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दुर्ग। शौर्यपथ।
नगर पालिका निगम दुर्ग में नवनियुक्त महापौर श्रीमती अलका बाघमार ने अपने 100 दिनों के कार्यकाल में ही अपनी कार्यशैली की ऐसी अमिट छाप छोड़ दी है, जिसे जनता पीढ़ियों तक याद रखेगी! दुर्ग निगम क्षेत्र इन दिनों खुशहाली के ऐसे वातावरण में जी रहा है कि मानो स्वर्ग ही धरती पर उतर आया हो।
दुर्ग नगर निगम अब केवल नगर निगम नहीं, बल्कि "विकास तीर्थ" बन चुका है, जहां आकर योजनाएं मोक्ष प्राप्त करती हैं और समस्याएं स्वर्गवास को प्राप्त हो जाती हैं।
जन-जन की महापौर: सुलभता की नई मिसाल
पूर्व के शासनकाल में शहरी सरकार के मुखिया से मिलने के लिए महीनों गुजर जाते थे, क्योंकि वे चाटुकारों से घिरे रहते थे। परंतु वर्तमान समय में ऐसी स्थिति बिल्कुल भी नहीं है। अब आम जनता महापौर से आसानी से मिल सकती है! मानो महापौर महोदया हर समय जनता-जनार्दन के लिए ही उपलब्ध हों। यह सुलभता ही उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण है।" लोग अब राशन की दुकान से कम और महापौर के दर्शन से ज़्यादा तृप्ति पा रहे हैं।"
दुर्ग का कायाकल्प: सुंदरता और स्वच्छता का संगम
क्या सड़कें, क्या गलियां – हर तरफ स्वच्छता का अद्भुत साम्राज्य! आधे घंटे की बारिश तो छोड़िए, अगर प्रलय भी आ जाए तो नालियों में जाम की स्थिति नहीं रहेगी। पूरे शहर में कहीं भी पानी का जमावड़ा देखने को नहीं मिलता है; सड़कें गड्ढा रहित होकर ऐसी हो गई हैं जैसे घर का आंगन हो।
" ऐसी सफाई तो कभी इंसान के मन में भी नहीं देखी गई, जैसी दुर्ग की गलियों में देखी जा रही है! अब कचरा खुद चलकर स्वेच्छा से डंपिंग यार्ड में चला जाता है।"
"रात के समय शहर में घूमने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे चांद की रोशनी अपनी छटा बिखेर रही हो, हर कोना जगमगा रहा है।"
शहर के मध्य सुराना कॉलेज के सामने का क्षेत्र जो कभी बदबूदार वातावरण से घिरा रहता था, अब खुशबूदार वातावरण में निर्मित है। कभी यहां कचरे का ढेर होता था, अब सुंदर उद्यान बन चुके हैं। चौक-चौराहों की बात करें तो उनकी सुंदरता अद्भुत है, मानो हर चौराहा कला का एक नायाब नमूना हो। कचरा निष्पादन के लिए बड़ी-बड़ी डंपिंग मशीनें लग चुकी हैं, जिससे शहर की गंदगी का नामोनिशान मिट गया है।
अतिक्रमण मुक्त दुर्ग: न्याय और व्यवस्था का राज
दुर्ग निगम क्षेत्र की सड़कें अतिक्रमण मुक्त हो गई हैं, और आम जनता के यातायात में अतिक्रमणकारियों के कारण हो रही बाधाएं अब दूर हो गई हैं। हर तरफ खुशी का वातावरण है।
"सड़कों से अतिक्रमण इस कदर हट गया है कि अब हर वाहन को चलने से पहले सड़क से अनुमति लेनी पड़ती है कि कहीं वह उसकी स्वच्छता तो नहीं बिगाड़ रहा।"
अवैध रूप से बिल्डिंग/घर बनाने वालों को ख्वाब में भी अब निगम के भवन विभाग जाना पड़ता है, और शहर में अवैध प्लाटिंग पूरी तरह बंद हो गई है। सड़कों पर अब आवारा गाय कहीं नजर नहीं आतीं – वे भी शायद महापौर के शासन से प्रभावित होकर अनुशासित हो गई हैं! इंदिरा मार्केट अब प्रदेश का सबसे सुंदर बाजार नजर आने लगा है। व्यापारियों ने बरामदे का स्थान खाली कर दिया है ताकि आम जनता के आवागमन में किसी प्रकार की दिक्कत न हो।
जिस भावभूमि बिल्डर द्वारा निगम की जमीन पर कब्जा कर लिया गया था, वह अब कब्जा मुक्त हो चुका है। यह महापौर की दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि उन्होंने न्याय और व्यवस्था को सर्वोपरि रखा है। गोठान की गायों के लिए भरपूर चारा उपलब्ध कराने में शहरी सरकार की अहम भूमिका नजर आ रही है, जो पशु कल्याण के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है।
भ्रष्टाचार का युग समाप्त: पारदर्शिता और ईमानदारी का नया दौर
