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शौर्यपथ / ( शरद पंसारी ) / मार्च 2020 के संक्रमण के कारण पुरे देश में लॉक डाउन कर दिया गया था और विकास के पहिये थम गए थे . जिसके कारण लाखो करोडो को बदहाल आर्थिक स्थिति का सामना करना पडा था . जनता को परिवार की भूख के साथ बैंक ईएमआई की चिंता सताने लगी थी तब आरबीआई ने लोन मोराटोरियम तीन माह के लिए जून तक बढ़ा दिया किन्तु स्थिति ना सुधरने की हालत में इसे अगस्त तक बढ़ा दिया गया . वर्तमान में भारत में कोरोना का कहर सबसे ज्यादा है एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के अन्य देशो के मुकाबले भारत में सबसे ज्यादा तेजी से कोरोना के मरीज मिल रहे है . कोरोना के मरीज की संख्या भारत में 30 लाख पार कर चुकी है वही कोरोना से हुई मौतों की संख्या 58 हजार से भी ज्यादा हो गयी .
कहने को तो सरकार अनलॉक की प्रक्रिया में है किन्तु इस अनलाक में भी ऐसे कई संस्था है जो आज भी आर्थिक परेशानी का सामना कर रहे है और कई ऐसे संस्था है जो अल्प समय के लिए व्यापार सञ्चालन कर दो वक्त की रोटी की व्यवस्था में लगे हुए है . ऐसे में अगर अगस्त में खत्म होने वाला लोन मोराटोरियम की समय सीमा आरबीआई द्वारा नहीं बधाई जाती तो निश्चित ही लाखो लोग लोन डिफाल्टर की श्रेणी में आ जायेंगे .
आज भी ऐसी कई संस्था है जो लगभग बंद जैसी स्थिति में है जिसमे से केटरिंग व्यवसाय से जुड़े लोग , शिक्षा व्यवसाय से जुड़े लोग , पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोग , वाहन व्यवसाय से जुड़े लोग , शापिंग माल चेन से जुड़े लोग , होटल व्यवसाय से जुड़े लोग , पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोग आदि जिनका व्यवसाय लगभग बंद जैसी हालत में है पिछले 6 माह से ऐसे लोगो को वर्तमान में भूख की आग को शांत करने की ज़द्दोज़हद करनी पड़ रही है अगर इनके सामे ईएमआई जमा करने की स्थिति आ गयी तो इनके पास डिफाल्टर होने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा क्योकि लोन डिफाल्टर होना ज्यादा आसान है परिवार की भूख मिटाने से . ऐसे लोग परिणाम की परवाह किये बिना पहले पेट की आग बुझाएंगे .
उसी तरह वर्तमान में ऐसे कई संस्था ऐसी भी है जो व्यापार कर रही है किन्तु सिर्फ दिखावे मात्र के लिए क्योकि अनलाक की इस प्रक्रिया में उन्हें संस्थान खोलने की अनुमति तो मिली है किन्तु आम जनता के पास क्रय की शक्ति लगभग खत्म से हो गयी है और आम जनता सिर्फ जरुरत के हिसाब से ही खर्च कर रही है , भोग विलासता से भारत की जनता विगत 6 माह से दूर है , मुद्रा का चलन अति आवश्यक वस्तुओ पर ही हो रहा है ऐसी स्थिति में ना चाहते हुए भी लाखो लोग लोन डिफाल्टर की श्रेणी में आ सकते है .
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार लोन मोराटोरियम की सीमा बढाने आरबीआई विचार कर रही है और संस्थानों से लगातार चर्चा कर रही है आरबीआई इस बारे में कोई जल्दबाजी करने के मुड में नजर नहीं आ रही है . बाज़ार की स्थिति और आम जनता के आवक की स्थिति पर बारीकी से नजर बनाए हुए है . वर्तमान में कोरोना आपदा का संचार जिस तेजी से हो रहा है उस कारण कई क्षेत्रो में स्थिति बिगड़ रही है कई व्यवसाय धराशाई हो गए है ऐसी स्थिति में आरबीआई हर पहलु पर विचार कर ही कोई फैसला लेगी .
लोन मोराटोरियम की सीमा को बढाने और इसे तीसरे चरण दिसंबर माह में करने का विचार आरबीआई सभी पहलुओ पर विचार कर ही लेगी . किसी कारणवश अगर ये लोन मोराटोरियम की सीमा आगे नहीं बढ़ेगी तो लोन डिफाल्टरो की संख्या में जो आमूलचूल वृद्धि होगी उससे सिर्फ आक्रोश ही उत्त्पन्न होगा , नित नए विवाद ही जन्म लेंगे , मानसिक तनाव और अवसाद के कारण कई तरह के वाकये भी सामने आ जाये तो कोई बड़ी बात नहीं . बस अब आम जनता को इंतज़ार है कि ईएमआई पर आरबीआई का क्या फैसला आता है क्योकि अगस्त माह खत्म होने में अब कुछ दिन ही शेष है जो कि आम जनता के लिए और सरकार के लिए काफी विशेष है क्योकि कोरोना आपदा का कहर भारत में उच्च स्तर पर है और व्यवसाय निम्न .
शौर्यपथ लेख । स्त्रियों की सहनशक्ति पुरुषों से कई गुनी ज्यादा है। पुरुष की सहनशक्ति न के बराबर है। लेकिन पुरुष एक ही शक्ति का हिसाब लगाता रहता है, वह है मसल्स की। क्योंकि वह बड़ा पत्थर उठा लेता है, इसलिए वह सोचता रहा है कि मैं शक्तिशाली हूं। लेकिन बड़ा पत्थर अकेला आयाम अगर शक्ति का होता तो ठीक है, सहनशीलता भी बड़ी शक्ति है- जीवन के दुखों को झेल जाना। स्त्रियां लड़कियां पहले बोलना शुरू करती हैं। बुद्धिमत्ता लड़कियों में पहले प्रकट होती है। लड़कियां ज्यादा तेज होती हैं। विश्वविद्यालयों में भी प्रतिस्पर्धा में लड़कियां आगे होती हैं। जो भी स्त्री आक्रामक होती है वह आकर्षक नहीं होती है। अगर कोई स्त्री तुम्हारे पीछे पड़ जाए और प्रेम का निवेदन करने लगे तो तुम घबरा जाओगे तुम भागोगे। क्योंकि वह स्त्री पुरुष जैसा व्यवहार कर रही है, स्त्रैण नहीं है। स्त्री का स्त्रैण होना, उसका माधुर्य इसी में है कि वह सिर्फ प्रतीक्षा करती है। वह तुम्हें सब तरफ से घेर लेती, लेकिन तुम्हें पता भी नहीं चलता। उसकी जंजीरें बहुत सूक्ष्म हैं, वे दिखाई भी नहीं पड़तीं। वह बड़े पतले धागों से, सूक्ष्म धागों से तुम्हें सब तरफ से बांध लेती है, लेकिन उसका बंधन कहीं दिखाई भी नहीं पड़ता। स्त्री अपने को नीचे रखती है। लोग गलत सोचते हैं कि पुरुषों ने स्त्रियों को दासी बना लिया। नहीं, स्त्री दासी बनने की कला है। मगर तुम्हें पता नहीं, उसकी कला बड़ी महत्वपूर्ण है। और लाओत्से उसी कला का उद्घाटन कर रहा है। कोई पुरुष किसी स्त्री को दासी नहीं बनाता। दुनिया के किसी भी कोने में जब भी कोई स्त्री किसी पुरुष के प्रेम में पड़ती है,तत्क्षण अपने को दासी बना लेती है, क्योंकि दासी होना ही गहरी मालकियत है। वह जीवन का राज समझती है। स्त्री अपने को नीचे रखती है, चरणों में रखती है। और तुमने देखा है कि जब भी कोई स्त्री अपने को तुम्हारे चरणों में रख देती है, तब अचानक तुम्हारे सिर पर ताज की तरह बैठ जाती है। रखती चरणों में है, पहुंच जाती है बहुत गहरे, बहुत ऊपर। तुम चौबीस घंटे उसी का चिंतन करने लगते हो। छोड़ देती है अपने को तुम्हारे चरणों में, तुम्हारी छाया बन जाती है। और तुम्हें पता भी नहीं चलता कि छाया तुम्हें चलाने लगती है, छाया के इशारे से तुम चलने लगते हो। स्त्री कभी यह भी नहीं कहती सीधा कि यह करो, लेकिन वह जो चाहती है करवा लेती है। वह कभी नहीं कहती कि यह ऐसा ही हो, लेकिन वह जैसा चाहती है वैसा करवा लेती है। लाओत्से यह कह रहा है कि उसकी शक्ति बड़ी है। और उसकी शक्ति क्या है? क्योंकि वह दासी है। शक्ति उसकी यह है कि वह छाया हो गई है। बड़े से बड़े शक्तिशाली पुरुष स्त्री के प्रेम में पड़ जाते हैं, और एकदम अशक्त हो जाते हैं। (साभार फेसबुक वाल से )
रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ की पावन धरा पौराणिक काल से दुनिया को अपनी ओर खींचती रही है। मर्यादा पुरूषोत्तम राम का ननिहाल चंदखुरी छत्तीसगढ़ में है। राम छत्तीसगढ़ियों की जीवन-शैली और दिनचर्या का अंग हैं। प्रातः छत्तीसगढ़ के लोग उठकर एक-दूसरे से राम-राम कह कर अभिवादन करते हैं। छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति में हर मामा अपने भान्जे को राम मानता है, आस्था से उसके पैर पड़ता है। पुरातन काल से छत्तीसगढ़ में राम लोगों के मानसपटल पर भावनात्मक रूप से जुड़े हैं। वहीं पर भगवान राम ने 14 वर्ष वनवास के दौरान लम्बा समय छत्तीसगढ़ की धरा पर गुजारा था। वनवास के दौरान श्रीराम छत्तीसगढ़ के जिन स्थानों से गुजरे थे उसे राम वन गमन पथ के रूप में विकसित करने कार्य योजना बनाई गई, जिसकी शुरूआत चंदखुरी से हो चुकी हैं।
राम वन गमन पर्यटन परपिथ के अंतर्गत जांजगीर चांपा जिले में शिवरीनारायण, बलौदा बाजार में तुरतुरिया, रायपुर में चंदखुरी और गरियाबंद के राजिम में परिपथ के विकास कार्यों की शुरूआत हो चुकी है। इसी तरह से राम वन गमन पर्यटन परिपथ में कोरिया जिले में सीतामढी हर-चौका, सरगुजा में रामगढ़, धमतरी में सप्तऋषि आश्रम, बस्तर में जगदलपुर, सुकमा में रामाराम सहित करीब 75 स्थलों को चिन्हांकित कर लिया गया है। अब मुख्यमंत्री के निर्देशन में छत्तीसगढ़ शासन की महत्वाकांक्षी योजना राम वन गमन परिपथ को विकसित करने का कार्य प्रारंभ हो गया है। इस योजना से लोगों की आस्था के अनुरूप राम की यादों को पौराणिक धार्मिक कथाओं से सुनते आ रहे लोग इन पौराणिक महत्व के स्थल को देख सकेगें। छत्तीसगढ़ की पावन भूमि पर्यटन तीर्थ स्थल के रूप में विकसित होने के साथ यहां रोजगार के साधनों का विकास होगा। अंदरूनी दुर्गम वन क्षेत्रों में सड़क परिवहन भी विकसित होगा जिससे कई आर्थिक गतिविधियों का स्वयं संचालन होने लगेगा। देश और दुनिया के आस्थावान लोग रामायण सर्किट की धार्मिक तीर्थ यात्रा पर निकलेंगे तो भगवान राम के ननिहाल के दर्शन करेंगे। ( साभार -एम.एल. चौधरी ,सहायक संचालक)
शौर्यपथ लेख । अगर राजस्थान में कांग्रेस की सरकार गिरती है तो इसका दोष भाजपा को देना कही से भी सही नही है भाजपा एक राजनैतिक पार्टी है और सत्ता के लिए जो संविधान के दायरे में रहकर प्रयास किया जा रहा है कर रही है । ये अलग बात है कि बहुमत नही मिलने के बाद भी कई राज्यो में सत्ता में विराजमान है और हो भी क्यो ना केंद्र में बहुमत से सत्ता में काबिज होने का फायदा तो मिलता ही है राजनैतिक पार्टियों को चाहे जिसकी भी सत्ता हो केंद्र में । मेरी विचार से दोषी कांग्रेस के वो लालची नेता है जो सत्ता में रहने के लिए अपने ज़मीर का सौदा करते है दोषी वो कांग्रेसी होंगे जो सालो से अंगद की तरह जमे हुए है और युवाओं को आगे बढ़ने का मौका नही दे रहे । नई सोंच के साथ अनुभव की भी आवश्यकता है किंतु कांग्रेस को जो नुकसान हो रहा है वह एकमेव अधिकार का ही परिणाम है कोई बड़ी बात नही होगी अगर राजस्थान से भी कांग्रेस की सत्ता चली जाती है तो सिंद्धान्तों की बात कहे या खरीद फरोख्त को सब अपनी अपनी सुविधा से अपनी बात रखेंगे और नैतिकता की दुहाई भी देंगे किन्तु काम अपने फायदे का ही करेंगे । ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट दो बड़े प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता में पहुंचाने के लिए प्रयास किये है ये सभी जानते है । कुछ ना कुछ उपेक्षा और कोई ना कोई नैतिकता का मुखोटा ओढ़े हुए लालच का ही कमाल होगा जो mp में शिव का राज है और अब राजस्थान में बुआ के राज के लिए प्रयास आरंभ है ....( शरद पंसारी )
शौर्य की बात । 8 जुलाई से तबियत कुछ ठीक नही लग रही थी ऐसे लग रहा जिंदगी थम जाएगी । 9 जुलाई को तबियत ज्यादा बिगड़ी और एम्स में पहुंच गए इलाज शुरू साथ ही डर व घबराहट शुरू किया होगा कैसे होगा । इसी उधेड़बुन में डॉ ने कहा दिया 48 घण्टे महत्त्वपूर्ण है । अभी तक ये शब्द फिल्मों में सुना अब जब जिंदगी में सामना हुआ तो मेरे साथ ही । खैर मुझे तो दोनों फैसले में खुशी थी । और मन मे ये बात आ गयी या तो शौर्य के पास या सिद्धि के पास । मैं तो शौर्य के पास रहूंगा या सिद्धि के पास दोनो हालातो में अपने किसी एक बच्चे के साथ रहूंगा लेकिन मेरी दोस्त, मेरी साथी , मेरी हमसफ़र , मेरी माँ , मेरी बहन सभी का रूप निभाने वाली रत्ना का क्या होगा ऐसा अन्याय क्यो यही सब सोंचते हुए 48 घण्टे बीत गए और ईश्वर का फैसला हुआ सिद्धि के पास रत्ना के पास ही रहना है शौर्य से मिलने में और वक्त है । पर जिंदगी की सच्चाई वार्ड में ऐसे रूप में नजर आई जिससे फैसला करना बहुत आसान है कि साथी बिना जिंदगी अधूरी बेमानी , दुनिया की सारी दौलत हो या तकलीफ अगर साथी नही तो कुछ भी नही । हमसफ़र नही तो सफर का कोई मतलब नही । मेरे बेड के सामने दो बुजुर्ग एक सी बीमारी से ग्रस्त है दोनो बुजुर्ग की एक एक औलाद बेटे के रूप में है एक बुजुर्ग के बेटे को चिंता नही की उसके पिता की हालत कैसी है बुजुर्ग की हमसफ़र दुखी है और पति की सेवा कर रही । दूसरे बुजुर्ग का बेटा साथ है पूरी तरह मददगार है किंतु उनकी हमसफर का भी दुख के कारण बुरा हाल । दोनो के दुख में रत्तीभर भी फर्क नही दिखा इतने में मेरी रत्ना आई नजरे चार हुई और मन ही मन कहा अब अगर शौर्य से मिलने जाएंगे तो दोनो साथ जाएंगे . शौर्य हम दोनों का बेटा है ....
