजयगढ़-पत्थलगांव पर स्थित है। प्रस्तावित मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग 200 को एवं भारतमाला योजना में प्रस्तावित बिलासपुर-उरगा-पत्थलगांव मार्ग को जोडऩे वाला महत्वपूर्ण मार्ग है। इस मार्ग पर यातायात घनत्व बहुत अधिक है एवं यह मार्ग छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगरी रायगढ़ से प्रारंभ होता है। अत: रायगढ़-धरमजयगढ़ मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किए जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय मंत्री गड़करी से इन कार्यों के संबंध में शीघ्र कार्यवाही की अपेक्षा की है।
राजनांदगांव / शौर्यपथ / डोंगरगढ़ विधायक भुनेश्वर सिंह बघेल ने कार्य का सुचारू रूप से संचालन के लिए सभी विभागों में ब्लॉकवार अपने प्रतिनिधि के नियुक्ति किये जिसमे राजनांदगाँव ब्लॉक से मुख्य प्रतिनिधि ओमप्रकाश साहू, लोक निर्माण विभाग सौरभ वैष्णव, कीर्तन नागपुरे, सहकारिता बैंक व सोसायटी गिरीश साहू, उत्तम देशलहरा, सिंचाई विभाग भागवत वर्मा, गोपाल साहू, स्वास्थ्य विभाग महेश वर्मा, डा. जयनारायण साहू, शिक्षा विभाग ललित चांदत्तारे, राजेश वर्मा, महिला एवं बाल विकास विभाग हंसा सिन्हा, दामिनी साहू, राजस्व विभाग राजेन्द्र यदु, टीकम यदु, वन विभाग अखिलेश दुबे, नेहरू साहू, कृषि विभाग रतन यादव, शिवकुमार साहू, जनपद पंचायत राजनांदगांव चंद्रेश वर्मा, खनिज विभाग दिलीप वर्मा, गीतालाल वर्मा, मीडिया प्रभारी ओमप्रकाश साहू, गंगाराम वर्मा, पुलिस विभाग घुमका गन्नू वर्मा, ओमप्रकाश साहू, पुलिस विभाग चिखली सफिल खान, गंभीर साहू, पुलिस विभाग लालबाग किशोर वर्मा, बिजली विभाग दिनेश पुराणिक, मंथिर साहू, डोंगरगढ़ विकासखंड में मुख्य प्रतिनिधि मुरली वर्मा, सहकारिता बैंक व सोसायटी फत्तू वर्मा, जगदेव साहू, सिंचाई विभाग गौकरण कोशरे, राजेश सिन्हा, स्वास्थ्य विभाग मधुसूदन सिन्हा, सोहेल खान, महिला एवं बाल विकास विभाग लक्ष्मी वर्मा, आरती वर्मा, लोक निर्माण विभाग राजूलाल वर्मा, गौकरण वर्मा, राजस्व विभाग भूपेन्द्र लिल्हारे, राजेन्द्र श्रीवास, वन विभाग सुरेश सिन्हा, छबिलाल कोसा, कृषि विभाग हेमंत वर्मा, लालाराम वर्मा, जनपद पंचायत डोंगरगढ़ कमलेश्वर वर्मा, खनिज विभाग दीपक वर्मा, उधेराम वर्मा, मीडिया प्रभारी नरोत्तम कुंजाम, वेदप्रकाश राजेकर, पुलिस विभाग डोंगरगढ़ भुनेश्वर साहू, शिशुपाल भारती, पुलिस विभाग मोहारा शत्रुहन साहू, बिजली विभाग उत्तम वर्मा, प्रदीप कुमार वैद, खैरागढ़ विकासखंड मुख्य प्रतिनिधि कोमलदास साहू, सहकारिता बैंक व सोसायटी जगत सेन, रामावतार नेताम, सिंचाई विभाग लीलाधर वर्मा, आनंदी चंदेल, स्वास्थ्य विभाग गौतमचंद जैन, डा. दिनेश सारथी, शिक्षा विभाग देवेश वर्मा, प्रकाश मंडावी, महिला एवं बाल विकास विभाग आरती महोबिया, रेखा रतैने, लोक निर्माण विभाग उधोराम वैष्णव, यादव राम गंधर्व, राजस्व विभाग भीखम सिन्हा, ओम झा, वन विभाग फुदुक राम वर्मा, विक्की छत्री, कृषि विभाग ओमप्रकाश वर्मा, प्रेमलाल कवर, जनपद पंचायत खैरागढ़ देवकांत यदु, खनिज विभाग वेदराम, साबित बंजारे, मीडिया प्रभारी डाकेशवर वर्मा, श्रावण चंदेल, पुलिस विभाग निखिल श्रीवास्तव, दयालु वर्मा ए की नियुक्ति किया गया।