घोटाले की बात करें तो अब घोटाले की बात बहुत दूर नजर आती है। आम जनता के सपनों में भी घोटाले नजर नहीं आते। अब तो आम जनता निगम के नोटिस को देखते ही कांप जाती है – भ्रष्टाचार का निगम के दरवाजे में आगमन बिल्कुल बंद हो चुका है।
"जिन अफसरों पर कभी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, अब वे ध्यान और प्रायश्चित में लीन हो चुके हैं। बताया जाता है कि कुछ तो हिमालय की ओर भी प्रस्थान कर चुके हैं।"
"निगम के कर्मचारी रोज सुबह उठकर शहरी सरकार के कार्यों की आराधना करते हैं, मानो वे देवता समान हों।"
भले ही शहरी सरकार भाजपा की है, परंतु शहरी सरकार की न्याय प्रणाली में सुशासन एक बड़ा महत्वपूर्ण अंग माना जा रहा है। जिस अपंजीकृत संस्था राम रसोई के भूमि आवंटन पर विवाद उत्पन्न हुआ था, उस मामले पर शहरी सरकार ने दस्तावेजों का निरीक्षण किया और सभी गलतियों को संज्ञान में लेते हुए, भाजपा नेता और राम रसोई के संरक्षक चतुर्भुज राठी से राजनीतिक संबंधों को न निभाते हुए, निष्पक्ष कार्यवाही की और बस स्टैंड को एक व्यवस्थित बस स्टैंड के रूप में बना दिया।
"यह महापौर का ही जादू है कि अब कागजों में भी सच्चाई झलकने लगी है – दस्तावेज़ भी डर के मारे झूठ बोलने से परहेज़ करते हैं।"
राजस्व वसूली में क्रांति: निगम बना आत्मनिर्भर
राजस्व वसूली के मामले में तो अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि साल भर में कम से कम ₹100 करोड़ की राजस्व वसूली हो जाएगी, जो कि एक अभूतपूर्व उपलब्धि है!
"करदाता अब अपनी खुशी से टैक्स देने पहुंचते हैं, कुछ तो अतिरिक्त टैक्स देकर निकलते हैं यह कहते हुए कि "राशि कम लग रही है, कुछ और लें!"
प्रदेश सरकार से दुर्ग निगम में करोड़ों रुपए के कार्य अब तक महापौर के सानिध्य में आ चुके हैं, और ऐसी चर्चा है कि कई हजार करोड़ रुपए भी अब आने वाले समय में दुर्ग निगम में आ जाएंगे।
शहरी सरकार, प्रदेश सरकार और उनके जनप्रतिनिधियों के साथ ऐसा तालमेल बैठाकर चल रही है कि मानो राज्य सरकार पैसे लेकर निगम के दरवाजे पर खड़ी हो, मिन्नतें कर रही हो कि दुर्ग निगम ये पैसे ले ले!
सामंजस्य और सम्मान: विपक्ष भी हुआ नतमस्तक
पूर्व की शहरी सरकारो ने हमेशा विपक्ष का अपमान किया है, परंतु वर्तमान समय में शहरी सरकार के द्वारा विपक्ष के नेताओं का भी पूरा सम्मान किया जा रहा है। उन्हें बड़े-बड़े कार्यालय दिए गए हैं ताकि वे जनता की बातों को सुन सकें और अपनी बातों को शहरी सरकार के सामने रख सकें।
अतिश्योक्ति " नगर निगम के मंत्रिमंडल में इतनी एकता है कि एक मंत्री खांसी भी करता है तो दूसरा टॉवल लेकर दौड़ पड़ता है। ऐसी सामूहिक भावना केवल महापौर के करिश्मे से संभव हो पाई है।"यह लोकतंत्र में सद्भाव की अद्भुत मिसाल है!
शहरी सरकार के मंत्रिमंडल की काबिलियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर मंत्री आपस में अपनी कार्यो की रूपरेखा को भली-भांति उचित ढंग से निर्वाहन कर रहा है। आपसी मतभेद की कहीं बातें नजर नहीं आ रही हैं, और शहर के विधायक के साथ सामंजस्य की अद्भुत मिसाल सबके सामने नजर आ रही है। शासकीय सुविधाओं का दोहन करने के बजाय आम जनता की सुविधाओं के लिए शहरी सरकार कटिबद्ध है।
अब नगर निगम के कर्मचारियों की सुबह 'सुशासन मंत्र' के जाप से शुरू होती है और रात 'महापौर चालीसा' के पाठ से समाप्त होती है।
निष्कर्ष: स्वर्णिम युग का प्रारंभ
पूर्व की शहरी सरकार के कार्यकाल को अब जनता बिल्कुल भूल चुकी है। ऐसी कोई बातें हैं जिनकी व्याख्या करते-करते सुबह से रात हो जाएगी, परंतु वर्तमान की शहरी सरकार की कार्यप्रणाली और सुशासन की बातें कभी खत्म नहीं होंगी। हर दृष्टिकोण से वर्तमान की शहरी सरकार, महापौर श्रीमती अलका बाघमार के सानिध्य में नई ऊंचाइयों को छू रही है, और हम धन्य हैं कि हम इस स्वर्णिम युग के साक्षी हैं!