शौर्यपथ लेख ( सुशिल आनंद शुक्ला ) / छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री निवास में बड़ी आश्चर्य जनक घटना घटी ।राष्ट्रीय स्वयं सेवक के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का अभिनन्दन करने पहुचे थे।राजनीतिक प्रेक्षकों के लिए यह सहज स्वीकार करने वाली घटना नही है।
आरएसएस इतनी सहिष्णु नही है कि वो एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री विशेष तौर पर भूपेश बघेल का अभिनन्दन करने पहुँच जाय।वो भूपेश बघेल जिन्होंने राहुल गांधी के बाद पिछले कुछ सालों में आरएसएस पर सबसे ज्यादा तीखा और चुभने वाला हमला किया हो ।वे भूपेश बघेल जिन्होंने वीर सावरकर ,श्यामा प्रसाद मुखर्जी ,दीनदयाल उपाध्याय जैसे संघ के प्रतिमानों पर अनेको बार न जाने कितनो प्रहार किया हो उनका अभिनन्दन यदि संघ के लोग करने को आतुर है यकीन मानिए यह संघ की बड़ी मजबूरी और भूपेश बघेल की बड़ी कामयाबी है ।
नरवा गरवा घुरवा बारी के बाद गो धन न्याय योजना के निहितार्थ को संघ बहुत अच्छी भांति समझता है उसे मालूम है यह योजना फलीभूत होते ही भूपेश बघेल न सिर्फ गांव के सबसे निचले तबके तक पहुच जायेगे बल्कि सही मायने में छत्तीसगढ़ को आत्मनिर्भर बनाने में कामयाब भी होंगे ।गाय ,गोबर गो मूत्र जिसके माध्यम से संघ दशको से भारत के गांव गांव में अपनी पैठ बनाने के हथियार के रूप में इस्तेमाल करते रहा हो ।
जिस गाय के नाम पर संघ देश के एक बड़े वर्ग को भावनात्मक और धार्मिक रूप से भड़काती रही हो जिस गाय के नाम पर देश मे अनगिनत मॉब लिंचीग की घटनाएं हुई हो उस गाय के गोबर को आर्थिक उन्नति का आधार बना कर यदि भूपेष बघेल प्रस्तुत कर रहे है तो इससे गाय के नाम पर वर्षो से ठेकेदारी करने वालो की जमीन खिसकना स्वाभाविक है । गो धन न्याय योजना का सीधा विरोध करते है तो दशको से किये गए अपने ही एजेंडे का विरोध होगा और फिर इस विरोध का आधार और जन स्वीकार्यता भी नही रहेगी। लेकिन चुप चाप बैठ कर इतने बड़े हथियार को हाथ से निकलते भी तो नही देखा जा सकता ।इसीलिए जब विरोध नही कर सकते तो चुप रहो या समर्थन करो ।संघ की फितरत चुप रह कर तमाशा देखने वाली नही है विशेष कर जब मसला गाय से जुड़ा हो तब तो बिल्कुल भी नही । यहाँ तो वर्षो से एकाधिकार कर रखे मसला हाथ से निकलते दिख रहा।
भूपेश बघेल ने साबित किया की असली गो सेवा गाय के नाम पर नारेबाजी करने ,लक्षेदार भाषण से नहीं गाय के नाम पर उन्माद फैला कर मॉब लीचिंग में नही ।गाय और गो वंश को जन जीवन से जोड़ कर उसकी उपयोगिता को प्रासंगिक बनाने में है। उपयोगिता और प्रासंगिकता के इसी सिद्धांत के कारण द्वापर में भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पूजा की शुरुआत किया था।
साम्प्रदायिकता पर कड़े प्रहार के साथ राम लीला का मंचन करवाना और छत्तीसगढ़ में भगवान राम वन गमन पथ को पावन पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने वाले भूपेश बघेल ने गो वंश संरक्षण की योजना ला कर यह भी साबित किया कि उनके लिए संवैधानिक मूल्य और धार्मिक आस्था दोनों महत्व पूर्ण हैं।
ऐसे में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार की गांव और गो वंश केंद्रित योजना नरवा गरवा घुरवा बाड़ी तथा गो धन न्याय योजना का समर्थन कर इस योजना से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तौर से मन मसोस कर भी खुद को जुड़े होना दिखाने की संघ की मजबूरी है।
(लेखक छ ग कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता है)
शौर्यपथ लेख / शरद पंसारी / पिछले दिनों सीमा पर 20 जवानो की शहादत के बाद भारतीयों का खुल खौल उठा हर तरफ से बदला लेने की आवाज़ उठने लगी . पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामो पर कई ज्ञानियों ने तथ्य पेश किये कि युद्ध हो सकता है असला बारूद की जरुरत पड़ेगी , कई महाज्ञानियो ने तर्क दिया कि पहले के पाप है अब धो रहे है , कई महा पंडितो ने तो भारत के कुछ राजनितिक पार्टी के नेताओ को दलाल भी बता दिया . ऐसा माहौल बन गया कि कोरोना से बाद में निपटेंगे पहले चीन से निपट ले चीन को मजा चखाएंगे . कुछ अत्यधिक प्रेमी देश भक्तो ने तो चाइना कम्पनी के साइन बोर्ड भी तोड़ दिए ये अलग बात है कि जेब में रखे चाइना कम्पनी के मोबाइल में मोबाइल गार्ड लगा लिए ताकि चाइना कम्पनी के मोबाइल की लाइफ दुगनी हो जाए और लगाए भी क्यों नहीं देशभक्ति एक तरफ खुद की संपत्ति एक तरफ . क्योकि ऐसे देशभक्तों की देशभक्ति चाइना सामान के ईस्तमाल करने वाले दुसरो पर पाबंदी लगाने की है नुक्सान करने की है . खुद ईस्तमाल करे तो उनका दुधभात है ....
ये सत्य है कि भारत एक बड़ा बाज़ार है किन्तु साथ ये भी सत्य है कि अधुरा बहिष्कार पतन का कारण भी बन सकता है . चाइना सामन का बहिष्कार करने वाले सोशल मिडिया पर एक्टिव है और पुरे देशभक्ति के साथ चाइना मोबाइल के बहिष्कार की बात चाइना मोबाइल से ही फारवर्ड कर रहे है देश में लगभग ६०-७० प्रतिशत स्मार्ट फोन चाइना के है और रोज बिक्री हो रहे है . पर पता नहीं ये देशभक्त चाइना मोबाइल की सार्वजनिक होली क्यों नहीं जला रहे है क्या सिर्फ दिखावा कर आम जनता को गुमराह करने की सोंचे है .
ऐसे महाज्ञानी लोग कहा थे जब सरहद पर २० जवान शहीद हुए २०१४ के पहले ये लोग १ के बदले १० सर लाने की बात करते थे अब क्यों मौन है . महंगाई पर सड़क पर नाचते थे और चिल्लाते थे अब क्यों मौन है . स्थिति अलग अलग समय में अलग कारणों के कारण जानी जाती है . ये हकीकत है कि वर्तमान समय में स्थिति बेहद विकत है ऐसे समय में आम जनता पेट की चिंता करे कि देशभक्ति कि परिवार की चिंता करे कि देश कि . क्या कोई ऐसा बाप होगा जो सामने परिवार मुसीबत में है और प्रदर्शन करने वो चौक पर है .ऐसा करना किसी भी परिवार के मुखिया के लिए असंभव है और यही जीवन है . इंसान पहले , परिवार फिर देश की सोंचता है . एक फौजी भी देश की सेवा करता है तो परिवार की सुरक्षा के लिए ही क्या कोई बड़े से बड़ा अधिकारी सुनने में आया है कि देश सेवा बिना मेहनताना के सेलेरी के कर रहा हो क्या कोई ऐसा जनप्रतिनिधि नजर आया जो सिर्फ सेवा कर रहा हो और सरकारी सुविधा का त्याग किया हो ऐसा कोई नहीं मिलता जो मिलते है वो इतिहास में दर्ज हो जाते है . ऐसा नहीं है कि देश में पुरानी सरकारों ने सीमा की सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया ऐसा नहीं है कि पूर्व की सरकारों को देश की चिंता नहीं थी .