राजनांदगांव / शौर्यपथ / महापौर श्रीमती हेमासुदेश देशमुख ने शहर के मोहारा वार्ड पहुंची, जहां वे पूर्व निर्धारित पट्टा वितरित कार्यक्रम में शामिल हुई। सादे किंतु गरिमामय वातावरण और मेयर इन कौंसिल के प्रभारी सदस्य गणेश पवार, भागचंद साहू क्षेत्रीय पार्षद श्रीमती सरिता प्रजापति की मौजूदगी में झुग्गी- झोपड़ी में निवासरत् 34 लोगों को छत्तीसगढ़ शासन के राजीव गांधी आश्रय योजना 19 अंर्तगत अधिकार-पत्र (स्थाई पट्टा) का अपने करकमलों द्वारा वितरित किए।
इस अवसर पर श्रीमती सविता मंडावी, नीमा सोनी, कुमारी मंडावी, बुधराम, ओमप्रकाश मिश्रा और कौशल देवांगन आदि ने अपनी प्रतिक्रियाएं कुछ इस तरह से दी कि हम सभी लोग, कांग्रेस सरकार के दुख-सुख के साथी गरीबों के मसीहा छत्तीसगढ़ सरकार के लोकप्रिय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रति आभार व्यक्त करतें है, जिन्होंने हम, झोपड़ी में निवासरत् लोगों की चिंता करते हुए जमीन का अधिकार पत्र आज शहर के प्रथम नागरिक महापौर श्रीमती हेमासुदेश देशमुख ने प्रदान किया और पट्टे के माध्यम से हमारे सपनों को पूरा किया। वहीं अपने उदगार में महापौर श्रीमती हेमा सुदेश देशमुख ने कहा कि भूखे को रोटी, प्यासे को पानी और बेघर को छत और उस घर का मालिकाना हक (स्थाई पट्टा) अधिकार पत्र मिल जाये तो सोने पर सुहागा हो जाता है तथा उस इंसान का जीवन धन्य हो जाता है जो उस जमीन पर बने मकान में तो रहता तो है, मगर हमेशा एक चिंता सताए रहती है कि कहीं हमारे बने बनाए मकान को प्रशासन के द्वारा बुलडोजर चलाकर तोड़ न दे इस भय के साये में जीने के लिए मजबूर होना पड़ता था मगर आज आप लोगों के आशियाने का अधिकार पत्र सौंपतें हुए मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि आपके माध्यम से मेरा सपना पूरा हो रहा है, और हम लोग बुलडोजर चलने के भय से मुक्त हो गए।
श्रीमती देशमुख ने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार के गठन के बाद छत्तीसगढ़ की जनप्रिय भूपेश बघेल सरकार द्वारा झुग्गी-झोपड़ी में रहे-रहे लाखों लोगों की सुध लेकर गरीबों की चिंता दूर करते हुए प्रदेश भर में जमीन का अधिकार पत्र सौंपने, राजीव गांधी आश्रम योजना अंर्तगत सर्वे किया गया था, जिसका आज यह परिणाम है कि इस अधिकार पत्र के माध्यम से राज्य के संवेदनशील मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश के लाखों झुग्गी-झोपडिय़ों में निवासरत् परिवारों को नियमानुसार उस मकान का अधिकार पत्र सौंपकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी ने आपके जमीन का पट्टा देकर आपके सपनों को चार चांद लगा दिये हैं। वहीं प्रदेश सरकार ने और एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि वादें निभाने वाली छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार। इस पट्टा वितरण कार्यक्रम में प्रमुख रूप से पार्षद प्रतिनिधि अवधेश प्रजापति सहित वार्ड के नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित थे।