"यदि वर्तमान महापौर जी इसी गति से कार्य करती रहीं, तो संभावना है कि आने वाले दिनों में संयुक्त राष्ट्र भी दुर्ग निगम को 'ग्लोबल रोल मॉडल फॉर अर्बन गवर्नेंस' घोषित कर देगा।"
भाजपा नेता के अपंजीकृत संस्था पर कार्यवाही हो गई ( विकाश के चश्मे से )
मुक्तिधाम में पशु मृत आत्मा को श्रधांजलि देते हुए ( विकाश के चश्मे से )
सडको पर अब आवारा पशु नजर नहीं आते (विकास के चश्मे से )
इंदिरा मार्केट का सुन्दर रूप बरामदा हुआ कब्ज़ा मुक्त (विकास के चश्मे से )
लेखक: शरद पंसारी
(यह व्यंग्य लेख नगर निगम दुर्ग की प्रेस विज्ञप्तियों में दर्शाए गए विकास और जमीनी सच्चाई के तुलनात्मक विश्लेषण पर आधारित है। विकास के चश्मे से शहर में विकास कार्य और सुशासन चरम सीमा पर है )
शौर्यपथ समाचार विशेष रिपोर्ट
दुर्ग, 24 जुलाई 2025
नगर पालिक निगम दुर्ग में हाल ही में तीन कर्मचारियों के निलंबन के बाद प्रशासनिक हलकों में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। सूत्रों से मिली विश्वसनीय जानकारी के अनुसार चौथे कर्मचारी पर भी अब निलंबन की कार्रवाई तय मानी जा रही है। आरोप है कि उक्त कर्मचारी ने शासकीय पद का दुरुपयोग करते हुए अपने बेटे के नाम से "स्ट्रीट वेंडर" योजना में दुकान का अवैध रूप से आवंटन करवा लिया, जबकि वह स्वयं शासकीय कर्मचारी था और योजना के अंतर्गत मिलने वाले लाभों के लिए अयोग्य था।
फाइलों में दबा मामला अब फिर उठा चर्चा में
सूत्रों का कहना है कि यह मामला पूर्व से ही जांचाधीन है लेकिन कुछ समय से यह फाइलों में दबा पड़ा था। अब जबकि नगर निगम आयुक्त सुमित अग्रवाल के नेतृत्व में लगातार तीन कर्मचारियों पर निलंबन जैसी सख्त कार्रवाई की जा चुकी है, तो यह उम्मीद की जा रही है कि इस मामले पर भी कठोर निर्णय लिया जाएगा।
क्या शासकीय कर्मचारी अपने परिजनों को दिला सकते हैं योजना का लाभ?
यह सवाल अब प्रशासनिक और सामाजिक चर्चा का विषय बन गया है – क्या कोई शासकीय कर्मचारी, जो स्वयं राज्य शासन की सेवा में है, अपने पुत्र अथवा परिजनों को शासन की योजनाओं का लाभ दिला सकता है?
नियम क्या कहते हैं?
छत्तीसगढ़ नगर प्रशासन अधिनियम एवं संबंधित योजना निर्देशों के अनुसार –
कोई भी शासकीय कर्मचारी या उसका निकट संबंधी यदि उस योजना की पात्रता श्रेणी में नहीं आता, तो वह लाभ लेने का अधिकारी नहीं होता।
प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि योजना (PM SVANidhi) जैसे योजनाओं में स्पष्ट प्रावधान है कि लाभार्थी स्वयं स्वरोजगार में संलग्न हो तथा किसी प्रकार की शासकीय सेवा में न हो और न ही उसका नाम शासकीय पेंशनर सूची में दर्ज हो।
यदि किसी कर्मचारी द्वारा पद का दुरुपयोग कर इस प्रकार का लाभ अपने परिजनों को दिलाया गया है, तो यह स्पष्ट रूप से हितों का टकराव (Conflict of Interest) और शासकीय सेवा नियमों का उल्लंघन है।
आयुक्त की अग्नि परीक्षा
अब सभी की निगाहें नगर निगम आयुक्त श्री सुमित अग्रवाल पर टिकी हैं। वे पहले ही अनुशासन और पारदर्शिता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा चुके हैं। परंतु क्या वे इस संवेदनशील मामले में भी निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करते हुए दोषी कर्मचारी पर कार्रवाई करेंगे या यह मामला एक बार फिर फाइलों में दफ्न हो जाएगा, यह देखने योग्य होगा।
न्याय की प्रतीक्षा में शिकायतकर्ता
इस मामले में शिकायतकर्ता ने बार-बार निगम को आवेदन दिया है, जिसकी सत्यता की पुष्टि के लिए दस्तावेज और जांच रिपोर्ट भी संलग्न किए गए थे। अब जबकि नगर निगम प्रशासन लगातार कार्रवाई की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तो शिकायतकर्ता सहित समाज के जागरूक नागरिकों को आशा है कि इस बार भी पारदर्शी और निष्पक्ष निर्णय सामने आएगा।
शौर्यपथ की अपील
शौर्यपथ समाचार इस पूरे प्रकरण पर सतत निगरानी रखे हुए है और पाठकों को निष्पक्ष जानकारी देता रहेगा। साथ ही हम शासन एवं प्रशासन से आग्रह करते हैं कि योजनाओं का लाभ केवल पात्र व्यक्तियों को ही मिले, इसके लिए एक स्वतंत्र एवं स्वचालित सत्यापन प्रणाली विकसित की जाए ताकि भविष्य में इस प्रकार के दुरुपयोग पर पूर्ण विराम लगाया जा सके।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय बोले – “नक्सलवाद की रात ढल रही है, बस्तर में विकास की नई सुबह हो रही है”
