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रायपुर /शौर्यपथ / प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि भाजपा के 57 लाख सदस्यों, हजारों पदाधिकारीयों और 15 वर्षीय सत्ता में लाभ के पदों पर रहे लोगों को भी पीएम केयर्स फंड पर भरोसा नहीं है। छत्तीसगढ़ में भाजपा द्वारा 57 लाख कथित कार्यकर्ताओं के विशाल संगठन से, केवल 25000 कार्यकर्ताओं द्वारा पीएम केयर्स फंड में दान दीया जाना यह साबित करता है कि भाजपा के लोगों को ही प्रधानमंत्री और उनके द्वारा बनाए गए पीएम केयर्स फंड दोनों पर ही भरोसा नहीं है। यह भी महत्वपूर्ण है कि छत्तीसगढ़ के संसाधनों पर पोषित जिन 25000 कार्यकर्ताओं और छत्तीसगढ़ की जनता द्वारा निर्वाचित सांसदों द्वारा, राज्य के हित को दरकिनार कर जिस पीएम केयर्स फंड में दान किया गया है, उस पीएम केयर्स फंड से राज्य को अभी तक कोई सहायता नहीं मिली है। छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक एवं खनिज संसाधनों से संचालित उद्योगों,खदानों के सीएसआर का पैसा भी केंद्र सरकार द्वारा दबाव पूर्वक पीएम केयर्स फंड में डलवाया गया है। यह सारा धन किसी न किसी प्रकार से छत्तीसगढ़ के संसाधनों द्वारा अर्जित था, जो अब तक छत्तीसगढ़ के काम नहीं आ सका। साथ ही छत्तीसगढ़ की जनता द्वारा चुने गये 9 लोकसभा सदस्यों और 2 राज्यसभा सदस्यों सांसदों की भी प्राथमिक जिम्मेदारी अपने क्षेत्र की जनता के प्रति है, मगर इन 11 सांसदों ने दलगत राजनीति को छत्तीसगढ़ के हितों से अधिक महत्व दिया।
प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि मजदूरों को ट्रेन से लाने का किराया, क्वॉरेंटाइन सेंटर का संचालन, भोजन, उपचार सब कुछ मुख्यमंत्री सहायता कोष द्वारा की गई है। छत्तीसगढ़ के सभी जिलों को लगभग 24 करोड़ 50 लाख रू. कोरोना संक्रमण रोकथाम के लिए जारी किए जा चुके हैं। मुख्यमंत्री सहायता कोष के आय-व्यय की पूरी जानकारी पारदर्शिता के साथ जनता के सामने रखी गई है, मगर पीएम केयर्स फंड के आय व्यय की कोई भी जानकारी जनता को अब तक नहीं दी गई है। ले दे के पीएम केयर फंड के आडिट को विपक्ष दबाव के बाद मोदी सरकार ने स्वीकार किया है लेकिन यह अभी तक रहस्य बना हुआ है कि यह आडिट करेगा कौन? जनकल्याण के लिए लिए गये जनधन का सदुपयोग और पारदर्शिता अति आवश्यक है। जनता के पैसे का जनता को हिसाब देने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए, यदि आपकी नियत साफ है।
प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि भाजपा को तीन सवालों के जवाब देने चाहिये।
१.पीएम केयर्स फंड से छत्तीसगढ़ को अब तक आपदा राहत के लिए किस मद में मदद दी गई है ?
२.पीएम केयर्स फंड से छत्तीसगढ़ को कितनी राशि की मदद की गई
३. और पीएम केयर्स फंड से छत्तीसगढ़ में किसको मदद मिली है ?
प्रदेश कांग्रेस के संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि भाजपा और मोदी सरकार की आपदा राहत की पूरी सोच भूख थकान और बदहाली से पीडि़त इंसानों की मदद की नहीं बल्कि मोदी जी के चंद पूंजीपति मित्रों को मुनाफा पहुंचाने और सरकारी कंपनियां सौपने की है। छत्तीसगढ़ की जनता ने भाजपा को लोकसभा चुनाव में नौ सांसद चुन कर दिए लेकिन आपदा काल में ये नेता छत्तीसगढ़ की जनता के प्रति अपने दायित्वों से मुंह चुरा रहे है। छत्तीसगढ़ के खदानों और उद्योगों के सीएसआर फंड का पैसा भी पीएम केयर फंड में भाजपा के नेताओं के द्वारा दबाव पूर्वक डलवाया गया है। मोदी सरकार की विश्वसनीयता संदिग्ध हो चली है और पीएम केयर फंड में अब वित्तीय पारदर्शिता आवश्यक है! छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी ने प्रदेश के सीएम रिलीफ फंड के आय-व्यय का हिसाब जनता के सामने रख दिया है अब भाजपा के सांसद और नेता यह बतायें कि पीएम केयर फंड से छत्तीसगढ़ को अब तक आपदा राहत के लिए क्या मदद की गयी है? पीएम केयर फंड से छत्तीसगढ़ में कितनी मदद की गयी है? पीएम केयर फंड से छत्तीसगढ़ में किसको मदद मिली है?
भाजपा कार्यकर्ताओं का विवरण जारी करते हुये प्रदेश कांग्रेस के संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि भाजपा द्वारा 25000 कार्यकर्ताओं द्वारा पीएम केयर फंड में दान के दावों पर कांग्रेस ने तंज कसा है कि भाजपा कार्यकर्ताओं को भी पीएम केयर फंड में और मोदी जी पर विश्वास नहीं है। 300 मंडल भाजपा के जिनकी कम से कम 12 सदस्यीय कार्यकारणी होती है। भाजपा मंडल कार्यकारिणी को 3600 सदस्य पूरे प्रदेश में है। 27 जिले जिनमें 50 सदस्य जिला कार्यकारणी में है। 1350 जिला कार्यकारणी के सदस्य 300 भाजपा नेता निगम मंडल सहित अन्य लाभ के पदो में प्रति कार्यकाल रहे है। प्रदेश संगठन महिला मोर्चा, भाजयुमों और आनुषंगिक संगठन मिलाकर 10000 से अधिक पद है। 15 वर्षो में 5-5 साल के 3 कार्यकाल में भाजपा ने 30,000 से अधिक पदाधिकारियों को नेता बनाया। भाजपा सदस्य अलग है। प्रदेश संगठन के ही दावों के मुताबिक भाजपा के 57 लाख सदस्य बने थे। इन 57 लाख भाजपा कार्यकताओं में सिर्फ 25000 ने ही पीएम केयर फंड में दान किया। भाजपा तो पैसो वालों की पार्टी है। 15 साल तक पूरे प्रदेश में चले भाजपा नेताओं के कमीशनखोरी, भ्रष्टाचार, घोटालों को सबने देख।
हेल्थ /शौर्यपथ / कोरोनावायरस लॉकडाउन के कारण लोगों को सामान्य से ज्यादा सोने का समय मिल रहा है। लोग ज्यादातर समय बिस्तर में बिता रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ बासेल द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि लोग 75 फीसदी लोग रोज सामान्य से 15 मिनट ज्यादा सो रहे हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं ने कहा कि नींद की अवधि बढ़ी है लेकिन नींद की गुणवत्ता में गिरावट आई है। 435 प्रतिभागियों पर 23 मार्च से 26 अप्रैल के बीच शोध किया गया।
सोशल जेटलैग की कमी-
शोधकर्ताओं का मानना है कि नींद की गुणवत्ता खराब होने के पीछे सबसे बड़ा कारण सोशल जेटलैग है। सोशल जेटलैग उस थकान को कहते हैं जो परिवार और दोस्तों के साथ समाज को दिए जाने वाले समय के कारण होती है। लॉकडाउन से पहले लोग सप्ताहांत में ज्यादा सोते थे, लेकिन अब लॉकडाउन में सोशल जेटलैग न होने से लोग ज्यादा सो रहे हैं।
सामाजिक मेल-मिलाप कम होने के कारण लोगों के नींद की गुणवत्ता खराब हो गई है। नींद का बार-बार टूटना, सोकर उठने के बाद भी थकान महसूस होना आदि नींद की गुणवत्ता कम होने के संकेत हैं। कई प्रकार की चिंताओं और आशंकाओं के कारण लोगों की नींद में व्यवधान पैदा हो रहा है।
खाना खजाना /शौर्यपथ / आप अगर मोमोज खाने के शौकीन हैं, तो आपको पनीर टिक्का मोमोज भी ट्राई करने चाहिए। आइए, जानते हैं कैसे बनाएं पनीर टिक्का मोमोज-
सामग्री :
गूंदने के लिए
मैदा- 1 कप ’ नमक- स्वादानुसार ’ पानी- आवश्यकतानुसार
भरावन के लिए
पनीर- 100 ग्राम
फ्रेश क्रीम- 1 चम्मच
तंदूरी मसाला- 1/2 चम्मच
गरम मसाला पाउडर- 1/2 चम्मच ’ जीरा पाउडर- 1/2 चम्मच
लाल मिर्च पाउडर- 1/2 चम्मच
