November 22, 2024
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धर्म संसार /शौर्यपथ / श्री राम रक्षा स्तोत्र बुध कौशिक ऋषि द्वारा रचित श्रीराम का स्तुति गान है। इसमें प्रभु श्री राम के अनेकों नाम का गुणगान किया है। आ जानते हैं कि इसका पाठ करने के 10 रहस्य।
1. इसका पाठ करने से प्रभु श्रीराम आपकी हर तरह से रक्षा करते हैं। अपने शरणागत की रक्षा करना उनका धर्म है।

2. कहते हैं कि इसके नित्य पठन से हनुमानजी प्रसन्न होकर राम भक्तों की हर तरह से रक्षा करते हैं।

3. विधिवत रूप से राम रक्षा स्त्रोत का 11 बार पाठ करने के दौरान एक कटोरी में सरसों के कुछ दानें लेकर उन्हें अंगुलियों से घुमाते रहने से वह सिद्ध हो जाते हैं। उक्त दानों को घर में उचित और पवित्र स्थान पर रख दें। यह दानें कोर्ट-कचहरी जाने के दौरान, यात्रा पर जाने के दौरान या किसी एकांत में सोने के दौरान यह दानें आपकी रक्षा करेंगे। यहां पर दिए गए उपाय प्रचलित मान्यताओं पर आधारित हैं। इनके कारगर होने की पुष्टि हम नहीं करते हैं।
4. राम रक्षा स्तोत्रम् के 11 बार किए जाने वाले पाठ से पानी को भी सरसों की तरह सिद्ध किया जा सकता है। इस पानी को औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस पानी को रोगी को पिलाया जा सकता है। इससे ली जाने वाली औषधि का तेजी से प्रभाव होता है। पानी को सिद्ध करने के लिये राम रक्षा स्तोत्रम का पाठ करते हुए तांबे के बर्तन में पानी भरकर इसे अपने हाथ में पकड़ कर रखें और अपनी दृष्टि पानी में रखें। यहां पर दिए गएउपाय प्रचलित मान्यताओं पर आधारित हैं। इनके कारगर होने की पुष्टि हम नहीं करते हैं।
5. जो व्यक्ति नित्य राम रक्षा स्तोत्रम् का पाठ करता रहता है वह आने वाली कई तरह की विपत्तियों से बच जाता है।
6. इसका प्रतिदिन पाठ करने से व्यक्ति को दीर्घायु, संतान, शांति, विजयी, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
7. इसके नित्य पाठ करने से मंगल ग्रह का कुप्रभाव भी समाप्त हो जाता है।
8. इसका नित्य पाठ करने वाले व्यक्ति के मन में सकारात्मक भाव का संचार होता है और उसके चारों और सुरक्षा का एक घेरा निर्मित हो जाता है।
9. इसका नित्य पाठ करने से मनुष्य के मन से हर तरह का भय निकल जाता है और वह निर्भिक जीवन जीता है।
10. इसका नित्य पाठ करने से भगवान शिव की भी कृपा प्राप्त होती है क्योंकि इस स्त्रोत की रचना बुध कौशिक ऋषि ने भगवान शंकर के कहने पर ही की थी। भगवान शंकर ने उन्हें इस स्त्रोत की रचना की प्रेरणा स्वप्न में दी थी।

 

