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दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग नगर पालिक निगम में कांग्रेस को २० सालो बाद सत्ता मिली है प्रदेश में कांग्रेस की सर्कार होने व भाजपा के कई उम्मीदवारों के निर्दलीय मैदान में उतरने की वजह से दुर्ग निगम में कांग्रेस की सरकार बनी . कांग्रेस की सत्ता वापसी होते ही कांग्रेस नेताओ में पहले महापौर की रेस शुरू हुई जो कुछ ही दिनों बाद धीरज बाकलीवाल के रूप में महापौर निर्वाचित होने के बाद राजनितिक घमासान का अंत हुआ .
महापौर की रेस में नाम नहीं अआने के कारण कांग्रेस के दिग्गज नेता मदन जैन का विरोध रहा वही कांग्रेस से तकिया पारा वार्ड के अब्दुल गनी भी महापौर के चयन के समय दुर्ग राजनीती के रणनीतिकार राजिव वोरा से जबरदस्त विवाद हुआ विवाद का विडिओ वाइरल होते ही शहर की जनता को लगा कि अब्दुल गनी बगावती तेवर अपना सकते है किन्तु निगम के मंत्री मंडल की घोषणा होते ही शहरी सरकार में पी डब्ल्यूडी का पद अब्दुल गनी के पास आ गया और भाजपा से कांग्रेस में प्रवेश करने वाली जयश्री जोशी को जिनके पास सभापति सहित पीदाब्ल्युडी विभाग के कार्य का अनुभव था प्रशासन विभाग दे दिया गया .
सत्ता में आते ही कांग्रेस के मंत्रिमंडल का कार्यालय एम्आईसी भवन की कायाकल्प शुरू होने का कार्य प्रारंभ हो गया . सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पहले सिर्फ पोताई का कार्य किये जाने की बात चली किन्तु धीरे धीरे कार्य का रूप बदलता गया और शहरी सरकार के मंत्री विभागों के कार्य से ज्यादा अपने कार्यालय की खूबसूरती की तरफ ध्यान देने लगे , अब कार्य सिर्फ पोताई से नहीं पुट्टी पेंट तक पहुंचा , पुट्टी पेंट के बाद वाल डिजाईन के कार्य की रूप रेखा बनी , इन सब कार्यो के बाद पुरे एमआईसी में नए परदे लगाने की बात सामने आ गयी ( ऐसा नहीं कि पुराने परदे फट गए या बहुत पुराने हो गए थे किन्तु सत्ता का खेल ऐसा चला कि सब होता गया ) नए परदे लगने के बाद सभी दरवाजो में एक और कांच के दरवाजे लगने की बात उठी जिसे भी संकट ( कोरोना आपदा ) काल में पूर्ण कर लिया गया . अगर सूत्रों की माने तो अब मंत्रिमंडल अपने कार्यालय में एयर कंडीशन लगाने की जुगत में लगा है हो सकता है जल्द ही ये कार्य भी मूर्त रूप ले ले .
अनुमान के मुताबिक एक कार्यालय में कम से कम लाख रूपये का खर्च का अनुमान है . खैर कांग्रेस की सरकार है मंत्री कांग्रेस के है तो हो सकता है केबिन में सोफा भी लग जाए टीवी भी लग जाए शासन के खर्चे में आखिर सत्ता २० सालो बाद आयी है . ये अलग बात है कि नए मंत्रियो में महत्तवपूर्ण पद पर आसीन मंत्री ( शहरी सरकार ) विभाग के कार्यो से अनजान है या फिर ऐसा कोई कार्य अभी तक इन मंत्रियो द्वारा नहीं हुआ जो जनता कि नजर में आये आज भी निगम में ठेकेदार भुगतान के लिए चक्कर लगा रहे है , आज भी शहर की आम जनता अपनी समस्यायों के लिए घूम रही है , आज भी निगम के कई ठेकेदार स्तर हीं निर्माण कर रहे है और मंत्रियो के करीबी होने का लाभ उठा रहे है , आज भी निगम के इंजिनियर स्थल जाँच की अपेक्षा ठेकेदारों के बातो पर भरोसा क्र बिल भुगतान कर रहे है , आज भी निगम के अधिकारी कर्मचारियों से गाली गलौच कर रहे है , आज भी शहर में अवैध रूप से निर्मित दुकानों पर आम जनता को कार्यवाही का इंतज़ार है , आज भी शहर कि जनता अच्छे शासन की राह तक रही है , आज भी सडको की हालत बद से बद्दतर है , आज भी कई इलाको में पानी कि समस्या बनी हुई है , आज भी गरीबो पर अतिक्रमण और कार्यवाही की मार बनी हुई है , आज भी बड़े व्यापारी सीना तान कर सडको पर सामान फैला कर व्यापार कर रहे है , आज भी निगम को राजस्व की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है पर कोई बात नहीं आम जनता तो होती ही है परेशानियों से जीवन बिताने के लिए . वर्तमान में सबसे ज्यादा जरुरी है स्तरहीन कार्य से एमआईसी बिल्डिंग के रूप का कायाकल्प करना .वही कार्य आज निगम में हो रहा है आपदा के समय भी निगम प्रशासन इन कार्यो में कलगा हुआ है और इन कार्यो की जिम्मेदारी निगम के प्रभारी ईई मोहन पूरी गोस्वामी के पास है . निगम ईई से इस कार्य के लिए हुए निविदा की बात पुझी गयी तो टाल मटोल जवाब ही प्राप्त हुआ . विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार एक ही ठेकेदार को यह काम दिया जा रहा काम के स्तर हीं की जानकारी देने पर निगम के प्रभारी ईई ने सुधार की बात तो कही है किन्तु कितना सुधार होगा ये कहना मुश्किल ही है क्योकि भ्रस्टाचार की शिकायत पर अभी तक तो कार्यवाही नहीं हो पाए फिर इन कार्यो की कैसे कार्यवाही होगी जबकि ठेकेदार और ईई गोस्वामी की काफी घनिष्टता बाते जा रही है क्योकि राशन वितरण के समय भी ईई गोस्वामी द्वारा अपने पसंदीदा ठेकेदार को ही कई राशन सामग्री लाने का जिम्मा दिया हुआ था इस बात के पुख्ता प्रमाण ठेकेदार और ईई के बीच अनेकोनेक फोन काल ही सिद्ध कर सकते है ऐसे में क्या निगम आयुक्त बर्मन एमआईसी के कार्यो की निष्पक्ष जाँच करवाएंगे या ये मामला भी अन्य मामलो की तरह दब जायेगा ?
