September 09, 2025
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सम्पादकीय / शौर्यपथ / देश के जिस चमकदार हिस्से को आदर्श बनकर चमकना था, वहां कोरोना संक्रमण का सबसे ज्यादा फैल जाना दुखद और चिंताजनक है। किसी भी देश की राजधानी में आबादी ज्यादा होती है, लेकिन इसके बावजूद उसे खुद को तमाम कमियों से बचना-बचाना पड़ता है, ताकि उस पर विश्वास कायम रहे। राजनीति से परे भी राजधानी का अपना महत्व है और यह महत्व वहां मौजूद सुविधाओं-संसाधनों की वजह से ही आकार लेता है। यह दुखद तथ्य है कि दिल्ली ने कोरोना के मामलों में उस मुंबई को पछाड़ दिया है, जो विगत लगभग दो महीने से सबसे आगे चल रही थी। मुंबई में जहां रोज आ रहे मामलों की संख्या में भारी कमी आई है, वहीं दिल्ली में एक दिन में 3,788 मामलों का सामने आना चिंता को बहुत बढ़ा देता है। यह दिल्ली के लिए पहले से कहीं ज्यादा ईमानदारी और मुस्तैदी से सोचने-करने का वक्त है। आने वाले दिनों में कई देशों से हवाई उड़ानें शुरू हो जाएंगी और एक राजधानी के रूप में दिल्ली की जो व्यापक जिम्मेदारियां हैं, उनसे बचना नामुमकिन है। कोरोना की चेन तोड़ने के लिए सरकार को युद्ध स्तर पर प्रयास करने चाहिए। अर्थव्यवस्था के लिए लॉकडाउन खुलना जरूरी है, पर ऐसा न हो कि संक्रमण इतनी तेजी से फैले कि अनलॉक होने का नुकसान ज्यादा और फायदे कम हो जाएं। उधर, लॉकडाउन खोलने के बाद महानगर चेन्नई की भी हालत खराब हो गई थी, तो वहां फिर 12 दिन का संपूर्ण लॉकडाउन लगाना पड़ा है। कोलकाता में भी राहत नहीं है, पश्चिम बंगाल सरकार ने लॉकडाउन को 31 जुलाई तक के लिए बढ़ा दिया है। दिल्ली में अभी लॉकडाउन का इरादा किसी नेता ने नहीं जताया है, पर संक्रमण को नहीं संभाला गया, तो कोरोना व लॉकडाउन की राजनीति शुरू करने का इंतजार करने वाले भी कम नहीं होंगे। राजनीति का अपना मिजाज है, जिसमें एक दोषी या आरोपी खोजा जाता है, लेकिन कोरोना के समय ऐसा कोई प्रयास करने की बजाय सकारात्मक ढंग से सोचना चाहिए।
अव्वल तो दिल्ली में परस्पर समन्वय बढ़ाना सबसे जरूरी है। निर्णायक नेताओं को रोष, राजनीति छोड़कर फैसले लेने होंगे। जनता देख रही है कि कौन क्या कर रहा है। अत: नेताओं को अपनी सामूहिक जिम्मेदारी का एहसास गहराई से होना चाहिए। मरीज घर में रहे या अस्पताल आए, जैसे विषय पर विवाद का समय नहीं है। बहुत से लोग होंगे, जिनके घर में जगह या सुविधाएं नहीं होंगी, तो उनका अस्पताल आना विवशता है। अत: दोनों ही तरह कर सुविधाओं के साथ सरकार को चलना होगा। यह मरीजों के अनुकूल राह निकालने का समय है।
बहरहाल, दिल्ली सरकार ने घर-घर जांच का जो बीड़ा उठाया है, वह सराहनीय है। 15,000 से ज्यादा टीमें बन रही हैं, जिनमें 55 हजार से ज्यादा चिकित्सा सेवक शामिल होंगे, जो 34 लाख से अधिक घरों में जाकर लोगों की जांच करेंगे। ऐसे बड़े अभियान के समय लोगों की भी जिम्मेदारी है कि वे स्वयं आगे बढ़कर जांच कराएं। संभव है, घर-घर जांच से कोरोना के मामलों की संख्या बढ़ जाए, पर तब भी 6 जुलाई तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी और उसके बाद की रणनीतियों के साथ भी दिल्ली को तैयार रहना चाहिए। इस तैयारी की बुनियाद निर्णायकों के परस्पर समन्वय पर निर्भर है और जो थोड़े-बहुत मतभेद रह भी जाएं, तो उनका असर जांच या चिकित्सा टीमों पर नहीं पड़ना चाहिए।

 

मेलबॉक्स /शौर्यपथ / स्वामी रामदेव द्वारा पेश कोरोना की दवा पर हंगामा मचा है। संभव है, योग गुरु ने इस प्रक्रिया में नियमों का उल्लंघन किया हो, लेकिन नियमों की शर्तें पूरी भी कराई जा सकती थीं। बहरहाल, सरकार ने दवाई के प्रचार-प्रसार पर रोक लगा दी है, लेकिन यदि यह दवा कारगर मिलती है, तो इसे स्वीकृति दी जानी चाहिए, अन्यथा इस पर प्रतिबंध लगा देना ही उचित होगा। निस्संदेह, आयुर्वेद भारत की पुरानी चिकित्सा पद्धति है। आज भी दूरदराज के गांवों में देसी हकीम और वैद्य ही ग्रामीणों का इलाज करते हैं। इतिहास भी साक्षी है कि हमारे वैद्य हर बीमारी का इलाज करने में सक्षम थे। मगर एलोपैथी के सामने यह पुरातन विद्या नेपथ्य में चली गई। देखा जाए, तो कोई भी पैथी अपने आप में संपूर्ण नहीं है। कोरोना के मामले में भी एलोपैथी अब तक विफल साबित हुई है। ऐसे में, यदि आयुर्वेद में आशा की किरण जगी है, तो उस पर मंथन जरूरी है, ताकि मानव समाज को कोरोना से राहत मिल सके।
रणजीत वर्मा, फरीदाबाद

