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दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग जिले के छोटे से गांव असोगा की रहने वाली श्रीमती मंजू अंगारे जो आज लड्डू वाली दीदी के नाम से प्रसिद्ध है। पाटन विकासखण्ड के असोगा गांव में 12 महिलाओं को जोड़कर मॉ संतोषी महिला स्व सहायता समूह का गठन किया गया, जिसमें मंजू अंगारे दीदी सदस्य के रूप में है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर मंजू अंगारे द्वारा सभी प्रकार के लड्डु अपने हाथों से तैयार कर दुकानों एवं आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों के लिए विक्रय किया जा रहा है। दीदी द्वारा करी के लड्डु, मुर्रा लड्डु, तिल के लड्डु, मेवे के लड्डु, बेसन का लड्डु बनाया जा रहा है।
समूह से जुड़कर दीदी द्वारा बैंक से एक लाख रूपए का लोन लिया और अपने कार्य को चलाना प्रारंभ किया, जिसमें दीदी प्रतिमाह 15 हजार से 20 हजार रूपए औसत कमा रही है। दीदी के द्वारा शुरूआत में केवल अपने गांव के दुकानों का आर्डर लेकर सभी प्रकार के लड्डु का निर्माण किया जाता था, लेकिन आज दीदी के द्वारा पाटन ब्लॉक के आस-पास के सभी गांवो से सभी प्रकार के लड्डू बनाने का ऑर्डर लिया जा रहा है, जिससे दीदी के कमाई में और अधिक वृद्धि हुई।
दीदी के द्वारा अपने काम को आगे और बढ़ाने के लिए ग्राम संगठन से सीआईएफ लोन ऋण 60 हजार उपलब्ध कराया गया, जिसे प्रतिमाह समय पर संगठन में जमा कर रही है। समूह को 15 हजार की अनुदान राशि की सहायता मिलने से कार्य में वृद्धि आई। दीदी को आस-पास के गांव से शादी/छट्ठी एवं अन्य कार्यक्रम में आर्डर मिलना शुरू हो गया। छोटे से गांव में समूह के माध्यम से आजीविका करके पूरे गांव में लड्डू वाली दीदी के नाम से प्रसिद्व हो गई। लड्डू बनाकर प्रत्येक माह 15 हजार से 20 हजार रूपये लाभ कमाकर मंजू दीदी लखपति दीदी बन गई हैं।
दुर्ग / शौर्यपथ / सेठ आर. सी. एस. कला एंव वाणिज्य महाविद्यालय में फैशन शो "स्टाइल सेंशेसन' का आयोजन किया गया। जिला शिक्षण समिति द्वारा संचालित महाविद्यालय सेठ आर. सी. एस. कला एंव वाणिज्य महाविद्यालय, सेठ रतनचंद सुराना विधि महाविद्यालय एंव सेठ बद्रीलाल खण्डेलवाल शिक्षा महाविद्यालय के छात्र एंव छात्राओं ने फैशन शो में भाग लिया। जिला शिक्षण समिति के अध्यक्ष प्रवीण चंद्र तिवारी, सचिव दिलीप इंगले, संरक्षक डॉ. जयराम अय्यर एंव सदस्य विरेन्द्र शुक्ला, अनिल सुराना, मलय कुमार जैन, गजेन्द्र जोशी एंव शासी निकाय के अध्यक्ष मनोज कुमार शर्मा, प्राचार्य डॉ पूजा मल्होत्रा, अखिलेश अग्रवाल एंव डॉ. उमाकांति सिंह उपस्थित थे।
निर्णायक के रूप में श्रीमती जूही व्यास मिसेस इंडिया वर्ल्ड 2022-23, डॉ. गुंजा पिंचा मिस छत्तीसगढ़ 2022 एंव श्रीमती टीना खण्डेलवाल संचालक, एनआईएफ भिलाई उपस्थित थीं । कार्यक्रम के प्रायोजक एंव विशेष अतिथि श्रीमती रिवेका बेदी, भरत कुमार झा प्रबंधक बैंक ऑफ महाराष्ट्र दुर्ग, सोमेश शर्मा, अमित मिश्रा, हेमा सक्सेना संचालक एचएम सौन्दर्य, सौरभ ताम्रकार, अजय मेहरा, विनित जैन अध्यक्ष दुर्ग राइस मिल एसोसिएशन, सचिन खण्डेलवाल एसके इंडस्ट्रीज दुर्ग, अकरम गोरी संचालक ताज मशाला, प्रफुल्ल जैन संचालक मांगीलाल लक्ष्मीलाल जैन ज्वेलर्स, तुलसी सोनी चार्टर्ड एकाउंटेंट, एल. एन. अग्रवाल संचालक लक्ष्मी-तृप्ती एसोसिएट्स, सिद्धार्थ मेहता संचालक कैरियर लांचर भिलाई, परिणीता चंद्राकर संचालक मिरर सैलों एंड ब्यूटी एकेडमी, तुषार हरमुख इवेंट प्लानर, अनिकेत संचालक सर्वज्ञ आइएएस, महेंद्र भावनानी, रजत चंद्राकर संचालक फोर डी एजुकेशन हब के सहयोग इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रतिभागियों
रायपुर/शौर्यपथ / केन्द्रीय जेल रायपुर में आज प्रथम अंतरराष्ट्रीय ध्यान दिवस के अवसर पर ध्यान एवं योग शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर का संचालन योग आयोग के पूर्व सदस्य एवं आर्ट ऑफ लिविंग के वरिष्ठ प्रशिक्षक श्री अजय सिंह ने किया। शिविर में लगभग 200 बंदियों एवं जेल के अधिकारी-कर्मचारियों ने भाग लिया।
इस अवसर पर प्रशिक्षक श्री अजय सिंह ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय ध्यान दिवस घोषित किया है ताकि ध्यान के लाभों के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके। उन्होंने कहा कि ध्यान मानसिक स्पष्टता, भावनात्मक शांति और शारीरिक विश्राम प्रदान करने का प्रभावी साधन है। यह तनाव कम करने, भावनात्मक संतुलन सुधारने और बेहतर नींद के लिए सहायक होता है। उन्होंने बंदियों को ध्यान और योग को दैनिक जीवन का हिस्सा बनाने की सलाह दी।
प्रशिक्षक श्री अजय सिंह ने यह भी बताया कि इस ऐतिहासिक दिवस पर पूज्य गुरुदेव श्री श्री रविशंकर संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित होंगे। इस कार्यक्रम से 180 देशों के लोग ऑनलाइन जुड़ेंगे। इसी क्रम में केन्द्रीय जेल रायपुर में यह शिविर आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य बंदियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करना है।
जेल अधीक्षक श्री अमित शांडिल्य ने ध्यान के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि ध्यान को दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए, भले ही यह कुछ मिनटों के लिए हो। यह न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है बल्कि तनाव कम करने में भी सहायक होता है।
शिविर के अंत में श्री अजय सिंह ने बंदियों के उत्साह को देखते हुए भविष्य में योग, प्राणायाम, ध्यान, सुदर्शन क्रिया और जीवन जीने की कला से जुड़े विशेष शिविर आयोजित करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि यह प्रयास बंदियों के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के साथ-साथ उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक होगा। शिविर के दौरान बंदियों ने ध्यान और योग अभ्यास में उत्साहपूर्वक से भाग लिया।
शौर्यपथ /हर कोई अमीर बनना चाहता है, लेकिन अच्छी आदतें पालने और हार्ड वर्क करने के लिए बहुत कम लोग तैयार रहते हैं. अमीर बनने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगाना पड़ता है. हालांकि सोशल मीडिया पर अमीर बनने के सौ तरीके मिल जाते हैं, लेकिन उन्हें फॉलो के लिए जिगरा चाहिए होता है. वहीं, चाणक्य ने भी प्राचीन समय में अमीर बनने के कुछ ऐसे टिप्स बताए थे, जो सफल होने की गारंटी देते हैं. कहा जाता है कि चाणक्य की नीतियों को जीवन में अमल करने वाला इंसान सफलता की ओर बढ़ता रहता है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं चाणक्य की उन 8 नीतियों के बारे में जिन्हें अपनाने पर सफलता आपके कदम चूमेंगी और देखते ही देखते यह सफलता आपको अमीर इंसान बना देंगी.