नजरिया /शौर्यपथ / पिछले दो महीनों में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और इसके आस-पास के इलाकों में 14 छोटे-छोटे भूकंप आ चुके हैं। भूकंप की भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती, पर दिल्ली के इलाके भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं और हिमालय से काफी करीब भी। यहां पहले भी 6-6.7 तीव्रता के चार बड़े भूकंप आ चुके हैं, लिहाजा सवाल यह है कि अगर यहां कोई बड़ा भूकंप आया, तो उससे निपटने के लिए हमारी क्या तैयारी है?
भूकंप एक अवश्यंभावी प्राकृतिक घटना है, जो पृथ्वी की आंतरिक संरचना के कारण, भूगर्भ में विशिष्ट स्थानों पर संचयित ऊर्जा के खास परिस्थितियों में उत्सर्जित होने से घटती है। यह ऊर्जा भूकंपीय तरंगों के माध्यम से चारों तरफ प्रवाहित होती है, जिससे सतह पर बने मकानों-इमारतों में कंपन होता है। इंसानी जान-माल का नुकसान तब होता है, जब ये इमारतें इस कंपन को नहीं झेल पातीं, यानी नुकसान भूकंप से नहीं, भूकंप को न झेल पाने वाली इमारतों से होता है। इसीलिए नई बनने वाली इमारतों को भूकंप बर्दाश्त कर सकने लायक भूकंपरोधी बनाकर और पुराने भवनों में जरूरी सुधार करके हम इस नुकसान से बच सकते हैं।
अभी अपने यहां भूकंपरोधी मकान बनाने में भारतीय मानक संस्थान द्वारा बनाया गया मानचित्र इस्तेमाल होता है। मगर इसकी अपनी सीमाएं हैं। जैसे, इसमें भारतीय भूभाग को सिर्फ चार जोन में बांटा गया है और इससे यह पता नहीं चलता कि भविष्य में किसी भूभाग में भूकंप के आने और उसके प्रभाव की कितनी आशंकाएं हैं? फिर, भूकंप का प्रभाव भवनों के करीब 30 मीटर नीचे तक की मिट्टी के गुणों व संरचना के मुताबिक अलग-अलग होता है। चूंकि थोड़ी-थोड़ी दूर पर ही मिट्टी के गुण बदल जाते हैं, इसलिए क्षेत्रीय स्तर पर बना यह मानचित्र बहुत ज्यादा कारगर नहीं माना जाता। हालांकि, पहली सीमा से निपटने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के प्रयास से 2013 में बने ‘प्रॉबबिलिस्टिक सिस्मिक हैजर्ड मानचित्र’ का उपयोग भारतीय मानक संस्थान जरूरी प्रावधान बनाने में कर रहा है। वहीं, दूसरी समस्या के हल के लिए करीब 250 शहरों में कई जगहों की 30 मीटर गहराई तक की मिट्टी की संरचना और उसके गुणों का अध्ययन करके छोटे-छोटे भूभाग पर भूकंप की मारक-क्षमता के आकलन (जिसे भूकंपीय सूक्ष्म-वर्गीकरण कहते हैं) पर काम चल रहा है, ताकि भविष्य में प्रत्येक शहर के लिए भवन-निर्माण के अलग-अलग मानदंड बनाए जा सकें।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के महत्व को समझते हुए भूकंप जोखिम मूल्यांकन केंद्र (अब राष्ट्रीय भूकंप केंद्र का अंग) ने 2007 में सूक्ष्म-वर्गीकरण मानचित्र बनाने का काम शुरू किया था, जिसे 2014 में पूरा कर लिया गया। इसके तहत विभिन्न प्रकार के 40 मानचित्र बनाए गए, जो भवन-निर्माण के लिए उपयोगी हैं। इन मानचित्रों का इस्तेमाल करके यह तय किया जा सकता है कि किस स्थान पर भवन को कितना मजबूत बनाना है या कितनी मंजिल का मकान बनाना सुरक्षित है या कहां पर उसके धंसने की आशंका है।
इस अध्ययन से यह भी पता चला कि दिल्ली का करीब 30 प्रतिशत हिस्सा मापक के हिसाब से जोन-पांच में शामिल किया जाना चाहिए। इसीलिए मौजूदा भवन-निर्माण प्रावधानों के तहत यहां बनने वाले मकानों के भूकंपरोधी होने पर संदेह है। चूंकि नई नीति के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के 89 गांवों को शहर का दर्जा मिला है और यहां के कई गांव मापक के हिसाब से उस 30 प्रतिशत हिस्से में आते हैं, इसलिए यहां संभावित 20 लाख नए भवनों के निर्माण यदि मौजूदा कोड के तहत बनेंगे, तो वे शायद ही भूकंपरोधी होंगे। रिपोर्ट तो यह भी है कि दिल्ली में करीब 80 फीसदी भवन मानक के अनुरूप नहीं हैं। जाहिर है, यहां के ज्यादातर भवन भूकंपरोधी नहीं हैं और जो नए बन रहे हैं, वे भी शायद ही तेज झटकों को झेल पाएं। तो फिर जान-माल का नुकसान रोका कैसे जाए? सबसे पहले दिल्ली में किए गए अध्ययन के निष्कर्ष को तुरंत लागू होना चाहिए। पुराने तमाम भवनों, खासकर शिक्षण संस्थानों, अस्पतालों आदि का सर्वेक्षण कर उनमें आवश्यक सुधार किया जाना चाहिए। इन कामों को संस्थागत रूप देने के लिए भूकंप जोखिम मूल्यांकन केंद्र को फिर से सक्रिय करना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) अतींद्र कुमार शुक्ला, पूर्व प्रमुख, भूकंप विज्ञान केंद्र, मौसम विभाग

 