चाट मसाला पाउडर- 1/2 चम्मच ’ नमक- स्वादानुसार
नीबू का रस- 1/2 चम्मच
विधि :
मैदा में नमक मिलाएं और आवश्यकतानुसार पानी की मदद से गूंद कर दो घंटे के लिए ढककर छोड़ दें। पनीर टिक्का वाला भरावन तैयार करने के लिए एक बरतन में पनीर के छोटे-छोटे टुकड़े, क्रीम, तंदूरी मसाला, जीरा पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, चाट मसाला, नमक और नीबू का रस डालकर मिलाएं और 15 मिनट के लिए छोड़ दें। पैन को मध्यम आंच पर गर्म करें और उसमें पनीर टिक्का मसाला डालकर तीन से चार मिनट तक पकाएं। गैस बंद करें और पनीर टिक्का मसाला को ठंडा होने दें। मोमो स्टीमर या इडली स्टीमर में पानी गर्म करने के लिए रख दें। गूंदे हुए मैदे से छोटी-छोटी लोई काटें और उन्हें बेल लें। उनमें एक-एक चम्मच तैयार भरावन डालें और मोमो को बना लें। भरे हुए मोमो को गीले सूती कपड़े से ढक दें ताकि मोमो सूखें नहीं। मोमो स्टीमर पर हल्का-सा तेल लगाएं और उसमें मोमो को रखकर दस से 15 मिनट तक पकाएं। चटनी के साथ गर्मागर्म खिलाएं।
शौर्यपथ / पूरी दुनिया में कहर बरपा रहे कोरोनावायरस का प्रकोप भारत में भी रोज बढ़ता जा रहा है। आलम यह है कि घर-घर में कोरोना पहुंचने लगा है। ऐसे में, बुजुर्गों और श्वांस व हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर के मरीजों को इस घातक वायरस के संक्रमण से बचाने की जरूरत है क्योंकि विशेषज्ञ कहते हैं कि फेफड़ा और दिल के मरीजों को कोरोना का खतरा डबल यानी दोगुना है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि कोरोनावायरस फेफड़ा और हृदय को क्षतिग्रस्त करता है, हालांकि राहत की बात है कि भारत में अभी इस वायरस से हृदय के क्षतिग्रस्त होने के ज्यादा मामले नहीं आ रहे हैं।
पद्मभूषण डॉ. नरेश त्रेहन ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “कोविड का संक्रमण मुंह, नाक से ही होकर फेफड़े में फैलता है उसे क्षतिग्रस्त करता है। ऑक्सीजन की कमी होने से रक्तवाहिनी में रक्त का थक्का जमने लगता है।” उन्होंने कहा कि सांस लेने में तकलीफ होने और शरीर में ऑक्सीजन की कमी से लोगों की मौत हो जाती है।
ख्याति प्राप्त हृदय रोग विशेषज्ञ और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल ने भी बताया कि कोरोनावायरस फेफड़ा और हृदय को क्षतिग्रस्त करता है। हालांकि डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि भारत में अब तक हृदय क्षतिग्रस्त होने के मामले ज्यादा नहीं आ रहे हैं।
डा. अग्रवाल ने कहा, “भारत में कोरोवायरस संक्रमण के जो मामले आ रहे हैं उनमें लॉस ऑफ स्मेल या लॉस ऑफ टेस्ट या फीवर की शिकायतें ज्यादा मिल रही हैं।” मतलब कोरोना के ज्यादातर मरीजों में सूंघने व स्वाद लेने की शक्ति क्षीण होने या बुखार होने की शिकायतें ज्यादा मिल रही हैं।
आने वाले दिनों में कोरोना संक्रमण का खतरा कितना बड़ा होगा? इस सवाल पर पद्मश्री डॉ. अग्रवाल ने कहा, “घर-घर में कोविड-19 फैल चुका है और जिस तरीके से लगातार फैल रहा है, अब मामले आने वाले दिनों में बढ़ जाएगी, यह चिंता की बात नहीं है, बल्कि इससे कैसे लोगों को बचाना है इस पर ध्यान देने की जरूरत है।” उन्होंने कहा कि यह सीरियस कोविड नहीं है, इसलिए मामले बढ़ भी जाते हैं तो घबराने की जरूरत नहीं है।
डॉ. त्रेहन ने कहा कि बच्चों से ज्यादा बुजुगोर्ं को कोरोना का खतरा ज्यादा है क्योंकि बुजुगोर्ं में रोगप्रतिरोधी क्षमता कम होती है जबकि बच्चों में ज्यादा।
कोविड-19 सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोनावायरस-2 (सार्स-सीओवी-2) के संक्रमण से होने वाली बीमारी है जो सबसे पहले चीन के वुहान शहर में फैली, लेकिन अब वैश्विक महामारी का रूप ले चुकी है और पूरी दुनिया में चार लाख से ज्यादा लोगों की जान ले चुकी है और इसके संक्रमण के करीब 8० लाख मामले आ चुके हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कोरोनावायरस संक्रमण के 3,32,424 मामले आ चुके हैं जिनमें से 952० लोगों की मौत हो चुकी हैं। आंकड़ों के अनुसार, कोरोना से संक्रमित हुए 169798 लोग स्वस्थ हो चुके हैं जबकि 1531०6 सक्रिय मामले हैं जिनका उपचार चल रहा है।
कोरोनावायरस संक्रमण से रिकवरी को लेकर पूछे गए सवाल पर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक वैज्ञानिक ने बताया कि रिकवरी इस बात पर निर्भर करती है कि आबादी में किस उम्र वर्ग के लोग ज्यादा हैं, जहां उम्रदराज लोगों की आबादी ज्यादा है वहां रिकवरी की दर कम है और कम उम्र के लोगों की आबादी जहां ज्यादा है वहां रिकवरी की दर अधिक है।
आईसीएमआर के रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी), गोरखपुर के निदेशक एवं आईसीएमआर के रिसर्च मैनेजमेंट, पॉलिसी प्लानिंग एंड बायोमेडिकल कम्युनिकेशन प्रमुख डॉ. रजनीकांत श्रीवास्तव ने आईएएनएस से कहा कि कोविड-19 को लेकर घबराने की जरूरत नहीं बल्कि सावधानी बरतने की जरूरत है।
कोरोना वायरस महामारी के दौरान वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्ग नकारात्मक विचारों को दूर रखने के लिए खाना पका रहे हैं, व्यायाम कर रहे हैं और पेड़-पौधों की देखभाल जैसे कामों में समय बिता रहे हैं। कई वरिष्ठ नागरिकों का कहना है कि उन्होंने जीवन में अपने खुद के परिजनों से परेशानियां और बुरे बर्ताव को झेला है, लेकिन कोविड-19 के प्रति अत्यंत संवेदनशील होने के जोखिम से उबरने की कोशिश उनकी जिंदगी का एक और कठिन दौर साबित हो रही है।
दुनियाभर में सोमवार को वृद्धजनों से बुरे बर्ताव के खिलाफ जागरुकता का दिवस मनाया जाएगा और इस बीच वृद्धाश्रमों में रहने वाले अनेक बुजुर्ग बता रहे हैं कि किस तरह वे कोरोना वायरस के संकट से निपट रहे हैं। दिल्ली के 'मान का तिलक वृद्धाश्रम में रहने वाली निर्मला आंटी, जिस नाम से वह अपने साथियों के बीच पहचान रखती हैं, खुद को खाना पकाने में व्यस्त रखती हैं।
65 साल की निर्मला आंटी ने कहा, ''मुझे खाना बनाना पसंद है और मैं रसोई में नियमित रूप से समय बिताती हूं। अगर बहुत गर्मी नहीं पड़ रही हो तो मैं बाहर बगीचे में बैठती हूं और सब्जियां काटने में मदद करती हूं। उन्होंने कहा, ''व्यस्त रहने से वो सारी नकारात्मक बातें दूर रहती हैं जो कभी-कभी मेरे मन में आ जाती हैं।
वृद्धाश्रम में रहने वाले वरिष्ठ नागरिक सैम खुद को सेहतमंद रखने के लिए कसरत करते हैं। 75 वर्षीय बुजुर्ग ने बताया, ''मैं खुद को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए रोजाना व्यायाम और योग करता हूं। यहां रहने वाले सारे लोग सुबह मेरे साथ योग में शामिल होते हैं। उन्होंने कहा, ''हम बाद में कुछ मिनट का ध्यान करते हैं। इससे सब तरोताजा हो जाते हैं।
71 वर्ष के मदन वृद्धाश्रम की देखभाल करने वाले सहायकों के बच्चों को पढ़ाने में मदद करते हैं और उनके साथ लूडो तथा कैरम जैसे गेम खेलते हैं। गायत्री (₨67)को भजन सुनना पसंद है। वह कहती हैं, ''भजनों से मुझे बहुत शांति मिलती है और मन में कोई डर हो तो शांत हो जाता है। मैं किचन गार्डन की भी देखभाल करती हूं। हम यहां बहुत सारी सब्जियां उगाते हैं। मुझे इस बात का बहुत गर्व होता है कि हम जो चीजें उगाते हैं, उनसे खाने की कई सारी चीजें बनाते हैं।