सोशल मिडिया में खूब देशभक्त मिलेंगे जो पुरानी सरकारों के काम काज का उल्लेख घोटालो से करते नजर आ जाते है लाखो करोडो के घोटालो को पेश करते है अगर ये देशभक्त सही है तो वर्तमान सरकार ६ साल में ऐसे लोगो को अभी तक जेल में क्यों नहीं डाल पा रही है क्यों सोशल मिडिया के देशभक्तों के पोस्ट को संज्ञान में नहीं ले रही है . कुछ मामलो को छोड़ कर सारी बाते सिर्फ हवा हवाई है आरोप लगाना बहुत आसान है तथ्य भी पेश करते है फलां नेता जमानत पर है , फला नेता पर केस दर्ज है . क्या वो विश्वास से बोल सकते है कि fir दर्ज करने के लिए प्रमाण की जरुरत होती है शासन की शक्ति की नहीं सभी जानते है कि शासन की शक्ति के आगे fir दर्ज करना कोई बड़ी बात नहीं थी . अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ में ३ दिनों तक सरकारी एजेंसी राजधानी में डेरा डाले रही क्या हुआ एक fir तक नहीं हुई मामले का अभी तक कुछ पता नहीं चला जबकि सोशल मीडिया में करोडो रूपये जब्ती के पोस्ट फोटो सहित आ गए थे कहा है अब वो ...
साहब शहीदों की शहादत का बदला कोई एप्प नहीं , कोई सामान नहीं कोई बहिष्कार नहीं . शहीदों का बदला एक के बदले दस सर है जिसका आम जनता को इंतज़ार है .....
शौर्यपथ लेख / आजकल एक पोस्ट वायरल हो रही है कि पेशेंट नही बचा तो Dr को पैसे मत दो या कोरोना काल मे हॉस्पिटल फ्री कर दो। हालांकि कोरोना काल में Dr का योगदान देखते हुए थोड़ी कमी भी आई। पर ऐसी मानसिकता क्यों? क्या Dr साहब ने गलत दवा ,इलाज दिया? फिर भी परिणाम के आधार पर उनको मेहनताना नही देना चाहते। अच्छा एक बात बताइए,जब मूवी जाते हैं पसंद नही आती तो क्या पैसे वापस होते हैं? जब इंडियन टीम हारती है तो क्या खिलाड़ियों का खाना पीना बन्द हो जाता है? मैच टिकिट वापस हो जाएगी या होटल में समोसा खाकर क्या टेस्ट के हिसाब से पेमेंट कर सकते हैं? गलवान वेली में शहीद जवानो के परिजन क्या आर्थिक मदद के हकदार नही? क्योकि बच्चा युद्ध मे मारा गया और मरकर युद्ध जीते नही जाते? या हम उनकी कुर्बानी, उनके जस्बे ,उनकी कोशिश को महत्व देते हैं??
तो सारा इंसानियत का ठीकरा अकेले Dr का ही क्यो है? एक कपड़ा व्यापारी भी बिका माल नही लेता वो ठीक है पर Dr की कब्र खोदना देशहित में है। अगर परिवार को उनके फेवर में रिजल्ट नही मिलता तो वो हॉस्पिटल जलाने को तैयार हो जाते हैं। क्या इंडियन क्रिकेट प्लेयर्स के साथ हारने पर ऐसा सरकार होने देगी? दारू पी पी के लिवर सड़ा चुका व्यक्ति भी Dr के इलाज को ही दोष देता है चाहे चेकअप और इलाज का विचार मरने के 2 दिन पहले देवयोग से आया होगा। अगर किसी ज्योतिष की गणना गलत निकली तो क्या फाँसी दे दोगे?
क्या ये मानव स्वभाव है कि जब ऑस्ट्रेलिया बांग्लादेश टकराते थे और कांटे का मैच गलती से हो गया तो सब बांग्लादेश की जीत चाहते थे। क्योकि जब व्यक्ति टॉप पर होता है तब सब जयजयकार करते है पर जब वो ऊंचाई से गिरता है नाकामयाब होता है तब भी लोगो को मजा आता है।अभी पतंजलि पर जोक मारे जा रहे हैं। असल मे हमारे अंदर का ईगो हमे ये करने पाए मजवूर करता है।
एक बच्चा कठोर मेहनत करके माँ बाप की आर्थिक मानसिक मदद से Dr बनता है। उसके बाद कड़ी मेहनत से जॉब करता है या महंगे उपकरण खरीदकर क्लिनिक लगाता है। तब भी उसे काम करके ही कमाना होता है। जिन परिस्थितियो में आम आदमी का दिमाग बन्द हो जाये वो अपना कैरियर अपनी प्रतिष्ठा अपना नाम दाव पर लगाकर जटिल परिस्थितियों में आपरेशन कर एक व्यक्ति की जान बचाता है। क्या बाहर तलवार लिए लोगो की कल्पना के बाद वो बिना हाथ कंपकपाये वो जटिल काम कर पायेगा? लोग हर काम गलती कर सीखते हैं क्या Dr के पेशे में गलती जायज है? खुद को उस जगह रखकर देखिए। तो उस व्यक्ति को धन्यवाद देने के बजाय हम चाहते है कि उसे सजा हो अगर परिणाम हमारे हक में नही आया।
अब क्या मौत पर Dr काबू पा सकता है? क्या साइंस वहां तक पहुच चुकी है ?नही न। पर कोशिश तो जरूरी होती है तो उस कोशिश का पार्ट बनने के बजाय हम जज क्यो बन जाते हैं? जहाँ तक भ्रष्टाचार की बात है वो हर फील्ड में है पर मेडिकल भ्रष्टाचार हाईलाइट ज्यादा होता है फिर सभी को उसी नजर से देखा जाने लगता है। समझदारी इसमे है कि गलत सही का फर्क समझा जाए और धारणा बनाने के बजाय बुद्धि की कसौटी पर कसकर फैसला लिया जाए।।
आप पहले ये बात समझिये की आप पैसे देकर दवा खरीद सकते है जिन्दगी नही। संजीवनी बुटी अगर खोज ली जाये तो अलग बात है। रही बात मरीज के इलाज की,तो 99% केसेस मे इलाज पूरी ईमानदारी से किया जाता है। बिलिंग हर हॉस्पिटल की अलग जरुर हो सकती है। जैसा बाकी होटल, थिएटर सभी मे अलग अलग होता है।
दिक्कत तब आती है जब व्यक्ति पैसे देकर हॉस्पिटल को अपना ससुराल समझने लगता है और Dr को गुलाम। फिर उसको कोशिश से नही परिणाम से मतलब होता है। इंडियन मैडिकल लॉ बोलता है की कोई भी इलाज शर्तिया नही किया जा सकता न ही ऐसा दावा वैध है। कोरोनिल पर हुआ विरोध का एक कारण ये भी था।।अगर लापरवाही होती है तो उसमे treatment quality चेक की जाती है न की रिजल्ट।
आप बताओ एक मरीज जो पूरी चिकित्सा पद्धति से अंजान है किस तरह हॉस्पिटल को दोषी घोषित कर सकता है? फिर खुद दण्डाधिकारी बनने लगता है? Dr को पैसा देने मरीज नही जाता अपनी समस्या हल करवाने जाता है। भगवान तब तक है Dr जब तक मरीज के काम आ रहा है। अब तो लोग नारियल चढाकर भगवान को खरीदते है तो Dr क्या चीज है पर मौत बिकती नही। Dr के खिलाफ बढती हिंसा और सोशल मीडिया पर उड़ती कहानियां इसके लिये उतनी ही जिम्मेदार है।