फैसले पर आपत्ति
अमेरिकी राष्ट्रपति के पास कुछ विशेष अधिकार होते हैं। इस अधिकार का प्रयोग करके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरे देश के कामगारों को रोजगार के नाम पर मिलने वाली खास वीजा दिसंबर तक निलंबित कर दी है। राष्ट्रपति का कहना है कि इससे अमेरिका में रह रहे लोगों को रोजगार मिलने में सुविधा होगी। यह बात सच है कि वहां के लोगों को इसका फायदा मिलेगा, लेकिन ट्रंप कहीं न कहीं इस बात को नजरंदाज कर रहे हैं कि अमेरिका को यदि आज वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र माना जाता है, तो इसमें दक्षिण-पूर्व एशिया (खासकर भारत) से आने वाले लोगों का बड़ा योगदान है। इसी वजह से कई लोग इस फैसले पर आपत्ति जता रहे हैं।
जीवन वर्मा, परसाबाद, कोडरमा

थमती खेल गतिविधियां
कोविड-19 महामारी का प्रकोप थमता नहीं दिख रहा है। दुनिया भर में संक्रमित मरीजों की संख्या एक करोड़ तक पहुंचने वाली है। इसकी चपेट में राजनेता और फिल्म जगत के लोगों के साथ-साथ खिलाड़ी भी आने लगे हैं। पाकिस्तान के कई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ियों के साथ ही टेनिस दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी नोवाक जोकोविच भी कोरोना से संक्रमित पाए गए हैं। समूचा विश्व इस महामारी से पिछले तीन महीनों से जूझ रहा है। खेल गतिविधियों को फिर से शुरू करने की उम्मीद जगी ही थी कि कुछ खिलाड़ियों के संक्रमित होने की खबर आ गई। इससे हाल-फिलहाल में खेल गतिविधियां थमी हुई ही नजर आ रही हैं।
शिवम सिंह, बिंदकी, उत्तर प्रदेश

बढ़े दाम से हलकान
अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम घटने के बावजूद देश में पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। इसका खामियाजा सिर्फ गरीब और निम्न मध्यमवर्ग को भुगतना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि पहली बार डीजल की कीमत पेट्रोल से ज्यादा हो गई। डीजल की कीमत के बढ़ने का मतलब है, सब कुछ महंगा हो जाना। एक तरफ कोरोना का कहर लगातार जारी है, बेरोजगारी चरम पर है, लोगों से आय के साधन छिन रहे हैं और दूसरी तरफ पेट्रो पदार्थों के दाम बढ़ाकर महंगाई बढ़ाई जा रही है। इससे तो यही जाहिर होता है कि सरकारें अपना खजाना भरने के लिए आम आदमी की जेब काट रही हैं। ऐसी स्थिति में जरूरी है कि पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों पर रोक लगाकर लोगों को राहत दी जाए। इसके साथ ही, जब तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के मूल्य में वृद्धि नहीं होती, अपने राजस्व बढ़ाने के लिए सरकार इस रास्ते का इस्तेमाल न करे। पेट्रोल-डीजल के दामों में जल्द ही कमी लानी चाहिए, ताकि गरीब तबके के लोगों को राहत मिल सके।
संजय कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड

 