हार्ड वर्क
चाणक्य नीति कहती है कि इंसान को सदैव कड़ी मेहनत के लिए खुद को तैयार रखना चाहिए. चाणक्य का मानना है कि जो लोग हार्ड वर्क करने में पीछे नहीं हटते हैं, उन्हें सफलता जरूर मिलती है और सफल इंसान ही अमीर बनने की ओर अग्रसर होता है.
शिक्षा
कहते हैं कि शिक्षा गरीब का सबसे बड़ा हथियार है. इसलिए धन के साथ-साथ व्यक्ति को ज्ञान में धनी होना चाहिए. इसलिए समय रहते सही शिक्षा ग्रहण करें और इससे मिलने वाले अवसरों का लाभ उठाएं. साथ ही ज्ञान और जानने की इच्छा को कभी कम ना होने दें.
सेविंग
चाणक्य ही नहीं, दुनिया के सबसे अमीर बिजनेसमैन भी इस बात को मानते हैं कि अपनी इनकम का पहला हिस्सा बचत के लिए रखें और दूसरे हिस्से को घर खर्च के लिए. चाणक्य कहते हैं कि जो इंसान पैसों की बचत करने में माहिर होता है, उसे भविष्य में किसी के भी आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती है. इसलिए, लोगों को गैरजरूरी खर्चों पर लगाम लगानी चाहिए और बचत की ओर ध्यान देना चाहिए.
रिस्क
चाणक्य नीति कहती है कि लाइफ में आगे बढ़ने के लिए रिस्क तो लेना ही पड़ता है. जोखिम लेने का डर लोगों को कामयाब नहीं होने देता है. इसलिए कोई भी काम शुरू करने के लिए सोच-समझकर ही रिस्क लें, ध्यान रहें कि जोखिम आपकी क्षमता के ही अनुसार हो. कभी भी गैर-जरूरी खर्चों के लिए कर्जा ना लें.
धैर्य
कोई भी बड़ी चीज एक दिन में हासिल नहीं हो सकती है. इसके लिए सालों तक इंतजार करना पड़ता है और इंतजार के लिए धैर्य होना बहुत जरूरी है. इसलिए चाणक्य नीति कहती है कर्म करो फल की इच्छा नहीं. सही दिशा में धैर्य के साथ मेहनत करते रहो.
ईमानदारी
चाणक्य नीति के अनुसार, इंसान को अपने काम और लोगों के प्रति ईमानदारी होना बहुत जरूरी है. किसी को धोखा देकर या बेईमानी से कमाया गया पैसा कभी भी नहीं फलता है. इसलिए बिजनेस में फ्रॉड और चोरी करने से बचें.
सरकारात्मक बनें
चाणक्य नीति यह भी कहती है कि कोई भी काम बिना सकारात्मक सोच के नहीं हो सकता है. इसलिए कुछ भी सोचो लेकिन अपने लिए नेगेटिव मत सोचो. क्योंकि नेगेटिव सोचने से इंसान हमेशा पीछे जाता है और आगे के लिए उसके रास्ते बंद होते चले जाते हैं. इसलिए कोई भी काम शुरू करने से पहले और बाद में सिर्फ और सिर्फ अपनी सोच को सकारात्मक रखें.
लगन
काम में लगन बहुत जरूरी है और बाकी चीजों की तरह चाणक्य नीति की यह बात भी सफल बनाने का काम करती है. इसलिए बेकार की बातों से निकलर बस अपने टारगेट पर ध्यान रखें और उसे पूरा करने का प्रयास करते रहें. लगन आपको टारगेट को पूरा करने का जज्बा देती है.
आस्था /शौर्यपथ / मंदिर आस्था और भक्ति का स्थान होते हैं और इनकी पवित्रता का हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए. यही कारण है कि देश के कई मंदिरों में मंदिर प्रशासन की ओर ड्रेस कोड लागू किया गया है. इसके तहत भक्तों से मंदिर में शालीन वस्त्रों में आने की अपेक्षा रखी जाती है. अब वृंदावन के प्रसिद्ध ठाकुर श्री बांके बिहारी महाराज मंदिर में ड्रेस कोड लागू कर दिया गया है. मंदिर प्रशासन ने भक्तों से शालीन वस्त्र में मंदिर आने की अपील करते हुए नोटिस लगा दिया है. इस नोटिस में बकायदा बताया गया कि किस तरह के कपड़ों में मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा. मंदिर प्रशासन की ओर से श्रद्धालुओं से अपील की गई है कि मंदिर ध्र्म का स्थान है, पर्यटन स्थल नहीं, इसलिए मंदिर में प्रवेश के लिए शालीन वस्त्र में आना जरूरी है. आइए जानते हैं किन वस्त्रों में नहीं मिलेगा मंदिर में प्रवेश और किन किन मंदिरों में है ड्रेस कोड.....
इन कपड़ों में मंदिर में प्रवेश की मनाही
वृंदावन के प्रसिद्ध ठाकुर श्री बांके बिहारी महाराज मंदिर में नए वर्ष के अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु व पर्यक पहुंचते हैं. अब मंदिर में ड्रेस कोड लागू होने के बाद लोगों को हाफ पैंट, बरमूडा, मिनी स्क र्ट, नाइट सूट, रिब्ड जींस, चमड़े के बेल्ड पहनकर आने पर मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा. मंदिर में लगे नोटिस में ऐसे कपड़ों की तस्वीर भी लगा दी गई है जिन्हें पहनकर आने की मनाही है. इसके साथ ही मंदिर प्रशासन ने लोगों से इस व्यवस्था से सहयोग करने की अपील की है.