रायपुर/शौर्यपथ ब्यूरो/
(साभार: जनसंपर्क विभाग, छत्तीसगढ़ शासन)
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने बस्तर में नक्सलवाद के खात्मे को लेकर एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए कहा कि "नक्सलवाद की रात अब ढल रही है और विकास की नई सुबह का उदय हो चुका है।" उन्होंने बताया कि बस्तर रेंज में ₹2.54 करोड़ के इनामी 66 हार्डकोर नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा से जुड़ने का संकल्प लिया है। इस आत्मसमर्पण में ₹25 लाख के इनामी माओवादी SZCM (South Zonal Committee Member) रामन्ना ईरपा उर्फ जगदीश भी शामिल है, जो संगठन का एक शीर्ष रणनीतिकार रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह ऐतिहासिक आत्मसमर्पण डबल इंजन सरकार की सुशासन, सुरक्षा और पुनर्वास नीति का प्रत्यक्ष प्रमाण है। सरकार की समावेशी और सशक्त योजनाओं ने इस दिशा में निर्णायक बदलाव लाया है।
एक ही दिन में 5 जिलों से आए 66 नक्सली मुख्यधारा में
मुख्यमंत्री ने जानकारी दी कि:
बीजापुर से 25, दंतेवाड़ा से 15, कांकेर से 13, नारायणपुर से 8, सुकमा से 5 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है।
इन सभी ने राज्य सरकार की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति से प्रेरित होकर हिंसा का मार्ग छोड़ शांति और विकास की दिशा में चलने का निर्णय लिया।
‘पूना मारगेम’ – पुनर्वास से पुनर्जीवन की नीति बनी बदलाव की धुरी
मुख्यमंत्री साय ने “पूना मारगेम: पुनर्वास से पुनर्जीवन” नीति को इस परिवर्तन का केंद्रीय तत्व बताते हुए कहा कि राज्य सरकार इन नक्सलियों के भविष्य को संवारने और उन्हें समाज के सम्मानित नागरिक के रूप में पुनः स्थापित करने हेतु पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है।
18 महीनों में 1,570 माओवादियों का आत्मसमर्पण – सरकार की नीति की व्यापक स्वीकार्यता
मुख्यमंत्री ने बताया कि पिछले 18 महीनों में 1,570 माओवादी कैडर आत्मसमर्पण कर चुके हैं। यह सरकार की पारदर्शी, नागरिक हितैषी और मानवीय दृष्टिकोण से प्रेरित नीति की सफलता का प्रमाण है। आत्मसमर्पण करने वालों में कई कुख्यात और रणनीतिक स्तर के माओवादी शामिल हैं।
केंद्र-राज्य समन्वय से बस्तर में विकास और सुरक्षा की नई लहर
मुख्यमंत्री साय ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह के मार्गदर्शन में राज्य और केंद्र सरकार मिलकर बस्तर के दूरस्थ क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास का समवेत अभियान चला रही हैं।
उन्होंने बताया कि अब बस्तर के सुदूर क्षेत्रों में:
सड़कों का विस्तार, पेयजल आपूर्ति, प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा केंद्र, स्वास्थ्य सुविधाएं, परिवहन, बिजली एवं डिजिटल नेटवर्क जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुँच चुकी हैं।
रामन्ना ईरपा का आत्मसमर्पण – माओवादी नेटवर्क को गहरा झटका
सूत्रों के अनुसार, रामन्ना ईरपा उर्फ जगदीश माओवादी संगठन का दक्षिण जोनल कमेटी सदस्य (SZCM) था, जो रणनीति, भर्ती और स्थानीय नेटवर्क संचालन का प्रमुख चेहरा रहा है। उसका आत्मसमर्पण माओवादी नेटवर्क की रीढ़ तोड़ने जैसा माना जा रहा है।
मुख्यमंत्री का संदेश – “बस्तर भय से नहीं, भविष्य से पहचाना जाएगा”
मुख्यमंत्री साय ने आत्मसमर्पण करने वाले सभी व्यक्तियों का स्वागत करते हुए कहा:
"हम हर उस हाथ को थामेंगे, जो हथियार छोड़कर शांति, शिक्षा और सृजन की राह पर लौटना चाहता है। यह बस्तर के पुनर्निर्माण का समय है। यह सामाजिक भागीदारी से संचालित नया युग है।"
निष्कर्ष: नक्सलवाद पर निर्णायक प्रहार, विकास की ठोस जमीन
बस्तर की यह घटना केवल एक प्रशासनिक सफलता नहीं, बल्कि आशा, पुनर्वास और सामाजिक पुनरुत्थान की ऐतिहासिक पटकथा है। नक्सलवाद के आतंक से लंबे समय से जूझते बस्तरवासियों के लिए यह एक निर्णायक मोड़ है — अब बस्तर की पहचान भय नहीं, बल्कि भविष्य की संभावना होगी।