ओपिनियन / शौर्यपथ / देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या पांच लाख के करीब पहुंच गई है। सुर्खियों में दिल्ली है, जहां 70 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और 2,365 मौत की खबर है। इस तरह, अब राष्ट्रीय राजधानी संक्रमण के मामले में मुंबई से आगे निकल चुकी है, जहां 68 हजार से ज्यादा मरीज हैं और मौत का आंकड़ा 3,900 को छू रहा है। दिल्ली में हुई यह बढ़ोतरी चिंता की बात है, और इसीलिए यहां सुधारात्मक उपायों की दरकार है। इसकी जरूरत इसलिए भी है, क्योंकि केंद्र ने कहा है कि देश में प्रति लाख आबादी में एक मरीज की मौत हो रही है और राष्ट्रीय मृत्यु-दर वैश्विक औसत 6.04 के मुकाबले बहुत कम है, लेकिन मुंबई, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे शहरों में मृत्यु-दर परेशानी की वजह बनी हुई है।
इस महामारी को लेकर भारत का अनुभव यह भी है कि बडे़ शहर इसकी चपेट में ज्यादा आए हैं। विशेषकर पुरानी बसाहट के शहरों और झुग्गी-झोपड़ियों की घनी आबादी में संक्रमण अपेक्षाकृत अधिक फैल रहा है। जाहिर है, इसने शहरी स्वास्थ्य तंत्र, और खासतौर से नगरपालिका सेवाओं को बेपरदा कर दिया है, जबकि बड़े शहरों में ऐसी सेवाएं अमूमन मजबूत मानी जाती हैं। इससे दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों की चुनौतियां समझी जा सकती हैं। उनको संक्रमण का विस्तार होने पर कहीं अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने काफी संजीदगी से काम किया है, जिसका प्रमाण ‘धारावी मॉडल’ की सफलता है। बीएमसी ने ‘केरल मॉडल’ के दो प्रमुख उपायों पर खासा ध्यान दिया- तकनीकी क्षमता और विश्वास। यहां तक कि जब मरीजों की संख्या में कमी आने लगी, तब भी संक्रमित इलाकों में फीवर क्लीनिक और संस्थागत क्वारंटीन जैसी सुविधाएं बढ़ाई जाती रहीं। इसके अलावा, निजी चिकित्सकों को भी जिम्मेदारी दी गई, घर-घर सर्वे किए गए, ऑक्सीमीटर व मोबाइल वैन समय पर उपलब्ध कराए गए। इन सबके साथ-साथ उसने लोगों का दिल जीतने के लिए असाधारण और अभिनव तरीकों का भी इस्तेमाल किया।
सवाल यह है कि दिल्ली में आखिर गलती कहां हुई, जबकि मुख्यमंत्री खुद इसमें नेतृत्व करते दिख रहे थे? निस्संदेह, दिल्ली सरकार ने सक्रिय शुरुआत की थी और ऐसा लग रहा था कि स्थिति संभाल ली जाएगी। देश के अन्य राज्यों की तुलना में यहां सबसे अधिक टेस्ट किए जा रहे थे, मगर पिछले चार हफ्तों से इसमें तेजी से कमी आने लगी। दिल्ली में निजी जांच केंद्रों को काफी पहले लाइसेंस दे दिया गया था और ऐसा महसूस हुआ कि अस्पताल की सेवाएं भी मजबूत हो गई हैं। कंटेनमेंट जोन की व्यवस्था भी बेहतर काम कर रही थी, पर अब लगता है कि दिन बीतने के साथ-साथ सरकार संक्रमित मरीजों के संपर्क में आने वालों को खोजने में शिथिल पड़ती गई।
इसी तरह, अस्पतालों में बेड की उपलब्धता को लेकर विरोधाभासी रिपोर्टें आती रहीं। निजी क्षेत्र के अस्पतालों का प्रबंधन, खासकर उनके कीमती इलाज को घटाने के प्रयास काफी आलोचना के बाद किए गए। टेस्टिंग की राज्य सरकार की अपनी नई गाइडलाइन सुर्खियों में रही, जिसमें केवल लक्षण वाले संदिग्धों की जांच के निर्देश दिए गए थे। दिल्ली सरकार पर कोविड-19 से मरने वाले लोगों की संख्या छिपाने के भी आरोप लगे, और अस्पताल में लाश के करीब ही संक्रमित मरीजों के इलाज के दहलाने वाले दृश्य भी सामने आए। सुप्रीम कोर्ट तक ने दिल्ली सरकार के बारे में प्रतिकूल टिप्पणियां कीं और राष्ट्रीय राजधानी में स्थिति को ‘भयावह और दयनीय’ बताया। हालांकि, अब दिल्ली 10,000 बेड के अस्थाई अस्पताल बनाने, घर-घर सर्वे करने और बहुतायत में स्क्रिनिंग के लिए कमर कसती हुई दिख रही है।
सवाल है कि आखिर हालात को पटरी पर कैसे लाया जाए? निश्चित ही कोविड-19 एक अभूतपूर्व महामारी है और इसे संभालना कोई सरल बात नहीं है। मगर हमारे देश में ही कई मॉडल सफल भी हुए हैं। हालांकि, सवाल मॉडल का नहीं, बल्कि पूरी संजीदगी के साथ नियमों के पालन का है, क्योंकि वही मॉडल सफल होते हैं, जिन्हें गंभीरता से जमीन पर उतारा जाता है।
इस काम में ‘इन्सिडेंट मैनेजमेंट’ यानी घटना प्रबंधन कारगर है, जो पिछली घटनाओं में हुई गलतियों से सबक लेकर तैयार किया जाता है। कोविड-19 के संदर्भ में, महामारी विज्ञानियों की योग्यता और उनके कौशल का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। रोकथाम के उपायों को अमली जामा पहनाने के ये उपाय तब भी किए जा सकते हैं, जब विषाणुजनित महामारी के बारे में बहुत जानकारी उपलब्ध न हो और उससे लड़ने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों के प्रशिक्षण, बचाव व नियंत्रण के उपायों को सुधारने, संसाधनों में इजाफा करने, स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बढ़ाने, बाह्य-संपर्क तेज करने जैसे अतिरिक्त कदम उठाने की दरकार हो। इस तंत्र में कमांड सरंचना काफी मायने रखती है, और इसके लिए महामारी विज्ञानियों को खासतौर से प्रशिक्षित किया जाता है। मगर मुश्किल यह है कि अपने देश में इस काम के लिए अमूमन नौकरशाहों पर भरोसा किया जाता है।
एक बात और। दिल्ली में केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों की तमाम एजेंसियां सक्रिय हैं। उनमें कई तरह के सियासी और अन्य मतभेद कायम हैं। मगर इस शहर ने हैजा, प्लेग, डेंगू, सार्स जैसी पिछली महामारियों का बखूबी सामना किया है। इसने काफी अरसे पहले एक सफल पोलियो उन्मूलन अभियान भी शुरू किया था, जबकि उस समय देश में इसका कोई ठोस मॉडल नहीं था। यह स्थिति तब थी, जब यहां की विभिन्न एजेंसियों में राजनीतिक व अन्य तरह के मतभेद होते रहते थे और केंद्र व दिल्ली के संबंध इतने ही जटिल थे।
स्वास्थ्य-देखभाल और सूचना-संचार प्रणाली में आज काफी सुधार हुआ है, इसलिए कोविड-19 के मोर्चे पर दिल्ली की विफलता त्रासद है। यहां पूर्व में सफलता इसलिए मिलती रही, क्योंकि तब केंद्र, राज्य व स्थानीय निकायों के बीच तालमेल बन जाता था और स्थानीय निकायों द्वारा पोषित मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य-तंत्र का फायदा तब की सरकारों को मिला करता था। आज स्थानीय निकायों की ढांचागत कमजोरी और ‘इन्सिडेंट मैनेजमेंट सिस्टम’ की विफलता का नतीजा साफ-साफ दिख रहा है। तो क्या हम फिसल रहे हैं? इसका जवाब तो वक्त के पास है, लेकिन यदि हम समन्वय की बुनियादी सोच पर नहीं लौटे, तो हमें शायद ही कोई बचा सकेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) राजीव दासगुप्ता, प्रोफेसर (कम्युनिटी हेल्थ) जेएनयू