देश के कई मंदिरों में ड्रेस कोड लागू है. ऐसा मंदिर में शालीनता बनाए रखने के लिए किया गया. देश के प्रसिद्ध मंदिरों में बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं. पुरी के जगन्नाथ मंदिर में पश्चिमी कपड़े में प्रवेश की मनाही है. इसके अलावा केरल के महाबालेर मंदिर भी पश्चिमी कपड़े में प्रवेश की मनाही , उज्जैन के महाकाल मंदिर में महिलाओं को साड़ी और पुरुषों को कुर्ता व धोती में ही प्रवेश करने अनुमति है. दिल्ली के कालकाजी मंदिर में इसी तर्ज पर ड्रेस कोड लागू है. केरल के गुरुवायुर मंदिर में पुरुषों को पारंपरिक लुंगी में ही प्रवेश की अनुमति है. महाराष्ट्र के संभाजीनगर में 12 ज्योतिर्लिगों में शामिल घृष्णोर महादेव मंदिर में भी ड्रेस कोड का पालन करना जरूर है. यहां पुरुषों को कमर के उपर के वस्त्र यानी शर्ट यो कुर्ता उतारकर प्रवेश करने दिया जाता है. तिरुपति मंदिर में भी शॉट्स या टीशर्ट पहनकर प्रवेया करने की अनुमति नही है. महिलाओं को साड़ी या सूट में ही प्रवेश दिया जाता है. वृंदावन केा के राधा दामोदर, पागल बाबा मंदिर भी ड्रेस कोड लागू है.
मंदिर जाने के पहले रखें ध्यान
अगर आप भी नए साल में मंदिर जाकर प्रभु के दर्शन का लाभ लेना चाहते हैं तो ड्रेस कोड का जरूर ध्यान रखें और पारंपरिक भारतीय वस्त्रों में ही मंदिर जाने की प्लानिंग करें. इसके अलावा अगर आपके घर विदेशी मेहमान आने वाले हैं और आप उन्हें मंदिरों की भव्यता दिखाने का प्लान बना रहे हैं तो भी मेहमानों के कपड़ों का ध्यान जरूर रखें.
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ / हिंदू धर्म में भानु सप्तमी की अत्यधिक धार्मिक मान्यता होती है. माना जाता है कि भानु सप्तमी पर सूर्य देव की पूजा करने पर जीवन में खुशहाली आती है और सफलता के द्वार खुलते हैं. पंचांग के अनुसार, जिस माह की सप्तमी तिथि पर रविवार पड़ता है उस दिन भानु सप्तमी मनाई जाती है. भानू सप्तमी पर व्रत रखकर सूर्य देव की पूजा की जाती है और परिवार की सुख-समृद्धि के साथ ही अच्छे स्वास्थ्य और भाग्य की कामना की जाती है. जानिए साल 2024 की आखिरी भानु सप्तमी किस दिन पड़ रही है और किस शुभ मुहूर्त में सूर्य देव की पूजा की जा सकती है.
कब है भानु सप्तमी |
पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि की शुरूआत 21 दिसंबर की दोपहर 12 बजकर 21 मिनट पर होगी और इस तिथि का समापन अगले दिन 22 दिसंबर दोपहर 2 बजकर 31 मिनट पर हो जाएगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, साल की आखिरी भानु सप्तमी 22 दिसंबर के दिन मनाई जाएगी.
भानु सप्तमी का शुभ मुहूर्त
भानु सप्तमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5 बजकर 21 मिनट से शुरू होकर 6 बजकर 16 मिनट पर खत्म हो जाएगा. इस दिन विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 3 मिनट से 2 बजकर 44 मिनट तक रहेगा. इस दिन सूर्योदय का समय 7 बजकर 10 मिनट है, वहीं सूर्यास्त शाम 5 बजकर 29 मिनट पर हो जाएगा.
भानु सप्तमी की पूजा विधि
भानु सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता है और सूर्य देव की पूजा की जाती है. सबसे पहले सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है फिर उनके समक्ष दीप जलाकर आरती की जाती है. इसके पश्चात भक्त व्रत का संकल्प लेते हैं. सूर्य देव के मंत्रों का जाप किया जाता है और फिर जीवन में सुख शांति की कामना की जाती है. अंत में फल और मिठाई को भोग स्वरूप चढ़ाया जाता है. इस दिन दान करने का विशेष महत्व होता है. भानु सप्तमी के दिन गरीब और जरूरतमंदों को चावल, गेंहू और गुड़ आदि का दान देना शुभ माना जाता है. दिसंबर में इस दिन मनाई जाएगी साल की आखिरी भानु सप्तमी, जानिए तिथि और शुभ मुहूर्त
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ/सनातन धर्म के सबसे बड़े समागम के तौर पर प्रसिद्ध महाकुंभ मेला 13 जनवरी से आरंभ होने जा रहा है. 12 सालों में एक बार आने वाले महाकुंभ मेले में हर बार करोड़ों भाग लेते हैं और पवित्र नदियों के संगम में डुबकी लगाकर दान, ध्यान और आध्यात्म का अनुभव करते हैं. प्रयागराज में होने वाले इस महाकुंभ का धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से काफी महत्व है. प्रयागराज में संगम तट पर जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का संगम होता है, उसी स्थान पर स्नान करने से पाप कट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. 13 जनवरी से आरंभ होने वाले महाकुंभ मेले का समापन 26 फरवरी के दिन होगा. महाकुंभ में ऐसी कई चीजें हैं जिनका धार्मिक और वास्तु महत्व भी हैं.अगर आप भी इस बार महाकुंभ मेले में जा रहे हैं तो घर परिवार में सुख शांति और समृद्धि के लिए कुछ खास चीजों को अपने साथ लाना न भूलें.
महाकुंभ से लौटते वक्त घर ले आएं ये चीजें
महाकुंभ मेले के दौरान पवित्र संगम तट पर स्नान करने से पाप धुल जाते हैं. यहां की हर चीज का आध्यात्मिक महत्व है. अगर आप घर में किसी परेशानी से जूझ रहे हैं, आपकी किस्मत साथ नहीं दे रही है या फिर धन की दिक्कत है. तो आप महाकुंभ से ये पवित्र चीजें घर ले आइए. इससे आपकी सोई हुई किस्मत चमक जाएगी और आपकी परेशानियां दूर होने लगेंगी.
त्रिवेणी घाट का जल
प्रयागराज में जिस स्थान पर गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है, उसे त्रिवेणी संगम तट कहा जाता है. यहां स्नान के बाद थोड़ा सा जल अपने साथ घर ले आएं. कहा जाता है कि ये जल बहुत ही पवित्र होता है और इसे घर में रखने से नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है. इस जल को घर में लाकर हर कोने में छिड़क दें. इससे घर में पॉजिटिविटी का संचार होगा और आपकी परेशानियां खत्म होने लगेंगी.
संगम तट की पावन मिट्टी
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय अमृत से भरे कलश की कुछ बूंदें यहीं पर गिरी थी. इसलिए इस जगह की मिट्टी अमृत समान होती है. घर लौटते समय संगम तट की थोड़ी सी मिट्टी घर ले आएं. कहा जाता है कि महाकुंभ की मिट्टी को घर में लाने से सभी तरह के ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं और ग्रहों की शुभ दशा शुरू हो जाती है.