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक वृद्धाश्रम में रहने वाली शबनम (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि उन्होंने बेकरी का काम करना शुरू किया है ताकि मन लगा रहे। उन्होंने कहा, ''मुझे इसका बचपन से शौक था। हमारी एक बेकरी थी जिसमें मैं अपनी मां के साथ केक और पेस्ट्री बनाती थी। शादी के बाद मैं यह काम नहीं कर सकी।
72 साल की शबनम ने कहा कि महामारी के बीच तनाव और बेचैनी रहने के कारण इस वक्त यह काम करना सबसे मुफीद है। उन्होंने कहा, ''लॉकडाउन के बाद से मेरे बच्चों तक ने मुझसे मुलाकात नहीं की है। इसलिए कोई उम्मीद करना बेकार है। अब मैं यहां रहने वाले दूसरे लोगों के लिए कुकीज और केक बना रही हूं। उन्होंने कहा, ''अब मुझे जन्मदिन के केक बनाने के ऑर्डर भी मिलने लगे हैं।
67 साल की फरजाना (बदला हुआ नाम) इस वक्त में अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर ध्यान दे रही हैं। उन्होंने कहा, ''मैं हर सुबह लहसुन की गांठ खाती हूं और तेज-तेज टहलती हूं। मैं अपने कॉलेस्ट्रोल के स्तर को नियंत्रित रखने के लिए केवल सेहतमंद खाना खाती हूं।
'विशिस एंड ब्लेसिंग्स एनजीओ तथा 'मान का तिलक वृद्धाश्रम की संस्थापक अध्यक्ष गीतांजलि चोपड़ा ने कहा कि यहां रहने वाले लोगों को उनकी उम्र और स्थिति के कारण वायरस का जोखिम बहुत अधिक है। उन्होंने कहा, ''कई लोग हमारे पास तब आते हैं जब बहुत कमजोर हो जाते हैं। हम नियमित देखभाल और ध्यान देकर उनकी सेहत और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की कोशिश करते हैं।
धर्म संसार / शौर्यपथ / श्रीकृष्ण अकेले ही अखाड़े में उतर जाते हैं। कंस यह देखकर मुस्कुरा देता है। एक पहलवान श्रीकृष्ण के हाथ पकड़ लेता है तो कृष्ण उसे उठाकर नीचे पटक देते हैं। यह देखकर दूसरा पहलवान कृष्ण की ओर लपकता है और उनसे युद्ध करने लगता है। यह देखकर बलरामजी भी अखाड़े में उतरकर पहलवानों से युद्ध करने लगते हैं। फिर दोनों भाई मिलकर चार में से दोनों पहलवानों को उठा-उठाकर पटकने लगते हैं। यह देखकर नंदबाबा और अक्रूरजी सहित सभी जनता में हर्ष व्याप्त हो जाता है। कृष्ण और बलराम दोनों पहलवानों का वध कर देते हैं। कंस और चाणूर ये देखकर घबरा जाते हैं।
यह देखकर दूसरे दो बचे पहलवान भी हमला कर देते हैं। दोनों भाई मिलकर उन दोनों पहलवानों का भी वध कर देते हैं। फिर कृष्ण क्रोधित होकर कंस की ओर देखते हैं। दोनों भाई मिलकर चारों का वध करके अखाड़े में छाती तानकर खड़े हो जाते हैं।
यह देखकर कंस खड़ा होकर अपने सैनिकों से कहता है देखते क्या हो। इन दोनों के टूकड़े-टूकड़े कर दो। यह सुन और देखकर अक्रूजी हरहर महादेव कहते हुए अपनी तलवार निकाल कर लहराते हैं। वहां अफरा-तफरी मच जाती है। युद्ध शुरू हो जाता है। यह देखकर श्रीकृष्ण दौड़ते हुए कंस के पास पहुंच जाते हैं और उसे ललकारते हैं।
उधर, बलरामजी चाणूर से युद्ध करने लग जाते हैं। मंच के नीचे सभी यादव वीर कंस के सैनिकों से युद्ध करते रहते हैं।
कंस कहता है अच्छा हुआ तू स्वयं ही मेरे सामने आ गया। तब श्रीकृष्ण कहते हैं हम तो सदा से तेरे सामने थे कंस, केवल तुमने हमें पहचाना नहीं। हमनें तुझे बार-बार अपनी शरण में आने का अवसर प्रदान किया। अब तेरे पापों का घड़ा भर गया है कंस। ये तेरा अंतिम समय है। अभ भी फेंक दें अपनी ये खड़ग और हमारी शरण में आ जा। हम तुझे क्षमा कर देंगे कंस। यह सुनकर कंस कहता है, मूर्ख बालक कंस मर सकता है मगर झुक नहीं सकता।
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं अच्छी बात है तो अब मृत्यु के लिए तैयार हो जाओ कंस।..इसके बाद श्रीकृष्ण पर वह खड़ग से वार करता है तो कृष्ण उसकी खड़ग पकड़कर उसके हाथ से छुड़ाकर उसे दूर फेंक देते हैं। उसका मुकुट भी गिर पड़ता है। फिर श्रीकृष्ण कंस को मारते और पटकते हुए मंच के नीचे ले जाते हैं। नीचे वे उसकी छाती पर चढ़कर उस पर मुक्के से वार करते हैं। फिर वे उसे पकड़कर उठाते हैं और मारते हुए अखाड़े के बीचोंबीच ले आते हैं। इस बीच अक्रूरजी के हाथों कंस के कई सैनिक और सैन्य प्रधान मारे जाते हैं और दूसरी ओर बलरामजी चाणूर का वध कर देते हैं।
अखाड़े में कंस को श्रीकृष्ण पटक-पटक कर मारते हैं और फिर उसे हवा में उछाल देते हैं। सभी ये दृश्य देखने लग जाते हैं और युद्ध रुक जाता है। लहूलुहान कंस उछलता हुए मंच की सीढ़ियों पर जा गिरता है। श्रीकृष्ण दौड़ते हुए वहां पहुंचते हैं और फिर अपनी दोनों मुठ्ठी बंद करके उसकी छाती पर वार करते हैं। कंस के मुंह से रक्त बहने लगता है और वह फिर श्रीकृष्ण को देखने लगता है तो उसे भगवान विष्णु नजर आते हैं और तभी वह अपने प्राण छोड़ देता है।
यह दृश्य देखकर सभी अचंभित और हर्षित हो जाते हैं। कुछ देर तक सन्नाटा छा जाता है। सभी श्रीकृष्ण की ओर हाथ जोड़े खड़े हो जाते हैं। आकाश में नृत्यगान प्रारंभ हो जाता है। फिर कंस की आत्मा निकलकर श्रीकृष्ण के चरणों में समा जाती है। देवता लोग श्रीकृष्ण पर फूल बरसाते हैं।
फिर नगर में श्रीकृष्ण का भव्य स्वागत होता है और उनकी जय जयकार होती है। सभी और गुंजने लगता है राजकुमार कृष्ण की जय, राजकुमार कृष्ण की जय। यह गुंज कारागार में बैठे देवकी और वसुदेव को सुनाई देती है तो उनके मन में प्रसन्नता छा जाती है। वे सुनते हैं कि ये गुंज हमारी नजदीक आ रही है। एकदम कारागार के नजदीक। कारागार के द्वार खुल जाते हैं सभी सैनिक कृष्ण और बलराम के समक्ष झुक जाते हैं।
श्रीकृष्ण कारागार में प्रवेश करते हैं तो सभी सैनिक उनकी जय-जयकार करते हुए भूमि पर लेट जाते हैं। सभी को आशीर्वाद देते हुए कृष्ण आगे बढ़ते हैं। देवकी और वसुदेवजी ये जयकार सुनकर अपने हृदय पर हाथ रखकर प्रसन्नचित होने लगते हैं। अंत में श्रीकृष्ण आशीर्वाद मुद्रा में उस कक्ष के द्वार पर पहुंचते हैं जहां देवकी और वसुदेवजी कैद रहते हैं। एक सैनिक उनके द्वार पर पहुंचने के पहले ही द्वार खोलता है तो देवकी और वसुदेवजी उठ खड़े होते हैं और द्वार की ओर देखने लगते हैं।
जैसे ही श्रीकृष्ण भीतर प्रवेश करते हैं तो सबसे पहले दोनों की आंखें हर्षित हो श्रीकृष्ण के चरणों पर पड़ती है और फिर उनकी नजरें ऊपर उठते हुए श्रीकृष्ण के मुखमंडल पर पहुंच जाती है।
देवकी उन्हें देखकर रोने लगती हैं। श्रीकृष्ण की आंखों में भी आंसू झलक पड़ते हैं। वसुदेवजी भी खुशी से रोने लगते हैं। दोनों के हाथ और पैरों में बंधी हथकड़ी को देखकर बलराम और श्रीकृष्ण की आंखों में से आंसू झरझर बहने लगते हैं। देवकी उनको गले लगाने के लिए दोनों हाथ फैलाती हैं लेकिन श्रीकृष्ण रोते हुए उनके चरणों में गिर पड़ते हैं और उनके चरण पकड़ लेते हैं।