 

मुंगेली / शौर्यपथ / रामकृष्ण सांस्कृतिक व शिक्षण समिति द्वारा संचालित विवेकानंद विद्यापीठ हाईस्कूल,मुंगेली का हाईस्कूल परीक्षा परिणाम 2020 शत प्रतिशत रहा।विद्यालय से माध्यमिक शिक्षा मंडल छत्तीसगढ़ द्वारा आयोजित हाईस्कूल परीक्षा 2019-20 में कुल 41विद्यार्थियों ने परीक्षा दी जिनमें से सभी उत्तीर्ण हुए।कुल 41 विद्यार्थियों में से 36 प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए जबकि 5 द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुए।प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण 36 विद्यार्थियों में से 14 विद्यार्थियों ने 80 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त कर अपने परिवार के साथ विद्यालय को भी गौरवान्वित किया। छात्र आसीन दिवाकर 94.5% अंक प्राप्त कर शीर्ष पर रहे।काजल सोनकर 89%अंक प्राप्त कर दूसरे स्थान पर रहीं और शुभम वर्मा 88.3% अंको के साथ तीसरे स्थान पर रहे।इनके अलावा 80%से अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी वेदिका देवांगन 87.6%,आर्यन दिवाकर 86%,मानस यादव 85.8%,आराधना वर्मा 84.6%,छाया शर्मा 84.5%,फुलेश्वरी देवांगन 82%,सुमन शर्मा 81.7%,भावना वेंताल 81.5% , देव आशीष वैष्णव 81.3%,निकिता पटेल 81% और खुशबू कुम्भकार 80.5% रहे। विद्यालय के प्राचार्य श्री पारथ लाल कुलमित्र द्वारा विद्यार्थियों की इस उपलब्धि पर उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए बधाइयां और शुभकामनाएं विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को फोन के माध्यम से दी गईं।इसके अलावा विद्यालय के अन्य शिक्षकों जितेश चंद्राकर,संजय पांडेय, महेश ध्रुव, अमन सोनकर और देवदत्त मिश्रा द्वारा भी विद्यार्थियों को बधाइयां और शुभकामनाएं दी गईं।साथ ही श्रीमती संतोषी कुलमित्र और स्वारथ कुलमित्र ने भी विद्यालय के 100% परिणाम पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उनके अच्छे भविष्य के लिए बधाइयां दीं।

भिलाई / शौर्यपथ / भिलाईनगर विधायक व महापौर देवेंद्र यादव ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार लगातार किसान के हित के लिए काम कर रही है। इसी कड़ी में प्रदेश के किसान और गोपालकों के हित और विकास के लिए  मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने एक और अहम फैसला लिया है। प्रदेश सरकार 21 जुलाई को हरेली त्योहार के दिन गोधन न्याय योजना की शुरूआत करने वाली है। सरकार की यह योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मील का पत्थर साबित होगी। गो पालकों और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने उनके हित और विकास के साथ ही जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सीएम श्री भूपेश बघेल जी ने यह योजना बनाई है।
    इसके लिए भिलाई नगर विधायक व महापौर देवेंद्र यादव ने सीएम बघेल का दिल से आभार जताया है। विधायक व महापौर देवेंद्र यादव ने प्रदेश सरकार का दिल से आभार जताते हुए आगे कहा कि प्रदेश सरकार जिस तेजी से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए जिस तरह से काम कर रही है। उससे आने वाले समय पर किसानों को बड़ा लाभ मिलेगा। किसान और गोपालक गोबर बेच कर अच्छी आय कमा पाएंगे साथ ही सीएम जैविक खेती की ओर किसानों को अग्रसर कर रहे हैं। मुख्यमंत्री बघेल की दूरदर्शिता,बेहतर प्लानिंग किसानों और गोपालाकों को आत्मनिर्भर बनाएंगी।
गोधन न्याय योजना के तहत सरकार अब गोपालकों से गोबर खरीदेगी। इसका इस्तेमाल एक ओर जहां सड़क पर आवारा घूम रहे पशुओं को रोकने में होगा, वहीं गोबर से वर्मी कंपोस्ट खाद बनाई जाएगी। इसे बाद में किसानों, वन विभाग और उद्यानिकी विभाग को दिया जाएगा। गोबर खरीदी की शुरुआत गोधन न्याय योजना के तहत सरकार 21 जुलाई को हरेली त्योहार के दिन से करेगी। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा जो गोबर की खरीद करेगा। जब सरकार खुद गोबर की खरीदी करेगी तो किसान गो पालन की ओर अग्रसर होंगे। किसान पशुपालन करने लगेंगे तो जाहिर सी बात ही है कि दूध, दही, धी का उत्पादन बढ़ेगा। इससे भी किसानों का आय बढ़ेगा। जैविक खेती से किसान कम खर्च में गाय के गोबर से ही खाद बनाकर उपयोग करेंगे। इससे रसायनिक खाद का उपयोग घटेगा औैर खेती का खर्च भी कम होगा। साथ ही उत्पादन बढऩे के साथ ही बिना रसायिक खाद वाले पौष्टिक धान , सब्जी आदि का उत्पान होगा। जिससे स्वास्थ्य भी बेहतर होगा।