सम्पादकीय लेख /शौर्यपथ /भारत में कोरोना संक्रमण जिस गति से बढ़ रहा है, उसी गति से उसके खिलाफ लड़ाई भी बढ़ती जा रही है। सेहत सुरक्षा के इंतजाम बढ़ते जा रहे हैं, नीतियों और रणनीतियों को भी स्वाभाविक ही कसा जा रहा है। इस बीच यह एक सकारात्मक पहल है कि केंद्र सरकार ने 15 राज्यों के 50 जिलों में तीन-तीन सदस्यीय टीमों को रवाना किया है। विशेषज्ञों के ये दल इन जिलों में कोरोना के खिलाफ लड़ाई में स्थानीय प्रशासन की मदद करेंगे। अनुशासन और निगरानी को चाक-चौबंद बनाने में अपनी भूमिका निभाएंगे। भले कुछ देर से यह कदम उठाया गया हो, लेकिन यह स्वागत योग्य है। कुछ राज्यों की ओर से यह शिकायत आ भी रही थी कि केंद्र सरकार कोरोना संक्रमण के पूरे मामले को राज्यों पर डालकर बच नहीं सकती। ऐसे में, केंद्र के लिए यह पहल इसलिए भी जरूरी थी कि राज्य पहले से ज्यादा सजग होकर काम करें।
केंद्र सरकार की इस पहल से यह तो पता चल ही गया है कि देश के 15 राज्यों के 50 जिले कोरोना से ज्यादा पीड़ित हैं। यह सूचना अपने आप में राज्यों पर जरूरी दबाव बनाने के लिए कारगर सिद्ध हो सकती है। जिन 15 राज्यों में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, उनमें महाराष्ट्र सबसे आगे हैं, जहां सर्वाधिक सात जिलों में कोरोना के खिलाफ लड़ाई बेहतर प्रबंधन, अनुशासन की मांग कर रही है। तमिलनाडु में भी सात जिले चुनौती पेश कर रहे हैं। इसके अलावा तेलंगाना, राजस्थान, असम, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली में भी ज्यादा प्रयासों की जरूरत है। प्रवासियों के लौटने से डगमगाए बिहार और उत्तर प्रदेश के चार-चार जिलों और ओडिशा के पांच जिलों को भी केंद्र सरकार ने सहायता के योग्य माना है। बेशक, इन जिलों में रोकथाम की रणनीति को सावधानीपूर्वक लागू करना होगा, ताकि कोरोना इन जिलों में भी काबू में आए और बाहर भी न फैले। राज्यों में गई केंद्र की टीमों को अपनी उपयोगिता सही रूप में साबित करनी चाहिए, ताकि आगे भी ऐसे प्रयासों को बल मिल सके। इन टीमों में उचित ही एक डॉक्टर, एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और एक महामारी विशेषज्ञ को शामिल किया गया है।
ध्यान रहे, यह समय केंद्र व राज्यों में बेहतर समन्वय का है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने भी मिलकर चलने और राजनीति से बचने की वकालत की है, तो कोई आश्चर्य नहीं। उन्होंने चेताया भी है कि दिल्ली में कोरोना तेजी से फैलेगा। यह चिंता का समय केवल दिल्ली के लिए नहीं है। राजस्थान अपनी सीमाओं को फिर सील करने के लिए मजबूर हो रहा है, तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने मुंबई में लोगों को दोटूक चेताया है कि वे भीड़ न लगाएं, वरना फिर लॉकडाउन लगाना पडे़गा। जिस तरह की तैयारियां चल रही हैं, जिस तरह से शहर-गांव अनलॉक हो रहे हैं, उससे लगता है, सरकारें मानकर चल रही हैं कि संक्रमण बढे़गा। अत: यह केंद्र और राज्यों ही नहीं, बल्कि राज्यों के स्थानीय प्रशासन और आम लोगों के बीच भी बेहतर समन्वय व सतर्कता का वक्त है। काश! लोग सावधानी बरतते, भीड़ न लगाते। जो देश सुधार की राह पर हैं, उनसे सीखते, तो भारत के बारे में डब्ल्यूएचओ या किसी मुख्यमंत्री को यह न कहना पड़ता कि संक्रमण तेजी से फैलेगा। हमारे पास अभी भी वक्त है, हम हर स्तर पर सजग रहते हुए कोरोना पर काबू कर सकते हैं।

 

मेल बॉक्स /शौर्यपथ / केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए देश भर के स्कूल और कॉलेजों को 15 अगस्त के बाद खोलने का उचित फैसला किया है। वाकई, जब तक कोरोना वायरस पर पूरी तरह से नियंत्रण हासिल नहीं हो जाता, तब तक स्कूल और कॉलेजों को खोलना उचित नहीं होगा, क्योंकि शिक्षण संस्थानों में छात्रों के बीच दो गज की दूरी कायम रखना बहुत मुश्किल काम होगा। इतना ही नहीं, छोटे बच्चे तो हर समय मास्क पहनने में भी असुविधा महसूस करते हैं। उनके लिए लगातार हाथ धोना और सैनिटाइजर का उपयोग करना भी मुश्किल है। इसीलिए बहुत सारे अभिभावक सरकार की ओर नजरें टिकाए हुए थे, क्योंकि बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है। सरकार का यह कदम स्वागतयोग्य है। इस फैसले से सभी की चिंताएं दूर हुई होंगी।
शिवांश मिश्रा, प्रयागराज

बेरोजगारी की मार
कोरोना महामारी से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन के बाद देश का युवा वर्ग अपने रोजगार की सुरक्षा के लिए बहुत ही आशंकित है। उनको यह सुनने-पढ़ने को मिल रहा है कि आगामी वर्षों में रोजगार का बड़ा संकट आने वाला है। इस महामारी से हुई जान की हानि तो प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रही है, लेकिन इससे परोक्ष रूप से देश में रोजगार, शिक्षा व उत्पादन की भी अभूतपूर्व हानि हुई है। सरकार के प्रयास और नागरिकों की जागरूकता से अब तक हम शानदार तरीके से इस महामारी से लड़े हैं, और उम्मीद है कि आगे भी यूं ही हम लड़ते रहेंगे। मगर देश के नौजवानों के मन में अपने भविष्य को लेकर आशंकाएं उपजने लगी हैं। सरकारी रोजगार के अवसर उन्हें धूमिल होते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में, हमें खास तौर से उनके लिए नीतियां बनानी होंगी। जरूरत धैर्य बनाए रखने की भी है, क्योंकि कोरोना महामारी के कारण देश कहीं न कहीं विकास की कसौटी पर बहुत पीछे चला गया है। यदि हमने धैर्य, सहयोग और आत्मनिर्भरता से इस परिस्थिति का सामना कर लिया, तो इसके परिणाम दूरगामी निकलेंगे।
आकाश त्रिवेदी, शाहजहांपुर

सेहत सबका अधिकार
दिल्ली के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली वालों के इलाज का आप सरकार का फैसला उप-राज्यपाल द्वारा पलट दिया जाना निश्चय ही सराहनीय कदम है। एनसीआर के लोग बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के कारण अक्सर दिल्ली इलाज करवाने जाते हैं। यह उनका बुनियादी अधिकार भी है, जिसका हवाला उप-राज्यपाल ने दिया। असल में, प्रत्येक नागरिक का यह अधिकार है कि वह देश के किसी भी अस्पताल में अपना इलाज करवाए। हां, सभी राज्यों को अपने-अपने प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाएं आधुनिक और विकसित जरूर बनानी चाहिए, ताकि मरीजों को इलाज के लिए किसी दूसरे राज्य में न जाना पड़े।
चिन्मय मिश्र, कल्याणपुर, कानपुर