फिर देवकी उन्हें उठाती है तो वे घुटनों के बल हाथ जोड़कर खड़े होते हैं और फिर नंदबाब की ओर देखते हुए उनके चरणों में लेटे जाते हैं। उधर फिर देवकी बलराम को देखकर उसे बुलाती है तो बलरामजी भी आकर उनके चरणों में गिर जाते हैं। फिर श्रीकृष्ण माता के गले लगते हैं तो उधर बलरामजी वसुदेवजी के चरणों में नमन करते हैं। बलरामजी को वसुदेवजी गले लगा लेते हैं।
फिर श्रीकृष्ण हाथ जोड़कर कहते हैं कि मेरे कारण आप दोनों ने कितने दु:ख उठाए, इसके लिए मुझे क्षमा करना मैया। मुझे क्षमा करना पिताश्री। मैं इतने वर्षों तक आपकी कोई सेवा नहीं कर सका। लोग पुत्र पाते हैं तो बाल्यावस्था से लेकर किशोरावस्था तक उसकी बाल्य लीला का आनंद प्राप्त करते हैं। परंतु मेरी विवशता ने मुझे आपके चरणों से दूर कर दिया था। इसलिए मैं तो आपको वो सुख भी न दे सका। परंतु मैं भी तो तेरे लाड़-प्यार से वंचित रह गया मैया। मेरी भी बहुत हानि हुई है। यह सुनकर वसुदेवजी कहते हैं इसका दोषी मैं हूं पुत्र। मैं ही तुझे यहां से उठाकर दूसरे स्थान पर छोड़ आया। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये तो माया की विधान था जिसके कारण आपको पुत्र सुख का भी बलिदान करना पड़ा। वास्तव में दोषी तो मैं हूं जो इतने वर्षों तक अपने पुत्र धर्म को न निभा सका। उसके लिए आप हमें क्षमा कर देना। यह सुनकर वसुदेवजी कहते हैं क्षमा कैसे, अरे पुत्र रूप में तुम्हें पाकर तो हमारा ये जीवन धन्य हो गया।
तभी वहां अक्रूरजी और नंदबाबा पहुंच जाते हैं। वसुदेवजी उन्हें देखकर प्रसन्न हो जाते हैं। नंदबाबा और वसुदेवजी दोनों गले मिलते हैं। फिर नंदबाबा देवकी मैया को प्राणाम करते हुए कहते हैं, देवकी भाभी और कुमार वसुदेव आज, आज मैं आपको आपकी दोनों धरोहरें आपको सौंप रहा हूं। मुझे केवल इतना कहना है यदि इन दोनों के लालन-पालन में हमसे कोई भूल हो गई हो तो गांववाला समझकर हमें क्षमा कर देना।
यह सुनकर वसुदेवजी की आंखों में आंसू आ जाते हैं और देवकी माता कहती हैं, ये आप क्या कह रहे हैं नंद भैया। आपने इन दोनों की रक्षा करके जो कार्य किया है उसका ऋण हम जीवनभर नहीं उतार सकते। फिर नंदबाबा कहते हैं कि आते समय यशोदा ने मुझसे कहा कि था कि देवकी भाभी से कहना कि आपके लाल कि एक धाय समझकर उसकी सारी भूलों को क्षमा कर देना। यह सुनकर वसुदेवजी फिर से रोने लगते हैं। तब देवकी कहती हैं नहीं भैया, यशोदा धाय नहीं हैं। इतिहास में युगों तक लोग यशोदा को ही कृष्ण की मां कहेंगे। वही मेरे कृष्ण की असली मां है और सदा रहेगी। यह सुनकर श्रीकृष्ण की आंखों में आंसू आ जाते हैं।
फिर अक्रूरजी सैनिकों से कहते हैं कि इनकी बेड़ियां काट दो। सैनिक वसुदेवकी बेड़ियां काटने लगते हैं। फिर बताया जाता है कि श्रीकृष्ण उस जगह पहुंचते हैं जहां कंस के पिता उग्रसेनजी कैद रहते हैं। उग्रसेन भी गले से लेकर पैरों तक हथकड़ियों से बंधे होते हैं। वे वहां पहुंचकर उग्रसेन को प्रणाम करके कहते हैं नानाश्री! मेरा प्रणाम स्वीकार करें। तब उग्रसेन पूछते हैं कौन हो तुम? तब श्रीकृष्ण कहते हैं, मैं देवकी माता और वसुदेवजी का पुत्र कृष्ण हूं। यह सुनकर उग्रसेनजी प्रसन्नता से उठते हैं और कृष्ण के चेहरे को हाथ लगाकर कहते हैं देवकी का पुत्र? मेरी देवकी का पुत्र? कृष्ण हां में गर्दन हिला देते हैं।
फिर उग्रसेनजी कहते हैं, नहीं उसका कोई भी पुत्र जीवित नहीं है। एक-एक करके कंस ने सभी को मार दिया है। तभी वहां बलराम के साथ अक्रूरजी आ जाते हैं और कहते हैं परंतु महाराज वह इसे नहीं मार सका। फिर अक्रूरजी हाथ जोड़ते हुए पास आकर कहते हैं, महाराज ये वही देवकी का आठवां पुत्र है जिसके लिए कंस को आकाशवाणी ने चेतावनी दी थी। और वह भविष्यवाणी आज सत्य हो गई। महाराज सत्य हो गई। यह सुनकर उग्रसेनजी आश्चर्य चकित होकर कहते हैं, सत्य हो गई, क्या कंस मारा गया?
तब अक्रूरजी कहते हैं हां महाराज। तब उग्रसेनजी क्रोधित होकर कहते हैं किसने मारा उसे? अक्रूरजी कहते हैं राजकुमार कृष्ण ने। उग्रसेनजी कहते हैं कृष्ण ने? क्या कृष्ण ने उसे मार दिया? अक्रूरजी कहते हैं हां महाराज। यह सुनकर उग्रसेनजी कहते हैं नहीं, ये ठीक नहीं हुआ। ये तुमने क्या किया कृष्ण, ये तुमने क्या किया। उसे मारकर तुमने मुझे मेरे अधिकार से वंचित कर दिया। उसे मृत्युदंड देने का अधिकार केवल मेरा था मेरा। ऐसे महापापी को जन्म देने का पाप मैंने किया था। उसका प्रायश्चित ये था कि उसकी हत्या मैं अपने हाथों से करता। इसी संकल्प को लेकर तो मैं इस घोर अंधकार में जीता रहा हूं। ऐसे जघन्य पापी को मारकर मुझे मुक्ति तो मिल जाती। यह कहकर वे रोने लगते हैं।
तब श्रीकृष्ण कहते हैं, नानाश्री वास्तव में वह आप ही का मनोबल था जिसकी शक्ति के कारण मैं उसे मार सका। वर्ना मैं एक छोटासा बालक, मुझमें इतनी शक्ति कहां थी नानाश्री। यह सुनकर उग्रसेनजी प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण के सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं, हां बेटा तेरी रगों में हमारे वंश का रक्त बह रहा है। इसीलिए तुने मेरा कर्तव्य पूरा किया। हमारे वंश ने कभी किसी पापी को क्षमा नहीं किया। तू भी ये बात सदा याद रखना। कंस को मारने के बाद नीति अनुसार अब उसके सिंघासन पर तेरा अधिकार है। राजा बनने के बाद यह बात हमेशा याद रखना की कंस की भांति सभी हत्यारे को कभी क्षमा न करना बेटा।
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं परंतु मैं तो उस सिंघासन पर नहीं बैठूंगा नानाश्री। उस सिंघासन पर तो आपका अधिकार है। मथुरा के राजा महाराज उग्रसेन थे, हैं और महाराज उग्रसेन ही मथुरा के राजा रहेंगे। हम तो केवल दासों की भांति आपकी सेवा करते रहेंगे महाराज। यह सुनकर उग्रसेन आंखों में आंसूभरकर प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण के सिर पर हाथ रख देते हैं। अक्रूरजी भी यह सुनकर हाथ जोड़कर रोने लगते हैं। बलरामजी भी श्रीकृष्ण को नमस्कार करके मन ही मन अपने प्रभु को धन्य मानते हैं। द्वार पर खड़े सभी सैनिक महाराज उग्रसेन की जय-जयकार करने लगते हैं।
फिर से महाराज उग्रसेन को राज सिंघासन पर बिठाकर महर्षि गर्ग मुनि उनका अभिषेक करते हैं। सभा में देवकी, वसुदेव, अक्रूजी, नंदबाबा, श्रीकृष्ण, बलराम आदि सभी जन उपस्थित रहते हैं और राज्य में उत्सव प्रारंभ हो जाता है। जय श्रीकृष्णा ।
मेरी कहानी / शौर्यपथ / वह रक्त में कुछ खोज रहे थे। दिन-रात रक्त चिंतन करते अध्ययन की गहराई में उतर गए थे। जानते थे कि रक्त में कुछ है, लेकिन बहुत गौर करने पर भी सिवाय उसकी लालिमा के कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता था। प्रयोगशाला में सैकड़ों नमूने जुटा लिए, सब रक्त एक समान लाल ही तो हैं, तो फिर ऐसा क्यों होता है कि किसी के शरीर में रक्त जाकर कामयाब हो जाता है और किसी की मौत हो जाती है। खून समान है, तो फिर क्यों होती है मौत? 32 की उम्र थी, लेकिन हजारों पोस्टमार्टम कर चुके थे, हर जगह यही खोज रहती थी कि आखिर रक्त का रहस्य क्या है? वह रह-रहकर बेचैन हो जाते, देर तक माइक्रोस्कोप के जरिए रक्त में झांकते रहते थे। उन दिनों ईसा का कैलेंडर बीसवीं सदी की दहलीज पर पहुंच चुका था। इंसानी सभ्यता को आगे बढ़ते इतनी सदियां बीत गई थीं, लेकिन लोग तब भी यही मानते थे कि इंसानों का खून दो तरह का होता है- अच्छा खून और गंदा खून। अच्छा खून निरोग रखता है, बेहतर इंसान गढ़ता है और गंदा खून बीमार कर डालता है, दुर्जन बनाता है। अच्छे लोगों में अच्छा खून और बुरे लोगों में गंदा खून रहता है, पर यह एक ऐसी सतही दलील थी, जो डॉक्टर को पचती नहीं थी। अत: यह जरूरी था कि रक्त को ढंग से पकड़कर उसका सही पता पूछा जाए।