// हरेली पर्व से होगी इस अभिनव योजना की शुरूआत: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल
// गौ-पालन और गोबर प्रबंधन से पशुपालकों को होगा लाभ , गांवों में रोजगार और अतिरिक्त आय के अवसर बढ़ेंगे
// निर्धारित दर पर होगी गोबर की खरीदी, सहकारी समितियों से बिकेगी वर्मी कम्पोस्ट
// गोबर की खरीदी की दर तय करने पांच सदस्यीय मंत्री मण्डल की उप समिति गठित
// गोबर प्रबंधन की पूरी प्रक्रिया का निर्धारण करेगी मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सचिवों की कमेटी

     रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ राज्य में गौ-पालन को आर्थिक रूप से लाभदायी बनाने तथा खुले में चराई की रोकथाम तथा सड़कों एवं शहरों में जहां-तहां आवारा घुमते पशुओं के प्रबंधन एवं पर्यावरण की रक्षा के लिए छत्तीसगढ़ राज्य में गोधन न्याय योजना शुरू करने का एलान किया है। इस योजना की शुरूआत राज्य में हरेली पर्व के शुभ दिन से होगी। मुख्यमंत्री बघेल ने आज अपने निवास कार्यालय के सभा कक्ष में ऑनलाईन प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज्य सरकार की इस अभिनव योजना की जानकारी दी।
मुख्यमंत्री ने गोधन न्याय योजना के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि इस योजना का उद्देश्य प्रदेश में गौपालन को बढ़ावा देने के साथ ही उनकी सुरक्षा और उसके माध्यम से पशुपालकों को आर्थिक रूप से लाभ पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने बीते डेढ़ सालों में छत्तीसगढ़ की चार चिन्हारी नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी के माध्यम से राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने चारों चिन्हारियों को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। गांवों में पशुधन के संरक्षण और संवर्धन के लिए गौठानों का निर्माण किया गया है। राज्य के 2200 गांवों में गौठानों का निर्माण हो चुका है और 2800 गांवों में गौठानों का निर्माण किया जा रहा है। आने वाले दो-तीन महीने में लगभग 5 हजार गांवों में गौठान बन जाएंगे। इन गौठानों को हम आजीविका केन्द्र के रूप में विकसित कर रहे हैं। यहां बड़ी मात्रा में वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण भी महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से शुरू किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गोधन न्याय योजना राज्य के पशुपालकों के आर्थिक हितों के संरक्षण की एक अभिनव योजना साबित होगी। उन्होंने कहा कि पशुपालकों से गोबर क्रय करने के लिए दर निर्धारित की जाएगी। दर के निर्धारण के लिए कृषि एवं जल संसाधन मंत्री रविन्द्र चौबे की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय मंत्री मण्डलीय उप समिति गठित की गई है। इस समिति में वन मंत्री मोहम्मद अकबर, सहकारिता मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया, राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल शामिल किए गए हैं। यह मंत्री मण्डलीय समिति राज्य में किसानों, पशुपालकों, गौ-शाला संचालकों एवं बुद्धिजीवियों के सुझावों के अनुसार आठ दिवस में गोबर क्रय का दर निर्धारित करेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि गोबर खरीदी से लेकर उसके वित्तीय प्रबंधन एवं वर्मी कम्पोस्ट के उत्पादन से लेकर उसके विक्रय तक की प्रक्रिया के निर्धारण के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में प्रमुख सचिवों एवं सचिवों की एक कमेटी गठित की गई है। उन्होंने कहा कि राज्य में हरेली पर्व से पशुपालकों एवं किसानों से गोबर निर्धारित दर पर क्रय किए जाने की शुरूआत होगी। यह योजना राज्य में अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण साबित होगी और इसके दूरगामी परिणाम होंगे। इसके माध्यम से गांवों में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। मुख्यमंत्री ने किसानों, पशुपालकों एवं बुद्धिजीवियों से राज्य में गोबर खरीदी के दर निर्धारण के संबंध में सुझाव देने का भी आग्रह किया।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य में खुले में चराई की परंपरा रही है। इससे पशुओं के साथ-साथ किसानों की फसलों का भी नुकसान होता है। शहरों में आवारा घूमने वाले मवेशियों से सड़क दुर्घटनाएं होती है, जिससे जान-माल दोनों का नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि गाय पालक दूध निकालने के बाद उन्हें खुले में छोड़ देते हैं। यह स्थिति इस योजना के लागू होने के बाद से पूरी तरह बदल जाएगी। पशु पालक अपने पशुओं के चारे-पानी का प्रबंध करने के साथ-साथ उन्हें बांधकर रखेंगे, ताकि उन्हें गोबर मिल सके, जिसे वह बेचकर आर्थिक लाभ प्राप्त कर सके। मुख्यमंत्री ने कहा कि शहरों में आवारा घूमते पशुओं की रोकथाम, गोबर क्रय से लेकर इसके जरिए वर्मी खाद के उत्पादन तक की पूरी व्यवस्था नगरीय प्रशासन करेगा।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने पत्रकारों के प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा कि इस योजना को पूरी तरह से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के आधार पर तैयार किया गया है। इससे अतिरिक्त आमदनी सृजित होगी। रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इस योजना के क्रियान्वयन के लिए पूरा एक सिस्टम काम करेगा। एक सवाल का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्मी कम्पोस्ट के जरिए हम जैविक खेती की ओर बढेंगे। इसका बहुत बड़ा मार्केट उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि गोधन न्याय योजना के माध्यम से तैयार होने वाली वर्मी कम्पोस्ट खाद की बिक्री सहकारी समितियों के माध्यम से होगी। राज्य में किसानों के साथ-साथ वन विभाग, कृषि, उद्यानिकी, नगरीय प्रशासन विभाग को पौधरोपण एवं उद्यानिकी की खेती के समय बड़ी मात्रा में खाद की आवश्यकता होती है। इसकी आपूर्ति इस योजना के माध्यम से उत्पादित खाद से हो सकेगी। मुख्यमंत्री ने एक सवाल के जवाब में आगे यह भी कहा कि अतिरिक्त जैविक खाद की मार्केटिंग की व्यवस्था भी सरकार करेगी।
इस अवसर पर कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे, गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू, वन मंत्री मोहम्मद अकबर, सहकारिता मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री गुरू रूद्र कुमार, राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल, मुख्यमंत्री के पंचायत एवं ग्रामीण विकास सलाहकारप्रदीप शर्मा, मीडिया सलाहकार रूचिर गर्ग, मुख्य सचिव आर. पी. मण्डल, अपर मुख्य सचिव वित्त अमिताभ जैन, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू, मुख्यमंत्री के सचिव सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी, कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. एम. गीता सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