डराते आंकड़े
एक तरफ दुनिया कोरोना के कहर से त्राहि-त्राहि कर रही है, तो दूसरी तरफ संक्रमण और मौत के भयावह होते आंकड़े लोगों की नींद उड़ा रहे हैं। भारत में भी लगातार संक्रमण बढ़ रहा है। मगर दिल्ली की खराब होती हालत को सुधारने की बजाय उसे बेपरदा किया जा रहा है, जो अब भारी पड़ता दिख रहा है। दिल्ली अब कोरोना का हॉटस्पॉट है। खुद उप-मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि अगर यूं ही संक्रमण बढ़ता रहा, तो 31 जुलाई तक दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या साढे़ पांच लाख हो सकती है। ऐसा हुआ, तो यह सरकार की नाकामी ही कही जाएगी। बढ़ रहे संक्रमण को देखते हुए दिल्ली सरकार को चौतरफा कठोर कदम उठाने चाहिए। दिल्ली की तस्वीरें देखें, तो लगता है कि उसे भाग्य के भरोसे छोड़ दिया गया है और सरकार व्यर्थ की बयानबाजी में उलझी है।
अमृतलाल मारू, दसई, धार

ओपिनियन /शौर्यपथ / कुछ दिनों से इस्लामोफोबिया की तोप की दिशा भारत की ओर है और भांति-भांति की कहानियां गढ़ी जा रही हैं। विशेष रूप से जब से कोरोना महामारी ने देश को अपनी चपेट में लिया है, उसके पश्चात एक जमाअत से चूक क्या हुई कि अनेक लोगों ने पूरे समुदाय विशेष को दोष देना शुरू कर दिया। कुछ राजनेताओं की ओर से भी प्रतिकूल टिप्पणियां आने लगीं। कुछ लोगों ने इस बात को भी हवा दी कि समुदाय विशेष के लोग बहुसंख्यक समुदाय की कॉलोनियों में जाकर कोरोना फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। नतीजा यह हुआ कि समाज के कुछ लोगों ने कॉलोनियों में सब्जी-फल ठेले और दुकान वालों की पहचान देखना शुरू कर दिया। यहां तक कि कुछ जगह राहत और बचाव कार्यों में भी जरूरतमंदों की मजहबी पहचान देखने की कोशिश हुई। हमें सावधान हो जाना चाहिए, यदि यही दशा रही, तो आने वाला कल काफी भयावह हो सकता है।
यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि हमारे भारत देश में कुछ शक्तियां ऐसी हैं, जो सदा से समुदायों के बीच दूरी एवं द्वेष पैदा करके उन्हें बांटने की कोशिश करती रही हैं। यही शक्तियां इन दिनों समाज में अलग-अलग तरह से भय एवं अराजकता फैलाने पर तुली हैं। वस्तुत: यह एक ऐसी भयावह मुहिम है, जिसके विरुद्ध पूरे देश को एकजुट होकर सामने आना चाहिए। भारत के इस बदलते परिदृश्य में राजनीतिक पार्टियों से उम्मीद अपनी जगह है, लेकिन आम लोगों के लिए यह जरूरी हो गया है कि ऐसे हालात में देश के सजग और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास रखने वाले लोग सामने आएं। अपनी कोशिशों से इस साझी संस्कृति, समाज में विष घोलने वाले मुट्ठी भर लोगों के षड्यंत्रों को नाकाम कर दें।
वस्तुत: वर्तमान युग में समाज के टूटते-फूटते रिश्ते, कट्टरता, असहिष्णुता, मतभेद, बिखराव के कारण शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का मामला जटिल होता जा रहा है, लेकिन इसका इलाज साफ नहीं दिखाई दे रहा है। ऐसे में सभी विद्वानों, समाजशास्त्रियों और मानव हितैषियों का एक ही मत है कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नींव को धार्मिक ग्रंथों, इतिहास की सकारात्मक घटनाओं, जियो और जीने दो जैसी उत्तम विचारधारा में ढूंढ़ा जाए। साथ ही, उनसे आम लोगों को अवगत कराया जाए।
सांप्रदायिकता के इस घटाटोप अंधकार में एकता एवं अखंडता के दीप वह संप्रदाय जला सकता है, जिसका धार्मिक दायित्व ही एकता, भाईचारा एवं न्याय है। जिसे आदेश दिया गया है कि भलाई की ओर बुलाओ और बुराई से रोको। मेरा मानना है कि इस देश के मुसलमानों को ही भटके हुए लोगों को यह याद दिलाना चाहिए कि भारत बहुलता में एकता की गौरवशाली परंपराओं का संरक्षक रहा है। सभी धार्मिक इकाइयों के समक्ष यह बात प्रस्तुत करनी चाहिए कि हम एक ऐसे देश में रहते हैं, जहां दर्जनों धर्म, सैकड़ों विचारधाराओं एवं परंपराओं को मानने वाले सदियों से रहते आए हैं। इसके बाद भी इस देश की खासियत रही है कि यहां शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की कोमल हवा का झरना निरंतर बहता रहा है। क्यों न हम अपनी गौरवशाली परंपरा की ओर लौट आएं और आपसी एकता, अखंडता को अपनाते हुए एक-दूसरे के धर्म, विश्वास तथा रीति-रिवाज का ध्यान रखें?
धर्म तो संयम तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का सबसे बड़ा ध्वजवाहक है। संयम और उदारता तो उसके जमीर में शामिल है। पूरी दुनिया में खासतौर से इस्लाम धर्म के खिलाफ दुष्प्रचार किया जा रहा है। ऐसे में, जरूरी है कि इस समुदाय के लोग उठें और विभिन्न धर्मों के बीच संवाद की संगोष्ठियां आयोजित करें और विश्व को बताएं कि मुट्ठी भर लोगों ने जो दुष्प्रचार किया है, उसमें सत्यता नहीं है। एक काल्पनिक छवि के कारण समाज में अघोषित दूरी भी है, जिसके कारण आपसी मेलजोल का कार्य थम-सा गया है। इससे सबसे अधिक क्षति समुदाय विशेष को निरंतर पहुंच रही है। दुविधा व दूरी की निरंतरता और आपसी तालमेल की स्थिति न उत्पन्न होने के कारण भ्रम व भ्रांतियां अपने उफान पर हैं। शायद समुदाय विशेष के लोगों की ओर से यह कमी रह गई है कि वे अपने नैतिक एवं व्यावहारिक कार्यों से इस बात को साबित करने में पीछे रह गए हैं कि वे आपसी मेलजोल और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के संरक्षक हैं। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के नियमों का अनुपालन भारत जैसे समाज में सबसे जरूरी है।
आज शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए एक आंदोलन उसी तरह से चलाने की जरूरत है, जैसे सय्यद अबु हसन अली नदवी ने ‘पयाम-ए-इंसानियत’ के नाम से चलाया था। उसी तरह के आंदोलन के झंडे तले हम अपने धर्म के साथ ही दूसरे धर्म के प्रतिनिधियों को लेकर आगे बढ़ सकते हैं। इसके साथ ही हमें वर्तमान राजनीति और सत्ता के साथ संबंध और बेहतर करने चाहिए, क्योंकि यदि दूरियों का अंत न हुआ, तो उससे जो क्षति पहुंचेगी, उसे आने वाली नस्लों को भुगतना पडे़गा। इसलिए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के आंदोलन में शामिल होने वाले संतुलित व प्रबुद्ध लोगों का यह भी दायित्व है कि वे देश के सभी वर्गों के अधिकारों की रक्षा करें। हमें बहुत बुद्धिमानी से आगे बढ़ना होगा, तभी हम इस देश में अपने लिए बेहतर माहौल की उम्मीद कर सकते हैं। आज समय है, जब हम उदारवाद को जीवन का मूल मंत्र बनाएं, उच्च स्तर की नैतिकता दर्शाएं और दूसरे धर्मों के लोगों से सद्भावी रिश्ते बनाएं।
यह इस देश की सुदृढ़ता का प्रमाण है कि यहां अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बात अधिकतर बहुसंख्यक वर्ग के लोग ही करते हैं। अल्पसंख्यकों को जब भी जरूरत पड़ी है, देश के सैकड़ों बहुसंख्यक उठ खड़े हुए हैं। वर्तमान में सीएए, एनपीआर और एनआरसी के मामले में हमें स्पष्ट रूप से आभास हुआ कि इस देश में अल्पसंख्यक अकेले नहीं हैं। इसलिए हमें सभी को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि जो कुछ भारत के हित में है, उसी में समुदाय विशेष का भी हित है। समाज से सरकार तक, हर स्तर पर भेदभाव की किसी भी नीति से बचना होगा। सत्य व न्याय की स्थापना के बिना सदाचारी, स्वस्थ और विकसित समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) अख्तरुल वासे, प्रोफेसर इमेरिटस, जामिया मिल्लिया इस्लामिया