महाकुंभ की पूजा के फूल
त्रिवेणी संगम पर स्नान दान के बाद आप पूजा के फूलों को भी घर पर ला सकते हैं. महाकुंभ के फूल बहुत ही पवित्र होते हैं. इन्हें घर में लाने से सभी तरह की परेशानियां दूर होती हैं और जीवन में सुख शांति का वास होने लगता है. आप इन फूलों की मदद से घर के आंगन में कुछ फूल और भी खिला सकते हैं. इन फूलों को सुखाकर इन्हें तिजोरी में रखने से भी घर में धन की बरकत होने लगती है.
महाकुंभ का प्रसाद
अगर महाकुंभ स्नान के बाद आपने पूजा की है तो उसका प्रसाद भी आपको घर जरूर लाना चाहिए. इस प्रसाद को घर परिवार के साथ साथ आस पास के लोगों में बांटने से पुण्य में बढ़ोतरी होती है. इसलिए घर लौटते समय प्रसाद लाएं और बांटें.
कुंभ स्नान की शाही तिथियां
अगर आप कुंभ स्नान के लिए जा रहे हैं तो शाही स्नान की मुख्य तिथियों के बारे में जानना जरूरी है. शाही स्नान की पहली तिथि 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति के दिन है. इसके बाद दूसरे शाही स्नान की तिथि 29 जनवरी यानी मौनी अमावस्या के दिन है. तीसरे शाही स्नान की तिथि 3 फरवरी यानी बसंत पंचमी के दिन है. चौथे शाही स्नान की तिथि 12 फरवरी माघी अमावस्या के दिन है. पांचवे और अंतिम शाही स्नान की तिथि 26 फरवरी यानी महाशिवरात्रि के दिन है.
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ /हर माह मनाई जाने वाली कालाष्टमी को मासिक कालाष्टमी कहा जाता है. पंचांग के अनुसार, मासिक कालाष्टमी का व्रत हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर रखा जाता है. इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा की जाती है. माना जाता है कि भैरव बाबा की पूरी श्रद्धाभाव से पूजा की जाए तो जीवन से नकारात्मकता दूर हो जाती है और नकारात्मक शक्तियां भी व्यक्ति को छू नहीं पाती हैं. यहां जानिए पौष माह में किस दिन रखा जाएगा कालाष्टमी का व्रत और किस तरह संपन्न की जाएगी कालाष्टमी की पूजा.
मासिक कालाष्टमी की तिथि |
हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 दिसंबर की दोपहर 2 बजकर 31 मिनट से शुरू होगी और इस तिथि का समापन 23 दिसंबर की शाम 5 बजकर 7 मिनट पर हो जाएगा. ऐसे में निशिता मुहूर्त के आधार पर कालाष्टमी का व्रत 22 दिसंबर के दिन रखा जाएगा.
कालाष्टमी का शुभ मुहूर्त
कालाष्टमी के दिन अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:45 बजे से 01:33 बजे तक रहेगा. इस दिन अमृत काल का मुहूर्त सुबह 3:34 से शुरू होकर अगले दिन सुबह 5:22 तक रहेगा. रवि योग सुबह 7:08 से शुरू होकर 8:44 तक रहेगा. वहीं, सर्वार्थ सिद्धि योग की शुरूआत सुबह 8:44 से होगी और इसका समापन अगले दिन सुबह 7:09 पर होगा. कालाष्टमी पर निशिता मुहूर्त सुबह 12:45 से शुरू होगा और इसका समापन अगले दिन सुबह 01:33 पर हो जाएगा.
बन रहे हैं शुभ योग
पौष माह की मासिक कालाष्टमी पर कई शुभ योग बन रहे हैं. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, आयुष्मान योग, त्रिपुष्कर योग और सौभाग्य योग बनने जा रहे हैं. सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन रहेगा, त्रिपुष्कर योग इस दिन सुबह 7 बजकर 10 मिनट से लेकर दोपहर 2 बजकर 31 मिनट तक रहने वाला है. इन योगों को बेहद शुभ माना जाता है और कहते हैं इनसे सभी कार्यों में सफलता मिलती है.
भैरव बाबा का भोग
कालाष्टमी के दिन बाबा भैरव की पूजा में फल और मिठाइयों को भोग स्वरूप अर्पित किया जाता है. केले, सेब, अंगुर, लड्डू, बर्फी और हलवा भोग में शामिल किए जा सकते हैं. पान के पत्ते और सूखे मेवों को भी भोग में रखा जा सकता है. काल भैरव पर काले तिल चढ़ाना भी शुभ माना जाता है.
सही जवाब देकर खूब उपहार भी बटोरे
कटोरा तालाब के उद्यान में आज होगा तीसरा इवेंट
रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के सफल नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार के एक साल पूरे हो गए हैं । जनसंपर्क विभाग द्वारा खुशहाल एक साल इवेंट के ज़रिए छत्तीसगढ़ सरकार की पिछले एक साल की उपलब्धियों और योजनाओं को राजधानी रायपुर के लोगों के बीच पहुंचाया जा रहा है । मनोरंजन , गेम्स , हंसी मज़ाक के माहौल में लोगों को शासन की योजनाओं की जानकारी भी दी जा रही और इस बीच सरकार की पिछले एक साल की उपलब्धियों और योजनाओं संबंधी प्रश्न भी रोचक ढंग से पूछे जा रहे हैं । सही जवाब देने पर उन्हें आकर्षक गिफ्ट वाउचर्स , उपहार भी दिए जा रहे हैं । योजनाओं की सही जानकारी और उस पर से सही जवाब देने पर मिलने वाले उपहार से लोगों के उत्साह में चार चांद लग रहा है । रविवार 15 दिसंबर मैग्नेटो मॉल से शुरू हुए खुशहाल एक साल इवेंट के सिलसिले की कड़ी में मंगलवार 17 दिसंबर को दूसरा कार्यक्रम तेलीबांधा स्थित मरीन ड्राइव में किया गया । शाम की गुलाबी ठंड में मरीन ड्राइव पे वॉक करने , फ़ूड और गेम जोन में आनेवाले सैकड़ों लोगों ने इवेंट शुरू होने पर रुक कर इसका भरपूर आंनद लिया । कोई खड़े खड़े , कोई तालाब किनारे बैठकर , तो कोई कुर्सी में बैठकर इवेंट का लुत्फ उठाता रहा । बच्चे , बड़े , बुजुर्ग , युवा सबने ख़ुशहाल एक साल इवेंट में भाग लेते हुए छत्तीसगढ़ सरकार की महतारी वंदन योजना , नियद नेल्ला नार योजना , औद्योगिक विकास नीति , बस्तर पर्यटन कॉरिडोर , बढ़ती विमान सेवाएं , अधोसंरचनात्मक विकास के कार्यों को दिल से सराहा ।
आज बुधवार को इसी कड़ी में कटोरा तालाब के उद्यान में शाम 6.30 बजे से खुशहाल एक सवाल इवेंट आयोजित किया जाएगा।
*समाज की मजबूती है संस्कृति: रोकें विकृति- डॉ अलंग*
रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति विभाग के सहयोग से बहुमत संस्था तथा श्री चतुर्भुज मेमोरियल फाउंडेशन के द्वारा साहित्य संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह का आयोजन भिलाई निवास में किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध लेखक डॉ संजय अलंग (आई ए एस) ने मानव समाज में सभ्यता -संस्कृति की उपादेयता को रेखांकित किया।विशिष्ट अतिथि पद्मश्री अजय मंडावी,ई व्ही मुरली ने भी लोकजीवन पर विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी में लोकनाट्य,चित्रकला जनजातीय जीवन, तालाब और जनजीवन पर क्रमशः विजय मिश्रा 'अमित,डॉ सुनीता वर्मा, डुमन लाल ध्रुव और गोविंद पटेल ने रोचक जानकारियों से संगोष्ठी को सार्थक किया।