शौर्यपथ / आयुर्वेद में केवल जड़ी-बूटियों के गुण ही नहीं बल्कि खान-पान और रहन-सहन के बारे में भी बहुत कुछ लिखा गया है। आज हम आपको आयुर्वेद के अनुसार बालों में तेल लगाने के फायदे और इसका सही समय बताएंगे।

 

बालों में तेल लगाने के फायदे
'चम्पी’ या सिर की मालिश की प्रथा पीढ़ियों से चलती आ रही है और हम में से बहुत सारे लोग बालों को धोने से पहले सिर की मालिश करते हैं। माना जाता है कि बालों में तेल लगाने से, बालों को समय से पहले सफ़ेद होने से रोका जा सकता है, इससे बालों की जड़ मजबूत होती है और प्रेशर पॉइंट्स पर मालिश करने से तनाव कम होता है।


आयुर्वेद के अनुसार तेल लगाने से जुड़ी खास बातें
-आयुर्वेद के अनुसार सिरदर्द वात से जुड़ा होता है। इसलिए शाम 6 बजे बालों में तेल लगाना चाहिए। दिन का यह समय वात दूर करने के लिए बेहतर होता है।
-आप बालों में शैंपू करने से पहले भी हफ्ते में एक या दो बार तेल लगा सकते हैं। हालांकि बालों को धोने के बाद तेल लगाने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे बालों में धूल और मिट्टी की समस्या हो सकती है।
-बालों में नियमित तेल लगाने से स्कैल्प में रुसी और खुजली की समस्या दूर हो जाती है। तेल में नीम की पत्तियां डालकर गर्म कर लें और नहाने से पहले इसे स्कैल्प में अच्छी तरह लगाएं। इसके बाद गुनगुने पानी से बालों को धो लें। रुसी की समस्या से पूरी तरह छुटकारा मिल जाएगा।
-रात में सोने से पहले अपने बालों और स्कैल्प में अच्छी तरह तेल लगाना चाहिए। अगली सुबह गुनगुने पानी से बालों को धो लेना चाहिए।
-रात में सोने से आधे घंटे पहले बालों में तेल लगाकर हल्के हाथों से मसाज करने से अच्छी नींद आती है।

 

धर्म संसार /शौर्यपथ / वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण उत्तर प्रदेश की रामनगरी अयोध्या में छह जुलाई से शुरू होने वाले सुप्रसिद्ध सावन झूला मेला का आयोजन स्थगित कर दिया गया है। जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने मंगलवार को बताया कि मणिपर्वत से छह जुलाई से शुरू हो रहे प्रसिद्ध सावन झूला मेला और कांवड़ यात्रा को स्थगित कर दिया गया है।

श्रावण में सभी सोमवार को शिवालयों में श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं। अयोध्या में पारम्परिक सावन झूला मेला होता है जो मणिपर्वत पर प्रमुख मंदिरों के भगवान के विग्रहों को अपने-अपने मंदिर से लेकर श्रद्धालु आते हैं और झूलनोत्सव में लाखों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं, लेकिन इस वर्ष वैश्विक महामारी कोविड-19 से संक्रमण से बचाव के लिये श्रवण सावन झूला मेला व कांवड़ यात्रा स्थगित रहेगा।