और वो लम्हा आया, जब उन्होंने रक्त को नए नजरिये से कसौटी पर कसना शुरू किया। साल 1900 चल रहा था। जांचते-परखते एक दिन प्रयोगशाला में रक्त का राज खुलना शुरू हुआ। कमाल हो गया। ‘क’ लाल कोशिकाओं को ‘ख’ रक्त सेरम (रक्तोद) बूंदों से मिलाया, तो तत्काल रक्तकण एक-दूसरे से गुत्थमगुत्था हो गए, परस्पर दो-दो हाथ कर बैठे। रक्त के थक्के या गुच्छे बन गए, उनकी सहजता खत्म हो गई। दूसरी ओर, जब ‘क’ लाल कणों के साथ ‘ग’ सेरम बूंदों को मिलाया, तो दोनों ऐसे मिले, मानो कभी जुदा न थे।
डॉक्टर ने इस प्रयोग को दर्ज किया और सेहत की दुनिया में कायापलट के संकेत मिल गए। लेकिन साथियों ने कहा कि रक्त कणों का गुत्थमगुत्था होना किसी रोग का लक्षण है। जिससे रक्त लिया गया है, उसे कोई रोग होगा। फिर चुनौती मिली, तो डॉक्टर ने सेहतमंद लोगों के नमूने जुटाने शुरू किए। रक्त से रक्त का मेल कराने-जांचने का जुनून फिर प्रयोगशाला में नुमाया हुआ। फिर वही बात सामने आई, कुछ रक्त मिले, तो लड़कर खुद को ही बर्बाद कर गए और कुछ मिले, तो एक-दूजे के हो गए। नतीजे कड़ी-दर-कड़ी जुड़ते गए। बीमारी से थक्कों का कोई लेना-देना नहीं। जो रक्त परस्पर मिल नहीं रहे, वे लड़कर नष्ट हो जा रहे हैं। जो मिल रहे हैं, वे एक समान हैं। मतलब, सबका रक्त एक जैसा नहीं है। इन नतीजों से ही एक प्रश्न फूटा, तो फिर रक्त के कितने प्रकार हैं?
रक्त के रहस्य के पीछे जुनूनी डॉक्टर साहब फिर जुट गए। सैकड़ों नमूनों की जांच की, माइक्रोस्कोप में डाला और घंटों निहारा, परखा, दर्ज किया। सफलता पुकारने लगी, तो पूरी टीम को लगा दिया और दुनिया को बताया कि तीन तरह के रक्त समूह हैं- ए, बी और सी (बाद में सी ही ओ कहलाया)। अगले साल एक और नया रक्त समूह ‘एबी’ हाथ लग गया। डॉक्टर ने रक्त के मिलान या आदान-प्रदान का एक चार्ट बना दिया कि कौन-सा रक्त किससे मिल सकता है। रक्त का पूरा सच जान लेने का जुनून ऐसा था कि अभी भी संतोष न था, रक्त के मेल में समस्याएं आ ही रही थीं, तो समाधान के लिए एक अन्य वैज्ञानिक के साथ मिलकर आरएच फैक्टर की खोज हुई। रक्त का माइनस और प्लस तय हुआ। दुनिया शोध के स्तर पर जान गई कि आठ प्रकार के रक्त चार समूहों में होते हैं।
रोग प्रतिरक्षा विज्ञान के महारथी डॉक्टर कार्ल लेंड्सटेनर आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। पोलियो वायरस की खोज सहित अनेक आविष्कारों में उनका अतुलनीय योगदान है। अपराध विज्ञान को भी उन्होंने सशक्त किया। उन्होंने बताया कि किसी भी सूखे रक्त की जांच से भी उसका समूह व प्रकार बताया जा सकता है, जिससे पीड़ित या अपराधी की पहचान में सुविधा हो सकती है।
डॉक्टर कार्ल लगातार रक्त के रहस्य को खोलते रहे। उनके आविष्कार की वजह से आगे चलकर रक्तदान के तौर-तरीके पुख्ता हुए। ब्लड बैंक की स्थापना संभव हुई। प्रथम विश्व युद्ध जब छिड़ा, तो हजारों सैनिक कार्ल की खोज की वजह से ही रक्तदान का लाभ लेकर सकुशल घर लौटे। उन्हें 1930 में नोबेल से सम्मानित किया गया। शोध के लिए खुद को समर्पित कर देने वाले इस महान डॉक्टर के जन्मदिन 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है। बताते हैं कि जब उनकी मौत हुई, तब भी उनकी उंगलियों में एक परखनली थी। शायद दुनिया से जाते हुए भी वह रक्त में देख लेना चाहते थे और कुछ।
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय कार्ल लेंड्सटेनर नोबेल से सम्मानित डॉक्टर
नजरिया / शौर्यपथ / ‘जान है, तो जहान है’ से होते हुए हमारी लड़ाई अब ‘जान भी, जहान भी’ तक पहुंच गई है। कोविड-19 के खिलाफ इस लड़ाई में सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं एकजुट होकर जो काम कर रही हैं, वह अपने आप में प्रशंसनीय है। ऐसे में, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् यानी आईसीएमआर की भूमिका स्वत: महत्वपूर्ण हो गई है। यह संस्था अपनी पूरी शक्ति से इस प्रयास में लगी हुई है कि जल्द से जल्द इस महामारी से निजात पाई जा सके। शुरुआत में वायरस संक्रमण पूरी तरह काबू में था, मगर लॉकडाउन खुलने की वजह से मामलों में वृद्धि हो गई। लॉकडाउन का एक मकसद यह भी था कि दूरदराज के इलाकों में चिकित्सा और जांच की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। लिहाजा, अस्पतालों में बेहतर सुविधाएं मुहैया करवाई गईं, जरूरी उपकरणों और ऑक्सीजन का इंतजाम किया गया। विभिन्न इलाकों में आइसोलेशन और क्वारंटीन की व्यवस्था की गई। इन सबसे संक्रमण को रोकने में काफी मदद मिली। मगर, सच यह भी है कि कोरोना ने गांव, गरीब और मजदूरों को सबसे अधिक प्रभावित किया है, जिसके कारण प्रवासियों का जो पलायन शुरू हुआ, उसमें कामगार, श्रमिकों की संख्या काफी अधिक रही। प्रवासियों के कारण संक्रमण का दायरा और संक्रमितों की संख्या, दोनों ही बढ़े। ऐसे में, यह जरूरी था कि देश के हर शहर में कोरोना का टेस्ट हो।
हालात की गंभीरता का संज्ञान लेकर ही प्रधानमंत्री ने शीघ्र फैसला लेते हुए एक के बाद एक राहत पैकेज की न केवल घोषणा की, बल्कि उन्हें हकीकत की जमीन पर उतारा भी। केंद्र के राहत अभियान को राज्य सरकारों ने अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मसलन, उत्तर प्रदेश में, जो आबादी के हिसाब से देश का सबसे बड़ा राज्य है, एक लाख बेड तैयार कर लिए गए हैं। मार्च की शुरुआत में वहां मात्र एक लेबोरेटरी थी, जो आज बढ़कर 33 हो गई हैं और जिनको आईसीएमआर की देख-रेख में संचालित किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में अब हर रोज 15 हजार से भी अधिक टेस्ट हो रहे हैं, जिनको जून के अंत तक 20 हजार प्रतिदिन कर लिया जाएगा। मध्य प्रदेश सरकार ने भी इन योजनाओं को एक अभियान का रूप देकर कोरोना के खिलाफ जंग में अपना अहम योगदान दिया है। आज की तारीख में देश भर में 50 लाख से अधिक लोगों की कोरोना जांच हो चुकी है और अब प्रतिदिन करीब 1.40 लाख लोगों की जांच की जा रही है।