इसी क्रम में आयोजित सम्मान समारोह के अंतर्गत सर्वश्री लोक बाबू, दुर्गा प्रसाद पारकर, देवेंद्र गोस्वामी, राजेंद्र सोनबोईर, मयंक चतुर्वेदी, मो.जाकिर हुसैन, श्वेता उपाध्याय, रौनक जमाल, कमलेश चंद्राकर, डॉ संजय दानी, डुमन लाल ध्रुव एवं विजय मिश्रा 'अमित' को साहित्य धर्मिता के कुशल निर्वहन हेतु चतुर्भुज मेमोरियल कृति सम्मान से विभूषित किया गया।
इस अवसर बहुमत के संस्थापक विनोद मिश्र ने स्वागत उद्बोधन के साथ ही बहुमत और चतुर्भुज मेमोरियल फाउंडेशन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन डॉ अरुण श्रीवास्तव,राजीव चौबे ,मुमताज, नरेंद्र बंछोर, सीमा श्रीवास्तव,श्वेता उपाध्याय सुमन कन्नौजे,जसवीर कौर ने सफलता पूर्वक किया। समारोह में दुर्ग,भिलाई, रायपुर के साहित्यकार बड़ी संख्या में शामिल हुए।
धर्म / शौर्यपथ /
लंका में महा बलशाली मेघनाद के साथ बड़ा ही भीषण युद्ध चला, अंतत: मेघनाद मारा गया। रावण जो अब तक मद में चूर था राम सेना, खास तौर पर लक्ष्मण का पराक्रम सुनकर थोड़ा तनाव में आया।
रावण को कुछ दुःखी देखकर रावण की मां कैकसी ने उसके पाताल में बसे दो भाइयों अहिरावण और महिरावण की याद दिलाई, रावण को याद आया कि यह दोनों तो उसके बचपन के मित्र रहे हैं।
लंका का राजा बनने के बाद उनकी सुध ही नहीं रही थी। रावण यह भली प्रकार जानता था कि अहिरावण व महिरावण तंत्र-मंत्र के महा पंडित, जादू टोने के धनी और मां कामाक्षी के परम भक्त हैं।
रावण ने उन्हें बुलावा भेजा और कहा कि वह अपने छल-बल-कौशल से श्री राम व लक्ष्मण का सफाया कर दे। यह बात दूतों के जरिए विभीषण को पता लग गयी। युद्ध में अहिरावण व महिरावण जैसे परम मायावी के शामिल होने से विभीषण चिंता में पड़ गए।
विभीषण को लगा कि भगवान श्री राम और लक्ष्मण की सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी करनी पड़ेगी। इसके लिए उन्हें सबसे बेहतर लगा कि इसका जिम्मा परम वीर हनुमान जी को राम-लक्ष्मण को सौंप कर दिया जाए। साथ ही वे अपने भी निगरानी में लगे थे।
राम-लक्ष्मण की कुटिया लंका में सुवेल पर्वत पर बनी थी। हनुमान जी ने भगवान श्री राम की कुटिया के चारों ओर एक सुरक्षा घेरा खींच दिया। कोई जादू टोना तंत्र-मंत्र का असर या मायावी राक्षस इसके भीतर नहीं घुस सकता था।
अहिरावण और महिरावण श्री राम और लक्ष्मण को मारने उनकी कुटिया तक पहुंचे, पर इस सुरक्षा घेरे के आगे उनकी एक न चली, असफल रहे। ऐसे में उन्होंने एक चाल चली, महिरावण विभीषण का रूप धर के कुटिया में घुस गया।
राम व लक्ष्मण पत्थर की सपाट शिलाओं पर गहरी नींद सो रहे थे। दोनों राक्षसों ने बिना आहट के शिला समेत दोनो भाइयों को उठा लिया और अपने निवास पाताल की ओर लेकर चल दिए।
विभीषण लगातार सतर्क थे, उन्हें कुछ देर में ही पता चल गया कि कोई अनहोनी घट चुकी है। विभीषण को महिरावण पर शक था, उन्हें राम-लक्ष्मण की जान की चिंता सताने लगी।
विभीषण ने हनुमान जी को महिरावण के बारे में बताते हुए कहा कि वे उसका पीछा करें। लंका में अपने रूप में घूमना राम भक्त हनुमान के लिए ठीक न था, सो उन्होंने पक्षी का रूप धारण कर लिया और पक्षी का रूप में ही निकुंभला नगर पहुंच गये।
निकुंभला नगरी में पक्षी रूप धरे हनुमान जी ने कबूतर और कबूतरी को आपस में बतियाते सुना। कबूतर, कबूतरी से कह रहा था कि अब रावण की जीत पक्की है। अहिरावण व महिरावण राम-लक्ष्मण को बलि चढा देंगे, बस सारा युद्ध समाप्त।
कबूतर की बातों से ही बजरंगबली को पता चला कि दोनों राक्षस राम लक्ष्मण को सोते में ही उठाकर कामाक्षी देवी को बलि चढाने पाताल लोक ले गये हैं। हनुमान जी वायु वेग से रसातल की और बढ़े और तुरंत वहां पहुंचे।
हनुमान जी को रसातल के प्रवेश द्वार पर एक अद्भुत पहरेदार मिला। इसका आधा शरीर वानर का और आधा मछली का था, उसने हनुमान जी को पाताल में प्रवेश से रोक दिया।
द्वारपाल हनुमान जी से बोला कि मुझ को परास्त किए बिना तुम्हारा भीतर जाना असंभव है। दोनों में लड़ाई ठन गयी। हनुमान जी की आशा के विपरीत यह बड़ा ही बलशाली और कुशल योद्धा निकला।
दोनों ही बड़े बलशाली थे, दोनों में बहुत भयंकर युद्ध हुआ, परंतु वह बजरंगबली के आगे न टिक सका। आखिर कार हनुमान जी ने उसे हरा तो दिया पर उस द्वारपाल की प्रशंसा करने से नहीं रह सके।
हनुमान जी ने उस वीर से पूछा कि हे वीर तुम अपना परिचय दो। तुम्हारा स्वरूप भी कुछ ऐसा है कि उससे कौतुहल हो रहा है। उस वीर ने उत्तर दिया- मैं हनुमान का पुत्र हूं और एक मछली से पैदा हुआ हूं, मेरा नाम है मकरध्वज।
हनुमान जी ने यह सुना तो आश्चर्य में पड़ गए। वह वीर की बात सुनने लगे, मकरध्वज ने कहा- लंका दहन के बाद हनुमान जी समुद्र में अपनी अग्नि शांत करने पहुंचे, उनके शरीर से पसीने के रूप में तेज गिरा।
उस समय मेरी मां ने आहार के लिए मुख खोला था। वह तेज मेरी माता ने अपने मुख में ले लिया और गर्भवती हो गई. उसी से मेरा जन्म हुआ है। हनुमान जी ने जब यह सुना तो मकरध्वज को बताया कि वह ही हनुमान हैं।
मकरध्वज ने हनुमान जी के चरण स्पर्श किए और हनुमान जी ने भी अपने बेटे को गले लगा लिया और वहां आने का पूरा कारण बताया। उन्होंने अपने पुत्र से कहा कि अपने पिता के स्वामी की रक्षा में सहायता करो।
मकरध्वज ने हनुमान जी को बताया कि कुछ ही देर में राक्षस बलि के लिए आने वाले हैं। बेहतर होगा कि आप रूप बदल कर कामाक्षी के मंदिर में जा कर बैठ जाएं। उनको सारी पूजा झरोखे से करने को कहें
हनुमान जी ने पहले तो मधुमक्खी का वेश धरा और मां कामाक्षी के मंदिर में घुस गये। हनुमान जी ने मां कामाक्षी को नमस्कार कर सफलता की कामना की और फिर पूछा- हे मां क्या आप वास्तव में श्री राम जी और लक्ष्मण जी की बलि चाहती हैं ?