मैने हमेशा देखा है एक दंत चिकित्सक के तौर पर जो आदमी 50 गुटके डेली खा रहा है अपनी तकलीफ का कारण Dr की दांत सफाई को बताता है। 10 साल बाद भी बोलता है अगर चेकअप नही करवाता तो सब ठीक होता। फिर विमल का पैकेट फाडता है।लोगो को बस हर हाल मे अच्छा रिजल्ट चाहिये होता है। खुद किसी चीज़ की जिम्मेदारी नही उठाते न स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं पर हॉस्पिटल मे पैसा भरकर मौत को खरीदने की इच्छा रखते हैं। जब दिल की धड़कन थम जाती है तो वही Dr जो अभी भगवान्ं का रुप था अचानक यमराज नजर आने लगता है, हॉस्पिटल नर्क का द्वार दिखाई देने लगता है। फिर शुरु होता है गुण्डागर्दी, दंगाई का दौर। शरीफ आदमी रोड,सलिया,मशाल लेकर ट्रको मे भरकर पहुचते है हॉस्पिटल जलाने । तब इनको ख्याल नही आता की अस्पताल मे और मरीज भी है, Dr की फैमिली भी है । वो भी एक इंसान है जो सिर्फ अच्छा करने की कोशिश कर रहा है जैसे हम सब करते हैं।। विश्वास पर दुनिया कायम है हम अपने पिता से पिता होने का सबूत नही मांगते। वैसे ही मरीज और Dr का आपसी विश्वास ही सही इलाज की तरफ पहला कदम है। पर जैसे 1 मछली तालाब को गंदा करती है इस प्रोफेशन में भी कुछ दिक्कतें है पर सोशल मीडिया की अतिवादिता का शिकार होने के बजाय आँख नाक कान खोलकर हॉस्पिटल की सेवाएं लें बिना किसी पूर्वग्रह से ग्रस्त हुए। किसी एक घटना को पूरे सिस्टम की बदनामी का कारण न बनने दें। साथ ही सभी Dr और हॉस्पिटल से भी अनुरोध करूँगा की जीवन की अंधी दौड़ में इस देवतुल्य प्रोफेशन से समझौता ना करें।
स्वास्थ्य रहें। stay safe ( लेखक - डॉ.सिद्धार्थ शर्मा )
शौर्यपथ लेख ( डॉ. सिद्धार्थ शर्मा की कलम से ...) / पतंजलि कोरोनिल किसी भी दवा को कंपनी अपने हिसाब से नही ला सकती। अगर ला पाती तो लाखों दवाइयां आज मार्किट में होती। कंपनी खुद ही ट्रायल करे खुद ही अप्रूवल दे ये तो वही बात हो गई कि खुद बच्चे एग्जाम में बैठे और खुद को ही अंक दे दे। आयुर्वेद में आयुष मंत्रालय सर्टिफिकेट देता है पर कोरोनिल का कभी ट्रायल हुआ ही नही। जो ट्रायल हुआ वो एक private ट्रायल था जो बहुत ही कम लोगों के बीच हुआ बिना किसी सरकारी दखल के। उसी आधार पर पतंजलि ने खुद को सफल घोषित कर दिया।
लेकिन 80% कोरोना केसेस तो लक्षणविहीन होते हैं और अपने आप बिना दवा के ठीक हो जाते हैं। 20% में गंभीर लक्षण आते हैं और इसी श्रेणी से 2% लोग मरते भी हैं। दिक्कत ये है कि पतंजलि ने जल्दबाजी दिखाई और बिना सरकारी trial और अप्रूवल के इसे कोरोना की दवा बताकर बाजार में उतारने लगी। अब आयुर्वेद के नाम का सहारा लेकर भारत सरकार पर दबाव बनाना चाहती है कि भारत आयुर्वेद को हमेशा प्रमोट करता है। बिल्कुल करता है पर उसके नियम उसके चरण तो पूरा करते? अब तक तीन दवाओं को अप्रूवल मिला,तीनो ने अपना trail पूरा किया। फिर पतंजलि की कोरोनिल को बिना ट्रायल permision सिर्फ इसलिए दे दिया जाए क्योकि हमको अपनी पीठ ठोकनी है? अब जब सरकार ने प्रचार पर यह कहकर बैन लगाया कि इसे कोरोना की दवा कहकर मत बेचो तो सभी देशभक्तों को आयुर्वेद,स्वदेश और मेक इन इंडिया पर प्रहार लग रहा। कुछ विशेषज्ञ तो बस डॉक्यूमेंट की प्रॉब्लम बताने लगे। लेकिन सच तो ये है कि इस दवा का सरकारी विधिवत trial अब तक हुआ ही नही है तो बिना जांच के इसे कोरोना की दवा सिर्फ इसलिए बता देना क्योकि ये स्वदेशी उत्पाद है भारत का नाम विश्व में खराब कर सकता है। आज तक किस कंपनी पर केस हुआ कि दवा खाने के बाद भी मरीज मरा?शर्तिया इलाज शब्द क्यो बैन हुआ? कोई इलाज बीमारी शत प्रतिशत ठीक करने का दावा नही कर सकता ये नियम है। पेशेंट की मृत्यु के लिए dr, हॉस्पिटल या दवा को जिम्मेदार नही ठहराया जा सकता। लापरवाही की स्थिति में उसकी जांच के अलग तरीके है। परिणाम के आधार पर अच्छा बुरा इलाज होता ही नही। बिना इलाज 80% ठीक हो जाते है केवल 2% की मृत्यु होती है इसलिए ऐसे तो दवा बनाने वालों की भीड़ लग जायेगी जो 98% सक्सेस का दावा करेंगे।
ये कहना कि ये शरीर को नुकसान नही पहुचायेगी ये भी बात गलत है। असल मे कोई चीज नुकसान पहुचाती ही नही। ये तो हमारे शरीर की इम्युनिटी है जो एंटीजन मानकर कभी भी शरीर के खुद के अंगों को नष्ट कर देता है। माँ का शरीर बच्चे को खत्म कर देता है बाहरी मानकर (erythrobalstosis fetalis). तो एलर्जी किसी भी चीज की हो सकती है। दूध की भी। लैक्टोस intolerance। इसलिए आयुर्वेद से साइड इफ़ेक्ट नही होता वाली बात सरासर गलत है।एक कहावत है कि बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए काम बिगाड़ो आपनो जग मा होत हँसाये।
पतंजलि ने इतनी हड़बड़ी दिखाई की बिना सरकारी ट्रायल के दवा लॉन्च कर दी। जब विरोध हुआ तो कहने लगे लॉन्च किए है प्रचार नही किया? बाबा बैठकर उसका 100% सक्सेस उसका रेट उसकी खाने की विधि सब बता रहे फिर कहते हैं प्रचार नही किया?
अभी जो 3 दवा को मान्यता मिली,तीनो ने ट्रायल पास किया। अमेरिका ने वैक्सीन बनाई वो जनवरी में आएगी क्या इतना धैर्य पतंजलि में नही था??कुछ कह रहे कि इलाज न भी हो पाए पर नुकसान भी नही होगा। अरे क्या 550 रुपये में मुंगबड़ा खरीदे हो? कंपनी स्वदेशी और आयुर्वेद के नाम पर कमा कमा कर अमीर होती जाएगी और गरीब आदमी बिना कमाए पिसता जाएगा
शौर्यपथ लेख ( डॉ. सिद्धार्थ शर्मा ) /बाबा रामदेव द्वारा कोरोना के उपचार के दावे के साथ एक आयुर्वेदिक दवा बाजार में उछाल दी गयी. उस दवा के बाजार में आते ही रामदेव के समर्थकों और विरोधियों ने उस दवा के विरोध और समर्थन में गजब हंगामा और हुड़दंग शुरू कर दिया है. दवा के पक्ष और विपक्ष में हो रहा यह हंगामा किसी अंधेर नगरी का आभास करा रहा है.
विरोधियों की बात बाद में पहले बात समर्थकों के हंगामे और हुड़दंग की... इस बार यही वर्ग ज्यादा दोषी दिख रहा है.
ध्यान रहे कि एक अमेरिकी कम्पनी ने 6 जून तक कोरोना के उपचार की वैक्सीन की 20 लाख खुराक बना कर रख ली है और वैक्सीन का उत्पादन युद्ध स्तर पर रात दिन लगातार किया जा रहा है. लेकिन अमेरिका में अब तक हो चुकी एक लाख से अधिक मौतों के बावजूद वह वैक्सीन बाजार में नहीं उतारी गयी है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कम्पनी की उस वैक्सीन का त्रिस्तरीय परीक्षण पूर्णतया सफल रहा है किन्तु वैक्सीन का अन्तिम परीक्षण अभी चल रहा है. यह प्रक्रिया सम्भवतः अगस्त/सितम्बर के अन्त में पूर्ण होगी. क्योंकि कम्पनी अपनी वैक्सीन की सफ़लता के प्रति पूर्णतया आश्वस्त है इसलिए उसने भारी आर्थिक जोखिम उठा कर उस वैक्सीन का उत्पादन कर के स्टॉक जमा करना प्रारम्भ कर दिया है. क्योंकि वैक्सीन उत्पादन की प्रक्रिया बहुत जटिल और धीमी होती है इसलिए कम्पनी ने यह आर्थिक जोखिम उठाया है. अगर अपने अन्तिम परीक्षण में वह वैक्सीन सफल हुई तो उसी दिन से वह वैक्सीन बाजार में उपलब्ध हो जाएगी और यदि अन्तिम परीक्षण में वह वैक्सीन सफल नहीं हुई तो सारा तैयार स्टॉक नष्ट कर दिया जाएगा. यह होती है एक सभ्य शिक्षित जागरूक समाज की सोच.