शौर्यपथ / मनोरंजन / शौर्यपथ /‘ससुराल सिमर का’ एक्टर आशीष रॉय अस्पताल में भर्ती हैं। हाल ही में उन्होंने फेसबुक के जरिए लोगों को जानकारी दी थी कि वह आईसीयू में हैं और इलाज कराने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत है। अब आशीष ने हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करने की अपील की है। उनका कहना है कि पैसे नहीं बचे हैं और वह अब बिल नहीं भर पाएंगे।
टाइम्स ऑफ इंडिया को इंटरव्यू देते हुए आशीष ने बताया कि मैं पहले से ही पैसे की तंगी देख रहा हूं। मेरी हालत लॉकडाउन की वजह से ज्यादा खराब हुई है। दो लाख की सेविंग थी, जो कि मैंने दो दिन के हॉस्पिटल बिल भरने में इस्तेमाल कर लिए। पहले मुझे कोविड-19 हुआ, जिसमें 11 हजार लगे और बाकी की दवाइयां अलग। 90 हजार रुपये एक बार के डायलेसिस में लगते हैं। मेरे ट्रीटमेंट के लिए चार लाख की जरूरत है, लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं। इसलिए मैं अब घर जाना चाहता हूं। मैं इस ट्रीटमेंट को अफॉर्ड नहीं कर सकता। मेरी कुछ लोग मदद कर रहे हैं जिससे मैं हॉस्पिटल का बकाया भरकर डिस्चार्ज हो सकूं। मैं अब यहां नहीं रुक सकता फिर कल चाहे मुझे मरना ही क्यों न पड़े।
आशीष के को-स्टार सूरज थापर का कहना है कि आशीष अपने दो बीएचके फ्लैट को बेचने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते वह भी जल्दी होना नामुमकिन है।
आशीष ने इससे पहले बताया था कि 18 मई से मैं हॉस्पिटल में भर्ती हूं। हालत काफी गंभीर है। दो दिन में दो लाख रुपये का बिल आ चुका है। और आगे वह इलाज नहीं करा पाएंगे क्योंकि उनके पास पैसे नहीं बचे हैं।
आशीष आगे कहते हैं कि मेरे पास पैसे नहीं है। दो लाख थे वह मैंने हॉस्पिटल में दे दिए क्योंकि दो दिन का बिल इतना बनाकर दिया था। अब एक रुपए भी नहीं बचा है। कई लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं। वह फोन कर रहे हैं और पूछ रहे हैं। देखते हैं आगे क्या होता है। वायरस के चलते मुझे एक अलग वॉर्ड में रखा गया है। जो कि काफी महंगा है। मेरा डायलेसिस होता है। और चार घंटे तक चलता है। दवाइयां और इंजेक्शन भी काफी महंगे हैं।
बता दें कि इस साल के शुरुआत में भी आशीष बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती हुए थे। उनके शरीर में करीब 9 लीटर पानी जमा हो गया था। डॉक्टर्स ने कड़ी मशक्कत के बाद उनके शरीर से पानी निकाला था। गौरतलब है कि आशीष ने 'ससुराल सिमर का', 'बनेगी अपनी बात', 'ब्योमकेश बख्शी', 'यस बॉस', 'बा बहू और बेबी', 'मेरे अंगने में', 'कुछ रंग प्यार के ऐसे भी' और 'आरंभ' जैसे कई टीवी शोज में काम किया है।
शौर्यपथ / मानव जाति के इतिहास में छठी शताब्दी में जस्टिनियन प्लेग से लेकर 1918 में स्पेनिश फ्लू तक कई महामारियां देखी गई हैं। 21वीं सदी में खासकर तीन कोरोना वायरस प्रकोप देखे गए हैं। मर्स, सार्स के बाद हम कोविड-19 का प्रकोप देख रहे हैं। चिकित्सा विज्ञान की तरक्की के बावजूद यह अनुमान लगाना नामुमकिन है कि अगली संक्रामक बीमारी का प्रकोप कब होगा, इसलिए हमें पूरी तरह सचेत रहने की जरूरत है।
संक्रमण के कुल मामलों में जब भारत चीन को पार कर चुका है, तब दोनों की तुलना दिलचस्प होगी। मध्य मार्च के बाद से भारत में जहां संक्रमण के मामलों में क्रमिक वृद्धि देखी गई, वहीं चीन में जनवरी-फरवरी में ही बहुत तेजी देखी गई थी। वहां का प्रशासन मजबूर हो गया था और भारत से करीब दो महीने पहले 23 जनवरी को ही वुहान में सख्त लॉकडाउन लागू हो गया था। वहां 70 दिन चले लॉकडाउन से संक्रमण काबू में आया और अब स्थिर है। चीन जैसी ही तेज बढ़त अमेरिका और यूरोप में देखी गई, इस मामले में भारत कुछ अलग है।
गौरतलब है, भारत में चीन की तुलना में 45 प्रतिशत कम मौतें हुई हैं, हालांकि कुल संक्रमित लोगों में सक्रिय संक्रमित 60 प्रतिशत से ज्यादा रहे हैं, जबकि चीन में सक्रिय संक्रमितों की संख्या शून्य के करीब पहुंच गई है। भारत में 38 प्रतिशत लोग स्वस्थ हो रहे हैं। ठीक होने वालों की संख्या भारत में ज्यादा है। वैसे अभी भी भारत में जर्मनी, स्पेन और इटली इत्यादि हॉटस्पॉट बने देशों की तुलना में ठीक होने की दर कम है।