हनुमान जी के इस प्रश्न पर मां कामाक्षी ने उत्तर दिया कि नहीं। मैं तो दुष्ट अहिरावण व महिरावण की बलि चाहती हूं। यह दोनों मेरे भक्त तो हैं पर अधर्मी और अत्याचारी भी हैं। आप अपने प्रयत्न करो. सफल रहोगे।
मंदिर में पांच दीप जल रहे थे अलग-अलग दिशाओं और स्थान पर, मां ने कहा यह दीप अहिरावण ने मेरी प्रसन्नता के लिए जलाये हैं जिस दिन ये एक साथ बुझा दिए जा सकेंगे, उसका अंत सुनिश्चित हो सकेगा।
इस बीच गाजे-बाजे का शोर सुनाई पड़ने लगा। अहिरावण, महिरावण बलि चढाने के लिए आ रहे थे। हनुमान जी ने अब मां कामाक्षी का रूप धरा। जब अहिरावण और महिरावण मंदिर में प्रवेश करने ही वाले थे कि हनुमान जी का महिला स्वर गूंजा।
हनुमान जी बोले- मैं कामाक्षी देवी हूं और आज मेरी पूजा झरोखे से करो। झरोखे से पूजा आरंभ हुई ढेर सारा चढावा मां कामाक्षी को झरोखे से चढाया जाने लगा। अंत में बंधक बलि के रूप में राम लक्ष्मण को भी उसी से डाला गया. दोनों बंधन में बेहोश थे।
हनुमान जी ने तुरंत उन्हें बंधन मुक्त किया। अब पाताल लोक से निकलने की बारी थी, पर उससे पहले मां कामाक्षी के सामने अहिरावण महिरावण की बलि देकर उनकी इच्छा पूरी करना और दोनों राक्षसों को उनके किए की सज़ा देना शेष था।
अब हनुमान जी ने मकरध्वज को कहा कि वह अचेत अवस्था में लेटे हुए भगवान राम और लक्ष्मण का खास ख्याल रखे और उसके साथ मिलकर दोनों राक्षसों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
पर यह युद्ध आसान न था। अहिरावण और महिरावण बडी मुश्किल से मरते तो फिर पाँच पाँच के रूप में जिदां हो जाते। इस विकट स्थिति में मकरध्वज ने बताया कि अहिरावण की एक पत्नी नागकन्या है।
अहिरावण उसे हर लाया है. वह उसे पसंद नहीं करती, पर मन मार के उसके साथ है, वह अहिरावण के राज जानती होगी। उससे उसकी मृ त्यु का उपाय पूछा जाये. आप उसके पास जाएं और सहायता मांगे।
मकरध्वज ने राक्षसों को युद्ध में उलझाये रखा और उधर हनुमान अहिरावण की पत्नी के पास पहुंचे। नागकन्या से उन्होंने कहा कि यदि तुम अहिरावण के मृ त्यु का भेद बता दो तो हम उसे मारकर तुम्हें उसके चंगुल से मुक्ति दिला देंगे।
अहिरावण की पत्नी ने कहा- मेरा नाम चित्रसेना है। मैं भगवान विष्णु की भक्त हूं। मेरे रूप पर अहिरावण मर मिटा और मेरा अपहरण कर यहां कैद किये हुए है, पर मैं उसे नहीं चाहती. लेकिन मैं अहिरावण का भेद तभी बताउंगी, जब मेरी इच्छा पूरी की जायेगी।
हनुमान जी ने अहिरावण की पत्नी नागकन्या चित्रसेना से पूछा कि आप अहिरावण की मृत्यु का रहस्य बताने के बदले में क्या चाहती हैं ? आप मुझसे अपनी शर्त बताएं, मैं उसे जरूर मानूंगा।
चित्रसेना ने कहा- दुर्भाग्य से अहिरावण जैसा असुर मुझे हर लाया. इससे मेरा जीवन खराब हो गया। मैं अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलना चाहती हूं. आप अगर मेरा विवाह श्री राम से कराने का वचन दें तो मैं अहिरावण के वध का रहस्य बताऊंगी।
हनुमान जी सोच में पड़ गए. भगवान श्री राम तो एक पत्नी निष्ठ हैं. अपनी धर्म पत्नी देवी सीता को मुक्त कराने के लिए असुरों से युद्ध कर रहे हैं. वह किसी और से विवाह की बात तो कभी न स्वीकारेंगे. मैं कैसे वचन दे सकता हूं ?
फिर सोचने लगे कि यदि समय पर उचित निर्णय न लिया तो स्वामी के प्राण ही संकट में हैं। असमंजस की स्थिति में बेचैन हनुमानजी ने ऐसी राह निकाली कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
हनुमान जी बोले- तुम्हारी शर्त स्वीकार है, पर हमारी भी एक शर्त है. यह विवाह तभी होगा, जब तुम्हारे साथ भगवान राम जिस पलंग पर आसीन होंगे, वह सही सलामत रहना चाहिए। यदि वह टूटा तो इसे अपशकुन मांगकर वचन से पीछे हट जाऊंगा।
जब महाकाय अहिरावण के बैठने से पलंग नहीं टूटता तो भला श्रीराम के बैठने से कैसे टूटेगा !