संत-धमार्चार्यों ने कहा कि सावन झूला मेला और कांवड़ यात्रा को जिला प्रशासन द्वारा स्थगित करने पर वैश्विक महामारी कोविड-19 के संक्रमण से बचाव होगा।संत- धमार्चार्यों ने भी श्रद्धालुओं से अपने-अपने स्थलों पर ही पूजा अर्चना करने के लिए कहा है। उन्होंने कहा है कि सामूहिक रूप से मंदिरों में प्रवेश न करें। पांच-पांच की संख्या में ही मंदिर में जाए जिससे सरकार के दिशा-निदेर्शों का अनुपालन हो सके एवं सोशल डिस्टेंसिंग का भी ध्यान रखा जाए। कांवड़ संघ के अध्यक्ष मनोज जायसवाल ने कहा कि जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों की कांवड़ यात्रा विभिन्न क्षेत्रों से निकलती है जो बस्ती व बैद्यनाथ धाम को जाती है लेकिन मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुये कांवडिय़ां संघ के पदाधिकारियों ने निर्णय लिया है कि इस वर्ष कोई कांवड़ यात्रा नहीं निकाली जाएगी। सभी लोग मंदिरों में सोशल डिस्टेंसिंग के अनुसार ही जलाभिषेक करेंगे।

गौरतलब है कि छह जुलाई से सावन झूला मेला शुरू हो रहा है। यह मेला तकरीबन एक पखवाड़े तक चलता है। सावन मेले में आने वाले श्रद्धालु रिमझिम फुहारों में भी भव्य रस का रसास्वादन करते हैं और रात-रात भर विभिन्न मंदिरों में घूम-घूमकर भगवान के विग्रहों को झुलाते हैं। इस समय छटा देखते ही बनती है। सावन में गाये जाने वाले लोकगीत कजरी का भी चारों ओर गूंज सुनाई देता है। मणि पर्वत के मेले के दिन सीताराम झांकी को लेकर रामधुन गाते हुए श्रद्धालु मणिपर्वत पहुंचते हैं जहां वृक्षों में झूले डालकर भगवान के विग्रहों को झुलाया जाता है।

पूरे सावन में मंदिरों में दोनों समय भगवान के विग्रहों को झुलाये जाने की परम्परा है। मणि पर्वत पर पडऩे वाले झूलों में विग्रहों के अलावा छोटे-छोटे बच्चों को रामसीता के रूप में सजाकर झुलाया जाता है। सखी सम्प्रदाय के लोग मनमोहनक पोशाक पहनकर सोलह श्रृंगार करते हैं।

 

लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / कई बार जीवन में ऐसे मोड़ आ जाते हैं जब व्यक्ति का अपने गुस्से पर कंट्रोल नहीं रहता और वो जाने-अनजाने कुछ ऐसा कर बैठता है जिसकी वजह से भविष्य में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ता है। तो क्या इसका मतलब ये हुआ कि व्यक्ति को अपने क्रोध को मन के भीतर ही दबाए रखना चाहिए, बिल्कुल नहीं। आप कल्पना करके देखिए यदि किसी चिमनी के भीतर कोयला जलाकर रख दें लेकिन चिमनी से भाप बाहर निकलने का रास्ता न हो तो क्या होगा। स्वाभाविक है चिमनी फट जाएगी।

ठीक वैसे ही भावनात्मक रूप से चोटिल व्यक्ति यदि अपने मन से नकारात्मक भावनाओं को बाहर निकालने की जगह अपने मन के भीतर इकट्ठा करता रहेगा तो भविष्य में यह आदत उसके लिए खतरनाक साबित हो सकती है। ऐसे में आइए जानते हैं कैसे इन 5 उपायों को करके व्यक्ति मानसिक शांति बनाए रखने के साथ अपने गुस्से को भी बाहर निकाल सकता है।

व्यायाम करें -
मन से सभी नकारात्मक विचारों को निकालने के लिए वर्कआउट करें। वर्कआउट के दौरान एंडोर्फि‍न हॉर्मोन , जिसे हम हैप्पी हॉर्मोन भी कहते हैं शरीर से रिलीज होते हैं। जिससे व्यक्ति की मानसिक सेहत पर अच्छा असर पड़ता है।

गहरी सांस लें-
जब कभी आपको लगे कि आप अत्याधिक गुस्से में हैं तो भड़ास निकालने का बेहतर तरीका है कि एक कदम पीछे आएं और गहरी सांस लें।किसी भी परिस्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया न दें।

दोस्तों से करें खुलकर बात-
दोस्तों से बात करने से भावनाओं को बाहर आने का मौका मिलता है। लेकिन ध्यान रखें सिर्फ भरोसेमंद दोस्त के साथ ही अपनी भावनाओं को साझा करें, जो आपका सही मार्गदर्शन भी करें।

भावनाओं को कागज पर उतारें-
यदि आपके पास कोई भरोसेमंद दोस्त नहीं है तो खुद को अकेला न समझें, अपनी डायरी में पूरी ईमानदारी से अपनी भावनाओं को दर्ज करें। जब आप शांत हो जाएं, इस डायरी को दोबारा पढ़ें। आपको महसूस होगा कि आपके गुस्से ने कैसे आपकी तर्क शक्ति को ढक लिया था। जिसके बाद आप अपनी कमजोरियों पर काम कर सकेंगे।

दृष्टिकोण में करें बदलाव-
अमेरिका के ड्रेक्सल विश्वविद्यालय में किए गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि आप चाहें तनाव की किसी भी स्थिति में हों आर्ट आपके तनाव को कम कर आपको बेहतर महसूस करवाने में मदद करती है। तो देर किस बात की, एक खाली कैनवास लें और उस पर अपने गुस्से और हताशा को व्यक्त करने वाले अपनी मर्जी के रंग उड़ेल दें।

 