इसके अलावा, यह बीमारी चीन में मुख्य रूप से हुबेई प्रांत में सीमित थी और वहां भी विशेष रूप से वुहान में, जबकि भारत में चार राज्यों- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और दिल्ली में संक्रमण के ज्यादा मामले देखे जा रहे हैं। इन चार राज्यों में भारत के कुल दो-तिहाई मामले मिले हैं। कुल मिलाकर, भारत में ठीक होने की उच्च दर इशारा करती है कि कोरोना के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास यहां कारगर रहा है। आज अहम सवाल यह है कि जो लोग सार्स और कोविड-19 के संक्रमण को हरा सकते हैं, क्या वे भावी वायरस हमलों को भी धता बता पाएंगे? जब हम इसका जवाब खोजेंगे, तब हमें कोविड-19 की वैक्सीन खोजने में मदद मिलेगी।
हमारे शरीर में दो चीजें हैं, एचएलए सिस्टम और केआईआर जींस, दोनों ही कोरोना बीमारी के माइक्रोब्स के खिलाफ रोग प्रतिरोध की दीवार खड़ी कर रही हैं। एचआईवी सहित अन्य संक्रामक रोगों और स्वत:रोग प्रतिरोधी क्षमता के संबंध में एचएलए और केआईआर की जेनेटिक प्रवृत्ति के पर्याप्त डाटा मौजूद हैं। ये दोनों जेनेटिक सिस्टम शरीर के दो रोग-प्रतिरोधी योद्धाओं को चलाते हैं- एक, साइटोक्सिक टी-सेल्स और दूसरा, नेचुरल किलर सेल्स, ये दोनों ही मिलकर वायरस को निशाना बनाते हैं और ठिकाने लगाने में मदद करते हैं। इनका गहन अध्ययन जरूरी है, ताकि कोविड-19 की जांच के कारगर उपकरण बनाए जा सकें। इससे अलग-अलग लोगों में अलग-अलग उपचार रणनीति बनाने में भी मदद मिलेगी। संक्रमित लोगों में एचएलए विविधता की पहचान करने से संक्रमण की गंभीरता का अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है और यह तय किया जा सकता है कि आखिरकार टीके से किसको फायदा होगा। भारतीय संदर्भ में वैज्ञानिकों को दो अहम अवलोकनों के जवाब खोजने होंगे। पहला, मुख्य रूप से स्पर्श से हो रही बीमारी के क्लिनिकल कोर्स को देखना होगा और दूसरा, भारत में अभी तक गंभीर और अति-गंभीर मामलों की सीमित संख्या पर भी गौर करना होगा।
एक सवाल यह भी है कि किसी संक्रामक का कारगर उपचार विकसित करने में कितना समय लगता है? ऐतिहासिक रूप से चेचक और पोलियो का प्रभावी टीका खोजने में हजारों साल लगे हैं। इन दिनों विश्व वैज्ञानिक समुदाय ने जिस एकजुटता के साथ कोरोना वायरस को हराने के विलक्षण कार्य में ज्ञान और जानकारी साझा की है, यह वास्तव में अभूतपूर्व है। अकेले विज्ञान ही भविष्य में स्वास्थ्य रक्षकों को अपनी पूरी क्षमता से काम करने, भविष्य के संक्रामकों को रोकने और उनका इलाज करने के लिए जीवन रक्षक उपकरण बनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। बेशक, वैश्विक आपात स्थितियों से निपटने के लिए नई प्रौद्योगिकियों की तत्काल जरूरत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
शौर्यपथ / समुद्री तूफान से हुआ नुकसान जितना दुखद है, उतना ही चिंताजनक भी। दुख इसलिए कि भारतीय राज्यों- पश्चिम बंगाल और ओडिशा सहित बांग्लादेश में न केवल 25 से ज्यादा लोग मारे गए हैं, वहां जो माली नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई में कुछ वर्ष लग जाएंगे। कोरोना की वजह से आर्थिक परेशानी झेल रही एक विशाल आबादी ने अम्फान को अपने सीने पर झेला है। इस पूरी आबादी के साथ-साथ उसे पहुंचे पूरे नुकसान का अनुमान लगाना जरूरी है। पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों को दोहरी मदद की जरूरत पड़ेगी और इसके लिए केंद्र सरकार को कमर कस लेनी चाहिए। तूफान और तेज बारिश से मची तबाही की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उस समय अपने दफ्तर में मौजूद थीं और उन्हें ‘सर्वनाश’ व ‘तांडव’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा। मुख्यमंत्री के ऐसे उद्गार से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में कुछ पीढ़ियां ऐसी हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ऐसी त्रासदी का सामना पहले कभी नहीं किया। असंख्य गरीबों और आम लोगों के आशियाने तबाह हो गए हैं। उन सभी को हरसंभव मदद और मुआवजे की जरूरत पडे़गी। इतनी बड़ी संख्या में पेड़ गिरे हैं, बिजली के खंभे टूटे हैं, टीन, छप्पर, बैनर, होर्डिंग उड़े हैं कि राज्य सरकारों ने प्रभावित इलाकों में लोगों को घर के अंदर ही रहने को कहा है। केवल तटीय इलाकों में ही नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा के भीतरी इलाकों में भी अम्फान से मची तबाही का मंजर है।