 

दुर्ग / शौर्यपथ / कलेक्टर कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री बघेल ने सभी जिलों में राज्य शासन की प्रगतिरत योजनाओं के कार्यान्वयन की स्थिति की समीक्षा की। दुर्ग जिले में हेल्थ सेक्टर एवं नगरीय प्रशासन तथा अन्य विभागों में हो रहे नवाचारों की कलेक्टर कांफ्रेंस में प्रशंसा की गई। कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री ने सामुदायिक फलोद्यानों एवं फलदार पौधों का रकबा बढ़ाने विशेष निर्देश दिए। नगरीय प्रशासन विभाग में मूलत: पट्टा वितरण के कार्यों में दुर्ग जिला प्रशासन की गतिविधि की विशेष रूप से प्रशंसा की गई। मुख्यमंत्री हाट बाजार योजना एवं मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना में किए गए कार्यों में जिले का काम अच्छा रहा। इन योजनाओं के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को स्वास्थ्य लाभ तो हुआ ही, साथ ही बीपी, शुगर, टीबी जैसी बीमारियों के चिन्हांकन में इससे आसानी हुई।
इन योजनाओं में 8397 लोगों का बीपी जांच हुआ जिसमें 2584 लोगों को उच्चरक्तचाप की समस्या चिन्हांकित हुई। इसमें शुगर की जांच भी 2689 लोगों की हुई। इसमें 234 लोगों का मधुमेह चिन्हांकित हुआ। इन शिविरों के माध्यम से 58 लोगों का टीबी चिन्हांकित हुआ। कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री ने कोविड की तैयारियों की भी समीक्षा की और सभी जिलों को बिना लक्षणों वाले मरीजों के लिए अलग से रायपुर के इंडोर स्टेडियम की तरह बड़ा कैंपस रखने के निर्देश दिए। कलेक्टर दुर्ग ने इस संबंध में नगर निगम कमिश्नर दुर्ग को निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि कोविड में एसओपी का पालन पूरी तरह हो, यह सुनिश्चित करें। ऐसा किये जाने से कोविड संक्रमण को रोकने की दिशा में सफलता मिलेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि बाहर से आ रहे लोगों की स्किल मैपिंग करें। बहुत से प्रोजेक्टस एवं उद्योगों में ऐसे हुनरमंदों की जरूरत हैं जिनकी कमी अब तक राज्य में रही थी। स्किल मैंपिंग से यह मिल जाएगा। मुख्यमंत्री ने पौधरोपण एवं स्वसहायता समूहों के आय बढ़ाने के विषय पर विशेष फोकस किया। उन्होंने कहा कि फलदार पौधों के रोपण से, मुनगा आदि के रोपण से मिड डे मील में एवं आंगनबाडिय़ों में यह अधिक मात्रा में उपलब्ध होगा। इससे स्वसहायता समूहों को भी काम मिलेगा और कुपोषण को थामने में भी मदद मिलेगी। मुख्यमंत्री ने कुपोषण के संबंध में विशेष कार्य करने सभी कलेक्टर्स को निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि कुपोषण बड़ी समस्या है और निरतंर मानिटरिंग और फोकस रखने से यह समस्या दूर होगी। कलेक्टर श्री सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे ने दुर्ग जिले के विषयों की जानकारी दी।
कलेक्टर कांफ्रेंस में जिले से आईजी विवेकानंद सिन्हा, सीएफ श्रीमती शालिनी रैना, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय यादव, नगर निगम भिलाई कमिश्नर रघुवंशी, डीएफओ केआर बढ़ाई, रिसाली कमिश्नर प्रकाश सर्वे, दुर्ग कमिश्नर बर्मन, नगर निगम भिलाई चरौदा कमिश्नर राठौर उपस्थित थे।