? रिपोर्ट: शरद पंसारी
संपादक: शौर्यपथ दैनिक समाचार
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(साभार: जनसंपर्क विभाग, छत्तीसगढ़ शासन)
कृषि यंत्रों के साथ ही आधुनिक कृषि यंत्र ड्रोन की पूजा कर लगाया गुड़ के चीला का भोग
रायपुर / शौर्यपथ /
छत्तीसगढ़ का पारंपरिक और प्रथम त्यौहार हरेली आज जिले भर में अपार उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया। सावन मास की अमावस्या को मनाए जाने वाला यह पर्व, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध कृषि, संस्कृति और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है, इस बार भी अपने रंग-रूप और परंपराओं के साथ लोगों के दिलों में उत्सव का माहौल लेकर आया। इस अवसर पर किसानों ने अपने पारंपरिक कृषि यंत्रों हल, नांगर, कुदाली और फावड़े की पूजा कर फसलों की सुखद पैदावार और समृद्धि की कामना की। वहीं बालोद जिले की तीन ड्रोन दीदियों ने आधुनिक तकनीक और परंपरा का अनूठा संगम पेश करते हुए आधुनिक कृषि यंत्र ड्रोन की पूजा कर हरेली तिहार को नया आयाम दिया।
जिले में तीन ड्रोन दीदियों श्रीमती चित्ररेखा साहू, श्रीमती भावना साहू और सुश्री रूचि साहू ने छत्तीसगढ़ के पारंपरिक हरेली तिहार को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर एक नई मिसाल पेश की है। ये ड्रोन दीदियां, जो शासन की ड्रोन दीदी योजना के तहत तकनीकी रूप से प्रशिक्षित हैं, जो कि नियमित रूप से किसानों के मित्र के रूप में तथा कृषि कार्य में अहम भूमिका निभाते हुए फसलों में नैनो उर्वरक छिड़काव का कार्य मिनटों में पूरा कर देती हैं। आज उन्होंने हरेली तिहार के अवसर पर ड्रोन को धूप-दीप से पूजित किया और नारियल व गुड़ के चीले का भोग लगाया। ड्रोन दीदी श्रीमती चित्ररेखा साहू ने कहा कि हमारी परंपरा हमें कृषि यंत्रों का सम्मान सिखाती है। ड्रोन आज हमारा आधुनिक कृषि यंत्र है, जो दवाई छिड़काव और फसलों की निगरानी में मदद करता है। इसे पूजकर हम प्रकृति और तकनीक के मेल को बढ़ावा दे रहे हैं।
ड्रोन दीदी श्रीमती भावना साहू ने बताया कि ड्रोन तकनीक से खेती में समय और मेहनत की बचत हो रही है, और हरेली तिहार के इस अवसर पर उन्होंने संकल्प लिया कि वे जिले के अन्य किसानों को भी इस तकनीक से जोड़ेंगी। ड्रोन दीदी सुश्री रूचि साहू ने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि बालोद जिले के हर खेत तक ड्रोन की पहुंच हो, ताकि फसल उत्पादन दोगुना हो और किसानों का जीवन आसान बने। ड्रोन दीदियों ने इस योजना की सराहना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की दूरगामी सोंच से हम महिलाओं के सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इस योजना से हमें आत्मनिर्भर बनकर जीवन में बेहतर कार्य करने का आत्मबल मिला है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के विशेष प्रयासों से आज कृषि के क्षेत्र में निरंतर नवाचार देखने को मिल रहा है। इससे हम लोगों को बेहतर आय और सुखद जीवन मिला है। हमारे द्वारा निरंतर ही किसानों के फसलों में नैनो उर्वरक का छिड़काव व देखरेख किया जा रहा है। ड्रोन दीदियों ने हरेली तिहार के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के प्रति आभार व्यक्त करते हुए, उन्हें हरेली तिहार की बधाई एवं शुभकामनाएं प्रेषित की है।
भगवान भोले की कृपा बनी रहे और हमारा देश व छत्तीसगढ़ सतत् रूप से विकास, शांति और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ता रहे : मुख्यमंत्री