नजरिया / शौर्यपथ / प्रधानमंत्री ने कोरोना-19 महामारी से लड़ते हुए कई सूत्र दिए हैं। उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर देते हुए एक नारा दिया है, ‘लोकल के लिए बनो वोकल’। कहने का अभिप्राय कि भारतवर्ष में खूब संसाधन हैं, जिनसे विभिन्न प्रकार के उपयोगी सामान हम विश्व स्तर पर बना सकते हैं। भारत में असंख्य कुशल हाथ हैं, जिनका उपयोग करके प्राकृतिक संपदाओं से बहुत कुछ बनाया जा सकता है। वैसे भी भारत में बहुत कुछ सदियों से बनाया जाता रहा है। ऐसी-ऐसी चीजें बनाई जाती रही हैं, जिनके लिए बड़ी मशीनों की जरूरत नहीं होती। भारत का बना हुआ ढाका का मलमल, राजस्थान और गुजरात की कशीदाकारी, कश्मीर के कालीन और भी सामान देश ही नहीं, विदेश में भी बहुत प्रसिद्ध रहे हैं।
महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई लड़ते हुए स्वदेशी अपनाने की बात मौखिक रूप से ही नहीं कही, बल्कि उन्होंने चरखे को स्वावलंबन का प्रतीक बना लिया था। देखते-देखते हर घर में चरखा चलने लगा था। सूत के कपडे़ बनने लगे थे, बाद में धागों को रंगकर डिजाइनदार कपड़े बनने लगे थे। स्वतंत्रता मिलने से पहले ही गांव-गांव में चरखा समितियां बनाई गई थीं और खादी की साड़ी पहन सिर पर पल्लू रख विशेष आत्मविश्वास से भरी महिलाएं घर-घर से निकलती थीं। सूत व कपड़े की रंगाई-धुलाई के काम में लगकर आमदनी बढ़ाती थीं। स्वदेशी अपनाने के क्रम में मिल में बना तेल लोग नहीं अपनाते थे। गांव के कोल्हू पर अपने खेत से निकले हुए राई, सरसों के तेल का उपयोग करते थे। स्वतंत्रता मिलने के बाद सरकार ने भी केंद्रीय और राज्य स्तर पर खादी भंडार का निर्माण कराया। चरखे चलते रहे, पर धीरे-धीरे मिल के कपडे़ घर-घर आने लगे और हम गांधी के आंदोलन को भूल गए। अब पुन: ‘लोकल के लिए वोकल’ की बात उठी है, तो स्वदेशी का नारा फिर जोर पकड़ने लगा है।
1998 से 2004 तक मैं केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष थी। उन दिनों भी महिलाओं के हाथ में हुनर सिखाने एवं उनके हुनर से बने सामान बेचने की बात बहुत प्रसिद्ध थी। मैंने इस कार्य के लिए कई नारे दिए थे, जैसे- हुनर हो हर हाथ में, दिल में प्रेम का भाव। भेद मिटे हर द्वार से, जग में आए समभाव। और, जब आया हाथों में हुनर, हुलसा हिया, रंग गई चुनर। उन दिनों पूरे देश में बहुत-सी संस्थाओं द्वारा जूट, बांस, लाख ऐसे अन्यान्य प्रकार के उत्पादों का बाजार लगाया जाता था। कहीं-कहीं इसे ‘मेला’ भी कहा जाता था। आज ऐसे मेलों के तेज विकास की जरूरत है। ऐसे मेलों में खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने से लेकर सजावट के तमाम सामान लोगों को उपलब्ध होने चाहिए। ऐसे सामान की मांग होगी, तो ऐसे सामान बनाने वालों की संख्या और आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी। महिलाओं और गरीब घरों की स्थिति सुधरेगी।
इस क्षेत्र के कार्यों में गति देने के लिए मैंने एक अभिनव कार्यक्रम बनाया था, जिसके तहत संस्थाओं को विभिन्न औषधीय वृक्ष लगाने का कार्य सौंपा गया था। अध्ययन करके हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि पांच ऐसे पौधों को अपने घर के पास कम-से-कम जमीन में भी लगाया जाए, पांच वर्षों में उससे मिली आमदनी इतनी हो जाएगी, जिससे एक पांच सदस्यीय परिवार के भोजन, कपड़े का इंतजाम आसानी से हो जाएगा।
देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर शहर में हाथ के बने सामान बेचने के लिए विशेष बाजार या बिक्री केंद्र की व्यवस्था हो। बाजार या बिक्री केंद्र के कर्मचारी ही सामान गांव से लेकर आएं और उत्पादकों व संस्थाओं को कीमत भी दें। इन महिलाओं या पुरुषों को पैकेजिंग के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि उनके सामान विदेशी बाजारों को भी आकर्षित कर सकें। इसी विशेष बिक्री केंद्र द्वारा ये जानकारियां दी जाएं कि कौन-कौन-से सामान की देश के बड़े शहरों व विदेश में मांग है? यदि इतनी सुविधा उत्पादकों, स्वयं सहायता समूहों, संस्थाओं को मिल जाए, तो इनकी आमदनी बढ़ जाएगी।
आज भारत ही नहीं, विश्व के विभिन्न देशों ने ‘पुन: भारतीयता की ओर’ यात्रा शुरू की है। भारत को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा पुन: भारतीयता की ओर आने का प्रयास ही है। कोविड-19 भारत के लिए भी संकट काल में वरदान साबित हो सकता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति, परिवार व गांवों में आत्मविश्वास होता है, लेकिन दूसरों पर निर्भरता से स्वाभिमान की भी रक्षा नहीं होती।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)मृदुला सिन्हा, पूर्व राज्यपाल, गोवा

 

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