दुर्ग / शौर्यपथ / कांग्रेस नेता व प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री राजेंद्र साहू ने भाजपा पर अपना वार जारी रखते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से सरकार के 6 साल में किये वादों के पूरा होने के बारे में पूछा . बता दे कि दुर्ग से कांग्रेस की तरफ से लगातार भाजपा के केंद्र सरकार के नीतियों पर सवालों की बौछार इन दिनों राजेन्द्र साहू द्वारा किया जा रहा है . अब राजेन्द्र साहू ने नवनियुक्त प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय के बयान पर पलटवार करते हुए कहा है कि साय को डेढ़ साल पहले बनी कांग्रेस सरकार के वादों से पहले 6 साल पहले केंद्र में सत्तारूढ मोदी सरकार के वादों को याद कर लेना चाहिए। साय देश की जनता को स्पष्ट बताएं कि मोदी सरकार ने 6 साल में कितने वादे पूरे किए। एक साल पहले दोबारा सत्ता में आने से पहले किए गए वादों का क्या हुआ?
साय के आरोपों पर राजेंद्र ने कहा कि कांग्रेस ने शराबबंदी का वादा किया था। इस वादे को कांग्रेस भूली नहीं है। शराबबंदी धीरे-धीरे लागू की जाएगी। कांग्रेस ने 10 दिनों के भीतर किसानों का कर्जमाफी और 25 सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी का वादा किया था। पद की शपथ लेने के 4 घंटे के भीतर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपना वादा पूरा कर दिखाया। कर्जमाफी की घोषणा कर दी।
राजेंद्र ने कहा कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय को बताना चाहिए कि देश के सभी नागरिक के खाते में 15 लाख रुपए जमा करने के वादे का क्या हुआ। हर साल दो करो? बेरोजगारों को रोजगार देने, किसानों की आय दोगुना करने, महिलाओं को सशक्त बनाने के वादे का क्या हुआ।
राजेंद्र ने कहा कि भूपेश बघेल सरकार ने जो कहा, उसे पूरा भी किया। शहरी क्षेत्र में भूमिहीन आबादी पट्टटा देने का वादा पूरा किया। एपीएल वर्ग को 10 रुपए प्रति किलो की दर से 35 किलो चावल, हाफ बिजली बिल जैसे दर्जनों वादे पूरे कर दिए। मनरेगा से देश में सबसे ज्यादा रोजगार दिया जा रहा है। कांग्रेस सरकार ने हर वर्ग को राहत दी है। भाजपा ने कितने वादे पूरे किए, इसका खुलासा साय को करना चाहिए।
राजेंद्र ने कहा कि साय केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। इसके बावजूद उन्होंने कोरोना के वैश्विक संकट पर एक शब्द भी नहीं कहा, यह दुख की बात है। बीते दो माह में देश में 10 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो चुके हैं। असंगिठत कामगारों की बेरोजगारी का आंकडा भी लगभग 8 करोड से ज्यादा हो चुका है। ठेला, खोमचा वालों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। किसानों, मजदूरों समेत निम्न आय वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है। रोजी-रोटी चौपट हो गई है। इन वर्गों को राहत देने या आर्थिक रूप से मजबूती देने के बारे में साय ने मौन साध लिया। राजेंद्र ने कहा कि साय ने 20 लाख करोड के पैकेज के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा। यह दर्शाता है कि 20 लाख करोड का पैकेज भ्रष्टाचार की भेंट चढ चुका है। भाजपा नेताओं ने राज्य में सत्ता से दूर होने के बावजूद अब तक सत्ता का मोह नहीं त्यागा है। पेट्रोल-डीजल की कीमतों के साथ आसमान छूती महंगाई के बावजूद साय को 6 साल पुरानी मोदी सरकार के वादे याद नहीं है। उन्हें अगर सवाल करना है तो पहले मोदी सरकार से 6 साल पुराने वादों को लेकर सवाल करें।