आईसीएमआर ने कोविड-19 के खिलाफ जंग लड़ने के लिए देश को मजबूत बनाया है। देश के सुदूर इलाकों तक कोरोना टेस्टिंग लैब की स्थापना की गई है। लेह में 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कोरोना टेस्टिंग लैब की स्थापना करके आईसीएमआर ने अपनी कार्य-क्षमता का बेहतर नमूना पेश किया है। इस संस्था ने देश में अब तक 877 कोरोना टेस्टिंग लैब की स्थापना की है, जिनमें वे इलाके भी शामिल हैं, जहां पर यात्रा करना भी कठिन है। हर जिले में कोरोना टेस्टिंग लैब स्थापित किए जाने के लक्ष्य को आईसीएमआर का साथ मिलने से प्रदेश स्तर पर टेस्टिंग क्षमता में विस्तार हुआ है। हालांकि, मीडिया में कुछ ऐसी खबरें भी हैं कि लोगों में आरटी-पीसीआर और एलाइजा टेस्ट को लेकर भ्रांतियां हैं। एलाइजा टेस्ट दरअसल जांच के लिए नहीं, बल्कि सर्वे के लिए है। यह सर्वे इस बात के लिए किया जा रहा है कि किसी समुदाय या किसी क्षेत्र में किस हद तक बीमारी फैल चुकी है, या 15 दिन पहले तक कितनी बीमारी फैली थी। एलाइजा टेस्ट शरीर में एंटीबॉडी की जांच करता है। जिनका यह टेस्ट पॉजिटिव होता है, उनके बारे में यह कह सकते हैं कि वह व्यक्ति बीमार हुआ था, पर उसके दूसरी बार बीमार होने की आशंका नहीं है। और जो आरटी-पीसीआर टेस्ट है, वह काफी संवेदनशील है। हमने सभी परीक्षणशालाओं को दिशा-निर्देश जारी किए हैं, और उन्हीं के हिसाब से देश भर में टेस्ट हो रहे हैं।
जाहिर है, टेस्टिंग के लिए लेबोरेटरी तैयार करने में आईसीएमआर की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। इस संस्था द्वारा प्लाज्मा थेरेपी, दवा आदि पर भी शोध किए जा रहे हैं। दवा की खोज के लिए भी हम प्रयासरत हैं। हमने वायरस को आइसोलेट करके वैक्सीन पर काम शुरू कर दिया है। बीमारी से लड़ने का काम हर स्तर पर हो रहा है और हमें लगातार इसमें सफलता भी मिल रही है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) बलराम भार्गव, महानिदेशक, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद्
सम्पादकीय लेख /शौर्यपथ / कोरोना के समय भी नकारात्मक कूटनीति के लिए मौका निकाल लेना बेहद अमानवीय और शर्मनाक है। पाकिस्तान 31 मई के बाद से ही अपने यहां स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारियों-कर्मचारियों को परेशान करने में जुटा था। सोमवार को यह सूचना भी आ गई कि दो भारतीय दूतावासकर्मी लापता हैं। जो पाकिस्तानी खुफिया बल इस्लामाबाद में भारतीयों को कभी अकेला नहीं छोड़ता, वह उनकी तलाश की कोशिश का दावा कर रहा है। पाकिस्तान का भारतीयों के प्रति जैसा निर्मम व्यवहार रहा है, उसे देखते हुए भारत को कड़ा रुख अपनाना ही चाहिए। कोरोना के समय में पहली बार नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास के प्रभारी अधिकारी को बुलाकर यथोचित आपत्ति दर्ज कराई गई है। इतिहास में हम देख चुके हैं, पाकिस्तान भारतीयों को पकड़कर उन पर झूठे आरोप मढ़ने की भी साजिश करता रहा है। नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय को ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान स्थित भारतीय दूतावास को भी सचेत रहना होगा। अपने लोगों की सुरक्षा के लिए हर संभावना को टटोलना चाहिए और आगे के लिए सावधान रहना चाहिए।
पाकिस्तान के ऐसे व्यवहार की वजह है। 31 मई को ही दो पाकिस्तानी दूतावासकर्मियों को भारत छोड़ने का फरमान सुनाया गया था। ये दोनों पाकिस्तानी एक भारतीय से दस्तावेज लेते और बदले में पैसे व फोन देते पकडे़ गए थे। पकडे़ जाने पर इन्होंने खुद को भारतीय नागरिक बताया, लेकिन पूछताछ में उनकी कलई खुल गई। उन्हें भारत छोड़ना पड़ा। कूटनीति में बदला बहुत चलता है, जिसमें पाकिस्तान शुरू से माहिर है। दोनों भारतीयों को अगर बदला लेने की मंशा से गायब किया गया है, तो इसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम है। येन-केन-प्रकारेण बदला लेने की यह प्रवृत्ति कतई सभ्य नहीं है। इसमें जो बदनामी होती है, उसकी परवाह अब पाकिस्तान को करनी चाहिए। कोई भी देश अपने यहां किसी दूसरे देश के जासूस को स्वीकार नहीं करेगा, लेकिन किसी सामान्य दूतावासकर्मी को परेशान करना कूटनीतिक धर्म या विधान के किसी पैमाने पर तार्किक या न्यायपूर्ण नहीं है। बहुत दुखद है, कोरोना के समय भी घुसपैठ की कोशिशें जारी हैं, आतंकी हमले जारी हैं। चीन की ओर से जमीन का विस्तार जारी है? नेपाल की ओर से नक्शा बदल जारी है? केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने सही कहा है कि हम चीन या पाकिस्तान से जमीन नहीं चाहते, केवल शांति चाहते हैं? वाकई भारत ने कभी किसी की जमीन पर नया या अनर्गल दावा नहीं किया, जो उसका हिस्सा है, उसी की रक्षा के बारे में वह सोचता रहता है।
हमें हर कोण से सोचना होगा। पिछले एक महीने से देश के खिलाफ कुछ पड़ोसी देशों की जो सक्रियता बढ़ी है, कहीं वह भारतीय कूटनीति में इन दिनों दिखती शिथिलता का परिणाम तो नहीं है? भारत कहीं फिर से अपने शत्रुओं का सॉफ्ट टारगेट तो नहीं बन रहा? भारत को अपनी परंपरागत अच्छाई और संवाद से ही अपनी कूटनीतिक समस्याओं का समाधान करना होगा। जैसे को तैसा की नीति ओछी होती है और उसे भलमनसाहत व अच्छाई से ही माकूल जवाब मिलता है। गले मिलना अच्छा है, पर उससे पहले सामने वाले के आस्तीन में देख लेना चाहिए। अफसोस, दक्षिण एशिया में ऐसे पड़ोसी, ऐसे नेता हैं, जो महामारी के दुखद समय में भी घात लगा सकते हैं, इसलिए सावधान रहिए।
मेलबॉक्स / शौर्यपथ / फिल्म ‘छिछोरे’ में एक पिता आत्महत्या करने की कोशिश करने वाले अपने बेटे को अवसाद से उबारते हुए कहते हैं, ‘अगर जिंदगी में सबसे अधिक कुछ जरूरी है, तो वह है, खुद की जिंदगी’। इस डायलॉग को कहने वाले रील लाइफ के अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत खुद को असली जिंदगी के अवसाद से उबार न सके। आखिर क्यों? जब हमें काफी मेहनत के बाद सफलता मिलती है, तो हम उस सफलता के इतने दीवाने हो जाते हैं कि जरा-सी असफलता भी हमें अंदर से तोड़ देती है। इस तरह की असफलता हमें अवसाद की ओर ले जाती है। संयुक्त परिवार न होना हमारे अकेलेपन पर हावी हो जाता है, जिसके कारण हम इतने परेशान हो जाते हैं कि अपनी सबसे कीमती जिंदगी भी स्वयं समाप्त कर देते हैं। अवसाद में डूबे इंसान के लिए अकेलापन जानलेवा होता है। इस समय हमें सबसे अधिक अपनों की जरूरत होती है, जो हमारा ख्याल रख सके। अपने सहयोगी कर्मचारियों के होने के बावजूद प्यार और ख्याल रखने वाले अपनों की कमी ने शायद सुशांत सिंह राजपूत को हमसे दूर कर दिया।
आनंद पाण्डेय, रोसड़ा
रक्तदान की जरूरत
रविवार को पूरी दुनिया ने रक्तदान दिवस मनाया। मगर रक्तदान का दिन तो हर रोज है, क्योंकि हर पल, किसी न किसी के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण होता है। जरूरतमंद को रक्त मिल जाए, तो उसकी जान बचाई जा सकती है। लेकिन आज की सच्चाई यह भी है कि रक्तदान करने से कई पढ़े-लिखे लोग भी डरते हैं। इससे जुड़ी कई भ्रांतियां हमारे समाज में मौजूद हैं, जिनको दूर करना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही ब्लड बैंक की उपलब्धता भी हर जगह होनी चाहिए। हर गांव-हर शहर में ब्लड बैंक का जाल होना आवश्यक है। अगर ऐसा होता है, तो रक्तदान करने लोग स्वयं आगे आ सकेंगे और आपात स्थितियों में किसी को भी खून की कमी से नहीं जूझना होगा। सिर्फ रक्तदान दिवस मनाने से कुछ नहीं होगा, रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास भी सरकारों को करना होगा।
प्रदीप कुमार दुबे, देवास, मध्य प्रदेश