अब बात बाबा रामदेव की... ज्ञात रहे कि आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने और बेंचने का धंधा बाबा रामदेव द्वारा पिछले लगभग डेढ़ दशक से किया जा रहा है. अतः हमको आपको, किसी आम आदमी को भले ही ज्ञात नहीं हो लेकिन बाबा रामदेव को यह भलीभांति ज्ञात है कि किसी भी रोग के उपचार की दवा को बाजार में उतारने से पहले कुछ परीक्षणों की औपचारिकताओं की पूर्ति करना अनिवार्य है. अतः इस बार उन औपचारिकताओं की पूर्ति के बिना बाबा रामदेव अपनी दवा लेकर बाजार में क्यों कूद गए.? ध्यान रहे कि केन्द्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने बाबा रामदेव की दवा के गुण-दोष, गुणवत्ता पर कोई टिप्पणी नहीं की है इसके बजाय उन औपचारिकताओं की पूर्ति नहीं किए जाने पर अपनी आपत्तियां दर्ज करायी हैं. आयुष मंत्रालय की वह आपत्तियां शत प्रतिशत सही हैं. उन आपत्तियों को बाबा रामदेव भी नकार नहीं पा रहे हैं. उन आपत्तियों का तार्किक तथ्यात्मक उत्तर देने के बजाय बातों के बताशे फोड़ रहे हैं. ध्यान रहे कि देश में आयुर्वेदिक दवाएं बनाने वाली वैद्यनाथ डाबर, ऊंझा ,झंडू सरीखी बहुत पुरानी और बहुत बड़ी लगभग दर्जन भर कम्पनियां हैं. इन. कम्पनियों की एक साख है देश में. मंझोले और छोटे स्तर की हज़ारों आयुर्वेदिक कम्पनियां भी देश में हैं. एकबार बाबा रामदेव को उन अनिवार्य परीक्षणों की औपचारिकताओं की पूर्ति से छूट देने का अर्थ उन सभी कम्पनियों को ऐसा करने की खुली छूट दे देना होगा. इससे जो अराजकता फैलेगी वह बहुत भयानक होगी.
रही बात स्वदेशी की तो यह याद रखिए कि कोरोना के उपचार के लिए जिस ग्लेनमार्क कम्पनी की दवा सामने आयी है वो ग्लेनमार्क शत प्रतिशत भारतीय कम्पनी ही है, जो आज दुनिया के कई देशों में व्यापार कर रही है.
अतः बाबा रामदेव की दवा के पक्ष में लाठी भांज रहे समर्थक यह ध्यान रखें कि परीक्षण की औपचारिकताओं की पूर्ति के बिना दवा को बाजार में उतार देना बहुत घातक होगा. जो लोग यह तर्क दे रहे हैं कि वो दवा कोई ज़हर नहीं है तो वो यह भी समझ लें कि दवा पर विश्वास कर 15 दिन खाने वाले व्यक्ति पर यदि दवा प्रभाव नहीं डालेगी तो तब तक बहुत देर हो चुकेगी. अतः परीक्षण की औपचारिकताएं अत्यन्त आवश्यक हैं. या फिर बाबा रामदेव वह दावा वापस लें कि यह कोरोना की दवा है उसके पश्चात उसे बेचे. देश को ऐसी अंधेर नगरी ना बनाये जहां ना खाता ना बही... जो रामदेव कहे वही सही.
दवा का विरोध कर रहा वर्ग वो है जिसे भारतीय संस्कृति सभ्यता की कोख से उपजी किसी भी विद्या और विधा से ही घृणा है. उसकी यह घृणा इतनी पाशविक हो चुकी है कि उस वर्ग को अब किसी दवा का भी विरोध करने में कोई हिचक नहीं है. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा. इससे पूर्व अतीत में भी बाबा रामदेव की दवाओं और यहां तक कि योग विद्या का तीव्र विरोध भी यह वर्ग करता रहा है. अतः इसबार भी उसका विरोध उसकी पाशविक प्रवृति और प्रकृति के ही अनुरूप है.
नज़रबंदी के दौरान 23 जून 1953 को कश्मीर में रहस्यमयी परिस्थितियों में हो गई थी उनकी मृत्यु
शौर्यपथ लेख / आज जिस कश्मीर से धारा 370 को समाप्त कर दिया गया है, जहां सत्ता को त्याग कर राज्यपाल शासन लगाया गया है, एवं वर्तमान में मोदी सरकार उस कश्मीर के अस्तित्व व देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए जिस लड़ाई को आगे बढ़ा रही है, दरअसल इस लड़ाई की शुरुआत भारत के महान सपूत डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान से ही शुरू हो गई थी, जिसने एक देश में दो विधान दो निशान नही चलेगा के संकल्प के साथ कश्मीर में अपने अभियान की शुरुआत तो की पर उनकी गिरफ्तारी के बाद नज़रबंदी के दौरान 23 जून 1953 को कश्मीर में रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।
6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी जी का जन्म हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉ. मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक पास किया तथा 1921 में बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वे विदेश चले गये और 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थी। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि तथा ख्याति निरन्तर आगे बढ़ती गयी।
उनका राजनैतिक जीवन
डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया। डॉ.मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। उन्होने बहुत से गैर कांग्रेसी हिन्दुओं की मदद से कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया। इस सरकार में वे वित्तमन्त्री भी बने। इसी समय वे सावरकर के राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और हिन्दू महासभा में सम्मिलित हुए।
मुस्लिम लीग की राजनीति से बंगाल का वातावरण दूषित हो रहा था। वहाँ साम्प्रदायिक विभाजन की नौबत आ रही थी। साम्प्रदायिक लोगों को ब्रिटिश सरकार प्रोत्साहित कर रही थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने यह सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया कि बंगाल के हिन्दुओं की उपेक्षा न हो। अपनी विशिष्ट रणनीति से उन्होंने बंगाल के विभाजन के मुस्लिम लीग के प्रयासों को पूरी तरह से नाकाम कर दिया। 1942 में ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न राजनैतिक दलों के छोटे-बड़े सभी नेताओं को जेलों में डाल दिया।
डॉ.मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से हम सब एक हैं। इसलिए धर्म के आधार पर वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे। वे मानते थे कि विभाजन सम्बन्धी उत्पन्न हुई परिस्थिति ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से थी। वे मानते थे कि आधारभूत सत्य यह है कि हम सब एक हैं। हममें कोई अन्तर नहीं है। हम सब एक ही रक्त के हैं। एक ही भाषा, एक ही संस्कृति और एक ही हमारी विरासत है। परन्तु उनके इन विचारों को अन्य राजनैतिक दल के तत्कालीन नेताओं ने गलत तरीके से प्रचारित-प्रसारित किया। बावजूद इसके लोगों के दिलों में उनके प्रति अथाह प्यार और समर्थन बढ़ता गया। अगस्त, 1946 में मुस्लिम लीग ने जंग की राह पकड़ ली और कलकत्ता में भयंकर बर्बरतापूर्वक अमानवीय मारकाट हुई। उस समय कांग्रेस का नेतृत्व सामूहिक रूप से आतंकित था।
भारतीय जनसंघ की स्थापना
ब्रिटिश सरकार की भारत विभाजन की गुप्त योजना और षड्यन्त्र को कांग्रेस के नेताओं ने अखण्ड भारत के अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया। उस समय डॉ.मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की माँग उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खण्डित भारत के लिए बचा लिया। गान्धी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वे भारत के पहले मंत्रिमंडल में शामिल हुए। उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी। संविधान सभा और प्रान्तीय संसद के सदस्य और केन्द्रीय मंत्री के नाते उन्होंने शीघ्र ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। किन्तु उनके राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। फलत: राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने एक नई पार्टी बनायी जो उस समय विरोधी पक्ष के रूप में सबसे बड़ा दल था, और ऐसे 21 अक्टूबर 1951 में भारतीय जनसंघ का उद्भव हुआ, तथा अगले ही वर्ष 1952 में हुए लोकसभा चुनावों में भारतीय जनसंघ को तीन संसदीय क्षेत्र में जीत मिली, जिसमें डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी शामिल थे।
कश्मीर के लिए उनका बलिदान
डॉ॰ मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आज़म) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। संसद में अपने भाषण में डॉ॰ मुखर्जी धारा-370 को समाप्त करने के लिए मजबूती से इस बात को रखते थे, कि एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान नही चलेगा।
अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। उन्होंने तात्कालिन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। आज भी उनकी मृत्यु के रहस्य से पर्दा नही उठा है, किन्तु आज डॉ. मुखर्जी से वैचारिक समानता रखने वाले भारत में करोड़ों लोग हैं, जिनका मानना है कि कश्मीर इस राष्ट्र का मुकुट है, तथा एक देश में दो विधान दो निशान कल्पना भी नही की जा सकती है। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी नए भारत के निर्माताओं में से एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ हैं। जिस प्रकार हैदराबाद को भारत में विलय करने का श्रेय सरदार पटेल को जाता है, ठीक उसी प्रकार बंगाल, पंजाब और कश्मीर के अधिकांश भागों को भारत का अभिन्न अंग बनाये रखने में डॉ. मुखर्जी के योगदान को नकारा नही जा सकता। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी एक बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी ही नहीं, वह एक महान शिक्षाविद्, देशभक्त, राजनेता, सांसद, अदम्य साहस के धनी और सहृदय मानवतावादी थे। बावन वर्षों से भी कम के जीवनकाल में और उसमें से भी राजनीति में सिर्फ चौदह साल में वे स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री के पद तक पहुँचे, जिसे उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में हुए अल्पसंख्यक हिंदुओं के नरसंहार के मुद्दे पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से गंभीर मतभेद होने पर ठुकरा दिया। इससे पहले वे जिन्ना के पाकिस्तान से छीनकर बनाए गए पश्चिम बंगाल और पूर्वी पंजाब के अस्तित्व में आने के पीछे सक्रिय रहे। कैबिनेट मंत्री के पद को ठुकराने के बाद उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की, और आज जनसंघ के बाद बनी भारतीय जनता पार्टी विश्व के सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में स्थापित हो चुकी है, तथा लगातार दो बार भारतीय जनता पार्टी केंद्र में पूर्ण बहुमत से सरकार भी बना चुकी है, भाजपा के नेता, कार्यकर्ता जिस नारे को बुलंद करते हैं कि “जहां बलिदान हुए मुखर्जी, वो कश्मीर हमारा है” और वर्तमान में देश ने नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत प्रधानमंत्री दिया है, जिनमें डॉ. मुखर्जी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मजबूत इच्छा शक्ति नज़र भी आती है, एवं वहां के मूल निवासियों को कश्मीर में पुनर्स्थापित करने, कश्मीर की वादियों में शान्ति बहाली के प्रयासों के साथ ही कश्मीर से धारा 370 समाप्त कर मोदी सरकार ने डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि दी है। ( - विजय जयसिंघानी , रायपुर )
शौर्यपथ लेख । वर्तमान में भाजपा अध्यक्ष का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमे उन्होंने कहा है कि नरेंद्र मोदी नरो के ही नही सुरों के भी भगवान है । राजनीति में चाटुकारिता का अपना अलग महत्तव होता है चाटुकारिता से ही नेता तरक्की कर सकता है किंतु चाटूकारिता की सभी सीमा को लांघ कर भाजपा अध्यक्ष ने जिस तरह गोल मोल बात कर प्रधानमंत्री मोदी को भगवान की संज्ञा दी दी यह सनातनी धर्म पर एक आघात है किंतु भक्त की संज्ञा के नवाजे गए लोगो को ये भी अच्छा लगेगा कि प्रधानमंत्री मोदी को सुरों का देवता कहा गया । हिन्दू धर्म मे सुरों के देवता (देवो के देव महादेव )भगवान शिव को कहा जाता है जो नरो की रक्षा करने के लिए विष भी पी लेते है । अब जब नड्डा ने मोदी को सुरों का देवता कह ही दिया है तो जनहित के लिए अपने सुरों के देवता को यह भी कहे कि वर्तमान में कोरोना महामारी रूपी विष को ये सुरों के देवता धारण कर ले और देश ही नही सृष्टि को भी इस महामारी से निजात दिलाये क्योकि हम तो आम जनता है साधारण नर है हम छोटी बड़ी बीमारी से भी डरते है और मरते है किंतु नड्डा के अनुसार सुरों के देवता मोदी इन बीमारी को हर सकते है । भाजपा अध्यक्ष ने बड़े अभिमान से मोदी को सुरों का देवता कहा है तो नड्डा जी अपने सुरों के देवता को कहिये कोरोना रूपी विष को धारण करे क्यो आम जनता की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे है सुरों के देवता क्यो नही कोरोना महामारी को रोक रहे है । बड़ा आश्चर्य होता है विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष का इस तरह का बयान हास्यास्पद लगता है और दिखता है कि चाटुकारिता की कोई सीमा नही होती । आगे बढिये नड्डा जी और कहिये सुरों के देवता से जो कि आप ही कि पार्टी से संबंध रखते है । सिर्फ बड़ी बड़ी बातों से इस आपदा का निवारण नही होगा किसी दैविक आत्मा से ही कुछ हो सकता है और आपकी नजर में देवो के देव तो आपकी पार्टी से ही है तो क्यो सामान्य नर को मौत के मुह में जाते देख रहे है बचते क्यो नही । महादेव एक ऐसे देव है जो पूरी सृष्टि को बना और बिगाड़ सकते है तो फिर नड्डा के सुरों के देवता कोरोना को मात तो दे ही सकते है । चीन के विवाद को खत्म कर सकते है क्यो जवानों के शहीद पर 2 मिनट का मौन धारण करते है अकेले नड्डा जी के सुरों के देवता चीन को नेस्तनाबूद कर सकते है । नड्डा जी आगे बढिये और अपने सुरों के देवता से सविनय निवेदन कीजिये कि भारत के सनातनी मानने वालों की रक्षा करे , सीमा पर खड़े जवानों की रक्षा करे । कब आगे बढोगे अध्यक्ष जी क्या सिर्फ बोल्बच्चन से ही काम चलाओगे जब आपने नरेंद मोदी को सुरेंद्र मोदी यानी सुरों का देवता कह दिया तो जनहित में थोड़ा और आगे बढिये और कहिये कि सारी मुसीबत हर ले जैसे मेरे आराध्य देवो के देव महादेव हरते तो हर पीड़ा को अब आपके सुरों के देवता की बारी है आगे बढिये और कहिये कि सनातन धर्म की रक्षा करे विश्व को बचाये अगर ऐसा नही कह सकते तो देवो के देव का अपमान मत कीजिये आपके लिए नरेंद्र मोदी सुरों के देवता हो सकते है किंतु मेरे लिए सुरों के देवता सिर्फ और सिर्फ महादेव है और रहेंगे ....जय महांकाल " अकाल मौत वो मरे जो काम करे चांडाल का काल उसका क्या बिगाड़े जो भक्त हो महांकाल का "
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नई दिल्ली / शौर्यपथ लेख / भाजपा का पिछले लोकसभा चुनाव ( 2019 )में प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा . मोदी सरकार २.० में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाते हुए देश को विकास की ओर ले जाने का दावा करने लगी . हालाँकि भाजपा सरकार में लगातार रूपये की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में गिरती जा रही है . आधी दुनिया से ज्यादा का दौरा करने के बाद भी रोजगार के मुद्दे पर सरकार की नाकामी सामने है . महंगाई अपने चरम पर है . मोदी सरकार के पास आम आदमी को बताने के लिए कोई ख़ास उपलब्धि नहीं है किन्तु कुछ ऐसी उपलब्धि है जिसे नकारा नहीं जा सकता . कश्मीर समस्या का हल करना और भारत के अभिन्न अंग के रूप में शामिल कर एक भारत का निर्माण बड़ी उपलब्धि है , राम मंदिर मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सालो से चला आ रहा विवाद पटाक्षेप हो गया . नोट बंदी से किसे फायदा हुआ किसे नुक्सान , जीएसटी क्या है और इससे किसको फायद होगा ये देश की लगभग ६० प्रतिशत जनता को जानकारी ही नहीं क्योकि आम जनता को आज भी महंगाई की मार झेलनी पड़ रही है . इस सबके बीच भारत की जनता ने देश के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को चुना किन्तु प्रदेश में देखा जाए तो प्रदेश के चुनाव में भाजपा को हर जगह असफलता ही मिली कही बहुमत नहीं मिला किन्तु बावजूद इसके कई राज्य है जहां भाजप ने अपनी सरकार बना ली . भाजपा की सरकार तो प्रदेश में बन गयी किन्तु यह प्रदेश की जनता की पसंद की सरकार नहीं कही जा सकती क्योकि प्रदेश की जनता ने भाजपा को नकारा किन्तु लालची और सत्ता लोभी कुछ जनप्रतिनिधियों के पार्टी के प्रति विश्वासघात के कारन सरकार तो अस्थिर हो ही गयी . भले ही इसे विचारधारा का नाम देकर पल्ला झाड ले किन्तु सच्चाई यही है कि चुनाव के पहले और परिणाम आने के बाद ऐसी क्या बात हुई कि विचारधारा अचानक बदल गयी खैर बड़े लोग बड़ी बात .