रायपुर / शौर्यपथ / सावन मास के पावन अवसर पर मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय के साथ आज बगिया स्थित श्री फलेश्वरनाथ महादेव मंदिर पहुंचकर पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों के सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की मंगलकामना की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने सुप्रसिद्ध कथा वाचिका किशोरी राजकुमारी तिवारी द्वारा किए जा रहे शिव महापुराण कथा का श्रवण भी किया।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि भगवान भोलेनाथ की कृपा सभी पर बनी रहे और हमारा देश और छत्तीसगढ़ सतत् रूप से विकास, शांति और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ता रहे। उन्होंने कहा कि भगवान श्री भोलेनाथ के आशीर्वाद से छत्तीसगढ़ सरकार राज्य के कल्याण के लिए समर्पित होकर कार्य कर रही है। हमारी सरकार की नई उद्योग नीति से आकर्षित होकर बीते छह से आठ महीनों में लगभग साढ़े छह लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। राज्य सरकार ने युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों के अवसर सृजित किए हैं।
इस अवसर पर फलेश्वरनाथ महादेव मंदिर परिसर में आयोजित 01 लाख 108 पार्थिव शिवलिंग निर्माण एवं विशेष पूजन अनुष्ठान श्रद्धा, आस्था और शास्त्रोक्त विधि-विधान के साथ संपन्न हुआ। यह आयोजन 22 जुलाई से प्रारंभ हुआ था और इसका समापन आज 24 जुलाई को विधिपूर्वक किया गया। पूरे आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं। भक्तगण पूर्ण श्रद्धा, निष्ठा और भक्ति भाव से पार्थिव शिवलिंग निर्माण में सहभागी रहे। पूजन एवं अनुष्ठान का आयोजन प्रतिष्ठित विद्वान पंडितों द्वारा शास्त्र सम्मत विधियों के अनुसार किया गया, जिससे वातावरण भक्तिमय और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण हो उठा। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष सालिक साय, कमिश्नर नरेंद्र दुग्गा, आईजी दीपक कुमार झा, कलेक्टर रोहित व्यास, पुलिस अधीक्षक शशिमोहन सिंह, जिला पंचायत सीईओ श्री अभिषेक कुमार, जनप्रतिनिधिगण और भारी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे।
छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के स्वादों से सजी रही पारंपरिक थाली
ठेठरी, खुरमी, पिड़िया, अनरसा, खाजा, करी लड्डू, मुठिया, गुलगुला भजिया, चीला-फरा, बरा और चौसेला में जीवंत की छत्तीसगढ़ी पाक शैली
रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ की धरती पर जब भी कोई त्योहार आता है, तो वह केवल धार्मिक या सांस्कृतिक उत्सव भर नहीं होता, बल्कि वह जीवनशैली, परंपरा, स्वाद और सामाजिक सौहार्द का पर्व बन जाता है। इसी श्रृंखला में प्रदेश के प्रमुख कृषि पर्व हरेली तिहार के अवसर पर मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के निवास में पारंपरिक स्वादिष्ट छत्तीसगढ़ी व्यंजनों ने सभी अतिथियों का मन मोह लिया। प्रदेश की अतुलनीय पाक परंपरा को जीवंत करते हुए यहां आगंतुकों के स्वागत के लिए विशेष रूप से ठेठरी, खुरमी, पिड़िया, अनरसा, खाजा, करी लड्डू, मुठिया, गुलगुला भजिया, चीला-फरा, बरा और चौसेला जैसे दर्जनों पारंपरिक व्यंजनों की व्यवस्था की गई थी।
बांस की सूप, पिटारी और दोना-पत्तल में परोसे गए इन व्यंजनों ने न केवल स्वाद, बल्कि प्रस्तुतीकरण में भी लोकजीवन की आत्मा को उजागर किया। अतिथियों ने गर्मागर्म पकवानों का स्वाद लेते हुए राज्य की पारंपरिक पाककला की मुक्तकंठ से सराहना की। मुख्यमंत्री श्री साय ने स्वयं भी इन व्यंजनों का स्वाद चखा और कहा की हरेली तिहार केवल खेती-किसानी का पर्व नहीं है, बल्कि यह हमारी लोकसंस्कृति, हमारी परंपरा और आत्मीयता की अभिव्यक्ति है। इन पारंपरिक व्यंजनों में हमारी माताओं-बहनों की मेहनत, सादगी और स्वाद की समृद्ध परंपरा छिपी है, जो हमारी असली पहचान है। यह आयोजन न केवल हरेली पर्व की महत्ता को दर्शाता है, बल्कि यह प्रमाणित करता है कि छत्तीसगढ़ की आत्मा उसकी मिट्टी, उसके स्वाद और उसकी परंपराओं में रची-बसी है।
इस अवसर पर परिसर का हर कोना छत्तीसगढ़ी संस्कृति की सौंधी खुशबू से सराबोर था। कहीं ढोल-मंजीरों की थाप पर लोक नृत्य होते दिखे तो कहीं व्यंजनों की खुशबू लोगों को अपनी ओर खींचती रही। परंपरागत वेशभूषा में सजे ग्रामीण कलाकारों और सांस्कृतिक प्रस्तुति ने पूरे माहौल को जीवंत और आत्मीय बना दिया। कार्यक्रम में शामिल हुए वरिष्ठ अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, कलाकारों और आमजनों ने इस आयोजन को एक स्मरणीय सांस्कृतिक अनुभव बताया।
रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ी लोकजीवन की खुशबू लिए हरेली तिहार का पारंपरिक उत्सव आज मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के निवास में विधिवत रूप से आरंभ हुआ। छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है, जहाँ प्रत्येक अवसर और कार्य के लिए विशेष प्रकार के पारंपरिक उपकरणों एवं वस्तुओं का उपयोग होता आया है। हरेली पर्व के अवसर पर मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में ऐसे ही पारंपरिक कृषि यंत्रों एवं परिधानों की झलक देखने को मिली, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की अमूल्य धरोहर हैं।
काठा
सबसे बाईं ओर दो गोलनुमा लकड़ी की संरचनाएँ रखी गई थीं, जिन्हें ‘काठा’ कहा जाता है। पुराने समय में जब गाँवों में धान तौलने के लिए काँटा-बाँट प्रचलन में नहीं था, तब काठा से ही धान मापा जाता था। सामान्यतः एक काठा में लगभग चार किलो धान आता है। काठा से ही धान नाप कर मजदूरी के रूप में भुगतान किया जाता था।
खुमरी
सिर को धूप और वर्षा से बचाने हेतु बांस की पतली खपच्चियों से बनी, गुलाबी रंग में रंगी और कौड़ियों से सजी एक घेरेदार संरचना ‘खुमरी’ कहलाती है। यह प्रायः गाय चराने वाले चरवाहों द्वारा सिर पर धारण की जाती है। पूर्वकाल में चरवाहे अपने साथ ‘कमरा’ (रेनकोट) और खुमरी लेकर पशु चराने निकलते थे। ‘कमरा’ जूट के रेशे से बना एक मोटा ब्लैंकेट जैसा वस्त्र होता था, जो वर्षा से बचाव के लिए प्रयुक्त होता था।
कांसी की डोरी
यह डोरी ‘कांसी’ नामक पौधे के तने से बनाई जाती है। पहले इसे चारपाई या खटिया बुनने के लिए ‘निवार’ के रूप में प्रयोग किया जाता था। डोरी बनाने की प्रक्रिया को ‘डोरी आंटना’ कहा जाता है। वर्षा ऋतु के प्रारंभ में खेतों की मेड़ों पर कांसी पौधे उग आते हैं, जिनके तनों को काटकर डोरी बनाई जाती है। यह डोरी वर्षों तक चलने वाली मजबूत बुनाई के लिए उपयोगी होती है।
झांपी
ढक्कन युक्त, लकड़ी की गोलनुमा बड़ी संरचना ‘झांपी’ कहलाती है। यह प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ में बैग या पेटी के विकल्प के रूप में प्रयुक्त होती थी। विशेष रूप से विवाह समारोहों में बारात के दौरान दूल्हे के वस्त्र, श्रृंगार सामग्री, पकवान आदि रखने के लिए इसका उपयोग किया जाता था। यह बांस की लकड़ी से निर्मित एक मजबूत संरचना होती है, जो कई वर्षों तक सुरक्षित बनी रहती है।
कलारी
बांस के डंडे के छोर पर लोहे का नुकीला हुक लगाकर ‘कलारी’ तैयार की जाती है। इसका उपयोग धान मिंजाई के समय धान को उलटने-पलटने के लिए किया जाता है।
रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के निर्देशों पर राज्य सरकार द्वारा शिक्षा क्षेत्र में निरंतर सुधार और शिक्षक समुदाय के हित में त्वरित निर्णय लिए जा रहे हैं। इसी क्रम में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा आज दिनांक 23 जुलाई 2025 को विभिन्न विषयों के 1227 व्याख्याता (टी संवर्ग) शिक्षकों को पदोन्नति आदेश जारी किए गए हैं। इन व्याख्याताओं की पदस्थापना काउंसिलिंग के माध्यम से की जाएगी। इन विषयों में हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, गणित, भौतिक, रसायन, जीवविज्ञान, राजनीति शास्त्र, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र और वाणिज्य जैसे मुख्य विषय शामिल हैं। यह निर्णय सरकार की उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसके अंतर्गत राज्य के शिक्षकों को उनके कार्य, वरिष्ठता और योग्यता के आधार पर समय पर पदोन्नति और अवसर उपलब्ध कराया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि विगत एक वर्ष में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जिला एवं संभाग स्तर पर लगभग 7000 पदों पर पदोन्नति की कार्यवाही संपन्न की गई है। इसके साथ ही, 2621 सहायक शिक्षक (विज्ञान प्रयोगशाला) की सीधी भर्ती काउंसिलिंग के माध्यम से की गई, जिससे स्कूलों में प्रयोगात्मक शिक्षा को और अधिक सुदृढ़ किया जा सके।