यह सोच कर चित्रसेना तैयार हो गयी. उसने अहिरावण समेत सभी राक्षसों के अंत का सारा भेद बता दिया।
चित्रसेना ने कहा- दोनों राक्षसों के बचपन की बात है. इन दोनों के कुछ शरारती राक्षस मित्रों ने कहीं से एक भ्रामरी को पकड़ लिया. मनोरंजन के लिए वे उसे भ्रामरी को बार-बार काटों से छेड़ रहे थे।
भ्रामरी साधारण भ्रामरी न थी. वह भी बहुत मायावी थी, किंतु किसी कारण वश वह पकड़ में आ गई थी. भ्रामरी की पीड़ा सुनकर अहिरावण और महिरावण को दया आ गई और अपने मित्रों से लड़ कर उसे छुड़ा दिया।
मायावी भ्रामरी का पति भी अपनी पत्नी की पीड़ा सुनकर आया था. अपनी पत्नी की मुक्ति से प्रसन्न होकर उस भौंरे ने वचन दिया था कि तुम्हारे उपकार का बदला हम सभी भ्रमर जाति मिलकर चुकाएंगे।
ये भौंरें अधिकतर उसके शयन कक्ष के पास रहते हैं. ये सब बड़ी भारी संख्या में हैं। दोनों राक्षसों को जब भी मारने का प्रयास हुआ है और ये मरने को हो जाते हैं तब भ्रमर उनके मुख में एक बूंद अमृत का डाल देते हैं।
उस अमृत के कारण ये दोनों राक्षस मरकर भी जिंदा हो जाते हैं. इनके कई-कई रूप उसी अमृत के कारण हैं. इन्हें जितनी बार फिर से जीवन दिया गया उनके उतने नए रूप बन गए हैं. इसलिए आपको पहले इन भंवरों को मारना होगा।
हनुमान जी रहस्य जानकर लौटे. मकरध्वज ने अहिरावण को युद्ध में उलझा रखा था. तो हनुमान जी ने भंवरों का खात्मा शुरू किया. वे आखिर हनुमान जी के सामने कहां तक टिकते।
जब सारे भ्रमर खत्म हो गए और केवल एक बचा तो वह हनुमान जी के चरणों में लोट गया. उसने हनुमान जी से प्राण रक्षा की याचना की. हनुमान जी पसीज गए. उन्होंने उसे क्षमा करते हुए एक काम सौंपा।
हनुमान जी बोले- मैं तुम्हें प्राण दान देता हूं पर इस शर्त पर कि तुम यहां से तुरंत चले जाओगे और अहिरावण की पत्नी के पलंग की पाटी में घुसकर जल्दी से जल्दी उसे पूरी तरह खोखला बना दोगे।
भंवरा तत्काल चित्रसेना के पलंग की पाटी में घुसने के लिए प्रस्थान कर गया. इधर अहिरावण और महिरावण को अपने चमत्कार के लुप्त होने से बहुत अचरज हुआ पर उन्होंने मायावी युद्ध जारी रखा।
भ्रमरों को हनुमान जी ने समाप्त कर दिया फिर भी हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों अहिरावण और महिरावण का अंत नहीं हो पा रहा था. यह देखकर हनुमान जी कुछ चिंतित हुए।
फिर उन्हें कामाक्षी देवी का वचन याद आया. देवी ने बताया था कि अहिरावण की सिद्धि है कि जब पांचो दीपकों एक साथ बुझेंगे तभी वे नए-नए रूप धारण करने में असमर्थ होंगे और उनका वध हो सकेगा।
हनुमान जी ने तत्काल पंचमुखी रूप धारण कर लिया. उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख।
उसके बाद हनुमान जी ने अपने पांचों मुख द्वारा एक साथ पांचों दीपक बुझा दिए. अब उनके बार बार पैदा होने और लंबे समय तक जिंदा रहने की सारी आशंकायें समाप्त हो गयीं थी. हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों शीघ्र ही दोनों राक्षस मारे गये।
इसके बाद उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण जी की मूर्च्छा दूर करने के उपाय किए. दोनो भाई होश में आ गए. चित्रसेना भी वहां आ गई थी. हनुमान जी ने कहा- प्रभो ! अब आप अहिरावण और महिरावण के छल और बंधन से मुक्त हुए।
पर इसके लिए हमें इस नागकन्या की सहायता लेनी पड़ी थी. अहिरावण इसे बल पूर्वक उठा लाया था. वह आपसे विवाह करना चाहती है. कृपया उससे विवाह कर अपने साथ ले चलें. इससे उसे भी मुक्ति मिलेगी।
श्री राम हनुमान जी की बात सुनकर चकराए. इससे पहले कि वह कुछ कह पाते हनुमान जी ने ही कह दिया- भगवन आप तो मुक्तिदाता हैं. अहिरावण को मारने का भेद इसी ने बताया है. इसके बिना हम उसे मारकर आपको बचाने में सफल न हो पाते।
कृपा निधान इसे भी मुक्ति मिलनी चाहिए. परंतु आप चिंता न करें. हम सबका जीवन बचाने वाले के प्रति बस इतना कीजिए कि आप बस इस पलंग पर बैठिए, बाकी का काम मैं संपन्न करवाता हूं।
हनुमान जी इतनी तेजी से सारे कार्य करते जा रहे थे कि इससे श्री राम जी और लक्ष्मण जी दोनों चिंता में पड़ गये. वह कोई कदम उठाते कि तब तक हनुमान जी ने भगवान राम की बांह पकड़ ली।
हनुमान जी ने भावावेश में प्रभु श्री राम की बांह पकड़ कर चित्रसेना के उस सजे-धजे विशाल पलंग पर बिठा दिया. श्री राम कुछ समझ पाते कि तभी पलंग की खोखली पाटी चरमरा कर टूट गयी। पलंग धराशायी हो गया. चित्रसेना भी जमीन पर आ गिरी. हनुमान जी हंस पड़े और फिर चित्रसेना से बोले- अब तुम्हारी शर्त तो पूरी हुई नहीं, इसलिए यह विवाह नहीं हो सकता. तुम मुक्त हो और हम तुम्हें तुम्हारे लोक भेजने का प्रबंध करते हैं।
चित्रसेना समझ गयी कि उसके साथ छल हुआ है. उसने कहा कि उसके साथ छल हुआ है. मर्यादा पुरुषोत्तम के सेवक उनके सामने किसी के साथ छल करें, यह तो बहुत अनुचित है. मैं हनुमान को श्राप दूंगी।
चित्रसेना हनुमान जी को श्राप देने ही जा ही रही थी कि श्री राम का सम्मोहन भंग हुआ. वह इस पूरे नाटक को समझ गये. उन्होंने चित्रसेना को समझाया- मैंने एक पत्नी धर्म से बंधे होने का संकल्प लिया है. इसलिए हनुमान जी को यह करना पड़ा. उन्हें क्षमा कर दो।
क्रुद्ध चित्रसेना तो उनसे विवाह की जिद पकड़े बैठी थी. श्री राम ने कहा- मैं जब द्वापर में श्री कृष्ण अवतार लूंगा, तब तुम्हें सत्यभामा के रूप में अपनी पटरानी बनाउंगा. इससे वह मान गयी।
हनुमान जी ने चित्रसेना को उसके पिता के पास पहुंचा दिया. चित्रसेना को प्रभु ने अगले जन्म में पत्नी बनाने का वरदान दिया था. भगवान विष्णु की पत्नी बनने की चाह में उसने स्वयं को अग्नि में भस्म कर लिया।
श्री राम और लक्ष्मण, मकरध्वज और हनुमान जी सहित वापस लंका में सुवेल पर्वत पर लौट आये।
निकला मित्र सवेरा घंटिया धन-धन बाजी,
सुना राम के गीत रामधन मन में साजी।
(यह प्रसंग स्कंद पुराण और आनंद रामायण के सारकांण्ड की कथा से लिया गया है ।)
जय हनुमान जी महाराज , जय श्री राम ?