राजनितिक हलको में अब चर्चा का विषय है कि राजस्थान भी भाजपा के कब्जे में आ जाएगी और यहाँ भी कुछ ऐसे विधायक निकल जायेंगे जिनकी अंतरात्मा अचानक जाग जायेगी और देश प्रेम दिलो में तूफ़ान ले आएगा और देशहित , समाज हित की बात करते हुए विचारधारा की बात करते हुए राजस्थान में भी भाजपा का राज हो सकता है ये किस पल होगा कितने दिन में होगा इस पर कहा नहीं जा सकता हो सकता है कि लेख प्रकाशित होने के चाँद घंटो में हो जाए या चाँद दिनों में हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता .
मुझे याद है कि कुछ साल पहले शाम को बिहार की सरकार के अच्छे कार्य की बात चल रही थी और सरकार में शामिल सभी दल एकजुटता की बात कर रहे थे किन्तु दुसरे दिन सुबह करीब ११ बजे समाचार चलने लगा कि बिहार में सरकार में विपक्ष की भूमिका निभा रही भाजपा अब सरकार में शामिल हो गयी और आरजेडी सत्ता से बाहर हो गयी . एक ही रात में राजनितिक खेल चला और नितीश कुमार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिए और नए समर्थन पत्र के साथ फिर सरकार बनाने का दावा पेश किया और सरकार बन गयी ये सब हुआ १६ घंटो में . जैसे कोई सरकार का निर्माण नहीं खिलौने का निर्माण कर दिया गया हो .
कर्नाटक का नाटक तो बड़ा ही मजेदार रहा कभी समर्थन कभी विरोध के बीच यहाँ भी सरकार ऐसी पार्टी की बनी जिसे राज्य में बहुमत नहीं मिला किन्तु अचानक कई जनप्रतिनिधि की अंतरात्मा जागृत हुई और एक नए सरकार का गठन हो गया और कर्नाटक के नाटक का अंत हुआ . ऐसी ही घटना महाराष्ट्र में भी घटित हुई महाराष्ट्र की आम जनता ने बहुमत के साथ शिव सेना और भाजपा को अपना समर्थन दिया था किन्तु आपसी विवाद के बाद यहाँ राजनितिक का सबसे बड़ा उलट फेर होते हुए दो हिन्दू वादी संगठन अलग हो गए और एक नए समीकरण के साथ शिव सेना ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली और भाजपा को यहाँ नाउम्मीदी मिली . ऐसा ही हाल हरियाणा का हुआ किन्तु यहाँ बाज़ी भाजपा ने मारी और सत्ता कब्ज़े में कर ली सत्ता मिलते ही एक बड़े राजनेता को जमानत भी मिल गयी क्या राजनीती समीकरण में इतने संयोग प्राकृतिक हो सकते है अगर ये हुए है तो इसे सदियों तक याद रखा जाएगा .
बात करते है मध्यप्रदेश की जहाँ भाजपा सरकार बनाते बनाते रह गयी और तब पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री निवास छोड़ना पड़ा किन्तु पूर्व मुख्यमंत्री ने निवास छोड़ते समय मिडिया के सामने यह बयान दिया कि जल्द ही वो वापस बंगले पर आयेंगे और एक बार फिर मुख्यमंत्री बनेगे यानी कि उन्हें जनता का फैसला स्वीकार नहीं था लोकतंत्र में चुनाव के दौरान जिस जनता को जनार्दन की संज्ञा दी जाती है चुनाव के बाद उसी जनता के फैसले को दरकिनार किया गया मध्यप्रदेश में और एक बार फिर चला विचारधारा का ड्रामा और यहाँ भी अचानक सिधिया गुट को कांग्रेस में घुटन होने लगी घुटन का क्या कारन था ये तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ही बता सकते है किन्तु अचानक इस विचारधारा में परिवर्तन और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज के कथन के अनुसार सिधिया को विभीषण की उपाधि देकर एक बार फिर मध्यप्रदेश में कोरोना संकट के बीच सत्ता में काबिज होने का खेल सारे भारत ने देखा कहने को तो यह विचारधारा की जीत कही जा रही है किन्तु कौन सी विचारधारा जो अचानक बदल गयी ऐसी विचारधारा का क्या अस्तित्व क्या ये विचारधारा भविष्य में भी स्थिर रहेगी या परिवर्तन शील रहेगी ये तो महाराज सिंधिया ही बता सकते है . खैर चाहे कुछ भी हुआ हो आज मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है और वर्तमान में स्थिर है अब असली फैसला उप चुनाव में ही होगा .
अब बात करे राजस्थान की तो राजस्थान के मुख्यमंत्री खुले रूप से आरोप लगा रहे है कि उनके विधायक को खरीदने की कोशिश की जा रही है इस बात में कितनी सच्चाई है ये जाँच का विषय है किन्तु ये कहना गलत होगा कि राजस्थान में सत्ता परिवर्तन नहीं हो सकता . पिछले राजनितिक घटना क्रम को देखे तो कुछ भी संभव है क्या पता किसी और जनप्रतिनिधि की आत्मा से आवाज़ आये और विचारधारा की एक राग निकले और सत्ता परिवर्तन हो जाए . वैसे भी इन दिनों एक विडिओ वाइरल हो रहा है जिसमे मुख्यमंत्री चौहान की आवाद का दावा किया जा रहा है कि उनके द्वारा किस तरह केन्द्रीय नेत्रित्व के आदेश पर सत्ता परिवर्तन हुआ है . इस विडिओ में कितनी सच्चाई है ये जाँच का विषय है किन्तु राजनितिक गलियारों में ये चर्चा का विषय जरुर है . इतने घटना क्रम से एक बात तो स्पष्ट है कि आम जनता की पसंद की सरकार वो नहीं जिनके जनप्रतिनिधि की विचारधारा चुनाव जीतने के बाद बदलती रहती है . भारत के निवासियों के पसंद की सरकार की गिनती में भारत सरकार ( मोदी सरकार ) आती है जिसे जनता ने अपना पूर्ण समर्थन दिया . परदेश में उड़ीसा की सरकार आती है जिसे जनता ने समर्थन दिया जो स्थिर है , छत्तीसगढ़ की सरकार जिसे जनता का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त है , दिल्ली की सरकार जिस पर जनता ने भरोसा दिलाया . भारत की राजनीती में उल्ट फेर एक आम प्रक्रिया हो गयी और जनता से मत का अपमान एक नित्य प्रक्रिया . ऐसा है भारत का लोकतंत्र जहा जनप्रतिनिधि चुनाव जितने के बाद विचारधारा बदलते है जनता नहीं ...( लेखक - शरद पंसारी )