पश्चिम बंगाल के बुजुर्ग 1970 में आए उस भोला तूफान को याद कर रहे हैं, जिसमें पांच लाख से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी थी और 1991 में आए गोर्की तूफान को भी याद किया जा रहा है, जो अपने साथ 1.39 लाख लोगों को ले गया था। शुक्र है, समय पर जारी हुई चेतावनी ने लोगों की जान की रक्षा की और सौभाग्य है, यह तूफान अपनी रफ्तार थोड़ी कम करते हुए तट पर पहुंचा। एक और अच्छी बात है कि यह भारत में पश्चिम या उत्तर की ओर आगे नहीं बढ़ा और इसका दबाव क्षेत्र बांग्लादेश की ओर मुड़ते हुए लगभग प्रभावहीन हो गया।
तूफान से प्रभावित हुए लोगों के प्रति देश में संवेदनाओं का ज्वार स्वाभाविक है, लेकिन हमें इन तूफानों से स्थाई बचाव के बारे में भी सोचना होगा। अव्वल तो तटीय जिलों में छप्पर या कच्चे मकानों पर पाबंदी समय की मांग है। गरीबों के लिए पक्के मकान बनाने की जो योजनाएं हैं, उन्हें तटीय इलाकों में युद्ध स्तर पर चलाना चाहिए। केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारों के पास भी यह एक मौका है कि वे समुद्री तट से लेकर अंदर 200-300 किलोमीटर तक कच्चे घरों, भवनों, दुकानों को फिर न खड़ा होने दें। हम ऐसे दौर में हैं, जब समुद्री जल का तापमान बढ़ रहा है और हर दो या तीन वर्ष में एक बडे़ तूफान की आशंका बनेगी। ऐसे में, यह जरूरी है कि गरीबों और जरूरतमंदों तक पक्की या स्थाई सहायता पहुंचे, उन्हें फिर विस्थापित न होना पड़े। ऐसे निर्माणों, बिजली के खंभों और पेड़ों पर भी निगाह रखनी पडे़गी, जो ऐसे तूफानों के समय तबाही का सामान बनते हैं। दिल्ली, कोलकाता से सुदूर इन इलाकों तक प्रशासकों, शासकों को पहले की तुलना में और उदार हो जाना चाहिए, तभी वे पीड़ितों की पीड़ा दूर कर पाएंगे।
शौर्यपथ / सोमवार से लॉकडाउन के चौथे चरण की शुरुआत होते ही राज्य सरकारों ने अपने-अपने स्तर पर रियायतें दी हैं। हालांकि, इन राहतों का लोग गलत फायदा उठाने लगे हैं और नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। अधिकतर लोग बिना मास्क लगाए बाजार और सड़कों पर घूमते नजर आ रहे हैं। वाहनों पर भी निर्धारित सवारी से अधिक लोग बिना हेलमेट के सड़कों पर निकल रहे हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा मरीजों के मामले में हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, फिर भी प्रवासी मजदूरों का जमावड़ा और लोगों का संक्रमण से डरे बिना उन्मुक्त होकर विचरण करना बंद नहीं हो रहा है। इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ सकता है। यदि हम खुद नहीं संभलेंगे, तो कोरोना का संक्रमण बढ़ता चला जाएगा। नतीजतन, सरकार को कहीं अधिक सख्त कदम उठाने पड़ सकते हैं। ऐसे में, हम सभी को जागरूक रहने की जरूरत है।
अंजली राजपूत, झांसी
निजीकरण है रुकावट
मोदी सरकार ने स्वदेशी पर जोर देने के उद्देश्य से आत्मनिर्भर भारत का आह्वान किया है। अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए यह अच्छा कदम है, लेकिन क्या लोकल होने से हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आएगी? जनता तो खाने-पीने की चीजों में स्वदेशी को प्राथमिकता देगी, लेकिन क्या सरकार और अधिकारी स्वदेशी को प्राथमिकता देंगे? भारत में स्वदेशी को लेकर अधूरी बातों को ही प्रसारित किया जाता रहा है। स्वदेशी का मतलब टूथपेस्ट, दूध, वस्त्र, साबुन आदि ही बताया गया है, जबकि असली और पूर्ण स्वदेशी का मतलब है, सुई से लेकर जहाज तक भारत में बने। स्वदेशी को सबसे बड़ा खतरा तो निजीकरण से है, क्योंकि इससे सरकार की संपत्ति घट जाती है और देश की शक्ति भी कम हो जाती है।
भूपेंद्र सिंह रंगा, हरियाणा
आर्थिक मदद अनिवार्य
वर्तमान में लगभग पूरा विश्व कोरोना वायरस की चपेट में है और तमाम देशों की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई है। उद्योग जगत से लेकर आम मजदूर तक सब इस प्रकोप से प्रभावित हुए हैं। भारत में लगातार तीन लॉकडाउन के बाद चौथे लॉकडाउन में आशाजनक राहत मिली है, जो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अनिवार्य भी है। हालांकि, केंद्र सरकार ने ठप पड़ चुके उद्योग-धंधों को फिर से शुरू करने को लेकर कोई खास कदम नहीं उठाया है। अगर भारत की तुलना अमेरिका और अन्य देशों से करें, तो अमेरिका ने उद्योगों में सुधार और रोजगार की स्थिति को बनाए रखने के लिए आर्थिक सहायता के रूप में उद्योगों को भारी राशि उपलब्ध कराई है। अन्य देश भी तकरीबन हर सेक्टर को आर्थिक सहायता प्रदान कर रहे हैं। मगर भारत में केंद्र सरकार आर्थिक सहायता एक कर्ज के रूप में दे रही है। अगर सरकार आर्थिक पैकेज बिना किसी शर्त और कर्ज के रूप में मुहैया कराती, तो स्थिति जल्द ही बेहतर हो सकती थी। चूंकि मजदूरों की स्थिति बेहद दयनीय हो चुकी है और वे अपने गांव लौट चुके हैं। ऐसे में, सरकार कर्ज नहीं, बल्कि आर्थिक सहायता दे।