बॉलीवुड पर ग्रहण
इस साल लगता है, बॉलीवुड को ग्रहण लग गया है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत दुनिया को अलविदा कह गए। अभी कुछ दिनों पहले ही इरफान खान और ऋषि कपूर ने भी हमसे विदाई ली थी। साफ है, कोरोना काल में न जाने कितनी विपदाएं आई हैं और न जाने कितना कुछ देखना बाकी है। बहरहाल, सुशांत सिंह की मौत का रहस्य शायद ही सामने आ पाए, लेकिन इससे पता चलता है कि बॉलीवुड में हंसते-मुस्कराते चेहरे के पीछे भी कई गहरे राज छिपे होते हैं। जिंदगी में सब कुछ मिलने के बाद भी कोई कलाकार जीवन से नाखुश हो सकता है। इतना सुलझा, शांत और सादगी भरा जीवन जीने वाला इंसान इतना अकेला कैसे हो गया, और दुनिया को इसका पता भी नहीं चल सका, ताकि उसका हाथ थामकर उसे तनाव से बाहर निकाल लिया जाता? ग्लैमर की दुनिया का शायद अलग ही दस्तूर है, जो आम आदमी कतई नहीं समझ सकता।
संजय कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड
लापरवाह तंत्र
कोरोना से संक्रमित लोगों की सारी उम्मीदें अस्पताल और डॉक्टरों द्वारा हो रहे इलाज पर टिकी हैं। लेकिन यह अफसोस की बात है कि अस्पतालों में मरीजों को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, वे उन्हें नहीं मिल रही हैं। वहां मरीजों की संख्या के हिसाब से बेड कम हैं और साफ-सफाई पर भी कुछ खास ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में, सवाल यह है कि क्या अस्पतालों की इस कुव्यवस्था को दूर करने के लिए सरकार कोई सख्त कदम उठाएगी? डॉक्टर, नर्सें और पैरा मेडिकल स्टाफ, जो दिन-रात कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटे हुए हैं, उनकी सेहत और सुरक्षा पर भी ध्यान देना जरूरी है।
मिताली, नई दिल्ली
ओपिनियन / शौर्यपथ /कुछ वाक्य इतिहास में दर्ज हो जाते हैं। वे किसी एक व्यक्ति द्वारा बोले जरूर जाते हैं, लेकिन दर्ज हो जाते हैं मनुष्यता के स्मृति-पटल पर और बीच-बीच में कौंध उठते हैं मानव उपलब्धियों या असफलताओं को रेखांकित करने के लिए। मित्र द्रोही ब्रूटस के खंजर के सामने खड़े जूलियस सीजर ने अविश्वास आंखों में भरकर पूछा था, तुम भी ब्रूटस! महाभारत में युद्ध के बीच संशय पैदा करने वाला युधिष्ठिर का एक वाक्य - अश्वत्थामा मारा गया... सुनकर महारथी, लेकिन उस क्षण सिर्फ एक पिता द्रोणाचार्य ने अपना धनुष जमीन पर टिका दिया। चंद्रमा पर पहला कदम रखते हुए नील आर्मस्ट्रांग के मुंह से निकला- इंसान का एक छोटा कदम, पर मानव जाति की एक लंबी छलांग।
ये और ऐसे ही कई वाक्य हमारी स्मृतियों में दर्ज हैं। ऐसा ही एक वाक्य अमेरिका के मिनेसोटा में पुलिस के घुटनों तले दबी गरदन वाले जॉर्ज फ्लॉयड ने छटपटाते हुए कहा था- आई कांट ब्रीद -मेरा दम घुट रहा है। अमेरिकी पुलिस निहत्थी लड़ाई में विरोधी को काबू में करने के लिए जमीन पर पटककर चोकहोल्ड दांव लगाती है, जिसमें उसका सिर घुटनों से दबाया जाता है।
इस बार जो सिर घुटने के नीचे था, वह एक अश्वेत का था, इसलिए दबाव सिर्फ एक मजबूत जिस्म का नहीं था, बल्कि उसमें वह सारी नस्लीय घृणा भी शरीक थी, जो किसी काले व्यक्ति के प्रति गोरों के मन में भरी होती है। तकनीक ने एक भयानक फिल्म पूरी दुनिया को दिखा दी - एक मध्यवय का अश्वेत आदमी एक हट्टे-कट्टे श्वेत पुलिसकर्मी के घुटने के नीचे दबा हुआ है और यह बताने की कोशिश कर रहा है कि वह सांस का मरीज है और उसका दम फूल रहा है। यह तो उसकी मृत्यु के बाद पता चला कि वह कोरोना से भी संक्रमित था। लोगों को याद आया कि साल भर पहले भी एक और अश्वेत व्यक्ति की इन्हीं परिस्थितियों में मृत्यु हुई थी और वह भी इसी तरह गिड़गिड़ा रहा था। लेकिन इस बार के वाक्य आई कांट ब्रीद की ध्वनियां अमेरिका, यूरोप, हर जगह गूंजने लगी।
लोगों ने समवेत स्वर में गाना शुरू कर दिया, आई कांट ब्रीद। लोगों का दम इस नस्लभेदी व्यवस्था में घुट रहा था। इस बार उनके हाथों में तख्तियां थीं, जिन पर लिखा हुआ था कि ब्लैक लाइफ मैटर्स अर्थात अश्वेतों की जिंदगी का भी मतलब है। श्वेतों के महाद्वीपों अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में भूचाल आ गया। इस भूचाल के पीछे अश्वेत और श्वेत दोनों थे, बल्कि श्वेत अधिक थे। यह आंदोलन इतिहास की ज्यादतियों का भी बदला लेने निकल पड़ा है। इसने रंगभेद के बचे-खुचे अवशेषों के साथ पुराने नस्लभेदियों, उपनिवेशवादियों और गुलामों के व्यापारियों की स्मृतियों को खुरचना शुरू कर दिया है। कई शताब्दियों से दर्प के साथ चौराहों पर खडे़ औपनिवेशिक युद्धों के नायकों, नस्लभेद के भाष्यकारों और गुलामों के सौदागरों की मूर्तियां धड़ाधड़ गिराई जाने लगी हैं।
इसी बीच एक अद्भुत दृश्य दिखा, मिनेसोटा की पुलिस ने चोकहोल्ड की मुद्रा में घुटनों के बल बैठकर अश्वेतों से माफी मांगी। इसके बाद तो घुटनों के बल बैठकर माफी मांगने की होड़ लग गई, छात्रों, प्राध्यापकों, राजनीतिज्ञों, कलाकारों, सबने घुटने टेककर माफी मांगी। अद्भुत है अमेरिकी समाज! एक तरफ तो उसका प्रभु वर्ग वियतनाम, इराक या अफगानिस्तान में नागरिकों पर बम बरसाकर उनका संहार करता है और साथ ही, उसकी जनता को दुनिया के सबसे बड़े युद्ध विरोधी आंदोलनों की इजाजत भी है। कई बार मुझे लगता है कि अगर इस तरह का आंतरिक लोकतंत्र सोवियत रूस में रहा होता, तो शायद एक खूबसूरत समाज नष्ट नहीं होता। यह एक दिलचस्प तथ्य है कि अमेरिका का सबसे अधिक विरोध माक्र्सवादी और इस्लामी विचारक करते हैं और इन दर्शनों से जुड़े ज्यादातर बड़े नामों की एक कामना यह भी होती है कि उनके या उनकी संतानों के लिए अमेरिका के दरवाजे खुल जाएं। कभी इस पर भी सोचना चाहिए कि नोम चॉमस्की अमेरिका में ही क्यों संभव हुए, सोवियत रूस में होते, तो शायद उनकी जिंदगी साइबेरिया में ही कटती। अमेरिकी समाज के अंतर्विरोधों पर काफी गंभीर समाजशास्त्रीय अध्ययन हो सकते हैं, पर इसे कैसे भूला जा सकता है कि वियतनाम युद्ध के खिलाफ सबसे बड़ी रैलियां अमेरिकी शहरों में ही आयोजित की गई थीं और दुनिया की सबसे ताकतवर सेना ने अंतत: शिकस्त कुबूल कर ली, पर जनमत के दबाव ने सैन्य-राजनीतिक नेतृत्व को परमाणु बम का इस्तेमाल नहीं करने दिया।
अमेरिकी दृश्यों से गुजरते हुए मैं भी कुछ सपने देखने की इजाजत चाहता हूं। मैं सपना देखता हूंं कि दिल्ली पुलिस 1984 के दंगों के दोषी के रूप में माफी मांगने के लिए गुरुद्वारा बंगला साहिब के सामने शर्मिंदगी से सिर झुकाए बैठी है। मेरा एक दूसरा सपना इतना ही असंभव-सा है, जिसमें उत्तर प्रदेश पुलिस अयोध्या में बाबरी विवाद में अपनी सहभागिता के लिए लखनऊ में पुलिस मुख्यालय के सामने मौन रखकर देश से क्षमा मांग रही है। पश्चिम में गुलामों के सौदागरों की मूर्तियां गिराते देखकर मैंने सपना देखा कि समानता की गारंटी देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 पर दिन-रात बहस करते-करते न्यायमूर्तियों, वकीलों को भी जागना चाहिए। देश में असमानता के लिए जिम्मेदार रहे लोगों की कुछ मूर्तियां अब तक क्या कर रही हैं?