शौर्यपथ
// बुधवार, 11 दिसंबर को अगहन शुक्ल एकादशी है, इसे मोक्षदा एकादशी कहते हैं, इस तिथि पर गीता जयंती मनाई जाती है। गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाते हैं। माना जाता है कि द्वापर युग में महाभारत युद्ध शुरू होने से ठीक पहले अगहन शुक्ल एकादशी पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता उपदेश दिया था।
// अंतरराष्ट्रीय योग दिवस जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में रखकर की जिसकी स्वीकृति संयुक्त राष्ट्र ने 11 दिसंबर 2014 दे दी।
// 11 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाया जाता है ।
// 11 दिसंबर ग्रेगोरियन कैलेंडर में 345वां दिन है। इस दिन इंडियाना अमेरिका का 19वां राज्य बना, एल्कोहॉलिक्स एनॉनिमस के सह-संस्थापक बिल विल्सन ने अपना अंतिम पेय लिया और अपोलो 17 चंद्रमा पर उतरने वाला अंतिम अपोलो मिशन बन गया। प्रसिद्ध जन्मदिनों में जॉन केरी, हैली स्टेनफेल्ड और ओशो शामिल हैं।
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ / हिंदू धर्म में मकर संक्रांति एक महत्वपूर्ण त्योहार है. सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं. हर वर्ष कुल 12 संक्रांति आती हैं जिनमें से मकर संक्रांति, जिसे पौष संक्रांति भी कहा जाता है, सबसे महत्वपूर्ण मनाई जाती है. यह त्योहार भारत व नेपाल में मनाया जाता है. मकर संक्राति नए साल का पहला बड़ा त्योहार होता है. मकर संक्रांति के दिन से भगवान सूर्य उत्तरायण होते हैं और इसीलिए इस त्योहार को खिचड़ी और उत्तरायण पर्व भी कहा जाता है. यह ठंड के कम होने और सूर्य देव के लंबे समय तक चमकने का प्रतीक होता है. पूरे देश में इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस दिन नदियो में स्नान और दान का बहुत महत्व होता है. आइए जानते हैं अगले वर्ष कब है मकर संक्रांति और इस दिन से जुड़ी तरह-तरह की परंपराएं कौनसी हैं.
वर्ष 2025 में मकर संक्रांति कब है |
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वर्ष 2025 में सूर्य देव मकर राशि में 14 जनवरी मंगलवार को प्रवेश करेंगे. भगवान सूर्य सुबह के समय 9 बजकर 3 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेंगे. यह समय मकर संक्रांति क्षण होगा. सूर्य गोचर होने के कारण मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी. 14 जनवरी, 2025 को मकर संक्रांति के दिन पुण्य काल की कुल अवधि 8 घंटे 42 मिनट की है. पुण्य काल सुबह 9 बजकर 3 मिनट से शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगी. इस दिन एक घंटा 45 मिनट का महा पुण्य काल है. सुबह 9 बजकर 3 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक महा पुण्य काल रहेगा.
मकर संक्रांति पर स्नान-दान का मुहूर्त
14 जनवरी को स्नान और दान का शुभ मुहूर्त सुबह 9 बजकर 3 मिनट से सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक है. महा पुण्य काल में यह करना उत्तम रहेगा. हालांकि, पुण्य काल में भी स्नान और दान किया जा सकता है.
पतंग उड़ाने से लेकर दान तक की परंपराएं
देशभर में मकर संक्रांति को पतंग उड़ाने से लेकर नदी स्नान और दान करने की परंपराएं हैं. इस दिन पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के आसपास लोहड़ी मनाई जाती है. इस दिन तिल से बने तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं और दोस्तों और परिजनों को तिल व गुड़ खिलाया जाता है. इसके अलावा पवित्र नदियों में स्नान और दान करने की भी परंपरा है. मकर संक्रांति के दिन नदी स्नान के बाद लोग पितरों का तर्पण भी करते हैं. यह दिन अपने पूर्वजों को याद करने का भी अवसर माना जाता है. इस दिन को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में पोंगल के रूप में मनाया जाता है.
क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति
मकर संक्रांति मूल रूप से खेती से जुड़ा त्योहार है. यह खरीफ फसलों की कटाई के बाद मनाया जाता है. इसके अलावा यह लंबी ठंड के बाद सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश करने और दिन की अवधि लंबे होने के लिए मनाया जाता है. यह दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने-मिलाने का भी त्योहार है.
मकर संक्रांति का महत्व
मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण होते हैं और इस दिन से देवताओं का दिन प्रारंभ माना जाता है. इस दिन के बाद भगवान सूर्य मकर राशि से होते हुए मिथुन राशि तक गोचर करते हैं और इस दौरान सूर्य कैलेंडर के 6 माह आते हैं. इस समय से गर्मी धीरे-धीरे बढ़ने लगती है और ठंड कम होने लगती है. मकर संक्रांति के बाद से दिन का समय अधिक और रात का समय कम होने लगता है. वर्ष में जब भगवान सूर्य कर्क राशि में गोचर करते हैं तो उसे सूर्य का दक्षिणायन होना शुरू होता है. सूर्य के दक्षिणायन होने को देवताओं की रात्रि शुरू होना माना जाता है. इस दिन से दिन का समय कम और रात का समय ज्यादा होने लगता है.
खुद के टीबी जैसी बीमारी से मुक्त होने के लिए मुख्यमंत्री को प्रकट किया आभार
रायपुर / शौर्यपथ / एम्स रायपुर के आडिटोरियम में आज निक्षय निरामय छत्तीसगढ़ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में 100 दिन तक टीबी, मलेरिया एवं कुष्ठ रोगियों की पहचान की जाएगी तथा उनका उपचार किया जाएगा। कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे लोगों का भी सम्मान किया गया जिन्होंने टीबी और कुष्ठ जैसी बीमारियों से लड़ाई लड़ी और आज स्वस्थ जीवन का आनंद उठा रहे हैं। इन्हीं मे से एक हैं बस्तर के तोकापाल की रहन वाली बबीता नाग जो कुछ समय पहले तक टीबी के रोग से पीड़ित थीं। इन्होंने सरकारी अस्पताल में अपनी जांच करायी और शासन की योजनाओं का लाभ लेते हुए समय पर दवाइयां और पोषण आहार का सेवन किया। इसकी वजह से बबीता पूरी तरह स्वस्थ हैं। बबीता ने अपने ठीक होने का श्रेय मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय को दिया है जिनकी पहल की वजह से वो टीबी जैसी बीमारी के प्रति जागरूक हो सकीं और समय पर अपना इलाज कराया। मुख्यमंत्री को धन्यवाद देने के लिए बबीता ने आज निक्षय निरामय छत्तीसगढ़ कार्यक्रम में उपस्थित थीं। उन्होने मुख्यमंत्री को अपने हाथों से निक्षय निरामय सूत्र बांधा और प्रदेश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों की सराहना की।