विशेक, दिल्ली विश्वविद्यालय
छात्रों की मुश्किलें
लॉकडाउन का लगातार विस्तार हो रहा है, जिससे वे छात्र खासे चिंतित हो गए हैं, जिनकी अगले वर्ष बोर्ड की परीक्षाएं हैं। भले ही सरकार ने कुछ चैनल पर पढ़ाई की व्यवस्था की है, निजी विद्यालय भी ऑनलाइन पठन-पाठन शुरू कर चुके हैं, लेकिन ये तमाम व्यवस्थाएं समान रूप से सभी छात्रों की मदद नहीं कर पा रही हैं। जिन्हें ये सुविधाएं मिल भी रही हैं, उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में, परीक्षार्थियों में तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है, जो सही नहीं है। इस समस्या के हल के लिए संबंधित मंत्रालय को कोई न कोई व्यवस्था जरूर करनी चाहिए।
कमल नयन चौबे
करगहर, रोहतास
शौर्यपथ / पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भारी तबाही मचाता हुआ अम्फान तूफान भारत से गुजर चुका है। जब हवा 195 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बढ़ रही हो और तेज बारिश का उसे साथ मिले, तो उसकी राह में आने वाली हर चीज का नुकसान स्वाभाविक है। मगर अम्फान में अच्छी बात यह रही कि इसमें मौत की संख्या थामने में हम बहुत हद तक सफल रहे। हां, सार्वजनिक और निजी संपत्ति को क्षति जरूर पहुंची है, पर कुछ जरूरी मानकों का पालन किया गया होता, तो इसे भी सीमित रखना संभव था। फिलहाल, अम्फान से हुई तबाही का ठीक-ठीक आकलन लगाया जा रहा है।
किसी भी तूफान से लड़ने के लिए पूर्व-सूचना सबसे कारगर हथियार मानी जाती है। इसका अर्थ है कि संकट के आने का अंदेशा कब लगाया गया, और इस बाबत संबंधित शासन-प्रशासन को सूचना कब जारी की गई? यह सूचना जितनी सटीक होती है, जान-माल का नुकसान कम करने में शासन-प्रशासन को उतनी ही ज्यादा मदद मिलती है। भारतीय मौसम विभाग इस पहलू पर पिछले काफी समय से गंभीरता से काम कर रहा है, जिसके अच्छे नतीजे आए हैं। अक्तूबर 2013 में ही ओडिशा में आए फैलिन तूफान की पूर्व-सूचना से हमें काफी फायदा मिला था और संकट आने से पहले ही लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाकर उनकी जान बचाई गई थी, जबकि उस वक्त अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने बड़ी संख्या में लोगों की मौत का अंदेशा जताया था।
आज भीषण तूफान जैसी आपदा से यदि लोगों की जान बचाई जा रही है, तो इसका श्रेय काफी हद तक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) को दिया जा सकता है। इसकी स्थापना से पहले कुदरती आपदाओं को सिर्फ इस रूप में देखा जाता था कि आपदा के बाद बचाव और राहत के काम किस तरह किए जाएं। अब इस सोच में बदलाव आया है। अब आपदा से पहले बचाव के तरीके, उससे निपटने की तैयारी और नुकसान कम करने संबंधी उपायों पर ध्यान दिया जाता है, साथ ही आपदा के बीत जाने के बाद राहत और पुनर्निर्माण के कामों पर। एक समग्र रणनीति का ही नतीजा है कि अब आपदा में एक पूरा तंत्र सक्रिय हो जाता है, जो न सिर्फ प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को बाहर निकालता है, बल्कि उनके ठहरने और खाने-पीने का भी पूरा इंतजाम करता है। इसी कारण अम्फान तूफान गुजर जाने के तुरंत बाद ओडिशा में जनजीवन सामान्य होने लगा।
यह सही है कि कोरोना-संक्रमण के काल में अम्फान जैसे संकट से लोगों को बचाना कम जोखिम भरा नहीं है। प्रभावित क्षेत्रों से लाखों लोगों को बाहर निकालना और उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर एक साथ रखने से कोरोना का संक्रमण फैलने का खतरा है। जब पीने का पानी ही सीमित मात्रा में हो, तब यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि लोग बार-बार साबुन से हाथ धोएंगे। मगर, पिछले दो महीने के जागरूकता अभियान ने लोगों को इतना सजग तो बना ही दिया है कि वे स्वयं सावधानी बरतने लगे हैं। संभव है, उन्हें मास्क, सैनिटाइजर वगैरह भी उपलब्ध कराए गए हों। लिहाजा, उनकी हालत उन प्रवासी मजदूरों जैसी नहीं होगी, जो बिना किसी तूफान के ही मुश्किलों से लड़ रहे हैं।