इससे पूर्व दिनांक 30 अप्रैल 2025 को लगभग 2900 प्राचार्यों के पदोन्नति आदेश भी जारी किए जा चुके हैं। आने वाले दिनों में पदोन्नत टी संवर्ग के प्राचार्यों की पदस्थापना भी काउंसिलिंग के माध्यम से की जाएगी, जिससे पारदर्शिता और स्थान-आवश्यकता के आधार पर समुचित व्यवस्था सुनिश्चित हो सके।
ई संवर्ग के प्राचार्यों का प्रकरण माननीय न्यायालय में लंबित है। माननीय न्यायालय के निर्णयानुसार समयबद्ध रूप से आवश्यक कार्यवाही की जाएगी।
रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने छत्तीसगढ़ के परंपरागत लोकपर्व हरेली के पावन अवसर पर प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ दी हैं। उन्होंने कहा कि हरेली छत्तीसगढ़ की मिट्टी से जुड़ा ऐसा पर्व है, जो हमारी कृषि संस्कृति, लोक परंपरा और प्रकृति प्रेम का प्रतीक है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हरेली पर्व खेती-किसानी से जुड़ा पहला त्योहार है, जिसमें किसान अपने कृषि उपकरणों की पूजा कर धरती माता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। यह पर्व न केवल अच्छी फसल की कामना का अवसर है, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य की भावना को भी प्रकट करता है।
श्री साय ने प्रदेशवासियों से आग्रह किया कि इस वर्ष हरेली पर्व को हम और भी सार्थक बनाएं — धरती माता की पूजा के साथ वृक्षारोपण करें, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक हरा-भरा भविष्य सुनिश्चित हो सके। यह पर्व केवल परंपरा नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का भी प्रतीक बने।
मुख्यमंत्री ने आशा व्यक्त की कि हरेली पर्व प्रदेशवासियों के जीवन में खुशियाँ, समृद्धि और हरियाली लेकर आए। उन्होंने सभी नागरिकों से इस लोकपर्व को आपसी सौहार्द, प्रकृति प्रेम और परंपरा के सम्मान के साथ मनाने का आह्वान किया।
बिर्रा / शौर्यपथ / बम्हनीडीह तहसील अंतर्गत ग्राम पंचायत सेमरिया की कोटवार भूमि को लेकर बड़ा मामला सामने आया है। एक शासकीय शिक्षक द्वारा ग्राम की कोटवारी सरकारी भूमि को अवैध रूप से खरीदने का गंभीर आरोप पंचायत ने लगाया है। मामले की शिकायत पर कलेक्टर कार्यालय ने तत्काल जांच के निर्देश जारी कर दिए हैं।
ग्राम पंचायत सेमरिया की सरपंच ईश्वरी बाई कश्यप द्वारा प्रस्तुत आवेदन में कहा गया है कि ग्राम खसरा नंबर 1761 की कोटवारी भूमि, जो कि वर्षों से कोटवार उपयोग के लिए आरक्षित रही है, उसे गांव के कृष्ण कुमार कश्यप ने खरीदकर निजी मकान निर्माण शुरू कर दिया है। जबकि यह भूमि राजस्व रिकार्ड में सरकार की संपत्ति मानी जाती है, न कि किसी निजी व्यक्ति की।ज्ञात हो कि कृष्ण कुमार कश्यप पेशे से एक शासकीय शिक्षक है।
कलेक्टर कार्यालय ने लिया संज्ञान, जांच आदेश 3 दिनों में रिपोर्ट सौंपने के निर्देश
जिला प्रशासन ने इस मामले को गंभीर मानते हुए तहसीलदार बम्हनीडीह को तत्काल मौका निरीक्षण कर तथ्यों की पुष्टि करने को कहा है। आदेश में यह भी उल्लेख है कि कोटवारी भूमि को न तो बेचा जा सकता है और न ही खरीदा जा सकता है, यह सार्वजनिक उपयोग की संपत्ति है।
शिक्षक की भूमिका सवालों के घेरे में
कृष्ण कुमार कश्यप जो पेशे से एक शिक्षक है और शासकीय शिक्षक द्वारा इस तरह की सरकारी संपत्ति को खरीदना न सिर्फ नियमों का उल्लंघन है, बल्कि शासकीय पद का दुरुपयोग भी माना जा रहा है। इस कृत्य को लेकर क्षेत्र में नाराजगी है, लोग पूछ रहे हैं – "क्या अब शिक्षक भी सरकारी कोटवारी भूमि जैसे जमीनों के सौदागर बन गए हैं?"
पंचायत की मांग – भूमि पर निर्माण कार्य तुरंत रोका जाए
सरपंच कश्यप ने प्रशासन से यह भी मांग की है कि जब तक जांच पूरी न हो जाए, तब तक निर्माण कार्य पर रोक लगाई जाए और यदि जांच में अवैध क्रय-विक्रय प्रमाणित होता है, तो संबंधित शिक्षक पर कड़ी कानूनी व विभागीय कार्रवाई की जाए।
यह सिर्फ जमीन नहीं – ये पंचायत की प्रतिष्ठा और व्यवस्था का सवाल है
यह मामला केवल एक ज़मीन का नहीं, बल्कि ग्रामीण व्यवस्था, कानून और पंचायत स्वायत्तता से जुड़ा है। यदि एक शिक्षक, जो समाज का मार्गदर्शक माना जाता है, इस तरह नियम तोड़ता है, तो यह पूरे तंत्र पर सवाल खड़े करता है।