ऐसे ही बहुत से सपने हैं, जो आजकल मैं देख रहा हूं। मुझे पता है, मेरे सपने हाल-फिलहाल तो सच होने वाले नहीं हैं। हमने खुद को जगद्गुरु घोषित कर रखा है। हमारा अतीत इतना महान है कि उस पर किसी तरह की शंका करना वर्जित है, अपने किसी किए पर क्षमा मांगने का तो सवाल ही नहीं उठता। अमेरिका के पास सिर्फ चार सौ वर्षों का इतिहास है, पर उसने इतनी क्षमता अर्जित कर ली है कि वह अपनी गलतियों पर शर्मिंदगी महसूस कर सकता है और हमारा हजारों साल पुराना ‘गौरवशाली’ अतीत हमें इससे रोकता है। पता नहीं हम कब सीख पाएंगे कि गलती की क्षमा मांगना कमजोरी नहीं, जातियों की शक्ति का द्योतक होता है। शर्मिंदगी का सार्वजनिक इजहार हमें बड़ा बनाता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)विभूति नारायण राय,पूर्व आईपीएस अधिकारी
दुर्ग / शौर्यपथ / जिले के कुबेर इनकेव वार्ड नं. 7, जुनवानी रोड कोहका, नगर पालिक निगम भिलाई एवं वार्ड नंबर 15, मउहारी भाटा मड़ोदा, रिसाली में कोरोना पॉजिटव केस पाये जाने के उपरांत उक्त क्षेत्र को कन्टेनमेंट जोन घोषित किया गया था। उक्त क्षेत्र में पिछले 14 दिवस में कोई भी नए पॉजिटीव केस नहीं आये है। अत: कन्टेनमेंट जोन की अधिसूचना को समाप्त करते हुए चिन्हित क्षेत्र में जिन व्यक्तियों को होम क्वारंटाईन किया गया है उनके क्वारंटाईन अवधि तक यथास्थिति बनी रहेगी।
चिन्हांकित क्षेत्र अंतर्गत सभी दुकाने एवं अन्य वाणिज्यिक प्रतिष्ठान शासन के नियमानुसार संचालित होंगे। चिन्हित क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को कोरोना से संबंधित लक्षण होने पर तत्काल कंट्रोल रूम के दूरभाष क्रमांक 0788-2210180 अथवा 0788-2210773 पर सूचित करेंगे।
दुर्ग / शौर्यपथ / विकास कार्यों के लिए लगातार सक्रिय रहने वाले विधायक अरूण वोरा की पहल पर वाय शेप ओवरब्रिज में 50 लाख की लागत से माइक्रो सरफेसिंग डामरीकरण का कार्य प्रारंभ हो गया है। उल्लेखनीय है कि पुलगांव नाला ब्रिज, वायशेप ब्रिज में लगातार हो रही दुर्घटनाओं को देखते हुए वोरा ने सड़क सुरक्षा समिति की बैठक में शहर के ब्रिजों में सुरक्षात्मक उपाय करने हेतु आवश्यक कार्यों के लिए राशि मांगी थी .
जिसके बाद वायशेप व धमधा नाका ओवरब्रिज में डामरीकरण एवं प्रोटेक्टिव जाली लगाने के कार्य के अतिरिक्त पुलगांव नाला ब्रिज में मार्ग विभाजक निर्माण हेतु 2.06 करोड़ रुपए स्वीकृति मिली थी। लंबे समय से दोनों ओवरब्रिज की मरम्मत की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। विधायक ने कहा कि जनसुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है प्रोटेक्टिव जाली एवं माइक्रो सरफेसिंग डामरीकरण कार्य शुरू हो गया है। काम पूरा होने पर यहां आवागमन में सुविधा होगी। धमधानाका ओवरब्रिज का निर्माण लगभग तीन दशक पहले किया गया है।
ओवरब्रिज के सभी संधारण कार्यों में लोगों की सुरक्षा की अनदेखी नहीं होना चाहिए। साथ ही उन्होंने धमधा नाका में प्रोटेक्टिव वाल सुरक्षित एवं मजबूत बनाने के लिए विभागीय आदेश जारी करने कलेक्टर से आग्रह किया है।
दुर्ग / शौर्यपथ / 14 जून विश्व रक्तदान दिवस के अवसर पर नवदृष्टि फाउंडेशन के आव्हान पर दुर्ग जिला चिकित्सालय ब्लड बैंक में 44 लोगों ने स्वैच्छिक रक्तदान किया,संस्था के संस्थापक सदस्य राज आढ़तिया की माता श्रीमती पुष्पा बेन आढ़तिया ने 65 वर्ष की आयु में रक्तदान कर सब को चौंका दिया उपस्थित सभी लोगों में उनकी ही चर्चा रही एवं सभी ने पुष्प बेन के जज़्बे की तारीफ़ की,पुष्प बेन को रक्तदान करते देख उनकी बहु कोमल आढ़तिया ने भी अपना पहला रक्तदान किया,जिला चिकित्सालय ब्लड बैंक की मुख्य कॉउंसलर आशा साहू ने रक्तदान कर अन्य लोगों को प्रेरित किया,अंकित दुबे,कुलदीप भमरा,खुर्शेद अहंमद,देवनन्द ढीमर,सुरेश सिंह बनाफर(क्राइम ब्रांच),नीरज जैन,विपल कोठारी,गुरप्रीत सिंह ढींगरा सहित 44 लोगों ने रक्तदान किय,
नवदृष्टि फाउंडेशन के कुलवंत भाटिया,राज आढ़तिया,रितेश जैन,संतोष राजपुरोहित,जितेंद्र हासवानी,हरमन दुलाई ने सभी रक्तदानियों का सम्मान किया व उनका उत्साह बढ़ाया,
कुलवंत भाटिया ने पुष्प बेन द्वारा 65 वर्ष की उम्र में रक्तदान को सभी के लिए प्रेरणादाई बताया यह रक्तदान आढ़तिया परिवार का समाज के प्रति समर्पणको दिखता है,नेहरू युवा केन्द्र के नितिन शर्मा ने रक्तदान प्रक्रिया में सहयोग किया
नव दृष्टि फाउंडेशन के अनिल बल्लेवार, कुलवंत भाटिया,राज आढ़तिया,प्रवीण तिवारी ,मुकेश आढ़तिया ,हरमन दुलई,प्रभु दयाल उजाला,प्रमोद बाघ,रितेश जैन,जितेंद्र हासवानी,गोपी रंजन दास,धर्मेंद्र शाह,पियूष मालवीय,मुकेश राठी,संतोष राजपुरोहित, किरण भंडारी,चेतन जैन,चन्दन मिश्रा,यतीन्द्र चावड़ा,नत्थू अग्रवाल,खुर्शीद अहमद ,आकाश मसीह ,अनुराग तैलंग,वीरेंद्र पाली,अभय माहेश्वरी ,प्रफुल्ल जोशी, संजीव श्रीवास्तव,विवेक साहू ,शैलेश कारिया,हरपाल सिंह,मनीष जोशी,प्रसाद राव,दीपक बंसल ने सभी रक्तदानियों की प्रशंसा की व शुभकामनाएं दी.