रायपुर / शौर्यपथ / राज्य में राजस्व के मामलों के पंजीयन से लेकर उनके निराकरण तक की स्थिति में तत्तपरता एवं पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से आगामी एक अक्टूबर से राजस्व ई-कोर्ट प्रणाली अनिवार्य रूप से लागू की जाएगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस संबंध में सभी कलेक्टरों को आज वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से आवश्यक व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। राज्य में एक अक्टूबर 2020 से राज्य में ई कोर्ट के दस्तावेज ही मान्य होंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि 7500 वर्ग फीट तक की नजूल भूमि के आबंटन तथा 5000 वर्ग फीट तक के डायवर्सन के मामलों को लोक सेवा गारंटी अधिनियम के दायरे में शामिल किया जा रहा है। उन्होंने राजीव गांधी आश्रय योजना के तहत शहरी इलाकों में पट्टा वितरण की स्थिति की समीक्षा करते हुए कलेक्टरों को पात्र हितग्राहियों को अभियान संचालित कर भू-स्वामी अधिकार दिए जाने की कार्रवाई के निर्देश दिए। बैठक में जानकारी दी गई कि राजीव गांधी आश्रय योजना के तहत अब तक एक लाख 19 हजार आवेदन मिले हैं जिसमें से 26 हजार आवेदन स्वीकृत किए है। 1984 में वितरित पट्टों का नवीनीकरण तथा भूमि स्वामी अधिकार प्रदान करने के संबंध में कलेक्टरों को तत्परता से कार्रवाई के निर्देश दिए गए।
बैठक में प्रत्येक जिले में दस-दस छात्रावासों को मॉडल बनाने के संबंध में कलेक्टरों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए गए। मुख्य सचिव आर पी. मंडल ने कहा कि चिन्हांकित छात्रावासों में स्वच्छ पेयजल और शौचालय एवं खेल-मैदान सहित अन्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक जिले को 25-25 लाख रूपए का आबंटन दिया गया है। उन्होंने कलेक्टरों को इस कार्य को प्राथमिकता से पूर्ण कराने के निर्देश दिए। आवश्यकतानुसार सीएसआर एवं डीएमएफ फंड से भी छात्रावासों की व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक राशि का उपयोग किया जा सकेगा। कलेक्टरों को कहा गया कि सभी आश्रमों एवं छात्रावासों में लगने वाली दैनिक उपयोग की सामग्री की पूर्ति स्थानीय स्व-सहायता समूहों के माध्यम करें। बैठक में जिलों के विभिन्न विभागों के कंडम वाहनों एवं अन्य सामग्रियों की नीलामी, बोध घाट सिंचाई परियोजना के सर्वेक्षण, शासकीय भवनों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की स्थापना के संबंध में भी कलेक्टरों को दिशा निर्देश दिए गए।
बरसात से पूर्व करें सड़कों की मरम्मत
मुख्यमंत्री ने लोक निर्माण विभाग को आबंटित 70 करोड़ रूपए की राशि से राज्य में सड़कों की मरम्मत का कार्य बरसात से पूर्व कराने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि सड़कों की मरम्मत और रखरखाव कार्य पर विशेष ध्यान दिए जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि बरसात के दिनों में सड़कों पर पानी का जमाव न हो। पानी की निकासी की संपूर्ण व्यवस्था रखरखाव टीम के माध्यम से करें। बैठक में राष्ट्रीय राज मार्गों के निर्माणाधीन कार्यों की भी समीक्षा की गई। मुख्यमंत्री ने सड़क निर्माण कार्य में देश के अन्य राज्यों से लौटे छत्तीसगढ़ के स्किल्ड श्रमिकों के नियोजन के संबंध में भी लोक निर्माण एवं श्रम विभाग के अधिकारियों को समन्वय बनाकर काम करने के निर्देश दिए।
बैठक में प्रवासी श्रमिकों की वापसी के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के निर्देश भी कलेक्टरों को दिए गए। प्रवासी श्रमिकों तथा ऐसे लोग जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं उन्हें मई एवं जून माह का चावल और चना एकमुश्त उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए। बैठक में वृक्षारोपण की तैयारियों की भी समीक्षा की गई। 11 जुलाई को राज्य में वृहद पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाएगा। प्रत्येक छात्रावासों, आश्रमों एवं आंगनबाडियों में मुनगा के पांच-पांच पौधे अनिवार्य रूप से लगाए जाने के निर्देश दिए गए है।

रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री बघेल ने आज अपने निवास कार्यालय में कलेक्टर कॉन्फ्रेंस के पहले मुख्यमंत्री दर्पण वेबसाईट और मोबाइल एप का लोकार्पण किया। इस वेबसाईट के जरिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल राज्य सरकार की सुराजी गांव योजना सहित अन्य फ्लैगशिप योजनाओं की नियमित मॉनिटरिंग कर सकेंगे वहीं इस वेबसाईट और मोबाइल एप की जरिए आमजन इन योजनाओं की जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकेंगे। इस वेबसाईट और मोबाइल एप का निर्माण चिप्स द्वारा किया गया है।
मुख्यमंत्री ने चिप्स के अधिकारियों को बधाई देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री दर्पण पोर्टल और मोबाइल एप के जरिए जहां सीधे मुख्यमंत्री सचिवालय से योजनाओं की प्रगति की समीक्षा और निगरानी होगी वहीं दूसरी ओर योजनाओं की समस्त जानकारी वास्तविक समय पर आम-नागरिकों के लिए भी उपलब्ध रहेंगी।
मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि इस पोर्टल द्वारा समस्याओं के समाधान भी उपलब्ध कराए जायेंगे। मुख्यमंत्री वार्ड कार्यालय योजना अंतर्गत नागरिक अपनी समस्याओं और जानकारियों की फोटो खींच कर एप में तत्काल भेज सकते हैं, जिसे एडमिन पैनल के माध्यम से निराकरण के लिए सम्बंधित अधिकारी को भेजा जाएगा और निराकरण होने तक निगरानी की जायेगी। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री सुब्रत साहू ने बताया कि मुख्यमंत्री दर्पण पोर्टल और मोबाइल एप की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हम नो पेपर मूल्यांकन और रियल टाइम मानिटरिंग की ओर बढ़ रहे हैं। स्कूल और तकनीकी शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला ने दर्पण वेबसाइट और मोबाईल एप की विस्तृत जानकारी प्रदान की। इस वेबसाईट की लिंक द्धह्लह्लश्चह्य://ष्द्वष्द्धद्धड्डह्लह्लद्बह्यद्दड्डह्म्द्ध-ष्द्दह्यह्लड्डह्लद्ग-द्दश1-द्बठ्ठ/॥शद्वद्गतथा योजनाओं के लिंक द्धह्लह्लश्चह्य://ष्द्वष्द्धद्धड्डह्लह्लद्बह्यद्दड्डह्म्द्ध-ष्द्दह्यह्लड्डह्लद्ग-द्दश1-द्बठ्ठ/॥शद्वद्ग/्रठ्ठस्रह्म्शद्बस्र&्रश्चश्चह्य हैं।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सुराजी गांव योजना (नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी) सहित महात्मा गाँधी की जयंती 02 अक्टूबर 2019 के दिन शुरू की जन-कल्याणकारी योजनाओं को इसमें शामिल किया गया है। इन योजनाओं में सुराजी गांव योजना, मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना, मुख्यमंत्री सुपोषण योजना, मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लीनिक योजना, मुख्यमंत्री वार्ड कार्यालय योजना प्रमुख है। चिप्स के मुख्य कार्यपालन अधिकारी समीर विश्नोई ने बताया कि मुख्यमंत्री दर्पण पोर्टल और मोबाइल एप में आम-नागरिकों के लिए अनेक सुविधाएँ दी जा रही है। वेबसाईट में 'मुख्यमंत्री जी से बातचीतÓ के अंतर्गत आमजन अपने विचार साझा कर सकते हैं। मुख्यमंत्री जी से संवाद करने के लिए सीधे वेबसाईट पर लिख सकते हैं, सोशल मीडिया एकाउंट से जुड़ सकते हैं। इसमें करोना के समाधान भी बताये गये हैं। इसके अलावा दर्पण में सभी प्रमुख योजनाओं की हर प्रकार की जानकारी आंकड़ों के साथ भी उपलब्ध कराई गयी है जैसे- नरवा योजना के अंतर्गत स्वीकृत नालों की कार्य प्रगति, सर्वे अनुसार लक्ष्य, घटकवार रिपोर्ट, योजना की सफलता की झलकियाँ आदि को विस्तार से बताया गया है।

राजनांदगांव / शौर्यपथ / बीते दिन पीडब्लयूडी विभाग द्वारा 84 पेड़ों पर नंबर लिख कर चिन्हांकित कर रोड चौड़ीकरण हेतु उन्हें काटने की अनुमति एसडीएम कार्यालय में आवेदिन दिया है। यह मामला सामने आते ही नगर के पर्यावरण प्रेमियों ने विभाग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है एवं इसे फैसले को अनुमति नहीं देने के विषय में कलेक्टर टोपेश्वर वर्मा से मिलने पहुंचे एवं अपनी मंाग रखी। इस पर कलेक्टर द्वारा मामले को संज्ञान में लेने की बात कही गई।
ज्ञात हो कि जिस मार्ग पर पेड़ो की कटाई प्रस्तावित है, वहां यातायात का दबाव भी इतना नहीं है कि रोड अधिक चौड़ा किया जाये एवं इससे लगा हुआ गौरवपथ बड़ी गाडिय़ों के आवाजाही उपलब्ध है तो इस रोड का निर्माण इस तरह किया जाए जिससे किसी भी पेड़ को नुकसान न पहुंचे यह मांग रखी गई। ज्ञात हो कि एक पेड़ को बड़ा होने में 10-15 वर्ष का समय लगता है एवं एक पेड़ अपने जीवनकाल में अनेक लोगो को फायदा ही पहुचाता है, लेकिन 84 पेड़ों का एक साथ काटने पर शहरवासियों का उग्र विरोध शासन को झेलना पड़ेगा।
ज्ञात हो कि वन एवं पर्यावरण मंत्री मो. अकबर जिले के प्रभारी मंत्री भी है एवं उनके क्षेत्र में पेड़ों के साथ ऐसा होना उनके ऊपर भी प्रश्रचिन्ह खड़ा करती है कि कहीं इसमें उनकी अनुमति तो नहीं फिलहाल इस निर्णय का विरोध शुरू हो गया है। आज ज्ञापन सौपने के दौरान मुख्य रूप से शिवम यादव, आदित्य पराते, शुभम देवांगन, आयुष वैष्णव, रजत वैष्णव, चंदन साहू, लीलाधर प्रजापति, सुमित यादव, अमित यादवए वेदप्रकाश देवांगन आदि उपस्थित थे।

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