बहरहाल, किसी आपदा के दौरान दो बातों का खास ध्यान रखा जाता है। पहली बात, जान की रक्षा करना, और दूसरी, सरकारी और निजी संपत्ति का कम से कम नुकसान। चक्रवाती तूफान में इस तरह के नुकसानों को रोकना इसलिए मुश्किल होता है, क्योंकि हवा की तेज गति, समुद्र की ऊंची लहरें और मूसलाधार बारिश आपस में मिलकर संकट को भयावह बना देती हैं। हालांकि, पूर्व सूचना के साथ-साथ राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए कई कदम भी अब मददगार साबित होने लगे हैं। जैसे, वे अब आधुनिक जीपीएस का इस्तेमाल करने लगे हैं। वे हवा की गति, समुद्री लहरों की ऊंचाई और बारिश की तीव्रता का आकलन करके प्रभावित इलाकों की पहचान करने लगे हैं और वहां से लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लेते हैं। अपने यहां 2008 में ही चक्रवाती तूफान संबंधी दिशा-निर्देश तैयार कर लिए गए थे। उससे पहले 2006 से ही चक्रवाती तूफान और अन्य आपदाओं के मद्देनजर मॉक ड्रिल का काम सभी राज्यों में शुरू हो गया था। इससे भी राज्यों को काफी फायदा मिला है।
दिक्कत तब आती है, जब ऐसे दिशा-निर्देशों को नजरअंदाज किया जाता है। पश्चिम बंगाल में साल 2009 के आइला तूफान में जब काफी नुकसान हुआ था, तब प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर मैं प्रभावित इलाकों में गया था। हमारी टीम का प्रस्ताव था कि पश्चिम बंगाल में भी ओडिशा या आंध्र प्रदेश की तरह तूफान राहत केंद्र बनाए जाएं। इन वर्षों में इस पर कितना काम हुआ है, यह तो मुझे पता नहीं, लेकिन वहां इसके लिए जगह का मिलना मुश्किल था, और फिर उसके डिजाइन को बदलने की जरूरत थी, क्योंकि वहां मिट्टी भुरभुरी थी। इससे लागत भी बढ़ रही थी।
हर आपदा से हमें सीखने का मौका मिलता है। अम्फान भी हमारे लिए ऐसा ही सबक लेकर आया है। इस तूफान का डॉक्यूमेंटेशन यानी दस्तावेजीकरण होना चाहिए। आमतौर पर हम यह तो ध्यान रखते हैं कि किस काम से हमें कितना फायदा मिला, मगर यह भूल जाते हैं कि किस काम को न करने से कितना ज्यादा नुकसान हुआ। इसके साथ-साथ यह आकलन भी किया जाना चाहिए कि किसी काम को गलत तरीके से करने से हमें नुकसान तो नहीं हुआ? हमें अपनी सफलता और विफलता, सब कुछ बतौर रिकॉर्ड दर्ज करना चाहिए और अगली आपदा से निपटने की रणनीति बनाने में उसका इस्तेमाल करना चाहिए।
इसी तरह, एक अध्ययन यह भी होना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन का इन तूफानों पर कितना असर हुआ है। बेशक पिछले कुछ वर्षों में चक्रवाती तूफान की बारंबारता बढ़ गई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इसकी वजह जलवायु परिवर्तन है। हां, जलवायु परिवर्तन से कम समय में तेज बारिश की आशंका जरूर बढ़ गई है, जिससे काफी नुकसान होता है। रही बात भौतिक संपत्तियों के नुकसान की, तो इसे लेकर जो दिशा-निर्देश हैं, उनमें कहा गया है कि उसी आपदा को मानक बनाकर निर्माण-कार्य होने चाहिए, जिससे सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान हुआ है। इससे अगली बार उस तीव्रता की आपदा उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाती। परेशानी की बात यह है कि इस पर अमल नहीं हो रहा, जबकि इसमें तुलनात्मक रूप से बहुत ज्यादा खर्च भी नहीं होता।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
दुर्ग / शौर्यपथ खास खबर /नगर निगम के क्षेत्र के विद्यत नगर में निगम ने नाली से अतिक्रमण तो हटा लिया जिस पर हेमलता साहू द्वारा बाउण्ड्रीवाल का निर्माण किया जा रहा था . अतिक्रमण हटाने के लिए निगम का पूरा अमला अगया और अतिक्रमण हटा लिया गया . अतिक्रमण हटाने के बाद निगम प्रशासन द्वारा अपनी पीठ थपथपाने के लिए बाकायदा प्रेस विग्यप्ति ज़ारी कर शहर की जनता से अपील की गयी कि किसी भी तरह के अतिक्रमण की शिकायत पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी . देखने और सुनने में बहुत अच्छा लगता है कि निगम प्रशासन द्वारा जनता के हितो का खयाला रखा जा रहा है और सुशासन की पहचान बन रही है जबकि हकीकत ठीक इसके उलट है दुर्ग निगम आयुक्त की अपील सिर्फ एक कोरा दिखावा प्रतीत होती है .
शौर्यपथ समाचार पत्र द्वारा ऐसे कई अतिक्रमण की जानकारी निगम आयुक्त को दी गयी किन्तु किसी भी मौखिक शिकायत पर आयुक्त द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी . प्राप्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि निगम प्रशासन निदान में की गयी शिकायत पर भी कार्यवाही में कई मामलो में निष्क्रिय है . दुर्ग निगम में सब इंजिनियर व्ही.पी. मिश्रा के सड़क पर सड़क के भ्रष्टाचार की शिकायत दस्तावेजो में दब गयी किन्तु मामले की पूर्ण जानकारी होते हुए भी निगम आयुक्त मौन है . फ्लेक्स घोटाला जो लाखो का हुआ है पर भी अभी तक निगम आयुक्त मौन ही है कार्यवाही कब होगी ये भी जाँच का विषय बनता जा रहा है . स्थिति यहाँ तक आ गयी है कि अतिक्रमण की कार्यवाही के लिए अब सत्ता पक्ष के पार्षद भी निदान की सहायता ले रहे है . अधिकारियों द्वारा कर्मचारियों को गाली गलौच से बात की जाती है किन्तु जानकारी के बाद भी निगम आयुक्त का मौन रहना प्रशासन की कार्यप्रणाली को दर्शाता है .
निगम प्रशासन की कार्यवाही नाली में कचरा फेकने वाले आम जनता पर जुर्माना लगा कर , नाली पर कचरा मिलने पर कर्मचारियों का वेतन काट कर , सड़क पर मोटर साइकल रोक कर मास्क न पहनने वालो पर जुर्माना लागाने जैसे बड़े बड़े कार्य तो कर रही है किन्तु शहर के मुख्य्बाजऱ में व्यापारियों द्वारा सड़क तक सामान फैला कर व्यापार कर रहे बड़े व्यापारियों की तरफ निगम आयुक्त का ध्यान क्यों नहीं जाता है क्या सिर्फ शहर की निगम क्षेत्र की जनता को कमजोरो पर कार्यवाही कर वाहवाही लुटने के लिए ही निगम प्रशासन ?
भिलाई / शौर्यपथ / आगजनी के चलते हुई मजदूर की मौत के मामले में भिलाई-3 पुलिस ने जांच के बाद श्री श्याम केमिकल फैक्ट्री के मालिक कमल सेन उर्फ कमल चौहान के खिलाफ अपराध कायम कर लिया है। पुलिस जांच में असुरक्षा और लापरवाहीपूर्वक मजदूरों से काम लिए जाने की बात ही साबित हुई है। इस मामले में अग्रदूत ने खबरों के जरिए फैक्ट्री मालिक की लापवाही को उजागर किया था।
हथखोज के भारी औद्योगिक क्षेत्र स्थित श्री श्याम केमिकल में 28 अप्रैल को भीषण आगजनी हुई थी। इस घटना में पचपेड़ी भिलाई तीन निवासी गोपेन्द्र देशलहरे पिता ईश्वरलाल (33 वर्ष) एवं मुकेश निषाद फैक्ट्री में काम करते समय बुरी तरीके से झुलस गए। दोनों को सेक्टर 9 अस्पताल के बर्न यूनिट में भर्ती कराया गया। जहां 3 मई को गोपेन्द्र देशलहरे की इलाज के दौरान मौत हो गई।
इस मामले में भिलाई-3 पुलिस ने जो जांच की उसमें पाया गया कि जब फैक्ट्री में आग लगी तो मालिक कमल सेन उर्फ कमल चौहान मृतक गोपेन्द्र देशलहरे व घायल मुकेश निषाद से बिना किसी सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराये काम करा रहा था। इसी आधार पर कमल सेन के खिलाफ धारा 287, 304 ए के तहत अपराध कायम किया गया है। गौरतलब रहे कि श्री श्याम केमिकल में 28 अप्रैल को हुई आगजनी में 3 मई को गोपेन्द्र देशलहरे की मौत के बाद अग्रदूत ने क्रमश: खबर प्रकाशित कर फैक्ट्री मालिक की लापरवाही की ओर शासन प्रशासन का ध्यानाकर्षण कराया था। 15 साल पहले बनी इस फैक्ट्री में समय के साथ पुराने मशीनरी को नहीं बदलने के चलते आगजनी की संभावना को बल मिला था। वहीं आगजनी के बाद उस पर काबू पाने आधनिकतम तकनीक विकसित करने के प्रति भी फैक्ट्री मालिक की अनदेखी मजदूर की मौत का कारण बन गई। मृतक मजदूर का ईएसआई में पंजीयन नहीं था। जबकि ऐसा किया जाना फैक्ट्री मालिक के लिए श्रम कानून के तहत जरुरी था। ईएसआई में पंजीकृत नहीं होने से मृतक गोपेन्द्र देशलहरे के परिजनों को लगभग 10 लाख रुपए मुआवजे से वंचित होना पड़ा। वहीं पत्नी को आजीवन तथा दोनों पुत्रों को 25 साल की उम्र तक पेंशन की पात्रता से भी हाथ धोना पड़ गया।
भिलाई / शौर्यपथ / छावनी थानांतर्गत बैकुण्ठ धाम के पास कल देर शाम हुए पुलिस कर्मियेंा और पुलिस वाहन की 112 गाउ़ी सीजी 03-7082 पर पथराव करने वाले पांच लोगों पर छावनी पुलिस ने धारा 353, 186, 174, 148 लोकसंपत्ति क्षति निवारण अधिनियत 1984 की धारा 3 के तहत आरोपी विशाल मनीष गुप्ता,उदय प्रताप, करण साव, कृष्णा राय के विरूद्ध प्रार्थी सुनिल त्रिपाठी की रिपोर्ट पर इन पांचो आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया।
छावनी थाना टीआई विनय सिंह ने बताया कि पांच लोग जो इस मामले में पकड़े गये हैं, वे लॉकडाउन का उल्लंघन कर मोहल्ले में घूमने से बाज नही आ रही थे, इसी मामले को लेकर जब 112 की टीम द्वारा इनको पहले भी कई बार समझाईश दी गई लेकिन ये नही मानते थीे इसी तरह कल शाम को भी जब 112 पुलिस की टीम थाना समझाईश देने े बााद सख्ती बरती गई तो मनीश सहित उसके साथियों को नागवार गुजरा और इसके कारण ये मनीष और उसके साथियों सहित मोहल्ले वालों द्वारा पुलिस वालों के साथ मारपीट कर पुलिस वाहन में तोडफ़ोड़ किया गया।
इस मामले में वरिष्ठ पुलिस अधीखक अजय यादव ने इस मामले की जांच की जिम्मेारी सीएसपी छावनी को करने की सौंपी है, इसकी जांच रिपोर्ट सीएसपी द्वारा पांच दिनों में एसपी को दी जायेगी।
राजनांदगांव / शौर्यपथ / लॉकडाउन में अप्रवासी मजदूरों की बदहाल हालत को दुरूस्त करने के लिए बाघनदी बार्डर में तैनात आईटीबीपी की 38वीं वाहिनी ने सेवाभाव दिखाते हुए मजदूरों की सुध ली है। बार्डर में बड़े पैमाने पर थके-प्यासे पहुंच रहे मजदूरों के प्रति उदारता का परिचय देते हुए आईटीबीपी के जवान पूरी शिद्दत के साथ मदद के लिए सामने आ रहे हैं। आईटीबीपी के मददगार रूख ने मजदूरों की भूख और प्यास को दूर करने का काम किया है। सिविक एक्शन प्लान के तहत 38वीं वाहिनी की ओर से भोजन के पैकेट के साथ-साथ मठा भी मजदूरों को दिया जा रहा है। आईटीबीपी की ओर से मजदूरों को बार्डर में प्रवेश करते ही भोजन भी उपलब्ध कराया जा रहा है।
इसके अलावा शारीरिक परेशानी से त्रस्त मजदूरों को चिकित्सकों की सलाह के पश्चात दवाई भी दी जा रही है। इस संबंध में डिप्टी कमांडेंट रंजन कुमार ने कहा कि कमांडेंट नरेन्द्र सिंह के दिशा-निर्देश पर सिविक एक्शन प्लान के तहत मजदूरों को मदद की जा रही है। आईटीबीपी सामाजिक सरोकार से जुड़ते हुए यह प्रयास कर रहा है। इधर बाघनदी बार्डर में आईटीबीपी की ओर से सूखे खाद्य पदार्थ भी दिए जा रहे हैं। मजदूरों की तकलीफ को दूर करने की कोशिश में जुटे आईटीबीपी के आलाधिकारी और अन्य जवान हरसंभव मजदूरों की दशा को सुधारने में मदद कर रहे हैं। आईटीबीपी के इस प्रयास की जमकर सराहना हो रही है। आईटीबीपी 24 घंटे बार्डर में मजदूरों की देखभाल के लिए डटा हुआ है।